• मेनू के अनुसार प्रत्येक दिन बेडों पर बिछाया जा रहा अलग-अलग रंग का चादर
• अब मरीजों को घर से नहीं लाना पड़ता है चादर
• अस्पतालों में मिल रही सेवाओं से मरीजों में संतुष्टि


Chhapra: अब अस्पताल के बेड पर प्रत्येक दिन अलग-अलग रंग की चादरें बिछी हुई दिखने लगी है। इसके लिए स्वास्थ्य महकमा नई पहल करते हुए चादर भी उपलब्ध करा रहा है। नई पहल से अस्पताल के बेड भी सतरंगी चादरों के कारण एक अलग लुक में दिखाई दे रहा है। जिले के सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में अब मरीजों के बेड पर रंगीन चादर दिख रही है। अब मरीजों को घर से बेड पर बिछाने के लिए चादर नहीं लाना पड़ता है। अस्पताल प्रशासन की इस पहल से मरीजों को बेहतर सुविधा मिल रही है। इससे मरीजों की सेहत सुधरने के साथ उन्हें अच्छा महसूस हो रहा है।

अब घर से नहीं लाना पड़ता चादर
सदर अस्पताल में अपनी माँ का इलाज कराने आये छपरा शहर के सटे साढ़ा निवासी रमेश कुमार का कहना है कि पहले के तुलना में अस्पताल के व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। अब किसी मरीज को अपना चादर नहीं लाना पड़ता है क्योंकि अस्पताल प्रशासन की ओर से चादर उपलब्ध कराया जा रहा है। साफ-सफाई की व्यवस्था भी दुरूस्त की गयी है। जिससे मरीजों को काफी सहुलयित हो रही है।

प्रत्येक दिन अलग-अलग रंग की चादर
स्वास्थ्य संस्थानों में प्रत्येक दिन अलग-अलग रंग की चादर दिख रही है। रविवार को बैगनी, सोमवार को नीला, मंगलवार को आसमानी, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को नारंगी, शनिवार को लाल रंग की चादरें बिछाईं जा रही है।

सभी वार्डों में बेड पर मिल रहा है चादर
इसमें आपातकालीन वार्ड, सिजेरियन वार्ड, शिशु वार्ड, एडिक्शन वार्ड, कालाजार वार्ड, प्री नेटल वार्ड, पोस्ट नेटल वार्ड समेत अन्य वार्ड में बेड की संख्या निर्धारित की गयी है। विभिन्न वार्डों में छह रंग का चादर बिछाना है। योजना के तहत प्रतिदिन अलग-अलग रंग की चादर बिछाई जानी है। वार्ड में चादर चतुर्थ वर्गीय कर्मी और ममता की सहायता से बिछाई जा रही है।

हर दिन बदली जाती है चादर
सिविल सर्जन डॉ. माधवेश्वर झा ने कहा कि चादरों की विशेषता यह है कि अगर अस्पताल के बेड पर किसी दिन कोई मरीज नहीं पहुंचता है तो दूसरे दिन चादर अवश्य ही बदल दी जाती है। सरकार की हिदायत के अनुसार सभी चादरों को अलग-अलग दिन के हिसाब से बिछाना है। वहीं वार्ड में किस दिन कौन से रंग का चादर बिछाया जाएगा, इसकी सूचना भी बोर्ड पर प्रदर्शित किया गया है। जिन्हें देखकर कोई भी मरीज या उनके साथ पहुंचने वाले परिजन भी एतराज दर्ज करा सकते हैं। मरीजों को हर संभव बेहतर सुविधा देने का प्रयास किया जा रहा है।

कोरोना काल में इन उचित व्यवहारों का करें पालन
• एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर का प्रयोग करें
• सार्वजनिक जगहों पर हमेशा फेस कवर या मास्क पहनें
• अपने हाथ को साबुन व पानी से लगातार धोएं
• आंख, नाक और मुंह को छूने से बचें
• छींकते या खांसते वक्त मुंह को रूमाल से ढकें

Chhapra: जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन द्वारा सिविल सर्जन को निर्देश देते हुए कहा है कि निजी अस्पताल, सदर अस्पताल, अनुमंडल अस्पताल मढ़ौरा तथा सोनपुर में सामान्य मरीजों का इलाज पुनः शुरू कराया जाए. इन हॉस्पिटलों में ओपीडी, आपातकालीन सेवा एवं संस्थागत प्रसव सेवा को तत्काल शुरू कराया जाए. ताकि कोरोना के अतिरिक्त अन्य मरीजों को इलाज में कोई परेशानी ना हो.

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जिलाधिकारी ने कहा कि जिला अस्पताल एवं अनुमंडल अस्पताल में प्रवेश किस समय एक फ्लू कॉर्नर स्थापित किया जाए. जहां आने वाले मरीजों की प्राथमिक जांच के क्रम में प्राथमिक जांच कर सुनिश्चित किया जाए कि उसे कोरोना के लक्षण नहीं है. फिर प्राथमिक उपचार के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान रखते हुए ओपीडी में भेजा जाए.

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जिलाधिकारी ने कहा कि जिला एवं अनुमंडल के अस्पतालों में बीमारी के इलाज की पूरी व्यवस्था रखी जाए. वहीं निजी अस्पताल भी सामान्य मरीजों का इलाज आरंभ करें. अस्पतालों में सुरक्षा मानकों का पूर्ण रुप से पालन कराया जाए. वही एंबुलेंस की पर्याप्त व्यवस्था रखी जाए.

• स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने पत्र लिखकर दिए निर्देश
• सभी जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पतालों में ओपीडी, प्रसव कक्ष एवं ऑपरेशन थिएटर को किया जाएगा सैनिटाइज्ड
• कोरोना से बचाव के मद्देनजर ओपीडी में सोशल डिसटेंसिंग का रखा जाएगा ख्याल

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Chhapra: कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण राज्य भर में ओपीडी, आईपीडी एवं संस्थागत प्रसव सहित अन्य आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हुयी हैं. इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने इन जरुरी स्वास्थ्य सेवाओं को फिर से नियमित करने करने का फैसला लिया है. इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने सभी असैनिक शल्य चिकत्सक-सह- मुख्य चिकित्सा पदाधिकारियों को इस संबंध में पत्र लिखकर विस्तार से दिशानिर्देश दिया है. पत्र में प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम एवं चिकत्सकीय सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए निरंतर मार्गदर्शन दिए जा रहे हैं. कोरोना काल में भी विभिन्न प्रकार की जरुरी चिकित्सकीय सेवाओं को लोक हित में प्रदान किया जाना अनिवार्य है. लेकिन इसकी समीक्षा क्रम में जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अपस्ताल में ओपीडी( बाह्य रोगी कक्ष), आईपीडी( अन्तर्वासी रोगी कक्ष) के मरीजों की संख्या एवं संस्थागत प्रसव में कमी देखने को मिल रही है. इसलिए जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पताल में ओपीडी, आईपीडी, आपातकालीन सेवाएं एवं संस्थागत प्रसव को जनहित में पहले की तरह शुरू की जाएगी.

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अस्पतालों के प्रवेश के पास फ्लू कार्नर होगा अनिवार्य
पत्र में बताया गया कि सभी जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पताल के प्रवेश के पास एक फ्लू कार्नर स्थापित किया जाए एवं इस फ्लू कार्नर के संचालन के लिए रोस्टरवार समुचित संख्या में चिकित्सक एवं पाराचिकित्सा कर्मियों को प्रतिनियुक्त किया जाए. साथ ही फ्लू कार्नर में प्रतिनियुक्त स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए एन-95 मास्क, नॉन स्टेराइल दस्ताना (स्टेराइल दस्ताना का उपयोग शल्य कार्य एवं अन्य अनिवार्य परिक्षण हेतु) एवं डिस्पोजेबल हेड कैप आदि उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं.

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अस्पताल में एक ही एंट्रेंस एवं एग्जिट गेट रहेगा चालू
पत्र के अनुसार अस्पताल में आने वाले लोगों के भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पताल में एक प्रवेश द्वार( एंट्रेंस) एवं एक ही निकास द्वार( एग्जिट) चालू रखने के निर्देश दिए गए हैं. साथ ही अन्य द्वार के माध्यम से आगुन्तकों/मरीजों का प्रवेश बंद करने की सलाह दी गयी है. जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पताल में आने वाले मरीजों/ आगुन्तकों का कोविड-19 की प्राथमिक जाँच फ्लू कार्नर में करने के निर्देश दिए गए है. साथ ही फ्लू कार्नर में अन्य जरुरी उपकरणों के साथ इन्फ्रारेड थर्मामीटर की उपलब्धता सुनिश्चित करने की बात बताई गयी है.

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कोरोना की प्राथमिक जाँच के बाद ही मरीजों को ओपीडी में मिलेगी एंट्री 
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर अस्पतालों में सतर्कता बरती जाएगी. फ्लू कार्नर पर मरीजों/आगुन्तकों की कोरोना की प्राथमिक जाँच होगी. जिनमें कोरोना के लक्षण दिखाई देंगे, उन्हें नजदीक के क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया जाएगा एवं जिनमें कोई लक्षण नहीं मिलेगा, उन्हें ही उपचार के लिए ओपीडी में जाने की अनुमति मिलेगी. इस पूरी प्रक्रिया में सामाजिक दूरी का विशेष रूप से ख्याल रखा जाएगा. ओपीडी के चिकित्सक के कमरे में भी एक बार में एक ही मरीज को जाने की अनुमति होगी ताकि संक्रमण के खतरे को टाला जा सके.

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ओपीडी, प्रसव कक्ष एवं ऑपरेशन थिएटर होंगे सैनिटाइज्ड
पत्र के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के द्वारा सभी असैनिक शल्य चिकत्सक-सह- मुख्य चिकित्सा पदाधिकारियों को कोरोना संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पताल के ओपीडी, प्रसव कक्ष एवं ऑपरेशन थिएटर को अच्छी तरह सैनिटाइज्ड करने के निर्देश भी दिए गए हैं.

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जरुरी स्वास्थ्य सुविधाएँ जारी रखने की अपील
पत्र के माध्यम से प्रधान सचिव स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों से अनुरोध किया है कि वर्तमान परिस्थिति में मरीजों के हित के लिए सभी जिला अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पतालों में ओपीडी.आईपीडी, संस्थागत प्रसव की सेवाएं एवं अन्य आपातकालीन सेवाएं को अहर्निश रूप से बनाये रखा जाए ताकि इस विषम हालात में भी जनसमुदाय को स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की कठिनाई ना हो. साथ ही ओपीडी एवं संस्थागत प्रसव संबंधी अनिवार्य प्रविष्टि संजीवनी पोर्टल पर दैनिक रूप से करने की बात कही गयी है.

Chhapra: एक तरफ जहां राज्य में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने को लेकर स्वास्थ्य विभाग द्वारा तमाम तरह के दावे किए जा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ छपरा सदर अस्पताल के डॉक्टरों को ही सदर अस्पताल में कोरोना वायरस के लिए बने आइसोलेशन वार्ड की जानकारी नहीं थी. शनिवार को सारण प्रमंडल के स्वास्थ्य विभाग के रीजनल एडिशनल डायरेक्टर डॉ ए के गुप्ता ने छपरा सदर अस्पताल में डॉक्टरों के साथ मीटिंग बुलाई इस दौरान उन्होंने डॉक्टरों से पूछा कि छपरा सदर अस्पताल में कोरोना के संदिग्धों के लिए आइसोलेशन वार्ड कहां बनाया गया है. इसपर एक दो डॉक्टरों को छोड़कर कोई भी डॉक्टर जवाब नहीं दे सका. इसपर रीजनल डायरेक्टर ने नाराजगी जाहिर की और उन्होंने कहा कि डॉक्टरों को पूरी तरह से अलर्ट रहना होगा, जब डॉक्टरों को ही नहीं पता कि आइसोलेशन वार्ड कहां है फिर मरीजों का क्या होगा.

डॉक्टर्स को समय से पहले आने का निर्देश

डॉ एके गुप्ता ने सिविल सर्जन मधेश्वर झा के साथ दर्जनों डॉक्टरों को कई अहम निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि अस्पताल में गैदरिंग कम हो इसके लिए डॉक्टरों को उचित कदम उठाने होंगे. उन्होंने सभी डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वह समय से पहले अस्पताल पहुंचे ताकि मरीजों को ज्यादा देर इंतजार ना करना पड़े. बैठक के दौरान तमाम डॉक्टरों को कोरोना के संदिग्धों के जांच व इलाज के लिए अहम निर्देश दिए गए.

इमरजेंसी के ऊपर बना है 5 बेड का आइसोलेशन वार्ड

सिविल सर्जन मधेश्वर झा ने बताया कि छपरा सदर अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड के ऊपर बर्न वार्ड के समीप 5 बेड का आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है.  वायरस के सस्पेक्टस को इसी आइसोलेशन वार्ड में रखा जाएगा और उनका जांच व इलाज किया जाएगा. इसके लिए विभिन्न डॉक्टरों का ड्यूटी रोस्टर भी तैयार कर लिया गया है और प्रधान सचिव को भेज दिया गया है. सीएस ने बताया कि सभी डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ समेत स्वास्थ्य विभाग के तमाम गर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. हालाकी मातृत्व अवकाश जारी रहेगा.

वही डॉ एके गुप्ता ने कहा कि बिहार में अभी तक एक भी मरीज पॉजिटिव नहीं मिला है. यह अच्छी बात है. जिस तरह से देश के अन्य राज्य में मामले बढ़े हैं इसको देखते हुए स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से अलर्ट है. विभाग की ओर से तमाम तरह की तैयारियां की गई है. कहीं भी कोई चूक ना हो इसके लिए विशेष सावधानी बरती जा रही है. उन्होंने कहा कि संक्रमण न फैले इसके लिए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.

कायाकल्प कार्यक्रम योजना के तहत किया गया कार्यतय मानकों के सापेक्ष 70 प्रतिशत उपलब्धि पर सांत्वना पुरस्कार

Chhapra: प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2014 में शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को सफ़ल बनाने के उद्देश्य से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में बेहतर साफ-सफाई, स्वच्छता एवं संक्रमण नियंत्रण हेतु कायाकल्प अवार्ड कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है।

जिला स्तर पर 50 लाख तक का अवार्ड

सदर अस्पताल में बेहतर साफ-सफाई, स्वच्छता एवं संक्रमण रोकथाम के स्तर के मूल्यांकन के लिए कुल 500 मानक तैयार किए गए हैं। जबकि प्रखंड स्तर पर कुल 250 मानक तैयार किए गए हैं। तय मानकों के अनुरूप जिला स्तरीय एवं प्रखंड स्तरीय अस्पतालों का मूल्यांकन कर उन्हें पुरस्कृत करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कायाकल्प अवार्ड कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है। इस कार्यक्रम के तहत राज्य में बेहतर प्रदर्शन करने वाले किन्हीं दो जिला स्तरीय अस्पतालों को पुरस्कृत करने का प्रावधान है।

इसमें पहले स्थान पर रहने वाले जिला स्तरीय अस्पताल को 50 लाख एवं दूसरे स्थान पर रहने वाले अस्पताल को 20 लाख रुपए देने का प्रावधान है। राज्य स्तर पर किन्हीं दो बेहतर प्रदर्शन करने वाले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं अनुमंडलीय अस्पताल को भी अवार्ड के रूप में धनराशि दी जाएगी। इसमें पहले स्थान पर रहने सीएचसी या एसडीएच को 15 लाख एवं दूसरे स्थान पर रहने वाले अस्पताल को 10 लाख रुपए देने का प्रावधान है। साथ ही जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रथम स्थान पाने वाले स्वास्थ्य केंद्र को 2 लाख रुपए देने का प्रावधान है।

70 प्रतिशत उपलब्धि पर सांत्वना पुरस्कार

तय मानकों के सापेक्ष 70 प्रतिशत उपलब्धि पर सांत्वना पुरस्कार दिए जाने का भी प्रावधान बनाया गया है। सांत्वना पुरस्कार के रूप में सदर अस्पताल को 3 लाख, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों या अनुमंडलीय अस्पतालों को 1 लाख एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को 50 हजार रुपए दिए जाते हैं।

25 प्रतिशत धनराशि स्वास्थ्य कर्मियों में वितरित

अवार्ड के रूप में प्राप्त कुल धनराशि का 75 प्रतिशत अस्पताल के सुदृढीकरण में खर्च किए जाते हैं। जबकि स्वास्थ्य कर्मियों के बेहतर कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए कुल राशि का 25 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मियों के बीच वितरित किए जाते हैं।
तीन स्तर पर किया जाता है मूल्यांकन कायाकल्प अवार्ड के लिए कुल तीन स्तर पर मूल्यांकन किए जाते हैं। जिला स्तरीय अवार्ड के लिए आंतरिक मूल्यांकन के बाद जिला स्तर पर गठित गुणवत्ता मूल्यांकन टीम के द्वारा स्वास्थ्य केंद्र का मूल्यांकन किया जाता है।

उसके बाद राज्य स्तरीय टीम द्वारा चिन्हित स्वास्थ्य केंद्र का दौरा कर केंद्रीय टीम को रिपोर्ट भेजी जाती है। केंद्रीय टीम द्वारा दौरा कर जिला स्तरीय अवार्ड को फ़ाइनल किया जाता है। जबकि प्रखंड स्तरीय पुरस्कार के लिए सर्वप्रथम आंतरिक मूल्यांकन होता है। इसके बाद पीयर मूल्यांकन होता है जिसमें दूसरे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के द्वारा चिन्हित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का मूल्यांकन किया जाता है। आखिरी में जिला गुणवत्ता मूल्यांकन टीम द्वारा पुरस्कार घोषित किए जाते हैं।

इन मानकों पर तय होते हैं पुरस्कार

• अस्पताल की आधारभूत संरचना
• साफ-सफाई एवं स्वच्छता
• जैविक कचरा निस्तारण
• संक्रमण रोकथाम
• अस्पताल की अन्य सहायक प्रणाली
• स्वच्छता एवं साफ़-सफाई को बढ़ावा देना

  •  जिले में  7 अगस्त से चलाया जायेगा अभियान

Chhapra: सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के सहयोग से जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण विभाग द्वारा शुक्रवार को कार्यालय में फाइलेरिया नियंत्रण के लिए मीडिया कार्यशाला आयोजित की गयी। कार्यशाला को संबोंधित करते जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने कहा कि फाइलेरिया पर प्रभावी नियंत्रण के लिए जिले में 7 से तक सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसके लिए जिले में 39 लाख लोगों को दवा खिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

1468 कर्मियों की टीम करेगी काम

जिले में फाईलेरिया उन्मूलन अभियान के लिए टीम का गठन कर लिया गया है। 1468 कर्मियों की टीम बनायी गयी है। प्रत्येक दस आशा कार्यकर्ताओं पर एक सुपरवाईजर की प्रतिनियुक्ति की गयी है। एक टीम छह दिन हीं काम करेगी। प्रत्येक आशा को एक दिन करीब 50 घर में दवा खिलाने का लक्ष्य दिया गया है। सभी आशा कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया गया है कि दस बजे के बाद हीं दवा खिलाना है ताकि कोई कोई खाली पेट दवा न खाये। प्रत्येक आशा को 50 घरों में दवा खिलाने पर 600 रूपये दिया जायेगा।

सेवन करने वाले लोगों की उँगलियों पर की जाएगी मर्किंग

शत-प्रतिशत लक्षित समूह को दवा सेवन सुनिश्चित कराने के मकसद से इस बार के एमडीए कार्यक्रम में कुछ नए बदलाव किए गए हैं। अब पोलियो अभियान की तर्ज़ पर एमडीए कार्यक्रम के दौरान भी दवा सेवन करने वाले लोगों के बाएँ हाथ की तर्जनी नाखून पर मर्किंग की जाएगी। इसके लिए सभी लक्षित ज़िलों में मार्कर की उपलब्धता सुनिश्चित कराई गयी है।4940 मार्कर उपलब्ध कराया गया है।

2 साल से कम उम्र के बच्चे एंव गर्भवती महिलाओं को नहीं दी जायेगी दवा

डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि 2 साल से अधिक सभी लोगों को फाइलेरिया की दोनों दवा खिलाई जाएगी। 2 साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएं एवं गंभीर रूप से पीड़ित लोगों को यह दवा नहीं खिलाई जाएगी।

आशा एवं आँगनवाड़ी सेविका-सहायिका घर-घर जाकर खिलायेंगी दवा

अभियान को सफल बनाने हेतु आशा एवं आँगनवाड़ी सेविका-सहायिका घर-घर जाकर लक्षित समुदाय को फाइलेरिया की दवा खिलाएगी। साथ ही आशा एवं आंगनवाड़ी यह सुनश्चित करेंगे कि उनके सामने ही लोग दवा का सेवन करें।

खाली पेट दवा का सेवन नहीं करें

लोग खाली पेट दवा का सेवन नहीं करें. कभी-कभी खाली पेट दवा खाने से भी कुछ समस्याएं होती है। लोगों में फाइलेरिया की दवा सेवन के साइड इफ़ेक्ट के बारे में कुछ भ्रांतियाँ है जिसे दूर करने की सख्त जरूरत है। फाइलेरिया की दवा सेवन से जी मतलाना, हल्का सिर दर्द एवं हल्का बुखार हो सकता है जो शरीर में मौजूद फाइलेरिया के परजीवी के मरने के ही कारण होता है। यदि दवा खाने से कोई साइड इफ़ेक्ट होता है तो उसके उपचार के लिए एंटासीड कीट की भी व्यवस्था की गयी है।

डीईसी एवं एलबेंडाजोल की गोलियाँ खिलाई जायेगी

इस अभियान में डीईसी एवं एलबेंडाजोल की गोलियाँ लोगों की दी जाएगी। उन्होंने बताया कि 2 से 5 वर्ष तक के बच्चों को डीईसी की एक गोली एवं एलबेंडाजोल की एक गोली, 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को डीईसी की दो गोली एवं एलबेंडाजोल की एक गोली एवं 15 वर्ष से अधिक लोगों को डीईसी की तीन गोली एवं एलबेंडाजोल की एक गोली दी जाएगी. एलबेंडाजोल का सेवन चबाकर किया जाना है।

क्या है फाइलेरिया

सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ दीपक कुमार ने बताया किया इसे हाथीपावं रोग के नाम से भी जाना जाता है। बुखार का आना, शरीर पर लाल धब्बे या दाग का होना एवं शरीर के अंगों में सूजन का आना फाइलेरिया की शुरूआती लक्ष्ण होते हैं। यह क्यूलेक्स नामक मच्छर के काटने से फैलता है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लसिका (लिम्फैटिक) प्रणाली को नुकसान पहुँचाता है। फाइलेरिया से जुडी विकलांगता जैसे लिंफोइडिमा( पैरों में सूजन) एवं हाइड्रोसील(अंडकोश की थैली में सूजन) के कारण पीड़ित लोगों को इसके कारण आजीविका एवं काम करने की क्षमता प्रभावित होती है।

इस दौरान सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च से सहायक राज्य प्रबंधक रंजीत कुमार के साथ प्रवीण कुमार, सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. दीपक कुमार, सीफॉर के डिविजनल कॉर्डिनेटर मीडिया गणपत आर्यन, डिविजनल कॉर्डिनेटर प्रोग्राम अमन कुमार, पीसीआई के जिला समन्वयक मानव कुमार, भीबीडी सुधीर कुमार सिंह समेत अन्य पदाधिकारी मौजूद थे।

Chhapra: शनिवार को सदर अस्पताल में डॉक्टरों ने ओपीडी सेवाओं का बहिष्कार किया. जिसका असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा.

ओपीडी में डॉक्टरों के नहीं रहने से इलाज कराने आय मरीज बेहाल दिखे. वही दूर देहात से इलाज कराने आय मरीजों को बैरंग वापस लौटना पड़ा. हालांकि राहत की बात यह रही कि डॉक्टरों ने आपातकालीन सेवाएं चालू रखा.

सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ दीपक ने बताया कि नेशनल मेडिकल कमिसन बिल के विरोध मे IMA के आह्वान पर डॉक्टर हड़ताल पर हैं. उन्होंने बताया कि सरकार MCI के जगह NMC बिल ला रही है. जिसमें कई खामियां है. इस वजह से आज धिक्कार दिवस मनाने का आह्वान किया गया है.

क्या है नेशनल मेडिकल कमीशन बिल
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के तहत चार स्वायत्त बोर्ड बनाने का प्रावधान है. NMC एक 25 सदस्यीय संगठन होगा जिसमें एक अध्यक्ष, एक सदस्य सचिव, आठ पदेन सदस्य और 10 अंशकालिक सदस्य आदि शामिल होंगे. इस कमीशन का काम अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षा को देखना, साथ ही चिकित्सा संस्थानों की मान्यता और डॉक्टरों के पंजीकरण की व्यवस्था को भी देखना होगा. इस कमीशन में सरकार द्वारा नामित चेयरमैन और सदस्य होंगे जबकि बोर्डों में सदस्य, सर्च कमेटी द्वारा तलाश किए जाएंगे. यह कैबिनेट सचिव की निगरानी में बनाई जाएगी.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (Medical Council Of India, MCI) खत्म हो जाएगी और उसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (National Medical Commission, NMC) लेगी.