सिनेमा परम्पराओं और संस्कृति का विस्तार: अखिलेन्द्र मिश्रा

सिनेमा परम्पराओं और संस्कृति का विस्तार: अखिलेन्द्र मिश्रा

छपरा: 90 के दशक का चंद्रकांता धारावाहिक आखिर कौन भूल सकता है. धारावाहिक के सभी पात्र आज भी लोगों के मन मस्तिष्क में है. इस धारावाहिक के सबसे चर्चित पात्र ‘क्रूर सिंह’ को और उनकी ‘यक्कू’ बोलने की कला को लोग आज भी याद रखे हुए है.

छपरा टुडे डॉट कॉम के संपादक सुरभित दत्त ने ‘क्रूर सिंह’ का चर्चित पात्र निभाने वाले छपरा के लाल और जाने माने कलाकार अखिलेन्द्र मिश्रा से खास बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश…  

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आप छपरा जैसे छोटे शहर से निकल कर बॉलीवुड पहुंचे और अपनी पहचान बनाई, अपने सफ़र के बार में कुछ बताये.

थियेटर के माध्यम से काम शुरू किया. सभी किरदार में प्रयोग किया. कोशिश थी कि किरदार को जीवंत किया जाए. सभी रोल में कुछ नया करने की कोशिश की पहली फिल्म सलमान खान के साथ वीरगति की जिसमे इक्का सेठ की भूमिका निभाई, सरफ़रोश में मिर्ची सेठ, गंगाजल में डीएसपी भूरेलाल, लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह में चंद्रशेखर आज़ाद का किरदार निभाया. आज़ाद के बारे में पढाई की उनके जैसा कैरेक्टर निभाने और दिखने के लिए वजन बढाया. यश चोपड़ा के साथ वीर-जारा की, आमिर के साथ लगान फिल्म किया. हाल में ऋतिक रौशन के साथ काबिल फिल्म की. 

आज के दौर में फिल्म में कैरियर बनाने वालों को सन्देश

एक्टर बनने के लिए थियेटर जरुरी है. थियेटर से व्यक्तित्व में निखार आता है. नयी पीढ़ी को जल्दी बाज़ी ना करते हुए थियेटर से जुड़ कर फिल्म में आने से अभिनय कला में निखर आता है. एक्टिंग 400 मीटर की दौर नहीं बल्कि मैराथन दौड़ है.

छपरा में शुरुआत कैसे हुई.

जिला स्कूल से मैट्रिक की पढाई करने के बाद राजेन्द्र कॉलेज से फिजिक्स में ऑनर्स की पढाई की. पैतृक गाँव दरौधा थाना क्षेत्र के कोल्हुआ में है, जो अब सीवान जिला में आता है. दशहरा की छुट्टियों में गाँव जाते थे वहां नाटक का मंचन होता था. पहली बार ‘गौना के रात’ पहला भोजपुरी नाटक आठवीं क्लास में पढ़ते हुए किया. इसके बाद छपरा में अमेच्योर ड्रामेटिक एसोसिएशन के अंतर्गत छपरा में पहला हिंदी नाटक शरद जोशी का ‘एक था गधा उर्फ़ अल्लाह दाद खान’ किया जिसका निर्देशन रसिक बिहारी वर्मा ने किया था. उन्होंने अपने पुराने मित्रों को याद करते हुए उनके योगदान की चर्चा की.

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एक्टर बनने का सफ़र

मुंबई में पहुँच कर इप्टा से जुड़ा. जहाँ थियेटर की बारीकियों को सीखा. एक संकल्प था कि तब तक एक्टिंग नहीं करूँगा जब तक सामने वाले एक्टर के आँखों में आंखे डाल कर बातें ना कर सकूँ. उन्होंने बताया कि ऐसा ही हुआ और अमिताभ बच्चन के साथ फिल्मे भी की.

उन्होंने बताया कि कैरियर की तलाश में कई परीक्षाएं दी. साथ के मित्रों का हुआ पर शायद मेरे किस्मत में एक्टर बनना था इसलिए ऐसा हुआ. मुंबई जाने का जब सोचा तो पिता से तो नहीं माँ से अपनी इच्छा बताई. माँ को किसी तरह समझा बुझा कर मुंबई पहुंचे जहाँ आज भी संघर्षरत है. उन्होंने बताया कि आपतक सभी A ग्रेड और मीनिंगफुल फ़िल्में की है.

भोजपुरी फिल्मों पर प्रतिक्रिया
भोजपुरी फिल्म एक तरह की बन रही है. ऐसी फ़िल्में बने की सभ्य लोग भी फिल्म दे सकें. भोजपुरी सिनेमा परम्पराओं को छोड़ रही है. रीमेक बन रहा है.

पाठ्यक्रम में सिनेमा की पढाई शामिल हो
उन्होंने कहा कि सिनेमा को पाठ्यक्रम में पढाया जाए. सिनेमा अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने का एक माध्यम है. सिनेमा को मनोरंजन मात्र का साधन नहीं मानना चाहिए.

उन्होंने युवा पीढ़ी को सन्देश देते हुए कहा कि सभी को अपने पर पूर्ण विश्वास करते हुए संकल्प के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए.

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