Chhapra: सारण जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन के निर्देश के बाद भी छपरा शहर में साफ सफाई की व्यवस्था में कोई खास सुधार नहीं हो रहा है. हाल ही में जिलाधिकारी ने छपरा नगर निगम के पदाधिकारियों को शहर में सफाई व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए निर्देश दिया था.

उन्होंने निर्देश देते हुए कहा था कि विशेषकर दारोगा राय चौक से भरत मिलाप चौक तक मण्डल कारा के किनारे, एकता भवन के बगल में स्थित जमीन पर प्रतिदिन साफ-सफाई की आवश्यकता है.

लेकिन मंडल कारा के किनारे की यह तस्वीरे बताती है कि यहां साफ सफाई नहीं हुई है. इस रास्ते से हर दिन हजारों लोग आते जाते हैं. लेकिन यहां पड़ा कचरा और कचरे से निकलने वाली बदबू से लोगों को काफी परेशानी होती है.

नहीं हो रहा डोर टू डोर कचरे का उठाव

शहर के सभी वार्डों में डोर टू डोर कचरा उठाने का प्रावधान है. लेकिन शहर में कई ऐसे वार्ड हैं जहां डोर टू डोर कचरा का उठाव नहीं होता है. जिलाधिकारी ने इसके लिए नगर निगम को विशेष निर्देश दिए थे कि घर घर से कचरा उठाया जाए.

Chhapra: स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश में स्वच्छता को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. वहीं नए-नए तरकीब को अपनाकर स्वच्छता को बढ़ावा दिया जा रहा है. स्वच्छता को लेकर नगर निगम द्वारा घर-घर सूखे एवं गीले कचड़ें के लिए कचड़ा पात्र का नि शुल्क वितरण किया गया. वहीं इनके द्वारा चिन्हित स्थानों पर कचरा पात्र भी लगाया गया. इसके अलावा कई स्थानों पर चलंत शौचालय भी रखा गया है. जिससे कि गंदगी से सड़क के साथ शहर और गांव को भी स्वच्छ रखा जा सकें.

इन सबके बीच दिघवारा नगर परिषद क्षेत्र में स्वच्छता को लेकर अलग ही तरकीब अपनाई गई है.

कम लागत और ज्यादा उपयोगी को लेकर दिघवारा नगर परिषद एवं आमजन के सहयोग से छपरा पटना मुख्य मार्ग पर दिघवारा ढाला के समीप मूत्रालय बनाया गया है.

इस मूत्रालय के लिए स्थानीय लोगों द्वारा पीने वाले पानी के 20 लीटर के जार का प्रयोग किया गया है. जार को आधा काट कर उसे यूरिनल की शक्ल दी गई है. साथी उसमें पानी के लिए पाइप भी लगाया गया है जिससे कि वह आसानी से साफ और स्वच्छ दिखे, वहीं यूरीन भी निकल जाए.

स्थानीय लोगों द्वारा अपनाई गई यह तरकीब चर्चा का विषय है. मुख्य मार्ग पर होने के कारण यह जहां लोगों के आकर्षण का केंद्र है. वही कम लागत में स्वच्छता का अनूठा प्रयोग पेश कर रहा है.

अस्थायी तौर पर ही सही लेकिन यह तरकीब एक सीख दी रही है जिससे हम स्वच्छता को बढ़ावा दे सकते हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि पूर्व में यहां दुकानें लगती थी. रेलवे प्रशासन द्वारा इस अतिक्रमण को हटाकर इस जगह को साफ किया गया. लेकिन रेल ढाला पर गाड़ियां रुकने के दौरान यहां राहगीरों द्वारा पेशाब किया जाता था, जिससे कि एक तो गंदगी फैलती थी, दूसरी उसके दुर्गंध से यहां रहना मुहाल हो गया था.

इस स्थान पर मूत्रालय को लेकर पहल भी की गई लेकिन बात नहीं बनी. जिस कारण कम खर्च में प्रभावी तकनीक का निर्माण कर अस्थाई तौर पर इसकी व्यवस्था की गई है. पानी के जार का यूरिनल के तौर पर प्रयोग करना कारगर साबित हुआ और इस में पाइप लगाकर उसे नाली में पहुंचा दिया गया. अब यहां पेशाब की दुर्गंध भी नहीं आती है और यह स्थान पूरी तरह से साफ सुथरा भी रहता है.

Chhapra: शहर को स्वच्छ रखने और स्वच्छ शहरों के श्रेणी में शुमार कराने के उद्देश्य से इन दिनों स्वच्छता सर्वे की जा रही है. स्वच्छता सर्वे के माध्यम से शहर को सफाई के अनुसार रैंकिंग मिलेगी. शहर के तमाम चौक चौराहों पर इसे लेकर होर्डिंग्स के माध्यम से लोगों से आग्रह किया जा रहा है की वे अपने शहर को रैंकिंग देकर आगे रखने में भूमिका निभाए. इसके लिए सभी से एक ऐप डाउनलोड कर उस पर वोटिंग करने का अनुरोध किया गया है. इस ऐप के माध्यम से लोग गन्दगी की शिकायत भी कर सकते है.

इन सब के बीच शहर के कई ऐसे सड़क गली मोहल्ले है जहाँ स्वच्छता नाम की कोई चीज दिखती ही नहीं है. ऐसे में लोग अपने शहर को स्वच्छता के पायदान में आगे रखने की पहल में सहयोग करने से कतरा रहे है. लोगों का कहना है कि शहर में सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है. मुख्य सड़क पर जलजमाव हो या कचड़ा प्रबंधन नगर निगम अपने दायित्वों के प्रति सजग नहीं दिख रहा है.

ऐसे में स्वच्छता के रैंकिंग में बेहतर स्थान पाना नामुमकिन सा प्रतीत होता है. ऐसे में सभी के मन में एक ही सवाल है कि कैसे मिलेगी स्वच्छ शहर की बेहतर रैंकिंग.

आपको बता दें कि पिछली बार स्वच्छता रैंकिंग में छपरा का स्थान 422वां था. 

स्वच्छ सर्वेक्षण: बिहारशरीफ सूबे का सबसे साफ़ शहर, पटना 262वें और छपरा 422वें स्थान पर

Chhapra: नगर निगम क्षेत्र को स्वच्छ और सुन्दर रखने के उद्देश्य से निगम के द्वारा कार्य किये जा रहे है. इसी क्रम में निगम के हर वार्ड में डस्टबिन का वितरण किया जा रहा है. निगम द्वारा गिला और सुखा कचड़ा के लिए प्रत्येक होल्डिंग को दो डस्टबिन दिया जा रहा है.

नगर निगम की मेयर प्रिया देवी ने खुद इन डस्टबिन को बांटा. उन्होंने कहा कि शहर को स्वच्छ रखने में हर नागरिक की भूमिका अहम् है. यदि सभी नागरिक शहर को स्वच्छ रखने में मदद करेंगे तो अपना शहर जल्द ही स्वच्छता में अव्वल होगा.

कैसे मिलेगा डस्टबिन

नगर निगम क्षेत्र के प्रत्येक होल्डिंग को यह डस्टबिन मिलेगी. इसके लिए मकान की अपडेटेड टैक्स रशीद को प्रस्तुत करना होगा. डस्टबिन नगर निगम से प्राप्त की जा सकती है.

छपरा: शहर के लोगों को जागरूक करने और स्वच्छता का सन्देश देने की मुहीम ‘स्वच्छ छपरा अभियान’ के तहत रविवार को जन जागरूकता रैली निकाली गयी. रैली शहर के गुदरी बाजार स्थित शाह बनवारी लाल सरोवर के प्रांगण से शुरू हुई.

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शहर को स्वच्छ बनाने के इस जनजागरण अभियान में बड़ी संख्या में बच्चों, युवा और वरिष्ठ नागरिकों ने भाग लिया. रैली में महिलाओं ने भी मुहल्लेवासियों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संचार किया. रैली के दौरान लोगों को स्वच्छता को लेकर जागरूक किया गया.

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इस अवसर पर कश्मीरा सिंह, प्रीति पांडेय, हेमा देवी, सीमा देवी, बबिता सिंह, उषा देवी, जयराम सिंह, डॉ. सुनील प्रसाद, मनन्जय कुअँर, साकेत सौरभ, अली अहमद आदि प्रमुख रूप से शामिल थे.

छपरा (संतोष कुमार ‘बंटी’): ‘दलित’ एक ऐसा नाम जिसके उपर हो रही राजनीति शायद कभी समाप्त नहीं होगी. इस शब्द के प्रति अपनत्व को देखकर लगता है कि यह सभी के चहेते तो हैं, लेकिन असलियत का पता तो इस नाम के साथ जीने वाले लोगों के पास ही जाकर लगाया जा सकता है. जहां सरकार और प्रशासन द्वारा इन दलितों के प्रति दिखाए जा रहे अपनत्व की सच्चाई का पता चलता है.

दलित समुदाय के लोग यह कहने को विवश हो चुके हैं कि ‘दलित’ शब्द हमें समाज के अन्य वर्गों से अलग तो करता है लेकिन इसका भाव हमेशा नकारात्मक होता है. दलितों के साथ हो रहे भेद-भाव का प्रबल उदाहरण छपरा के कटहरी बाग के पास स्थित दलित बस्ती है जहां रहने वाले लोग प्रतिदिन घुट-घुट कर जीने को विवश हैं. शहर के बीचों-बीच कटहरी बाग़ के वार्ड नंबर 35 में दलित बस्ती है. जहाँ पिछले कई वर्षो से सुलभ शौचालय बना हुआ है. जिसकी जानकारी शायद आम लोगों को भी नहीं है.

जर्जर अवस्था में पहुँच चुका यह शौचालय अपनी दुर्दशा पर रो रहा है. शौचालय की टंकी पूरी तरह से भर चुकी है. साफ सफाई का तो कोई नामो निशान तक नही है और न ही शौचालय की टंकी को साफ करने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गयी है. जिसके कारण अब शौचालय से निकलने वाली गन्दगी खुली जगहों पर बह रही है. गन्दगी के कारण आसपास की जमीन ही नही बल्कि पूरा का पूरा मुहल्ला या यूँ कहें कि पूरे शहर का वातावरण प्रदूषित हो रहा है. बावजूद इसके यहाँ किसी राजनेता या जिला प्रशासन का ध्यान नही जाता है. ऐसे में यहाँ रहने वाले करीब 100 दलित परिवार सिर्फ उपर वाले के रहमो करम पर जैसे-तैसे अपनी जिंदगी गुजर बसर कर रहे है.

क्या कहते हैं स्थानीय निवासी:

धर्मनाथ राम
धर्मनाथ राम

सुलभ शौचालय से 5 मीटर की दुरी पर रहने वाले जिला निगरानी और अनुश्रवण समिति/जिला सामाजिक सुरक्षा समिति/अनुसूचित जाति जनजाति सतर्कता एवं अनुश्रवण समिति के सदस्य धर्मनाथ राम का कहना है कि दलित सिर्फ राजनीति का माध्यम बनकर रह गया है. दलितों के उत्थान की बात तो होती है लेकिन जमीनी स्तर पर उत्थान नही होता.

 

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कृष्णा राम
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दीनदयाल राम

बस्ती के दीनदयाल राम और कृष्णा राम ने बताया कि शहर के बीचों बीच हमारी बस्ती है, लेकिन यह बस्ती सुदूर गाँव से भी बदत्तर स्थिति में है. बस्ती के प्रवेश द्वार पर ही लोगों द्वारा दलित बस्ती होने के कारण जानबूझकर कूड़ा फेंका जाता है. जिसके कारण यहाँ रहने वाले लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. बस्ती में बना सुलभ शौचालय सिर्फ नाम तक ही सीमित है. हवा के झोंको के साथ शौचालय से निकलने वाली गन्दगी की बदबू अचानक गर्दन मरोड़ने लगती है. शौचालय की बदत्तर स्थिति को लेकर प्रमंडलीय आयुक्त, जिलाधिकारी सारण, नगर परिषद् को पत्र देकर अवगत कराया गया लेकिन यह सब सिर्फ फाइलों में दब कर रह गया. वार्ड आयुक्त को भी कई बार सफाई को लेकर कहा गया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.

दलित बस्ती की महिलाओं का कहना है कि बदबू के कारण कई बार छोटे बच्चों की तबियत ख़राब हो जाती है. पिछले दिनों हुई बारिश ने तो बस्ती की स्थिति पहले ही बिगाड़ दी थी और इन दिनों हो रही कड़क धुप से तो हालत और भी कष्टदायक हो गया है. घर में बना खाना भी इन दिनों बदबू के मारे खाया नही जा रहा है. पूरे मोहल्ले में गंदगी से लतपथ सुअर घूमते रहते हैं, जिसके कारण आजकल लोग घरो में ही दुबके रह रहे है.

देखा जाए तो शहर में दर्जनों दलित बस्तियां है पर सबका हाल लगभग एक ही जैसा है. भारतीय राजनीति का केंद्र रहा दलित समाज भले ही अपने जनप्रतिनिधियों को कई बार सत्ता के शीर्ष पर पहुँचाने में अहम् भूमिका निभा चूका है पर समाज और सरकार की उपेक्षाओं के शिकार इस बस्ती के लोग आज भी बदहाल जिंदगी जीने को विवश हैं.

छपरा: छपरा नगर परिषद में इन दिनों पर्याप्त रूप में संसाधन उपलब्ध हैं, लेकिन उपलब्ध संसाधनों के अनुपात में सफाई व्यवस्था शून्य है.

पिछले कुछ दिनों में दर्जनों ट्रैक्टर, सफाई एवं कचड़ा ढोने उठाने वाली मशीनों की खरीदारी की गई है. जिससे शहर साफ़ और स्वास्थ्य रहे. लेकिन कुछ संसाधनों को छोड़कर कई मशीन कार्यालय परिसर में खड़े होकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए शोभा की वस्तु बन गई है.

मुख्य रूप से कुछ जगहों को छोड़कर शहर में कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ इन मशीनों से काम लिया जाए . शहर में ऐसे भी कई जगह है जहां इन मशीनों से सफाई व्यवस्था नहीं हो सकती है लिहाज़ा वहा बड़ी मशीनों की आवश्यकता है.

ऐसे में इन मशीनों को किन उदेश्यो की पूर्ति के लिये खरीदा गया है यह आम लोगों की समझ से परे है. शहर के कुछ लोगों से नगरपालिका की कार्य प्रणाली के बारे में बातचीत की गई अममून सभी लोगों ने नगरपालिका को स्वयं के स्वार्थ का साधन करार दिया. उपर से लेकर नीचे तक जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासन के कर्मचारी प्रत्यक्ष तौर पर दोषारोपण और अप्रत्यक्ष रुप से मिली भगत से काम करते हैं.

कुछ लोगों ने चौक चौराहों पर रखी डस्ट बीन की कहानी बयान करते हुए कहा कि पहले तो कई वर्षों तक यह नगरपालिका कार्यालय में पड़ी रही गुणवत्ता खत्म होने के बाद इनको सड़को के किनारे रखा गया अब आलम यह कि यह डस्ट बीन कबाड़ी हो चुका है. शहरवासियो को तो इन डस्ट बीन का फायदा तो नहीं लेकिन उनको जरूर मिला जो इसकी खरीदारी के समय कुर्सी पर काबिज थे. वैसे ही इन मशीनों की हुई इन मशीनों से शहर की सफाई हो ना हो कार्यालय का काम जरूर हो गया.

ऐसे में हम यही कहेंगे कि जनता हो गई त्रस्त जनप्रतिनिधि और कर्मचारी हुए मस्त. बहरहाल जनता की बात में सच्चाई है बावजूद इसके नगरपालिका के पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियो को भी इन बातों पर ध्यान केंद्रित करना होगा.