महान स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू मुस्लिम एकता के अलमबरदार मौलाना मजहरूल हक की आज 152 वीं जयंती है. कौमी एकता के प्रतिक मजहरूल हक साहब का जन्म 22 दिसम्बर 1966 को पटना जिले के मनेर में हुआ था.

छपरा से उनका विशेष लगाव था. उन्होंने छपरा को अपनी कर्मभूमि बनाया था.

उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को लेकर कहा था “हम एक ही कश्ती के मुसाफिर है, डुबेगे तो साथ पार होंगे तो साथ”

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Chhapra: शहर के राजेंद्र कॉलेज के पास छोटी सी चाय दूकान से अपनी जीविका चलाने वाले शम्भू भाई फिल्मों में भी रोल कर चुके है. कुछ फिल्मों के प्रोजेक्ट्स से अब भी जुड़े हुए है.

चाय की दुकान से फिल्मों तक के उनके सफ़र पर उनसे बातचीत की छपरा टुडे डॉट कॉम के कंटेंट एडिटर कबीर ने.

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Chhapra (सोनपुर मेला से सुरभित दत्त की रिपोर्ट): मधुबनी जिले के जयनगर प्रखंड के उसराही की रहने वाली राजदा खातून ने हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के आर्ट एंड क्राफ्ट ग्राम में सीक की कलाकृति (सिक्की कला) की प्रदर्शनी लगायी है. राजदा खातून प्राचीन हस्तशिल्पों में से एक सीक की कला को संजोकर रखते हुए इस कला के गुर सिखाकर अपने जैसी अन्य महिलाओं को भी स्वाबलंबी बना रही है.

छपरा टुडे डॉट कॉम से बातचीत में राजदा बताती है कि उन्होंने सिक्की कला अपनी दादी से सीखी थी. अपनी हस्तशिल्प कला को उन्होंने अपने व्यवसाय का जरिया बना लिया. इसके माध्यम से उन्होंने अपने गाँव की लगभग 80 महिलाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध कराये. वही अपनी बेटियों को भी इस हस्तशिल्प को सिखलाया ताकि आने वाली पीढ़ियों में भी ऐसी कला जीवित रहे. साथ ही राज्य स्तर पर अवार्ड भी जीते है.

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उन्होंने बताया की मिथिलांचल में सिक्की घास, मुंज घास और खर से विभिन्न प्रकार के सामानों का निर्माण किया जाता है. इस सामानों को शादी-विवाह के अवसर पर बेच कर जीविकोपार्जन भी किया जाता है. पोखर, दियारा और तालाबों में उपजी घास को काट कर उससे इसका निर्माण किया जाता है. साथ ही इससे बनी हुई अनेक प्रकार की कलाकृतियों को बाजार में बेचा जाता है. इस कला को और लोग जाने इसके लिए मेला में प्रदर्शनी लगायी गयी है. 

उन्होंने बताया कि सीक के कलाकृतियों को बनाने में कई दिन लगते है पर जब उसे बेचने के लिए ग्राहकों के समक्ष रखा जाता है तो सही दाम नहीं मिल पाता. एक हस्तशिल्प को बनाने में कलाकार के द्वारा की गयी मेहनत का लोग सही कद्र नहीं करते और उचित कीमत देने में कतराते है. उन्होंने बताया कि सरकार की मदद से इस कला को बचाने के प्रयास हो रहे है पर सरकार को और भी सोचना चाहिए, ताकि जो लोग इस तरह के हस्तशिल्प को बनाते हुए प्राचीन शिल्प कला को जीवंत किये हुए है उन्हें सहायता मिल सके.

आज के दौर में जब प्लास्टिक के बर्तन और कलाकृतियों को लोग ज्यादा पसंद कर रहे है वैसे में इको फ्रेंडली इन सामानों को बनाने वालों को अब ज्यादा जूझना पर रहा है. बावजूद इसके इस प्राचीन हस्तशिल्प हो बचाने और नयी पीढ़ी तक पहुँचाने में अपनी भूमिका निभा रही है.   

Video में देखिये खास बातचीत

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Chhapra(Surabhit Dutt): शहर में चल रहे दो दिवसीय आर्ट गैलरी में प्रदर्शित एक पेंटिंग ने कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. इस तस्वीर की खासियत यह थी कि इसे बनाने वाले ने अपने ही चेहरे को कैनवास पर उकेड़ा है. तस्वीर में एक युवती दिख रही है जिसके चेहरे पर दाग (बीमारी के कारण) है. कुछ लोग उसे उलाहना दे रहे है, तो कुछ ऐसे भी लोग है जो उसे सबल देते हुए उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे है.

इस तस्वीर को कैनवास पर उतारने वाली युवा चित्रकार भाग्यश्री से हमने जानना चाहा कि इस तस्वीर में ऐसा क्या खास है तो उन्होंने जो बातें बताई वह समाज को आइना दिखाने वाली थी. भाग्यश्री ने बताया कि उनके चेहरे पर बीमारी के कारण दाग है जिससे कुछ लोग उनसे दूर रहते है. वही कुछ अलग अलग तरह की बातें करते है. वही कुछ लोग ऐसे भी है जो उसे प्रेरित करते है और आगे बढ़ने का सबल देते हुए ढाढ़स बढ़ाते है. इसी को ध्यान में रखते हुए उसने अपनी ही पेंटिंग के माध्यम से समाज को बताया है कि व्यक्ति अपने चेहरे से नही बल्कि अपने काम से जाना और पहचाना जाता है.

आर्ट गैलरी के दौरान पहुंचे आयुक्त सारण प्रमंडल नर्मदेश्वर लाल ने भी जब उसकी बातें सुनी तो उन्होंने भी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि अच्छे काम करो सब लोग जानेंगे और नकारात्मक लोग दूर होंगे.

वही ख्याति प्राप्त चित्रकार मेहंदी शॉ ने भी इस पेंटिंग को देखकर भाग्यश्री की सराहना की. उन्होंने कहा कि अपनी खूबियों को तो लोग खूब दिखाते है लेकिन जिस प्रकार भाग्यश्री ने अपनी पेंटिंग के माध्यम से अपनी पीड़ा व्यक्त की है वो काबिले तारीफ है.

भाग्यश्री ने छपरा टुडे डॉट कॉम से बात करते हुए बताया कि उनको उनके मित्र ने मोटीवेट किया जिससे उन्होंने तमाम लोगों की बातों को नकारते हुए अपने में ध्यान लगाया और पेंटिंग्स बनाई और आगे भी बनाती रहेंगी.

 

निसंदेह ही भाग्यश्री उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है जो अपने शारीरिक और समाज के नकारात्मक मानसिकता के कारण आगे नही बढ़ पाते.

छपरा टुडे डॉट कॉम की टीम भाग्यश्री के इस प्रयास की सराहना करते है. और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है.

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Chhapra (Aman Kumar): किसी ने ठीक ही कहा हैै- यदि आपके हौसले बुलन्द हो तो सामने कितना भी विशाल संकट का पहाड़ हो, उसे भी आप आसानी से लांघ सकते हैं. इसी हौसले और उम्मीद का दामन थामे युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हैं, छपरा के पटेल छात्रवास में रहने वाले दिव्यांग शिक्षक गुड्डू कुमार सिंह. छपरा के गुड्डू कुमार सिंह जीवन मे संघर्ष करते हुए छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं. एक पांव नहीं होने के बाद भी वो हर रोज़ बैशाखी के सहारे तीन मंजिला इमारत पर चढ़कर छात्रों को पढ़ाने का कार्य करते हैं.

घण्टो खड़े होकर पढ़ाते हैं

तीन तीन घण्टे तक एक पांव पर खड़े रहकर पढ़ाना अपने आप में बड़ी बात है. एक सामान्य व्यक्ति तीन मंजिल पर चढ़ने के दौरान थक कर हर जाता है लेकिन गुड्डू तो फिरभी दिव्यांग है. दिव्यांग होने के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और जीवन मे आगे बढ़ने के रास्ते ढूंढते रहे. उनके पढ़ाये हुए दर्जनों छात्र आज विभिन्न सरकारी विभागों में नौकरी कर रहे है.

गुड्डू का कहना है कि दिव्यांग होने की वजह से उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. इन सब के बावजूद अगर आप खुद पर विश्वास करते हैं तो कुछ भी हासिल हो सकता है.

ज़िले के मकेर प्रखण्ड के ठहरा गांव निवासी तिवारी सिंह के 23 वर्षीय पुत्र गुड्डू 2009 से छपरा में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की. लेकिन कुछ खास सफलता नहीं मिलने पर बिना निराश हुए छात्रों को पढ़ाना शुरू किया.

वो बताते है कि शुरू में बगल के छात्र विभिन्न विषयों के सवाल पूछने आते थे. जिसका वो आसानी से जवाब बता देते. धीरे-धीरे वक़्त बीता तो कोचिंग खोलने की सोंची. आज सैकड़ो बच्चे गुड्डू के पास पढ़ने आते हैं. इस दिव्यांग शिक्षक ने कई छात्रों को प्रेरित करने का कार्य किया है.

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बचपन में इस मेले को देखने की ललक रहती थी।जब जन्माष्टमी का त्योहार आता मेला सज जाया करता था। छपरा शहर के आरपीएफ बैरक में यह मेला हर साल लगता था। जिसके कारण ही इसका नाम आरपीएफ मेला पड़ा।

छपरा शहर में मनोरंजन के साधन कम थे। सोनपुर के विख्यात मेले के बाद गोदना सेमरिया, बनियापुर मेला के साथ आरपीएफ मेला भी लोगों के मनोरंजन का एक माध्यम हुआ करता था। इस मेले में हम सभी पापा और चाचा के साथ बड़े ही चाव से घूमने जाया करते थे। मेला सात दिनों तक चलता था। मेले में बिकने वाले समान उस दौर में अपनी ओर आकर्षित करते थे। स्कूल से लौटते वक्त मेले का एक चक्कर याद आता है। मेले में फायरिंग भला किसे याद नही होगी। 1 रुपये में 8 राउंड और फिर समय और महंगाई के कारण पैसे बढ़ते गए गोलियां कम। शाम में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने लोग दूर दूर से आते थे। अब समय बदला है।

आधुनिकता और मनोरंजन के तमाम साधन वाले इस दौर में ऐसे मेले अब खो गए है। यूं कहें कि इतिहास के पन्नों में सिमट गए है।

आज कुछ मित्रों ने बातचीत के क्रम में मेले का जिक्र आया। मेले को देखने की बचपन की ललक के कारण मैं हमारी टीम छपरा टुडे के साथ आज वहां पहुंचा पर इस बार मेला तो नही लगा है पर वहां मंदिर में श्रीकृष्ण की झांकी जो उस समय से प्रत्येक साल लगाई जाती है मंदिर में सजी थी।

आज भी छपरा में रहने वाले हर कोई को यह मेला जरूर याद होगा।

याद है तो कुछ बताइए…..

 

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जी हाँ, ऐसे तो सारण की धरती धार्मिक ऐतिहासिक, राजनैतिक सामाजिक दृष्टिकोण से गौरवशाली रही है। जहाँ स्वयं भगवान ने छह बार पधार कर इस धरती को पावन बनाते हुए ब्रह्मा जी की प्रयोग भूमि के रूप में इसे प्रतिष्ठित किया है। वही महर्षि दधीचि और राजा मौर्यध्वज़ ने इस धरती के दान परकाष्ठ को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है। बाबू कुवँर सिंह को सारण की धरती ने पूर्ण सहयोग किया। वही अमनौर की बहुरिया जी से यह धरती गौरवान्वित हुई है। यहां जय प्रकाश नारायण,  राजेन्द्र प्रसाद, गोरख नाथ, महेंद्र मिश्र, भिखारी ठाकुर की यह धरती  एक बार फिर तब प्रतिष्ठित हुई जब भारत रत्न पूर्व प्रधानमन्त्री अटल विहारी वाजपेयी जी की अस्थि को सरयू ने अपनी आंचल में समेटते हुए अपनी लहरों के माध्यम से वहाँ खड़े हजारों सारणवासियों को यह संदेश दिया की आप अपने आँसू को रोकें और हमारे इस बेटे की उक्ति को ध्यान रखें कि मैं फिर आऊंगा भारत को भूख, भय, भ्रष्टाचार से मुक्त कर अखंड भारत भारत बनाने। जब तक यह होता नहीं तब तक हमारा काम अधूरा है। इसे पूर्ण करना होगा।

सारण की धरती और सारणवासी के लिये यह गौरव का क्षण था कि न्यायशास्त्र के प्रणेता महर्षि गौतम की तपःस्थली और धरणी दास की कर्म स्थली में मांझी के श्री राम घाट एक बार पुनः राजनितिक के मर्यादा पुरुषोत्तम अटल जी की अस्थि से गौरवान्वित हुई और इतिहास में सारण का एक अध्याय जुड़ गया। साथ ही अटल जी का जो प्रेम सारण से था वह अंतिम समय तक (मरणो प्रान्त) कायम रहा। लेकिन यह उपलब्धि सारण की तभी बरकरार रहेगी जब सारण के राजनीतिज्ञ अटल जी के विचारों उनके कर्तितवो एवम् व्यक्तित्वों को आत्मसात करें अन्यथा यह गौरव उपलब्धि केवल इतिहास के पन्नों में ही रह जायगी।
(यह लेखक के निजी विचार है)
रामदयाल शर्मा
लेखक विद्वत परिषद के बिहार झारखंड क्षेत्र के संयोजक है.
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कुमार वीरेश्वर सिन्हा

आज हमारे महान शहनाई वादक स्व बिस्मिल्लाह खां की जन्म जयंती है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बल्कि हमारे भोजपुरी क्षेत्र के इस महान सपूत ने शहनाई वादन में अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किए। हालांकि सिनेमा फिल्मों में शहनाई बजाने से उन्होंने परहेज किया फिर भी एक फिल्म गूंज उठी शहनाई में बस उनकी शहनाई ही गूंजती रही।

बस दो ही सुर के इस कठिन साज पर खां साहब को कमाल की महारत थी। देश की आजादी के प्रथम महोत्सव पर 15 अगस्त 1947 को लालकिले से गूंजने वाली शहनाई खां साहब की ही थी जो वर्षो तक गूंजती रही।

आज दुर्भाग्य से शहनाई भी उन साजों में आ गयी है जो विलुप्त होती जा रही है। इस कठिन साज के साधकों का अभाव होता जा रहा है और आज के शोर भरे संगीत के युग में शहनाई की मधुर संगीत घुट सी रही है। वह जमाना गुजरा जमाना हो गया जब शादियों में नोबतखाने बनते थे और उस पर लुभावने और अवसर अनुकूल धुन बजते थे। यह कहना कदापि अनुचित नहीं होगा कि तब शादी या कोई शुभ अवसर बिना शहनाई वादन के नहीं होता था। मातमों में भी शहनाई के निर्गुण सुनने को
मिलता थे।

गीत संगीत का कोई मजहब नहीं होता और और बनारस में गंगा तट पर खां साहब की संगीत साधना और काशी विश्वनाथ की संगीत अर्चना के किस्से जग जाहिर हैं।

हमारे छपरा शहर में भी शहनाई की परंपरा थी और हाफिज खां साहब जो नई बाजार मुहल्ले के रहने वाले थे एक बहुत ही अजीम शहनाई वादक थे। बडे़ बुजुर्ग कहा करते थे कि एक बार छपरा के किसी तब की बड़ी हस्ती के यहाँ बनारस से कोई बारात आइ थी जिसमें वर पक्ष से बिस्मिल्ला खां साहब आए थे और कन्या पक्ष से हमारे छपरा के हफीज साहब और महफिल में दोनों शहनाई वादकों का भिड़ंत हुआ था। कौन जीता कौन हारा यह तो जानकारों ने ही समझा होगा, पर अंत में खां साहब को भाव विभोर हो यह कहते बहुतों ने सुना, ” मान गए, छपरा में भी कोई शहनाई बजाने वाला है “। खां साहब ने हफीज साहब को अपने साथ चलने को भी आमंत्रित किया था लेकिन हफीज साहब घर छोड़ कर जाने को राजी नहीं हुए।

मुझे खुशी है कि मैंने खां साहब को तो बस रेकोरडेड और गूंज उठी शहनाई में सुना है, पर हफीज साहब को रुबरू और बहुत करीब से। यहां तक कि मैंने सन 1958 में उनके साथ छपरा से चकिया तक का सफर रेल से और फिर चकिया से मधुबन (पूर्वी चम्पारण) का सफर बैलगाड़ी में तय किया था। बैलगाड़ी के डेढ़ घंटे के सफर में कभी तो हफीज साहब अपने कार्यक्रमों की कहानियों सुनाते तो कभी अपने मन से कोई धुन छेड़ देते। मुझे उनसे बहुत अपनापन महसूस होने लगा था जब मुझे
उन्होंने यह कहा कि बेटा हम तुम्हारे वालिद दोनों भाइयों के बारात में बजाए हैं और तुम्हारी बारात में भी बजाएंगे। पर दुःख है मेरी शादी के समय हफीज साहब दुनिया से कुच कर चुके थे।

यह जानकार कर काफी खुशी हुई कि उनके वंश के ही मोहम्मद पंजतन उनकी परंपरा को बखूबी निभा रहे है।

प्रो० कुमार वीरेश्वर सिन्हा

(लेखक राजेन्द्र कॉलेज, छपरा के अंग्रेजी विभाग के पूर्व प्राध्यापक है)

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भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद सभी स्तब्ध है. वाजपेयी जी से जुड़े कुछ संस्मरण को विद्वत परिषद् के बिहार झारखण्ड के प्रमुख रामदयाल शर्मा ने छपरा टुडे डॉट कॉम से साझा की है.

आप भी पढ़िए ये संस्मरण…….

हार नही मानूंगा, रार नही ठानूँगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ.

इस पंक्ति को लिखने वाला दृढ़ निश्चयी असीम व्यक्तित्व के धनी हर दिल अजीज अजातशत्रु महामानव भारत रत्न पण्डित अटल विहारी वाजपेयी आज काल से हार गए. ऐसे तो अटल जी का व्यक्तित्व केवल भारत ही नही समूचे विश्व के लिये के लिये प्रेरणास्पद है लेकिन हम छपरावासी को भी उनसे प्रेरणा मिलती रही है. अटल जी जनसङ्घ् काल में चीन के आक्रमण के बाद 1963-64 में सड़क मार्ग से छपरा आये थे. स्व शिव कुमार द्विवेदी जी के जीप से उन्हें पहलेजा घाट से छपरा लाया गया था और उन्ही के आवास पर अटल जी ने रात्रि विश्राम किया था. शिव कुमार द्विवेदी जी के आवास पर ही कार्यकर्ताओ की बैठक भी उन्होंने ली थी.

दूसरी बार जब सभापति विश्वकर्मा एकीकृत सारण जिला (छपरा, सिवान, गोपालगंज) के संगठन मंत्री थे उस समय आये थे और कलक्टर कम्पाउंड में सभा किये थे. आपातकाल के बाद चुनाव की घोषणा होने पर चुनावी सभा करने भी छपरा आये थे. सारण के लोगो ने अटल जी की कही बात भी प्रत्यक्ष अनुभवकिया की मेरे मरने के बाद जब अस्थियाँ नदियो में प्रवाहित होंगी. उस समय नदियो के लहरो पर कान लगाकर सुन लेना मेरी जल धाराओ में बहती अस्थियाँ भी भारत माता की जय बोलती रहेगी. हजारो लोगो की आवाज में अस्थियो की आवाज तो अलग से नही सुनी जा सकती थी. लेकिन मेरा मनना है कि अस्थियो की आवाज के साथ ही सब लोग भारत माता की जय बोल रहे थे. इसकी पुष्टि भी इस प्रकार होती है की जल में प्रवाहित अस्थियाँ जबतक आखो से ओझल नही हुई, तबतक भारत माता की जय की आवाज गूँजती रही.

फिर जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद भारतीय जनता पार्टी बनने पर चुनावी सभा को कलक्टर कम्पाउंड में सम्बोधित करते हुए उन्होने विदेश मंत्री का अपना अनुभव साझा करते हुए कहा था कैमेरे विदेश मंत्री बनने पर पत्रकारों ने मुझसे पूछा कि आप रूस के तरफ झुकेंगे या अमेरिका के तरफ तो मैंने साफ कहा हम किसी के तरफ नही झुकेंगे दोनों हमारी ओर झुकेंगे. ऐसा उनका आत्मविश्वास था.

 

दूसरी बात उन्होंने कहा कि इंदीरा जी की शासन में भी लोगो के राशन कार्ड भूल गए थे क्योकि इतनी लम्बी लाईन लगती थी की कार्ड भीड़ में खो जाते थे और मेरी सरकार भी. राशन कार्ड भूले लेकिन इसलिये भूले की कार्ड की कोई जरूरत नही रही तो लोग राशन कार्ड ही भूल गए. यह था उनका विपक्ष का विरोध करने का तरीका.

80 के दशक में परसा विधानसभा के उप चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी स्व ब्रजनन्दन सिंह के लिए चुनाव प्रचार करने आये थे. भीड़ देखकर उन्होंने कहा आपकी उपस्थिति यह बता रही है कि भाजपा अब घर-घर में आ गई है. इस भीड़ को वोट बदलने की आवश्यकता है.

गम्भीर से गम्भीर बातों को भी सहज ढंग से रख देना. कुशल राजनीतिज्ञ कवि जिसने खुले मंच पर रग रग हिंदू मेरा परिचय देता रहा हो वह आज हमारे बीच नही रहे इस रिक्ति को भरना असम्भव है.

स्वर्ग में उन्हें स्थान तो मिलेगा ही परन्तु इस बिछोह को सहने की शक्ति ईश्वर हम सबको दे.

(यह लेखक के निजी विचार है) 

रामदयाल शर्मा

प्रमुख, विद्वत परिषद् बिहार झारखण्ड

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खास मुलाकात, www.chhapratoday.com की नई वेब सीरिज है जिसमे हम आपको उन सख्सियतों से मुलाकात कराएँगे जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दे रहे है. हम इस सीरिज में आपको सभी क्षेत्रों से जुड़े सख्सियतों से मुलाकात कराएँगे.

खास मुलाकात: शिक्षाविद्द रामदयाल शर्मा के साथ 

 

खास मुलाकात: रोट्रेक्ट क्लब सारण सिटी के पूर्व अध्यक्ष निकुंज कुमार से 

खास मुलाकात: #AamAadmiParty के जिलाध्यक्ष उमेश्वर सिंह मुन्नी जी के साथ 

खास मुलाकात: #Rotary Saran के संस्थापक अध्यक्ष श्याम बिहारी अग्रवाल के साथ

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Chhapra: ‘खास मुलाकात’, छपरा टुडे डॉट कॉम की नई सीरिज जिसमे हम आपको उन सख्सियतों से मुलाकात कराएँगे जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दे रहे है. हम इस सीरिज में आपको सभी क्षेत्रों से जुड़े सख्सियतों से मुलाकात कराएँगे.

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