शारदीय नवरात्र की देवी मंदिरों में पूरी तैयारी

शारदीय नवरात्र की देवी मंदिरों में पूरी तैयारी

वाराणसी, 21 सितम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी)में शारदीय नवरात्र की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। पितृ पक्ष की समाप्ति के साथ ही देवी उपासना का महापर्व सोमवार से आरंभ हो रहा है। देवी मंदिरों में रंग-रोगन, साफ-सफाई और सुरक्षा की दृष्टि से बैरिकेडिंग का कार्य पूर्ण हो गया है। बाजारों में रविवार को पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जिससे नवरात्र की आहट स्पष्ट महसूस की जा रही है। इस बार शारदीय नवरात्र पूरे दस दिनों तक मनाया जाएगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित रविंद्र तिवारी के अनुसार, पंचांग की गणना के आधार पर इस बार कोई भी तिथि क्षय नहीं हो रही है, इसलिए पर्व की अवधि दस दिन की होगी। इस बार नवरात्र के दिनों में अंतर का मुख्य कारण हिंदू पंचांग पर आधारित है। पंचांग में तिथि की गणना सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर की जाती है। कभी-कभी एक ही दिन में दो तिथियां पड़ जाती हैं या कोई तिथि पूरे दिन नहीं रहती।

खास बात यह है कि इस बार नवरात्र की शुरुआत सोमवार को हो रही है, जिससे देवी का आगमन गज (हाथी) पर हो रहा है। देवी पुराण के अनुसार, “शशि सूर्य गजरूढ़ा शनिभौमै तुरंगमे” — यानी यदि नवरात्र रविवार या सोमवार को शुरू हो तो देवी गजराज पर सवार होकर पधारती हैं। यह योग देश और समाज के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि गज पर आगमन से वर्षा समुचित होती है, कृषि समृद्ध होती है और समाज में स्थिरता आती है।

काशी में मां शैलपुत्री का दरबार सजेगा पहले दिन

नवरात्र के पहले दिन देवी के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। वाराणसी के अलईपुर स्थित वरुणा नदी के तट पर स्थित मां शैलपुत्री मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटेगी। यहां मान्यता है कि केवल दर्शन मात्र से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। मां शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है। वे अध्यात्मिक ऊर्जा और साधना के आरंभ की प्रतीक मानी जाती हैं। मंदिर की एक विशेष बात यह है कि यह देश का एकमात्र ऐसा देवी मंदिर है, जहां शिवलिंग के ऊपर देवी मां विराजमान हैं। मंदिर का रंग गहरा लाल है, जो देवी का प्रिय रंग माना जाता है।

काशी में क्यों विराजती हैं मां शैलपुत्री?

लोक मान्यता के अनुसार, एक बार माता पार्वती महादेव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर काशी आ गई थीं और वरुणा नदी के तट पर तपस्या करने लगीं। भोलेनाथ उन्हें मनाने आए, लेकिन मां को काशी इतनी प्रिय लगी कि उन्होंने कैलाश वापस जाने से इनकार कर दिया। तब महादेव अकेले ही लौट गए और माता यहीं स्थायी रूप से विराजमान हो गईं।

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