नई दिल्ली (एजेंसी): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को जापान के नए प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा के साथ टेलीफोन पर बातचीत कर उन्हें बधाई दी।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस संबंध में ट्वीट कर जानकारी दी। उन्होंने कहा, “जापान के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने पर बधाई देने के लिए फुमियो किशिदा से बात की। मैं भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को और मजबूत करने तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए उनके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।”

उल्लेखनीय है कि किशिदा जापान के 100वें प्रधानमंत्री बने हैं। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद योशीहिदे सूगा ने पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री पद संभाला था।

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नई दिल्ली: भारत की जवाबी कार्रवाई के सामने झुकते हुए ब्रिटेन ने कोविशील्ड वैक्सीन के जरिए पूर्ण टीकाकरण वाले भारतीय यात्रियों को दिए जाने वाले प्रमाण पत्र को मान्यता देने का फैसला किया है।

ब्रिटेन ने अब कोविशील्ड के दोनों टीके लगवा चुके भारतीयों को वहां आने पर कोविड-19 से जुड़े नियमों पर छूट देने का फैसला किया है। वैक्सीनेटेड भारतीय नागरिकों को आगामी सोमवार 11 अक्टूबर से 10 दिन के अनिवार्य पृथकवास में नहीं रहना होगा।

नई दिल्ली स्थित ब्रिटेन के उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने एक ट्वीट के जरिए यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कोविशील्ड अथवा ब्रिटेन द्वारा मंजूरी प्राप्त स्वीकृत वैक्सीन के जरिए टीकाकरण कराने वाले भारतीय यात्रियों को 11 अक्टूबर से पृथकवास में नहीं रहना होगा। उन्होंने इस संबंध में भारत सरकार के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया।

उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन ने कोविशील्ड टीकाकरण वाले भारतीय यात्रियों के प्रमाण पत्रों को मानने से इनकार कर दिया था। ऐसे में इन यात्रियों को कोविड-19 से जुड़े नियमों के तहत 10 दिन के पृथक वास में रहना और कोविड-19 जांच कराना अनिवार्य था।

भारत सरकार ने ब्रिटेन के इस फैसले को भेदभाव पूर्ण बताया था। भारतीय अधिकारियों का तर्क था कि कोविशील्ड ब्रिटेन की वैक्सीन एक्स्ट्राजेनेका का ही भारतीय स्वरूप है। भारत में कोविन के जरिए दिए जाने वाले प्रमाण पत्रों की दुनिया भर में स्वीकार्यता है।

भारत ने ब्रिटेन से आग्रह किया था कि वह अपनी भेदभाव पूर्ण नीति समाप्त करें अन्यथा भारत जवाबी कार्रवाई करेगा। ब्रिटेन ने भारत के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया तो जवाबी कार्रवाई के रूप में ब्रिटेन से आने वाले यात्रियों के लिए भी हाल में 10 दिन का पृथकवास अनिवार्य कर दिया था।

ब्रिटेन की नई वैक्सीन नीति के बारे में वहां के परिवहन मंत्री ने एक ट्वीट में कहा कि भारत सहित 37 अन्य देशों से आने वाले पूर्ण टीकाकरण करा चुके यात्रियों के लिए प्रवेश की अनुमति लचीली बनाई गई है।

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नई दिल्ली: इस वर्ष का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से स्यूकुरो मानेबे, क्लाउस हैसलमैन और जियोर्जियो पारिसि को दिया गया है। उन्होंने पृथ्वी की जलवायु और मनुष्य इसे किस प्रकार प्रभावित कर रहा है इसके बारे हमारी समझ बढ़ाई है। साथ ही इनके सिद्धांतों ने ‘अव्यवस्थित तंत्र’ और ‘बेतरतीब प्रक्रियाओं’ के क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के अनुसार विज्ञान में जटिल प्रणालियों को बेतरतीब माना जाता हैं। इन्हें समझना मुश्किल होता है। इस वर्ष का पुरस्कार उनका वर्णन करने और उनके दीर्घकालिक व्यवहार की भविष्यवाणी करने के लिए नए तरीकों को मान्यता देता है।

पुरस्कार के तौर पर नोबेल डिप्लोमा, एक पदक और 1 करोड़ स्वीडिश क्रोनर राशि दी जायेगी। पुरस्कार राशि का एक आधा संयुक्त रूप से स्यूकुरो मानेबे और क्लाउस हासेलमैन को और दूसरा आधा जियोर्जियो पारिसि को दिया जाएगा।

स्यूकुरो मनाबे अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, क्लाउस हैसलमैन जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ मेट्रोलोजी से जुड़े हैं। दोनों ने पृथ्वी की जलवायु का भौतिक मॉडल तैयार करने, परिवर्तनशीलता को आंकने और ग्लोबल वार्मिंग की ठोस भविष्यवाणी करने में योगदान दिया है। जियोर्जियो पेरिसिक इटली के सैपिएन्ज़ा विश्वविद्यालय से जुड़े हैं और उन्होंने परमाणु से लेकर ग्रहों तक के पैमाने पर भौतिक प्रणालियों में विकार और उतार-चढ़ाव के आपसी तालमेल की खोज की है।

स्यूकुरो मनाबे 1931 में जापान के शिंगू में पैदा हुए। 1957 में टोक्यो विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएच.डी. की और वह वर्तमान में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी हैं। वहीं क्लॉस हैसलमैन का जन्म 1931 में जर्मनी के हैम्बर्ग में हुआ। 1957 में गोटिंगेन विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएच.डी. की। वह वर्तमान में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ मेट्रोलोजी में प्रोफेसर हैं। जियोर्जियो पारिसि का जन्म 1948 में रोम में हुआ था। उन्होंने 1970 में सैपिएंजा विश्वविद्यालय से पीएचडी की। वह वर्तमान में इसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।

नोबेल भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य, शांति और अर्थशास्त्र में दिया जाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा व प्रतिष्ठित पुरस्कार है। सभी विधाओं में पुरस्कार विजेताओं को दिसंबर में अलफ्रेड नोबेल की मृत्यु की वर्षगांठ पर सम्मानित किया जायेगा। इन सभी को स्वीडन के महाराज सम्मानित करेंगे।

1901 और 2021 के बीच भौतिकी में 115 बार नोबेल पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। इन्हें 219 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने साझा किया है। जॉन बारडीन एकमात्र पुरस्कार विजेता हैं जिन्हें 1956 और 1962 में दो बार भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसका मतलब है कि कुल 218 व्यक्ति भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

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नई दिल्ली: वैज्ञानिक डेविड जूलियस और अर्देम पटापाउटियन को तापमान और स्पर्श से जुड़े रिसेप्टर्स की उनकी खोजों के लिए संयुक्त रूप से 2021 के फिजियोलॉजी या मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है।

आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में नोबेल असेंबली ने आज नोबेल पुरस्कार के लिए दोनों का चयन किया। विजेता वैज्ञानिकों ने खोजा कि कैसे हमारा शरीर तापमान और दबाव को महसूस करता है। पुरस्कार विजेताओं ने हमारी इंद्रियों और पर्यावरण के बीच जटिल परस्पर क्रिया की हमारी समझ में महत्वपूर्ण लापता लिंक की पहचान की है।

डेविड जूलियस का जन्म 4 नवंबर, 1955 में न्यूयार्क में हुआ था। वह वर्तमान में सैन फ्रांसिस्को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से जुड़े हैं। अर्देम पटापाउटियन लेबनान के बेरूत में 1967 में जन्में हैं। वह हॉवर्ड ह्यूजेस मेडिकल इंस्टीट्यूट कैलिफोर्निया से जुड़े हैं।

हमारे अस्तित्व के लिए गर्मी, सर्दी और स्पर्श को महसूस करना बेहद जरूरी है। अपने दैनिक जीवन में हम इन संवेदनाओं पर विशेष ध्यान नहीं देते लेकिन तंत्रिका आवेगों को कैसे शुरू किया जाता है ताकि तापमान और दबाव को महसूस किया जा सके? यह वैज्ञानिकों के लिए एक सवाल रहा है। इसी का समाधान इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने किया है।

डेविड जूलियस ने मिर्च में मौजूद जलन पैदा करने वाले तीखे योगिक कैप्साइसिन का उपयोग किया और इससे त्वचा की तंत्रिका के अंत में मौजूद एक सेंसर की पहचान की, जो गर्मी का एहसास कराती है। अर्देम पटापाउटियन ने दबाव-संवेदनशील कोशिकाओं का उपयोग कर त्वचा और आंतरिक अंगों में यांत्रिक उत्तेजनाओं को महसूस करने वाले सेंसर के एक वर्ग की खोज की। इन सफल खोजों ने गहन शोध गतिविधियों को शुरू किया, जिससे हमारी समझ में तेजी से वृद्धि हुई कि हमारा तंत्रिका तंत्र गर्मी, ठंड और यांत्रिक उत्तेजनाओं को कैसे महसूस करता है।

1901 से लेकर अबतक 112 बार फिजियोलॉजी या मेडिसिन में 224 वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार दिया गया है। पिछले वर्ष हार्वे जे. ऑल्टर, माइकल ह्यूटन और चार्ल्स एम. राइस को हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज के लिए नोबेल दिया गया था।

हर वर्ष छह क्षेत्रों में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की जाती है। यह फिजियोलॉजी या मेडिसिन, रसायन, भौतिक शास्त्र, साहित्य और शांति के क्षेत्र में दिए जाते हैं। 1901 में पहली बार स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड बनार्ड नोबेल की याद में इन पुरस्कारों को देने की परंपरा शुरू की गई थी। सभी विधाओं में पुरस्कार विजेताओं को दिसंबर में अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु की वर्षगांठ पर सम्मानित किया जाएगा।

इन सभी को स्वीडन के महाराज सम्मानित करेंगे। पुरस्कार के तौर पर नोबेल डिप्लोमा, एक पदक, और स्वीडिश मुद्रा में राशि पुरस्कार के रूप में दी जाती है।

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संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भाषण पर करारा पलटवार करने वाली भारत की प्रथम सचिव स्नेहा दुबे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेंड कर रही हैं।

दरअसल, स्नेहा ने जिस अंदाज में पाकिस्तान को जबाव दिया है उसे लेकर सोशल मीडिया पर उनकी जमकर तारीफ हो रही है। वह #SnehaDubey हैशटैग के साथ ट्रेंड कर रही हैं। सब लोग स्नेहा की जमकर तारीफ कर रहे हैं तो वहीं पाकिस्तान को औकात में रहने की नसीहत भी दे रहे हैं। पाकिस्तान को आईना दिखाने वाली स्नेहा दुबे आखिर हैं कौन, आइए जानते हैं।

कौन हैं स्नेहा दुबे
स्नेहा दुबे इस समय संयुक्त राष्ट्र में भारत की प्रथम सचिव हैं। स्नेहा की स्कूली शिक्षा गोवा में हुई, उन्होंने पुणे से हायर एजुकेशन पूरी की और फिर दिल्ली जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से एमफिल किया है।स्नेहा दुबे ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी में कामयाबी हासिल की थी, जिसके बाद उनकी नियुक्ति विदेश मंत्रालय में हो गई। स्नेहा को साल 2014 में मैड्रिड के भारतीय दूतावास में नियुक्ति दी गई।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट महासभा में स्नेहा का वीडियो सामने आने के बाद से सोशल मीडिया पर लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं। ज्यादातर यूजर्स का कहना है कि स्नेहा ने कम उम्र और कम अनुभव के बाद भी पाकिस्तान को जिस सधे हुए अंदाज में जबाव दिया है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है।

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व समुदाय को आगाह किया कि आतंकवाद, उग्रवाद और प्रतिगामी विचारधारा से पूरी दुनिया को खतरा है एवं आतंकवाद का राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाले देशों को इससे बाज आना चाहिए।

मोदी ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए पाकिस्तान का नाम लिये बिना कहा कि जो देश आतंकवाद का राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि आतंकवाद उनके लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है। उन्होंने अफगानिस्तान के घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित होना चाहिए कि अफगानिस्तान की धरती का उपयोग आतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलों के लिए नहीं हो।

प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर संयुक्त राष्ट्र जैसी विश्व संस्थाओं की निष्क्रियता की आलोचना करते हुए कहा कि इससे उनकी प्रासंगिकता और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, कोरोना महामारी और अफगानिस्तान के घटनाक्रम के संबंध में संयुक्त राष्ट्र कारगर भूमिका नहीं निभा सका।

प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी के उत्पत्ति के कारणों और उद्गम स्थल का पता लगाने में संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता की आलोचना की। हालांकि मोदी ने महामारी के संभावित उद्गम स्थल के रूप में चीन का उल्लेख नहीं किया। मोदी ने कहा कि इससे एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में सुधार और दुनिया के कामकाज की प्रणाली को मजबूत बनाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

प्रधानमंत्री ने प्राचीन चिंतक चाणक्य को उद्धृत करते हुये कहा कि शासकों और नीति निर्माताओं को समय पर फैसला लेना चाहिए, जो समय पर फैसला नहीं करता, समय उसको समाप्त कर देता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने दकियानूसी और उग्रवादी सोच के खतरे की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान हालात में हमें विज्ञान और तर्क पर आधारित प्रगतिशील चिंतन को विकास का आधार बनाना होगा। भारत की सांस्कृतिक विविधता और लोकतांत्रिक प्रणाली का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि विविधता के कारण भारतीय लोकतंत्र लगातार जीवंत बना हुआ है। लोकतांत्रिक प्रणाली को एक सक्षम आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के जरिये सफलता और उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा कि लोकतंत्र के जरिये सफलता और उपलब्धियां हासिल की गई हैं।

लोकतंत्र की विजय यात्रा के संबंध में प्रधानमंत्री ने स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान में अपने पिता की मदद करने वाला एक बच्चा कहां से कहां पहुंच गया। उन्होंने कहा कि वे गुजरात में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे तथा पिछले सात साल से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री हैं। इस हैसियत से उन्होंने चार बार संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया है।

मोदी ने राष्ट्रवादी चिंतक और एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का उल्लेख किया, जिनकी आज जयंती है। उन्होंने कहा कि एकात्म मानववाद व्यक्ति को समाज, देश और पूरी मानवता से जोड़ता है। मोदी ने अंत्योदय के दर्शन पर जोर देते हुए कहा कि हमारे विकास का रास्ता इस लक्ष्य पर केंद्रित है कि कोई भी पीछे न छूटे।

अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान जनकल्याण की योजनाओं का ब्योरा पेश करते हुए मोदी ने कहा कि हम न्यायसंगत और समानता मूलक समाज निर्माण के लिए प्रयासरत हैं। हमारी नीतियां सर्व व्यापी, सर्व स्पर्शी, सर्व समावेशी और सर्व पोषक हैं।

मोदी ने समुद्री संसाधन के संरक्षण और समुद्री सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा कि नौवहन, विश्व व्यापार की जीवन-रेखा है। समुद्री नौवहन अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने चीन का नाम लिये बिना कहा कि हमें समुद्री क्षेत्र को विस्तारवादी प्रयास और एकाधिकार की प्रवृति से बचा कर रखना होगा।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन का अंत गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर की कविता की पंक्तियों से किया। पंक्तियों का भावार्थ था कि हम शुभ कर्मों पर निर्भरता पूर्वक चलें। हर प्रकार की दुर्बलताएं और शंकाएं समाप्त हो जाएंगी। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि गुरुदेव की यह पंक्तियां पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं तथा इनके आधार पर विश्व शांतिपूर्ण, सुरक्षित और समृद्ध रह सकता है।

प्रधानमंत्री ने दुनियाभर में फैले भारत के पेशेवर लोगों की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और लोकतांत्रिक मूल्यों में तालमेल कायम किया है।

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी तीन दिन की अमेरिकी यात्रा के समापन पर शनिवार को स्वदेश के लिए रवाना हो गए।

अमेरिकी यात्रा के अंतिम कार्यक्रम के रूप में उन्होंने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन को संबोधित किया। अपने संबोधन में मोदी ने आतंकवाद और उग्रवादी विचारधारा के खतरे के प्रति दुनिया को आगाह किया। पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि जो लोग आतंकवाद को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वह स्वयं इसका शिकार बन सकते हैं। मोदी ने अफगानिस्तान में आतंकवाद पर अपने और वहां से आतंकवादी हमले होने की आशंका के प्रति भी दुनिया को सावधान किया।

प्रधानमंत्री 157 प्राचीन कलाकृतियों और पुरातत्व सामग्री साथ ला रहे हैं। अमेरिकी सरकार ने यह कलाकृतियां उन्हें सौंपी है। इनमें 12वीं शताब्दी की एक नटराज की मूर्ति भी शामिल है।

लगभग 45 कलाकृतियां ऐसी है जो ईसा पूर्व की हैं तथा हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म से संबंधित हैं। इनमें लक्ष्मी नारायण, भगवान बुद्ध, विष्णु, शिव व पार्वती, जैन तीर्थंकर आदि से जुड़ी कलाकृतियां भी शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने इन प्राचीन कलाकृतियों को भारत को सौंपे जाने के लिए अमेरिकी सरकार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राष्ट्रपति जो बाइडेन प्राचीन कलाकृतियों की चोरी, अवैध व्यापार और तस्करी को खत्म करने के लिए कृत संकल्प हैं।

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वाशिंगटन (एजेंसी): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी यात्रा के पहले दिन गुरुवार को विश्व की शीर्ष पांच कंपनियों के कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) से मिलकर भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया है। मोदी ने जिन पांच कपंनियों के सीईओ से मुलाकात की उनमें क्वालकाम, एडोब, फर्स्ट सोलर, जनरल एटोमिक्स और ब्लैकस्टोन शामिल हैं। उक्त कंपनियों के सीईओ भारत में निवेश के लिए उत्सुक दिखे।

पीएम मोदी से मिलने वाली दो कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं। इनमें एडोब के सीईओ शांतनु नारायण और जनरल एटोमिक्स के सीईओ विवेक लाल भारतीय-अमेरिकी हैं। तीन अन्य सीईओ में क्वालकाम के क्रिस्टिआनो ई. एमोन, फर्स्ट सोलर के मार्क विडमार और ब्लैकस्टोन के स्टीफन ए. स्वार्जमैन शामिल हैं।

एडोब के सीईओ नारायण से मुलाकात भारत सरकार की सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्षेत्र में प्राथमिकता को दर्शाती है। वहीं, जनरल एटोमिक्स के सीईओ लाल से मुलाकात कंपनी सैन्य ड्रोन तकनीक के मामले में अग्रणी व सैन्य ड्रोन के उत्पादन में दुनिया की शीर्ष कंपनी होने के कारण अहम है। भारत अपनी तीनों सेनाओं के लिए बड़ी संख्या में ड्रोन खरीदने की प्रक्रिया में है।

क्वालकाम के क्रिस्टिआनो से मुलाकात भी काफी अहम है क्योंकि भारत 5जी तकनीक को सुरक्षित बनाने पर जोर दे रहा है। यह कंपनी वायरलेस तकनीक से जुड़े सेमीकंडक्टर और साफ्टवेयर बनाती है।

भारत की कोशिश क्वालकाम को देश में बड़े निवेश के लिए आकर्षित करने की है। ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सौर ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में बड़े कदम उठा रहा है। फर्स्ट सोलर के सीईओ मार्क विडमार से प्रधानमंत्री की मुलाकात के खास मायने हैं। उनकी कंपनी फोटोवोल्टिक (पीवी) सोलर साल्यूशंस की अग्रणी वैश्विक प्रदाता है। वहीं ब्लैकस्टोन दुनिया की अग्रणी निवेश कंपनी है।

एडोब के सीईओ शांतनु नारायण ने कहा कि हमारे लिए हमारी सबसे बड़ी संपत्ति लोग हैं। शिक्षा को प्रोत्साहित करने के संबंध में जो कुछ भी होता है, डिजिटल साक्षरता होने से एडोब को मदद मिलती है। हम शिक्षा में अधिक जोर और रुचि के बहुत समर्थक हैं।
फर्स्ट सोलर के सीईओ मार्क आर विडमार ने कहा कि स्पष्ट रूप से उनके नेतृत्व के साथ और उन्होंने औद्योगिक नीति के साथ-साथ व्यापार नीति में एक मजबूत संतुलन बनाने के लिए क्या किया है, यह भारत में विनिर्माण स्थापित करने के लिए फर्स्ट सोलर जैसी कंपनियों के लिए एक आदर्श अवसर बनाता है। मुझे लगता है कि अगर भारत ने जो किया है, अगर हर देश उसे अपना सकता है और उसका अनुकरण कर सकता है, तो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्य उद्देश्यों को पूरा करने की हमारी क्षमता कोई समस्या नहीं होगी।

जनरल एटॉमिक्स के सीईओ विवेक लाल ने कहा कि यह एक उत्कृष्ट बैठक थी। हमने प्रौद्योगिकी और भारत में आने वाले नीतिगत सुधारों में विश्वास और निवेश के नजरिए से भारत में अपार संभावनाओं के बारे में बात की।

ब्लैक स्टोन के चेयरमैन सीईओ स्टीफन ए श्वार्जमैन कहा कि यह(मोदी सरकार) विदेशी निवेशकों के लिए एक बहुत ही अनुकूल सरकार है। जो लोग रोज़गार पैदा करने के लिए भारत में पूंजी लगाना चाहते हैं, उनके सहयोग के लिए भारत सरकार को उच्च ग्रेड मिलना चाहिए। भारत दुनिया में निवेश के लिए ब्लैकस्टोन का सबसे अच्छा बाजार रहा है। यह अब दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ने वाला देश है। इसलिए हम बहुत आशावादी हैं, और हमने भारत में जो किया है उस पर हमें गर्व है।

यह बैठकों की श्रृंखला का हिस्सा है, जो पीएम मोदी उन चुनिंदा कारपोरेट प्रमुखों के साथ करेंगे, जिनमें भारत में महत्वपूर्ण निवेश करने की क्षमता है।

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काठमांडू (एजेंसी): नेपाल में बुधवार को नारायण खड़का ने नए विदेश मंत्री की शपथ ली। राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।

इस दौरान शीतल निवास में प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा, नेशनल एसेंबली के अध्य़क्ष गणेश प्रसाद तिमलसीना भी मौजूद रहे।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सिफारिश पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने आज ही नारायण खडका को नया विदेश मंत्री नियुक्त किया है। खड़का ने पुणे में एक विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है। अभी तक विदेश मंत्री का प्रभार प्रधानमंत्री के पास था। साल 1990 में खड़का तत्कालीन प्रधानमंत्री कृष्ण प्रसाद भट्टराई के सलाहकार रह चुके हैं। इसके अलावा 2014 में शहरी विकास मंत्री भी रह चुके हैं।

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वाशिंगटन (Agency): अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर हुए सीरियल बम ब्लास्ट में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने फिर एक बार देश को संबोधित किया। उन्होंने खुली चेतावनी देते हुए कहा कि हम सभी गुनाहगारों को खोजकर मारेंगे, उनको किसी भी हाल में माफ नहीं करने वाले हैं।

संबोधन के दौरान बेहद भावुक दिखे राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका अफगानिस्तान के काबुल हवाई अड्डे पर दोहरे विस्फोटों के लिए जिम्मेदार लोगों की तलाश करेगा। इसके लिए पेंटागन को विस्फोट के जिम्मेदार लोगों को सजा देने का निर्देश दिया गया है। काबुल एयरपोर्ट में दोपहर बम विस्फोट के कुछ घंटे बाद में देश को संबोधित करते हुए बाइडन ने कहा कि पिछले एक दशक में अमेरिकी सेना के लिए यह सबसे बुरा दौर है जिसमें एक दिन में इतने सैनिक मारे गए।

हमले की जिम्मेदारी लेने वाले इस्लामिक स्टेट खुरासान (आईएसआईएस-के) के बारे में बाइडन ने कहा कि उनको इस अपराध की सजा भुगतनी पड़ेगी, हम उनको खोज कर सजा देंगे, किसी भी हाल में उनको माफी नहीं मिलने वाली है। इसके साथ ही राष्ट्रपति बाइडन ने अपना वादा दोहराया कि अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि हम आतंकवादियों से नहीं डरेंगे, हम उन्हें अपने मिशन को रोकने नहीं देंगे। हम निकासी जारी रखेंगे।

शहीद सैनिक अमेरिकी हीरो

अपने संबोधन के दौरान भरे हुए स्वर व नम आंखों के साथ भावुक बाइडन ने काबुल में शहीद सैनिकों को अमेरिकी हीरो बताया। उन्होंने व्हाइट हाउस और देश भर के सार्वजनिक भवनों में झंडे को झुकाने का आदेश कर्मचारियों को दिया। उन्होंने कहा कि यह बेहद कठिन दिन है, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर उन्हें अतिरिक्त बल की आवश्यकता होगी तो इसके लिए और सैन्य बल प्रदान करूंगा।

काबुल एयरपोर्ट पर हमले के बाद अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने एशिया की यात्रा रद्द कर दी है और वे वाशिंगटन लौट रही हैं। इसके साथ ही 14 सितंबर को कैलिफोर्निया गर्वनर गेविन न्यूजरूप के लिए प्रचार के कार्यक्रम को भी स्थगित कर दिया है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन पास्की ने संवाददाताओं से कहा कि बाइडन मंगलवार को अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के अपने लक्ष्य पर कायम हैं और हमलों की चिंता के बीच सैन्य सलाहकारों की सलाह पर ऐसा कर रहे हैं।

पास्की ने कहा कि बाइडन हर अमेरिकी को बाहर निकालने के लिए काम कर रहे हैं जो अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहता है। हमारी उनके प्रति हमारी प्रतिबद्धता समाप्त नहीं होती है। उन्होंने बताया कि बाइडन ने अमेरिकी सैन्य कमांडरों को आईएसआईएस-के की संपत्ति, नेतृत्व और सभी सुविधाओं पर हमला करने के लिए रणनीति तैयार करने का आदेश दिया है। राष्ट्रपति ने कहा कि हम बड़े सैन्य अभियानों के बिना उन्हें अपने तरीके से खोजकर सजा देंगे।

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काबुल (एजेंसी): तालिबान के क्रूर शासन से बचने के लिए अफगानिस्तान में लोग किसी भी हाल में देश से बाहर जाना चाहते हैं। स्वयं के बाहर नहीं जाने की सूरत में अपने मासूम बच्चों को किसी भी तरह बाहर भेजने के लिए नाटो सैनिकों को उनके हवाले कर रहे हैं ताकि वो इस खूनी तालिबान शासन से बच सकें। ऐसी ही एक फोटो जिसमें कुछ महीने के मासूम को कंटीली तारों से घिरे दीवार के पार नाटो सैनिक को लोग अपना बच्चा सौंप रहे हैं। काबुल एयरपोर्ट पर अब भी बड़ी संख्या में अफगान नागरिक अपने परिवारों के साथ खुद को यहां से निकाले जाने का इंतजार कर रहे हैं। ये लोग कई दिनों से भूखे-प्यासे एयरपोर्ट के बाहर बैठे हुए हैं।

इस बीच काबुल एयरपोर्ट की 18 फीट ऊंची दीवार पर खड़े अमेरिकी सैनिक के हाथ में टंगी एक बच्ची की काफी चर्चा हो रही है। एयरपोर्ट पर खड़े लोग अपने बच्चों को नाटो सैनिकों के हवाले कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर अमेरिकी या नाटो सैनिक हमें नहीं लेकर जा सकते तो हमारे बच्चों को लेकर जाएं। ये लोग अपने बच्चों को जबरदस्ती एयरपोर्ट की सुरक्षा चारदीवारी के पार पहुंचा रहे हैं।

सीरियाई शरणार्थी एलन कुर्दी की याद ताजा हुई
एलन कुर्दी एक सीरियाई शरणार्थी बच्चा था। 2015 में युद्धग्रस्त सीरिया से जान बचाकर भाग रहे 12 प्रवासियों की नाव डूबने से इस बच्चे की लाश तुर्की के तट पर बहकर आ गई थी। इस बच्चे की तस्वीर ने सोशल मीडिया पर ही नहीं, बल्कि कई देशों की संसदों में भी जमकर हंगामा मचाया था। यूरोप में इस तस्वीर के कारण युद्ध की विभीषिका, शरणार्थियों या प्रवासियों की समस्या और बच्चे की मौत की मार्मिक तस्वीरों को छापने या न छापने जैसे मामलों पर खूब बहस भी हुई थी।

फोन और इंटरनेट बंद कर रहा तालिबान
एमनेस्टी इंटरनेशनल के प्रमुख आग्नेस कालामार्ड ने कहा कि नृशंस हत्याएं तालिबान के पिछले रिकॉर्ड की याद दिलाती हैं और इस बात का भयावह संकेत हैं कि तालिबान का शासन होने पर क्या हो सकता है। संस्था ने चेतावनी दी कि हो सकता है कि हत्या के कई मामले सामने ही नहीं आए हों क्योंकि तालिबान ने अपने कब्जे वाले कई क्षेत्रों में फोन सेवाएं काट दी हैं ताकि लोग तस्वीरें प्रसारित नहीं कर सकें।

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काबुल: अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की 9.4 अरब डॉलर यानी करीब 70 हजार करोड़ रुपये की रकम को अमेरिका ने जब्त कर लिया है। जिसके बाद अफगानिस्तान में काबिज होने वाले तालिबान को विदेश में जमा देश के हजारों करोड़ रुपये से वंचित रहना पड़ेगा।

तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान छोड़ चुके सेंट्रल बैंक यानी दा अफगान बैंक (डीएबी) के कार्यवाहक गवर्नर अजमल अहमदी ने बुधवार को ट्वीट कर बताया कि अमेरिका में अफगानिस्तान के करीब 9.4 अरब डॉलर जमा हैं। इनमें से करीब सात अरब डॉलर यानी लगभग 50 हजार करोड़ रुपये अमेरिकी फेडरल रिवर्ज बांड और संपत्ति के रूप में हैं। इसमें 1.3 अरब यानी करीब 10 हजार करोड़ रुपये मूल्य का सोना भी है।

अहमदी के अनुसार अमेरिका से विदेशी मुद्रा की एक खेप पिछले महीने के आखिर में आनी थी, लेकिन शायद अमेरिका को पहले से पता था कि अफगानिस्तान में ऐसा कुछ होने वाला है इसलिए उसने रकम नहीं भेजी। अब अमेरिका ने अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की पूरी जमा रकम को ही फ्रीज कर दिया है। वह रकम कभी नहीं आएगी।

अहमदी ने कहा कि अफगानिस्तान में विदेशी मुद्रा की एक पाई भी नहीं रह गई है। तालिबान ने सत्ता पर कब्जा तो जमा लिया है, लेकिन सरकार चलाना उसके लिए आसान नहीं होगा। इसके साथ पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रहे अफगानिस्तान के आम लोगों को भी और अधिक परेशानियां उठानी पड़ेंगी।

अहमदी के मुताबिक तालिबान एक प्रतिबंधित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है, इसलिए इस धन तक उसकी पहुंच नहीं हो सकेगी। उन्होंने कहा कि विदेश में अफगानिस्तान का जितना धन जमा है उसमें से तालिबान को 0.1 से 0.2 फीसदी भी शायद ही मिल सके।

अमेरिका के बाइडन प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि अफगानिस्तान सरकार के सेंट्रल बैंक की जो कुछ भी रकम अमेरिका में जमा होगी उसे तालिबान को नहीं दिया जाएगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के हाथ सिर्फ 36.2 करोड़ डॉलर (करीब ढाई हजार करोड़ रुपये) ही लगे हैं। यह रकम डीएबी मुख्यालय, बैंक की अन्य शाखाओं और राष्ट्रपति भवन में रखी गई थी। इसके अलावा राष्ट्रपति भवन स्थित बैंक की शाखा में 16 करोड़ डॉलर मूल्य के बराबर सोना और चांदी के सिक्के भी मिले हैं।

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