शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष की आयु में हुए ब्रह्मलीन

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष की आयु में हुए ब्रह्मलीन

-प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, संघ प्रमुख भागवत समेत अन्य कई हस्तियों ने जताया शोक
-नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में ली अंतिम सांस
-सोमवार शाम पांच बजे आश्रम में ही समाधि दी जाएगीः ब्रह्मविद्यानंद

भोपाल: ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया। उन्होंने 99 वर्ष की आयु में अपराह्न करीब 3.30 बजे नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। वे लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। बताया गया है कि हृदयगति रुकने से उनका निधन हुआ। उनके निधन से श्रद्धालुओं और संत समाज में शोक की लहर फैल गई। उनके शिष्य ब्रह्मविद्यानंद ने बताया कि सोमवार शाम 5 बजे उन्हें आश्रम में ही समाधि दी जाएगी। शंकराचार्य के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष, केंद्रीय गृह मंत्री, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत समेत कई हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शोक संदेश में कहा, “द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति।”

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया और कहा कि वे आध्यात्मिक पुनरूत्थान तथा सामाजिक जनजागरण के सशक्त हस्ताक्षर थे।

केन्दीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने शोक संदेश में कहा कि वे सनातन संस्कृति व धर्म के प्रचार-प्रसार को समर्पित उनके कार्य सदैव याद किए जाएंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। दोनों की ओर से जारी संयुक्त संदेश में कहा गया है कि द्वारका के शारदा पीठ के शंकराचार्य जी के ब्रह्मलीन होने से धर्म क्षेत्र के तपस्वी एवं परम ज्ञानी आचार्य अब अपने मध्य सशरीर नहीं रहे। समस्त हिंदू समाज एवं समूचा राष्ट्र उनके मार्गदर्शन से वंचित रहेगा।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी के ब्रह्मलीन होने का समाचार दुखद है। उन्होंने हमेशा धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कई अन्य नेता उनके अनुयायी थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अपनी बेबाक बयानी के लिए भी जाने जाते थे। उनके निधन की खबर से संत समाज में भी शोक छा गया। श्रद्धालुओं-जनप्रतिनिधियों ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया। वीडी शर्मा ने ट्वीट कर कहा कि ज्योतिर्मठ एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य पूज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के देवलोक गमन का दुखद समाचार मिला। उनका अवसान धर्म जगत के लिए बड़ी क्षति है। ईश्वर दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में विश्रांति प्रदान करें। पूज्य शंकराचार्य जी के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन्।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रूप में उभरे थे। वे सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। स्वामी जी आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी। हाल ही में हरियाली तीज के दिन उनका 99वां जन्मदिन मनाया गया था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 02 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में हुआ था। उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू कीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद और शास्त्रों की शिक्षा ली। उस दौरान भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी।

1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली, जेल भी गए

वर्ष 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया। महज 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा काटी। वे करपात्री महाराज के राजनीतिक दल रामराज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। वर्ष 1950 में वह दंडी संन्यासी बने और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।

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