भारत विविधताओं का देश है, यहां हर पर्व-त्योहार बड़ी खुशी और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसमें बिहार का सुप्रसिद्ध छठ, लोक आस्था का महत्वपूर्ण पर्व जो भारतीय लोक संस्कृति और परंपराओं का अनूठा महापर्व है। छठ हमारी लोक आस्था ही नहीं, स्वजनों का स्वमिलाप और स्वरोजगार का साधन भी है।

जिसकी छाप छठ के छह दिनों में दिखती है, अब इसकी खनक विदेशों में भी देखने को मिलती है। सूर्योपासना का महत्वपूर्ण पर्व छठ अपनी सादगी, पवित्रता और पौराणिक लोक कथाओं के रूप में प्रचलित है। जिसमें भक्ति और आध्यात्म के लिए भव्य पंडाल से सुसज्जित मंदिर, साफ एवं सुंदर पोखर, तालाब, नदी का तट एवं आकर्षक मूर्ति की भी आवश्यकता होती है।

जिसमें छठ पर्व के लिए बांस से बने सूप, अब पीतल का सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तन, गन्ने, गुड़, अरवा चावल, गेहूं के आटे से बना ठेकुआ, केला, सेव, संतरा, शरीफा, अमरूद, पानी फल सिंघारा, नींबू, नारियल, अनानास, सुथनी, शकरकंद, पत्ते वाली हल्दी, अदरक, चावल के आटे का पीट्ठा, पान का पत्ता, तुलसी, बद्धि, अलता, अक्षत, सिंदुर, घी, बाती, धूप, दिए आदि से सूर्यदेव को पहले संध्या बाद में सुबह का अर्घ्य लोकगीत के माधुर्य से सराबोर वातावरण के बीच दिया जाता है।

जिसके लिए सामाजिक समरसता और पारिवारिक सौहार्द की भूमिका अहम हो जाती है। लोक आस्था का यह महत्वपूर्ण पर्व मनाने के लिए प्रवासी भारतीय सहित घर से दूर-दराज के राज्य, प्रांत, देश, शहर, विदेश में रहने वाले परिजन जरूर घर आते हैं। जिससे उनके स्वजनों का स्वमिलाप का केंद्र बिंदु हो जाता है। सालभर पहले ही लोग प्लान कर छठ में घर आने की तैयारी में रहते हैं। दूसरी ओर यह महापर्व स्वरोजगार का भी बड़ा माध्यम है।

बड़ा माध्यम इसलिए कहा जाता है कि छठ पर्व के निमित्त किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी एक दो महीने पहले ही पूर्ण तैयारी के साथ उपरोक्त वर्णित साम्रगी की उपलब्धता के लिए जीतोड़ करते हैं। खासकर सुथनी सौरखा आदि के लिए किसान खेती कर लोग को ससमय उपलब्ध कराते हैं। बाजार में पान का पत्ता, अगरबत्ती की बिक्री लोग बोल बोलकर करते हैं। ठेला, रिक्शा, सड़क किराने फुटपाथ की दुकाने सजकर लोगो को छठ पर्व से संबंधित महत्वपूर्ण साम्रगी उपलब्ध कराते हैं।

समाजनीति पर सार्थक चर्चा करने वाले शिक्षक कौशल किशोर क्रांति कहते हैं कि जो व्यक्ति वर्षभर बेरोजगार बैठे रहते हैं, उन्हे इन छह दिनो में व्यापक रोजगार मिलता है। चाहे वो साफ-सफाई हो, छठ का समान खरीद बिक्री का हो, पंडाल निर्माण का हो, मूर्ति निर्माण का हो, उन्हें किन्ही ना किन्ही रूप में रोजगार मिलता है। सुचिता एवं आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ की धूम मची हुई है। यह छठ सिर्फ बिहार की लोक संस्कृति का ही पर्व नहीं, बल्कि प्राचीन काल से ही गांव के लोकल फॉर वोकल होने का उत्सव भी है।

एक अनुमान के मुताबिक छठ पर्व के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा खर्च किए गए पैसे में से 50 प्रतिशत से अधिक सिर्फ गांव में पहुंचता है। उद्योगपतियों तक पहुंचता है तो सिर्फ रिफाइन, चीनी, सूखा मेवा एवं कुछेक श्रृंगार वस्तुओं पर खर्च की गई राशि ही। इसलिए एक ऐसा महापर्व है जो लोकल फॉर वोकल के सबसे प्राचीन उदाहरण है। यह एक ऐसी पूजा है जिसमें किसी पंडित की जरूरत नहीं होती है, जिसमें देवता प्रत्यक्ष हैं, डूबते सूर्य भी पूजे जाते हैं। व्रती-जाति समुदाय से परे हैं, केवल लोक गीत गाए जाते हैं।

पकवान घर पर बनते हैं, घाटों पर कोई ऊंच-नीच नहीं है। एक समान प्रसाद अमीर-गरीब सभी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं। सबसे बड़ी बात है कि सामाजिक सौहार्द, सद्भाव, शांति, समृद्धि और सादगी के इस महापर्व का बाजार गांव की वस्तुओं से सजता है। सिर्फ बेगूसराय जिले में इस महापर्व में 25-30 करोड़ का कारोबार होता है, जिसमें 15 करोड़ से अधिक रुपया गांव के गरीब और किसानों तक पहुंचता है। जिस पैसों से यह महापर्व उनके लिए आर्थिक समृद्धि का त्यौहार साबित होता है। किसानों द्वारा उपजाए जाने वाले सुथनी की भले ही आम दिनों में कोई पूछ नहीं हो, लेकिन छठ में यह डेढ़ सौ रुपये किलो बिक रहा है।

हल्दी तो हल्दी, हल्दी के पत्ते भी किसानों को अतिरिक्त आय दे जाते हैं। बांस लगाने वाले किसान को भी इस पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है तथा मलिक समुदाय के लोग सूप एवं अन्य लोग डाला बनाने के लिए बड़ी संख्या में बांस खरीदते हैं। केराव (मटर), शरीफा, पानी फल सिंघारा, दीपक, अमरूद, केला, पान का पत्ता, फूल, माला, अदरक, मूली, गन्ना (ईंख), आम की लकड़ी, ओल, गुड़, डाभ नींबू, गोयठा तथा गाय का दुध भी किसी फैक्ट्री में नहीं बनता है, बल्कि गांव से ही आता है।

इस वर्ष भी गांव से लेकर शहर तक का बाजार ग्रामीण उत्पादों से भर चुका है। कहीं सुथनी बिक रहा है तो कहीं ओल, अल्हुआ, गन्ना, हल्दी का पता, पानी फल सिंघाड़ा, चीनी का सांच आदि और तमाम जगहों पर लोगों की भीड़ जुटी हुई है। कुल मिलाकर लोक आस्था के महत्वपूर्ण महापर्व छठ को स्वमिलन और स्वरोजगार का भी केंद्र कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं है। प्रवासी ट्रेन से भर-भर कर आ चुके हैं तो बाजार में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है। 

 

एजेंसी इनपुट 

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लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा के लिए सुदृढ़ सेवा ही हमारा पहला धर्म: डॉo राहुल राज

ढेलहारी बुजुर्ग में किया नवनिर्मित छठ घाट का उद्घाटन: 

chhapra: आगामी महापर्व छठ पूजा को लेकर विभिन्न स्थानों पर जोर-शोर के साथ तैयारियाँ चल रही हैं. जिसके अंतर्गत रिविलगंज प्रखंड प्रमुख सह सदस्य, प्रदेश कार्यसमिति, भाजपा (बिहार), डॉo राहुल राज, प्रखंड विकास पदाधिकारी तथा मुखिया प्रतिनिधि मुन्ना सिंह ने संयुक्त रूप से सारण जिले के अंतर्गत रिविलगंज प्रखंड के ढेलहारी बुजुर्ग में छठ घाट का उद्घाटन फीता काटकर किया.

डॉo राहुल राज ने छठ घाट निर्माण में अपना महवपूर्ण परिश्रमी योगदान देने वाले सभी कर्मियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनका यह योगदान सराहनीय है. यह छठ पूजा के प्रति उनकी सहृदय सच्ची आस्था और श्रद्धा भाव ही है, जो इस कार्य के प्रति उन्हें कर्मठ व सक्षम बनाते हैं. उपस्थित लोगों से वहाँ पर आने वाले छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं की संख्या के बारे में पूछने पर लोगों ने बताया कि यहाँ इस महापर्व के दौरान लगभग हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर पूजा पाठ करते हैं.

इसके अलावा क्षेत्र के अन्य घाटों पर भी भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. डॉo राहुल राज ने लोगो को यह भी निर्देश दिया कि आस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर छठ व्रतियों को अपेक्षित सुविधा प्रदान किया जाए, पानी की गहराई को ध्यान में रखते हुए बैरिकेटिंग की व्यवस्था भी की जाए तथा भीड़ की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसके लिए पुख्ते इंतजाम किये जाए ताकि पूजा संबंधित सभी कार्य शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो सके। प्रखंड प्रमुख ने सभी सेवाकर्मियों को सहृदय धन्यवाद ज्ञापित किया. इस दौरान मौके पर रिविलगंज प्रखंड प्रमुख डॉo राहुल राज के साथ वीo डीo ओo लाल बाबू पासवान तथा मुखिया प्रतिनिधि मुन्ना सिंह , दीपक यादव , दिलीप पासवान, भीम यादव ,अमित सिंह , आकाश सिंह एवं सैकड़ो की संख्या में ग्रामीण समेत कई अन्य सहयोगीगण मौजूद रहे.

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सामूहिक पूजन के साथ घर घर हुआ चित्रगुप्त पूजन

यमदित्या पर कायस्थ समाज ने पूजा भगवान चित्रगुप्त व कलम दवात को

Chhapra: कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन कायस्थ समाज ने अपने इष्टदेव भगवान चित्रगुप्त जी की सामूहिक पूजा अर्चना की जिसमें बड़ी संख्या में कायस्थ परिवार के बंधुओं ने भाग लिया। साथ ही कायस्थ समाज में घर-घर चित्रगुप्त व कलम दवात की पूजा की गई।

कायस्थ परिवार के डॉ विद्याभूषण श्रीवास्तव ने बताया कि चित्रगुप्त जी ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण कायस्थ कहलाए व इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। सभी जीवो के पाप पुण्य का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत जीवो के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते हैं। एवं मृत्यु पश्चात यमराज के समक्ष जीवात्मा के कर्मों को रखते हैं। इनकी लेखनी से जीवो को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है।

अभिजीत श्रीवास्तव ने कहा कि भगवान चित्रगुप्त कलम के अधिष्ठाता देव हैं हर साल दिवाली के एक दिन बाद चित्रगुप्त पूजा को कलम दवात पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रार्थना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है ।

प्रिंस राज ने कहा कि सृष्टि के सभी देहधारियों के भाग्य कर्मफल अंकित करने वाले भगवान चित्रगुप्त कर्म के आधार पर बिना पक्षपात के सब का लेखा जोखा रखते हैं ।

आज के दिन कायस्थ समाज द्वारा सामूहिक चित्रगुप्त पूजन के साथ साथ प्रत्येक कायस्थ परिवार में घर-घर चित्रगुप्त व कलम दवात की पूजा की जाती है।

चित्रगुप्त मन्दिर में पुजा मे नरेंद्र कुमार वर्मा, विमल कुमार श्रीवास्तव, राकेश कुमार सिन्हा, मनीष रंजन, अनूप कुमार श्रीवास्तव रवीश कुमार उर्फ रवि , सुभाष चन्द्र भास्कर, अरुण कुमार श्रीवास्तव, बिटू जी, सदानद, सुनील कुमार वर्मा विकास कुमार वर्मा एवं सौरभ सिन्हा इस अवसर पर सहित कई चित्रांश बंधु उपस्थित रहे.

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हर्षोल्लास से मनाया गया भैया दूज का त्योहार

Chhapra: भाईबहन के प्यार का प्रतीक भैया दूज का पर्व बुधवार को उत्साह के साथ मनाया गया। इस दौरान भाइयों के माथे टीको से सजे दिखाई दिए। दिन भर बहनों का अपने भाइयों के यहां टीका लगाने के लिए पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। माथे पर टीका लगाते हुए बहनों ने अपने भाइयों की सलामती दीर्घायु की दुआ मांगी।

मिठाइयों से लेकर आकर्षक तोहफों की खरीदारी की गई। बहन भाई के प्रेम को दर्शाता भैया दूज का त्योहार शहर के साथ-साथ जिलाभर में धूमधाम से मनाया गया।

भाईबहन के अटूट प्रेम को सूत्र में पिरोते इस त्योहार को जितना उत्साह बहनों में दिखा उतने ही भाई भी उत्साहित दिखे। भाइयों ने भी अपनी बहनों को स्नेह स्वरूप उपहार दिए। बाजार में महिलाओं और युवतियों ने जमकर खरीदारी की। मंदिरों में इस मौके पर सुबह से ही पूजा-अर्चना के लिए तांता लगा रहा।

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भैया दूज: जानिए क्या है मुहूर्त

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को मनाया जाता है. यह त्योहार भाई -बहन के प्रेम का प्रतीक है. इस दिन भाई -बहन के साथ यमुना अस्नान करना तिलक लगाना तथा बहन के घर भाई को जाकर भोजन करना चाहिए, भोजन करने से आपको उन्नति होगा बहन भाई के पूजा कर उनके दीर्घायु तथा अपने सुहाग की कामना से हाथ जोड़ यमराज से प्राथना करती है. इस दिन सूर्यतनया जमुना जी अपने भाई यमराज को भोजन कराया था. इस लिए इसे यमदितिया भी कहते है. इस दिन श्रद्धालु भाई अपने बहन को स्वर्ण,वस्त्र मुद्रा आदि बहन को देना चाहिए. यह त्योहार भाई -बहन के अटूट प्रेम को दर्शाने वाला यह त्योहार है.

इस त्योहार का क्या है रहस्य.

कथा के अनुसार भाई दूज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे. इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल -फुल मिठाई और दिये जलाकर उनका स्वागत किया था. सुभद्रा ने भगवन श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी. इसी दिन से बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है भाई उपहार देते है.

भाई दूज के तिलक का समय 15 नवम्बर 2023 दिन बुधवार समय 12 :39 दोपहर से 02:50 दोपहर तक
तिलक का पूरा अवधि 02 :11 मिनट तक रहेगा.

भाई दूज क्या है कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य और संज्ञा की दो संतानें – एक पुत्र यमराज, दूसरी पुत्र यमुना है. एकबार सज्ञा सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं तो वह उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगीं. जिसके कारण ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ. सज्ञा के उत्तरी ध्रुव में बसने के कारण यमलोक ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई और यमुना गोलोक में निवास करने लगीं. लेकिन यमराज और यमुना के बीच बहुत प्रेम और स्नेह था. एक बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को निमंत्रण भेजा. यमुना के निमंत्रण पर यमराज यमुना के घर आ गए. यमुना ने स्नान व पूजन के बाद स्वादिष्ट व्यंजन यमराज को दिए और आदर सत्कार किया. यमुना के सत्कार से यमराज बेहद प्रसन्न हुए और वरदान मांगने का आदेश दिया.

यमुना ने कहा कि आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आएं और मेरी तरह जो बहन इस दिन भाई का आदर सत्कार कर टीका करे, उसको तुम्हारा भय ना रहे. यमराज ने यमुना को आशीर्वाद दिया और वस्त्राभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान कर गए. उसी दिन से इस दिन भाई दूज मनाने की परंपरा शुरू हुई. मान्यता है कि भाई दूज के दिन भाई-बहन को यमराज और यमुना का पूजन अवश्य करना चाहिए.

किसी भी प्रकार से ज्योतिष संबंधित जानकारी के दिए हुई फोन नंबर पर बात कर सकते है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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पंचांग के अनुसार धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. धन तेरस को अलग अलग नाम से जाना जाता है. इन्हें कही धनतेरस, धन्वंतरी जयंती के नाम से भी जानते है. इस दिन आयुर्वेद चिकित्सक पद्धति के जनक कहे जाने वाले धन्वंतरी देव इसी दिन समुन्द्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे. इसलिए इस दिन को धनतेरस यानी धन्वंतरी कहा जाता है. इस दिन बर्तन खरीदने का परंपरा है क्योंकि धन्वंतरी देव समुन्द्र मंथन से जब प्रगट हुए तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था इसलिए इस दिन बर्तन खरीदा जाता है. इस दिन से दीपावली की शुरुआत हो जाती है.

धनतेरस का पूजा मुहुर्त
10 नवंबर दिन शुक्रवार संध्या 05:21 मिनट से 07:18 मिनट तक रहेगा. कुल अवधि 01:57 मिनट

त्रयोदशी तिथि का आरंभ 10 नवंबर 2023 दोपहर 12:35 से
त्रयोदशी तिथि का समाप्त 11 नवम्बर 2023 दोपहर 01:57 तक

प्रदोष काल संध्या 05:03 से 07:39 संध्या तक रहेगा .
वृषभ काल संध्या 05:21 से 07:18 संध्या तक रहेगा.

यम का दीप 10 नवम्बर 2023 दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा

धनतेरस पर क्या खरीदे, क्या नहीं खरीदे

इस दिन सोना, चांदी, पीतल खरीदना चाहिए, धनिया तथा झाडू खरीदना शुभ माना जाता है.  इस दिन काला रंग के वस्तु, कांच से बनी वस्तु, चीनी मिट्टी से बनी, वस्तु लोहे तथा अल्मीनियम से बने हुए वस्तु की खरीदारी नहीं करे.

धनतेरस के दिन झाडू का खरीदारी क्यों करना चाहिए?

धनतेरस के दिन झाडू खरीदने के पीछे जुडी मान्यता के अनुसार इससे घर में माँ लक्ष्मी का आगमन होता है. आपके घर के नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाते है। इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न रहती है घर में धन- धान्य में वृद्धि होगा. झाडू विषम संख्या में खरीदे

इस दिन शंख का पूजन करने का विशेष महत्व है
कहा जाता है भगवान धन्वंतरी देव भी समुंद्र मंथन से प्रगट हुए थे। शंख भी समुंद्र से प्रगट हुए है। शंख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु का विशेष पूजन किया जाता है, इसलिए शंख का पूजन करे। धन का लाभ होगा। याद रखे शंख का पूजन करे लेकीन शंख को अपने पूजन में बजाए नही इससे भगवान विष्णु नाराज होते है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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करवा चौथ व्रत पर कैसी रहेगी ग्रहों की स्थिति, क्या है पूजन का समय, पूजा विधि, जानें

करवा चौथ पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है. इस साल करवा चौथ का व्रत 01 नवम्बर को रखा जायेगा यह व्रत महिलाये अपने पति के लम्बी उम्र के लिए पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत करती है. इस व्रत में विशेष चंद्रमा का पूजन किया जाता है चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सभी पाप नष्ट हो जाते है इसमे किसी भी प्रकार से परेशानी नहीं होता है साथ ही इससे लम्बी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है .करवा चौथ के व्रत में शिव के सभी परिवार यानि शिव, पार्वती, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। उसके बाद पूजा किया जाता है। मिट्टी के करवे में चावल, उरद के दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास को दे सास नहीं रहे तो उनके बराबरी के सुहागिन स्त्री को पांव छुकर सुहाग की सामग्री भेट करनी चाहिए.

करवा चौथ का क्या है शुभ मुहुर्त

चत्तुथी तिथि का आरम्भ 31 अक्तूबर 23 दिन मंगलवार रात्रि 09 : 30 मिनट से
चतुर्थी तिथि का समाप्त 01 नवम्बर 23 दिन बुधवार रात्रि 09:19 मिनट तक रहेगा.

चंद्रोदय 01 नवम्बर 23 दिन बुधवार रात्रि 07:51 बजे के बाद पूजन किया जायेगा.

करवा चौथ पर बन रहा है ग्रहों का शुभ संयोग.

01 नवंबर चंद्रमा वृष राशि में होंगे इसी के साथ मंगल, बुध और सूर्य तुला राशि में रहेगे सूर्य और बुध मिलकर बुधादित्य योग बना रहे है. मंगल के साथ सूर्य मिलकर मंगलादित्य बन रहा है.
शनि भी 30 साल के बाद अपनी मूल त्रिकोण राशि कुम्भ में शश योग बना रहे है शिव योग मृगशिरा नक्षत्र मंगल के लिए है.

बुधादित्य योग ज्ञान का प्रतिक है इस योग में करवा चौथ व्रत करना बहुत ही शुभ फल देने वाला रहेगा.

सरगी का क्या है महत्व

करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है. सरगी सास की तरफ से अपनी बहु को दी जाती है. इसका सेवन महिलाएं करवा चौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं. सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं.सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है. सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मिठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं. तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है. अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।

करवा चौथ पूजन विधि

प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृत होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें. व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें. व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है-

‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

अथवा
ॐ शिवायै नमः से पार्वती का,
‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का,
‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का. ॐ गणेशाय नमः से गणेश का तथा
‘ॐ सोमाय नमः से चंद्रमा का पूजन करें.
शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें.पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें.भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें. एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें.सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें.चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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वाराणसी, 30 अक्टूबर (हि.स.)। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहे भव्य व दिव्य मंदिर में श्रीराम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा के पहले ही विश्व रिकार्ड बनेगा। प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी, 2024 के पहले विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में 01 से 15 जनवरी, 2024 तक व्यापक गृह सम्पर्क एवं जन सम्पर्क अभियान चलाया जायेगा। जो अब-तक सबसे बड़ा जन सम्पर्क अभियान होगा।

इस अभियान के जरिये पूजित अक्षत लेकर कार्यकर्ता हर गांव मोहल्ले एवं बस्तियों में संपर्क कर सभी को अयोध्या पहुंचने का औपचारिक निमंत्रण देंगे। सूत्र बताते हैं कि इस अभियान के जरिये पांच लाख गांवों तक करीब 75 करोड़ हिन्दूओं एवं विभिन्न पंथ एवं सम्प्रदायों तक संघ परिवार एवं समाज के लोग अयोध्या आने का निमंत्रण देंगे।

अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि मंदिर में रामलला की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा को लेकर संघ विचार परिवार ने तैयार शुरू कर दी है। 22 जनवरी को अयोध्या में संपन्न होने वाले ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा समारोह के संबंध में विस्तृत कार्य योजना भी तैयारी की गई है। विचार परिवार के 40 संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों को तैयारियों को लेकर जिम्मेदारी सौंपी गई है।

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महामंत्री एवं विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने कोईराजपुर शिवपुर स्थित एक विद्यालय परिसर में बीते रविवार को मैराथन बैठक कर चार अलग-अलग सत्रों में कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य करने के लिए रणनीति तैयार की। पदाधिकारियों को चंपत राय ने पूरे 45 दिन तक चलने वाले महाअभियान की चरण बद्ध ढंग से विस्तृत जानकारी दी।

चार नवम्बर को देशभर से 200 कार्यकर्ता पहुंचेंगे अयोध्या

बैठक में तय योजना के अनुसार 4 नवंबर, 2023 को देशभर से सभी प्रान्तों के दो-दो अर्थात कुल 200 कार्यकर्ता अयोध्या पहुंचेंगे। पांच नवम्बर को वहां से अक्षत भरे पीतल के कलश लेकर उसे पहुंचाएंगे। यह अक्षत न्यास की ओर से आमंत्रण का प्रतीक होगा। 05 नवंबर से दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक कार्यकर्ता देशभर के सभी मंदिरों में अक्षत पहुंचायेंगे। 01 से 15 जनवरी 2024 तक पूजित अक्षत लेकर कार्यकर्ता हर गांव मोहल्ले एवं बस्तियों में संपर्क कर सभी को अयोध्या पहुंचने का औपचारिक निमंत्रण देंगे।

प्राण प्रतिष्ठा के दिन पांच करोड़ घरों में मनेंगे दीवाली

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महामंत्री चंपत राय ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन 22 जनवरी को कार्यकर्ता अपने-अपने गांव मोहल्ले के मंदिरों में इकट्ठे होंगे। वहां भजन कीर्तन के कार्यक्रम चलेंगे तथा सायं काल अपने दरवाजे पर दीप जलाएंगे। उन्होंने बताया कि 5 करोड़ घरों में इस दिन दीपक जलाए जाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी,आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत एवं मुख्यमंत्री योगी रहेंगे मौजूद

उन्होंने बताया कि 22 जनवरी को अयोध्या में कश्मीर से कन्याकुमारी तक के 140 संप्रदायों के साधु संत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,आरएसएस के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अयोध्या आंदोलन में प्राण गवाने वालों के परिजन,विभिन्न क्षेत्रों में विशेष उपलब्धियां अर्जित करने वाले समाज के विशिष्ट नागरिक उपस्थित होंगे।

महामंत्री चंपत राय की अपील, प्राण-प्रतिष्ठा के दिन न पहुंचे कार्यकर्ता

उन्होंने बताया कि 8000 लोगों की सीमित क्षमता होने के कारण कार्यकर्ताओं से 22 जनवरी को अयोध्या न आकर अपने अपने क्षेत्र में कार्यक्रमों में जुटने का निर्देश दिया गया है। कार्यकर्ताओं को अलग-अलग तिथियों में उनके प्रांत के अनुसार अयोध्या पहुंचने का चंपत राय ने निमंत्रण दिया। अयोध्या पहुंचने वाले कार्यकर्ताओं के रुकने तथा भोजन आदि की समुचित व्यवस्था का भी उन्होंने भरोसा दिलाया। उन्होंने बताया कि 25000 कार्यकर्ताओं के प्रतिदिन अयोध्या में रूकने एवं खाने की व्यवस्था की जा रही है। काशी प्रांत के कार्यकर्ता 30 जनवरी को अयोध्या पहुंचेंगे। इसी तरह अलग-अलग प्रांतों के लिए अलग-अलग तिथियां होंगी। 45 दिनों तक चलने वाले इस अभियान में 50 लाख लोगों के आवास एवं भोजन की व्यवस्था अयोध्या में उपलब्ध कराई जाएगी।

आरएसएस के काशी प्रांत प्रचारक रमेश ने भी द्वितीय सत्र में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। उन्होंने आग्रह किया कि संगठन की रीति नीति के अनुसार और सभी कार्यकर्ता अपने-अपने स्थान पर सौंपे गये दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाएं।

उन्होंने कहा कि सभी कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र के मंदिरों की सूची बनाए। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन मंदिरों में संपूर्ण हिंदू शक्ति को एकत्रित कर भजन कीर्तन के कार्यक्रम संचालित करें। माइक लगाकर प्रभु श्री राम का गुणानुवाद करायें, इसके लिए कथावाचकों विद्वानों की भी सहायता ली जा सकती है। 1 से 15 जनवरी तक अब तक का सबसे बड़ा महासंपर्क अभियान चलेगा। इसमें पूरी भागीदारी निभायें। एक भी हिंदू घर छूटने न पाए इसका ध्यान रखें। 15 दिसंबर से पहले खंडों की समन्वय बैठकें हो जाए। टोलियों का गठन कर लें। गठित टोलियां ही परिवारों से संपर्क करेंगी। विचार परिवार की बैठक जिला स्तर पर करने के लिए अभी से तिथि तय करने का उन्होंने निर्देश दिया।

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दुर्गा पूजा को शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न कराने हेतु जिला दंडाधिकारी के द्वारा दिये गये कई आवश्यक निर्देश

विधि-व्यवस्था संधारण प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता- डीएम व एसपी

आसूचना तंत्र को सुदृढ़ एवं सक्रिय स्खें, संवेदनशील स्थानों पर विशेष सतर्कतामूलक कार्रवाई करें

असामाजिक तत्वों पर सतत कड़ी निगरानी रखने एवं अफवाहों का त्वरित खंडन करने का पदाधिकारियों को दिया गया निदेश

Chhapra  : जिला दण्डाधिकारी अमन समीर के द्वारा शुक्रवार को समाहरणालय सभाकक्ष में दशहरा / विजय दशमी के अवसर पर विधि-व्यवस्था संधारण हेतु आयोजित बैठक की अध्यक्षता करते हुए सभी संबंधित पदाधिकारी को दुर्गा पूजा को शांतिपूर्ण वातावरणः में संपन्न कराने हेतु कई आवश्यक निर्देश दिया। बैठक में पुलिस अधीक्षक सारण डॉ गौरव मंगला, अपर समाहर्ता सारण, जिलास्तरीय पदाधिकारीगण एवं विभिन्न विभाग के अभियंतागण सभागार में उपस्थित थे जबकि सभी अनुमंडल एवं प्रखंड स्तरीय पदाधिकारी वीडियो कॉफेसिंग के माध्यम से उपस्थित थे।

जिला दण्डाधिकारी के द्वारा बताया गया कि दुर्गा पूजा के अवसर विधि-व्यवस्था संधारण जिला प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है। बताया गया कि सभी थानाक्षेत्रों में नियमित रूप से गश्ती करने हेतु वरीय पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति भी कर दी गयी है जो अपने-अपने क्षेत्रों में अनुमंडल स्तर पर प्रतिनियुक्त दण्डाधिकारी की उपस्थिति की जाँच भी करेंगे। इसके अतिरिक्त सभी अंचलाधिकारी एवं थानाध्यक्ष अपने क्षेत्र अंतर्गत गश्ती करना सुनिश्चित करेंगे। निर्देशित किया गया कि पदाधिकारीगण आसूचना तंत्र को सुदृढ एवं सक्रिय रखें तथा संवेदनशील स्थानों पर विशेष सतर्कतामूलक कार्रवाई करेंगे।

जिला दण्डाधिकारी के द्वारा बताया गया कि नवरात्रा के क्रम में दिनांक 21, 22, 23 एवं 24 अक्टूबर को क्रमशः सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तथा विजयादशमी मनाया जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न देवालयों तथा सार्वजनिक दुर्गा पूजन स्थलों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होने की संभावना है। विधि-व्यवस्था संधारण, यातायात प्रबंधन, शांति-व्यवस्था तथा भीड़ प्रबंधन हेतु प्रशासनिक सतर्कता, यथोचित निगरानी तथा सुरक्षामूलक कार्रवाई किया जाना आवश्यक है। जिला दंडाधिकारी ने सभी पदाधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि असामाजिक तत्वों पर कड़ी निगरानी रखें तथा सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल को क्रियाशील रखें तथा अफवाहों का त्वरित खंडन करें।

जिला दण्डाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के द्वारा अनुमंडलवार तैयारियों की समीक्षा की गई। अनुमंडल पदाधिकारियों एवं अनुमंडल पुलिस पदाधिकारियों को पूजा समितियों के साथ शांति समिति की बैठक हर हाल में कर लेने का निर्देश दिया गया। सभी प्रतिनियुक्त पदाधिकारी को संवेदनशील एवं अतिसंवेदनशील स्थानों पर विशेष सतर्कता बरतने तथा असामाजिक तत्वों के विरूद्ध निरोधात्मक एवं दण्डात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया। पंडाल का निर्माण तथा प्रतिमा विसर्जन हेतु निर्धारित मानकों का अनुपालन अनिवार्य बताया गया। कोई भी पंडाल बिना सक्षम स्वीकृति प्राप्त किये नही बनाये जायेंगे। सभी पूजा स्थलों पर स्थापित की जाने वाली प्रतिमाओं को शत-प्रतिशत लाइसेंसी होना आवश्यक होगा। पंडालों एवं जुलूस में डी.जे. बजाने की अनुमति नहीं होगी। प्रत्येक पंडाल में प्रवेश एवं निकास द्वारा अलग-अलग होगा एवं पंडाल में किसी तरह का सीढ़ी का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। पंडाल के नजदीक पेयजल, पार्किंग एवं शौचालय की बेहतर सुविधा सुनिश्चित करवाने को कहा गया।   ‌

पुलिस अधीक्षक ने सभी थाना प्रभारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि पूजा आयोजन हेतु अनुज्ञप्ति में अंकित जुलूस मार्ग का शत-प्रतिशत भौतिक सत्यापन करना सुनिश्चित करेंगे। कोई भी विसर्जन, जुलूस बिना स्कार्ट के नहीं रहेगा। स्कार्ट की यह व्यवस्था विसर्जन एवं जुलूस की वापसी तक करना सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि भीड़-प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए हम सबको तत्पर एवं प्रतिबद्ध रहना होगा। कोई भी पंडाल रात्रि में सुरक्षाविहीन नहीं रहेगा। यह संबंधित थानाध्यक्ष की व्यक्तिगत जवाबदेही होगी और वे पंडाल एवं प्रतिमा की सुरक्षा हेतु पूजा समितियों से समन्वय स्थापित कर समुचित करवाई करना सुनिश्चित करेंगे।

जिला दंडाधिकारी ने कहा कि आयोजकों के साथ बैठक में पूजा पंडालों में चिन्हित स्थानों पर सी.सी.टी.वी. कैमरों अस्थायी रूप से लगवाने की बात कही गयी। ताकि भीड़ की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा सके। किसी भी प्रकार के अफवाह से बचने तथा सोशल मीडिया पर भी अफवाहों से बचने हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ ही माईकिंग भी कराने हेतु निर्देशित किया गया। अफवाह फैलाने चाले असामाजिक तत्वों के विरूद्ध सुसंगत धाराओं के अतर्गत नियमानुसार कार्रवाई भी सुनिश्चित करने हेतु संबंधित पदाधिकारी को निर्देशित किया गया। विसर्जन के दिन नदी में बिना अनुमति के नाव परिचालन पर रोक रहेगी। प्रतिमाओं का विसर्जन तालाबों, पोखरों में अपरिहार्य हो, वैसी स्थिति में विसर्जन स्थल की पहचान कर पूर्ण सुरक्षा उपायों के साथ इसकी व्यवस्था करने हेतु निर्देशित किया गया। प्रत्येक नगर निकाय में विसर्जन हेतु तालाब पोखरों को चिन्हित कर साफ-सफाई एवं बैरिकेडिंग का कार्य पूरा करने हेतु निर्देशित किया गया। जिला दण्डाधिकारी के द्वारा लोगों को नदी की जगह स्थानीय तालाब एवं कृत्रिम तालाब में प्रतिमा विसर्जन करने का अनुरोध भी किया गया। रात्रि 10 बजे से सुबह 06.00 बजे तक लाउडस्पीकर के प्रयोग पर रोक रहेगी। पूजा के अवसर पर सिविल सर्जन आपाताकलीन चिकित्सा व्यवस्था एवं एम्बुलेंस की व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे। जिला अग्निशमन पदाधिकारी, सारण को फायर ब्रिगेड प्रतिनियुक्त करने का निर्देश दिया।

बैठक में जिला दण्डाधिकारी ने विद्युत विभाग के अभियंताओं को निदेश दिया जाय कि पूजा पंडालों में कहीं भी लूज वायर न रहे। नगर निगम, नगर पंचायत अपने-अपने कार्यक्षेत्र में पूर्णरूपेण सफाई एवं प्रकाश की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे। जिला दंडाधिकारी महोदय ने जिला नियंत्रण कक्ष के साथ-साथ अनुमंडल स्तरों पर नियंत्रण कक्ष को सक्रिय करने का निर्देश दिया। इस अवसर पर जिला नियंत्रण कक्ष दिनांक 21.10.2023 से क्रियाशील रहेगा। जिला नियंत्रण कक्ष का दूरभाष संख्या-06152-242444 है। जिसके वरीय प्रभार में अपर समाहर्त्ता सारण, मो० मुमताज आलम, मोबाईल नम्बर-9473191268 रहेंगे। पुलिस उपाधीक्षक मुख्यालय, डॉ राकेश कुमार, मोबाईल नम्बर-8544428112 को भी किसी महत्वपूर्ण घटना की सूचना दी जा सकती है।

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या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ॐ ह्रीं नम:।। चन्द्रहासोज्जवलकराशार्दुलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।। ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

Patna:  नवरात्रि के छठे दिन माता के अलौकिक स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी स्वरूप में माता शेर पर सवार, सिर पर मुकुट सुशोभित है। माता की चार भुजाएं हैं। माना जाता है कि मां के इस स्वरूप की पूजा अर्चना से विवाह में आ रही परेशानी दूर हो जाती है।

शुक्रवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि मां कात्यायनी को शहद और पीले रंग का भोग अत्यंत प्रिय है। माता को शहद से तैयार हलवे का भोग लगाना चाहिए। गुरु साकेत ने बताया कि नवरात्रि के छठे दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की पूजा के लिए सुबह नहाने के बाद साफ वस्त्र धारण कर पूजा का संकल्प लेना चाहिए। मां कात्यायनी को पीला रंग प्रिय है इसलिए पूजा के लिए पीले रंग का वस्त्र धारण करना शुभ होता है। मां को अक्षत, रोली, कुमकुम, पीले पुष्प और भोग चढ़ाएं। माता की आरती और मंत्रों का जाप करें।

गुरु साकेत ने बताया कि ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया। मां कात्यायनी की पूजा से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इनकी कृपा से योग्य वर और विवाह की सभी अड़चनें दूर हो जाती है। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां कात्यायनी सफलता और यश का प्रतीक हैं। भगवान कृष्ण को पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमंडल, तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।

गुरु साकेत ने बताया कि मां कात्यायनी की पूजा अमोघ फलदायिनी हैं, मान्यता है कि देवी कात्यायनी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है और साधक के रोग, शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा की जाती है यह स्वयं नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी हैं।

गुरु साकेत ने बताया कि नवरात्रि पर्व के छठे दिन सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद शुभ रंगों के वस्त्र पहनकर कलश पूजा करें और इसके बाद मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा करें। पूजा प्रारंभ करने से पहले मां को स्मरण करें और हाथ में फूल लेकर संकल्प जरूर लें। इसके बाद वह फूल मां को अर्पित करें। फिर कुमकुम, अक्षत, फूल आदि और सोलह श्रृंगार माता को अर्पित करें। उसके बाद भोग अर्पित करें। फिर जल अर्पित करें और घी के दीपक जलाकर माता की आरती करें। देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।

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नवरात्रि के पावन महिने में मां दुर्गा की पूजा और उनके आगमन की तिथि के बाद अगर कोई अधिक महत्वपूर्ण तिथि है, तो वो है नवरात्रि का आखिरी दिन, जिसे दुर्गा अष्टमी और नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, कन्याओं की पूजा करने की अद्भुत परंपरा है, जिसका महत्व बहुत अधिक है। आइए जानें कन्या पूजन का महत्व और प्राचीन कथाओं के साथ इसका मतलब।

कन्या पूजन का इतिहास
कन्या पूजन का महत्व प्राचीन शास्त्रों में उल्लिखित है, और यह एक प्राचीन कथा से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार, इंद्रदेव ने माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उपाय पूछा था, और उन्हें ब्रह्मा देव ने सूझाव दिया कि कुमारी कन्याओं का पूजन करें और उनको भोजन कराएं। इस प्रथा के बाद से ही नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कन्या पूजन कराया जाता है, और उनको भोजन कराया जाता है।

नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि के आखिरी दिन को कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, और इसके पीछे कई कारण हैं। शास्त्रों में इसे माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का एक उपाय माना गया है। कन्याओं की पूजा करने से माता रानी की कृपा उनके भक्तों पर बनी रहती है।

कन्या पूजन के महत्वपूर्ण दिन
नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, लेकिन दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन इसका महत्व और बढ़ जाता है। इन दिनों कन्याओं को पूजन कराकर उनको भोजन कराने से माता दुर्गा प्रसन्न होती है और उनके भक्तों को आशीर्वाद मिलता है।

कन्या पूजन का संदेश
कन्या पूजन का संदेश है कि हर स्त्री में देवी की भावना होती है, और हमें सभी स्त्रीओं का सम्मान करना चाहिए। यह एक सामाजिक संदेश देता है कि हमें स्त्रीओं का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ सामंजस्य बनाना चाहिए।

कन्या पूजन के अलग अलग आयु के महत्व
कन्या पूजन के आला अलग आयु के महत्व होते हैं, और इसके साथ-साथ हर आयु की कन्या के लिए एक विशेष महत्व होता हैं। ज्योतिषाचार्य द्वारा इन विभिन्न आयु की कन्याओं की महत्वपूर्ण बातें बताई जाती हैं,

हर आयु की कन्या का होता है अलग महत्व

ज्योतिषाचार्य के अनुसार

2 साल की कन्या को कुमारी कहा जाता है। इनकी पूजा से दुख और दरिद्रता खत्म होती है।
3 साल की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और परिवार का कल्याण होता है।
4 साल की कन्या कल्याणी मानी जाती है। इनकी पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है।
5 साल की कन्या रोहिणी माना गया है। इनकी पूजन से रोग-मुक्ति मिलती है।
6 साल की कन्या कालिका होती है। इनकी पूजा से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है।
7 साल की कन्या को चंडिका माना जाता है। इनकी पूजा से ऐश्वर्य मिलता है।
8 साल की कन्या शांभवी होती है। इनकी पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
9 साल की कन्या दुर्गा को दुर्गा कहा गया है। इनकी पूजा से शत्रु विजय और असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
10 साल की कन्या सुभद्रा होती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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इसुआपुर में 51 फीट के रावण का होगा पुतला दहन, आतिशबाजियों से जगमग होगा आसमान

इसुआपुर: इसुआपुर में दुर्गा पूजा समिति महावीर मंदिर के द्वारा आगामी 24 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन रावण वध कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. आयोजन को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में है.

विगत 10 वर्षों से आयोजित किये जा रहे इस रावण वध कार्यक्रम को इस वर्ष भी आकर्षक और भव्य रूप देने की पूरी कोशिश की जा रही है.

मुख्य बाजार के पीछे पुराने अस्पताल परिसर में आयोजित इस रावण वध के लिए 51 फीट के रावण का पुतला तैयार हो चुका है.

आयोजन समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार सिंह उर्फ ढोलन सिंह ने बताया कि इस वर्ष 51 फिट का रावण का पुतला बनाया गया. विजयदशमी के दिन संध्या समय में रावण वध कार्यक्रम आयोजित किया गया है.

विगत 10 दिनों से 51 फीट लंबे रावण के पुतले का निर्माण स्थानीय कारीगरों द्वारा किया जा रहा है. जिसमें लाखों रुपए की लागत आई है.

वही अमरनाथ प्रसाद, दिलीप चौरसिया, नागेश्वर सिंह, श्याम प्रसाद, राजकिशोर सिंह, मुखिया प्रतिनिधि अजमल रहमानी, श्रीभगवान साह, रवि कुमार, राजेंद्र कुमार ने आमजनता से इस कार्यक्रम में भाग लेने की अपील किया है.

वही आदर्श बाल पूजा समिति के युवाओं द्वारा रावण वध कार्यक्रम को सफल बनाने की तैयारी की जा रही है. पूरे इसुआपुर बाजार में भगवा पताका लगाकर सजाया जा रहा है.

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