दुर्गासप्तशी के पाठ का महत्व बहुत ही अपरंपार है। यह हिन्दू धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ में एक है। भगवती के कृपा के इसमें सुन्दर बड़े बड़े गूढ़ साधन के रहस्य भरे है। दुर्गासप्तशी एक ऐसा प्रसाद है जो प्राणी इसे ग्रहण कर लेता है वह धन्य हो जाता है. इसके पाठ करने से देवी के विभिन्न शक्तियों को ग्रहण करने का साधन है। कर्म और भक्ति की अलग अलग मन्दाकिनी बहाने वाला ग्रन्थ है।
मार्कण्डेय पुराण में वर्णित देवी के अलग अलग रूप का वर्णन किया हुआ है. इस पाठ को शतचंडी, नवचंडी तथा चंडी पाठ भी कहा जाता है. व्यक्ति के ऊपर मानसिक परेशानी, पारिवारिक कष्ट, असाध्य रोग से परेशान है इस अवस्था में दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही लाभकारी होता है. इस पाठ को करने से परिवार में बनी हुई नकारत्मक शक्ति, उपरी बाधा से परेशान है दुर्गा सप्तसी के पाठ करने से सभी तरह परेशानी दूर होते है। देवी भगवत पुराण में वर्णन है ऐश्वर्यकामी रजा सुरथ अपने अखंड साम्राज्य को प्राप्त किया. इस पाठ को करते समय कई नियम है उस नियम को पालन करना पड़ता है.
(1) दुर्गासप्तशी के पाठ करने वाले व्यक्ति अपना मन एकाग्रचित होकर, प्रतिदिन नियम पालन करना पड़ता है जैसे पाठ करने वाले शुद्ध भोजन करे, लाल वस्त्र धारण करे. ललाट पर भस्म या लाल चन्दन लगाए. एक समय भोजन करे. संभवत हो सके फलहार करे.
(2) दुर्गासप्तशी के पाठ आरम्भ करने के पहले गणेश जी का पूजन करे अपने कुलदेवता का पूजन करे. अगर कलश स्थापना किए है उनका पूजन करे फिर माता को भोग लगाकर फिर पाठ को आरम्भ करे .
(3) दुर्गासप्तशी का पाठ करने वाले को ध्यान देना चाहिए किताब को रखते समय दुर्गासप्तशी को लाल कपड़ा में लपेटकर केले के पते पर रखे. पाठ आरम्भ करने के पहले पुस्तक का पूजन करे फिर पाठ को आरंभ करे.
(4) दुर्गासप्तशी में 13 अध्याय है, कुल 700 श्लोक है. इसके आलावा इसमें कुछ विशेष पाठ है जिसे करने पर व्यक्ति के जीवन में बनी हुई परेशानी दूर होती है और सभी कार्य पूर्ण होते है.
(5) दुर्गासप्तशी का पाठ आप सम्पूर्ण नहीं कर सकते तो चरित्र पाठ का करे। पुरे पाठ को चरित्र में दिया गया है. जिसे पाठ करने वाले को आसानी हो सके. इस पाठ में तीन चरित्र में बाटा गया है प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र, उतर चरित्र, अगर इसमें भी करने में सक्षम नहीं है अध्याय पाठ कर सकते है.
(6) दुर्गा सप्तशती के पाठ करने वाले बात को ध्यान में रखे पाठ का उच्चरण करते समय सावधानी रखे उच्चारण गलत नहीं होना चाहिए.
(7) दुर्गासप्तशती के पाठ आरंभ करने के पहले कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करे. पाठ करते समय अधुरा पाठ छोड़कर नहीं उठे। इससे पाठ का फल प्राप्त नहीं होता है.
(8) पाठ के समाप्त होने बाद सिद्धिकुंजिका का पाठ करे। फिर नवार्ण मंत्र का जाप करे। फिर पूजन का आरती करे और शंख बजाएं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करे.
(9) पाठ करने के दौरान आपके दौरान भूल चुक से कोई गलती हो जाय आरती करने के बाद क्षमा प्रार्थना का पाठ को पढ़े और दोनों हाथ जोड़कर माता से आग्रह करे
मेरे द्वारा किए गए अपराध को क्षमा करे.
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847