भोपाल, 29 फरवरी (हि.स.)। आज (गुरुवार ) वह तारीख है जो साल 2024 को 366 दिन का बना रही है। तीन साल तक 365 दिन के एक साल को बिताने के बाद चौथे साल यह 29 फरवरी के साथ 366 दिन का आया है। 29 फरवरी का दिन चार साल के इंतजार के बाद आया है।

इस संबंध में भोपाल की राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि इसे लीप ईयर कहा जाता है। उन्होंने बताया कि आम तौर पर पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करते हुये 365 दिन बीतने पर हैप्पी न्यू ईयर मना लिया जाता है, जबकि इस परिक्रमा को पूरा होने में 365 दिन 5 घंटे 48 मिनिट और 45 सेकंड लगते हैं। इस अतिरिक्त लगभग 6 घंटे को समायोजित करने के लिये चार साल होने पर फरवरी माह में एक अतिरिक्त दिन जोड़कर लीप ईयर बना दिया जाता है। इससे कैलेंडर के माह और उससे जुड़े मौसम का समायोजन बना रहता है।

वैज्ञानिक सारिका यह भी बताती है कि आम तौर पर किसी सन के अंक में चार का पूरा भाग देकर लीप ईयर की पहचान की जाती है। इसके अन्य परीक्षण के लिये 400 का पूरा भाग भी दिया जाता है। तो इस अतिरिक्त खास दिन को बेहद खास तरह से मनाइए, क्योंकि अगली 29 फरवरी के लिए 2028 का इंतजार करना होगा।

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नई दिल्ली, (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मिशन गगनयान के पहले क्रू मिशन के लिए मंगलवार को नामित किये गए चार अंतरिक्ष यात्री भारतीय वायु सेना के लड़ाकू वायु योद्धा हैं। ऐतिहासिक मिशन के लिए प्रशिक्षण ले रहे इन वायु योद्धाओं ने वायु सेना के लिए कई अहम मिशन में योगदान दिया है। इनकी योग्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन सभी के पास 2 से 3 हजार घंटे वायु सेना के फाइटर जेट उड़ाने का अनुभव है।

मिशन गगनयान के लिए वायु सेना के ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला का चयन किया गया है। इन चारों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) से मुलाक़ात करके उन्हें सम्मानित भी किया। वायुसेना के 25 पायलट्स में से चार फाइटर पायलट्स को पिछले साल ‘मिशन गगनयान’ के लिए चुना गया था। इन्हें एक साल का अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण लेने के लिए रूस भेजा गया था, जहां इन्हें ट्रेनिंग देने के लिए इसरो ने रूसी संगठन ग्लेवकोस्मोस के साथ अनुबंध किया था।

रूस से प्रशिक्षण लेकर लौटे ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, अंगद प्रताप, अजीत कृष्णन और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला इस समय ऐतिहासिक मिशन के लिए बेंगलुरु में प्रशिक्षण ले रहे हैं। रूस में चारों अंतरिक्ष यात्रियों को सामान्य प्रशिक्षण दिए गए हैं लेकिन अब इन्हें गगनयान-विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिनमें चिकित्सा प्रशिक्षण, मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण, उन्नत प्रशिक्षण और उड़ान सिमुलेशन प्रशिक्षण शामिल हैं। चिकित्सा प्रशिक्षण ‘मिशन गगनयान’ की लॉन्चिंग के समय तक चलेगा। अंतरिक्ष यात्रियों को दिया जाने वाला मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण शून्य-गुरुत्वाकर्षण वातावरण, कार्य थकान, तनाव प्रबंधन करने में मदद करेगा। इससे उन्हें अंतरिक्ष में जाने और सुरक्षित रूप से वापस आने में मदद मिलेगी।

ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर

गगनयान हिस्से के रूप में कम-पृथ्वी की कक्षा में उड़ान भरने वाले चार नामित अंतरिक्ष यात्रियों में से एक ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर सेवानिवृत्त इंजीनियर के पुत्र हैं। वह पलक्कड़ के नेम्मारा गांव के रहने वाले और एनडीए के पूर्व छात्र हैं। उन्हें वायु सेना अकादमी में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर दिया गया था। उन्हें 19 दिसंबर, 1998 को भारतीय वायु सेना की फाइटर स्ट्रीम में कमीशन दिया गया था। वह एक कैट ए उड़ान प्रशिक्षक और एक परीक्षण पायलट हैं, जिनके पास लगभग 3,000 घंटे की उड़ान का अनुभव है। उन्होंने कई प्रकार के विमान उड़ाए हैं, जिनमें सुखोई-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, हॉक, डोर्नियर, एएन-32 आदि हैं। उन्होंने लड़ाकू विमान सुखोई-30 स्क्वाड्रन की कमान संभाली है।

ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में 17 जुलाई, 1982 को जन्मे ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व छात्र हैं। वह 18 दिसंबर, 2004 को भारतीय वायु सेना की लड़ाकू स्ट्रीम में नियुक्त हुए थे। वह एक उड़ान प्रशिक्षक और एक परीक्षण पायलट है। उनके पास लगभग 2,000 घंटे की उड़ान का अनुभव है। उन्होंने कई प्रकार के विमान उड़ाए हैं, जिनमें सुखोई-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डॉर्नियर, एएन-32 आदि शामिल हैं।

ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन

तमिलनाडु के चेन्नई में 19 अप्रैल, 1982 को पैदा हुए ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व छात्र हैं। उन्हें वायु सेना अकादमी में राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक और स्वॉर्ड ऑफ ऑनर दिया जा चुका है। उन्हें 21 जून, 2003 को भारतीय वायु सेना की फाइटर स्ट्रीम में कमीशन दिया गया था। वह एक उड़ान प्रशिक्षक और परीक्षण पायलट हैं। उनके पास लगभग 2,900 घंटे की उड़ान का अनुभव है। उन्होंने कई प्रकार के विमान उड़ाए हैं, जिनमें सुखोई-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर, एएन-32 आदि शामिल हैं। वह डीएसएससी, वेलिंगटन के पूर्व छात्र भी हैं।

विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 10 अक्टूबर, 1985 को पैदा हुए विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला भी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व छात्र हैं। उन्हें 17 जून, 2006 को भारतीय वायु सेना की लड़ाकू स्ट्रीम में नियुक्त किया गया था। वह लगभग 2,000 घंटे की उड़ान के अनुभव के साथ लड़ाकू परीक्षण पायलट हैं। उन्होंने कई प्रकार के विमान उड़ाए हैं, जिनमें सुखोई-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर, एएन-32 आदि शामिल हैं।

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हैदराबाद, 17 फरवरी (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शनिवार शाम जीएसएलवी एफ 14 रॉकेट की मदद से मौसम उपग्रह इनसैट-3 डीएस को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से शाम 5.35 बजे लॉन्च किया गया। इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने लॉन्चिंग की सफलता पर वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को बधाई दी।

इसरो के अनुसार इस लॉन्चिंग में तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल हुईं। पहली, यह जीएसलएलवी की 16वीं उड़ान है। स्वदेशी क्रायो स्टेज की 10वीं उड़ान और स्वदेशी क्रायो स्टेज की सातवीं ऑपरेशनल फ्लाइट है। जीएसएलवी-एफ14 रॉकेट ने लॉन्चिंग के बाद इनसैट-3डीएस सैटेलाइट को उसकी तय कक्षा में पहुंचा दिया। इसके बाद ही सैटेलाइट के सोलर पैनल्स भी खुल गए हैं। यानी इसरो के इस सैटेलाइट को सूरज से मिलने वाली रोशनी से ऊर्जा मिलती रहेगी और यह काम करता रहेगा।

यह वर्तमान में कक्षा में मौजूद इनसैट-3डी और इनसैट-3 डीआर उपग्रहों के साथ काम करता है। इस उपग्रह के काम करने से मौसम संबंधी सटीक जानकारियां मिल सकेंगी। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना में यह मददगार होगा, जिससे समय रहते बचाव एवं राहत कार्य की तैयारियां की जा सकेंगी।

इसरो की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार पहले लॉन्च किए गए इनसैट- 3डी और इनसैट- 3डीआर उपग्रहों की अगली कड़ी के रूप में इनसैट-3 डीएस भेजा गया है। लगभग 2,275 किलोग्राम वजनी इनसैट-3 डीएस उपग्रह में अत्याधुनिक तकनीक से डिजाइन पेलोड हैं।

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नई दिल्ली, 06 जनवरी (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला आदित्य-एल1 को पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर अपनी अंतिम गंतव्य कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया है। शनिवार को लगभग 4 बजे अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल 1) में स्थापित कर दिया गया। एल1 बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का लगभग एक प्रतिशत है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को इसरो के पहले सूर्य मिशन (आदित्य एल1) के सफलतापूर्वक अंतिम कक्षा में पहुंचने पर बधाई दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट किया कि भारत ने एक और उपलब्धि हासिल की। भारत की पहली सौर वेधशाला आदित्य-एल1 अपने गंतव्य तक पहुंची। यह सबसे जटिल और पेचीदा अंतरिक्ष अभियानों को साकार करने में हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। मैं इस असाधारण उपलब्धि की सराहना करने में राष्ट्र के साथ शामिल हूं। हम मानवता के लाभ के लिए विज्ञान की नई सीमाओं को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे।

इसके साथ केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार को ट्वीट करते हुए कहा कि मून वॉक से लेकर सन डांस तक भारत के लिए यह साल कितना शानदार रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में टीम इसरो ने एक और सफलता की कहानी लिखी है। सूर्य-पृथ्वी कनेक्शन के रहस्यों की खोज के लिए अपनी अंतिम कक्षा में पहुंच गया है।

भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने एक्स पर इसरो को बधाई देते हुए कहा आदित्य एल1 को उसके निर्धारित गंतव्य पर सफलतापूर्वक पहुंचाकर इसरो ने भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण यात्रा में एक और मील का पत्थर हासिल किया है। राष्ट्र इस महत्वपूर्ण मिशन की सफलता के लिए हमारे समर्पित वैज्ञानिकों की वैज्ञानिक कौशल और प्रयासों की सराहना करता है, जो सूर्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में मानवता की समझ को आगे बढ़ाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व से भारत अंतरिक्ष अन्वेषण के अपने प्रयास में लगातार ऊंची उड़ान भर रहा है।

पांच महीने पहले किया गया था लांच:

भारत की पहली सौर वेधशाला आदित्य एल1 को 2 सितंबर, 2023 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सूर्य के अध्ययन के लिए लॉन्च किया गया था। आदित्य-एल 1 में सात पेलोड लगे हैं। इनमें से चार पेलोड ऐसे हैं, जो सूर्य की ओर बढ़ते समय पड़ने वाले असर को रिकॉर्ड करेंगे। आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) के चारों ओर एक हैलो ऑर्बिट में स्थापित कर दिया गया है, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा (हैलो ऑर्बिट) में स्थापित उपग्रह को बिना किसी ग्रहण के सूर्य को लगातार देख सकता है।

आदित्य एल1 मिशन का उद्देश्य:

आदित्य एल1 मिशन का उद्देश्य सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन करना है। आदित्य एल1 मिशन अगले पांच सालों तक अध्ययन करेगा। मिशन में सात वैज्ञानिक पेलोड (उपकरण) लेकर गया है। पृथ्वी की कक्षा से बाहर जाने वाला इसरो का 5वां मिशन आदित्य एल1 मिशन स्पेसक्राफ्ट के पेलोड फ़ोटोस्फ़ेयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का अध्ययन करेगा।

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नई दिल्ली, 6 जनवरी (हि.स.)। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत एक और कीर्तिमान रचने के बेहद करीब है। शनिवार शाम 4 बजे भारत का पहला सूर्य मिशन आदित्य-एल वन अपनी मंजिल पर पहुंचेगा। आदित्य को पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर एल वन (लैंग्रेज प्वाइंट) प्वाइंट के पास की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। अपने इस महत्वाकांक्षी मिशन के आखिरी चरण के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पूरी तरह तैयार है।

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद से इसरो के इतिहास रचने का सिलसिला जारी है। नये साल की शुरुआत ब्लैक हॉल के अध्ययन के लिए सैटेलाइट लॉन्च कर इसरो ने दुनिया में धाक जमाई। इसी कड़ी में भारत का पहला सूर्य मिशन आदित्य एल वन शनिवार शाम 4 बजे अपने लक्ष्य पर पहुंचेगा। इसरो इसे कमांड देकर एल वन प्वाइंट की हेलो ऑर्बिट पर पहुंचाएगी। इसके साथ ही 3 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से सूर्य के लिए शुरू हुआ 15 लाख किमी का सफर अपने मुकाम पर पहुंच जाएगा। सूर्य के अध्ययन के लिए देश का यह पहला मिशन है। इस मिशन की सफलता पर अमेरिका के बाद केवल भारत ऐसा देश होगा जिसका अंतरिक्ष यान इस प्वाइंट तक पहुंचेगा।

क्या-क्या हुआ

– 2 सितंबर 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आदित्य एल वन का प्रक्षेपण।

– 03- 15 सितंबर को अंतरिक्ष यान ने विभिन्न चरणों को पूरा किया।

– 19 सितंबर को सूर्य-पृथ्वी एल वन प्वाइंट की ओर बढ़ा।

– 30 सितंबर को पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकला।

– 1 दिसंबर को आदित्य सोलर विंड पार्टिकल्स एक्सपेरिमेंट में सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर पेलोड शुरू।

– 6 जनवरी को आदित्य एल वन यान गंतव्य कक्षा में पहुंचेगा।

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भोपाल, 25 नवंबर (हि.स.)। शनिवार शाम के आकाश में पूर्वी आकाश में चमकता चंद्रमा अपने साथ जुपिटर की जोड़ी बनाते नजर आया । इस खगोलीय घटना की जानकारी देते हुये नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि शाम जब सूर्य अस्त हुआ तब पूर्वी आकाश में कुछ उंचाई पर चंद्रमा और बृहस्पति जोड़ी बनाते नजर आये ।

चंद्रमा लगभग 3 लाख 74 हजार 830 किमी दूर था तथा इसका 96.6 प्रतिशत भाग चमक रहा था । वहीं जुपिटर 60 करोड 85 लाख 90 हजार किमी दूर रहते हुये माईनस 2.84 मैग्नीट्यूड से चमक रहा था । यह जोड़ी रात भर दिखाई देने के बाद सुबह सबेरे 4 बजे के बाद पश्चिम में अस्त हुई ।

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नई दिल्ली, 23 नवंबर (हि.स.)। केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ‘डीपफेक’ को लोकतंत्र के लिए नया खतरा करार देते हुए गुरुवार को कहा कि सरकार इससे निपटने के लिए जल्द ही नए नियम लाएगी। मंत्री ने ‘डीपफेक’ के मुद्दे पर आज सोशल मीडिया मंचों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। उन्होंने इस मामले में सोशल मीडिया मंचों से सावधानी बरतने और वाजिब समाधान निकालने का आह्वान किया।

उसके बाद अश्विनी वैष्णव ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्होंने आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की है। इस दौरान डीपफेक मुद्दे का समाधान निकालने को लेकर चर्चा हुई है और इसका समाधान निकालने को कहा है।

वैष्णव ने कहा कि बैठक में डीपफेक की जांच कैसे हो, इसे वायरल होने से कैसे बचाया जाए, कोई यूजर इसे कैसे रिपोर्ट करे और इस पर तुरंत कार्रवाई कैसे हो सहित डीपफेक के प्रति जागरूकता बढ़ाने को लेकर चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि डीपफेक एक गंभीर मुद्दा है। इस पर जागरूकता बहुत जरूरी है। डीपफेक पर एक नए विनियमन की जरूरत है। इस पर त्वरित भाव से कार्रवाई शुरू होगी।

उल्लेखनीय है कि बीते दिनों वैष्णव ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा था कि जो सोशल मीडिया मंच डीपफेक के संबंध में पर्याप्त कदम नहीं उठाएंगे, उन्हें आईटी अधिनियम के ‘सेफ हार्बर’ प्रतिरक्षा खंड के तहत संरक्षण नहीं मिलेगा। सरकार ने हाल ही में डीपफेक मुद्दे पर कंपनियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। अब सोशल मीडिया मंचों को डीपफेक के मुद्दों को गंभीरता से लेना होगा।

बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी डीपफेक के मुद्दे को गंभीर बताते हुए आगाह किया था। उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि उनका एक डीपफेक वीडियो वायरल हुआ। उसमें वह गरबा कर रहे थे लेकिन वह वीडियो उनका नहीं था। वह स्कूल के बाद कभी भी गरबा नहीं खेले हैं।

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नई दिल्ली: चंद्रयान-3 मिशन को लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नया अपडेट दिया है। चांद की सतह पर निष्क्रिय पड़े लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान अब तक सक्रिय नहीं हो सके हैं। शुक्रवार को इसरो की ओर से इन दोनों को लगातार सिग्नल भेजे गए लेकिन अभी तक इन्हें सिग्नल नहीं मिलें। हालांकि इसरो इस संबंंध में प्रयास जारी रखेगा।

इसरो ने शुक्रवार को सोशल नेटवर्किंग साइट ‘एक्स’ पर जानकारी साझा करते हुए कहा कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए उनके जागने की स्थिति का पता लगाने के लिए प्रयास किए गए हैं। अभी तक उनकी ओर से कोई संकेत नहीं मिले हैं। संपर्क स्थापित करने के प्रयास जारी रहेंगे।

चंद्रयान-3 पर अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई ने बताया कि लैंडर और रोवर से संपर्क स्थापित करने का प्रयास जारी है। यह स्वचलित रूप से पुनर्जीवित होगा और सिग्नल भेजेगा। हालांकि अभी तक कोई सिग्नल नहीं आया है। ठंडे तापमान में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के फिर से काम करने के 50-50 फीसदी संभावना होती है। हालांकि चंद्रयान-3 मिशन पहले ही अपना काम कर चुका है।

उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर हैं, पिछले 4 सितंबर को ही इसरो ने इन्हें स्विच ऑफ कर दिया था ताकि चांद पर नई सुबह होने पर इनसे फिर काम लिया जा सके। शुक्रवार को इसरो ने लगातार सिग्नल भेजे लेकिन अभी तक लैंडर और रोवर ने इन्हें रिसीव नहीं किया है।

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भोपाल, 22 सितंबर (हि.स.)। खगोल विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए शनिवार, 23 सितम्बर का दिन खास होने जा रहा है। इस दिन एक खास खगोलीय घटना होने जा रही है। दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर सूर्य की किरणें भूमध्यरेखा पर लंबवत होंगी। माना जाता है कि इस दौरान दिन और रात बराबर होते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। यह जानकारी शुक्रवार को भोपाल की नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने दी।

उन्होंने बताया कि बताया कि पृथ्वी के मध्यभाग में सूर्य के पहुंचते दिखने की खगोलीय घटना इक्वीनॉक्स कहलाती है। यह 21 मार्च के बाद इस साल का दूसरा इक्वीनॉक्स होगा। उन्होंने बताया कि यह दिन भर चलने वाली घटना नहीं है। भारत में यह घटना दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर होगी। इसके बाद सूर्य दक्षिण में मकर रेखा की ओर बढ़ता दिखेगा। किसी भी स्थान के लिए यह समय आम तौर पर पिछले साल की तुलना में छह घंटे बढ़ जाता है। 2022 में यह भारत में प्रात: 6 बजकर 28 मिनट पर हुआ था।

सारिका ने बताया कि सितम्बर में इक्वीनॉक्स की घटना 22, 23 या 24 सितम्बर को होती है लेकिन इस सदी के अंत में सन 2092 और 2096 में यह 21 सितम्बर को होगा। इसी प्रकार 24 सितम्बर को पिछली बार यह घटना 1931 को हुई थी और इस तिथि में अगली इक्वीनॉक्स की घटना 2303 में होगी।

उन्होंने बताया कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इक्वीनॉक्स में दिन और रात ठीक बराबर नहीं होते हैं। दिन और रात बराबर होने की घटना उत्तरी गोलार्ध में इसके कुछ दिन बाद होती है। इसे इक्वीलक्स कहते हैं। यह उस स्थान के अंक्षाश पर निर्भर करता है कि कब दिन और रात बराबर होंगे। अगर मौसम साथ दे तो कल यानी शनिवार को सूर्ययात्रा के मध्यातंर से साक्षात्कार के लिए तैयार रहें।

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नई दिल्ली, 18 सितंबर (हि.स.)। सूर्य के अध्ययन के लिए लॉन्च किए गए आदित्य एल-1 ने वैज्ञानिक डेटा भेजना शुरू कर दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को बताया कि आदित्य-एल1 ने वैज्ञानिक डेटा एकत्र करना शुरू कर दिया है। अंतरिक्ष यान में लगे एसटीईपीएस उपकरण के सेंसर ने पृथ्वी से 50,000 किमी से अधिक दूरी पर सुपर-थर्मल और ऊर्जावान आयनस् और इलेक्ट्रॉनस् को मापना शुरू कर दिया है।

इसरो के मुताबिक यह डेटा वैज्ञानिकों को पृथ्वी के आसपास के कणों के व्यवहार का विश्लेषण करने में मदद करता है। यह आंकड़ा ऊर्जावान कण वातावरण में भिन्नता को प्रदर्शित करता है, जो भेजे गए उपकरणों की किसी एक इकाई द्वारा एकत्र किया गया है।

उल्लेखनीय है कि आदित्य एल-1 का अगला पड़ाव सूर्य के ऑर्बिट में स्थापित होने का है। 19 सितंबर को अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा को छोड़ कर सूर्य के ऑर्बिट की तरफ अग्रसर होगा।

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नई दिल्ली, 7 सितंबर (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आदित्य एल 1 द्वारा ली गई कुछ तस्वीरें साझा की हैं। इसरो ने गुरुवार को जानकारी दी है कि सूर्य-पृथ्वी एल1 बिंदु के लिए निर्धारित आदित्य-एल1 ने सेल्फी ली है और पृथ्वी और चंद्रमा की खूबसूरत तस्वीरें भी क्लिक की हैं। स्पेस एजेंसी ने तस्वीरें और एक सेल्फी भी एक्स पर साझा की है, जिसे आदित्य-एल1 ने क्लिक किया था।

इसरो ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए कहा, “आदित्य-एल1 मिशन: दर्शकों, आदित्य-एल1 ने सूर्य-पृथ्वी एल1 बिंदु के लिए सेल्फी ली, पृथ्वी और चंद्रमा की तस्वीरें खींची। उल्लेखनीय है कि आदित्य एल वन अभी पृथ्वी की कक्षा में घूम रहा है। इसके बाद वह सूर्य की ओर अपनी यात्रा शुरू करेगा।

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नई दिल्ली, 2 सितंबर (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शनिवार को बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के प्रज्ञान रोवर ने अपना काम पूरा कर लिया है। इसे अब सुरक्षित रूप से पार्क किया गया है और स्लीप मोड में सेट किया गया है।

इसरो ने शनिवार को एक्स पर बताया कि प्रज्ञान रोवर के दो उपकरण एपीएक्सएस और एलआईबीएस बंद कर दिए गए हैं। इन पेलोड से डेटा लैंडर के माध्यम से पृथ्वी को भेजा जाएगा। मौजूदा समय में रोवर की बैटरी पूरी तरह चार्ज है। इसरो ने बताया कि प्रज्ञान रोवर के सौर पैनल 22 सितंबर, 2023 को अपेक्षित अगले सूर्योदय से प्रकाश प्राप्त करके काम करने की उम्मीद है। रिसीवर चालू रखा गया है। असाइनमेंट के एक और सेट के लिए सफल जागृति की उम्मीद है, नहीं तो यह हमेशा भारत के चंद्र राजदूत के रूप में वहीं रहेगा।

उल्लेखनीय है कि चंद्रयान 3 की सॉफ्टलैंडिंग 23 अगस्त को चंद्रमा पर हुई थी। तब से प्रज्ञान रोवर लगातार पृथ्वी को चंद्रमा के बारे में जानकारी और तस्वीरें भेज रहा था।

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