हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा जी को निर्माता का सृजन का देवता माना जाता है. यह पूरे संसार के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है. भगवन विश्वकर्मा को देवताओं का वास्तुकार माना जाता है. विश्वकर्मा पूजा विशेषकर कारखाना तथा मशीनरी दुकान, जहां पर मशीनरी कार्य, फिटर, वेल्डर, टर्नर जैसे काम करने वाले लोग अपने भविष्य के सुरक्षा के साथ काम करने तथा कार्य को सफल बनाने के लिए विश्वकर्मा जी का पूजन किया जाता है.

यह त्योहार सूर्य के गोचर के अनुसार किया जाता है. जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते है उसे कन्या संक्रांति कहा जाता है. उस दिन विश्वकर्मा पूजा किया जाता है. आपको बता देता हु अधिकांश त्योहार तिथि पर नहीं मनाया जाता है. कुछ ऐसे त्योहार है जो शुभ दिन चन्द्र दिवस पर निर्भर करता है, जो हर साल बदलता है. ऐसे ही विश्वकर्मा पूजा है, जो हर साल 17 सितम्बर को मनाया जाता है। लेकिन सूर्य के गोचर के में एक या दो दिन का अंतर दिखाई दे तब विश्वकर्मा पूजा के तारीख में बदलाव होता है.

विश्वकर्मा पूजन का शुभ मुहूर्त

17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा.

ऋषिकेश पंचांग तथा महावीर पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा का पूजन सुबह 11:00 के पहले करने पर उत्तम रहेगा.

सूर्य का गोचर 16 सितम्बर 2024 सुबह 11 :09 मिनट पर होगा. इसलिए विश्वकर्मा पूजन 17 सितम्बर को मनाया जायेगा.

विश्वकर्मा पूजन का शुभ मुहूर्त पर निर्णय
17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा.
ऋषिकेश पंचांग तथा महावीर पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा का पूजन सुबह 11:00 के पहले किया जाय बहुत ही कल्याणकारी होगा.

पूजा विधि
पूजनकर्ता सुबह में नित्य क्रिया से निर्वित् होकर। नया या स्वच्छ वस्त्र धारण करे. छोटी चौकी पर पिला रंग का कपड़ा का आसनी बिछाए। उस पर विश्वकर्मा की मूर्ति या फोटो रखे। पूजन के लिए थाली ले उसमे चंदन, सिंदुर, फूल, अक्षत, अगरबती, मिठाई, ऋतु फल रखे। कलश का स्थापित करे, उसमे आम का पत्ता, दुर्वा, सुपारी पान के पता, फूल डाले. कलश पर नारियल में मौली लपेटकर कलश पर रखे. विश्वकर्मा जी को फूल के माला चढ़ाएं,वस्त्र चढ़ाएं. आरती करें, पूजन करने के बाद प्रसाद का वितरण करे।

पूजा सामग्री

चावल, गंगाजल, चंदन, फूल, फूलमाला, सिंदुर पिला कपड़ा, लाल कपड़ा, दही, दूध, केला, ऋतु फल, घी, रूई बाती, पान के पता, सुपारी, नारियल, मौली, पंचमेवा, शहद, इत्यादि।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व

विश्वकर्मा पूजा के विधि विधान से अनुष्ठान तथा पूजन करने से उनके कार्य में उन्नति होता है. वैदिक परंपरा के अनुसार विश्वकर्म पूजन से व्योपार में उन्नति होता है। ऐसा मना जाता है विषेकर इंजीनियरिंग तथा कल कारखाने, एवं इंजीनियरिंग से सम्बन्धित व्योपार करने वाले के लिए विश्वकर्मा पूजा करने से बहुत उन्नति होता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

रमेश सर्राफ धमोरा

हर वर्ष 17 सितम्बर को विश्वकर्मा जयंती मनायी जाती है। यह कन्या संक्रांति पर पड़ता है। यह वह दिन है जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। हर साल 17 सितंबर को यह पूजा की जाती है। लेकिन इस बार लोगों के मन में 16 सितंबर को लेकर संशय है। इस बार सूर्य 16 सितंबर की शाम को 7 बजकर 29 मिनट पर कन्‍या राशि में प्रवेश कर रहे हैं।

विश्वकर्मा जयन्ती भारत के जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में मनायी जाती है। नेपाल में भी विश्वकर्मा पूजा को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। विश्वकर्मा के पूजन और उनके बताये वास्तुशास्त्र के नियमों का अनुपालन कर बनवाये गये मकान और दुकान शुभ फल देने वाले माने जाते हैं। इनमें कोई वास्तु दोष नहीं माना जाता।

विश्वकर्मा पूजा ऐसा त्योहार है जहां शिल्पकार, कारीगर, श्रमिक भगवान विश्वकर्मा का त्योहार मनाते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा के पुत्र विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया था। विश्वकर्मा को देवताओं के महलों का वास्तुकार भी कहा जाता है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। विश्वकर्मा दो शब्दों से विश्व (संसार या ब्रह्मांड) और कर्म (निर्माता) से मिलकर बना है। इसलिए विश्वकर्मा शब्द का अर्थ है- दुनिया का निर्माता यानी दुनिया का निर्माण करने वाला। औद्योगिक श्रमिकों द्धारा इस दिन बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए प्रार्थना की जाती हैं। विश्वकर्मा जयन्ती के दिन देश के कई हिस्सों में काम बंद रखा जाता है और खूब पंतगबाजी की जाती है। विभिन्न प्रदेशों की सरकार विश्वकर्मा जयन्ती पर अपने कर्मचारियों को सवैतनिक अवकाश प्रदान करती है।

यह त्योहार मुख्य रूप से दुकानों, कारखानों और उद्योगों द्वारा मनाया जाता है। इस अवसर पर, कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिक अपने औजारों की पूजा करते हैं और भगवान विश्वकर्मा से उनकी आजीविका सुरक्षित रखने के लिए प्रार्थना करते हैं। वे मशीनों के सुचारू संचालन के लिए प्रार्थना करते हैं और विश्वकर्मा पूजा के दिन अपने उपकरणों का उपयोग करने से परहेज करते हैं।

विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं। जिन्होंने विश्व के प्राचीनतम तकनीकी ग्रंथों की रचना की थी। इन ग्रंथों में न केवल भवन वास्तु विद्या, रथ आदि वाहनों के निर्माण बल्कि विभिन्न रत्नों के प्रभाव व उपयोग आदि का भी विवरण है। माना जाता है कि उन्होंने ही देवताओं के विमानों की रचना की थी। भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति ऋग्वेद में हुई है। जिसमें उन्हें ब्रह्मांड (पृथ्वी और स्वर्ग) के निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान विष्णु और शिवलिंगम की नाभि से उत्पन्न भगवान ब्रह्मा की अवधारणाएं विश्वकर्मण सूक्त पर आधारित हैं।

विश्वकर्मा प्रकाश को वास्तु तंत्र का अपूर्व ग्रंथ माना जाता है। इसमें अनुपम वास्तु विद्या को गणितीय सूत्रों के आधार पर प्रमाणित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वाकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं।

विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में सर्वमान्य हैं। इनको गृहस्थ आश्रम के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक भी कहा गया है। अपने विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान के कारण देव शिल्पी विश्वकर्मा मानव समुदाय ही नहीं वरन देवगणों द्वारा भी पूजित हैं। देवता, नर, असुर, यक्ष और गंधर्व सभी में उनके प्रति सम्मान का भाव है। भगवान विश्वकर्मा के पूजन-अर्चन किये बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं माना जाता। इसी कारण विभिन्न कार्यो में प्रयुक्त होने वाले औजारों, कल-कारखानों और विभिन्न उद्योगों में लगी मशीनों का पूजन विश्वकर्मा जयंती पर किया जाता है।

धर्मग्रंथों में विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वंशज माना गया है। ब्रह्माजी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे। जिन्हें शिल्प शास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए विश्वकर्मा भी वास्तुकला के महान आचार्य बने। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ इनके पुत्र हैं। इन पांचों पुत्रों को वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में विशेषज्ञ माना जाता है।

पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक स्वर्गलोक की इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, असुरराज रावण की स्वर्ण नगरी लंका, भगवान श्रीकृष्ण की समुद्र नगरी द्वारिका और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही जाता है। पौराणिक कथाओं में इन उत्कृष्ट नगरियों के निर्माण के रोचक विवरण मिलते हैं। उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर तो विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें शिल्पावतार के रूप में सम्मानित किया था।

महाभारत में पांडव जहां रहते थे उस स्थान को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। इसका निर्माण भी विश्ववकर्मा ने किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलयुग के हस्तिनापुर आदि के रचयिता विश्वकर्मा जी की पूजा अत्यन्त शुभकारी है। सृष्टि के प्रथम सूत्रधार, शिल्पकार और विश्व के पहले तकनीकी ग्रन्थ के रचयिता भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं की रक्षा के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था।

विष्णु को चक्र, शिव को त्रिशूल, इंद्र को वज्र, हनुमान को गदा और कुबेर को पुष्पक विमान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किये थे। सीता स्वयंवर में जिस धनुष को श्रीराम ने तोड़ा था वह भी विश्वकर्मा के हाथों बना था। जिस रथ पर निर्भर रह कर श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन संसार को भस्म करने की शक्ति रखते थे उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। पार्वती के विवाह के लिए जो मण्डप और वेदी बनाई गई थी वह भी विश्वकर्मा ने ही तैयार की थी।

माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। इसके पीछे कहानी है कि शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को कहा तो विश्वकर्मा ने सोने का महल बना दिया। इस महल के पूजन के दौरान भगवान शिव ने राजा रावण को आंमत्रित किया। रावण महल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और जब भगवान शिव ने उससे दक्षिणा में कुछ देने को कहा तथा उसने महल ही मांग लिया। भगवान शिव उसे महल देकर वापस पर्वतों पर चले गए। विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए उड़ने वाले रथों का निर्माण किया था। विश्वकर्मा ने देवताओं के राजा इंद्र का हथियार वज्र का निर्माण किया था। वज्र को ऋषि दधीचि और अज्ञेयस्त्र की हड्डियों से बनाया गया है। भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र उनकी शक्तिशाली रचनाओं में से एक था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कामगारों के लिए बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा जयंती पर देश में एक नई योजना ‘विश्वकर्मा योजना’ को लॉन्च किया जाएगा। इस योजना के तहत देश में फर्नीचर या लकड़ी का काम करने वाले, सैलून चलाने वाले, जूते बनाने वाले और मकान बनाने वाले कामगारों को आर्थिक मदद मुहैया कराई जाएगी। उन्होंने कहा विश्वकर्मा जयंती पर सरकार 13 से 15 हजार करोड़ रुपये की एक योजना को लॉन्च करेंगी। इस तरह उन लोगों की सहायता हो सकेगी जो पारंपरिक तरीके के कौशल से अपनी जीवका चलाते हैं। ये अपना भरणपोषण औजारों और हाथ से काम करके करते हैं। उन्होंने कहा कि इनमें सुनार हों, राजमिस्त्री हों, कपड़े धोने वाले हों या बाल काटने वाले के परिवार हों। ऐसे लोगों को इस योजना से आर्थिक ताकत प्रदान की जा सकेगी।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार, समाचार एजेंसी से संबद्ध हैं।)

0Shares

नई दिल्ली, 07 सितंबर (हि.स.)। देशभर में आज से गणेशोत्सव शुरू हो रहा है। गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर सुबह से विघ्नहर्ता और प्रथमपूज्य देवता की पूजा-अर्चना शुरू हो गई है।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी सात सितंबर को मनाई जा रही है। भगवान गणेश हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता और प्रथमपूज्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं। वो अशुभता को दूर कर शुभ फल प्रदान करते हैं। गणेश चतुर्थी से ही 10 दिवसीय गणेशोत्सव का आगाज होता है। देश के लगभग हर हिस्से में सुबह भगवान गणेश की मंदिरों में आरती की गई।

गणपति बप्पा मोरया…के पवित्र घोष के साथ मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में पहली आरती की गई। इस दौरान मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। ऐसा ही दृश्य लालबागचा राजा मंदिर में रहा। नागपुर के टेकड़ी गणेश मंदिर में भक्तों ने पूजा-अर्चना की। गुजरात में अहमदाबाद के वस्त्रपुर ना महागणपति मंदिर में सुबह की आरती की गई।

0Shares

हरितालिका यानि तीज का व्रत पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव तथा पार्वती के विधिवत पूजन करने का दिन माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बे उम्र के लिए पुरे दिन उपवास रखकर भगवान शिव का पूजन करती है मान्यता है की इस व्रत को करने से पति के साथ संतान सुख का प्राप्ति होता है। साथ ही मनोरथ पूर्ण होता है इस व्रत को कुंवारी लड़किया सुयोग्य वर प्राप्त करने के लिए कर सकती है, क्योंकि पार्वती जी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिऐ इस व्रत को किया था तब से इस दिन माता पार्वती तथा शिव का विधिवत पूजन की जाती है।

धार्मिक मान्यता है इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख शांति मिलती है। पति पत्नी के बिच प्रेम सम्बन्ध बढ़ता है।इस वर्ष हरितालिका व्रत पर कई शुभ संयोग बन रहा है।जो इस व्रत को और प्रभावशाली बना देगा।ऐसे में भगवान शिव का पूजन से सभी कष्ट दूर होते है।

कब है हरितालिका तीज व्रत

06 सितम्बर 2024 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।

तृतीया तिथि का आरंभ 05 सितम्बर 2024 दिन गुरुवार को सुबह 10:04 मिनट से

तृतीया तिथि का समाप्त 06 सितम्बर 2024 दिन शुक्रवार को दोपहर 12:09 मिनट तक मिल रहा है।

हस्त नक्षत्र 06 सितम्बर 2024 को सुबह 08:09 मिनट तक रहेगा।

तीज में कई शुभ संयोग बन रहा है।

हरितालिका व्रत के दिन रवि योग बन रहा है,दिन शुक्रवार है। इस दिन महालक्ष्मी व्रत भी किया जायेगा जो सौभाग्य प्राप्ति, धन प्राप्ति के लिए बहुत उत्तम दिन होता है।

हरितालिका व्रत के पूजन सामग्री।

केले के खंबे, दूध, सुहाग के लिए बांस का बना पिटारी, गंगाजल, अक्षत, दही, घी, फूल, फूल माला, दीपक, धूप कपूर,
सुपाड़ी, भगवान के लिए वस्त्र, सिंदुर रोली, मिठाई, पान के पत्ता, श्रृंगार के वस्तु चूड़ी, आइना, कंगी, सिंदुर इत्यादि।
मंदार के फूल, बेलपत्र, शमी पत्र,

कैसे करे तीज की पूजा

महिलाएं नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके नया वस्त्र या स्वच्छ वस्त्र धरण करे।मंडप बनाकर छोटी चौकी पर लाल या पिला कपड़ा रखकर भगवान का आसन बनाए।मिटटी से शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित करे। थाली में कुमकुम, चन्दन, दही ,दूध चावल, हार फुल, बेलपत्र, ऋतुफल, घर में बने पकवान भगवन को चढ़ाए।

पार्वती जी के लिए श्रृंगार की वस्तु,आभूषण,वस्त्र,आदि चढ़ाए भगवान को धूप दीप अगरबती दिखाए।फिर कपूर से या गाय के घी का दीपक जलाकर आरती करे। रात्रि में जागरण करे। अगले दिन सुबह स्नान करके भगवान शिव का पूजन करे फिर शिव पार्वती के प्रतिमा का विसर्जन नदी या तालाब में करे। फिर व्रत का पारण करे।

मान्यता
हरितालिका तीज की व्रत से जुडी कई पौराणिक कथाएं है। इन कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवन शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।उनकी इस तपस्या से प्रस्सन होकर भगवन शिव ने उन्हें अपनी पत्नी बनाया था।इसलिए विवाहित महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए और कुंवारी कन्या अच्छे वर के लिए यह व्रत करती है। भगवान शिव पार्वती जी को बताए है इस व्रत को करने से हजार अश्वमेध एवं वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

Chhapra: स्थानीय महर्षी दधिचि आश्रम सह उमानाथ मंदिर परिसर में पांच दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

छपरा शहर के सैकड़ो मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया. वहीं हजारों हजार घरों में भी लोगों ने भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप में अपने परिवार के छोटे छोटे बच्चों को सजाकर भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव भजन कीर्तन के माध्यम से मनाया।

मुख्य कार्यक्रम आरपीएफ बैरेक रेलवे, बाबा बटुकेश्वर नाथ पंच मंदिर, दाऊजी का मंदिर, शाह बनवारी लाल पंच मंदिर गुदरी बजार, बाबा मनोकामना नाथ मंदिर कटरा, महर्षी दधिचि आश्रम सह उमानाथ मंदिर दहियावां, काठिया बाबा मठ सोनार पट्टी, अयोध्या साह राम जानकी मंदिर सोनार पट्टी, राम जानकी मंदिर छत्रधारी बाजार वैगरह में मनाया गया।

महर्षी दधिचि आश्रम उमानाथ मंदिर में पांच दिनों से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रतिदिन संध्या 7:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक चलेगा। जिसमें वृंदावन एवं काशी से आए हुए कलाकारों के द्वारा भगवान श्री कृष्ण की नित्य नई लीला प्रस्तुत की जाएगी।

बाबा बटेश्वर नाथ मंदिर काठिया बाबा का मठ, राम जानकी मंदिर सोनार पट्टी, उमानाथ मंदिर में यह कार्यक्रम छठिहार उत्सव तक चलता रहेगा। मटकी फोड़ कार्यक्रम का आयोजन नगर निगम चौक पर मनाया गया।

0Shares

जन्माष्टमी, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, यह त्योहार भारत ही नहीं बल्कि दुनियां के कई देशों में भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

यह त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के भक्त बेहद ही धूम धाम से इस त्योहार को मनाते है यह त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत का त्योहार है पृथ्वी पर कंस की अत्याचार बढ़ गया था उसके अत्याचार को समाप्त करने के लिऐ भगवान कृष्णा का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण देवकी के आठवें पुत्र है इनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था।

इस साल जन्माष्टमी कब है?

इस साल, 2024 में, जन्माष्टमी 26 और 27 अगस्त को मनाई जाएगी।
26 अगस्त: उदया तिथि के अनुसार, जन्माष्टमी का व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा।
27 अगस्त: गोकुल और वृंदावन में कृष्ण जन्मोत्सव 27 अगस्त को मनाया जाएगा।

जन्माष्टमी का महत्व

भगवान कृष्ण की पूजा: इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। भाद्रपद कृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाता है इस तिथि को कृष्ण जन्मोत्सव के उपल्क्ष में मंदिरों में जगह जगह कीर्तन तथा झाकियां सजाई जाती है बारह बजे रात्रि तक व्रत रह कर भगवान का प्रसाद लिया जाता है दूसरे दिन प्रातः काल से नंद महोत्सव भी मनाया जाता है।

संपन्नता: मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के लड्डू गोपाल रूप की पूजा करने से घर में संपन्नता बढ़ती है।

मनोकामनाओं की पूर्ति: भगवान कृष्ण की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सातों जन्मों के पापो से छुटकारा मिलता है परिवार में संपन्नता बनी रहती हैं।

जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?

व्रत: भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात को भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। भगवान को हल्दी, दही, घी, तेल गंगाजल आदि से स्नान कराकर चंदन लगाया जाता है। आनंद के साथ पलने में झुलाया जाता है।

मंदिरों में उत्सव: मंदिरों में भव्य सजावट की जाती है और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। श्रीमद्भागवत की पाठ की जाती
है।

मथुरा और वृंदावन: इन स्थानों पर जन्माष्टमी का उत्सव विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।इस दिन प्रायः लोग अपने अपने घरों में “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे” का जाप करते हैं। जन्माष्टमी उत्सव के बाद दही हांडी का आयोजन अगले दिन मनाया जाता है।

शैव और वैष्णव समुदाय में जन्माष्टमी

वैष्णव समुदाय: वैष्णव समुदाय के लोग भगवान कृष्ण को विष्णु का अवतार मानते हैं और उनके जन्मदिन को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।

शैव समुदाय: शैव समुदाय के लोग भी जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं, हालांकि वे इसे उतनी धूमधाम से नहीं मनाते जितना वैष्णव समुदाय मनाता है।

जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

0Shares

नई दिल्ली, 21 अगस्त (हि.स.)। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि 12 वर्षों में इस साल सर्वाधिक 5.12 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने बाबा बर्फानी के दर्शन किये।

शाह ने यात्रा को सफल बनाने के लिए सभी सुरक्षा कर्मियों, श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं को बधाई दी।

अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट कर कहा, “श्री अमरनाथ जी की पवित्र यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुई। 52 दिनों तक चली इस पवित्र यात्रा में इस बार रिकॉर्ड 5.12 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने बाबा के दर्शन किये, जो कि बीते 12 वर्षों की सर्वाधिक संख्या है।”

उन्होंने आगे कहा, “इस यात्रा को सफल बनाने के लिए हमारे सभी सुरक्षा कर्मियों, श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं को बधाई देता हूं। श्रद्धालुओं की यात्रा को सुरक्षित व सुगम बनाने में आप सभी का अद्वितीय योगदान रहा है। बाबा सभी पर अपनी कृपा बनाये रखें। जय बाबा बर्फानी!”

उल्लेखनीय है कि पवित्र छड़ी मुबारक के दर्शन के साथ ही 52 दिन चली वार्षिक बाबा अमरनाथ यात्रा श्रावण पूर्णिमा पर संपन्न हुई थी।

0Shares

Chhapra: सावन माह की चौथी सोमवारी को जिले के शिवालयों और मंदिरों में शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रही।

सुबह से ही शिव भक्त शिवालय पहुंचकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की। शिवालयों में जलाभिषेक के लिए भक्तो ने कतारबद्ध होकर शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ भांग धतूरा और फूल के साथ पूजा अर्चना की।

इस दौरान पूरा मंदिर परिसर हर हर महादेव, जय शिव शंकर,बाबा भोलेनाथ की जय की नारों से वातावरण गुंजायमान रहा।

कई मंदिरों में कांवर में जल लेकर पैदल शिवालय पहुंच कर शिव भक्तों को शिवलिंग पर जलाभिषेक करते देखा गया। इधर सावन की चौथी सोमवारी को लेकर पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के विशेष इतजाम किए गए। सभी मंदिरों में पुलिस अधिकारियों के साथ पुलिस बलों की प्रतिनियुक्ति विधि व्यवस्था संधारण को लेकर की गई थी।

0Shares

महावीरी झंडा को लेकर निकला फ्लैग मार्च

पूर्वी चंपारण: महावीरी झंडे को लेकर गुरूवार को मोतिहारी शहर में फ्लैग मार्च निकाला गया। इस दौरान पुलिस पदाधिकारी एवं दर्जनों सुरक्षा बल शहर के विभिन चौक चौराहा से गुजरते हुए नगर थाना पहुँचे। डीएसपी सह नगर थानाध्यक्ष राकेश कुमार भास्कर के नेतृत्व में फ्लैग मार्च निकाला गया। जिसमें स्पष्ट रूप से संदेश दिया गया कि किसी तरह की गड़बड़ी करने वाले बख्शे नही जाएंगे।

महावीरी झंडे के दौरान सुरक्षा का व्यापक प्रबंध रहेगा और पूरे जुलूस का वीडियोग्राफी भी अनिवार्य किया गया है। जिसे सम्बंधित संगठन द्वारा कराया जाएगा। फ्लैग मार्च शहर के मीना बाजार , हेनरी बाजार , ज्ञानबाबू चौक आदि जगह से गुजरते हुए नगर थाना तक पहुंचा। जिसमे एसआई जब्बार हुसैन,श्रीराम राम , दिनेश ओझा,अफरोज आलम के अलावें अन्य पुलिस पदाधिकारी व पुलिस बल मौजूद रहे।

0Shares

तेजस्वी यादव ने सपरिवार पंचमुखी हनुमान मंदिर में की पूजा-अर्चना

पटना : राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने सावन की तीसरी सोमवारी पर पटना के राजवंशी नगर स्थित पंचरुपी हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना की। यहां तेजस्वी ने पत्नी राजश्री और बेटी कात्यायनी के साथ हनुमान जी की पूजा की। मंदिर के पुजारियों को दक्षिणा दी। पूजा के बाद तेजस्वी यादव ने पत्नी के साथ लोगों को भंडारा में भोजन परोसा।

तेजस्वी को देखने के लिए मंदिर में लोगों की भीड़ उमड़ गई। भंडारे में पत्नी राजश्री के साथ तेजस्वी यादव ने लोगों को पूड़ी -सब्जी पराेसा। तस्वीर में राजश्री भी लाेगाें काे पूड़ी पराेसते नजर आयी। इस दौरान उनकी एक वीडियो भी सोशल मीडिया तेजी से वायरल हो रही है। इस वीडियो में दिखा जा रहा है कि तेजस्वी यादव पंचरुपी हनुमान मंदिर में पूजा कर रहे हैं। पुजारी ने उन्हें माला पहनाया।

0Shares

– शाम को निकलेगी भगवान महाकाल की सवारी, तीन स्वरूपों में भक्तों को देंगे दर्शन

उज्जैन/भोपाल, 5 अगस्त (हि.स.)। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर की नगरी में आज सावन के तीसरे सोमवार को बाबा महाकाल की सवारी निकलने से पहले विश्व रिकॉर्ड बनाया गया। यहां महाकाल लोक के पास शक्ति पथ पर 1500 लोगों ने एक साथ 10 मिनट तक डमरू बजाया। इसके साथ ही उज्जैन का नाम सबसे अधिक लोगों के डमरू बजाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गया। गिनीज बुक से आए ऋषिनाथ ने इसका सर्टिफिकेट सांसद अनिल फिरोजिया, विधायक सतीश मालवीय और संतों को सौंपा।

उज्जैन में सावन के तीसरे सोमवार के अवसर पर महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। तड़के भस्म आरती में महाकाल का विशेष शृंगार हुआ। भस्म आरती के लिए रविवार-सोमवार की मध्यरात्रि 2.30 बजे महाकालेश्वर मंदिर के पट खोले गए। भस्म आरती के दौरान भांग, चंदन, सूखे मेवों और आभूषणों से बाबा महाकाल का राजा स्वरूप दिव्य शृंगार किया गया। भस्म आरती के 15 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। मंदिर में बाबा के दर्शन का सिलसिला रात 10.30 बजे तक चलेगा।

वहीं, सावन मास के प्रत्येक सोमवार को शाम चार बजे भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है। इसमें भगवान अवंतिकानाथ नगर का भ्रमण कर अपनी प्रजा का हाल जानते हैं। आज महाकालेश्वर मंदिर से अवंतिकानाथ चांदी की पालकी में चंद्रमौलेश्वर स्वरूप में सवार होकर निकलेंगे। साथ ही दो अन्य स्वरूपों में भी भक्तों को दर्शन देंगे। महाकाल का एक स्वरूप मनमहेश के रूप में हाथी पर सवार होगा, वहीं गरुड़ रथ पर शिव तांडव के रूप में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलेंगे। महाकाल मंदिर से शाम चार बजे सवारी शुरू होकर मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर पहुंचेगी।

महाकाल मंदिर प्रशासक मृणाल मीणा ने बताया कि आज एक साथ 1500 डमरू बजाने का विश्व रिकॉर्ड बना है। सवारी शुरू होने से पहले श्री महाकाल महालोक के सामने शक्ति पथ पर वादक भस्म आरती की धुन पर 10 मिनट की प्रस्तुति दी। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम ड्रोन तथा कैमरों से प्रस्तुति की निगरानी की। शक्ति पथ पर प्रस्तुति के बाद अब शाम को सभी डमरू वादक भगवान महाकाल की सवारी में भी शामिल होंगे।

0Shares

Chhapra:  जिला मुख्यालय सहित सुदूर ग्रामीण परिवेश में उत्साहपूर्ण व शांतिपूर्ण वातावरण में श्रावण सोमवारी मनाया जा रहा। चहुंओर बोलबम जय बाबा उद्घोष संग श्रावण माह की तृतीय सोमवारी को शिवालयों में जलाभिषेक जारी है।

श्रावण माह की तृतीय सोमवारी पर सोनपुर स्थित बाबा हरिहरनाथ मंदिर, शीलहौरी स्थित शीलनाथ मंदिर, मेहदार स्थित बाबा महेंद्रनाथ मंदिर, जनता बाजार स्थित ढोंढनाथ मंदिर, छपरा के धर्मनाथ मंदिर समेत सभी शिवालयों में भक्तों ने जलाभिषेक किया। इस अवसर पर मंदिर परिसर में मेला भी लगाया गया। जहां बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला आदि लगाए गए थे। 

    

0Shares