Chhapra: मकर संक्रांति पर पतंगबाजी की परंपरा वर्षो से चली आ रही है. बच्चे बूढ़े जवान हर वर्ग के लोग इस खास दिन पतंगबाजी में अपने अनुभवों को साझा करने के साथ साथ जमकर इसका आनंद लेते है.


विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी बाजारों में माझा और पतंगों की खास दुकाने सजी है. जहाँ इस बार छोटा भीम, डोरीमोन, मोटू पतलू के साथ मोदी और राहुल पतंग ने भी कब्ज़ा जमाया है.

छोटे बच्चे जहाँ कार्टून की तरफ आकर्षित है वही युवा ज्यादातर मोदी की पतंग को पसंद कर रहे है. बाजारों में चाइनीज धागों ने पूरी तरह पांव पसार लिया है.

हालांकि अचानक हुए मौसम में बदलाव के कारण पतंगबाजों को थोड़ी निराशा हो रही है बावजूद इसके उनकी तैयारियां जोरों पर है.

Chhapra(Kabir): इन दिनों कड़ाके की ठंड में भी बच्चे व युवा पतंगबाजी का खुमार सर चढ़ कर बोल रहा है. कोई अखबार को काटकर पतंग में साटने के लिए पूंछ बनता है तो कोई लई से फटी पतंग को चिपकाता दिखता है. हाथों में लटाई और पतंग इसके बाद शुरू हो जाता है पतंग उड़ाने का दौर.

समय के साथ पतंगबाजी के सामानों में बदलाव तो हुआ है लेकिन उत्साह में कोई कमी नही दिख रही है. तरह तरह के मांझे की जगह चाइनीज धागों ने जरूर ले ली है. पतंग के दाम में वृद्धि हुई है लेकिन फिल्मों के नाम, हीरो, हीरोइन, क्रिकेटर आदि की तस्वीर लगी डिजिटल प्रिंट वाली पंतग की धूम है.

पतंगबाजों ने छपरा टुडे से बात करते हुए कहा कि अब पहले की तरह कोई मांझे में समय देना नही चाहता, क्योंकि मांझे से मजबूत प्लास्टिक के धागे बाजार में उपलब्ध है. ऐसा नही है कि अभी मांझा नही किया जाता है लेकिन समय को देखते हुए बाजार से खरीदना आसान होता है.

भतमंझा की बात करें तो पतंगबाज जीतोड़ मेहनत करके पतंगबाजी के लिए धागा को तैयार करते थे. शीशे को बारीक पिसा जाता था. धागे को भात और शीशे से गुजारते हुए लटाई में लपेटा जाता था. मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी के लिए इसकी खास तैयारी की जाती थी.

(सुरभित दत्त)

छपरा: पतंगबाज़ी का क्रेज इन दिनों युवाओं और बच्चों में देखा जा रहा है. हर साल सर्दियों के शुरुआत से ही बच्चों में पतंबाज़ी का खुमार चढ़ जाता है. शहर के लगभग हर घर के छतों पर युवा पतंगबाज़ी करते दिखते हैं.

वाह क्या काटा है!, जैसे बोल बच्चों से सुनाई पड़ने लगते है. आसमान में पेंच लड़ती है और सफलता मिलने पर इस वाक्य को लड़के जोर से चिल्लाते है. आपने भी जरुर सुना होगा.

पतंगबाज़ी का यह सिलसिला सूर्य के उत्तरायण यानि मकर संक्रांति (खिचड़ी) तक चलता है. पतंग उड़ाने के लिए ज़रूरी मांझा, पतंग और लटाई की इन दिनों बाज़ारों में मांग है. बैन के बाद चाईंनीज़ धागे की जगह भारतीय धागों ने  ले ली है. वहीं धागे, लटाई और पतंग की खरीदारी के लिए युवा दुकानों पर पहुँच रहे हैं.

वर्षों से पतंगों का काम करते आ रहे मुन्ना बाताते हैं कि आधुनिक होती दुनिया के साथ- साथ जब मनोरंजन के कई साधन आ गए हैं. पतंगबाज़ी से जुड़े पारंपरिक व्यवसाय इसके प्रभाव में आ गये हैं. पहले की तुलना में व्यवसाय में काफी गिरवाट आ गई है. जिस से पतंग बनाने वाले के रोज़ी रोजगार पर असर पड़ा है.

वही भगवान बाजार में पतंग, लटाई और धागे की दूकान चला रहे आकाश कुमार ने बताया कि पतंगों की खरीदारी के लिए युवा उनकी दुकान पर पहुँच रहे है. हालाकि पहले की तुलना में कम लोग पतंगबाजी कर रहे है. आकाश ने बताया कि अब केवल मकर संक्रांति के दिन जमकर पतंगबाजी होती है. आम दिनों में एक्का दुक्का लोग ही पतंग खरीदने पहुंचते है.

2 रुपये से लेकर 15 रुपये तक के पतंग

पतंगबाजी के शौक के लिए पतंगों की खरीदारी करने पहुँच रहे युवाओं को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है. इस साल पतंगों के दामों में इजाफा हुआ है. पतंग 2 रुपये से लेकर 15 रुपये तक की बिक रही है. कुछ खास बड़े साइज़ के पतंगों के दाम उनके साइज़ के अनुसार ज्यादा भी है.

चाइनीज धागों की जगह भारतीय धागों की बिक्री

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पतंगबाजी का नाम आते ही पिछले कुछ दिनों से चाइनीज धागों का जिक्र होने लगता है. भारत में इन धागों पर लगे प्रतिबंध के बाद अब बाजारों में चाइनीज टाइप भारतीय धागे दिख रहे है. ये धागे दिखने में चाइनीज धागों के जैसे ही है पर इनका निर्माण भारत में हुआ है.

लकड़ी की जगह प्लास्टिक की लटाई

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पतंगबाजी के लिए लटाई भी जरुरी घटक है. ऐसे में बाज़ार में पहले बिकने वाली लकड़ी की लटाई की जगह अब प्लास्टिक की लटाई ने ले ली है. हालाकि लकड़ी के लटाई आज भी पतंगबाजों की पहली पसंद है. पर नए उत्साही बच्चे प्लास्टिक की लटाई से पतंगबाजी का मज़ा ले रहे है. प्लास्टिक की लटाई लकड़ी की लटाई की तुलना में सस्ती बिक रही है.

छपरा शहर में लोग पहले खूब पतंबाज़ी करते थे. आलम यह रहता था कि आकाश में केवल पतंग ही पतंग दिखाई पड़ते थे पर अब समय बदला है और उसके साथ साथ लोगों के मनोरंजन के साधन भी बदल गए हैं.