(कबीर की कलम से)
पढ़ते के साथ आपको अपने बचपन के दिनों की याद जरुर ताज़ा हो गई होंगी. अब ये खेल देखने को भी नही मिलता. जब दोस्त-साथी मिलते तो एक बार इस खेल की चर्चा जरुर हो जाती है. भले ही मोबाइल के गेम ने इन खेलों की जगह ले ली है. जब मोबाइल नही हुआ करते थे तो इस प्रकार के गेम हम खेला करते थे, लेकिन मोबाइल के गेम ने बहुत सारे खेलों को लुप्त के कागार पर पहुंचा दिया है.
अब खेलने के लिए मैदान भी नही रहे और जहाँ ये खेला करते थे वहां कंक्रीट की इमारतों ने जगह ले लिया है.
इस खेल में एक खिलाडी को छोड़ सभी गोल घेरे में बैठ जाते थे और एक जिसके हाथ में रुमाल होता था, वो गोल घेरे का चक्कर लगते हुए चुपके से किसी के पीछे रुमाल गिरा देता था. यदि यह खिलाड़ी सावधान है तो रुमाल उठा लेता था और चक्कर लगाने वाले की जगह लेता था ताकि वह किसी और खिलाडी के पीछे गमछा रख सके. लेकिन यदि चक्कर किसी खिलाडी के पीछे रुमाल रख सके. खिलाडी दौड़ाते हुए तब तक पिटता था जब तक वह अपनी जगह ना ले ले. इस प्रकार समाप्त होने तक ये खेल चलता रहता था.