करवा चौथ व्रत पर कैसी रहेगी ग्रहों की स्थिति, क्या है पूजन का समय, पूजा विधि, जानें

करवा चौथ पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है. इस साल करवा चौथ का व्रत 01 नवम्बर को रखा जायेगा यह व्रत महिलाये अपने पति के लम्बी उम्र के लिए पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत करती है. इस व्रत में विशेष चंद्रमा का पूजन किया जाता है चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सभी पाप नष्ट हो जाते है इसमे किसी भी प्रकार से परेशानी नहीं होता है साथ ही इससे लम्बी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है .करवा चौथ के व्रत में शिव के सभी परिवार यानि शिव, पार्वती, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। उसके बाद पूजा किया जाता है। मिट्टी के करवे में चावल, उरद के दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास को दे सास नहीं रहे तो उनके बराबरी के सुहागिन स्त्री को पांव छुकर सुहाग की सामग्री भेट करनी चाहिए.

करवा चौथ का क्या है शुभ मुहुर्त

चत्तुथी तिथि का आरम्भ 31 अक्तूबर 23 दिन मंगलवार रात्रि 09 : 30 मिनट से
चतुर्थी तिथि का समाप्त 01 नवम्बर 23 दिन बुधवार रात्रि 09:19 मिनट तक रहेगा.

चंद्रोदय 01 नवम्बर 23 दिन बुधवार रात्रि 07:51 बजे के बाद पूजन किया जायेगा.

करवा चौथ पर बन रहा है ग्रहों का शुभ संयोग.

01 नवंबर चंद्रमा वृष राशि में होंगे इसी के साथ मंगल, बुध और सूर्य तुला राशि में रहेगे सूर्य और बुध मिलकर बुधादित्य योग बना रहे है. मंगल के साथ सूर्य मिलकर मंगलादित्य बन रहा है.
शनि भी 30 साल के बाद अपनी मूल त्रिकोण राशि कुम्भ में शश योग बना रहे है शिव योग मृगशिरा नक्षत्र मंगल के लिए है.

बुधादित्य योग ज्ञान का प्रतिक है इस योग में करवा चौथ व्रत करना बहुत ही शुभ फल देने वाला रहेगा.

सरगी का क्या है महत्व

करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है. सरगी सास की तरफ से अपनी बहु को दी जाती है. इसका सेवन महिलाएं करवा चौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं. सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं.सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है. सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मिठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं. तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है. अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।

करवा चौथ पूजन विधि

प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृत होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें. व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें. व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है-

‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

अथवा
ॐ शिवायै नमः से पार्वती का,
‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का,
‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का. ॐ गणेशाय नमः से गणेश का तथा
‘ॐ सोमाय नमः से चंद्रमा का पूजन करें.
शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें.पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें.भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें. एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें.सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें.चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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वाराणसी, 30 अक्टूबर (हि.स.)। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहे भव्य व दिव्य मंदिर में श्रीराम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा के पहले ही विश्व रिकार्ड बनेगा। प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी, 2024 के पहले विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में 01 से 15 जनवरी, 2024 तक व्यापक गृह सम्पर्क एवं जन सम्पर्क अभियान चलाया जायेगा। जो अब-तक सबसे बड़ा जन सम्पर्क अभियान होगा।

इस अभियान के जरिये पूजित अक्षत लेकर कार्यकर्ता हर गांव मोहल्ले एवं बस्तियों में संपर्क कर सभी को अयोध्या पहुंचने का औपचारिक निमंत्रण देंगे। सूत्र बताते हैं कि इस अभियान के जरिये पांच लाख गांवों तक करीब 75 करोड़ हिन्दूओं एवं विभिन्न पंथ एवं सम्प्रदायों तक संघ परिवार एवं समाज के लोग अयोध्या आने का निमंत्रण देंगे।

अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि मंदिर में रामलला की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा को लेकर संघ विचार परिवार ने तैयार शुरू कर दी है। 22 जनवरी को अयोध्या में संपन्न होने वाले ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा समारोह के संबंध में विस्तृत कार्य योजना भी तैयारी की गई है। विचार परिवार के 40 संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों को तैयारियों को लेकर जिम्मेदारी सौंपी गई है।

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महामंत्री एवं विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने कोईराजपुर शिवपुर स्थित एक विद्यालय परिसर में बीते रविवार को मैराथन बैठक कर चार अलग-अलग सत्रों में कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य करने के लिए रणनीति तैयार की। पदाधिकारियों को चंपत राय ने पूरे 45 दिन तक चलने वाले महाअभियान की चरण बद्ध ढंग से विस्तृत जानकारी दी।

चार नवम्बर को देशभर से 200 कार्यकर्ता पहुंचेंगे अयोध्या

बैठक में तय योजना के अनुसार 4 नवंबर, 2023 को देशभर से सभी प्रान्तों के दो-दो अर्थात कुल 200 कार्यकर्ता अयोध्या पहुंचेंगे। पांच नवम्बर को वहां से अक्षत भरे पीतल के कलश लेकर उसे पहुंचाएंगे। यह अक्षत न्यास की ओर से आमंत्रण का प्रतीक होगा। 05 नवंबर से दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक कार्यकर्ता देशभर के सभी मंदिरों में अक्षत पहुंचायेंगे। 01 से 15 जनवरी 2024 तक पूजित अक्षत लेकर कार्यकर्ता हर गांव मोहल्ले एवं बस्तियों में संपर्क कर सभी को अयोध्या पहुंचने का औपचारिक निमंत्रण देंगे।

प्राण प्रतिष्ठा के दिन पांच करोड़ घरों में मनेंगे दीवाली

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महामंत्री चंपत राय ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन 22 जनवरी को कार्यकर्ता अपने-अपने गांव मोहल्ले के मंदिरों में इकट्ठे होंगे। वहां भजन कीर्तन के कार्यक्रम चलेंगे तथा सायं काल अपने दरवाजे पर दीप जलाएंगे। उन्होंने बताया कि 5 करोड़ घरों में इस दिन दीपक जलाए जाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी,आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत एवं मुख्यमंत्री योगी रहेंगे मौजूद

उन्होंने बताया कि 22 जनवरी को अयोध्या में कश्मीर से कन्याकुमारी तक के 140 संप्रदायों के साधु संत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,आरएसएस के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अयोध्या आंदोलन में प्राण गवाने वालों के परिजन,विभिन्न क्षेत्रों में विशेष उपलब्धियां अर्जित करने वाले समाज के विशिष्ट नागरिक उपस्थित होंगे।

महामंत्री चंपत राय की अपील, प्राण-प्रतिष्ठा के दिन न पहुंचे कार्यकर्ता

उन्होंने बताया कि 8000 लोगों की सीमित क्षमता होने के कारण कार्यकर्ताओं से 22 जनवरी को अयोध्या न आकर अपने अपने क्षेत्र में कार्यक्रमों में जुटने का निर्देश दिया गया है। कार्यकर्ताओं को अलग-अलग तिथियों में उनके प्रांत के अनुसार अयोध्या पहुंचने का चंपत राय ने निमंत्रण दिया। अयोध्या पहुंचने वाले कार्यकर्ताओं के रुकने तथा भोजन आदि की समुचित व्यवस्था का भी उन्होंने भरोसा दिलाया। उन्होंने बताया कि 25000 कार्यकर्ताओं के प्रतिदिन अयोध्या में रूकने एवं खाने की व्यवस्था की जा रही है। काशी प्रांत के कार्यकर्ता 30 जनवरी को अयोध्या पहुंचेंगे। इसी तरह अलग-अलग प्रांतों के लिए अलग-अलग तिथियां होंगी। 45 दिनों तक चलने वाले इस अभियान में 50 लाख लोगों के आवास एवं भोजन की व्यवस्था अयोध्या में उपलब्ध कराई जाएगी।

आरएसएस के काशी प्रांत प्रचारक रमेश ने भी द्वितीय सत्र में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। उन्होंने आग्रह किया कि संगठन की रीति नीति के अनुसार और सभी कार्यकर्ता अपने-अपने स्थान पर सौंपे गये दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाएं।

उन्होंने कहा कि सभी कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र के मंदिरों की सूची बनाए। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन मंदिरों में संपूर्ण हिंदू शक्ति को एकत्रित कर भजन कीर्तन के कार्यक्रम संचालित करें। माइक लगाकर प्रभु श्री राम का गुणानुवाद करायें, इसके लिए कथावाचकों विद्वानों की भी सहायता ली जा सकती है। 1 से 15 जनवरी तक अब तक का सबसे बड़ा महासंपर्क अभियान चलेगा। इसमें पूरी भागीदारी निभायें। एक भी हिंदू घर छूटने न पाए इसका ध्यान रखें। 15 दिसंबर से पहले खंडों की समन्वय बैठकें हो जाए। टोलियों का गठन कर लें। गठित टोलियां ही परिवारों से संपर्क करेंगी। विचार परिवार की बैठक जिला स्तर पर करने के लिए अभी से तिथि तय करने का उन्होंने निर्देश दिया।

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दुर्गा पूजा को शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न कराने हेतु जिला दंडाधिकारी के द्वारा दिये गये कई आवश्यक निर्देश

विधि-व्यवस्था संधारण प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता- डीएम व एसपी

आसूचना तंत्र को सुदृढ़ एवं सक्रिय स्खें, संवेदनशील स्थानों पर विशेष सतर्कतामूलक कार्रवाई करें

असामाजिक तत्वों पर सतत कड़ी निगरानी रखने एवं अफवाहों का त्वरित खंडन करने का पदाधिकारियों को दिया गया निदेश

Chhapra  : जिला दण्डाधिकारी अमन समीर के द्वारा शुक्रवार को समाहरणालय सभाकक्ष में दशहरा / विजय दशमी के अवसर पर विधि-व्यवस्था संधारण हेतु आयोजित बैठक की अध्यक्षता करते हुए सभी संबंधित पदाधिकारी को दुर्गा पूजा को शांतिपूर्ण वातावरणः में संपन्न कराने हेतु कई आवश्यक निर्देश दिया। बैठक में पुलिस अधीक्षक सारण डॉ गौरव मंगला, अपर समाहर्ता सारण, जिलास्तरीय पदाधिकारीगण एवं विभिन्न विभाग के अभियंतागण सभागार में उपस्थित थे जबकि सभी अनुमंडल एवं प्रखंड स्तरीय पदाधिकारी वीडियो कॉफेसिंग के माध्यम से उपस्थित थे।

जिला दण्डाधिकारी के द्वारा बताया गया कि दुर्गा पूजा के अवसर विधि-व्यवस्था संधारण जिला प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है। बताया गया कि सभी थानाक्षेत्रों में नियमित रूप से गश्ती करने हेतु वरीय पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति भी कर दी गयी है जो अपने-अपने क्षेत्रों में अनुमंडल स्तर पर प्रतिनियुक्त दण्डाधिकारी की उपस्थिति की जाँच भी करेंगे। इसके अतिरिक्त सभी अंचलाधिकारी एवं थानाध्यक्ष अपने क्षेत्र अंतर्गत गश्ती करना सुनिश्चित करेंगे। निर्देशित किया गया कि पदाधिकारीगण आसूचना तंत्र को सुदृढ एवं सक्रिय रखें तथा संवेदनशील स्थानों पर विशेष सतर्कतामूलक कार्रवाई करेंगे।

जिला दण्डाधिकारी के द्वारा बताया गया कि नवरात्रा के क्रम में दिनांक 21, 22, 23 एवं 24 अक्टूबर को क्रमशः सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तथा विजयादशमी मनाया जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न देवालयों तथा सार्वजनिक दुर्गा पूजन स्थलों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होने की संभावना है। विधि-व्यवस्था संधारण, यातायात प्रबंधन, शांति-व्यवस्था तथा भीड़ प्रबंधन हेतु प्रशासनिक सतर्कता, यथोचित निगरानी तथा सुरक्षामूलक कार्रवाई किया जाना आवश्यक है। जिला दंडाधिकारी ने सभी पदाधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि असामाजिक तत्वों पर कड़ी निगरानी रखें तथा सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल को क्रियाशील रखें तथा अफवाहों का त्वरित खंडन करें।

जिला दण्डाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के द्वारा अनुमंडलवार तैयारियों की समीक्षा की गई। अनुमंडल पदाधिकारियों एवं अनुमंडल पुलिस पदाधिकारियों को पूजा समितियों के साथ शांति समिति की बैठक हर हाल में कर लेने का निर्देश दिया गया। सभी प्रतिनियुक्त पदाधिकारी को संवेदनशील एवं अतिसंवेदनशील स्थानों पर विशेष सतर्कता बरतने तथा असामाजिक तत्वों के विरूद्ध निरोधात्मक एवं दण्डात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया। पंडाल का निर्माण तथा प्रतिमा विसर्जन हेतु निर्धारित मानकों का अनुपालन अनिवार्य बताया गया। कोई भी पंडाल बिना सक्षम स्वीकृति प्राप्त किये नही बनाये जायेंगे। सभी पूजा स्थलों पर स्थापित की जाने वाली प्रतिमाओं को शत-प्रतिशत लाइसेंसी होना आवश्यक होगा। पंडालों एवं जुलूस में डी.जे. बजाने की अनुमति नहीं होगी। प्रत्येक पंडाल में प्रवेश एवं निकास द्वारा अलग-अलग होगा एवं पंडाल में किसी तरह का सीढ़ी का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। पंडाल के नजदीक पेयजल, पार्किंग एवं शौचालय की बेहतर सुविधा सुनिश्चित करवाने को कहा गया।   ‌

पुलिस अधीक्षक ने सभी थाना प्रभारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि पूजा आयोजन हेतु अनुज्ञप्ति में अंकित जुलूस मार्ग का शत-प्रतिशत भौतिक सत्यापन करना सुनिश्चित करेंगे। कोई भी विसर्जन, जुलूस बिना स्कार्ट के नहीं रहेगा। स्कार्ट की यह व्यवस्था विसर्जन एवं जुलूस की वापसी तक करना सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि भीड़-प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए हम सबको तत्पर एवं प्रतिबद्ध रहना होगा। कोई भी पंडाल रात्रि में सुरक्षाविहीन नहीं रहेगा। यह संबंधित थानाध्यक्ष की व्यक्तिगत जवाबदेही होगी और वे पंडाल एवं प्रतिमा की सुरक्षा हेतु पूजा समितियों से समन्वय स्थापित कर समुचित करवाई करना सुनिश्चित करेंगे।

जिला दंडाधिकारी ने कहा कि आयोजकों के साथ बैठक में पूजा पंडालों में चिन्हित स्थानों पर सी.सी.टी.वी. कैमरों अस्थायी रूप से लगवाने की बात कही गयी। ताकि भीड़ की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा सके। किसी भी प्रकार के अफवाह से बचने तथा सोशल मीडिया पर भी अफवाहों से बचने हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ ही माईकिंग भी कराने हेतु निर्देशित किया गया। अफवाह फैलाने चाले असामाजिक तत्वों के विरूद्ध सुसंगत धाराओं के अतर्गत नियमानुसार कार्रवाई भी सुनिश्चित करने हेतु संबंधित पदाधिकारी को निर्देशित किया गया। विसर्जन के दिन नदी में बिना अनुमति के नाव परिचालन पर रोक रहेगी। प्रतिमाओं का विसर्जन तालाबों, पोखरों में अपरिहार्य हो, वैसी स्थिति में विसर्जन स्थल की पहचान कर पूर्ण सुरक्षा उपायों के साथ इसकी व्यवस्था करने हेतु निर्देशित किया गया। प्रत्येक नगर निकाय में विसर्जन हेतु तालाब पोखरों को चिन्हित कर साफ-सफाई एवं बैरिकेडिंग का कार्य पूरा करने हेतु निर्देशित किया गया। जिला दण्डाधिकारी के द्वारा लोगों को नदी की जगह स्थानीय तालाब एवं कृत्रिम तालाब में प्रतिमा विसर्जन करने का अनुरोध भी किया गया। रात्रि 10 बजे से सुबह 06.00 बजे तक लाउडस्पीकर के प्रयोग पर रोक रहेगी। पूजा के अवसर पर सिविल सर्जन आपाताकलीन चिकित्सा व्यवस्था एवं एम्बुलेंस की व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे। जिला अग्निशमन पदाधिकारी, सारण को फायर ब्रिगेड प्रतिनियुक्त करने का निर्देश दिया।

बैठक में जिला दण्डाधिकारी ने विद्युत विभाग के अभियंताओं को निदेश दिया जाय कि पूजा पंडालों में कहीं भी लूज वायर न रहे। नगर निगम, नगर पंचायत अपने-अपने कार्यक्षेत्र में पूर्णरूपेण सफाई एवं प्रकाश की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे। जिला दंडाधिकारी महोदय ने जिला नियंत्रण कक्ष के साथ-साथ अनुमंडल स्तरों पर नियंत्रण कक्ष को सक्रिय करने का निर्देश दिया। इस अवसर पर जिला नियंत्रण कक्ष दिनांक 21.10.2023 से क्रियाशील रहेगा। जिला नियंत्रण कक्ष का दूरभाष संख्या-06152-242444 है। जिसके वरीय प्रभार में अपर समाहर्त्ता सारण, मो० मुमताज आलम, मोबाईल नम्बर-9473191268 रहेंगे। पुलिस उपाधीक्षक मुख्यालय, डॉ राकेश कुमार, मोबाईल नम्बर-8544428112 को भी किसी महत्वपूर्ण घटना की सूचना दी जा सकती है।

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या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ॐ ह्रीं नम:।। चन्द्रहासोज्जवलकराशार्दुलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।। ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

Patna:  नवरात्रि के छठे दिन माता के अलौकिक स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी स्वरूप में माता शेर पर सवार, सिर पर मुकुट सुशोभित है। माता की चार भुजाएं हैं। माना जाता है कि मां के इस स्वरूप की पूजा अर्चना से विवाह में आ रही परेशानी दूर हो जाती है।

शुक्रवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि मां कात्यायनी को शहद और पीले रंग का भोग अत्यंत प्रिय है। माता को शहद से तैयार हलवे का भोग लगाना चाहिए। गुरु साकेत ने बताया कि नवरात्रि के छठे दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की पूजा के लिए सुबह नहाने के बाद साफ वस्त्र धारण कर पूजा का संकल्प लेना चाहिए। मां कात्यायनी को पीला रंग प्रिय है इसलिए पूजा के लिए पीले रंग का वस्त्र धारण करना शुभ होता है। मां को अक्षत, रोली, कुमकुम, पीले पुष्प और भोग चढ़ाएं। माता की आरती और मंत्रों का जाप करें।

गुरु साकेत ने बताया कि ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया। मां कात्यायनी की पूजा से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इनकी कृपा से योग्य वर और विवाह की सभी अड़चनें दूर हो जाती है। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां कात्यायनी सफलता और यश का प्रतीक हैं। भगवान कृष्ण को पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमंडल, तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।

गुरु साकेत ने बताया कि मां कात्यायनी की पूजा अमोघ फलदायिनी हैं, मान्यता है कि देवी कात्यायनी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है और साधक के रोग, शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा की जाती है यह स्वयं नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी हैं।

गुरु साकेत ने बताया कि नवरात्रि पर्व के छठे दिन सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद शुभ रंगों के वस्त्र पहनकर कलश पूजा करें और इसके बाद मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा करें। पूजा प्रारंभ करने से पहले मां को स्मरण करें और हाथ में फूल लेकर संकल्प जरूर लें। इसके बाद वह फूल मां को अर्पित करें। फिर कुमकुम, अक्षत, फूल आदि और सोलह श्रृंगार माता को अर्पित करें। उसके बाद भोग अर्पित करें। फिर जल अर्पित करें और घी के दीपक जलाकर माता की आरती करें। देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।

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नवरात्रि के पावन महिने में मां दुर्गा की पूजा और उनके आगमन की तिथि के बाद अगर कोई अधिक महत्वपूर्ण तिथि है, तो वो है नवरात्रि का आखिरी दिन, जिसे दुर्गा अष्टमी और नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, कन्याओं की पूजा करने की अद्भुत परंपरा है, जिसका महत्व बहुत अधिक है। आइए जानें कन्या पूजन का महत्व और प्राचीन कथाओं के साथ इसका मतलब।

कन्या पूजन का इतिहास
कन्या पूजन का महत्व प्राचीन शास्त्रों में उल्लिखित है, और यह एक प्राचीन कथा से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार, इंद्रदेव ने माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उपाय पूछा था, और उन्हें ब्रह्मा देव ने सूझाव दिया कि कुमारी कन्याओं का पूजन करें और उनको भोजन कराएं। इस प्रथा के बाद से ही नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कन्या पूजन कराया जाता है, और उनको भोजन कराया जाता है।

नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि के आखिरी दिन को कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, और इसके पीछे कई कारण हैं। शास्त्रों में इसे माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का एक उपाय माना गया है। कन्याओं की पूजा करने से माता रानी की कृपा उनके भक्तों पर बनी रहती है।

कन्या पूजन के महत्वपूर्ण दिन
नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, लेकिन दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन इसका महत्व और बढ़ जाता है। इन दिनों कन्याओं को पूजन कराकर उनको भोजन कराने से माता दुर्गा प्रसन्न होती है और उनके भक्तों को आशीर्वाद मिलता है।

कन्या पूजन का संदेश
कन्या पूजन का संदेश है कि हर स्त्री में देवी की भावना होती है, और हमें सभी स्त्रीओं का सम्मान करना चाहिए। यह एक सामाजिक संदेश देता है कि हमें स्त्रीओं का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ सामंजस्य बनाना चाहिए।

कन्या पूजन के अलग अलग आयु के महत्व
कन्या पूजन के आला अलग आयु के महत्व होते हैं, और इसके साथ-साथ हर आयु की कन्या के लिए एक विशेष महत्व होता हैं। ज्योतिषाचार्य द्वारा इन विभिन्न आयु की कन्याओं की महत्वपूर्ण बातें बताई जाती हैं,

हर आयु की कन्या का होता है अलग महत्व

ज्योतिषाचार्य के अनुसार

2 साल की कन्या को कुमारी कहा जाता है। इनकी पूजा से दुख और दरिद्रता खत्म होती है।
3 साल की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और परिवार का कल्याण होता है।
4 साल की कन्या कल्याणी मानी जाती है। इनकी पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है।
5 साल की कन्या रोहिणी माना गया है। इनकी पूजन से रोग-मुक्ति मिलती है।
6 साल की कन्या कालिका होती है। इनकी पूजा से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है।
7 साल की कन्या को चंडिका माना जाता है। इनकी पूजा से ऐश्वर्य मिलता है।
8 साल की कन्या शांभवी होती है। इनकी पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
9 साल की कन्या दुर्गा को दुर्गा कहा गया है। इनकी पूजा से शत्रु विजय और असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
10 साल की कन्या सुभद्रा होती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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इसुआपुर में 51 फीट के रावण का होगा पुतला दहन, आतिशबाजियों से जगमग होगा आसमान

इसुआपुर: इसुआपुर में दुर्गा पूजा समिति महावीर मंदिर के द्वारा आगामी 24 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन रावण वध कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. आयोजन को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में है.

विगत 10 वर्षों से आयोजित किये जा रहे इस रावण वध कार्यक्रम को इस वर्ष भी आकर्षक और भव्य रूप देने की पूरी कोशिश की जा रही है.

मुख्य बाजार के पीछे पुराने अस्पताल परिसर में आयोजित इस रावण वध के लिए 51 फीट के रावण का पुतला तैयार हो चुका है.

आयोजन समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार सिंह उर्फ ढोलन सिंह ने बताया कि इस वर्ष 51 फिट का रावण का पुतला बनाया गया. विजयदशमी के दिन संध्या समय में रावण वध कार्यक्रम आयोजित किया गया है.

विगत 10 दिनों से 51 फीट लंबे रावण के पुतले का निर्माण स्थानीय कारीगरों द्वारा किया जा रहा है. जिसमें लाखों रुपए की लागत आई है.

वही अमरनाथ प्रसाद, दिलीप चौरसिया, नागेश्वर सिंह, श्याम प्रसाद, राजकिशोर सिंह, मुखिया प्रतिनिधि अजमल रहमानी, श्रीभगवान साह, रवि कुमार, राजेंद्र कुमार ने आमजनता से इस कार्यक्रम में भाग लेने की अपील किया है.

वही आदर्श बाल पूजा समिति के युवाओं द्वारा रावण वध कार्यक्रम को सफल बनाने की तैयारी की जा रही है. पूरे इसुआपुर बाजार में भगवा पताका लगाकर सजाया जा रहा है.

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या देवी सर्वभूतेषु के मंत्र के साथ हुई कलश स्थापना, भक्तिमय हुआ वातावरण

Chhapra: नौ दिवसीय शारदीय नवरात्र को लेकर रविवार को कलश स्थापना की गई. कलश स्थापना के साथ ही शहर से लेकर गांव तक या देवी सर्वभूतेषु के मंत्र गुजने लगे. जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय बन गया है. अगले नौ दिनों तक शक्ति की देवी मां दुर्गा को आराधना की जाएगी.

छपरा शहर के सभी चौक चौराहों पर पंडाल का निर्माण अब अंतिम चरण में है. रविवार की सुबह नगरपालिका चौक, पंकज सिनेमा, साहेबगंज, भगवान बाजार, गुदरी, मौना चौक, ढाला सहित कई अन्य स्थानों पर माता की पूजा के लिए कलश स्थापना की गई.

वही सभी माता के मंदिरों में भी कलश स्थापना के साथ पूजा प्रारंभ हो चुकी है. इसके अलावे दिघवारा के मां अंबिका भवानी मंदिर, मढ़ौरा के गढ़देवी मंदिर, अमनौर के माता वैष्णो देवी मंदिर में कलश स्थापना की गई. जहां पूजा के लिए माता के भक्त माता शक्ति की आराधना करेगे.

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हिन्दू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का व्रत आश्विन मास के शुक्लपक्ष के प्रतिपदा तिथि से आरंभ होकर नवमी तिथि तक यानि पुरे 9 दिन तक चलने वाला यह शारदीय नवरात्रि का व्रत बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

प्रतिपदा के दिन प्रातः काल यानि ब्रह्म मुहूत से माँ दुर्गा का पूजन का शुरुआत आरंभ होता है. प्रायः हिंदू परिवार के सभी घरों में घट की स्थापना यानी कलश स्थापना किया जाता है. शारदीय नवरात्रि में माता का पूजन बड़े ही धूम -धाम से मनाया जाता है. माता के नवरूप का पूजन अलग -अलग दिन को अलग -अलग रूप में किया जाता है।माता के नवरूप के पूजन करने से परिवार में बने हुए सभी कष्ट दूर हो जाते है.

ऐसे में नवरात्रि साल में चार बार पड़ती है. चैत, अषाढ़, आश्विन और माघ मास इन मास में पूजन करने से परिवार में बने हुए सभी दोष दूर होते है.

माता की कृपा आपके ऊपर भरपूर बनी रहती है. इस दिन घर में कलश स्थापना करके दुर्गासप्त्शी का पाठ 9 दिन तक किया जाता है. साथ में अन्य देवी देवता का पूजन किया जाता है. नवरात्रि के अंतिम दिन पाठ समाप्त करके पाठका हवन करे. उसके बाद बाद में कुआरी कन्याओ को भोजन कराये.

कब है कलश स्थापना

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
15 अक्तूबर 2023 दिन रविवार समय सुबह 11 :12 मिनट से लेकर 11:58 मिनट तक यह मूहूर्त अभिजीत मूहूर्त होता है इस मूहूर्त में कलश का स्थापना करना बहुत ही सौभाग्यपूर्ण होता है.

प्रतिपदा तिथि का आरंभ 14 अक्तूबर 2023 की रात्रि 11 :24 मिनट से
प्रतिपदा तिथि समाप्ति 16 अक्तूबर 2023 रात्रि 12 :32 में
इस वर्ष कलश स्थापना का प्रतिपदा तिथी है. वह पूरे दिन बन रहा है जो कल्याणकारी है.

कलश स्थापना कैसे करे

पूजनकर्ता सुबह उठकर नित्य क्रिया से निर्वित होकर स्नान करे स्वस्छ कपड़ा या नया कपडा लाल रंग का धारण करे.गंगाजी से मिट्टी लाए या स्वच्छ स्थान का मिटटी हो. मिट्टी को पूजा वाले स्थान में रखे. जहां पूजा करनी हो. कलश जहा पर रखने की है मिट्टी में सप्तधान्य मिलाए या जौ मिलाकर रखे. उसके ऊपर मिटटी का कलश या पीतल ,तांबे का लोटा रखे.उसमे जल डाले, या गंगाजल डाले,कलश के ऊपर नारियल लाल कपडा में लपेटकर रखे.कलश पर स्वस्तिक बनाये.कलश को लाल कपडा से लपेट दे. कलश के ऊपर चंदन, कुमकुम,हल्दी चढ़ाये.कलश में सर्व औषधि डाले ,सुपारी डाले.फिर हाथ जोरकर कलश का प्रार्थना करे.फिर गणेश जी के साथ सभी देवी देवताओं का आहवान करे उनका पूजन करे.

दुर्गा जी पूजन कैसे करे 

छोटी चौकी ले उसके ऊपर लाल रंग या पिला रंग के कपडा बिछा दे जो माता के आसन रहेगा.उसके उपर माता का प्रतिमा या फोटो रखे .माता को वस्त्र चढ़ाये ,चंदन लगाये ,फूलमाला चढ़ाये ,फिर अखंड दीप जलाये .अगरबती दिखाए .नैवेद में ऋतुफल फल के साथ में पकवान चढ़ाये .पान के पता लौंग इलायची का भोग लगाये.उसमे तुलशी के पता डाले ।

दुर्गा पूजन तथा कलश पूजन करने के लिए पूजन सामग्री

रोड़ी, सिंदूर, पान, सुपारी, रक्षा के सूत, गंगाजल, रुइबती, चावल, कपूर लौंग, इलाइची, माचिस, पान के पता, लाल कपडा, पिला चंदन, फुल, गुड, शहद, दही, दूध, शक्कर, पंचमेवा, फल, मिठाई, जनेऊ, पक्का केला, ऋतुफल, काजल, दिया, थाली पूजन के लिए, पूजन के लिए पीतल का लोटा, आसानी, दुर्गा चालीसा का पुस्तक या दुर्गासप्त्शी का पुस्तक, पंचमामृत के लिए गाय का दूध, दही, श्रृंगार के सामान, आम के पता, दुर्वा.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष , वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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अयोध्या, 07 अक्टूबर (हि.स.)। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक शनिवार को श्री मणिराम दास छावनी में देर शाम समाप्त हुई। बैठक के बाद ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय ने बताया कि बैठक में 12 लोग मौजूद रहे, जबकि ट्रस्टी केशव परासरण ऑनलाइन शामिल हुए। मीटिंग में 18 बिंदुओं पर चर्चा की गई। मन्दिर प्रांगण में बैठक के बाद आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने बताया कि मंदिर को तीन चरणों में बनाया जा रहा है। पहले चरण में भूतल जनवरी 2024 में पूरा होगा, जबकि दूसरा दो चरण दिसंबर 2024 और तीसरा चरण दिसंबर 2025 में पूरे किए जाएंगे।

ट्रस्ट के लेखाजोखा के संदर्भ में उन्होंने बताया कि 05 फरवरी 2020 से 31 मार्च 2023 तक मंदिर निर्माण में 900 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। जबकि बैंक खाते में अब भी 3 हजार करोड़ रुपये हैं, जिसमें एफडी, बचत भी शामिल है। समर्पण निधि से आये धन को खर्च नहीं किया गया है। मन्दिर में आ रहे दान और ऑनलाइन मिली राशि से शेष खर्चों का निबटारा हो रहा है। ट्रस्ट को जानकारी दी गई कि मंदिर के लिए विदेशी करेंसी में चंदा लेने के लिए एफसीआरए के रजिस्ट्रेशन को ऑनलाइन किया गया है, जो प्रक्रिया है उसे कर दिया गया है।

हर घर में प्राण प्रतिष्ठा के दिन 5 दीपक जलाए जाएंगे
चंपत राय ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर पूरे देश में हर घर में 5 दीपक सरसों के तेल से जलाए जाएंगे। जिससे वातावरण शुद्ध होगा। प्राण प्रतिष्ठा के बाद गर्भ गृह से भगवान की फोटो को लेकर छपवाया जाएगा और प्रसाद के रूप में भक्तों को दर्शन के समय दिया जायेगा। लगभग 10 करोड़ घरों तक फोटो वितरित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद लगभग 50 लाख लोगों के अयोध्या पहुंचने की संभावना है। अयोध्या में 25 हजार लोगों के रहने और भोजन की व्यवस्था की जाएगी, जिसमें एक हजार चलित शौचालय बनाए जायेंगे।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए 5 लाख गांवों तक जाएगा अक्षत
उन्होंने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के पहले गर्भ गृह के सामने अछत का पूजन होगा, जो प्राण प्रतिष्ठा के लिए 5 लाख गांवों तक भेजा जाएगा। सभी लोग अपने अपने घरों के आसपास देव स्थान पर पूजन अर्चन करें और वहीं से लाइव कार्यक्रम दूरदर्शन से देखें।

ट्रस्ट के 15 सदस्यों में 11 सदस्य अयोध्या की बैठक में शामिल हुए। जबकि के पाराशरण सहित तीन सदस्य वर्चुअली रूप से जुड़े रहे। बैठक में ट्रस्ट अध्यक्ष एवं मणि राम दास छावनी महंत नृत्यगोपाल दास, जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और कोषाध्यक्ष गोविंदेव गिरि, महासचिव चंपत राय, सदस्यों में अयोध्या राजा बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, निर्माण समिति अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र, डॉ अनिल मिश्र, कामेश्वर चौपाल, जिलाधिकारी नीतिश कुमार, प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि एवं मणि राम दास छावनी महंत नृत्यगोपाल दास के उत्तराधिकारी महंत कमलनयन दास शास्त्री उपस्थित रहे।

900 करोड़ अब तक खर्च, कुल 1800 करोड़ लगेंगे
राम मंदिर निर्माण पर अब तक 900 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। ट्रस्ट के मुताबिक, पूरे मंदिर को तैयार करने में 1800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। राम मंदिर निर्माण में लार्सन एंड टुब्रो और टाटा कंसल्टेंसी लगी है। चम्पत राय ने बताया कि कंपनियों के समझौते के हिसाब से अगस्त में ही मन्दिर निर्माण पूरा होना था। पत्थर का इतना बड़ा कार्य अनुभव न होने के कारण नहीं हो पाया। श्री राय ने प्रधानमंत्री के समारोह में सम्मिलित होने के विषय में कहा कि अभी तक कोई पत्र आने का नहीं प्राप्त हुआ है।

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जम्मू, 06 अक्टूबर (हि.स.)। अब माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए जाने वाले भक्तों को त्रिकुटा पहाड़ियों पर जाते समय रास्ते में पांच जगह वर्चुअल प्राकृतिक गुफा के दर्शन कराये जायेंगे। इसके लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने भवन के रास्ते में पांच स्थानों पर कियोस्क स्थापित करने की व्यवस्था की है।

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने जम्मू-कश्मीर में रियासी जिले के त्रिकुटा पहाड़ियों में स्थित माता रानी के प्राकृतिक गुफा के माध्यम से आभासी दर्शन कराने की शुरुआत की है। बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अंशुल गर्ग ने शुक्रवार को बताया कि भवन के रास्ते में पांच स्थानों पर तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र प्राकृतिक गुफा के माध्यम से उपलब्ध होंगे।

उन्होंने कहा कि तीर्थयात्री 15 अक्टूबर से शुरू होने वाले इस शारदीय नवरात्रि में केवल 101 रुपये का डिजिटल भुगतान करके वीआर हेडसेट के माध्यम से एक अद्वितीय अनुभव का आनंद ले सकते हैं। यह कियोस्क निहारिका भवन (कटरा), सेरली हेलीपैड, अर्धकुंवारी, पार्वती भवन और दुर्गा भवन में उपलब्ध होंगे।गर्ग ने बताया कि तीर्थयात्री अक्सर दर्शन के लिए एक पुरानी पारंपरिक प्राकृतिक गुफा को खोलने की मांग करते हैं, जिसे साल में केवल एक बार खोला जाता है।

उन्होंने कहा कि तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए और प्राकृतिक गुफा के माध्यम से दर्शन करने की उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए अब वर्चुअल मोड के माध्यम से पूरा किया जाएगा। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन बुजुर्ग तीर्थयात्रियों के लिए लाभदायक होगी, जो प्राकृतिक गुफा के माध्यम से दर्शन करने में आस्था व्यक्त करते हैं। सीईओ ने कहा कि इस नवरात्र में यात्रा को सुचारू रूप से चलाने और पवित्र दिनों के दौरान भीड़ को कम करने के लिए भवन में श्राइन बोर्ड आधुनिक स्काईवॉक फ्लाईओवर और डिजिटल लॉकर सुविधाएं भी शुरू करेगा।

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जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर संशय करें दूर, जाने व्रत के नियम एवम कथा

जीवित्पुत्रिका हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है. इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं.

माताएं निर्जला व्रत रखती है. आज पूरे दिन उपवास रखकर जीउतवाहन की पूजा करती है और संतान की लंबी आयु के लिए कामना करती है. हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत करने का विधान है.

यह व्रत सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक चलता है. जिउतिया पर्व महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. यह व्रत संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीतवाहन व्रत के नाम से जाना जाता है.

इस साल यह व्रत 7 अक्तूबर 2023 को शुरू होगा और 8 अक्टूबर 203 तक चलेगा. व्रत के एक दिन पहले नहा कर खाना जो स्त्री इस व्रत को रखती है़ एक दिन पहले से पकवान बनाती है़। सेघा नमक से तथा बिना लहसुन प्याज का खाना शुद्धता से बना कर खाती है़.

किस दिन से व्रत की शुरुआत करें.

व्रत कथा के अनुसार सप्तमी से रहित और उदयातिथि की अष्टमी को व्रत करें। यानि सप्तमी विद्ध अष्टमी जिस दिन हो उस दिन व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी को व्रत करे और नवमी में पारण करे। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो व्रत का फल नहीं मिलता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत नहाय खाए से होती है.

इस साल 06 lअक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को नहाए खाए होगा.

07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा.

8 अक्टूबर 2023 को व्रत का पारण किया जाएगा. सूर्य उदयके बाद

व्रत कैसे करें

स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान जीतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।

जीवित्पुत्रिका व्रत का कथा :

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली. अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.

दूसरी कथा यह है :

चील-सियार की कथा- मिथिलांचन सहित कई इलाकों में प्रचलित इस कथा के अनुसार एक समय एक वन में पेड़ पर एक चील रहती थी. पास में वहीं झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी. दोनों में खूब दोस्ती थी. चील जो कुछ भी खाने को लेकर आती उसमें से सियारिन के लिए जरूर हिस्सा रखती. सियारिन भी चिल्हो का ऐसा ही ध्यान रखती. एक बार की बात है. वन के पास एक गांव में औरतें जिउतिया के पूजा की तैयारी कर रही थी. चिल्हो ने उसे बड़े ध्यान से देखा और इस बारे में अपनी सखी सियारिन को बताई. दोनों ने इसके बाद जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा. दोनों दिन भर भूखे-प्यासे रहे मंगल कामना करते हुए व्रत किया लेकिन रात में सियारिन को तेज भूख-प्यास सताने लगी. सियारिन को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो जंगल में जाकर उसने मांस और हड्डी पेट भरकर खाया. चिल्हो ने हड्डी चबाने की आवाज सुनी तो इस बारे में पूछा. सियारिन ने सारी बात बता दी.

चिल्हो ने इस पर सियारिन को खूब डांटा और कहा कि जब व्रत नहीं हो सकता था तो संकल्प क्यों लिया था! सियारिन का व्रत भंग हो गया लेकिन चिल्हो ने भूखे-प्यासे रहकर व्रत पूरा किया. कथा के अनुसार अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं. सियारिन बड़ी बहन हुई और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई. वहीं, चिल्हो छोटी बहन हुई उसकी शादी उसी राज्य के मंत्री पुत्र से हुई. बाद में दोनों राजा और मंत्री बने. सियारिन रानी के जो भी बच्चे होते वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते. इससे उसे जलन होती. ईर्ष्या के कारण सियारिन रानी बार बार उसने अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने का प्रयास करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी. बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने क्षमा मांगी. बहन के बताने पर उसने फिर से जीवित्पुत्रिका व्रत किया तो उसके भी पुत्र जीवित रहे.

 जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त व पारण का समय

अष्टमी तिथि प्रारंभ- 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार सुबह 6 बजकर 34 मिनट से

अष्टमी तिथि समाप्त- 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार की सुबह 8 बजकर 8 मिनट तक

व्रत का उपवास शानिवार को रखा जाएगा

जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण 8 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा. इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के बाद पूजा करके पारण करें. मान्यता है कि व्रत का पारण गाय के दूध से ही करे तथा सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ

8080426594/9545290847

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भारत में पिंडदान करने का कई धार्मिक स्थल है पिंडदान किसी भी पवित्र स्थान पर किया जा सकता है. लेकिन गया जी पिंडदान करने का विशेष महत्व है. गया जी में पिंडदान करने से सात पीढियों का मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा परिवार में सुख शांति कायम रहता है। जिस व्यक्ति का पिंडदान गया में किया जाता है उसकी आत्मा का शांति मिलती है। सनातन धर्म में यह मान्यता है की गया में श्राद्ध करने से व्यक्ति को आत्मा का शांति मिलती है। 

(1) ब्रह्मा जी ने गयासुर को वरदान दिया था जो भी लोग गया में पितृपक्ष के अवधि में इस स्थान पर अपने पितरो को पिंडदान करेगा उनको मोक्ष मिलेगा.

(2 ) श्रीराम जी के वन जाने के बाद दशरथ जी का मृत्यु हुई और सीता जी ने यहाँ दशरथ जी की प्रेत आत्मा को को पिंड दिया था .उस समय से यह स्थान को पिंड दान करने तथा तर्पण करने से दशरथ जी ने माता सीता का दिया हुआ पिंडदान स्वीकार किया था.

(3 गया में पुत्र को जाने तथा फल्गु नदी में स्पर्श करने से पितरो का स्वर्गवास होता है .

(4 ) गया क्षेत्र में तिल के साथ समी पत्र के प्रमाण पिंड देने से पितरो का अक्षयलोक को प्राप्त होता है .
यहाँ पर पिंडदान करने से ब्रह्हत्या सुरापान इत्यादि घोर पाप से मुक्त होता है .

(5 ) गया में पिंडदान करने से कोटि तीर्थ तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहाँ पर श्राद्ध करने वाले को कोई काल में पिंड दान कर सकते है साथ ही यहाँ ब्राह्मणों को भोजन करने से पितरो की तृप्ति होती है.

(6 ) गया में पिंडदान करने के पहले मुंडन कराने से बैकुंठ को जाते है साथ ही काम, क्रोध, मोक्ष को प्राप्ति होती है.

(7) यहाँ पर उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही देते है .

गया में तर्पण का का रहस्य
यहाँ माता सीता ने तर्पण किया था गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। बताया जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है.

संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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