चिरांद में गंगा, सरयू और सोन के संगम से अयोध्या भेजा गया पवित्र जल और मिट्टी

डोरीगंज : अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर नव निर्माण तथा 22 जनवरी को होने वाले प्राण-प्रतिष्ठा को ले चिरांद स्थित गंगा-सरयू और सोन के संगम का पवित्र जल और मिट्टी अयोध्या भेजी गई।

बिहार के सारण जिले में चिरांद के निकट गंगा, सरयू और सोन नदी के संगम से चिरांद विकास परिषद एवं गंगा समग्र के तत्वावधान में पवित्र जल और मिट्टीअयोध्या भेजी गई। इस पुनीत अवसर पर महंत श्रीकृष्णा गिरी उपाख्या नागा बाबा के संरक्षण में पूजन व संक्षिप्त समारोह का आयोजन किया गया।

श्रीराम से चिरांद के संगम का गहरा नाता

मौके पर नागा बाबा ने कहा कि अयोध्या से चलकर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मणजी अपने गुरू विश्वामित्र के साथ बिहार के सारण जिले में स्थित गंगा, सरयू और सोन नदी के संगम पर पहुंचे थे। इस स्थान का नाम धर्मनगरी चिरांद है। इस समारोह के लिए भेजे अपने वीडियो संदेश में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि महर्षि विश्वामित्र ने इसी स्थान पर श्रीराम और लक्ष्मण को बला और अतिबला विद्या प्रदान करने के बाद उन्हें लेकर सिद्धाश्रम की ओर प्रस्थान किया था।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने दिया वीडियो संदेश

विश्व के दुर्लभ पुरातात्विक स्थलों में से एक, इस स्थान पर नवपाषाण कालीन ऐसे धरोहर मिले हैं जो रामायण कथा को पुरातात्विक प्रमाण से परिपुष्ट करते हैं। यह स्थान ऋषि श्रृंगी की तपस्थली थी जिन्होंने राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ सम्पन्न कराया था। इस स्थान की गरिमा को फिर से स्थापित करने के लिए वर्ष 2009 में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन से चिरांद चेतना महोत्सव और गंगा गरिमा रक्षा संकल्प समारोह का आयोजन कर अभियान की शुरूआत की गयी थी। चिरांद विेकास परिषद के उस प्रथम आयोजन का उद्घाटन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था।

अयोध्या के संतों एवं श्रीराम मंदिर निर्माण न्यास के आग्रह पर चिरांद विकास परिषद व गंगा समग्र के तत्वावधान में गंगा, सरयू और सोन इन तीन नदियों के संगम का जल कलश पूजन समारोह के बाद केंद्रीय मंत्री श्री चौबे को सौंपा गया जिसे लेकर वे पटना से बक्सर होते हुए अयोध्या के लिए रवाना हुए। चिराद विकास परिषद, गंगा समग्र के लोगों ने लिया भाग लिया।

उक्त अवसर पर चिरांद विकास परिषद के सचिव व गंगासमग्र के उत्तर बिहार के सह संयोजक श्रीराम तिवारी ने कहा कि भगवान श्रीराम के दिव्य जीवन को प्रेरणापूुंज बनाकर समाज को संकटमुक्त रखना है तो चिरांद, बक्सर व सीता जन्मस्थान को भी भव्य और विराट बनाना होगा। इस अवसर पर जिला संयोजक डाॅ कुमारी किरणसिंह, सह संयोजक राशेश्वरसिंह , रघुनाथ सिंह, राज किशोर सिंह, श्याम बहादुर सिंह, जयदिनेश पाण्डेय, उदय चौधरी, श्रीकांत पांडेय,तारकेश्वर सिंह,डाॅ शम्भू नाथ तिवारी,कुमार आनंद,, सुमन साह, बिट्टू तिवारी, जयराम राय, मोहन पासवान, शंकर पासवान, शत्रुघ्न माझी, मनीष कुमार, सुखल साह सहित कई गणमान्य लोग शामिल हुए।

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मकर संक्रांति का त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष मास में जिस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते है उस दिन मनाया जाता है। अनुमानतः जनवरी माह के 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है. इस दिन दान पुण्य करने का विशेष महत्व होता है। 

मकर संक्रांति को भारत में अलग -अलग नाम से जाना जाता है. कही पोंगल, तिल संक्रांति, खिचरी, लोहरी के नाम से जाना जाता है. इस त्योहार को कही -कही उतरायण भी कहते है क्योंकी मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उतरायण होते है.  इस दिन से सूर्य उतर दिशा की और जाते है. जिसे इस दिन से पंचांग का अयन बदल जाता है सूर्य उतरायण की तरफ बढ़ जाते है.

ज्योतिषीय कारण को लेकर सूर्य सभी राशि में प्रवेश करते है सभी राशि को प्रभावित करते है लेकिन सूर्य कर्क तथा मकर राशि में प्रवेश करते है. धार्मिक दृष्टी से बहुत ही फलदायक होता है.  माना जाता है सूर्य अपने पुत्र शनि के घर में प्रवेश करते है तथा इसी दिन गंगा भागीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगासागर में जाकर मिली थी। इसी कारण संक्रांति के दिन गंगातट पर या गंगासागर में स्नान करने की संज्ञा दी गई है. इस दिन दान पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है

कब मनाये मकर संक्रांति का त्योहार.

पंचांग के अनुसार 15 जनवरी 2024 को सुबह 02 बजकर 32 मिनट पर सूर्य धनु राशि से निकलर मकर राशि में गोचर करेगे जिसके कारण मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जायेगा

मकर संक्रांति का पुण्य काल
सुबह 06:38 से 05 :20 संध्या तक रहेगा समय अवधि 10 घंटा 43 मिनट

मकर संक्रांति का महापुण्य काल
सुबह 06:38 मिनट से 08 :25 सुबह

मकर संक्रांति पर बन रहा है सुबह संयोग

15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति पर बन रहा है रवि योग तथा वरियान योग तथा दिन सोमवार पर रहा है.
वरियान योग प्रातः 02:40 से रात्रि 11:15 मिनट (15 जनवरी 2024)
रवि योग सुबह 07:15 से 08:07 सुबह (15 जनवरी 2024)

मकर संक्राति पर दान क्या करे। 
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान करे, तिल, गुड का दान करे एस दिन अगर वस्तु का दान करते है जीवन के सभी कष्ट दूर होंगे. मकर संक्रांति के दिन सूर्य तथा शनि की वस्तु को दान करना चाहिये.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Chhapra: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा दधीचि नगर (दहियावां) में श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा निमित्त पुजित अक्षत कलश निमंत्रण यात्रा देवी मंदिर नारायण चौक से नगीना सिंह गली होते हुए दधीचि आश्रम पहुंचा। इस अक्षत निमंत्रण यात्रा का नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक चन्द्र प्रकाश ने किया ।

इस अवसर मुहल्ले के हर हिन्दू के घर अक्षत के साथ नव निर्मित राम मंदिर का फोटो ओर पत्रक भी दिया गया। साथ ही अयोध्या आने का निमंत्रण भी दिया गया और सभी लोगों से अपील भी किया गया की आने वाले 22 जनवरी 2024 को पूरे देश में दिपोत्सव मनाए। यह लगभग पाँच सौ साल के निरंतर प्रयास और हजारों कार्यकत्ताओं के बलिदान का नतीजा है कि आज यहाँ हमलोग मंदिर बनते देख पा रहें हैं ।

आगामी 22 जनवरी को अपने घर के आस पास के मंदिरों को भी सजाएँ और इस दिन दीपोत्सव मनाएँ ।

इस अवसर पर गुलशन कुमार, विकास कुमार, अंगद कुमार, प्रिंस राज, विक्की कुमार, रोशन कुमार, सूरज जी, अंकित जी, अभिषेक कुमार, मनीष कुमार, अमन कुमार सहित स्थानीय लोग मौजूद रहे।

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Chhapra: विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल के द्वारा अयोध्या धाम से आए हुए पूजित 51 अक्षत कलश धर्म प्रसार जिला प्रमुख अरुण पुरोहित के नेतृत्व में बाबा मनोकामना नाथ मंदिर कटरा बाजार छपरा से प्रारंभ हुई। कलश यात्रा वेंकटेश मंदिर, जैन मंदिर, रथ वाली दुर्गा जी, काठ की देवी जी, काली बाड़ी मंदिर, सत्यनारायण, मंदिर लक्ष्मी मंदिर होते हुए बाबा धर्मनाथ मंदिर पहुंची, जहां  पूजन किया गया।  इसके बाद बाबा बटेश्वर नाथ पंच मंदिर में पहुंचकर सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ किया गया।

विश्व हिंदू परिषद के मीडिया प्रभारी प्रभात कुमार सिंह, जिला सेवा प्रमुख गौतम बंसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक के विभाग प्रमुख अवध किशोर मिश्रा, अनुज बजरंगी, पूर्व प्राचार्य अरुण कुमार सिंह, राकेश गुप्ता, संजय पुरोहित पुजारी, महेश मिश्रा, गोपाल मिश्रा, प्रसून मेड़तिया, अभिमन्यु सिंह, विजय शुभम सागर, ऋषभ अग्रवाल, निरंजन सिंह, विनोद कुमार सिंह, रविंद्र सिंह सहित सैकड़ो की संख्या में महिलाएं पुरुष गाजे बाजे के साथ जय श्री राम का उद्घोष करते हुए घर-घर लोगों को अयोध्या आने का निमंत्रण पत्र दिया गया।

इस अवसर पर अरुण पुरोहित ने बताया कि 500 वर्षों के बाद 22 जनवरी 2024 को रामलाल का विराट मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी यह हम सभी लोगों का सौभाग्य है। 22 जनवरी छपरा को अयोध्या बनाना है सैकड़ो मंदिरों में प्रातः 11:00 बजे से 1:00 बजे तक 108 हनुमान चालीसा पाठ का आयोजन किया गया है। उन्होंने छपरा वासियो से आग्रह किया है कि आप अपने घर के पास के मंदिरों में जाकर सामूहिक पाठ में सम्मिलित हो और संध्या समय पांच दीप मंदिर में और पांच दीप अपने घरों पर जलाकर के दीपावली उत्सव मनावें । विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल तमाम समाजिक धार्मिक संगठन के स्वयं सेवक कार्यकर्ता गणआपके घर घर तक अक्षत निमंत्रण 15 जनवरी 2024 तक पहुंचाएगी। जिन लोगों को निमंत्रण पत्र अक्षत नहीं मिले वह अपने पास के मंदिरों से भी प्राप्त कर सकते हैं।

कलश यात्रा का जगह-जगह लोग फूल मालाओं से स्वागत किया बाबा बटुकेश्वर नाथ पंच मंदिर दौलतगंज में पुजारी ध्रुव कुमार मिश्रा मुन्ना बाबा ने अक्षत कलश का पूजन किया यात्रा में शामिल लोगों की आरती के साथ स्वागत किया। भगवान भोलेनाथ का पूजन हुआ और अक्षत कलश यात्रा में शामिल सभी लोगों ने मिलकर सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ किया । पूरा इलाका भक्ति में जय श्री राम के नारों से गुंजायमान रहा। 

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Chhapra: कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर स्नान करने के लिए सोमवार को बिहार ही नहीं, देेश के विभिन्न राज्यों और विदेशी श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। जिसकेेे कारण अहले सुबह से ही काफी भीड़ रही।

पूर्णिमा के मौके सोनपुर, मांझी और रिविलगंज में सरयू और गंगा स्नान कर शारीरिक, मानसिक सुख और मोक्ष की कामना के साथ गंगा स्नान करने के लिए रात से बड़ी संख्या में साधु-संत और श्रद्धालु पहुंच गए थे। 

पौराणिक समय से चले आ रहे दान और पूजा की परंपरा के तहत श्रद्धालुओं ने बड़े पैमाने पर सभी मंदिरों में पूजा-अर्चना तथा गुरु पूजन किया। 

कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद जलार्पण के लिए बाबा हरिहरनाथ मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई। जलार्पण और स्नान को लेकर जिला प्रशासन ने व्यापक प्रबंध किए थे। पुलिस प्रशासन और एसडीआरएफ की टीम भी काफी चुस्त और मुस्तैद रही। 

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धर्म की आदर्श आचार संहिता का पालन करने के लिए वनवास गए थे श्री राम: राघव किंकर महाराज 

Isuapur: भगवान श्री सत्संकल्प हैं. यदि वे चाहते तो स्वर्ग में बैठे-बैठे रावण को समाप्त कर सकते थे लेकिन भगवान धर्म के सिद्धांत का परिपालन करने हेतु भगवान ने वनवास स्वीकार किया.

वनवास में भगवान ने जहां अनेको अनेक कष्ट सहे वही मानव धर्म में समानता का धर्म साबित करने के लिए केवट और सबरी जैसे लोगों को गले लगाया. बाली को जीतने के बाद मैत्री धर्म का पालन करते हुए बाली को जीतकर राज सुग्रीव को एवं लंका को जीतने के बाद लंका का राज विभीषण को सौंप दिया. ये बातें इसुआपुर के धर्मशाला परिसर में चल रहे चार दिवसीय श्री राम कथा के दूसरे दिन कथा वाचक यूपी के चित्रकूट से आये श्री राघव किंकर जी महाराज (आलोक मिश्रा)ने कही।

उन्होंने कहा कि सनातन धर्म और मानव धर्म के आदर्शों को प्रतिस्थापित करने के लिए राम जी ने सीता जी की अग्नि परीक्षा ली।

आज के पर्यवेक्ष में सनातन धर्म तथा मानव धर्म का पालन करने वाला राम के अलावा दूसरा कोई नहीं हो सकता। श्रीराम आदर्श पुत्र आदर्श भ्राता आदर्श पति आदर्श मित्र एवं आदर्श राजा हैं। अस्तु श्री राम जी का वनवास सभी मानवीय धर्म का आदर्श है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस ग्रंथ में भगवान श्री राम जी के पावन चरित्र का वर्णन करते हुए भगवान के हर उस आदर्श का दर्शन कराया जिसमें मानव जीवन आदर्शो को प्राप्त करता है। अस्तु हम सभी को भगवान श्री राम के आदर्शों पर चलकर ही आदर्श मानव जीवन प्राप्त कर सकते हैं।

कार्यक्रम का आयोजन डॉ प्रतीक, विनोद चौबे, मिथलेश चौबे, बिनोद प्रसाद, राजेश चौबे एवं अन्य लोगों के सहयोग से किया जा रहा है।

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 भारत विविधताओं का देश है, यहां हर पर्व-त्योहार बड़ी खुशी और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसमें बिहार का सुप्रसिद्ध छठ, लोक आस्था का महत्वपूर्ण पर्व जो भारतीय लोक संस्कृति और परंपराओं का अनूठा महापर्व है। छठ हमारी लोक आस्था ही नहीं, स्वजनों का स्वमिलाप और स्वरोजगार का साधन भी है।

जिसकी छाप छठ के छह दिनों में दिखती है, अब इसकी खनक विदेशों में भी देखने को मिलती है। सूर्योपासना का महत्वपूर्ण पर्व छठ अपनी सादगी, पवित्रता और पौराणिक लोक कथाओं के रूप में प्रचलित है। जिसमें भक्ति और आध्यात्म के लिए भव्य पंडाल से सुसज्जित मंदिर, साफ एवं सुंदर पोखर, तालाब, नदी का तट एवं आकर्षक मूर्ति की भी आवश्यकता होती है।

जिसमें छठ पर्व के लिए बांस से बने सूप, अब पीतल का सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तन, गन्ने, गुड़, अरवा चावल, गेहूं के आटे से बना ठेकुआ, केला, सेव, संतरा, शरीफा, अमरूद, पानी फल सिंघारा, नींबू, नारियल, अनानास, सुथनी, शकरकंद, पत्ते वाली हल्दी, अदरक, चावल के आटे का पीट्ठा, पान का पत्ता, तुलसी, बद्धि, अलता, अक्षत, सिंदुर, घी, बाती, धूप, दिए आदि से सूर्यदेव को पहले संध्या बाद में सुबह का अर्घ्य लोकगीत के माधुर्य से सराबोर वातावरण के बीच दिया जाता है।

जिसके लिए सामाजिक समरसता और पारिवारिक सौहार्द की भूमिका अहम हो जाती है। लोक आस्था का यह महत्वपूर्ण पर्व मनाने के लिए प्रवासी भारतीय सहित घर से दूर-दराज के राज्य, प्रांत, देश, शहर, विदेश में रहने वाले परिजन जरूर घर आते हैं। जिससे उनके स्वजनों का स्वमिलाप का केंद्र बिंदु हो जाता है। सालभर पहले ही लोग प्लान कर छठ में घर आने की तैयारी में रहते हैं। दूसरी ओर यह महापर्व स्वरोजगार का भी बड़ा माध्यम है।

बड़ा माध्यम इसलिए कहा जाता है कि छठ पर्व के निमित्त किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी एक दो महीने पहले ही पूर्ण तैयारी के साथ उपरोक्त वर्णित साम्रगी की उपलब्धता के लिए जीतोड़ करते हैं। खासकर सुथनी सौरखा आदि के लिए किसान खेती कर लोग को ससमय उपलब्ध कराते हैं। बाजार में पान का पत्ता, अगरबत्ती की बिक्री लोग बोल बोलकर करते हैं। ठेला, रिक्शा, सड़क किराने फुटपाथ की दुकाने सजकर लोगो को छठ पर्व से संबंधित महत्वपूर्ण साम्रगी उपलब्ध कराते हैं।

समाजनीति पर सार्थक चर्चा करने वाले शिक्षक कौशल किशोर क्रांति कहते हैं कि जो व्यक्ति वर्षभर बेरोजगार बैठे रहते हैं, उन्हे इन छह दिनो में व्यापक रोजगार मिलता है। चाहे वो साफ-सफाई हो, छठ का समान खरीद बिक्री का हो, पंडाल निर्माण का हो, मूर्ति निर्माण का हो, उन्हें किन्ही ना किन्ही रूप में रोजगार मिलता है। सुचिता एवं आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ की धूम मची हुई है। यह छठ सिर्फ बिहार की लोक संस्कृति का ही पर्व नहीं, बल्कि प्राचीन काल से ही गांव के लोकल फॉर वोकल होने का उत्सव भी है।

एक अनुमान के मुताबिक छठ पर्व के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा खर्च किए गए पैसे में से 50 प्रतिशत से अधिक सिर्फ गांव में पहुंचता है। उद्योगपतियों तक पहुंचता है तो सिर्फ रिफाइन, चीनी, सूखा मेवा एवं कुछेक श्रृंगार वस्तुओं पर खर्च की गई राशि ही। इसलिए एक ऐसा महापर्व है जो लोकल फॉर वोकल के सबसे प्राचीन उदाहरण है। यह एक ऐसी पूजा है जिसमें किसी पंडित की जरूरत नहीं होती है, जिसमें देवता प्रत्यक्ष हैं, डूबते सूर्य भी पूजे जाते हैं। व्रती-जाति समुदाय से परे हैं, केवल लोक गीत गाए जाते हैं।

पकवान घर पर बनते हैं, घाटों पर कोई ऊंच-नीच नहीं है। एक समान प्रसाद अमीर-गरीब सभी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं। सबसे बड़ी बात है कि सामाजिक सौहार्द, सद्भाव, शांति, समृद्धि और सादगी के इस महापर्व का बाजार गांव की वस्तुओं से सजता है। सिर्फ बेगूसराय जिले में इस महापर्व में 25-30 करोड़ का कारोबार होता है, जिसमें 15 करोड़ से अधिक रुपया गांव के गरीब और किसानों तक पहुंचता है। जिस पैसों से यह महापर्व उनके लिए आर्थिक समृद्धि का त्यौहार साबित होता है। किसानों द्वारा उपजाए जाने वाले सुथनी की भले ही आम दिनों में कोई पूछ नहीं हो, लेकिन छठ में यह डेढ़ सौ रुपये किलो बिक रहा है।

हल्दी तो हल्दी, हल्दी के पत्ते भी किसानों को अतिरिक्त आय दे जाते हैं। बांस लगाने वाले किसान को भी इस पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है तथा मलिक समुदाय के लोग सूप एवं अन्य लोग डाला बनाने के लिए बड़ी संख्या में बांस खरीदते हैं। केराव (मटर), शरीफा, पानी फल सिंघारा, दीपक, अमरूद, केला, पान का पत्ता, फूल, माला, अदरक, मूली, गन्ना (ईंख), आम की लकड़ी, ओल, गुड़, डाभ नींबू, गोयठा तथा गाय का दुध भी किसी फैक्ट्री में नहीं बनता है, बल्कि गांव से ही आता है।

इस वर्ष भी गांव से लेकर शहर तक का बाजार ग्रामीण उत्पादों से भर चुका है। कहीं सुथनी बिक रहा है तो कहीं ओल, अल्हुआ, गन्ना, हल्दी का पता, पानी फल सिंघाड़ा, चीनी का सांच आदि और तमाम जगहों पर लोगों की भीड़ जुटी हुई है। कुल मिलाकर लोक आस्था के महत्वपूर्ण महापर्व छठ को स्वमिलन और स्वरोजगार का भी केंद्र कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं है। प्रवासी ट्रेन से भर-भर कर आ चुके हैं तो बाजार में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है। 

 

एजेंसी इनपुट 

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लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा के लिए सुदृढ़ सेवा ही हमारा पहला धर्म: डॉo राहुल राज

ढेलहारी बुजुर्ग में किया नवनिर्मित छठ घाट का उद्घाटन: 

chhapra: आगामी महापर्व छठ पूजा को लेकर विभिन्न स्थानों पर जोर-शोर के साथ तैयारियाँ चल रही हैं. जिसके अंतर्गत रिविलगंज प्रखंड प्रमुख सह सदस्य, प्रदेश कार्यसमिति, भाजपा (बिहार), डॉo राहुल राज, प्रखंड विकास पदाधिकारी तथा मुखिया प्रतिनिधि मुन्ना सिंह ने संयुक्त रूप से सारण जिले के अंतर्गत रिविलगंज प्रखंड के ढेलहारी बुजुर्ग में छठ घाट का उद्घाटन फीता काटकर किया.

डॉo राहुल राज ने छठ घाट निर्माण में अपना महवपूर्ण परिश्रमी योगदान देने वाले सभी कर्मियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनका यह योगदान सराहनीय है. यह छठ पूजा के प्रति उनकी सहृदय सच्ची आस्था और श्रद्धा भाव ही है, जो इस कार्य के प्रति उन्हें कर्मठ व सक्षम बनाते हैं. उपस्थित लोगों से वहाँ पर आने वाले छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं की संख्या के बारे में पूछने पर लोगों ने बताया कि यहाँ इस महापर्व के दौरान लगभग हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर पूजा पाठ करते हैं.

इसके अलावा क्षेत्र के अन्य घाटों पर भी भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. डॉo राहुल राज ने लोगो को यह भी निर्देश दिया कि आस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर छठ व्रतियों को अपेक्षित सुविधा प्रदान किया जाए, पानी की गहराई को ध्यान में रखते हुए बैरिकेटिंग की व्यवस्था भी की जाए तथा भीड़ की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसके लिए पुख्ते इंतजाम किये जाए ताकि पूजा संबंधित सभी कार्य शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो सके। प्रखंड प्रमुख ने सभी सेवाकर्मियों को सहृदय धन्यवाद ज्ञापित किया. इस दौरान मौके पर रिविलगंज प्रखंड प्रमुख डॉo राहुल राज के साथ वीo डीo ओo लाल बाबू पासवान तथा मुखिया प्रतिनिधि मुन्ना सिंह , दीपक यादव , दिलीप पासवान, भीम यादव ,अमित सिंह , आकाश सिंह एवं सैकड़ो की संख्या में ग्रामीण समेत कई अन्य सहयोगीगण मौजूद रहे.

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सामूहिक पूजन के साथ घर घर हुआ चित्रगुप्त पूजन

यमदित्या पर कायस्थ समाज ने पूजा भगवान चित्रगुप्त व कलम दवात को

Chhapra: कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन कायस्थ समाज ने अपने इष्टदेव भगवान चित्रगुप्त जी की सामूहिक पूजा अर्चना की जिसमें बड़ी संख्या में कायस्थ परिवार के बंधुओं ने भाग लिया। साथ ही कायस्थ समाज में घर-घर चित्रगुप्त व कलम दवात की पूजा की गई।

कायस्थ परिवार के डॉ विद्याभूषण श्रीवास्तव ने बताया कि चित्रगुप्त जी ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण कायस्थ कहलाए व इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। सभी जीवो के पाप पुण्य का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत जीवो के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते हैं। एवं मृत्यु पश्चात यमराज के समक्ष जीवात्मा के कर्मों को रखते हैं। इनकी लेखनी से जीवो को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है।

अभिजीत श्रीवास्तव ने कहा कि भगवान चित्रगुप्त कलम के अधिष्ठाता देव हैं हर साल दिवाली के एक दिन बाद चित्रगुप्त पूजा को कलम दवात पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रार्थना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है ।

प्रिंस राज ने कहा कि सृष्टि के सभी देहधारियों के भाग्य कर्मफल अंकित करने वाले भगवान चित्रगुप्त कर्म के आधार पर बिना पक्षपात के सब का लेखा जोखा रखते हैं ।

आज के दिन कायस्थ समाज द्वारा सामूहिक चित्रगुप्त पूजन के साथ साथ प्रत्येक कायस्थ परिवार में घर-घर चित्रगुप्त व कलम दवात की पूजा की जाती है।

चित्रगुप्त मन्दिर में पुजा मे नरेंद्र कुमार वर्मा, विमल कुमार श्रीवास्तव, राकेश कुमार सिन्हा, मनीष रंजन, अनूप कुमार श्रीवास्तव रवीश कुमार उर्फ रवि , सुभाष चन्द्र भास्कर, अरुण कुमार श्रीवास्तव, बिटू जी, सदानद, सुनील कुमार वर्मा विकास कुमार वर्मा एवं सौरभ सिन्हा इस अवसर पर सहित कई चित्रांश बंधु उपस्थित रहे.

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हर्षोल्लास से मनाया गया भैया दूज का त्योहार

Chhapra: भाईबहन के प्यार का प्रतीक भैया दूज का पर्व बुधवार को उत्साह के साथ मनाया गया। इस दौरान भाइयों के माथे टीको से सजे दिखाई दिए। दिन भर बहनों का अपने भाइयों के यहां टीका लगाने के लिए पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। माथे पर टीका लगाते हुए बहनों ने अपने भाइयों की सलामती दीर्घायु की दुआ मांगी।

मिठाइयों से लेकर आकर्षक तोहफों की खरीदारी की गई। बहन भाई के प्रेम को दर्शाता भैया दूज का त्योहार शहर के साथ-साथ जिलाभर में धूमधाम से मनाया गया।

भाईबहन के अटूट प्रेम को सूत्र में पिरोते इस त्योहार को जितना उत्साह बहनों में दिखा उतने ही भाई भी उत्साहित दिखे। भाइयों ने भी अपनी बहनों को स्नेह स्वरूप उपहार दिए। बाजार में महिलाओं और युवतियों ने जमकर खरीदारी की। मंदिरों में इस मौके पर सुबह से ही पूजा-अर्चना के लिए तांता लगा रहा।

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भैया दूज: जानिए क्या है मुहूर्त

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को मनाया जाता है. यह त्योहार भाई -बहन के प्रेम का प्रतीक है. इस दिन भाई -बहन के साथ यमुना अस्नान करना तिलक लगाना तथा बहन के घर भाई को जाकर भोजन करना चाहिए, भोजन करने से आपको उन्नति होगा बहन भाई के पूजा कर उनके दीर्घायु तथा अपने सुहाग की कामना से हाथ जोड़ यमराज से प्राथना करती है. इस दिन सूर्यतनया जमुना जी अपने भाई यमराज को भोजन कराया था. इस लिए इसे यमदितिया भी कहते है. इस दिन श्रद्धालु भाई अपने बहन को स्वर्ण,वस्त्र मुद्रा आदि बहन को देना चाहिए. यह त्योहार भाई -बहन के अटूट प्रेम को दर्शाने वाला यह त्योहार है.

इस त्योहार का क्या है रहस्य.

कथा के अनुसार भाई दूज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे. इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल -फुल मिठाई और दिये जलाकर उनका स्वागत किया था. सुभद्रा ने भगवन श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी. इसी दिन से बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है भाई उपहार देते है.

भाई दूज के तिलक का समय 15 नवम्बर 2023 दिन बुधवार समय 12 :39 दोपहर से 02:50 दोपहर तक
तिलक का पूरा अवधि 02 :11 मिनट तक रहेगा.

भाई दूज क्या है कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य और संज्ञा की दो संतानें – एक पुत्र यमराज, दूसरी पुत्र यमुना है. एकबार सज्ञा सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं तो वह उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगीं. जिसके कारण ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ. सज्ञा के उत्तरी ध्रुव में बसने के कारण यमलोक ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई और यमुना गोलोक में निवास करने लगीं. लेकिन यमराज और यमुना के बीच बहुत प्रेम और स्नेह था. एक बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को निमंत्रण भेजा. यमुना के निमंत्रण पर यमराज यमुना के घर आ गए. यमुना ने स्नान व पूजन के बाद स्वादिष्ट व्यंजन यमराज को दिए और आदर सत्कार किया. यमुना के सत्कार से यमराज बेहद प्रसन्न हुए और वरदान मांगने का आदेश दिया.

यमुना ने कहा कि आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आएं और मेरी तरह जो बहन इस दिन भाई का आदर सत्कार कर टीका करे, उसको तुम्हारा भय ना रहे. यमराज ने यमुना को आशीर्वाद दिया और वस्त्राभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान कर गए. उसी दिन से इस दिन भाई दूज मनाने की परंपरा शुरू हुई. मान्यता है कि भाई दूज के दिन भाई-बहन को यमराज और यमुना का पूजन अवश्य करना चाहिए.

किसी भी प्रकार से ज्योतिष संबंधित जानकारी के दिए हुई फोन नंबर पर बात कर सकते है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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पंचांग के अनुसार धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. धन तेरस को अलग अलग नाम से जाना जाता है. इन्हें कही धनतेरस, धन्वंतरी जयंती के नाम से भी जानते है. इस दिन आयुर्वेद चिकित्सक पद्धति के जनक कहे जाने वाले धन्वंतरी देव इसी दिन समुन्द्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे. इसलिए इस दिन को धनतेरस यानी धन्वंतरी कहा जाता है. इस दिन बर्तन खरीदने का परंपरा है क्योंकि धन्वंतरी देव समुन्द्र मंथन से जब प्रगट हुए तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था इसलिए इस दिन बर्तन खरीदा जाता है. इस दिन से दीपावली की शुरुआत हो जाती है.

धनतेरस का पूजा मुहुर्त
10 नवंबर दिन शुक्रवार संध्या 05:21 मिनट से 07:18 मिनट तक रहेगा. कुल अवधि 01:57 मिनट

त्रयोदशी तिथि का आरंभ 10 नवंबर 2023 दोपहर 12:35 से
त्रयोदशी तिथि का समाप्त 11 नवम्बर 2023 दोपहर 01:57 तक

प्रदोष काल संध्या 05:03 से 07:39 संध्या तक रहेगा .
वृषभ काल संध्या 05:21 से 07:18 संध्या तक रहेगा.

यम का दीप 10 नवम्बर 2023 दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा

धनतेरस पर क्या खरीदे, क्या नहीं खरीदे

इस दिन सोना, चांदी, पीतल खरीदना चाहिए, धनिया तथा झाडू खरीदना शुभ माना जाता है.  इस दिन काला रंग के वस्तु, कांच से बनी वस्तु, चीनी मिट्टी से बनी, वस्तु लोहे तथा अल्मीनियम से बने हुए वस्तु की खरीदारी नहीं करे.

धनतेरस के दिन झाडू का खरीदारी क्यों करना चाहिए?

धनतेरस के दिन झाडू खरीदने के पीछे जुडी मान्यता के अनुसार इससे घर में माँ लक्ष्मी का आगमन होता है. आपके घर के नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाते है। इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न रहती है घर में धन- धान्य में वृद्धि होगा. झाडू विषम संख्या में खरीदे

इस दिन शंख का पूजन करने का विशेष महत्व है
कहा जाता है भगवान धन्वंतरी देव भी समुंद्र मंथन से प्रगट हुए थे। शंख भी समुंद्र से प्रगट हुए है। शंख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु का विशेष पूजन किया जाता है, इसलिए शंख का पूजन करे। धन का लाभ होगा। याद रखे शंख का पूजन करे लेकीन शंख को अपने पूजन में बजाए नही इससे भगवान विष्णु नाराज होते है.

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