विश्व नृत्य दिवस विशेष: कत्थक के माध्यम से शास्त्रीय नृत्य को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहीं हैं अनीषा
Chhapra: विश्व नृत्य दिवस प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को मनाया जाता है। यह दिन नृत्य की वैश्विक महत्ता को रेखांकित करता है और दुनिया भर में विभिन्न नृत्य शैलियों के प्रति जागरूकता और सम्मान बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। इसके साथ ही नृत्य को एक सार्वभौमिक कला रूप के रूप में पहचान दिलाता है।
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में शास्त्रीय नृत्य एक अनमोल धरोहर है। इन नृत्य शैलियों में कत्थक विशेष स्थान रखता है, जो न केवल एक कला रूप है, बल्कि यह भारतीय आध्यात्मिकता, भक्ति और भावनात्मक अभिव्यक्ति का जीवंत माध्यम भी है।
आज की आधुनिक पीढ़ी जहाँ तकनीक और पश्चिमी प्रभावों के बीच बड़ी हो रही है, वहाँ इस शास्त्रीय परंपरा को जीवित रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। लेकिन समर्पित नृत्यगुरु, कलाकार और संस्थान इस चुनौती को अवसर में बदल रहे हैं। वे कत्थक को नई पीढ़ी के लिए सुलभ, आकर्षक और अर्थपूर्ण बना रहे हैं। सारण की युवा नृत्यांगना कुमारी अनीषा उन्हीं में से एक हैं।
महज 28 साल की उम्र में उन्होंने कई कला आयोजनों में अपनी प्रस्तुति दी है और सराहना बटोरी रहीं हैं। हिमेश चन्द्र मिश्रा व सुनीता मिश्रा की पुत्री अनीषा बतातीं हैं कि उन्होंने नृत्य की शिक्षा पंडित राजेश मिश्रा और गुरु बक्शी विकास से ग्रहण की। प्रयाग संगीत समिति से कत्थक नृत्य में प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की है। अनिशा ने छोटे उम्र में ही कई उपलब्धि हासिल की है। विश्व प्रसिद्ध सुबह-ए-बनारस समेत कई बड़े आयोजनों में कत्थक की प्रस्तुति दी। इसके साथ ही कई पुरस्कार और सम्मान भी अपने नाम किए। अनीषा बतातीं हैं कि उनका उद्देश्य न केवल नृत्य की प्रस्तुति करना है, बल्कि युवाओं में अनुशासन, अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक गर्व की भावना भी विकसित करना है।
कत्थक: एक कथा कहने वाली कला
कत्थक शब्द की उत्पत्ति ‘कथा’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘कहानी’। इस नृत्य शैली की शुरुआत प्राचीन कथावाचकों द्वारा हुई, जो कथा कहने के दौरान अभिनय और नृत्य का उपयोग करते थे। धीरे-धीरे यह कला विकसित हुई और आज इसे भारत की आठ प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों में एक माना जाता है।
कलाकारों द्वारा यह परंपरा सशक्त रूप में आगे बढ़ाई जा रही है। वे न केवल मंच पर प्रस्तुतियाँ दे रही हैं, बल्कि युवा छात्राओं को प्रशिक्षित कर एक सांस्कृतिक श्रृंखला का निर्माण कर रही हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी।
हम सब के लिए यह आवश्यक है कि इस सांस्कृतिक प्रयास का हिस्सा बनें। चाहे एक शिष्य के रूप में, दर्शक के रूप में या संरक्षक के रूप में। कत्थक केवल एक नृत्य नहीं, यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और गौरव का प्रतीक है।