Chhapra: भिखारी ठाकुर रंगमंच शताब्दी समारोह के अंतिम दिन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया.

वीर कुंवर सिंह गाथा गान के माध्यम से माध्यम से सारण जिले की उभरती लोक गायिका अनुभूति शांडिल्य तीस्ता ने बाबू साहब के गौरव की बखान की. जेकरा अस्सी बरिस में आईल जवनिया, कहनिया बाबू कुँवर के सुनीं गीत के माध्यम से उनकी वीरता के किस्से को सभी तक पहुंचाने के इस अंदाज को दर्शकों ने खूब सराहा. तीस्ता ने अपनी प्रस्तुति से खूब तालियां बटोरी. जाने माने लोकगायक व उनके पिता उदय नारायण सिंह ने गायन में उनका साथ दिया. प्रस्तुति के बाद अनुभूति को सम्मानित किया गया.

इस अवसर पर उप सचिव सुमन कुमार, डॉ लालबाबू यादव, जैनेन्द्र दोस्त आदि उपस्थित थे. 

कार्यक्रम में इसके बाद चांद किशोर सिंह के द्वारा राजा मौर्यध्वज़ गाथा गायन, भोजपुरी लोक व पारंपरिक गीतों की प्रस्तुति लोकगायक मनन गिरी (व्यास) ने दी. वही भिखारी ठाकुर के लोक गायन प्रेम सागर सिंह ने प्रस्तुत की. अंतिम कार्यक्रम के रूप में भिखारी ठाकुर के बिदेशिया का मंचन हुआ. जिसके बाद फिर मिलने के वादे के साथ पांच दिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ.  

बहुरूपिया दल का हुआ सम्मान

रंगमंच शताब्दी समारोह में राजस्थान से पहुंचे बहुरूपिया कलाकारों को सम्मानित किया गया. इस अवसर पर भी अपने भेष बदल मुनीम बने शमसाद बहुरूपिया ने कहा कि छपरा और खासकर भिखारी ठाकुर की भूमि पर पहुंच कर उन्हें बहुत ही अच्छा लगा. लोक कलाकार भिखारी को नमन करते हुए कहा कि मौका मिला तो फिर छपरा जरूर आएंगे.

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Chhapra: भिखारी ठाकुर रंगमंच शताब्दी समारोह के तीसरे दिन स्थानीय राजेंद्र स्टेडियम में उदगार संस्था के मधुबनी की पारंपरिक प्रस्तुति डोमकच से शुरुआत हुई. भोजपुरी और मैथिलि लोक संस्कृति की नारी प्रधान प्रस्तुति मनोहारी थी.

इसके बाद सारण के लोक गायक उदय नारायन सिंह ने अपने गायन से समां बांध दिया. उन्होंने अपने गायन की शुरुआत भोजपुरी के प्रथम कवि कबीर के भोजपुरी निर्गुण को आधुनिक परिपेक्ष्य में प्रासंगिकता को स्वरबद्ध जागल रहिह हो, ‘कवन ठगवा नगरिया लूटल हो’ से की. उन्होंने भिखारी ठाकुर की रासलीला और बिदेशिया के गीतों को गाया. उनके गायन के दौरान बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचे थे.

कार्यक्रम में भिखारी ठाकुर रंगमंडल प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र छपरा के द्वारा जैनेन्द्र दोस्त द्वारा निर्देशित पिया निसाईल का मंचन हुआ. जिसे लोगो ने सराहा.

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Chhapra (Surabhit Dutt): गली मुहल्ले में घूमते वक्त अचानक आपकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ती है जो अजीब तरह के कपड़े पहने घूम रहा है. कभी काली माँ तो कभी शंकर भगवान, कभी पुलिस के भेष में. ये बहुरूपिये होते है जो अलग अलग भेष बदल कर घूमते है और इसी से अपनी रोजी रोजगार चलाते है. हालांकि वर्तमान समय में शहर ही नहीं गांवों में भी ये बहुरूपिये दीखते नहीं.  

आधुनिक दौर  में बहुरूपिये कही देखने को नहीं मिलते. बहुरूपिया एक ऐसी कला है जिसे अब लोग भूलते जा रहे है. आधुनिकता के दौर में इस कला को अपनी पहचान बचाये रखना चुनौती साबित हो रही है. पीढ़ियों से इस कला से जुड़े कलाकार अब आगे इसे जारी रखने में असमर्थ दिख रहे है.

जोकर की भेष में नौशाद बहुरूपिया

शहर में आयोजित भिखारी ठाकुर रंगमंच शताब्दी समारोह में राजस्थान के दौसा जिले से पहुंचे बहुरूपिया दल से बातचीत में उनके द्वारा जिन चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है विस्तार से बताया.

देखे Video 

जिन्न के भेष में फिरोज बहुरूपिया

अपनी सात पीढ़ियों से बहुरूपिया का भेष धर राजा महाराजा के दरबार से अब के आधुनिक युग तक लोगों का मनोरंजन कर रहे इस परिवार में छह भाई है और सभी अपने पूर्वजों के इस कला को आगे बढ़ रहे है. हालांकि परिवार की वर्तमान और भावी पीढ़ी इस कला को अपनाने में असमर्थता जता रही है.

भोले की भेष में फरीद बहुरूपिया

बातचीत के दौरान बहुरूपिया बने फिरोज, फरीद, शमशाद और नौशाद बहुरूपिया ने बताया कि आज इस कला को जीवित रखना कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा है. संस्कृति मंत्रालय और संगीत नाटक अकादमी के प्रयास से देश में कार्यक्रम के माध्यम से कुछ मौका मिल रहा है जो परिवार के भरण पोषण की व्यवस्था कर रहा है. जबकि आज इस कला को लोग भूलते जा रहे है.

बहुरूपियों के इस दल के सदस्य और भोला शंकर का रूप धारण किये बने फरीद बहुरूपिया ने बताया कि राजस्थान के दौसा जिले के बांदीकुई में उनका परिवार कई पीढ़ियों से इस कला को करता आ रहा है. पहले की पीढ़ियों ने राजा महाराजाओं के दरबार में प्रस्तुति दी. समय बदला और अब मंत्रालय के माध्यम से प्रस्तुती दे रहे है. वे राजस्थान में वेस्ट जोन कल्चर सेंटर से जुड़े है जहाँ से देश के कई शहरों में जाना होता है.

जिन्न का भेष धारण किये फरीद बहुरुपिया ने बताया कि मेकअप और तमाम अन्य खर्च को उठाना अब मुश्किल है. जब लोगों को इसके प्रति कोई रूचि नहीं रही. यहाँ तक की परिवार के बच्चे भी इससे जुड़ना नहीं चाहते और अलग रोजगार तलाश रहे है.

जोकर के भेष में नौशाद बहुरुपिया ने कहा कि आज की पीढ़ी इस परंपरा कला से दूर जा रही है. अनेकों रूप को धरने वाले इस कला को अब लोग भूल रहे है. हमारे परिवार वाले भी इससे दूर जा रहे है. आज के दौर में यह छूट रहा है सरकार कोई ठोस कदम नही उठा रही है.
कलाकार की कला को सब देखते है उसके अन्दर छिपे संघर्ष और चुनौतियों से शायद की कोई वाकिफ हो पाता है.

कुल मिलकर लगभग लुप्त होती इस कला को संजो कर रहने में राजस्थान का यह परिवार तो सफल है पर आने वाली पीढ़ी शायद ही इस कला से अवगत हो पाए.

 

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Chhapra(Surabhit Dutt): भिखारी ठाकुर रंगमंच शताब्दी समारोह के अवसर पर शहर के राजेन्द्र स्टेडियम में भारतीय संस्कृति के कई रंग देखने को मिले. ग्रामीण परिवेश में संस्कृति के कई ऐसे आयाम है जो आज के आधुनिक युग में पीछे छूटते जा रहे है. अपनी संस्कृति से रूबरू कराने के लिए किए जा रहे इस आयोजन को भिखारी ठाकुर से जोड़ा गया है जो स्वयं ग्रामीण संस्कृति और विधाओं को नाटक के जरिये विश्व पटल से अवगत कराने के लिए जाने जाते है.

इस आयोजन के पहले दिन खासियत यह रही कि लोगों को खास कर नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से अवगत होने का मौका मिला. कार्यक्रम की शुरुआत रस्म चौकी से हुई. जिसके बाद मधुबनी से पहुंचे कलाकारों ने रघुवीर यादव के नेतृत्व में सलेस अनुष्ठानिक का मंचन किया. ग्रामीण क्षेत्रों के इन रस्म रिवाजों से लोग अवगत नही हो रहे जिसको यहां दर्शाया गया. इस तीन दिवसीय आयोजन के अगले दो दिन स्थानीय लोगों को कला संस्कृति से रूबरू होने का अवसर मिलेगा.

सुमन कुमार, उपसचिव, संगीत नाटक अकादमी

संगीत नाटक अकादमी के उप सचिव सुमन कुमार ने बताया कि भिखारी ठाकुर अपनी कृतियों से आज के इस दौर में भी प्रासंगिक है. संगीत नाटक अकादमी ने भिखारी ठाकुर को कलाकार होने का सम्मान दिया है. इससे रंगमंच को एक दिशा मिल रही है. अकादमी ने रंगमंडल में प्रशिक्षण की व्यवस्था करने की कोशिश हो रही है. अगले तीन दिनों तक भिखारी के नाटक, गीत, अनुष्ठानिक देखने को मिलेंगे. इसके माध्यम से दशा और दिशा ठीक करने की कोशिश होगी.

आयोजक जैनेन्द्र दोस्त ने बताया कि भिखारी ठाकुर रंग-शतक को लेकर लोग पूछते है कि शतक कैसे हुआ. ऐसे में उनकी एक उक्त प्रासंगिक है जिसमे उन्होंने कहा है कि 

तीस बरिस के उमीर भइल, बेधलस खुब कलिकाल के मइल।

नाच मंडली के धरी साथ, लेक्चर दिहिं कही जय रघुनाथ।।

जैनेन्द्र दोस्त, आयोजक

भिखारी ठाकुर बीसवीं शताब्दी के बड़े नाटककार कलाकारों में से एक रहे है. अपने नाच-नाटक दल की स्थापना कर उन्होंने नाटकों के माध्यम से तत्कालीन समाज की समस्याओं और कुरूतियों को सहज तरीके से नाच शैली में मंच पर प्रस्तुत करने का काम किया. उनके नाच दल भिखारी ठाकुर रंगमंडल ने अपनी 100 वर्ष की रंगमंचीय यात्रा को इस वर्ष पूरा किया है.

इस आयोजन में अगले तीन दिनों तक लोगों को सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देखने को मिलेगी. हालांकि आयोजकों के द्वारा बेहतर प्रचार प्रसार ना करने से लोगो को कार्यक्रम की जानकारी कम हुई और पहले दिन भीड़ कम ही दिखी.   

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सर्च इंजन गूगल ने सुर सम्राट मोहम्मद रफी की 93वीं जयंती पर रविवार को एक डूडल बनाकर उन्हें याद किया. डूडल में रफी हेडफोन लगाए गाते दिखाई दे रहे हैं.

पंजाब के अमृतसर जिले के मजिठा के पास कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर, 1924 को जन्मे रफी ने कई भाषाओं में सात हजार से ज्यादा गाने गाए. उनकी मुख्य पहचान हिंदी गायक के रूप में थी और उन्होंने तीन दशक के अपने करियर में ढेरों हिट गाने दिए.

उन्होंने छह फिल्म फेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था. उन्हें 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

रफी ने हिंदी फिल्मों के लिए ‘ओ दुनिया के रखवाले’ (बैजू बावरा), ‘पत्थर के सनम’ (पत्थर के सनम), ‘चौदहवीं का चांद हो’ (चौदहवीं का चांद), ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए’ (प्यासा), ‘दिन ढल जाए’ (प्यासा), ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ (नीलकमल), ‘तारीफ करूं क्या उसकी’ (कश्मीर की कली) जैसे अनगिनत हिट गाने दिए जो आज भी गुनगुनाए और पसंद किए जाते हैं.

 

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Chhapra: मौलाना मजहरुल हक की 151 जयंती के अवसर पर शुक्रवार को शहर के एकता भवन में ऑल इंडिया मुशायरा का आयोजन किया गया. मुशायरा में देश के जाने माने शायरों ने शिरकत की.

मुशायरे की शुरुआत कानपूर से आई शायरा शाबीना अदीब के शायरी से हुई. उनकी शायरी ये सरजमीं अपनी जन्नत से कम नहीं है, मेरे वतन के जैसा कोई वतन नहीं है को लोगों ने खूब सराहा. इसके बाद एक एक कर शायरों ने अपनी शायरी प्रस्तुत की.

मुशायरा में नवाज़ देवबंदी दिल्ली, जौहर कानपुरी, सुनील कुमार तंग इनायतपुरी, शाबीना अदीब कानपुर, चरण सिंह बशर दिल्ली, विभा सिंह बनारस, अल्ताफ ज़ेया मालेगांव, अज्म शाकरी इटावा, नदीम शाद देवबंद, उस्मान काविश बलिया, एरम अंसारी कोलकाता, अशरफ याक़ुबी कोलकाता, परवेज़ अशरफ सीवान, सुहैल उस्मानी मुगलसराय, जकी हाशमी गोपालगंज, डॉ. मोअज़्जम अज्म छपरा, शमीम परवेज़ छपरा, रिपुंजय निशांत छपरा, दक्ष निरंजन शंभू छपरा ने अपनी शायरी प्रस्तुत किये. संचालन डॉ. कलीम कैसर ने किया.

मुशायरे की शुरुआत विधान परिषद् के उपसभापति हारून रशीद ने दीप प्रज्जवलित कर किया. इस अवसर पर जिला परिषद अध्यक्ष मीना अरुण, नगर निगम की मेयर प्रिया देवी आदि उपस्थित रहे. अध्यक्षता डीएम हरिहर प्रसाद ने की.

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Chhapra: महान स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू-मुस्लिम एकता के अलमबरदार मौलाना मजहरुल हक की जयंती पर आगामी 22 दिसम्बर को अखिल भारतीय मुशायरा का अयोजन किया जाएगा. उक्त जानकारी मजहरुल हक मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष व बिहार विधान परिषद के पूर्व उपसभापति सलीम परवेज ने दी. उन्होंने बताया कि सारण की गंगा जमुनी संस्कृति को पल्लवित करने में इस मुशायरा का अहम रोल रहा है. अपनी अदबी और सांस्कृतिक विरासत के कारण यह पूरे देश में महत्वपूर्ण माना जाता है.

उन्होंने बताया कि मजहरुल हक एकता भवन के पुनर्निर्माण के कारण विगत दो वर्ष इसका अयोजन नहीं हो सका. इस अंतराल के कारण इसबार मुशायरा को ऐतिहासिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है. अधिवक्ता मंजूर अहमद के नेतृत्व में अयोजन समिति बनायी गयी है. संयोजक खुर्शीद साहिल ने बताया कि मुशायरा में देश के नामी शायर व कवि शिरकत करेंगे जिनमें नवाज़ देवबंदी दिल्ली, जौहर कानपुरी, सुनील कुमार तंग इनायतपुरी, शाबीना अदीब कानपुर, चरण सिंह बशर दिल्ली, विभा सिंह बनारस, अल्ताफ ज़ेया मालेगांव, अज्म शाकरी इटावा, नदीम शाद देवबंद, उस्मान काविश बलिया, एरम अंसारी कोलकाता, अशरफ याक़ुबी कोलकाता, परवेज़ अशरफ सीवान, सुहैल उस्मानी मुगलसराय, जकी हाशमी गोपालगंज, डॉ. मोअज़्जम अज्म छपरा, शमीम परवेज़ छपरा, रिपुंजय निशांत छपरा, दक्ष निरंजन शंभू छपरा शामिल हैं. संचालन डॉ. कलीम कैसर करेंगेे.

उन्होंने बताया कि मुशायरा के मुख्य अतिथि विधान परिषद के उपसभापति हारून रशीद होंगे जबकि जिला परिषद अध्यक्ष मीना अरुण, नगर निगम की मेयर प्रिया देवी, विधायक विजय शंकर दुबे, चंद्रिका राय, मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह, जितेंद्र कुमार राय, शत्रुघ्न तिवारी उर्फ चोकर बाबा, डॉ. सी. एन. गुप्ता, डॉ. रामानुज प्रसाद, मुनेश्वर चौधरी, केदार नाथ सिंह व मुन्द्रीका राय, विशिष्ट अतिथि तथा एसपी हर किशोर राय व एडीएम अरुण कुमार विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे. अध्यक्षता डीएम हरिहर प्रसाद करेंगे.

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Chhapra (Aman Kumar): शादी समारोहों और शुभ कार्यों में बजने वाले सुरीले वाद्ययंत्र शहनाई को एक ओर जहां डीजे की धुन के आगे लोग भूलने लगे है. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे है जो शहनाई के सुरों की गूंज से आज भी इस विधा को जीवंत रखने का प्रयास कर रहे हैं.

कुछ ऐसा ही प्रयास छपरा के मो० पंजतन वर्षों से करते आ रहे हैं. छपरा टुडे डॉट कॉम के अमन कुमार से बातचीत में शहर के नई बाज़ार निवासी मो० पंजतन ने बताया कि इसी वर्ष मार्च में बिस्मिल्लाह खान विशेष पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. शारीरिक रूप से दिव्यांग होने के बाद भी इनमें हौसले, जूनून और प्रतिभा की कोई कमी नहीं. मो. पंजतन ने पूर्णिया में आयोजित राज्य स्तरीय युवा महोत्सव के दौरान शहनाई वादन में पूरे बिहार में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. पिछले 10 वर्षों से शहनाई वादन में खुद को समर्पित करने वाले पंजतन ने संस्कृति को जीवंत रखने का कार्य कर रहे है.

इन्हें शहनाई वादन में कई पुरस्कार भी मिले हैं. उन्होंने सुबह-ए-बनारस, आजमगढ़ में रंग महोत्सव के कई अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अपनी शहनाई का जलवा बिखेरा है.

बताते चलें कि मो० पंजतन ने पिछले महीने नगर निगम सभागार में आयोजित जिला युवा महोत्सव में हिस्सा लिया था. जिसके बाद इनका चयन राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए किया गया था.

पीढ़ी से चली आ रही शहनाई वादन की परम्परा
मो० पंजतन के पिता मो० अख्तर भी इस विधा से जुड़े है. उन्होंने ही अपने बेटे को शुरुआत में शहनाई वादन की शिक्षा दी.

पंजतन और उनके पिता के ऐसे प्रयासों से शहनाई जैसे वाद्ययंत्र से नई पीढ़ी अवगत हो रही है. हालांकि आज जब पाश्चात्य संस्कृति हावी है ऐसे में डीजे जैसे आधुनिक संगीत यंत्रों में शहनाई गुम सी हो गयी है. इसे संरक्षित करने की जरुरत है.

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New Delhi: भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा शादी के पवित्र बंधन में बंध गए हैं. विराट और अनुष्का ने सोमवार को इटली में एक निजी समारोह में शादी की. शादी में दोनों के बहुत करीबी लोग ही शामिल हुए.

कोहली और अनुष्का ने ट्वीट कर अपने फैन्स से तस्वीरें शेयर की.

विराट कोहली ने लिखा…

अनुष्का शर्मा ने लिखा…

भारत लौटने पर विराट और अनुष्का 21 दिसंबर को दिल्ली में रिसेप्शन देंगे. इसके बाद 26 दिसंबर को मुंबई में एक शानदार पार्टी होगी.

Photo Courtesy: Photo Tweeted by anushka sharama

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New Delhi: हिंदी सिनेमा के जाने माने अभिनेता शश‍ि कपूर का सोमवार को 79 साल की उम्र में निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को किया जाएगा. अंतिम संस्कार कहां होगा यह तय नहीं है.

शशि कपूर ने हिन्दी सिनेमा में डेढ़ सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय किया था. उनका जन्म 18 मार्च 1938 को कोलकाता में हुआ था.

उनकी यादगार फिल्मों में जब-जब फूल खिले, कन्यादान, शर्मीली, आ गले लग जा, रोटी कपड़ा और मकान, चोर मचाए शोर, दीवार कभी-कभी और फकीरा जैसी हिट फिल्म शामिल है.

साल 2011 में शशि कपूर को भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था. 2015 में उन्हें दादा साहेब पुरस्कार भी मिल चुका था. शशि कपूर के बचपन का नाम बलबीर राज कपूर था. शशि ने एक्टिंग में अपना करियर 1944 में अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर के नाटक ‘शकुंतला’ से शुरू किया था.

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रिविलगंज: बिटिया के हाथ पीले हो जाएं, उसकी मांग भर जाये, एक अच्छा घर और वर मिल जाए और उसको ख़ुशी ख़ुशी घर की देहरी से विदा कर पाएं, ये वो सपना है जो हर बेटी का बाप देखता है, और इसके लिए वो दिन रात मेहनत करके अपनी कमाई की एक एक पाई जोड़ता है. बाप अमीर हो, दौलतमंद हो तो उसके ये ख्वाब हक़ीक़त में बदलते देर नहीं लगती, पर अगर बाप मजदूर हो, गरीब हो, बेसहारा हो तो ये ख्वाब पूरे करने में उसका वजूद तक हिल जाता है.

रिविलगंज प्रखंड के मोहब्बत परसा पंचायत निवासी स्व. बिंदा चौधरी की पुत्री तय हो गयी थी और उनकी विधवा पत्नी आर्थिक तंगी से जुझ रही थी. उनकी बेटी की हाथ पीला करने के लिए आगे आये हैं भोजपुरी फिल्म के सुपरस्टार अभिनेता खेसारी लाल यादव। खेसारी ने मोहब्बत परसा गांव पहुंचकर उनकी बेटी के शादी के लिए 5100 रूपये की आर्थिक मदद और साड़ी-कपड़ा दिया. ताकि बेटिया की शादी हो सके.

इस मौके पर खेसारी लाल ने कहा कि मैं भी एक गरीब का बेटा हूं. गरीबी मैने बहुत हीं करीब से देखा है. एक माँ को अपने बच्चों को पालन-पोषण करने में कितना तकलीफ मैं जानता हूं. जिसके घर में मुश्किल से दो वक़्त का चूल्हा जलता हो, और मुश्किल से परिवार के लोगों का पेट भर पाता हो तो ऐसे में बिटिया की शादी करना उसके लिए दुःस्वप्न सा हो जाता है, दहेज और शानोशौकत की शादी हमारे समाज की वो बुराई है जो हमारी नसों में लहू की तरह दौड़ रही है, संविधान ने तो इसपे रोक लगाया लेकिन हम अपने खून की इस गंदगी को दूर न कर पाए.

इस मौके पर पंचायत के मुखिया रेखा मिश्रा, मुखिया पति बुलबुल मिश्रा, सहाजितपुर के मुखिया मुन्ना सिंह,अजय सिंह, फिल्म एंकर रविरंजन समेत अन्य लोग मौजूद थे.

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(कबीर की रिपोर्ट) इन्सान अगर जो ठान ले तो ऐसा कहा गया है कि दुनिया की कोई ताकत उसे अपनी मंजिल तक पहुँचने से रोक नही सकती. दिल में ज़ज्बा, जुनून और दोस्तों का साथ हो तो अपने सपनो की उड़ान उड़ी जा सकती है. आज हम आपको छपरा के एक ऐसे युवक से मिलाने जा रहे है जिन्होंने अपनी शुरुआत छपरा शहर के एक छोटे से गाँव शेरपुर से शुरू की और आज बॉलीवुड में अपनी पहचान बना रहा है.

इस युवा कलाकार ने ये साबित कर दिया है कि शहर छोटा हो सकता है लेकिन हुनर नही. हुनर ऐसा की आप सुन कर दंग रह जायेंगे. छपरा के एक गाँव का युवा कलाकार गानों को लिखता भी है, अपने ऊपर फिल्माता भी है, वीडियो को एडिटिंग भी करता है और अपनी सुरीली आवाज़ से उस गाने को सजाता भी है. आज इसकी एल्बम सोशल साइटों पर धमाल मचा रही है.

छपरा शेरपुर के रहने वाले कामरान आलम ने छपरा टुडे डॉट कॉम से बात करते हुए बताया कि मैंने सोंचा भी नही था कि 2 नवम्बर को रिलीज हुई मेरी एल्बम को कम समय में लाखों लोग देखेंगे. अब तीन एल्बम को मैंने जारी किया लेकिन ये एल्बम ‘पहली दफा’ ज्यादा पसंद किया गया. इससे पहले एल्बम ‘ज़िन्दगी’ और ‘तेरी यादें’ जारी हुई है.

कामरान आलम ने बताया कि मै बचपन से मोहम्मद रफ़ी और किशोर दा के गाने सुना करता था और आज भी पसंद करता हूँ. बचपन में मुझे स्केचिंग का बहुत शौक था. घर का माहौल वैसा नही था जिससे मै अपने सपनो की उड़ान भरूं, लेकिन माता-पिता का पूर्ण सहयोग, दोस्तों का साथ और दर्शकों का प्यार और स्नेह ने मुझे यहाँ ला खड़ा किया है.

कामरान राज्य के विभिन्न जिलों जैसे- कटिहार, अररिया, पुरनिया, गया, मुंगेर, गोपालगंज, पटना इत्यादि में अपना परफोर्मेंस दे चुके है और एक बार देश से बाहर नेपाल के काठमांडू में भी अपने गायिकी का जलवा बिखेरा है.

बताते चलें कि कामरान का जन्म उड़ीसा के राजगंगपुर में हुआ. लेकिन बचपन से ही अपने ननिहाल छपरा के शेरपुर रहे. प्रारंभिक शिक्षा ज्ञान गंगा पब्लिक स्कूल शेरपुर, छपरा से पूरी कि और अभी विद्या बिहार कॉलेज से BCA कर रहे है.

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