Sawan 2025: सावन यानी श्रद्धा, तपस्या और शिवभक्ति का महीना। हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन या श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दौरान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए लाखों भक्त व्रत रखते हैं, रुद्राभिषेक करते हैं और शिवलिंग पर जल व बेलपत्र चढ़ाते हैं। 2025 में भी सावन का महीना भक्तों के लिए कई शुभ संयोग लेकर आ रहा है।

कब से शुरू हो रहा है सावन 2025?

इस साल सावन का आरंभ 11 जुलाई 2025, शुक्रवार से होगा, जब आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि लगेगी। यह पवित्र महीना 9 अगस्त 2025 तक चलेगा। यानी पूरे 30 दिन तक शिवभक्ति का पर्व मनाया जाएगा।

अलग-अलग राज्यों में सावन शुरू होने की तिथि

11 जुलाई से: उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश

16 जुलाई से: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड (स्थानीय पंचांग अनुसार)

25 जुलाई से: महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु (दक्षिण भारत)

सावन सोमवार 2025 की तिथियां

इस महीने शिव भक्तों के लिए सबसे खास दिन होते हैं सावन के सोमवार। इस बार सावन में कुल 4 सोमवार पड़ेंगे। 

  • पहला सावन सोमवार: 14 जुलाई 2025
  • दूसरा सावन सोमवार: 21 जुलाई 2025
  • तीसरा सावन सोमवार: 28 जुलाई 2025
  • चौथा सावन सोमवार: 4 अगस्त 2025

कुछ भक्त इस महीने सोलह सोमवार व्रत भी करते हैं, जो जीवन में सुख-शांति और मनोकामना पूर्ति के लिए बेहद फलदायी माने जाते हैं।

सावन में पूजा-पाठ कैसे करें?

सावन के महीने में शिवलिंग पर पंचामृत से अभिषेक करना सबसे शुभ माना जाता है। पंचामृत में दूध, दही, शहद, घी, शक्कर और गंगाजल का मिश्रण होता है। इसके बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, आक, धतूरा, भांग, सफेद फूल, अक्षत (साबुत चावल) और इत्र चढ़ाएं।

  • दिन की शुरुआत स्नान और घर की सफाई से करें।
    शिवलिंग को जल अर्पित करें (जलग्रहण का शुभ समय: सुबह 5:33 से दोपहर 12 बजे तक)।
    पूरे दिन ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करते रहें।
    शिव मंदिर जाकर दर्शन करें और व्रत रखें।

क्यों खास है सावन?

पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था, तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में समाहित कर लिया था। उस दिन से लेकर पूरे सावन मास तक उनका पूजन कर उन्हें शीतल करने की परंपरा शुरू हुई। यही वजह है कि यह महीना शिवभक्ति के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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आज से भगवान शिव का पवित्र महीना सावन शुरू हो गया है। सावन के आते ही शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है। हर मंदिर में भगवान शिव के लिए खास शृंगार और भोग की व्यवस्था की गई है। साथ ही, श्रद्धालुओं की सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।

इस बार वर्ष सावन का पावन महीना 11 जुलाई, शुक्रवार से आरंभ हो चुका है, और इसका समापन 09 अगस्त 2025, शनिवार को होगा। इस बार सावन की शुरुआत के साथ ही कई शुभ योगों का संयोग बन रहा है, जो इसे और भी विशेष बना देते हैं।

सावन सोमवार और शिव अभिषेक का महत्व

सावन महीने के सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए बेहद खास माने जाते हैं। इन दिनों शिवजी का अभिषेक करना बहुत ही शुभ और फलदायी होता है। इस समय रुद्राष्टक, शिव पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना भी पुण्यदायी माना जाता है।

सावन का पहला सोमवार इस बार 14 जुलाई 2025 को पड़ेगा। इस दिन धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र रहेंगे।

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भागलपुर, 10 जुलाई (हि.स.)। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरुवार को सुल्तानगंज में श्रद्धा और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। भागलपुर, बांका, मुंगेर, नवगछिया, पूर्णिया, कटिहार के साथ-साथ झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत कई राज्यों से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचे।

श्रद्धालुओं ने यहां गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और जल भरकर कंधे पर कांवर लेकर 105 किलोमीटर लंबी पदयात्रा पर निकल पड़े। बाबा बैद्यनाथ धाम जल चढ़ाने के लिए पूरा सुल्तानगंज इलाका केसरिया रंग में रंग गया। चारों ओर हर हर महादेव और बोल बम के जयकारे गुंजायमान हो उठा।

श्रद्धालुओं के उत्साह और उमंग को देखते हुए भागलपुर जिला प्रशासन के द्वारा सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतज़ाम किए गए हैं। ड्रोन से निगरानी, मेडिकल कैंप, जलपान की व्यवस्था और हर चौराहे पर तैनात सुरक्षाकर्मी व्यवस्था को संभाल रहे हैं। नमामि गंगे घाट पर श्रद्धालुओं की आस्था देखते ही बन रही थी। लोग घंटों इंतजार के बाद भी पूरे जोश और भक्ति के साथ गंगाजल भरने में लगे रहे।

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Jammu, 8 जुलाई (हि.स.)। श्री अमरनाथ यात्रा के लिए 7,500 से अधिक तीर्थयात्रियों का एक नया जत्था मंगलवार सुबह जम्मू के भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हुआ।

अब तक 94,000 से अधिक तीर्थयात्री पूजा-अर्चना कर चुके हैं

अधिकारियों ने बताया कि 38 दिवसीय तीर्थयात्रा 3 जुलाई को घाटी से दो मार्गों अनंतनाग जिले में पारंपरिक 48 किलोमीटर लंबे नुनवान-पहलगाम मार्ग और गांदरबल जिले में 14 किलोमीटर लंबे लेकिन अधिक खड़ी चढ़ाई वाले बालटाल मार्ग से शुरू हुई थी। यात्रा 9 अगस्त को समाप्त होगी। उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक 94,000 से अधिक तीर्थयात्री श्री अमरनाथ गुफा में प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग (हिमलिंग) की पूजा-अर्चना कर चुके हैं।

309 वाहनों में सवार होकर कश्मीर स्थित दोनों आधार शिविरों के लिए रवाना हुआ।

अधिकारियों ने बताया कि 5,516 पुरुषों और 1,765 महिलाओं समेत 7,541 तीर्थयात्रियों का सातवां जत्था कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आज तड़के 2.55 से 4.05 बजे के बीच भगवती नगर आधार शिविर से 309 वाहनों में सवार होकर कश्मीर स्थित दोनों आधार शिविरों के लिए रवाना हुआ।

उन्होंने बताया कि पहला काफिला 148 वाहनों में 3,321 तीर्थयात्रियों को लेकर गांदरबल जिले में 14 किलोमीटर लंबे बालटाल मार्ग के लिए रवाना हुआ। इसके बाद 161 वाहनों में 4,220 तीर्थयात्रियों का दूसरा काफिला अनंतनाग जिले में 48 किलोमीटर लंबे पारंपरिक पहलगाम मार्ग से यात्रा कर रहा है।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा 2 जुलाई को जम्मू में यात्रा को हरी झंडी दिखाने के बाद से अब तक कुल 47,902 तीर्थयात्री जम्मू आधार शिविर से घाटी के लिए रवाना हो चुके हैं। पंजीकरण के लिए काउंटरों पर भारी भीड़ है। अधिकारियों ने काउंटरों की संख्या 12 से बढ़ाकर 15 कर दी है और साथ ही भीड़ को कम करने के लिए दैनिक कोटा 4,100 कर दिया है।

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Jammu,6 जून (हि.स.)। लगातार बारिश के बीच, 7,200 से अधिक तीर्थयात्रियों का एक नया जत्था रविवार को तड़के दक्षिण कश्मीर हिमालय में अमरनाथ मंदिर के लिए यहां आधार शिविर से रवाना हुआ। 3 जुलाई को शुरू हुई 38 दिवसीय वार्षिक तीर्थयात्रा ने रविवार को 50,000 का आंकड़ा पार कर लिया।

1,587 महिलाओं और 30 बच्चों सहित 7,208 तीर्थयात्रियों का पांचवां जत्था जम्मू से रवाना

अधिकारियों ने बताया कि 1,587 महिलाओं और 30 बच्चों सहित 7,208 तीर्थयात्रियों का पांचवां जत्था कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सुबह 3:35 बजे से 4:15 बजे के बीच भगवती नगर आधार शिविर से दो अलग-अलग काफिलों में रवाना हुआ। 2 जुलाई के बाद से यह तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा जत्था था, जब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यहां से यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी। इसके साथ ही कुल 31,736 तीर्थयात्री जम्मू आधार शिविर से घाटी के लिए रवाना हो चुके हैं।

अधिकारियों ने बताया कि 147 वाहनों में 3,199 तीर्थयात्रियों को लेकर पहला काफिला गंदरबल जिले में छोटे लेकिन 14 किलोमीटर लंबे बालटाल मार्ग के लिए रवाना हुआ, जिसके बाद 160 वाहनों में 4,009 तीर्थयात्रियों का दूसरा काफिला अनंतनाग जिले में 48 किलोमीटर लंबे पारंपरिक पहलगाम मार्ग से यात्रा पर निकला। तीर्थयात्रियों ने रातभर जम्मू के बड़े हिस्सों में हुई भारी बारिश का सामना किया। अधिकारियों के मुताबिक 3 जुलाई को यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक 50,000 से अधिक तीर्थयात्री 3,880 मीटर ऊंचे अमरनाथ गुफा मंदिर के दर्शन कर चुके हैं।

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Chhapra: अमरनाथ यात्रा के लिए यात्रियों का जत्था छपरा से रवाना हुआ। अमरनाथ एक्सप्रेस ट्रेन से यात्रियों का पहला जत्था रवाना हुआ।

छपरा जंक्शन पर अमरनाथ एक्सप्रेस ट्रेन के पहुंचते ही भक्तों के जयघोष से स्टेशन परिसर शिवमय हो गया।

इस अवसर पर छपरा जंक्शन पर भंडारा का आयोजन भी किया गया था।

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छपरा के विधायक डॉ सीएन गुप्ता समेत कई समाजसेवियों ने जंक्शन पहुँच जत्था को रवाना किया।

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Sawan Kanwar Yatra 2025: हर साल सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और आस्था का प्रतीक होता है। यही वह समय होता है जब देशभर से लाखों शिव भक्त ‘कांवड़ यात्रा’ के लिए निकलते हैं। ‘हर हर महादेव’ और ‘बम बम भोले’ के जयकारों के बीच शिवभक्त नंगे पांव चलते हैं और गंगाजल लेकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा की शुरुआत इस बार 11 जुलाई से होगी और 9 अगस्त को समाप्त होगी।

क्या है कांवड़ यात्रा  और क्यों की जाती है?

कांवड़ यात्रा सावन माह में की जाने वाली एक धार्मिक पदयात्रा है, जिसमें भक्त गंगा नदी से पवित्र जल भरकर उसे अपने गांव या किसी शिव मंदिर तक लेकर जाते हैं और वहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा का मकसद है, भगवान शिव के प्रति पूर्ण भक्ति और समर्पण। जो भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं, उन्हें ‘कांवड़िए’ कहा जाता है। यह लोग अपने कंधों पर लकड़ी या बांस की बनी कांवड़ लेकर चलते हैं जिसमें गंगाजल भरा होता है।

कब से कब तक चलेगी कांवड़ यात्रा 2025?

शुरुआत: 11 जुलाई 2025 (शुक्रवार)
समाप्ति: 9 अगस्त 2025 (शनिवार)

कांवड़ यात्रा के दौरान इन बातों का जरूर रखें ध्यान

नशे से पूरी तरह दूर रहें: शराब, सिगरेट, तंबाकू जैसी किसी भी नशीली चीज़ का सेवन वर्जित है। गंगाजल को जमीन पर न रखें: इसे अपवित्र माना जाता है। गंगाजल को हमेशा कांवड़ में लटकाकर ही रखें। शौच के बाद स्नान जरूरी: पवित्रता बनाए रखने के लिए ये नियम बेहद जरूरी है। चमड़े की चीजों से दूर रहें: यात्रा के दौरान बेल्ट, पर्स, जूते जैसी चमड़े की वस्तुओं का उपयोग वर्जित है। पूरी यात्रा नंगे पांव चलना होता है: ये भगवान शिव के प्रति भक्ति और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व

कांवड़ यात्रा केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भगवान शिव से आत्मिक जुड़ाव का माध्यम है। कहते हैं कि सावन में शिव को जल चढ़ाने से उनकी विशेष कृपा मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं। गंगाजल से किया गया जलाभिषेक भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय होता है। इस यात्रा के दौरान शिव भक्त आपसी भाईचारे, सेवा और भक्ति के भाव से भरे होते हैं। कांवड़ यात्रा वह समय होता है जब भक्त पूरी तरह शिव में लीन हो जाते हैं। अगर आप भी इस साल कांवड़ यात्रा का हिस्सा बनने जा रहे हैं, तो ऊपर दिए गए नियमों का जरूर करें और पूरे मन से “हर हर महादेव” कहते हुए इस पवित्र यात्रा का आनंद लें।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Jammu,03 जुलाई (हि.स.)। कड़ी सुरक्षा के बीच 5,200 से अधिक तीर्थयात्रियों का दूसरा जत्था गुरुवार को दक्षिण कश्मीर में अमरनाथ गुफा मंदिर के लिए जम्मू स्थित भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हुआ। 3,880 मीटर ऊंचे मंदिर की 38 दिवसीय तीर्थयात्रा गुरुवार को दो रास्तों से अनंतनाग जिले में पारंपरिक 48 किलोमीटर लंबा नुनवान-पहलगाम मार्ग और गांदरबल जिले में 14 किलोमीटर छोटा लेकिन अधिक खड़ी चढ़ाई वाला बालटाल मार्ग से शुरू हुई। यात्रा 9 अगस्त को समाप्त होगी।

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में 168 वाहनों के काफिले में भगवती नगर आधार शिविर से रवाना

अधिकारियों ने बताया कि तीर्थयात्री सुरक्षा पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में 168 वाहनों के काफिले में भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हुए। अधिकारियों ने बताया कि इसके साथ ही जम्मू आधार शिविर से मंदिर के लिए रवाना हुए तीर्थयात्रियों की संख्या 11,138 तक पहुंच गई है। तीर्थयात्रियों के दूसरे जत्थे में 4,074 पुरुष, 786 महिलाएं और 19 बच्चे शामिल हैं।

तीर्थयात्रियों के एक समूह ने कहा कि वह 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हमले से विचलित नहीं हुए हैं जिसमें 26 लोग मारे गए थे। रायपुर निवासी हरीश कुमार ने कहा कि हम आतंकवादियों या पाकिस्तान से नहीं डरते जिन्होंने निर्दाेष और निहत्थे पर्यटकों पर हमले करवाए हैं। यह कायरतापूर्ण कृत्य है। पहलगाम जैसी आतंकी घटनाओं के जरिए डर पैदा करके वह हमें बाबा बर्फानी के दर्शन करने से नहीं रोक सकते। उनकी तरह कानपुर से 20 सदस्यों के समूह के साथ अमरनाथ के लिए रवाना हुए मुख्तार सिंह ने कहा कि उन्हें जरा भी डर नहीं है। उन्होंने कहा कि यात्रा में शामिल होने वाले तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या आतंकवादियों और पाकिस्तान को करारा जवाब देगी कि हम उनसे नहीं डरते।

वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए भगवती नगर बेस कैंप में और उसके आसपास सुरक्षा व्यवस्था सक्रिय कर दी गई है। जम्मू में 34 आवास केंद्र स्थापित किए गए हैं और तीर्थयात्रियों को रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) टैग जारी किए जा रहे हैं। यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के मौके पर ही पंजीकरण के लिए 12 काउंटर बनाए गए हैं। अब तक 3.5 लाख से अधिक लोगों ने तीर्थयात्रा के लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराया है।

 

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श्रीनगर, 3 जुलाई (हि.स.)। वार्षिक अमरनाथ यात्रा गुरुवार को कश्मीर घाटी से शुरू हो गई जिसमें तीर्थयात्रियों का पहला जत्था बालटाल और नुनवान आधार शिविरों से दक्षिण कश्मीर हिमालय में 3880 मीटर ऊंचे गुफा मंदिर की ओर रवाना हुआ। श्री अमरनाथ जी की गुफा में प्राकृतिक रूप से निर्मित बर्फ का शिवलिंग है।

अधिकारियों ने बताया कि यात्रा सुबह-सुबह दो रास्तों से शुरू हुई पारंपरिक 48 किलोमीटर लंबा नुनवान-पहलगाम मार्ग और 14 किलोमीटर लंबा बालटाल मार्ग। अधिकारियों ने कहा कि पुरुष, महिला और साधुओं सहित तीर्थयात्रियों के जत्थे सुबह होते ही दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में पहलगाम के नुनवान आधार शिविर और मध्य कश्मीर के गांदरबल के सोनमर्ग इलाके में बालटाल आधार शिविर से रवाना हुए।

उन्होंने कहा कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा संबंधित आधार शिविरों से जत्थों को रवाना किए जाने के दौरान पूरा वातावरण ‘बम बम बोले’ के नारों से गूंज उठा।

बुधवार 2 जुलाई, 2025 को 5,892 यात्रियों के पहले जत्थे को जम्मू के भगवती नगर स्थित यात्रा बेस कैंप से लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। दोपहर में तीर्थयात्री कश्मीर घाटी पहुंचे और प्रशासन और स्थानीय लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया था। तीर्थयात्री श्री अमरनाथ जी के पवित्र गुफा मंदिर पहुंचने पर प्राकृतिक रूप से बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा-अर्चना करेंगे।

यात्रा के सुचारू संचालन के लिए कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और अन्य अर्धसैनिक बलों के हजारों सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। हवाई निगरानी भी की जाएगी। 38 दिवसीय तीर्थयात्रा 9 अगस्त को समाप्त होगी।

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Chhapra: सारण जिले में स्थित नैनी मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है और जन-जन की आस्था का केंद्र बन गया है। विशेष अवसरों जैसे निर्जला एकादशी और जन्माष्टमी के दौरान यहाँ भारी भीड़ उमड़ती ही है, लेकिन अब यहां बारहमासी श्रद्धालुओं का जो सैलाब उमड़ रहा है, वह अपने आप में विशेष है।

मंदिर प्रशासन के अनुसार, सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर परिसर में जुटने लगती है। लोग परिवार सहित आते हैं, पूजन-अर्चन करते हैं और प्रसाद चढ़ाकर सुख-शांति की कामना करते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर वर्ग के लोगों में आस्था की वही तीव्रता देखने को मिल रही है।

स्थानीय और बाहरी श्रद्धालुओं का संगम

नैनी मंदिर केवल छपरा या सारण जिले तक ही सीमित नहीं है। यहां राज्य के लगभग सभी जिलों से लोग दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की महिमा और वातावरण ऐसा है कि यह केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक समागम का भी प्रमुख स्थल बन गया है।

मंदिर निर्माण में एक भी लोहे की वस्तु का नहीं हुआ इस्तेमाल

नैनी मंदिर श्रद्धा और आस्था का केंद्र तो बना ही है, साथ ही यह अपनी अनोखी निर्माण शैली के कारण भी विशेष चर्चा में रहता है। गौरतलब है कि इस मंदिर का निर्माण बिना ईंट, सरिया, सीमेंट और बालू के किया गया है, जो इसे आधुनिकता के इस दौर में भी विशिष्ट बनाता है। द्वारकाधीश मंदिर के पत्थरों को जोड़ने के लिए विशेष प्रकार के केमिकल का उपयोग किया गया है, और पत्थरों को जोड़कर स्थिर बनाए रखने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक (Interlocking Technique) का प्रयोग किया गया है। बता दें कि पूरे मंदिर में एक भी लोहे की वस्तु का उपयोग नहीं किया गया है। दरवाजों और चौखटों के निर्माण में लकड़ी के कील और गोंद का इस्तेमाल किया गया है। वहीं, घुमावदार स्थानों पर दो पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे और पीतल की क्लिप्स का प्रयोग किया गया है।

गुजरात के विशिष्ट पत्थर से निर्मित है भव्य मंदिर

इस भव्य मंदिर के  शिलान्यास से लेकर प्राण प्रतिष्ठा तक कुल 14 वर्षों का समय लगा। मंदिर का शिलान्यास 11 मई 2005 को किया गया था, और इसका विधिवत उद्घाटन वर्ष 2019 में संपन्न हुआ। इस मंदिर को विशेष रूप से गुजरात में पाए जाने वाले एक विशिष्ट पत्थर  से निर्मित किया गया है, जो अपनी मजबूती और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। निर्माण कार्य की जिम्मेदारी गुजरात के संवेदक मफत भाई पटेल (एम. बी. पटेल) के नेतृत्व में कार्यरत कुशल कारीगरों द्वारा निभाई गई, जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट शिल्पकला से इस मंदिर को एक कलात्मक स्वरूप प्रदान किया।

कैसे पहुचें नैनी मंदिर

नैनी मंदिर छपरा-जलालपुर मुख्य मार्ग पर छपरा शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। जहां पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से व्यवसायिक वाहन हर समय उपलब्ध रहते हैं।

 

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भारतीय श्रद्धालु 6 वर्षों बाद नेपाल होते हुए जा सकेंगे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर 

काठमांडू: भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार के साथ ही अब भारतीय नागरिकों को नेपाल के रास्ते तिब्बत के कैलाश मानसरोवर यात्रा की अनुमति दी गई है। चीन की सरकार ने भारतीय पर्यटकों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा की अनुमति दे दी है। इसके लिए नेपाली पर्यटन व्यवसायियों ने अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर ली है।

सन 2020 में कोरोना महामारी और उसके बाद भारत और चीन की सेना के बीच गलवान में हुई झड़प के बाद चीन ने भारतीय नागरिकों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा अनुमति को रद्द कर दिया था। दोनों देशों के बीच पिछले कुछ महीनो से कूटनीतिक और राजनीतिक संवाद होने के बाद स्थिति सामान्य हुई है। इसके बाद चीन की सरकार ने भारतीय पर्यटकों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा की अनुमति दे दी है।

तिब्बत के ल्हासा में रहे नेपाली काउंसलर विभाग के मुताबिक मानसरोवर यात्रा की अनुमति के लिए अब पुलिस सर्विस सेंटर से पत्र आना बाकी है।बताया गया है कि अगले सोमवार से भारतीय नागरिकों के लिए कैलाश यात्रा की शुरुआत हो सकती है।

नेपाल में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले पर्यटन व्यवसायियों की संस्था एसोसिएशन आफ कैलाश टूर ऑपरेटर के अध्यक्ष विनोद नहर्की ने बताया कि नेपाल से इस वर्ष 20000 भारतीय नागरिकों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए कोटा तय किया गया है

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वाराणसी,06 जून (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में निर्जला एकादशी पर शुक्रवार को हजारों श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा नदी में पुण्य की डुबकी लगाई और गंगाघाटों पर दानपुण्य किया। पर्व पर गंगा स्नान के लिए के लिए भोर से ही श्रद्धालु गंगाघाटों पर पहुंचने लगे। गंगा स्नान के लिए प्राचीन दशाश्वमेध घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, शीतलाघाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट सामनेघाट भारी भीड़ जुटी रही। स्नानार्थियों के चलते गौदोलिया से दशाश्वमेधघाट तक मेले जैसा नजारा रहा।

निर्जला एकादशी व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है

जिला प्रशासन ने गंगा तट से लेकर बाबा विश्वनाथ दरबार तक सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए थे। दशाश्वमेधघाट के तीर्थ पुरोहित राजू तिवारी ने बताया कि सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व है। यह दिन चराचर जगत के स्वामी भगवान विष्णु को समर्पित है । इसे साल की सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों को पुण्य लाभ मिलता है और पूरे साल के एकादशी व्रत का फल प्राप्त होता है।

एकादशी के दिन चावल नहीं खाते और न ही चावल दान करते है

पुरोहित ने बताया कि एकादशी के दिन सनातनी चावल नहीं खाते और न ही चावल दान करते है। इस दिन फल फूल आम, केला इत्यादि दान करते हैं। गगरी भरकर जल ब्राह्मण को दान करते हैं। ज्येष्ठ माह की एकादशी ‘निर्जला एकादशी ‘ को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों का शमन करने की शक्ति होती है। इस दिन मन, कर्म, वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही तामसिक आहार, परनिंदा एवं दूसरों के अपमान से भी दूर रहना चाहिए। भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्रती को करोड़ों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है।

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