Chhapra: अमरनाथ यात्रा के लिए यात्रियों का जत्था छपरा से रवाना हुआ। अमरनाथ एक्सप्रेस ट्रेन से यात्रियों का पहला जत्था रवाना हुआ।

छपरा जंक्शन पर अमरनाथ एक्सप्रेस ट्रेन के पहुंचते ही भक्तों के जयघोष से स्टेशन परिसर शिवमय हो गया।

इस अवसर पर छपरा जंक्शन पर भंडारा का आयोजन भी किया गया था।

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छपरा के विधायक डॉ सीएन गुप्ता समेत कई समाजसेवियों ने जंक्शन पहुँच जत्था को रवाना किया।

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Sawan Kanwar Yatra 2025: हर साल सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और आस्था का प्रतीक होता है। यही वह समय होता है जब देशभर से लाखों शिव भक्त ‘कांवड़ यात्रा’ के लिए निकलते हैं। ‘हर हर महादेव’ और ‘बम बम भोले’ के जयकारों के बीच शिवभक्त नंगे पांव चलते हैं और गंगाजल लेकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा की शुरुआत इस बार 11 जुलाई से होगी और 9 अगस्त को समाप्त होगी।

क्या है कांवड़ यात्रा  और क्यों की जाती है?

कांवड़ यात्रा सावन माह में की जाने वाली एक धार्मिक पदयात्रा है, जिसमें भक्त गंगा नदी से पवित्र जल भरकर उसे अपने गांव या किसी शिव मंदिर तक लेकर जाते हैं और वहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा का मकसद है, भगवान शिव के प्रति पूर्ण भक्ति और समर्पण। जो भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं, उन्हें ‘कांवड़िए’ कहा जाता है। यह लोग अपने कंधों पर लकड़ी या बांस की बनी कांवड़ लेकर चलते हैं जिसमें गंगाजल भरा होता है।

कब से कब तक चलेगी कांवड़ यात्रा 2025?

शुरुआत: 11 जुलाई 2025 (शुक्रवार)
समाप्ति: 9 अगस्त 2025 (शनिवार)

कांवड़ यात्रा के दौरान इन बातों का जरूर रखें ध्यान

नशे से पूरी तरह दूर रहें: शराब, सिगरेट, तंबाकू जैसी किसी भी नशीली चीज़ का सेवन वर्जित है। गंगाजल को जमीन पर न रखें: इसे अपवित्र माना जाता है। गंगाजल को हमेशा कांवड़ में लटकाकर ही रखें। शौच के बाद स्नान जरूरी: पवित्रता बनाए रखने के लिए ये नियम बेहद जरूरी है। चमड़े की चीजों से दूर रहें: यात्रा के दौरान बेल्ट, पर्स, जूते जैसी चमड़े की वस्तुओं का उपयोग वर्जित है। पूरी यात्रा नंगे पांव चलना होता है: ये भगवान शिव के प्रति भक्ति और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व

कांवड़ यात्रा केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भगवान शिव से आत्मिक जुड़ाव का माध्यम है। कहते हैं कि सावन में शिव को जल चढ़ाने से उनकी विशेष कृपा मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं। गंगाजल से किया गया जलाभिषेक भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय होता है। इस यात्रा के दौरान शिव भक्त आपसी भाईचारे, सेवा और भक्ति के भाव से भरे होते हैं। कांवड़ यात्रा वह समय होता है जब भक्त पूरी तरह शिव में लीन हो जाते हैं। अगर आप भी इस साल कांवड़ यात्रा का हिस्सा बनने जा रहे हैं, तो ऊपर दिए गए नियमों का जरूर करें और पूरे मन से “हर हर महादेव” कहते हुए इस पवित्र यात्रा का आनंद लें।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Jammu,03 जुलाई (हि.स.)। कड़ी सुरक्षा के बीच 5,200 से अधिक तीर्थयात्रियों का दूसरा जत्था गुरुवार को दक्षिण कश्मीर में अमरनाथ गुफा मंदिर के लिए जम्मू स्थित भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हुआ। 3,880 मीटर ऊंचे मंदिर की 38 दिवसीय तीर्थयात्रा गुरुवार को दो रास्तों से अनंतनाग जिले में पारंपरिक 48 किलोमीटर लंबा नुनवान-पहलगाम मार्ग और गांदरबल जिले में 14 किलोमीटर छोटा लेकिन अधिक खड़ी चढ़ाई वाला बालटाल मार्ग से शुरू हुई। यात्रा 9 अगस्त को समाप्त होगी।

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में 168 वाहनों के काफिले में भगवती नगर आधार शिविर से रवाना

अधिकारियों ने बताया कि तीर्थयात्री सुरक्षा पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में 168 वाहनों के काफिले में भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हुए। अधिकारियों ने बताया कि इसके साथ ही जम्मू आधार शिविर से मंदिर के लिए रवाना हुए तीर्थयात्रियों की संख्या 11,138 तक पहुंच गई है। तीर्थयात्रियों के दूसरे जत्थे में 4,074 पुरुष, 786 महिलाएं और 19 बच्चे शामिल हैं।

तीर्थयात्रियों के एक समूह ने कहा कि वह 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हमले से विचलित नहीं हुए हैं जिसमें 26 लोग मारे गए थे। रायपुर निवासी हरीश कुमार ने कहा कि हम आतंकवादियों या पाकिस्तान से नहीं डरते जिन्होंने निर्दाेष और निहत्थे पर्यटकों पर हमले करवाए हैं। यह कायरतापूर्ण कृत्य है। पहलगाम जैसी आतंकी घटनाओं के जरिए डर पैदा करके वह हमें बाबा बर्फानी के दर्शन करने से नहीं रोक सकते। उनकी तरह कानपुर से 20 सदस्यों के समूह के साथ अमरनाथ के लिए रवाना हुए मुख्तार सिंह ने कहा कि उन्हें जरा भी डर नहीं है। उन्होंने कहा कि यात्रा में शामिल होने वाले तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या आतंकवादियों और पाकिस्तान को करारा जवाब देगी कि हम उनसे नहीं डरते।

वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए भगवती नगर बेस कैंप में और उसके आसपास सुरक्षा व्यवस्था सक्रिय कर दी गई है। जम्मू में 34 आवास केंद्र स्थापित किए गए हैं और तीर्थयात्रियों को रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) टैग जारी किए जा रहे हैं। यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के मौके पर ही पंजीकरण के लिए 12 काउंटर बनाए गए हैं। अब तक 3.5 लाख से अधिक लोगों ने तीर्थयात्रा के लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराया है।

 

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श्रीनगर, 3 जुलाई (हि.स.)। वार्षिक अमरनाथ यात्रा गुरुवार को कश्मीर घाटी से शुरू हो गई जिसमें तीर्थयात्रियों का पहला जत्था बालटाल और नुनवान आधार शिविरों से दक्षिण कश्मीर हिमालय में 3880 मीटर ऊंचे गुफा मंदिर की ओर रवाना हुआ। श्री अमरनाथ जी की गुफा में प्राकृतिक रूप से निर्मित बर्फ का शिवलिंग है।

अधिकारियों ने बताया कि यात्रा सुबह-सुबह दो रास्तों से शुरू हुई पारंपरिक 48 किलोमीटर लंबा नुनवान-पहलगाम मार्ग और 14 किलोमीटर लंबा बालटाल मार्ग। अधिकारियों ने कहा कि पुरुष, महिला और साधुओं सहित तीर्थयात्रियों के जत्थे सुबह होते ही दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में पहलगाम के नुनवान आधार शिविर और मध्य कश्मीर के गांदरबल के सोनमर्ग इलाके में बालटाल आधार शिविर से रवाना हुए।

उन्होंने कहा कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा संबंधित आधार शिविरों से जत्थों को रवाना किए जाने के दौरान पूरा वातावरण ‘बम बम बोले’ के नारों से गूंज उठा।

बुधवार 2 जुलाई, 2025 को 5,892 यात्रियों के पहले जत्थे को जम्मू के भगवती नगर स्थित यात्रा बेस कैंप से लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। दोपहर में तीर्थयात्री कश्मीर घाटी पहुंचे और प्रशासन और स्थानीय लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया था। तीर्थयात्री श्री अमरनाथ जी के पवित्र गुफा मंदिर पहुंचने पर प्राकृतिक रूप से बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा-अर्चना करेंगे।

यात्रा के सुचारू संचालन के लिए कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और अन्य अर्धसैनिक बलों के हजारों सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। हवाई निगरानी भी की जाएगी। 38 दिवसीय तीर्थयात्रा 9 अगस्त को समाप्त होगी।

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Chhapra: सारण जिले में स्थित नैनी मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है और जन-जन की आस्था का केंद्र बन गया है। विशेष अवसरों जैसे निर्जला एकादशी और जन्माष्टमी के दौरान यहाँ भारी भीड़ उमड़ती ही है, लेकिन अब यहां बारहमासी श्रद्धालुओं का जो सैलाब उमड़ रहा है, वह अपने आप में विशेष है।

मंदिर प्रशासन के अनुसार, सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर परिसर में जुटने लगती है। लोग परिवार सहित आते हैं, पूजन-अर्चन करते हैं और प्रसाद चढ़ाकर सुख-शांति की कामना करते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर वर्ग के लोगों में आस्था की वही तीव्रता देखने को मिल रही है।

स्थानीय और बाहरी श्रद्धालुओं का संगम

नैनी मंदिर केवल छपरा या सारण जिले तक ही सीमित नहीं है। यहां राज्य के लगभग सभी जिलों से लोग दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की महिमा और वातावरण ऐसा है कि यह केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक समागम का भी प्रमुख स्थल बन गया है।

मंदिर निर्माण में एक भी लोहे की वस्तु का नहीं हुआ इस्तेमाल

नैनी मंदिर श्रद्धा और आस्था का केंद्र तो बना ही है, साथ ही यह अपनी अनोखी निर्माण शैली के कारण भी विशेष चर्चा में रहता है। गौरतलब है कि इस मंदिर का निर्माण बिना ईंट, सरिया, सीमेंट और बालू के किया गया है, जो इसे आधुनिकता के इस दौर में भी विशिष्ट बनाता है। द्वारकाधीश मंदिर के पत्थरों को जोड़ने के लिए विशेष प्रकार के केमिकल का उपयोग किया गया है, और पत्थरों को जोड़कर स्थिर बनाए रखने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक (Interlocking Technique) का प्रयोग किया गया है। बता दें कि पूरे मंदिर में एक भी लोहे की वस्तु का उपयोग नहीं किया गया है। दरवाजों और चौखटों के निर्माण में लकड़ी के कील और गोंद का इस्तेमाल किया गया है। वहीं, घुमावदार स्थानों पर दो पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे और पीतल की क्लिप्स का प्रयोग किया गया है।

गुजरात के विशिष्ट पत्थर से निर्मित है भव्य मंदिर

इस भव्य मंदिर के  शिलान्यास से लेकर प्राण प्रतिष्ठा तक कुल 14 वर्षों का समय लगा। मंदिर का शिलान्यास 11 मई 2005 को किया गया था, और इसका विधिवत उद्घाटन वर्ष 2019 में संपन्न हुआ। इस मंदिर को विशेष रूप से गुजरात में पाए जाने वाले एक विशिष्ट पत्थर  से निर्मित किया गया है, जो अपनी मजबूती और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। निर्माण कार्य की जिम्मेदारी गुजरात के संवेदक मफत भाई पटेल (एम. बी. पटेल) के नेतृत्व में कार्यरत कुशल कारीगरों द्वारा निभाई गई, जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट शिल्पकला से इस मंदिर को एक कलात्मक स्वरूप प्रदान किया।

कैसे पहुचें नैनी मंदिर

नैनी मंदिर छपरा-जलालपुर मुख्य मार्ग पर छपरा शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। जहां पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से व्यवसायिक वाहन हर समय उपलब्ध रहते हैं।

 

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भारतीय श्रद्धालु 6 वर्षों बाद नेपाल होते हुए जा सकेंगे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर 

काठमांडू: भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार के साथ ही अब भारतीय नागरिकों को नेपाल के रास्ते तिब्बत के कैलाश मानसरोवर यात्रा की अनुमति दी गई है। चीन की सरकार ने भारतीय पर्यटकों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा की अनुमति दे दी है। इसके लिए नेपाली पर्यटन व्यवसायियों ने अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर ली है।

सन 2020 में कोरोना महामारी और उसके बाद भारत और चीन की सेना के बीच गलवान में हुई झड़प के बाद चीन ने भारतीय नागरिकों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा अनुमति को रद्द कर दिया था। दोनों देशों के बीच पिछले कुछ महीनो से कूटनीतिक और राजनीतिक संवाद होने के बाद स्थिति सामान्य हुई है। इसके बाद चीन की सरकार ने भारतीय पर्यटकों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा की अनुमति दे दी है।

तिब्बत के ल्हासा में रहे नेपाली काउंसलर विभाग के मुताबिक मानसरोवर यात्रा की अनुमति के लिए अब पुलिस सर्विस सेंटर से पत्र आना बाकी है।बताया गया है कि अगले सोमवार से भारतीय नागरिकों के लिए कैलाश यात्रा की शुरुआत हो सकती है।

नेपाल में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले पर्यटन व्यवसायियों की संस्था एसोसिएशन आफ कैलाश टूर ऑपरेटर के अध्यक्ष विनोद नहर्की ने बताया कि नेपाल से इस वर्ष 20000 भारतीय नागरिकों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए कोटा तय किया गया है

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वाराणसी,06 जून (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में निर्जला एकादशी पर शुक्रवार को हजारों श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा नदी में पुण्य की डुबकी लगाई और गंगाघाटों पर दानपुण्य किया। पर्व पर गंगा स्नान के लिए के लिए भोर से ही श्रद्धालु गंगाघाटों पर पहुंचने लगे। गंगा स्नान के लिए प्राचीन दशाश्वमेध घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, शीतलाघाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट सामनेघाट भारी भीड़ जुटी रही। स्नानार्थियों के चलते गौदोलिया से दशाश्वमेधघाट तक मेले जैसा नजारा रहा।

निर्जला एकादशी व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है

जिला प्रशासन ने गंगा तट से लेकर बाबा विश्वनाथ दरबार तक सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए थे। दशाश्वमेधघाट के तीर्थ पुरोहित राजू तिवारी ने बताया कि सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व है। यह दिन चराचर जगत के स्वामी भगवान विष्णु को समर्पित है । इसे साल की सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों को पुण्य लाभ मिलता है और पूरे साल के एकादशी व्रत का फल प्राप्त होता है।

एकादशी के दिन चावल नहीं खाते और न ही चावल दान करते है

पुरोहित ने बताया कि एकादशी के दिन सनातनी चावल नहीं खाते और न ही चावल दान करते है। इस दिन फल फूल आम, केला इत्यादि दान करते हैं। गगरी भरकर जल ब्राह्मण को दान करते हैं। ज्येष्ठ माह की एकादशी ‘निर्जला एकादशी ‘ को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों का शमन करने की शक्ति होती है। इस दिन मन, कर्म, वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही तामसिक आहार, परनिंदा एवं दूसरों के अपमान से भी दूर रहना चाहिए। भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्रती को करोड़ों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है।

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—शाम को दशाश्वमेधघाट पर गंगा पूजन के साथ मां गंगा की होगी भव्य आरती

वाराणसी,05 जून (हि.स.)। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि गंगा दशहरा पर गुरूवार को काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी में लाखों श्रद्धालुओं ने उत्तरवाहिनी पुण्य सलिला गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई। और दान पुण्य के बाद देवगुरू बृहस्पति और श्री काशी विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाई। भोर लगभग चार बजे से दिन चढ़ने तक श्रद्धालु गंगा में स्नान करने के लिए घाटों पर पहुंचते रहे।

इस दौरान प्राचीन दशाश्वमेध घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, शीतलाघाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट, अस्सी, भैसासुर, खिड़किया घाट पर स्नानार्थियों की भारी भीड़ जुटी रही। इसमें शहरियों की तुलना में ग्रामीणों की भीड़ ज्यादा रही। स्नानार्थियों के चलते गौदोलिया से दशाश्वमेधघाट तक मेले जैसा नजारा रहा। प्रशासन ने गंगा तट से लेकर बाबा विश्वनाथ दरबार तक सुरक्षा के कड़े इन्तज़ाम किए है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए गंगा की ओर जाने वाले मार्गो पर यातायात भी प्रतिबंधित किया गया है।

पुराणों के अनुसार मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि में वृष लग्न में हुआ था। आज ही के दिन हजारों साल पहले स्वर्ग की नदी गंगा धरती पर आईं थी और पापों का नाश कर प्राणियों का उद्धार करने के उद्देश्य से धरती पर ही रह गईं। तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। गौरतलब हो कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान से दस प्रकार के पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

—मां गंगा की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार एवं षोडशोपचार विधी से पूजन, दुग्धाभिषेक

गंगा दशहरा पर प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति की ओर से किशोरी रमण दूबे ‘बाबू महाराज’ की अगुवाई में मां गंगा के प्रतिमा का भव्य श्रृंगार कर विधि विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच षोडशोपचार पूजन किया गया। बाबू महाराज के अनुसार गंगा दशहरा पर शाम को मां गंगा की भव्य महाआरती की जायेगी। गंगा सेवा निधि की ओर से सायंकाल दशाश्वमेधघाट पर भव्य गंगा दशहरा महोत्सव आयोजित किया गया है। मां भगवती के धरती पर अवतरण दिवस के पावन अवसर पर मां गंगा की वैदिक रीति रिवाज से पूजन,भव्य महाआरती के बाद घाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होगा। निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्र ने ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम की शुरूआत सायंकाल 06 बजे से होगी।

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Chhapra: विवाहित महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए वट सावित्री व्रत किया। सुबह से ही महिलाओं के द्वारा वट वृक्ष के पास पहुंच पूजन किया गया। शहर से लेकर गांव तक हर जगह महिलाओं के द्वारा व्रत किया गया और वट वृक्ष के पास जाकर पूजन किया गया।

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है।

इस दिन महिलाएँ वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं, जो त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – का प्रतीक माना जाता है।

व्रत का महत्व:
यह व्रत सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को अपने तप, श्रद्धा और बुद्धिमानी से वापस पाया था। इसलिए इसे सतीत्व, नारी शक्ति और पतिव्रता धर्म का प्रतीक माना जाता है।

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सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए वट सावित्री व्रत करतीं हैं।  वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को बड़ी मनाई जाती है। इस दीं सुहागन महिलायें वट यानी बड़ (बनयान) के पेड़ की पूजा करतीं हैं।

क्या है मान्यता?

वट सावित्री व्रत को लेकर मान्यता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान को इसी पेड़ के नीचे यमराज से वापस पाया था।

बड़ का पेड़ ना हो तो व्रत और पूजा कैसे करें?

वट सावित्री व्रत इस साल 26 मई 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। बड़े शहरों में वटवृक्ष (Banyan Tree) उपलब्ध नहीं हो पाता है। ऐसे में व्रत करने वाली महिलाओं के मन में सवाल उठता है कि बड़ का पेड़ ना हो तो व्रत और पूजन कैसे करें? ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा ने बताया कि वट वृक्ष ना हो तो वटवृक्ष की मिट्टी लाकर घर पर पूजा करें। इसे ही पूजा का स्थान मानकर पूरी श्रद्धा और विधि विधान के साथ व्रत करें। साथ ही गमले में वटवृक्ष की टहनी लगाकर पूजन किया जा सकता है। पेड़ का प्रतीक मानकर धागा बांधें और परिक्रमा करें, व्रत कथा सुनें। यदि ना वटवृक्ष, ना मिट्टी और ना ही टहनी उपलब्ध हो, तो आप तुलसी के पौधे के पास बैठकर भी पूजा कर सकती हैं।

व्रत में श्रद्धा और आस्था सबसे जरूरी

धार्मिक शास्त्रों  के अनुसार पूजा में स्थान या वस्तुओं से ज्यादा महत्व भावना और निष्ठा का होता है। सावित्री ने सिर्फ अपने संकल्प और भक्ति के बल पर यमराज जैसे देवता को भी झुका दिया था। इसीलिए अगर आप मन से सच्चे और श्रद्धा से पूर्ण होकर व्रत करती हैं, तो वटवृक्ष का न होना व्रत के फल में कमी नहीं लाता।

 

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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Chhapra: बंगाली बाबा घाट पर गंगा महाआरती 11 जून को होगी जिसमें सारणवासियों को बंगाली बाबा घाट पर काशी के दशाश्वमेध घाट का दर्शन होगा। आगामी 11 जून को चिरांद के गंगा तट स्थित बंगाला बाबा घाट पर इसका आयोजन किया जायेगा।

काशी के 11 बटुक करेंगे गंगा आरती
महाआरती में काशी के 11 बटुक गंगा आरती करेंगे। वही वाराणसी के पंडित पुरोहित शंख ध्वनि तथा भगवान शंकर के डमरू आकर्षण के केंद्र होगें। महाआरती के आयोजन से बंगाली बाबा घाट का दृश्य काशी जैसा दिखेगा ।

गंगा महाआरती के भव्य आयोजन को लेकर निर्णय लिया
चिरांद विकास परिषद तथा गंगा समग्र की बैठक चिरांद के तिवारी घाट स्थित श्रीराम तिवारी के आवासीय परिसर में परिषद के संरक्षक श्री श्री 1008कृष्ण गिरी उपाख्य नागा बाबा के अध्यक्षता में हुई। जिसमें गंगा महाआरती के भव्य आयोजन को लेकर निर्णय लिया गया कि देश और समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले लोगों को चिरांद रत्न आदि से सम्मानित किया जाएगा जिसमें चिकित्सा सेवा पर्यावरण शिक्षा नारी सशक्तिकरण पर कार्य करने वाले लोग होंगे।

वही मातागंगा को अविरल, निर्मल पर कार्य करने वाले लोगों को भागीरथ पुरस्कार से भी नवाजा जाएगा, कार्यक्रम में वाराणसी, चित्रकूट, इलाहाबाद, अयोध्या, हरिद्वार आदि जगहों के संत महात्मा महाआरती का हिस्सा बनेंगे।

बंगाली बाबा घाट पर कलाकारों का भी होगा जमावड़ा
बंगाली बाबा घाट पर कलाकारों का भी होगा जमावड़ा जिसमें नृत्य संगीत का भी आयोजन होगा। समारोह के सफल आयोजन को ले कई उप समितियों का गठन किया गया।

उक्त अवसर पर हरिद्वार सिंह, रघुनाथ सिंह,राशेश्वर सिंह, शुशील पाण्डेय, हरिमोहन कुमार, सुमन साह राजकिशोर प्रसाद, मोहन पासवान, बीपीन बिहारी रमन,अमृत सागर, रूपेश कुमार पांडेय, अर्जुन कुमार, भरथ पासवान, जयदिनेश पाण्डेय, मुकेश कुमार सिंह, राजकिशोर चौरसिया,चंदन कुमार सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित हुए।

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रुद्रप्रयाग, 7 मई (हि.स.)। श्री केदारनाथ धाम में इस वर्ष की यात्रा को और भी भव्य एवं श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से जिला प्रशासन ने एक अभिनव पहल की है। अब श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शनों के साथ-साथ उनकी दिव्यता और महिमा का साक्षात अनुभव मंदिर प्रांगण और आस्था पथ पर भी कर सकेंगे।

देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु बाबा केदारनाथ के दर्शन हेतु केदारपुरी पहुंचते हैं। अक्सर मंदिर तक पहुंचने से पहले लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है। ऐसे में श्रद्धालुओं की आस्था और धैर्य को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन द्वारा एक विशेष योजना के तहत आस्था पथ और मंदिर प्रांगण में एलसीडी स्क्रीन लगाए गए हैं, जिन पर बाबा केदारनाथ के लाइव दर्शन दिखाए जा रहे हैं।

जिला पर्यटन अधिकारी राहुल चौबे ने बताया कि आस्था पथ पर 50 इंच के 10 एलसीडी टीवी लगाए गए हैं। वहीं मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं के लिए विशेष रूप से एक विशाल 10×20 फीट का एलसीडी टीवी लगाया गया है, जिस पर बाबा केदार के लाइव दर्शन के साथ-साथ भगवान शिव से जुड़ी कथाएं, उनकी महिमा और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी प्रसारित की जाएंगी।

यह पहल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक रूप से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है।

इतना ही नहीं, इन टीवी स्क्रीनों के माध्यम से स्वास्थ्य एवं यात्रा मार्गदर्शिका से जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाएं भी समय-समय पर प्रसारित की जाएंगी ताकि यात्रा के दौरान श्रद्धालु सुरक्षित और जागरूक रहें।

इसके साथ ही सोनप्रयाग में भी एक बड़ी स्क्रीन लगाने की तैयारी अंतिम चरण में है, जिससे यात्रा की शुरुआत करने वाले श्रद्धालुओं को भी बाबा केदार के दर्शन और आवश्यक जानकारी मिल सके।

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