(प्रशांत सिन्हा)

यही वह 26 जनवरी का गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत ने आज़ादी के लगभग 2 साल 11 महीने 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद में भारतीय संविधान को पास किया था। ख़ुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। लेकिन आज भी हमारा गणतंत्र कितनी कंटीली झाड़ियों में फंसा प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र
की स्थापना से लेकर ” क्या पाया , क्या खोया ” के लेखा जोखा की तरफ खींचने लगता है। कर्तव्य पालन के प्रति सतत् जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप मे मना सकेंगे। तभी लोकतन्त्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा।

प्रायः कुछ लोगों से सुना जाता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी हमे देश से कुछ नहीं मिला जबकि यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में नागरिकों को बहुत सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन क्या लोग यह सोचते हैं कि उन्होने देश को क्या दिया ? यदि सभी लोग याचना छोड़ कर देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाएं तो देश की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।

संविधान के रचियता दूरदृष्टी संपन्न थे। संविधान के पाठ में मूल अधिकारों में समावेश तो किया गया किन्तु नागरिकों के मूल कर्तव्य भी होने चाहिए, इसपर या तो किसी का ध्यान नहीं गया था या इसे आवश्यक नहीं समझा गया था। कदाचित उन्होंने सोचा था कि भारत के लोग और उन्हीं में से चुने गए उनके नेता भारतीय तो बने रहेंगे पर यह अवधारणा भ्रांत निकली। लगभग ढाई दशक के उपरांत 42वें संशोधन के माध्यम से सविधान में भाग 4 (क) , अनुच्छेद 51 क का समावेश करना ही पड़ा जिसमें स्वतंत्र भारत के नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 51क का स्वतंत्र देश के प्रत्येक नागरिक
की आचार संहिता है।

आमतौर हम देश से अपेक्षाएं रखते हैं लेकिन खुद से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं ये जानते हुए भी हमसे ही बनता है देश। हम देश के लिए कुछ नही करते उसकी आर्थिक, सांस्कृतिक, समृद्धि में योगदान नही करते और देश से अपेक्षा करते हैं कि वह हमारे लिए करे। हमसे ही देश बनता है। हमारे कार्यों से देश प्रगति के रास्ते पर जाएगा।

गणतंत्र दिवस के समय जरूर हमलोगों में देश के प्रति देश भक्ति उजागर होने लगती है। रेडियो, टेलीविजन में देश
भक्ति के गाने हमें कुछ समय के लिए अपने कर्तव्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परन्तु कुछ समय के बाद हमारा मन भी और चीज़ों में उलझ जाता है। दरअसल व्यक्ति पांच स्तरों पर जीता है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा अद्ध्यात्मिक स्तरों पर। हर स्तर मे देश की एक प्रमुख भूमिका होती है। हम सब पर देश का उधार है। देश ने हमारी झोली में इतना कुछ दिया है फिर भी हम देश के सामने अपनी मांग ही रखते हैं। एक कहावत है जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप हो जाते हैं। आपकी सोच ही आपको बनाती हैं। हमें अपनी सोच को व्यापक बनाना होगा। छोटा सोचेंगे तो छोटा ही रह जाएंगे। हमारे मन में देने का भाव होना चाहिए न कि सिर्फ़ लेने का। देश को जब हम देते हैं उसी का प्रतिफल देश हमें देता है। सिर्फ़ कर देना देश सेवा नहीं होता।

आजादी की आधी से अधिक सदी बीतने के बाद भी हमारे कदम लड़खड़ा रहे हैं। सत्यमेव जयते से हमने किनारा कर लिया है। अच्छाई का स्थान बुराई ने ले लिया है और नैतिकता पर अनैतिकता प्रतिस्थापित हो गई है। ईमानदारी केवल कागजों में सिमट गई है और भ्रष्टाचार से पूरा

समाज अच्छादित हो गया है। देश में भ्रष्टाचार, अराजकता, महंगाई, असहिष्णुता , बेरोजगारी और असमानता बढ़ता जा रहा है।
देशवासियों को जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होना जरूरी है। भावी पीढ़ी को संवारने के लिए पहले खुद को सुधारना होगा। गणतंत्र की साथर्कता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम और भरपेट भोजन मिले।

संविधान में जो हमारे कर्तव्य तय किए गए हैं उसका हम सही ढंग से पालन करें तभी हमारा देश महान बनेगा। संविधान का निर्माण इसलिए किया गया जिससे कानून व्यवस्था बनी रहे। सभी स्वतंत्र भारत में अमन और चैन से रह सके। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने संविधान में दिए गए नियमों का पालन करें। सबसे बड़ी बात अपने मौलिक अधिकारों को तो पहचाने ही साथ ही अपने मौलिक कर्तव्यों का भी निर्वहन करें।

देश भक्ति का भाव किसी अवसर का मोहताज नहीं होता। यह हमारे भीतर का स्थाई भाव होना चाहिए। देश भक्ति का मतलब देश से अपेक्षा नहीं , बल्कि देश के लिए कुछ करने की प्रवृति पैदा होना है।

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(प्रशांत सिन्हा)
राजनीति के अद्भुत खिलाड़ी, क्रांतिकारी और सब कुछ देश की आज़ादी के लिए दांव पर लगाने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज जयंती है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था।

स्वतंत्रता संग्राम में उन्होने बड़ी भूमिका निभाई थी। जलियावाला बाग़ कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। नेताजी सुभाष चन्द्र को सबसे पहले नेताजी एडोल्फ हिटलर ने पुकारा था। अंतरराष्ट्रीय ख्याति
प्राप्त नेताओं के समक्ष बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने में सुभाष चन्द्र जैसा भारतीय उन दिनों में कोई नहीं था।

महान देश भक्त और कुशल नेता सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेज़ों के लिए सबसे ख़तरनाक व्यक्ति थे। उनकी गतिविधियों ने न सिर्फ़ अंग्रेज़ों के दांत खट्टे कर दिए बल्कि उन्होंने देश को सशक्त क्रांति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर 1943 को अपनी एक अलग फौज खड़ी की जो दुनिया में किसी भी सेना को टक्कर देने की हिम्मत रखती थी जिसका नाम दिया गया “आज़ाद हिन्द फौज “। आज़ाद हिन्द फौज में महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजिमेंट भी बनाई गई थी। इस संगठन के प्रतीक चिन्ह एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था।

कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेज़ी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने खासा विरोध किया जिस कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। नेताजी बचपन से विलक्षण छात्र थे। अंग्रेज़ी में उनके इतने अच्छे नंबर आए थे कि परीक्षक को विवश हो कर यह कहना पड़ा था कि “इतनी अच्छी अंग्रेज़ी तो मैं स्वयं भी नहीं लिख सकता।” आज़ादी के संग्राम में शामिल होने के लिए भारतीय सिविल सेवा की नौकरी ठुकरा दी थी।

उन्होने लंदन से आई सी एस (ICS ) की पास की थी। 1921 से 1941 के बीच नेताजी को भारत में अलग अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया था। 1943 में नेताजी जब बर्लिन में थे तो उन्होने वहीं “आज़ाद हिन्द रेडियो” और “फ्री इंडिया” की स्थापना की। नेताजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दो बार अध्यक्ष भी चुना गया था।

सुभाष चन्द्र बोस जी ने गांधी जी के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया था। सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की थी। नेताजी ने ही सबसे पहले गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था। बोस क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वे कांग्रेस के अहिंसा पूर्ण आन्दोलन में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था।
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”, ” दिल्ली चलो” और “जय हिन्द” जैसे नारों से इनकी आक्रामकता झलकती है।

नेताजी ने आत्मविश्वास, कल्पनाशक्ति और नवजागरण के बलपर युवाओं में राष्ट्रभक्ति व इतिहास की रचना का मंगल शंखनाद किया। मनुष्य इस संसार में एक निश्चित, निहित उद्देश्य की प्राप्ति किसी संदेश को प्रचारित करने के लिए जन्म लेता है। जिसकी जितनी शक्ति, आकांक्षा और क्षमता है वह उसी के अनुरूप अपना कर्मक्षेत्र निर्धारित करता है। नेताजी ने पूर्ण स्वाधीनता को राष्ट्र के युवाओं के सामने एक ” मिशन” के रूप में प्रस्तुत किया।

नेताजी ने युवाओं से आह्वान किया था कि जो इस मिशन में आस्था रखता है वह सच्चा भारतवासी है। आज युवा वर्ग में विचारों की कमी नहीं है। लेकिन इस विचार जगत में क्रांति के लिए एक ऐसे आदर्श को सामने रखना ही होगा जो विद्युत की भांति हमारी शक्ति, आदर्श और कार्य योजना को मूर्त रूप दे सकें।

नेताजी ने युवाओं में स्वाधीनता का अर्थ केवल राष्ट्रीय बंधन से मुक्ति नहीं बल्कि आर्थिक समानता, जाति, भेद, समाजिक अविचार का निराकरण और सांप्रदायिक संकीर्णता त्याग ने का विचार मंत्र भी दिया।

नेताजी ने कई ऐसे प्रेरक बातें कही हैं जिसको सुनकर देशभक्ति और क्रांति का जज्बा उमड़ने लगता है।

“अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाना हमारा फ़र्ज़ है जो आजादी हम अपने त्याग और बलिदान से हासिल करेंगे उसे हम अपनी ताकत के बल पर सुरक्षित भी रख सकेंगे।”

“आज हमारी सिर्फ़ एक इच्छा होनी चाहिए। अपनी जान देने की इच्छा ताकि भारत ज़िंदा रहे”।

“भारत के भाग्य को लेकर निराश न हों। धरती पर कोई ऐसी ताकत नहीं है जो भारत को बंधक बनाकर रख सके। भारत आज़ाद होगा और वह भी जल्द”।

“याद रखें कि अन्याय और गलत से समझौता करने से कोई बड़ा अपराध नहीं है “।

” आजादी दी नहीं जाती है इसे छीनना पड़ता है”।

अत्यंत निडरता से सशस्त्र उपायों द्वारा सुभाष चन्द्र बोस ने जिस प्रकार अंग्रेज़ों का मुक़ाबला किया उसके जैसा अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता है। तभी इनका पूरा जीवन आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

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भारतीय संस्कृति की सुगंध को विदेशों में बिखेरनें वाले स्वामी विवेकानंद जी की आज जयंती है. विवेकानन्द जी युवाओं के प्रेरणाश्रोत है. युवा जगत को उनके द्वारा दिखलाई गयी राह युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेगी.

स्वामी जी का जन्म कलकत्ता के बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ था. उनका पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था. स्वामीजी के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली.

स्वामीजी का ध्यान बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर था. उनके गुरु रामकृष्ण का उनपर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, जिनसे उन्होंने जीवन जीने का सही उद्देश जाना, स्वयम की आत्मा को जाना और भगवान की सही परिभाषा को जानकर उनकी सेवा की और सतत अपने दिमाग को भगवान के ध्यान में लगाये रखा.

विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है.

“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं
जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”

स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे इस वाक्य ने उन्हें विश्व विख्यात बना दिया था. और यही वाक्य आज कई लोगो के जीवन का आधार भी बन चूका है. इसमें कोई शक नहीं की स्वामीजी आज भी अधिकांश युवाओ के आदर्श व्यक्ति है. उनकी हमेशा से ये सोच रही है की आज का युवक को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति करने की जरुरत है.

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(प्रशांत सिन्हा)
नए वर्ष में नव प्रभात का नव सत्कार करें. पूरे संसार में नए साल के आगमन का उत्सव पूरे उल्लास उमंग से मनाया जाता है. नए साल के आगमन पर एक सुदृढ परंपरा है कि लोग अपने अंदर सुधार लाने या अपनी बेहतरी के लिए नए संकल्प लेते हैं.

एक जनवरी को हम उत्सव मनाते हैं वह कुछ नहीं अपितु वही जॉर्जियाई कैलेंडर है जिसे पुरे संसार में प्रमुखता से स्वीकार किया जाता है. हालांकि भारत सहित अनेक देशों में नए साल मनाने के लिए उनकी अपनी परंपराएं, तिथियां और रीतियां हैं जैसे भारत में विभिन्न राज्य फसलों की कटाई के समय गुड़ी पाडवा, वैसाखी आदि के रूप में नए साल का उत्सव मनाते हैं. जापानी लोग नए साल के अवसर पर पिछले साल के समस्याओं एवं चिंताओं को विदा करने और एक बेहतर साल की तैयारी करने के लिये “बोनेकई ” अर्थात ‘ पुराने साल को भूल जाओ, दावत का आयोजन करते हैं. बदलता समय नएपन का एहसास कराता है. नया साल भी अपने आगमन के साथ हमें नएपन की ओर आगे बढ़ाता है.

हम सभी तमाम उम्र नए नए संकल्प लेते रहते हैं. उदाहरणार्थ नए साल में खूब पढ़ाई करेंगे, सेहत बनाएंगे, धूम्रपान नहीं करेंगे इत्यादि. लेकिन क्या हमने देश के लिए कुछ अच्छा करने का कभी संकल्प लिया है? आइए नव वर्ष के अवसर पर नया संकल्प लेकर देश के सच्चे नागरिक होने का फ़र्ज़ अदा करें.

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी कुछ देना सीखें. देश से अपने लिए सारे अधिकार, सारी सुविधाएं और सारे संसाधनों को पूरा किया जाने का हक तो जताते है लेकिन बदले में उसके लिए हम क्या करते हैं ? हम केवल करदाता होने का दंभ भरते हैं. क्या लोकतन्त्र एकतरफा कायम होता है ? राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए हमें धन या समय नहीं खर्च करना होता. केवल अपनी आदतें सुधारने होंगे. पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाना होगा. लोगों का कूड़ा इधर उधर नहीं फेंकना चाहिए. प्राकृतिक संसाधनों को उचित हिसाब से इस्तेमाल करना चहिए. इसी तरह तमाम ऐसे छोटे छोटे सहज कदम हैं जिन्हें कोई भी उठाकर देश के प्रति अपनी कृतज्ञता जता सकता है. राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान कर सकता है.

प्रकृति प्रेमी बनें: ग्लोबल वार्मिंग समस्या से सभी वाकिफ हैं। शहर के प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाओं, ऋतु चक्र में बदलाव से हम वाकिफ हैं. सब प्रकृति के तिरस्कार का परिणाम है. याद करें पिछली बार पौधा कब रोपा था ? हमें चिंता करना होगा. चिंता से ज्यादा कर्म करें. प्रकृति प्रेमी बनें. पौधारोपण करें. जल संरक्षण करें. जैव विविधता को बचाएं. प्रकृति से तादम्या स्थापित करने करने वाली चीज़ों की ही इस्तेमाल करें. अगर ऐसा करते हैं तो यह देश के प्रति योगदान है.

रक्त दान करें: जैसे बुद्धि होती है कि उसे किसी को कितना भी दे दो कम नहीं होती बल्कि उसमे इज़ाफ़ा होता है. उसी प्रकार शरीर का रक्त होता है. किसी जरूरतमंद का जीवन संवार सकता है. शरीर अपनी जरुरत के मुताबिक रक्त का पुनर्निर्माण कर लेता है.

भ्रष्टाचार का हिस्सा न बनें: सुविधाभोगी बनते हुए किसी काम के लिए पैसे न दें और न किसी काम के लिए घूस लें. यह दलील सही हो सकती है कि बिना भ्रष्टाचार के दलदल में कुदे काम करना या कराना नामुमकिन है. लेकिन बदलाव के लिए शुरुआत तो कोई न कोई करता है.

शिक्षा का अलख जलाएं: आरामदायक वित्तीय स्थिति में हैं तो अपनी आय में एक हिस्सा गरीब, अनाथ बच्चों की शिक्षा के मद में तय कर सकते हैं. देश का भाग्य बदलने में आपका यह योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है. यदि सही तरीके से कमाई कर रहे सभी लोग एक बच्चे को पढ़ाएंगे तो देश से निरक्षरता के दूर होने में देर नहीं लगेगी.

ऐसे नए संकल्प, नए विचारों के साथ नव वर्ष की शुरुआत करें जिससे परिवार, समाज और देश सभी का भला होगा.

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विगत 8 वर्षों से लगातार आपकी हर अपेक्षा के प्रति पल-पल सजग आपका प्रिय पोर्टल, छपरा टूडे डॉट कॉम (ट्विंकल स्टार्स मीडिया एवम ऐंडवरटाइजरस का एक उपक्रम) नये वर्ष 2021 में आपके हर सपनों के साकार होने की मंगल कामना करता है।

Ever alert to the expectations of the mass and standards of a responsible media for the last eight years, your Chhapra Today (An Initiative of Twinkle Stars Media & Advertisers) wish you, with its team, A Happy & Ever Prosperous New Year 2021.

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लर्निंग लाइसेंस टेस्ट के बाद सर्टिफिकेट के प्रिंट के लिए आवेदकों को अब जिला परिवहन कार्यालय (DTO) का चक्कर नहीं लगाना होगा. लर्निंग लाइसेंस टेस्ट देने के बाद चाहें तो घर से या कहीं से भी ऑनलाइन सर्टिफिकेट का प्रिंट निकाल सकते हैं. बीते गुरुवार से यह सुविधा पटना समेत सभी जिला परिवहन कार्यालयों में शुरू हो चुकी है.

इससे पहले लर्निंग लाइसेंस टेस्ट देने के बाद आवेदकों को प्रिंट लेने के लिए इंतजार करना पड़ता था. सर्टिफिकेट अप्रूव और प्रिंट होने के बाद ही उन्हें यह मिलता था. इन सब काम में जब कभी कई घंटे तो कभी एक-दो दिन का समय लग जाता था. लेकिन अब इस प्रक्रिया को समाप्त करते हुए नई व्यवस्था लागू की गई है, जिसमें लर्निंग लाइसेंस टेस्ट में पास होने पर तुरंत ही डिजिटल अप्रूव हो जाएगा और मोबाइल पर लाइसेंस नंबर का मैसेज आ जाएगा.

लर्निंग लाइसेंस सर्टिफिकेट का प्रिंट लेने के लिए आवेदकों को ऑनलाइन एप्लिकेशन नंबर और जन्मतिथि डालना होगा. उसके बाद आपके मोबाइल पर ओटीपी नंबर आएगा. इसके बाद लर्निंग लाइसेंस डाउनलोड कर प्रिंट ले सकते हैं.

बता दें कि सभी वाहन चालकों को यातायात से संबंधित नियमों की जानकारी हो इसके लिए लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस के लिए सभी जिलों में ऑनलाइन टेस्ट की प्रक्रिया चल रही है. ऑनलाइन टेस्ट में पास होने के बाद ही आवेदकों को लर्निंग लाइसेंस जारी किया जाता है. हाल ही में टेस्ट के लिए टाइम स्लॉट बुकिंग की सुविधा प्रदान की गई है.

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करदाता ध्यान दें. इनकम टैक्स भरने की अंतिम तारीख का काउंटडाउन शुरू हो गया है. अगर आपने अभी तक अपना ITR File नहीं किया है, तो जल्द से आयकर विभाग के वेबसाइट पर जाकर टैक्स फाइल कर दें. आयकर विभाग की ओर से इनकम टैक्स रिटर्न भरने में करदाताओं को 31 दिसंबर तक की राहत दी गई है. अंतिम तारीख बढ़ाने को लेकर फिलहाल कोई फैसला नही लिया गया है.

बता दें कि आईटीआर (ITR) भरने की लास्ट डेट अब नजदीक है. ऐसे में सर्वर पर करदाताओं की भीड़ बढ़ती जा रही है. बिहार में भी करदाता इनकम टैक्स भरने में लगे हैं. बता दें कि बिहार से हर साल करीब देश के कुल टैक्स में 0.65 फीसदी टैक्स भरा जाता है.

ITR File करने की ये प्रक्रिया अपनाएं.

– आप यानी करदाता www.incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं.

– यूजर आइडी में पैन नंबर लिखें और पासवर्ड, जन्मतिथि एवं कैप्चा कोड भर कर लॉगइन करें.

– अब आपको इ-फाइल टैब पर जाकर इनकम टैक्स रिटर्न के लिंक पर क्लिक करना होगा.

– इसके बाद आपको अपनी टैक्सपेयर श्रेणी के अनुसार आइटीआर फॉर्म का चयन कर उसे भरना होगा. साथ ही आप जिस वर्ष का आइटीआर फाइल कर रहे हैं, उसका चयन भी करना होगा.

– अगर आप ओरिजिनल रिटर्न भर रहे हैं, तो ओरिजनल टैब पर क्लिक करें. यदि रिवाइज्ड रिटर्न भर रहे हैं, तो रिवाइज्ड रिटर्न पर क्लिक करें.

– इसके बाद प्रिपेयर एंड सबमिट ऑनलाइन पर क्लिक करें और फिर कंटीन्यू पर क्लिक करें.

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महान स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू मुस्लिम एकता के अलमबरदार मौलाना मजहरूल हक की आज 154 वीं जयंती है. मजहरूल हक साहब का जन्म 22 दिसम्बर 1866 को पटना जिले के मनेर में हुआ था.

छपरा से उनका विशेष लगाव था. उन्होंने छपरा को अपनी कर्मभूमि बनाया था.

उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को लेकर कहा था “हम एक ही कश्ती के मुसाफिर है, डुबेगे तो साथ पार होंगे तो साथ”

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Chhapra/Kutubpur Diyara: महान लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के आज 133 वां जयंती ह. उनकर जन्म 18 दिसम्बर 1887 के जिला के कुतुबपुर दियारा गाँव में भईल रहे. उनका के ‘भोजपुरी के शेक्सपीयर’ कहल जा ला.

भिखारी ठाकुर भोजपुरी गीतन, नाटकन के रचना कर के समाज के सन्देश देवे के काम कईले. उनकर जनम ए गो नाई परिवार में भईल रहे. उनकर बाबूजी के नाम दल सिंगार ठाकुर व माताजी के नाम शिवकली देवी रहे.

रोज़ी रोजगार खातिर अपन गाँव छोड़ के बंगाल जाये के परल. बाद में गाँव लौट अइले. उनकर मन रामलीला में बसल रहे. गाँव आ के ए गो नृत्य मण्डली बनवले और रामलीला खेले लगले.

एकरा साथे गाना, नाटक से सामाजिक कार्य से जुट गईले. उनकर कृति लोकनाटक बिदेशिया, बेटी-बेचवा, गबर घिचोर, बिधवा-बिलाप, कलियुग-प्रेम आ जो लोगन के समाज के कुरीतियन से लरे के ताकत देवेला.

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(प्रशांत सिन्हा) 

आज भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन है। उनके जन्मदिन के मौके पर जानते है उनके बारे में। उनकी आज 136 वीं जयंती है। उनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था। पूरे देश मे अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेंद्र बाबू या देशरत्न कह कर पुकारा जाता था।

वह 1950 में संविधान सभा की अंतिम बैठक में राष्ट्रपति चुने गए और 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक देश के राष्ट्रपति रहे। राजेंद्र प्रसाद एक मात्र नेता रहे जिन्हें दो बार लगातार राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया।

पेशे से वकील राजेंद्र बाबू महात्मा गांधी की प्रेरणा से वकालत छोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में उतरने का फैसला किया। भारत की आज़ादी की लड़ाई में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। राजेंद्र बाबू को 1931 में सत्याग्रह आंदोलन और 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन के लिए महात्मा गांधी के साथ जेल भी जाना पड़ा था। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद 1934-1935 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को देखते हुए उन्हें देश के सबसे बड़े पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

राजेंद्र बाबू अपने विद्यार्थी जीवन में काफी कुशाग्र बुद्धि वाला छात्र माने जाते थे। वह इतने बुद्धिमान थे कि एक बार परीक्षा के दौरान उत्तर पुस्तिका की जांच करने वाले अध्यापक ने उनकी उत्तर पुस्तिका पर लिख दिया था कि ” परीक्षा देने वाला परीक्षा लेने वाले से ज्यादा बेहतर है।” उन्होंने अपनी पढ़ाई के कारण गोपाल कृष्ण गोखले के द्वारा दिए गए ” इंडियन सोसायटी ” से जुड़ने का प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

राजेंद्र बाबू ने अलग अलग विषय में खुद को साबित किया था। अगर वह चाहते तो एक प्रशासनिक अधिकारी बन सकते थे। लेकिन उन्हें यह स्वीकार नहीं था। आज़ादी की कीमत उन्हें पता था इसलिए देश को मजबूत नींव देने के लिए वह राजनीति में आए। उनके जीवन से छात्रों को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। संघर्ष, मेहनत और कामयाबी की मिशाल है डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद।

राजेंद्र बाबू ने राष्ट्र का मान बढ़ाने के साथ ही देशवासियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने अपने जीवनकाल में देश की सेवा कर साबित किया कि राष्ट्र ही सर्वोपरि है। इससे बढ़ कर और कुछ भी नही। उन्होंने कहा था कि जो लोग सोचते हैं कि राजनीति अच्छे लोग या पढ़े लिखे लोगों के लिए नहीं है। यह पुरी तरह से गलत है। उनके जयंती समारोह को लोग राष्ट्रीय मेघा दिवस के रूप में मनाते हैं।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन सादगी एवं त्याग का प्रतीक था। राष्ट्रपति के पद पर रहने के बावजूद उनकी सादगी आज भी लोगों को प्रेरित करती है। राजेंद्र बाबू का कहना था कि दिखावट, फिजूलखर्ची अच्छे मनुष्य का लक्षण नहीं। वह चाहे कितना ही बडा आदमी क्यों न हो। फिजूलखर्च करने वाला समाज का अपराधी है क्योंकि बढ़े हुए खर्चों की पूर्ति अनैतिक तरीके से नहीं तो और कहां से करेगा ?

शायद उनकी सादगी के कारण जवाहर लाल नेहरु और उनमें मतभेद थे। राजेंद्र बाबू और नेहरू के वैचारिक और व्यावहारिक मतभेद किसी से छुपा नहीं है। राजेन्द्र बाबू जहां हिन्दू परंपरावादी थे वहीं नेहरू आधुनिक और पश्चिम सोच वाले थे।

अप्रतिम प्रतिभा के धनी एवं सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक राजेंद्र बाबू देश वासियों के लिए सदा प्रेरणा श्रोत रहेंगे।

 

लेखक प्रशांत सिन्हा
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Chhapra: भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती 3 दिसंबर को मनाई जाती है. महापुरुषों की जयंती पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है लेकिन राजेंद्र बाबू की जयंती पर साधारण कार्यक्रम तक सीमित कर दिया जाता है.

जिला स्कूल में स्थापित राजेंद्र बाबू की प्रतिमा गौरव तो जरूर महसूस कराती है लेकिन स्थापित प्रतिमा के समीप मेन गेट बंद होने से मानो ऐसा प्रतीत होता है कि उनको कैद कर दिया गया है.

बात राजेंद्र उद्यान की करें या फिर परिसर की तो दोनों की हालत बेहद खराब है साफ सफाई नहीं होने से जंगल जैसी स्थिति उत्पन्न है.

अक्सर जिला स्कूल के प्रांगण में स्थापित राजेंद्र बाबू की प्रतिमा उनके जयंती और पुण्य तिथि पर ही साफ सफाई की जाती है अन्यथा कोई सुद लेने वाला भी नहीं रहता है. हालांकि इस वर्ष कोविड-19 बहाना देखने को मिला है लेकिन पिछले कई वर्षों से इस तरह की स्थिति उत्पन्न है.

प्राचार्य मुनमुन प्रसाद श्रीवास्तव कहते है कि जिला स्कूल के गौरव को जीवित रखने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहें है. परिसर की साफ़-सफाई भी करायी जा रही है. कोविड संक्रमण के मद्देनजर कुछ परेशानी आई थी जिसे अब दूर कर लिया जायेगा. विद्यालय का पुराना गौरव बरकरार रहे इसके लिए सभी प्रयत्न किये जा रहें है.

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