या देवी सर्वभूतेषु के मंत्र के साथ हुई कलश स्थापना, भक्तिमय हुआ वातावरण

Chhapra: नौ दिवसीय शारदीय नवरात्र को लेकर रविवार को कलश स्थापना की गई. कलश स्थापना के साथ ही शहर से लेकर गांव तक या देवी सर्वभूतेषु के मंत्र गुजने लगे. जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय बन गया है. अगले नौ दिनों तक शक्ति की देवी मां दुर्गा को आराधना की जाएगी.

छपरा शहर के सभी चौक चौराहों पर पंडाल का निर्माण अब अंतिम चरण में है. रविवार की सुबह नगरपालिका चौक, पंकज सिनेमा, साहेबगंज, भगवान बाजार, गुदरी, मौना चौक, ढाला सहित कई अन्य स्थानों पर माता की पूजा के लिए कलश स्थापना की गई.

वही सभी माता के मंदिरों में भी कलश स्थापना के साथ पूजा प्रारंभ हो चुकी है. इसके अलावे दिघवारा के मां अंबिका भवानी मंदिर, मढ़ौरा के गढ़देवी मंदिर, अमनौर के माता वैष्णो देवी मंदिर में कलश स्थापना की गई. जहां पूजा के लिए माता के भक्त माता शक्ति की आराधना करेगे.

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हिन्दू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का व्रत आश्विन मास के शुक्लपक्ष के प्रतिपदा तिथि से आरंभ होकर नवमी तिथि तक यानि पुरे 9 दिन तक चलने वाला यह शारदीय नवरात्रि का व्रत बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

प्रतिपदा के दिन प्रातः काल यानि ब्रह्म मुहूत से माँ दुर्गा का पूजन का शुरुआत आरंभ होता है. प्रायः हिंदू परिवार के सभी घरों में घट की स्थापना यानी कलश स्थापना किया जाता है. शारदीय नवरात्रि में माता का पूजन बड़े ही धूम -धाम से मनाया जाता है. माता के नवरूप का पूजन अलग -अलग दिन को अलग -अलग रूप में किया जाता है।माता के नवरूप के पूजन करने से परिवार में बने हुए सभी कष्ट दूर हो जाते है.

ऐसे में नवरात्रि साल में चार बार पड़ती है. चैत, अषाढ़, आश्विन और माघ मास इन मास में पूजन करने से परिवार में बने हुए सभी दोष दूर होते है.

माता की कृपा आपके ऊपर भरपूर बनी रहती है. इस दिन घर में कलश स्थापना करके दुर्गासप्त्शी का पाठ 9 दिन तक किया जाता है. साथ में अन्य देवी देवता का पूजन किया जाता है. नवरात्रि के अंतिम दिन पाठ समाप्त करके पाठका हवन करे. उसके बाद बाद में कुआरी कन्याओ को भोजन कराये.

कब है कलश स्थापना

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
15 अक्तूबर 2023 दिन रविवार समय सुबह 11 :12 मिनट से लेकर 11:58 मिनट तक यह मूहूर्त अभिजीत मूहूर्त होता है इस मूहूर्त में कलश का स्थापना करना बहुत ही सौभाग्यपूर्ण होता है.

प्रतिपदा तिथि का आरंभ 14 अक्तूबर 2023 की रात्रि 11 :24 मिनट से
प्रतिपदा तिथि समाप्ति 16 अक्तूबर 2023 रात्रि 12 :32 में
इस वर्ष कलश स्थापना का प्रतिपदा तिथी है. वह पूरे दिन बन रहा है जो कल्याणकारी है.

कलश स्थापना कैसे करे

पूजनकर्ता सुबह उठकर नित्य क्रिया से निर्वित होकर स्नान करे स्वस्छ कपड़ा या नया कपडा लाल रंग का धारण करे.गंगाजी से मिट्टी लाए या स्वच्छ स्थान का मिटटी हो. मिट्टी को पूजा वाले स्थान में रखे. जहां पूजा करनी हो. कलश जहा पर रखने की है मिट्टी में सप्तधान्य मिलाए या जौ मिलाकर रखे. उसके ऊपर मिटटी का कलश या पीतल ,तांबे का लोटा रखे.उसमे जल डाले, या गंगाजल डाले,कलश के ऊपर नारियल लाल कपडा में लपेटकर रखे.कलश पर स्वस्तिक बनाये.कलश को लाल कपडा से लपेट दे. कलश के ऊपर चंदन, कुमकुम,हल्दी चढ़ाये.कलश में सर्व औषधि डाले ,सुपारी डाले.फिर हाथ जोरकर कलश का प्रार्थना करे.फिर गणेश जी के साथ सभी देवी देवताओं का आहवान करे उनका पूजन करे.

दुर्गा जी पूजन कैसे करे 

छोटी चौकी ले उसके ऊपर लाल रंग या पिला रंग के कपडा बिछा दे जो माता के आसन रहेगा.उसके उपर माता का प्रतिमा या फोटो रखे .माता को वस्त्र चढ़ाये ,चंदन लगाये ,फूलमाला चढ़ाये ,फिर अखंड दीप जलाये .अगरबती दिखाए .नैवेद में ऋतुफल फल के साथ में पकवान चढ़ाये .पान के पता लौंग इलायची का भोग लगाये.उसमे तुलशी के पता डाले ।

दुर्गा पूजन तथा कलश पूजन करने के लिए पूजन सामग्री

रोड़ी, सिंदूर, पान, सुपारी, रक्षा के सूत, गंगाजल, रुइबती, चावल, कपूर लौंग, इलाइची, माचिस, पान के पता, लाल कपडा, पिला चंदन, फुल, गुड, शहद, दही, दूध, शक्कर, पंचमेवा, फल, मिठाई, जनेऊ, पक्का केला, ऋतुफल, काजल, दिया, थाली पूजन के लिए, पूजन के लिए पीतल का लोटा, आसानी, दुर्गा चालीसा का पुस्तक या दुर्गासप्त्शी का पुस्तक, पंचमामृत के लिए गाय का दूध, दही, श्रृंगार के सामान, आम के पता, दुर्वा.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष , वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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अयोध्या, 07 अक्टूबर (हि.स.)। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक शनिवार को श्री मणिराम दास छावनी में देर शाम समाप्त हुई। बैठक के बाद ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय ने बताया कि बैठक में 12 लोग मौजूद रहे, जबकि ट्रस्टी केशव परासरण ऑनलाइन शामिल हुए। मीटिंग में 18 बिंदुओं पर चर्चा की गई। मन्दिर प्रांगण में बैठक के बाद आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने बताया कि मंदिर को तीन चरणों में बनाया जा रहा है। पहले चरण में भूतल जनवरी 2024 में पूरा होगा, जबकि दूसरा दो चरण दिसंबर 2024 और तीसरा चरण दिसंबर 2025 में पूरे किए जाएंगे।

ट्रस्ट के लेखाजोखा के संदर्भ में उन्होंने बताया कि 05 फरवरी 2020 से 31 मार्च 2023 तक मंदिर निर्माण में 900 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। जबकि बैंक खाते में अब भी 3 हजार करोड़ रुपये हैं, जिसमें एफडी, बचत भी शामिल है। समर्पण निधि से आये धन को खर्च नहीं किया गया है। मन्दिर में आ रहे दान और ऑनलाइन मिली राशि से शेष खर्चों का निबटारा हो रहा है। ट्रस्ट को जानकारी दी गई कि मंदिर के लिए विदेशी करेंसी में चंदा लेने के लिए एफसीआरए के रजिस्ट्रेशन को ऑनलाइन किया गया है, जो प्रक्रिया है उसे कर दिया गया है।

हर घर में प्राण प्रतिष्ठा के दिन 5 दीपक जलाए जाएंगे
चंपत राय ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर पूरे देश में हर घर में 5 दीपक सरसों के तेल से जलाए जाएंगे। जिससे वातावरण शुद्ध होगा। प्राण प्रतिष्ठा के बाद गर्भ गृह से भगवान की फोटो को लेकर छपवाया जाएगा और प्रसाद के रूप में भक्तों को दर्शन के समय दिया जायेगा। लगभग 10 करोड़ घरों तक फोटो वितरित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद लगभग 50 लाख लोगों के अयोध्या पहुंचने की संभावना है। अयोध्या में 25 हजार लोगों के रहने और भोजन की व्यवस्था की जाएगी, जिसमें एक हजार चलित शौचालय बनाए जायेंगे।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए 5 लाख गांवों तक जाएगा अक्षत
उन्होंने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के पहले गर्भ गृह के सामने अछत का पूजन होगा, जो प्राण प्रतिष्ठा के लिए 5 लाख गांवों तक भेजा जाएगा। सभी लोग अपने अपने घरों के आसपास देव स्थान पर पूजन अर्चन करें और वहीं से लाइव कार्यक्रम दूरदर्शन से देखें।

ट्रस्ट के 15 सदस्यों में 11 सदस्य अयोध्या की बैठक में शामिल हुए। जबकि के पाराशरण सहित तीन सदस्य वर्चुअली रूप से जुड़े रहे। बैठक में ट्रस्ट अध्यक्ष एवं मणि राम दास छावनी महंत नृत्यगोपाल दास, जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और कोषाध्यक्ष गोविंदेव गिरि, महासचिव चंपत राय, सदस्यों में अयोध्या राजा बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, निर्माण समिति अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र, डॉ अनिल मिश्र, कामेश्वर चौपाल, जिलाधिकारी नीतिश कुमार, प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि एवं मणि राम दास छावनी महंत नृत्यगोपाल दास के उत्तराधिकारी महंत कमलनयन दास शास्त्री उपस्थित रहे।

900 करोड़ अब तक खर्च, कुल 1800 करोड़ लगेंगे
राम मंदिर निर्माण पर अब तक 900 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। ट्रस्ट के मुताबिक, पूरे मंदिर को तैयार करने में 1800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। राम मंदिर निर्माण में लार्सन एंड टुब्रो और टाटा कंसल्टेंसी लगी है। चम्पत राय ने बताया कि कंपनियों के समझौते के हिसाब से अगस्त में ही मन्दिर निर्माण पूरा होना था। पत्थर का इतना बड़ा कार्य अनुभव न होने के कारण नहीं हो पाया। श्री राय ने प्रधानमंत्री के समारोह में सम्मिलित होने के विषय में कहा कि अभी तक कोई पत्र आने का नहीं प्राप्त हुआ है।

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जम्मू, 06 अक्टूबर (हि.स.)। अब माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए जाने वाले भक्तों को त्रिकुटा पहाड़ियों पर जाते समय रास्ते में पांच जगह वर्चुअल प्राकृतिक गुफा के दर्शन कराये जायेंगे। इसके लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने भवन के रास्ते में पांच स्थानों पर कियोस्क स्थापित करने की व्यवस्था की है।

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने जम्मू-कश्मीर में रियासी जिले के त्रिकुटा पहाड़ियों में स्थित माता रानी के प्राकृतिक गुफा के माध्यम से आभासी दर्शन कराने की शुरुआत की है। बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अंशुल गर्ग ने शुक्रवार को बताया कि भवन के रास्ते में पांच स्थानों पर तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र प्राकृतिक गुफा के माध्यम से उपलब्ध होंगे।

उन्होंने कहा कि तीर्थयात्री 15 अक्टूबर से शुरू होने वाले इस शारदीय नवरात्रि में केवल 101 रुपये का डिजिटल भुगतान करके वीआर हेडसेट के माध्यम से एक अद्वितीय अनुभव का आनंद ले सकते हैं। यह कियोस्क निहारिका भवन (कटरा), सेरली हेलीपैड, अर्धकुंवारी, पार्वती भवन और दुर्गा भवन में उपलब्ध होंगे।गर्ग ने बताया कि तीर्थयात्री अक्सर दर्शन के लिए एक पुरानी पारंपरिक प्राकृतिक गुफा को खोलने की मांग करते हैं, जिसे साल में केवल एक बार खोला जाता है।

उन्होंने कहा कि तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए और प्राकृतिक गुफा के माध्यम से दर्शन करने की उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए अब वर्चुअल मोड के माध्यम से पूरा किया जाएगा। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन बुजुर्ग तीर्थयात्रियों के लिए लाभदायक होगी, जो प्राकृतिक गुफा के माध्यम से दर्शन करने में आस्था व्यक्त करते हैं। सीईओ ने कहा कि इस नवरात्र में यात्रा को सुचारू रूप से चलाने और पवित्र दिनों के दौरान भीड़ को कम करने के लिए भवन में श्राइन बोर्ड आधुनिक स्काईवॉक फ्लाईओवर और डिजिटल लॉकर सुविधाएं भी शुरू करेगा।

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जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर संशय करें दूर, जाने व्रत के नियम एवम कथा

जीवित्पुत्रिका हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है. इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं.

माताएं निर्जला व्रत रखती है. आज पूरे दिन उपवास रखकर जीउतवाहन की पूजा करती है और संतान की लंबी आयु के लिए कामना करती है. हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत करने का विधान है.

यह व्रत सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक चलता है. जिउतिया पर्व महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. यह व्रत संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीतवाहन व्रत के नाम से जाना जाता है.

इस साल यह व्रत 7 अक्तूबर 2023 को शुरू होगा और 8 अक्टूबर 203 तक चलेगा. व्रत के एक दिन पहले नहा कर खाना जो स्त्री इस व्रत को रखती है़ एक दिन पहले से पकवान बनाती है़। सेघा नमक से तथा बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्धता से बना कर खाती है़.

किस दिन से व्रत की शुरुआत करें.

व्रत कथा के अनुसार सप्तमी से रहित और उदयातिथि की अष्टमी को व्रत करें। यानि सप्तमी विद्ध अष्टमी जिस दिन हो उस दिन व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी को व्रत करे और नवमी में पारण करे। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो व्रत का फल नहीं मिलता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत नहाय खाए से होती है.

इस साल 06 lअक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को नहाए खाए होगा.

07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा.

8 अक्टूबर 2023 को व्रत का पारण किया जाएगा. सूर्य उदयके बाद

व्रत कैसे करें

स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान जीतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।

जीवित्पुत्रिका व्रत का कथा :

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली. अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.

दूसरी कथा यह है :

चील-सियार की कथा- मिथिलांचन सहित कई इलाकों में प्रचलित इस कथा के अनुसार एक समय एक वन में पेड़ पर एक चील रहती थी. पास में वहीं झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी. दोनों में खूब दोस्ती थी. चील जो कुछ भी खाने को लेकर आती उसमें से सियारिन के लिए जरूर हिस्सा रखती. सियारिन भी चिल्हो का ऐसा ही ध्यान रखती. एक बार की बात है. वन के पास एक गांव में औरतें जिउतिया के पूजा की तैयारी कर रही थी. चिल्हो ने उसे बड़े ध्यान से देखा और इस बारे में अपनी सखी सियारिन को बताई. दोनों ने इसके बाद जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा. दोनों दिन भर भूखे-प्यासे रहे मंगल कामना करते हुए व्रत किया लेकिन रात में सियारिन को तेज भूख-प्यास सताने लगी. सियारिन को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो जंगल में जाकर उसने मांस और हड्डी पेट भरकर खाया. चिल्हो ने हड्डी चबाने की आवाज सुनी तो इस बारे में पूछा. सियारिन ने सारी बात बता दी.

चिल्हो ने इस पर सियारिन को खूब डांटा और कहा कि जब व्रत नहीं हो सकता था तो संकल्प क्यों लिया था! सियारिन का व्रत भंग हो गया लेकिन चिल्हो ने भूखे-प्यासे रहकर व्रत पूरा किया. कथा के अनुसार अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं. सियारिन बड़ी बहन हुई और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई. वहीं, चिल्हो छोटी बहन हुई उसकी शादी उसी राज्य के मंत्री पुत्र से हुई. बाद में दोनों राजा और मंत्री बने. सियारिन रानी के जो भी बच्चे होते वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते. इससे उसे जलन होती. ईर्ष्या के कारण सियारिन रानी बार बार उसने अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने का प्रयास करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी. बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा मांगी. बहन के बताने पर उसने फिर से जीवित्पुत्रिका व्रत किया तो उसके भी पुत्र जीवित रहे.

 जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त व पारण का समय

अष्टमी तिथि प्रारंभ- 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार सुबह 6 बजकर 34 मिनट से

अष्टमी तिथि समाप्त- 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार की सुबह 8 बजकर 8 मिनट तक

व्रत का उपवास शानिवार को रखा जाएगा

जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण 8 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा. इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के बाद पूजा करके पारण करें. मान्यता है कि व्रत का पारण गाय के दूध से ही करे तथा सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ

8080426594/9545290847

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भारत में पिंडदान करने का कई धार्मिक स्थल है पिंडदान किसी भी पवित्र स्थान पर किया जा सकता है. लेकिन गया जी पिंडदान करने का विशेष महत्व है. गया जी में पिंडदान करने से सात पीढियों का मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा परिवार में सुख शांति कायम रहता है। जिस व्यक्ति का पिंडदान गया में किया जाता है उसकी आत्मा का शांति मिलती है। सनातन धर्म में यह मान्यता है की गया में श्राद्ध करने से व्यक्ति को आत्मा का शांति मिलती है। 

(1) ब्रह्मा जी ने गयासुर को वरदान दिया था जो भी लोग गया में पितृपक्ष के अवधि में इस स्थान पर अपने पितरो को पिंडदान करेगा उनको मोक्ष मिलेगा.

(2 ) श्रीराम जी के वन जाने के बाद दशरथ जी का मृत्यु हुई और सीता जी ने यहाँ दशरथ जी की प्रेत आत्मा को को पिंड दिया था .उस समय से यह स्थान को पिंड दान करने तथा तर्पण करने से दशरथ जी ने माता सीता का दिया हुआ पिंडदान स्वीकार किया था.

(3 गया में पुत्र को जाने तथा फल्गु नदी में स्पर्श करने से पितरो का स्वर्गवास होता है .

(4 ) गया क्षेत्र में तिल के साथ समी पत्र के प्रमाण पिंड देने से पितरो का अक्षयलोक को प्राप्त होता है .
यहाँ पर पिंडदान करने से ब्रह्हत्या सुरापान इत्यादि घोर पाप से मुक्त होता है .

(5 ) गया में पिंडदान करने से कोटि तीर्थ तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहाँ पर श्राद्ध करने वाले को कोई काल में पिंड दान कर सकते है साथ ही यहाँ ब्राह्मणों को भोजन करने से पितरो की तृप्ति होती है.

(6 ) गया में पिंडदान करने के पहले मुंडन कराने से बैकुंठ को जाते है साथ ही काम, क्रोध, मोक्ष को प्राप्ति होती है.

(7) यहाँ पर उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही देते है .

गया में तर्पण का का रहस्य
यहाँ माता सीता ने तर्पण किया था गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। बताया जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है.

संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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इसुआपुर में शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितों की हुई बैठक, 7 अक्टूबर को मनाए जीवत्पुत्रिका व्रत

Isuapur: इसुआपुर बाजार स्थित बिशुनपुरा धर्मशाला परिसर में जिले के शास्त्र मर्मज्ञ विद्वान पंडितो, मनीषियों, आचार्यों की बैठक पूर्व प्राचार्य आचार्य सुधाकर दत्त उपाध्याय की अध्यक्षता में हुई। जिसमें व्रत त्योहारों की तिथि में अलग-अलग तर्क व मतभेदों पर विस्तार से मंथन व चर्चा की गई।

जीवत्पुत्रिका व्रत के बारे में बताया गया कि 7 अक्टूबर को अष्टमी तिथि में सूर्योदय हो रहा है। जीवत्पुत्रिका का व्रत उदय कालीन अष्टमी तिथि को ही किया जाना चाहिए। सप्तमी अष्टमी यानी जीवात्पुत्रिका व्रत कदापि करने योग्य नहीं है।

” यात्रोदयं वै कुरुते दिनेश: तथा भवएज्जईवइत पत्रिका सा ”

साथ ही कहा गया कि ज्योतिषशास्त्र षट्शास्त्रों का नेत्र है। इस शास्त्र में मानव जीवन के कल्याणार्थ मांगलिक मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं।

” देवता मंत्राधीना ते मंत्रा: ब्रह्मणाधीना ” अर्थात् चतुर्वर्गाश्रम व्यवस्था महाराज मनु के द्वारा रचित ग्रंथ में इसकी विशद व्याख्या की गई है। सभी वर्णों में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि ब्राह्मण ही समाज का सम्यक दशा और दिशा के ज्ञान और भान कराने वाले होते हैं। जीवत्पुत्रिका व्रत की तिथि के बारे में वैसे तो ” नैकोमतिर्यस्य मतं विभिन्ने ” इस सिद्धांत के द्वारा महाजनों येन गत: स पश्चात ” इस निर्णय से मनीषियों के द्वारा प्रत्येक व्रत त्योहारों के संबंध में अपना सटिक, उचित एवं व्यवहारयुक्त निर्णय दिया गया है। प्रत्येक व्यावहारिक पंचांगों में किसी भी व्रत त्यौहार के संबंध में ठोस प्रमाणों के द्वारा सही निर्णय दिया जाता रहा है।

वहीं निर्णय सर्वजन हृदयग्राही माना जाता रहा है। किंतु इस वर्ष जीवत्पुत्रिका व्रत के संबंध में विगत निर्णयों को दरकिनार करते हुए कुछ भ्रामक, तथ्यहीन एवं परंपरा से हटकर पंचांगकारों ने ब्राह्मण समाज को आपस में वाद विवाद कराने का कार्य किया है।

पूर्व प्राचार्य आचार्य रामेश्वर दुबे ने कहा कि आज भी इस समाज में शास्त्रों के मर्मज्ञ मनीषी विद्वान विद्यमान हैं। विद्वानों, ब्राह्मणों को समाज में जो इज्जत, प्रतिष्ठा मिल रही है, हमें उसे बरकरार रखना होगा। खासकर हमारी अगली पीढ़ी को अपने शिक्षा, संस्कार, चरित्र व कर्तव्यों से हमारी संस्कृति को संजोए रखना होगा।

बैठक में पूर्व प्राचार्य आचार्य यदुनंदन पाठक, पूर्व प्राचार्य आचार्य भागवत पाठक, पूर्व प्राचार्य आचार्य सुरेन्द्र उपाध्याय, पूर्व प्राचार्य आचार्य विश्वनाथ तिवारी, पूर्व प्राचार्य आचार्य रामेश्वर दुबे, आचार्य अशोक तिवारी, शिक्षक आचार्य बबन तिवारी, आचार्य अनंत उपाध्याय, पंडित नंदकिशोर चतुर्वेदी, हरिवंश दुबे, दीपक शांडिल्य, सुजीत चौबे, कमलाकांत तिवारी, वशिष्ठ नारायण पांडेय व अन्य थे।

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अनंत चतुर्दशी पर गुरुवार को सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही रही। लोगों ने भगवान को जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की। बड़ी संख्या में महिलाओं ने पूजा-अर्चना कर कथा श्रवण किया।  सुबह ही श्रद्धालुओं ने कतारबद्ध होकर जलार्पण करके मंगलकामना किया। जलार्पण के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में विभिन्न अनुष्ठान संपन्न कराए।

शास्त्रों के अनुसार महाभारत में युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कष्टों के निवारण के संबंध में पूछा था। इसके जवाब में भगवान ने अनंत चतुर्दशी पर व्रत, पूजा और कथा सुनने को कहा। उसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन महिला और पुरुष व्रत रखकर कथा सुनते हैं। साथ ही हाथ पर अनंत डोरा बांधा जाता है। कहते हैं कि दस दिनों तक डोरा बांधने सभी तरह के कष्टों का निवारण हो जाता है और इच्छा पूरी होती है।

अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के बाद बाजू में बांधे जाने वाले अनंत सूत्र में 14 गांठें होती हैं। पुराणों के अनुसार ये चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र 14 लोकों भू, भुव, स्व, मह, जन, तपो, ब्रह्म, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक के प्रतीक हैं। अनंत सूत्र की हर गांठ हर लोक का प्रतिनिधित्व करता है।इसके अलावा अनंत चतुर्दशी के दिन बांधें जाने वाले रक्षासूत्र की 14 गांठें भगवान विष्णु के 14 रूपों अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द का प्रतीक भी मानी जाती है।

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हिन्दू धर्म के मान्यताओ के अनुसार मृत्युलोक पर हमारे पूर्वज की आत्माए अपने परिवार के उपर उनका नजर बना हुआ रहता है. जिन परिवार में अपने पूर्वजो का पूजन पाठ नहीं करते है या उनको कष्ट देते है जिससे उनको पितृदोष लग जाता है.

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में सूर्य के साथ राहू की यूति हो तब पितृदोष बन जाता है। पितृदोष कुण्डली के अलग -अलग भाव में पितृ दोष बनने से उसका प्रभाव भी अलग -अलग तरीके से पड़ता है. व्यक्ति के कुंडली में यह ऐसा दोष है जो सभी प्रकार के कष्ट एक साथ मिलता है कई बार व्यवहार में यह भी देखा जाता है। व्यक्ति कर्म कर रहा है काम में उसका कोई दोष नहीं है फिर भी उसे कष्ट मिलते रहता है मानसिक तनाव में दुखी तथा अशांत रहते है. वह शाररिक कष्ट  धन की कमी, पराक्रम का अभाव माता -पिता के सुख में कमी, भूमि भवन मकान व्यापार में कमी, जीवन साथी के साथ अन -बन बना रहता है.

पितृदोष में पिता के साथ अनबन ज्यादा बना रहता है। कुंडली में नवा घर पिता का घर होता है इस हर में सूर्य के साथ राहू केतु या शनि बैठे है तब इस भाव को दूषित कर देते है. जिसे कारण पिता के साथ अनबन होता है पिता और पुत्र दोनों एक साथ एक मकान में नहीं रह पाते है। व्यक्ति  किसी प्रकार से हमेशा टेंशन में बना रहता है अगर पढाई कर रहा है उसको शिक्षा में मन नहीं लगता है। 

जाने पितृदोष कैसे लगता है.
लगन कुंडली में सूर्य के साथ राहू केतु का युति बना हो या सूर्य के उपर शनि की दिर्ष्टि अगर बन रहा हो तब पितृदोष बनता है। सूर्य अगर शनि के राशि मकर तथा कुम्भ राशि में विराजमान हो तब भी पितृदोष माना जाता है। 

पितृ दोष का लक्षण क्या होता है.
(1)पितृदोष वंशनाश का धोतक है जातक के परिवार में कन्याये पुत्रो की अपेक्षा ज्यादा होती है किसी -किसी को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो पाता है .
(2)पितृदोष जब लग जाता है उनके मामा के साथ रिश्ता ठीक नहीं रहता है यदि मामा होते है तो उनकी स्थति बहुत नाजुक व ख़राब होती है
(3)पितृ दोष का विशेष प्रभाव सबसे बड़े या सबसे छोटे या उस संतान पर अधिक रहता है जो लाडला हो .
(4)पितृ दोष में जातक हमेशा भाग्यहीन व पीड़ित रहता है .

पितृदोष के कारण क्या होता है.

(1)घर परिवार में जातक के सगे सम्बंधित की आकाल मृतु होना.

(2) व्यक्ति के पिता या माता के जन्मपत्रिका में पितृ दोष हो तभी पितृदोष लगता है .

(3) व्यक्ति के पूर्वजो के यहाँ किसी का पैसा अनैतिक तरीके से आया हो तब भी जन्मपत्रिका में पितृदोष लगता है.

(4) व्यक्ति के पिता या दादा की एक से अधिक पत्नी हो तब भी पितृ दोष लगता है.

(5) व्यक्ति के परिवार में मृत वयोक्ति के आत्मा के शांति के लिए विधि -विधान से पूजन अर्चन नहीं करने से भी पितृदोष लगता है.

पितृ दोष का उपाय :

पितृ पक्ष में अपने पूर्वजो को तर्पण करे.
पितृ पक्ष में पंचबली श्राद्ध करे .पितरो को प्रसन्न करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करे.
प्रत्येक दिन सूर्य भगवान को जल चढ़ाये.
अमावस्या के दिन दोपहर में पीपल के पेड़ में जल चढ़ाये राहत मिलेगा.
अमावस्या के दिन गरीबो को भोजन कराये.
रविवार को सूर्य के मन्त्र ॐ सूर्याय नमः एक माला का जाप करे.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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पटना/गया (बिहार), 27 सितम्बर (हि.स.)। पितरों को मोक्ष देने वाली भूमि गया में 28 सितम्बर यानी गुरुवार से पितृपक्ष मेला शुरू होगा, जो आगामी 14 अक्टूबर तक चलेगा। इसके मद्देनजर जिला प्रशासन ने आने वाले पिंडदानियों के लिए आकर्षक, सुंदर और मनमोहक टेंट सिटी का निर्माण कराया है। टेंट सिटी में आवासन, चिकित्सा, लॉकर, सुरक्षा सहित अन्य सुविधाएं मुफ्त मिलेंगी। सिर्फ शुद्ध और स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन अल्प शुल्क में मिलेंगे।

जिला प्रशासन के मुताबिक एक साथ 25 सौ पिंडदानियों के ठहरने की व्यवस्था टेंट सिटी में हुई है। टेंट सिटी में कोई पिंडदानी आकर विश्राम कर सकते हैं। उनके लिए यहां उत्तम व्यवस्था की गई है। जिला प्रशासन की सोच है कि गया आने वाले पिंडदानी हर स्तर के होते हैं। कई बार देखा गया है कि होटल व धर्मशाला में पिंडदानियों को जगह नहीं मिलने के कारण सड़क पर सो जाते थे लेकिन टेंट सिटी बनने के बाद ऐसा नहीं होगा। यहां पर्याप्त बेड की व्यवस्था की गई है। इससे पिंडदानी सड़क किनारे विश्राम नहीं करेंगे। जिला प्रशासन ने सभी तीर्थ यात्रियों से अपील किया है कि गांधी मैदान में आवासन के लिए बनाए गए टेंट सिटी का उपयोग अवश्य करें।

मिलेंगी ये सुविधाएं

– आवासन की व्यवस्था।
– समान रखने के लिए लाकर की व्यवस्था।
– मे आइ हेल्प यू काउंटर की व्यवस्था।
– सुरक्षा के लिए पर्याप्त सिक्योरिटी गार्ड एवं सीसीटीवी की व्यवस्था।
– शुद्ध पेयजल की व्यवस्था।
– पर्याप्त चेंजिंग रूम की भी व्यवस्था।
– टेंट सीटी में यात्रियों के गंगाजल।
– डीलक्स शौचालय की व्यवस्था।
– 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति।
– टेंट सिटी के अंदर जीविका एवं सुधा डेयरी के जरिए बिना शुल्क के शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था।
– प्रत्येक दिन शाम में मेलावधि में भजन-कीर्तन के साथ रामलीला।

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पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने वाला पितृपक्ष 29 सितम्बर (शुक्रवार) को अगस्त मुनि को जल देने के साथ शुरू हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार जिनका निधन हो चुका है, वे सभी पितृ पक्ष के दिनों में अपने सूक्ष्म रूप के साथ धरती पर आते हैं तथा परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं, प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

29 सितम्बर को अगस्त मुनि का तर्पण करने के बाद 30 सितम्बर से लोग अपने पितरों-पूर्वजों को याद करते हुए तर्पण करेंगे। इसके बाद पिता के मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध तर्पण करेंगे। पितृ पक्ष 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें सभी तिथि का अपना अलग-अलग महत्व है। लेकिन पितृ पक्ष में पूर्णिमा श्राद्ध, महाभरणी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व तथा एकादशी तिथि को दान सर्वश्रेष्ठ होता है।

इस वर्ष पूर्णिमा श्राद्ध 29 सितम्बर को, प्रतिपदा एवं द्वितीय श्राद्ध 30 सितम्बर, तृतीय श्राद्ध एक अक्टूबर, चतुर्थ श्राद्ध दो अक्टूबर, पंचमी श्राद्ध तीन अक्टूबर, षष्ठी श्राद्ध चार अक्टूबर, सप्तमी श्राद्ध पांच अक्टूबर, अष्टमी श्राद्ध छह अक्टूबर, नवमी श्राद्ध (मातृ नवमी) सात अक्टूबर, दशमी श्राद्ध आठ अक्टूबर, एकादशी श्राद्ध (मघा श्राद्ध) दस अक्टूबर को होगा।

द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णव जनों का श्राद्ध 11 अक्टूबर को, त्रयोदशी श्राद्ध 12 अक्टूबर तथा चतुर्दशी श्राद्ध एवं शस्त्रादि से मृत लोगों का श्राद्ध 13 अक्टूबर को होगा। इसके बाद 14 अक्टूबर को पितृ पक्ष के 16 वें दिन अमावस्या तिथि को अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि में मृत का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या एवं पितृ विसर्जन के साथ ही महालया का समापन हो जाएगा।

सुहागिन महिलाओं के निधन की तिथि ज्ञात नहीं रहने पर नवमी तिथि को उनका श्राद्ध होगा। अकाल मृत्यु अथवा अचानक मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को होगा। यदि पितरों की मृत्यु तिथि का पता नहीं हो तो अमावस्या के दिन उन सबका श्राद्ध करना चाहिए। इसलिए पितरों की आत्म तृप्ति के लिए हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से आश्विन की अमावस्या तक पितृपक्ष होता है।

पंडित आशुतोष झा ने बताया कि पितृपक्ष में किये गए दान-धर्म के कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है, कर्ता पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि पिंड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे, इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं।

यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं। इस पक्ष में अपने पितरों का स्मरण तथा उनकी आत्म तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं। पितरों की आत्म तृप्ति से व्यक्ति पर पितृदोष नहीं लगता है, परिवार की उन्नति होती है, पितरों के आशीर्वाद से वंश वृद्धि होती है।

श्रद्धा हिंदू धर्म का एक अंग है, इसलिए श्राद्ध उसका धार्मिक कृत्य है। पितृपक्ष में प्रतिदिन या पितरों के निधन की तिथि को पवित्र भाव से दोनों हाथ की अनामिका उंगली में पवित्री धारण करके जल में चावल, जौ, दूध, चंदन, तिल मिलाकर विधिवत तर्पण करना चाहिए। इससे पूर्वजों को परम शांति मिलती है, तर्पण के बाद पूर्वजों के निमित्त पिंड दान करना चाहिए। पिंडदान के बाद गाय, ब्राह्मण, कौआ, चींटी या कुत्ता को भोजन कराना चाहिए।

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गणेश पूजन के दौरान सोनरपट्टी में बाल भोग का हुआ आयोजन

Chhapra: शहर के सोनरपट्टी में राष्ट्रीय शांति संघ द्वारा आयोजित गणेश पूजन के दौरान रविवार को बाल भोग का आयोजन किया. अगले दो दिनों तक चलने वाले इस बाल भोग कार्यक्रम में पहले दिन हजारों लोगों ने शामिल होकर भगवान गणेश का प्रसाद ग्रहण किया गया. स्वर्ण व्यवसाई अमित कुमार के सौजन्य से आयोजित इस बाल भोग में हजारों लोग शामिल हुए और प्रसाद ग्रहण किया. वही दूसरे दिन सोमवार को भी बाल भोग का आयोजन किया जाएगा.

बताते चले कि विगत कई दशकों से शहर के सोनारपट्टी में मुंबई की तर्ज पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर भव्य तरीके से पूजा अर्चना की जाती है. पूरे एक सप्ताह तक चलें वाले इस गणेश उत्सव की अलग ही धूम स्वर्ण समाज के द्वारा यहाँ देखने को मिलती है. इसी क्रम में बाल भोग का आयोजन किया जाता है. जिसमे समाज के सभी वर्ग के लोगों को आमंत्रित कर प्रसाद ग्रहण कराया जाता है.

इस मौके पर लक्ष्मण कुमार, अरविंद कुमार, संजीत कुमार, मनीष कुमार, प्रमोद कुमार, सुधीर कुमार मिंटू, अमित कुमार सहित स्वर्णकार समाज के दर्जनों लोगों ने शामिल होकर अपनी सेवा प्रदान की.

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