Chhapra: बिहार शिक्षा मंच के संयोजक तथा सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के जुझारू एव भावी प्रत्याशी प्रो रणजीत कुमार ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा अचानक बिहार के 626 वित्त रहित शिक्षण संस्थानों की मान्यता रद्द करने संबंधी निर्णय को एकपक्षीय, अनुचित एवम राजनीतिक दवाब में लिया गया फैसला बताते हुए इसकी तीव्र भर्त्सना किया है.
उन्होने कहा कि इस तुगलकी फरमान को अविलंब वापस लेने के लिए समिति के अध्यक्ष को एक तार्किक पत्र लिखा है जिसकी प्रतिलिपि मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत सरकार तथा मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, बिहार सरकार को भी प्रेषित कर शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के उपरांत इस प्रकार का निर्णय लेने पर तत्काल संज्ञान लेकर समिति के विरुद्ध उचित कानूनी कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है.
प्रो कुमार ने समिति के अध्यक्ष को संबोधित पत्र में उल्लेख किया है कि समिति द्वारा अचानक बिहार के 626 वित्तरहित शिक्षण संस्थानों की संबद्धता समाप्त करने संबंधी निर्णय से कई सवाल और संदेह उत्पन्न हो रहे हैं यथा समिति को अचानक कैसे इल्हाम हुआ कि नामित सभी शिक्षण संस्थानों की सम्बद्धता अवधि समाप्त हो चुकी है और इन संस्थानों की सम्बद्धता की समीक्षा कर उन्हें असम्बद्ध घोषित करने का यही माकूल वक़्त है जब सारण सहित बिहार के चार शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन हेतु मतदाता बनने की प्रक्रिया 01 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है?
(2)क्या इन सभी शिक्षण संस्थानों की सम्बद्धता की अवधि एक साथ सितम्बर-अक्टूबर 2019में ही समाप्त हुई है? यदि नहीं तो फिर शिक्षक निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारंभ होने के समय इस तरह का निर्णय क्यों लिया गया? क्यों नहीं इसे उम्मीदवार विशेष के पक्ष में वित्तरहित शिक्षण संस्थानों पर दवाब बनाने का अनुचित प्रयास माना जाए?
(3)जिन शिक्षण संस्थानों को अस्थायी सम्बद्धता दी गई थी या जिन संस्थानों की सम्बद्धता की अवधि पहले ही समाप्त हो गई थी, उन शिक्षण संस्थानों को समिति ने क्या पहले सूचित कर आगाह किया था?

(4)सम्बद्धता प्राप्त शिक्षण संस्थानों का पक्ष जाने बिना उनकी मान्यता समाप्त करने संबंधी निर्णय लेना क्या नैसर्गिक न्याय के खिलाफ नहीं है?
(5)समिति से मान्यता प्राप्त इन शिक्षण संस्थानों की सूची निर्वाचन आयोग के वेबसाइट पर उपलब्ध है जिसके आधार पर इन शिक्षण संस्थानों के शिक्षकगण मतदाता बन रहे हैं. चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद इन शिक्षण संस्थानों को असम्बद्ध घोषित करना क्या चुनावी प्रक्रिया में अनुचित हस्तक्षेप नहीं है?

(6)समिति द्वारा प्रकाशित विज्ञप्ति संख्या P R-51/2017 के आधार पर वैसे इंटर कॉलेजों, जिनकी सम्बद्धता अवधि विस्तारित नहीं की गई थी, को शिक्षा और छात्र हित में संबंधित शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों को सत्र 2016-2018 के परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी गई थी।क्या बिहार सरकार के लिए अब छात्र हित का मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं रह गया है?समिति की अनुमति से लाखों विद्यार्थियों ने इन शिक्षण संस्थानों में अपना नामांकन एवम पंजीकरण कराया है, उनके भविष्य का क्या होगा?समिति के अचानक इस निर्णय से क्या इन शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों एवम कर्मचारियों का भविष्य अधर में नहीं लटक गया है?
(7)समिति ने दर्जनों वैसे शिक्षण संस्थानों को भी असम्बद्ध घोषित कर दिया है जिन्हें बिहार सरकार से स्थायी सम्बद्धता हासिल है. उदाहरण के लिए सारण जिले के लोक महाविद्यालय हाफिजपुर को शिक्षा विभाग के पत्रांक 15/एडु/015/04/मा स वि 1065 दिनांक 19-12 -1989 द्वारा इंटर स्तर तक स्थायी सम्बद्धता हासिल है. यह तथ्य समिति के हाकिम को या तो मालूम नहीं है या फिर ये सब दवाब की सियासत का हिस्सा है और समिति को सियासी मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. काबिलेगौर है कि इन वित्तरहित शिक्षण संस्थानों का साल 2013 के बाद से ही सरकार के यहां अनुदान राशि बकाया है. दुर्गा पूजा तो यूँ ही बीत गया, आगे दीपावली एवम छठ पूजा हैसरकार 6 बरसों का बकाया अनुदान राशि विमुक्त करने के बदले इन शिक्षण संस्थानों की मान्यता रद्द कर डराने, धमकाने एव आतंकित करने का हथकंडा अपना रही है.
उन्होने कहा कि हक़ीक़त यह है कि सरकार चाहकर भी इस निर्णय को लागू नहीं कर सकती है क्योंकि बिहार की पूरी शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी तथा शैक्षणिक अराजकता का माहौल उत्पन्न हो जाएगा. सरकार के इस निर्णय के पीछे गहरे सियासी निहितार्थ हैं. बिहार में 04 शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में विधानपार्षद पद के चुनाव हेतु मतदाता बनने की प्रक्रिया चल रही है. इस चुनाव में सरकार के बहुत करीबी विधानपार्षद जन भी मैदान में हैं. सरकार समर्थित-संरक्षित निर्वाचित शिक्षक प्रतिनिधियों को क्षेत्र भ्रमण से ज़मीनी हकीकत का पता चल चुका है कि नियोजित और वित्तरहित शिक्षक उनके क्रियाकलापों से कुपित हैं. इसलिए शिक्षकों के तथाकथित रहनुमाओं का सरकार के साथ सांठगांठ कर यह एक सुनियोजित सुविचारित सियासी हथकंडा है. पहले इस तरह का अतार्किक आदेश निर्गत कराओ, फिर शिक्षा मंत्री एव मुख्यमंत्री से मिलकर आदेश वापस करबाओ तथा वित्तरहित शिक्षण संस्थानों को एहसास करबाओ की मेरी वजह से आपकी मान्यता बहाल हुई है. इस सियासी प्रपंच को सभी प्रबुद्ध शिक्षक बखूबी देख और समझ रहे हैं.
उन्होने कहा कि समिति द्वारा चुनाव आयोग को समर्पित शिक्षण संस्थानों में इन सभी शिक्षण संस्थानों का नाम दर्ज है जो आयोग के वेबसाइट पर भी है. चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के उपरांत समिति द्वारा इस तरह का कदम उठाना शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव को प्रभावित करने का एक कुटिल प्रयास है और निर्वाचन आयोग के स्वतंत्र एवम निष्पक्ष चुनाव कराने के प्रयास पर एक गहरा आघात भी है.
प्रो कुमार ने उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में माँग किया है कि
626 वित्तरहित शिक्षण संस्थानों की मान्यता रद्द करने संबंधी निर्णय को तत्काल वापस लिया जाए तथा सियासी मकसद से इन शिक्षण संस्थानों को परेशान नहीं किया जाए.
दीपावली एव छठ पूजा को देखते हुए अविलंब बकाया अनुदान राशि एकमुश्त विमुक्त किया जाए.
मैट्रिक एवम इंटर की उत्तरपुस्तिकाओ के मूल्यांकन का बकाया पारिश्रमिक राशि का अविलंब भुगतान सुनिश्चित किया जाए.
समिति को खास नेताओं को सियासी लाभ पहुंचाने के लिए मोहरा नहीं बनाया जाना चाहिए ताकि समिति की स्वतंत्रता, निष्पक्षता एव विश्वसनीयता कायम रहे.





