छपरा (सुरभित दत्त): बेहतरीन सैंड आर्ट्स के माध्यम से अपनी कला का लोहा मनवा चुके सारण के कलाकार अशोक कुमार इन दोनों एक नए अभियान में जुट गए है. अशोक शहर को स्वच्छ और सुंदर दिखाने की कोशिश में जुट गए है.

अशोक कुमार बताते है कि उनकी इच्छा पेंटिंग्स को शहर के खाली पड़े दीवारों पर बनाने की है, ताकि गुजरने वाले लोगों को तस्वीरों के माध्यम से एक संदेश मिले और शहर सुंदर भी लगे. 

अशोक ने बताया कि उनकी इच्छा है कि ‘स्वच्छ छपरा, रंगीन छपरा’ के तहत प्रत्येक चौक-चौराहे पर विषयात्मक पेंटिंग बनाया जाए. जो हर विषय पर आधारित हो. जैसे स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सड़क सुरक्षा आदि. इसके माध्यम से राहगीरों को आसानी से मैसेज पहुँचाया जा सकेगा और लोग जागरूक भी होंगे. वही शहर की दीवाले जो बैनर पोस्टर लगे होने से गन्दी दिखती है स्वच्छ दिखने लगेंगी.

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अपने इस अभियान को बेहतर और बृहद करने के लिए अशोक इन दिनों पदाधिकारियों से भी मिलने की योजना बना रहे है. अशोक कुमार ने शहर के प्रबुद्ध लोगों से भी इस अभियान में सहयोग करने की अपील की है.

अशोक ने फिलहाल शहर के साधनापुरी में अपने द्वारा चलाये जा रहे आर्ट स्कूल के करीब एक पेंटिंग बनाई है. जिसके माध्यम से उन्होंने भूर्ण हत्या को रोकने और लड़कियों को आज़ादी देने के मेसेज को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत किया है. इसमें उन्होंने चेन रूपी बंधन के भीतर से झांकती एक युवती के आँख को प्रदर्शित किया है, जो बाहरी दुनिया को देखने और समझने के लिए इच्छुक है. 

अशोक के इस कार्य में उनके कुछ मित्र और आर्ट स्कूल के छात्र पवन, राजीव ,उजाला ,संस्कृति, कल्पना का सहयोग मिल रहा है.

बेशक अशोक कुमार की यह सोच शहर को स्वच्छ दिखाने में एक कारगर कदम होगी. शहर को सूंदर देखने के हर इच्छुक लोग जरूर ही इस अभियान में अशोक का साथ देंगे.

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छपरा (सुरभित दत्त): कई बार ऐसे अवसर मिले जब नदी के रास्ते आरा जाने का मौका मिला. आरा शहर में रिश्तेदारों से मिलने तो कभी किसी और प्रयोजन से. पटना जाकर ट्रेन से आरा तक का सफ़र काफी परेशान भरा रहता था. मात्र 20 किलोमीटर और एक नदी का फासला बढ़ कर 130 किलोमीटर का हो जाता था. अब यह परेशानी दूर होने वाली है और जल्द ली लोग सड़क मार्ग से आरा तक का सफ़र तय करेंगे.

बदलते समय के साथ पुल की आवश्यकता महसूस हुई. सरकार ने इसे बनाने का निर्णय लिया. अब यह पुल बन कर तैयार है और रविवार से इस पर वाहन चलने लगेंगे. फिलहाल छोटे वाहनों को ही पुल पर चलने की अनुमति दी जाएगी.

11 जून को बहुप्रतीक्षित छपरा-आरा पुल का उद्घाटन है. ऐसा होने से बिहार के दो बड़े जिले सारण और भोजपुर आपस में सीधे जुड़ जायेंगे. इस पुल को उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार से जोड़ने में गाँधी सेतु के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है.

विकास ने नए मार्ग प्रशस्त होगे. दिलों से दिल जुड़ेंगे. रिश्ते अब आसानी से निभाए जा सकेंगे. दूल्हे अब अपनी बारात आसानी से इस जिले से उस जिले तक ले जा सकेंगे. व्यापार बढेगा.

यह पुल आरा की ओर बबुरा में और छपरा की ओर डोरीगंज में नीचे उतर रहा है.

इस पुल के बन जाने से सारण जिले के दक्षिणी छोर पर स्थित भोजपुरी से शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का गाँव अब सड़क मार्ग से जुड़ जायेगा. हालाकि फिलहाल इस पर काम भूमि अधिग्रहण के बाद होगा. बाढ़ आने पर यहाँ के कई गाँव जिले से कट जाते थे और नाव ही एक मात्र आवागमन का साधन होता था. पुल बन जाने से इन क्षेत्रों के लोगों तक भी सुविधाएँ पहुंचेगी.

छपरा वाले बेलग्रामी और आरा वाले खा सकेंगे सिंघारा

गंगा नदी पर बने छपरा-आरा पुल से केवल दो जिले ही नहीं जुड़ेंगे बल्कि एक संस्कृति जुड़ेगी. लोग अब आसानी से इस जिले से उस जिले तक का सफ़र कर सकेंगे. भोजपुर की लोकप्रिय मिठाई बेलग्रामी अब छपरा के लोग तुरंत जाकर खा सकेंगे वही आरा के लोग छपरा की फेमस मिठाई सिंघारा खा सकेंगे. 

इन दोनों क्षेत्रों के विकास की नयी परिभाषा इस पुल के माध्यम से लिखी जाएगी. दो बड़े भोजपुरी क्षेत्र की दूरी यह पुल कम कर रहा है.

छपरा-आरा पुल एक नजर में

छपरा-आरा पुल के निर्माण में 887 करोड़ रुपये की लागत आई है. पुल की कुल लम्बाई 4 किलोमीटर है. जबकि आरा की ओर 16 किलोमीटर एप्रोच रोड और छपरा कि ओर 01 किलोमीटर का एप्रोच रोड है.

छपरा: एक एक ईंट जोड़ कर दूसरों के घरों को बनाने वाले मजदूर खुद प्रतिदिन घर में चूल्हा जले इसलिए सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करते है.

सुबह-सुबह शहर के कई ऐसे जगह है जहां मजदूर इकट्ठे होकर मजदूरी ढूंढते दिखते है. प्रतिदिन सुबह शुरू होने वाला यह संघर्ष शाम में घर के चूल्हे को जलाने और बच्चों को पालने के लिए होता है. किसी दिन मजदूरी नही मिली तो फिर उस दिन बच्चे भूखे सोने पर मजबूर हो जाते है.

देश में मनरेगा जैसी मजदूरी की गारेंटी देने वाली योजना भी चल रही है, पर मजदूरों को इसका कितना लाभ मिलता है यह उन जगहों पर जाकर देखा जा सकता है जहां रोजाना ये काम की तलाश में घंटों खड़े रहते है. लोग आते है मजदूरी का मोल भाव होता है, अगर बात बनी तो घर मे चूल्हा जलेगा नही तो नही.

बात जब मजदूर दिवस की हो रही है तो यह कहने में कोई संकोच नही होगा कि यह एक मात्र ऐसा दिवस है जिस दिन जिसके लिए कार्यालयों में अवकाश होता है वह काम कर रहा होता है. अगर मजदूर दिवस के दिन कोई मजदूर छुट्टी मनाए तो उसके घर शायद चूल्हा ना जले.

इस दिन बड़े आयोजन होते है, मजदूरों के संघर्ष और अन्य मुद्दों पर केवल बातें होती है, कार्यक्रमों का आयोजन होता है. मजदूरों के लिए बड़े बड़े बातें कही जाती है. किन्तु सच्चाई यह है कि मजदूर अपने हाल पर बेहाल है.

दुनिया के कई देश 1 मई को मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है.

मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था. मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.

हर साल की तरह आज भी सत्ता जहाँ मजदूरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अपनी पीठ थपथपा आत्ममुग्ध होगी तो वही विपक्ष और बुद्धिजीवी समाज मजदूरों की दुर्दशा, उनके सम्मान पर लच्छेदार बाते कर खुद को गौरवान्वित करेगा.

आज सार्वजनिक छुट्टी होने के वजह से अधिकारी और नेता तो आराम करेंगे पर मजदूर, मजदूरी करने जरूर जायेगा क्योकी अगर वह भी छुट्टी मनाये तो शायद उसके घर में शाम में चूल्हा न जल सके.

जी हां, पॉकेट मनी को दुगना करने की चक्कर मे युवा पीढ़ी अंधकार की ओर बढ़ती जा रही हैं.हाल ही में शुरू हुए इंडियन प्रीमियर लीग इसका ताजा उदाहरण है. आईपीएल की पिच पर जहां खिलाड़ी जीत ओर हार के लिए मेहनत करते है वही उनकी खेलो पर सट्टा बाज़ार गुलज़ार रहता है.

आईपीएल के इन दो महीनों में कितने बनते है तो कई लुट जाते है. जनाब, ये लत ही ऐसा है. जीत के बाद और लगाने की जिद, हारने के बाद जीत की आस में कई सुरमा चित हो गये.

ज़माना डिजिटल हो गया है और बेटिंग के नए तरीके भी सटोरी आजमा रहे है. कॉल को छोड़ व्हाट्स अप्प पर ही काम चला रहे है. नशा ऐसा की नई युवा पीढ़ी की बढ़ती संख्या दिन प्रतिदिन इसकी चपेट में आती दिख रही है. अपने पॉकेट मनी को दुगना करने की चाहत में युवा किसी और को नही अपने आप को धोखा दे रहे है.

सटोरियों की माने तो इस बार आईपीएल में कुछ टीम को छोड़ बाकि टीम पर भाव बराबर का है. इनका कहना है कि इस वर्ष सभी मुकाबले रोमांचक हो रहे है. किसी को कम आंकना मुश्किल है. कोई भी टीम कभी भी जीत सकती है और कभी भी हार सकती है, 20-20 का यह मैच है एक प्लेयर भी मैच को जीता ले जाता है.

लेकिन कुछ पसंदीदा टीम है जैसे बंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई, कोलकाता जिनपर खूब भाव चल रहा है. आईपीएल शुरू होते ही चाय की दुकानों से लेकर कोचिंग से छूटने के बाद इसी की चर्चा जोरों पर है.मैच की शुरुआत के साथ टीवी पर चिपक जाते है और तब शुरू होता है 13,14,15 का खेल. मैच की समाप्ति किसी के लिए खुशी तो किसी के लिए गम दे जाती हैं.

नई दिल्ली: आईपीएल सीजन 10 की शुरुआत  5 अप्रैल से होनी है लेकिन आईपीएल की खुमारी देशवासियों पर सर चढ़ कर बोल रही है. बच्चे हो या बूढ़े, घर की महिलाएं हो या देश के युवा सभी IPL का एक साल सिद्दत से इंतज़ार करते है.

IPL तो 5 अप्रैल से शुरू हो रहा है लेकिन IPL वाली धुन ज्यादातर सुनने को मिल रही है. कोई अपने मोबाइल का रिंगटोन लगा चूका है तो कोई IPL वाली धुन को डाउनलोड करने में लगा है.

खेल प्रेमियों में भारत की टेस्ट सीरीज जीत की चर्चाएँ नही हो रही अगर चर्चाएँ हो भी रही है तो है IPL और हो भी क्यूँ ना, क्यूंकि इंडिया का त्योहार जो आ रहा है.

हमारे पाठकों को उनके शहर से जोड़े रखने की अपनी संकल्पना में हम प्रत्येक पर्व, त्योहार में तस्वीरों के माध्यम से उन्हें अपने लोगों से जुड़ने का मौका देते है. ऐसे में रंगों के त्योहार होली के अवसर पर देश, दुनिया में रहने वाले हमारे सम्मानित पाठकों ने हमें अपनी बेहतरीन तस्वीरें भेजे है.

आइये देखे तस्वीरों को…

 

अलोक सिंह, कोलकाता
अलोक सिंह, कोलकाता
विशाल सिंह राठौर
विशाल सिंह राठौर, छपरा 
डॉ कमलेश
डॉ कमलेश, पटना 
सुमित सिंह चौहान
सुमित सिंह चौहान
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कुमार राज, छपरा
धर्मेन्द्र रस्तोगी
धर्मेन्द्र रस्तोगी, भगवानपुर, सिवान 
नवीन सिंह परमार, सिवान
नवीन सिंह परमार, सिवान
नवीन सिंह परमार, सिवान
नवीन सिंह परमार, सिवान
अमित राजपूत
अमित राजपूत

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अमित राज
अमित राज

 

अमित आर्यन
अमित आर्यन
रंधीर सिंह
रंधीर सिंह
सोनू ओझा
सोनू ओझा
अली मिर्ज़ा
अली मिर्ज़ा
अली मिर्ज़ा
अली मिर्ज़ा
शेखर कुमार सिंह, मशरख
शेखर कुमार सिंह, मशरख

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धर्मेन्द्र रस्तोगी
धर्मेन्द्र रस्तोगी
रवि राज
रवि राज
अक्षय रंजन
अक्षय रंजन
मनीष कुमार ओझा
मनीष कुमार ओझा

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राहुल राज अपने दोस्तों के साथ
राहुल राज अपने दोस्तों के साथ

 

 

छपरा टुडे
छपरा टुडे
डॉ कमलेश
डॉ कमलेश
आदित्य भास्कर
आदित्य भास्कर
विक्की कुमार, जोगीनिया कोठी
विक्की कुमार, जोगीनिया कोठी
राजीव
राजीव
धर्मेन्द्र रस्तोगी
धर्मेन्द्र रस्तोगी
चन्दन सिंह
चन्दन सिंह
चन्दन सिंह
चन्दन सिंह
सोनू ओझा
सोनू ओझा
अनुराग, राजस्थान
अनुराग, राजस्थान

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अलोक सिंह, कोलकाता
अलोक सिंह, कोलकाता
अक्षय किशोर अपने फ्रेंड के साथ
अक्षय किशोर अपने फ्रेंड के साथ
रवि ननद कुमार
रवि ननद कुमार
सौरभ सिंघानिया
सौरभ सिंघानिया

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सुमित सिंह चौहान
सुमित सिंह चौहान

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आकश कुमार
आकश कुमार
कुमार राज, छपरा
कुमार राज, छपरा
रोहित सिंह परमार, सिवान
रोहित सिंह परमार, सिवान

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अभिषेक गुप्ता, छपरा
अभिषेक गुप्ता, छपरा
विजय कुमार सिंह
विजय कुमार सिंह
राजीव सिंह अपने पुरे परिवार के साथ
राजीव सिंह अपने पुरे परिवार के साथ
प्रकाश गुप्ता, अहमदाबाद
प्रकाश गुप्ता, अहमदाबाद

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राठौर प्रेम सिंह
राठौर प्रेम सिंह

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अभिषेक गुप्ता, छपरा
अभिषेक गुप्ता, छपरा

 

 

 

(कबीर की कलम से)

पढ़ते के साथ आपको अपने बचपन के दिनों की याद जरुर ताज़ा हो गई होंगी. अब ये खेल देखने को भी नही मिलता. जब दोस्त-साथी मिलते तो एक बार इस खेल की चर्चा जरुर हो जाती है. भले ही मोबाइल के गेम ने इन खेलों की जगह ले ली है. जब मोबाइल नही हुआ करते थे तो इस प्रकार के गेम हम खेला करते थे, लेकिन मोबाइल के गेम ने बहुत सारे खेलों को लुप्त के कागार पर पहुंचा दिया है.

अब खेलने के लिए मैदान भी नही रहे और जहाँ ये खेला करते थे वहां कंक्रीट की इमारतों ने जगह ले लिया है.

इस खेल में एक खिलाडी को छोड़ सभी गोल घेरे में बैठ जाते थे और एक जिसके हाथ में रुमाल होता था, वो गोल घेरे का चक्कर लगते हुए चुपके से किसी के पीछे रुमाल गिरा देता था. यदि यह खिलाड़ी सावधान है तो रुमाल उठा लेता था और चक्कर लगाने वाले की जगह लेता था ताकि वह किसी और खिलाडी के पीछे गमछा रख सके. लेकिन यदि चक्कर किसी खिलाडी के पीछे रुमाल रख सके. खिलाडी दौड़ाते हुए तब तक पिटता था जब तक वह अपनी जगह ना ले ले. इस प्रकार समाप्त होने तक ये खेल चलता रहता था.

छपरा: 90 के दशक का चंद्रकांता धारावाहिक आखिर कौन भूल सकता है. धारावाहिक के सभी पात्र आज भी लोगों के मन मस्तिष्क में है. इस धारावाहिक के सबसे चर्चित पात्र ‘क्रूर सिंह’ को और उनकी ‘यक्कू’ बोलने की कला को लोग आज भी याद रखे हुए है.

छपरा टुडे डॉट कॉम के संपादक सुरभित दत्त ने ‘क्रूर सिंह’ का चर्चित पात्र निभाने वाले छपरा के लाल और जाने माने कलाकार अखिलेन्द्र मिश्रा से खास बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश…  

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आप छपरा जैसे छोटे शहर से निकल कर बॉलीवुड पहुंचे और अपनी पहचान बनाई, अपने सफ़र के बार में कुछ बताये.

थियेटर के माध्यम से काम शुरू किया. सभी किरदार में प्रयोग किया. कोशिश थी कि किरदार को जीवंत किया जाए. सभी रोल में कुछ नया करने की कोशिश की पहली फिल्म सलमान खान के साथ वीरगति की जिसमे इक्का सेठ की भूमिका निभाई, सरफ़रोश में मिर्ची सेठ, गंगाजल में डीएसपी भूरेलाल, लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह में चंद्रशेखर आज़ाद का किरदार निभाया. आज़ाद के बारे में पढाई की उनके जैसा कैरेक्टर निभाने और दिखने के लिए वजन बढाया. यश चोपड़ा के साथ वीर-जारा की, आमिर के साथ लगान फिल्म किया. हाल में ऋतिक रौशन के साथ काबिल फिल्म की. 

आज के दौर में फिल्म में कैरियर बनाने वालों को सन्देश

एक्टर बनने के लिए थियेटर जरुरी है. थियेटर से व्यक्तित्व में निखार आता है. नयी पीढ़ी को जल्दी बाज़ी ना करते हुए थियेटर से जुड़ कर फिल्म में आने से अभिनय कला में निखर आता है. एक्टिंग 400 मीटर की दौर नहीं बल्कि मैराथन दौड़ है.

छपरा में शुरुआत कैसे हुई.

जिला स्कूल से मैट्रिक की पढाई करने के बाद राजेन्द्र कॉलेज से फिजिक्स में ऑनर्स की पढाई की. पैतृक गाँव दरौधा थाना क्षेत्र के कोल्हुआ में है, जो अब सीवान जिला में आता है. दशहरा की छुट्टियों में गाँव जाते थे वहां नाटक का मंचन होता था. पहली बार ‘गौना के रात’ पहला भोजपुरी नाटक आठवीं क्लास में पढ़ते हुए किया. इसके बाद छपरा में अमेच्योर ड्रामेटिक एसोसिएशन के अंतर्गत छपरा में पहला हिंदी नाटक शरद जोशी का ‘एक था गधा उर्फ़ अल्लाह दाद खान’ किया जिसका निर्देशन रसिक बिहारी वर्मा ने किया था. उन्होंने अपने पुराने मित्रों को याद करते हुए उनके योगदान की चर्चा की.

यहाँ देखे पूरा वीडियो:

एक्टर बनने का सफ़र

मुंबई में पहुँच कर इप्टा से जुड़ा. जहाँ थियेटर की बारीकियों को सीखा. एक संकल्प था कि तब तक एक्टिंग नहीं करूँगा जब तक सामने वाले एक्टर के आँखों में आंखे डाल कर बातें ना कर सकूँ. उन्होंने बताया कि ऐसा ही हुआ और अमिताभ बच्चन के साथ फिल्मे भी की.

उन्होंने बताया कि कैरियर की तलाश में कई परीक्षाएं दी. साथ के मित्रों का हुआ पर शायद मेरे किस्मत में एक्टर बनना था इसलिए ऐसा हुआ. मुंबई जाने का जब सोचा तो पिता से तो नहीं माँ से अपनी इच्छा बताई. माँ को किसी तरह समझा बुझा कर मुंबई पहुंचे जहाँ आज भी संघर्षरत है. उन्होंने बताया कि आपतक सभी A ग्रेड और मीनिंगफुल फ़िल्में की है.

भोजपुरी फिल्मों पर प्रतिक्रिया
भोजपुरी फिल्म एक तरह की बन रही है. ऐसी फ़िल्में बने की सभ्य लोग भी फिल्म दे सकें. भोजपुरी सिनेमा परम्पराओं को छोड़ रही है. रीमेक बन रहा है.

पाठ्यक्रम में सिनेमा की पढाई शामिल हो
उन्होंने कहा कि सिनेमा को पाठ्यक्रम में पढाया जाए. सिनेमा अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने का एक माध्यम है. सिनेमा को मनोरंजन मात्र का साधन नहीं मानना चाहिए.

उन्होंने युवा पीढ़ी को सन्देश देते हुए कहा कि सभी को अपने पर पूर्ण विश्वास करते हुए संकल्प के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए.

(सुरभित दत्त) 

भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने नयी कामयाबी हासिल की है. वैज्ञानिकों ने एक साथ 104 सेटेलाइट लॉन्च कर दुनिया को अपनी क्षमता का अहसास करा दिया है. इसरो ने एक बार में सेटेलाइट लॉन्च का जो शतक जड़ा है उसे अभी तक दुनिया का कोई देश नहीं कर सका है.

इसके पहले रूस ने एक साथ 37 सेटेलाइट लॉन्च का रिकॉर्ड बनाया था जिसे भारत ने तिगुने अंतर से पीछे कर दिया है. इस सफलता के पीछे इसरो के वे सभी वैज्ञानिक है जो इस मिशन पर काम कर रहे थे. साथ ही पूर्व वैज्ञानिकों ने जो नीव रखी थी उसे अब मजबूती प्रदान करते हुए भारतीय वैज्ञानिक दुनिया में अपनी नयी पहचान बना रहे है.

यह भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत का ही नतीजा है कि अमेरिका का नासा भी अब अपने सेटेलाइट लॉन्च के लिए भारत की तरफ देखता है.

हर कामयाबी ये कहती है कि मंज़िलें और भी हैं. ऐसे में इसरो अब अपने नए मिशन पर जुट चूका है. जिसमे री-यूजेबल एंट्री व्हीकल के विकास आदि शामिल है. भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिक आसमान की नयी उचाईयों को छूने को बेकरार है. वह दिन दूर नहीं जब भारत विश्व शक्ति के रूप में उभरेगा.

छपरा/खैरा (सुरभित दत्त): मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निश्चय यात्रा पर मंगलवार को नगरा प्रखंड के खैरा रामपुर कला दलित बस्ती पहुंचे. उन्होंने यहाँ पहुँचकर चल रही हर घर नल का जल, हर घर पक्की गली और नालियां, हर घर बिजली लगातार, शौचालय निर्माण घर का सम्मान योजनाओं का निरीक्षण किया. 

निरीक्षण के दौरान जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जलंधर मांझी के घर पहुंचे तो उन्हें देख कर परिवार के सदस्यों के चेहरे पर ख़ुशी झलक गयी. मुख्यमंत्री ने घर में लगाये गए नल और शौचालय को देखा. साथ में चल रहे जिलाधिकारी दीपक आनन्द उन्हें जानकारी दे रहे थे.

घर के सदस्यों ने उन्हें धन्यवाद कहा और उनके कार्य की सराहना की. घर में पहुँचने पर परंपरा के अनुसार जलंधर मांझी की माँ देवपति कुंवर ने उनका मुंह मीठा कराना चाहा. मुख्यमंत्री ने उन्हें निराश ना करते हुए मुंह मीठा किया.

घर के सदस्यों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि शौचालय का निर्माण आप सभी की सुविधा के लिए हुआ है इसका प्रयोग जरूर कीजियेगा. आपकी सुविधा के लिए ही सरकार योजना चला रही है. jl

इस दौरान जलंधर मांझी का पूरा परिवार खुश दिखा माँ, पत्नी और बेटियों के अपने घर सूबे के मुखिया का स्वागत मिलकर किया.

 

(सुरभित दत्त)

छपरा: पतंगबाज़ी का क्रेज इन दिनों युवाओं और बच्चों में देखा जा रहा है. हर साल सर्दियों के शुरुआत से ही बच्चों में पतंबाज़ी का खुमार चढ़ जाता है. शहर के लगभग हर घर के छतों पर युवा पतंगबाज़ी करते दिखते हैं.

वाह क्या काटा है!, जैसे बोल बच्चों से सुनाई पड़ने लगते है. आसमान में पेंच लड़ती है और सफलता मिलने पर इस वाक्य को लड़के जोर से चिल्लाते है. आपने भी जरुर सुना होगा.

पतंगबाज़ी का यह सिलसिला सूर्य के उत्तरायण यानि मकर संक्रांति (खिचड़ी) तक चलता है. पतंग उड़ाने के लिए ज़रूरी मांझा, पतंग और लटाई की इन दिनों बाज़ारों में मांग है. बैन के बाद चाईंनीज़ धागे की जगह भारतीय धागों ने  ले ली है. वहीं धागे, लटाई और पतंग की खरीदारी के लिए युवा दुकानों पर पहुँच रहे हैं.

वर्षों से पतंगों का काम करते आ रहे मुन्ना बाताते हैं कि आधुनिक होती दुनिया के साथ- साथ जब मनोरंजन के कई साधन आ गए हैं. पतंगबाज़ी से जुड़े पारंपरिक व्यवसाय इसके प्रभाव में आ गये हैं. पहले की तुलना में व्यवसाय में काफी गिरवाट आ गई है. जिस से पतंग बनाने वाले के रोज़ी रोजगार पर असर पड़ा है.

वही भगवान बाजार में पतंग, लटाई और धागे की दूकान चला रहे आकाश कुमार ने बताया कि पतंगों की खरीदारी के लिए युवा उनकी दुकान पर पहुँच रहे है. हालाकि पहले की तुलना में कम लोग पतंगबाजी कर रहे है. आकाश ने बताया कि अब केवल मकर संक्रांति के दिन जमकर पतंगबाजी होती है. आम दिनों में एक्का दुक्का लोग ही पतंग खरीदने पहुंचते है.

2 रुपये से लेकर 15 रुपये तक के पतंग

पतंगबाजी के शौक के लिए पतंगों की खरीदारी करने पहुँच रहे युवाओं को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है. इस साल पतंगों के दामों में इजाफा हुआ है. पतंग 2 रुपये से लेकर 15 रुपये तक की बिक रही है. कुछ खास बड़े साइज़ के पतंगों के दाम उनके साइज़ के अनुसार ज्यादा भी है.

चाइनीज धागों की जगह भारतीय धागों की बिक्री

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पतंगबाजी का नाम आते ही पिछले कुछ दिनों से चाइनीज धागों का जिक्र होने लगता है. भारत में इन धागों पर लगे प्रतिबंध के बाद अब बाजारों में चाइनीज टाइप भारतीय धागे दिख रहे है. ये धागे दिखने में चाइनीज धागों के जैसे ही है पर इनका निर्माण भारत में हुआ है.

लकड़ी की जगह प्लास्टिक की लटाई

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पतंगबाजी के लिए लटाई भी जरुरी घटक है. ऐसे में बाज़ार में पहले बिकने वाली लकड़ी की लटाई की जगह अब प्लास्टिक की लटाई ने ले ली है. हालाकि लकड़ी के लटाई आज भी पतंगबाजों की पहली पसंद है. पर नए उत्साही बच्चे प्लास्टिक की लटाई से पतंगबाजी का मज़ा ले रहे है. प्लास्टिक की लटाई लकड़ी की लटाई की तुलना में सस्ती बिक रही है.

छपरा शहर में लोग पहले खूब पतंबाज़ी करते थे. आलम यह रहता था कि आकाश में केवल पतंग ही पतंग दिखाई पड़ते थे पर अब समय बदला है और उसके साथ साथ लोगों के मनोरंजन के साधन भी बदल गए हैं.

छपरा(कबीर): पिछले कई माह से आसमान छू रही दाल की कीमतों में कमी आयी है. यूँ कहें कि चना दाल को छोड़ और सभी दालों के अच्छे दिन आ गये है.

आम आदमी के थाली की रौनक बढ़ाने वाला दाल गायब होता जा रहा था. लेकिन अब दाम में कमी आने से रौनक लौटती दिख रही है. मध्यम वर्गीय परिवार ने राहत की सांस ली है.

किराना दुकानदार ने बताया कि चना दाल को छोड़ अन्य दालों के कीमतों में भारी गिरावट आई है. 110 रूपये प्रति किलो बिकने वाला अरहर दाल अब 75 रूपये प्रति किलो बिक रहा है. कुछ माह पहले 120 रूपये बिकने मसूर दाल 65 रूपये प्रति किलो बिक रहा है.वहीँ मूंग दाल 110 रूपये प्रति किलो बिक रहा है.