तुर्की-सीरिया में आए भूकम्प से सबक लेने की जरूरत

तुर्की-सीरिया में आए भूकम्प से सबक लेने की जरूरत

प्रशांत सिन्हा 

दुनिया के दो देश इस वक्‍त एक बड़ी आपदा से जूझ रहे हैं। तुर्की और सीरिया में 6 फरवरी को आए विनाशकारी भूकम्प में अब तक पचास हजार से ज्‍यादा लोगों की मौत हो गई है और लाखों लोग घायल हो गए हैं।

विश्व स्वास्थ संघठन को आशंका है कि प्रभावितों की संख्या करोड़ों में जा सकता है। इस भीषण भूकम्प से विश्व में लोग दहल गए हैं। इसका एपिसेंटर जमीन के अंदर 18 किलोमीटर पर और रिक्टर स्केल पर 7.5 तीव्रता था। हालाकि तुर्की की भौगोलिक स्थिति के कारण यहां अक्सर भूकम्प आते रहते हैं। यहां 1999 में आए भूकम्प में 18000 लोगों की मौत हो गईं थी। उसके पहले 1939 में आए भयानक भूकम्प में 20 हजार से ज्यादा मौतें हुईं थीं जो उस समय के वहां के जनसंख्या के मुताबिक बहुत ज्यादा था। इस बार का भूकम्प 1939 और 1999 के भूकम्प को पीछे छोड़ता दिख रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि तुर्की ने अपने पिछले अनुभव से कोई खास सबक नहीं सीखा।

तुर्की, सीरिया में आए भूकम्प से आए त्रासदी से भारत को भी सबक सीखने की जरूरत है। इसका वजह यह है कि भूकम्प के लिहाज से भारत भी अति सक्रिय जोन में आता है। भारत में भी चार जोन ऐसे हैं जहां भूकम्प से भारी क्षति की संभावना है। इसमें दिल्ली एनसीआर क्षेत्र भी शामिल है।

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड ( बी आई एस ) ने भारत को चार सिस्मिक जोन में बांटा है। इसके अनुसार दिल्ली में यमुना किनारे और बाढ़ वाले क्षेत्रों के साथ पूर्वी दिल्ली के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भूकम्प से सर्वाधिक क्षति संभव है। केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार भूकम्प के तेज झटकों के कारण दिल्ली एनसीआर क्षेत्र समेत चार जोन को भारी क्षति हो सकती है जिसमे देश के कई हिस्से शामिल है। पिछले दो वषों में दिल्ली एनसीआर समेत देश के दूसरे राज्यों में भूकम्प के दर्जनों झटके महसूस किए गए थे। भविष्य में भारत में भूकम्प के खतरे से मुंह नही मोड़ा जा सकता। भले ही दावे कुछ भी किए जाएं असलियत यह है कि भूकम्प के खतरे से निपटने की तैयारी में हम बहुत पीछे हैं। सरकारें चेतावनी देकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लेती है। भुज, लातूर और उत्तर काशी में आए भूकम्प के बाद आशा बंधी थी कि सरकार कोई कदम उठाएगी किंतु शहरों में बेतहाशा और भ्रष्टाचार के आड़ में बन रहे इमारतों से ऐसा नहीं लगता कि सरकार इसपर बहुत ज्यादा गंभीर है।

जैसे सभी को ज्ञात है कि भूकम्प को आने से कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन जापान की तर्ज़ पर बचने की प्रयास तो किया जा सकता है। हमे और हमारी सरकार को देरी से जागने की आदत है। सम्बन्धित संस्थाएं द्वारा समय समय पर बचाव के प्रस्ताव दी जाती रहती हैं लेकिन इसपर कोई अमल नहीं करता। भूकम्प से होने वाले नुकसान को टालने के लिए ” प्री डिजास्टर मैनेजमेंट ” काफी ज़रूरी है।

0Shares
A valid URL was not provided.

छपरा टुडे डॉट कॉम की खबरों को Facebook पर पढ़ने कर लिए @ChhapraToday पर Like करे. हमें ट्विटर पर @ChhapraToday पर Follow करें. Video न्यूज़ के लिए हमारे YouTube चैनल को @ChhapraToday पर Subscribe करें