Chhapra: शहर के विभिन्न पूजा स्थल एवं स्थापित मंदिर मे मंगलवार को मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की गई। पूरा शहर दुर्गा सप्तशती पाठ मंत्रो से गुंजायमान रहा। 

शारदीय नवरात्र मे शक्ति की आराधना के लिए व्रत,उपवास रखकर श्रद्धा के साथ मनाते है।  मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। नवरात्र के दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमंडल धारण किए हैं।

पूर्वजन्म में देवी ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।देवी ने कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।

इसीलिए उनका एक नाम अपर्णा भी है।इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया।देवता,ऋषि, सिद्धगण,मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य का सराहना की और कहा-हे देवी, आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।देवी ब्रह्मचारिणी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प प्रिय हैं। ऐसे में नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प अर्पित करें। मां दुर्गा को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से दीर्घायु का आशीष मिलता है। मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन जरूर अर्पित करें।

 

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सृष्टि के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की धूमधाम से हुई पूजा

Chhapra: सृष्टि के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा धूमधाम से की गई. सभी लोगों ने अपने अपने घरों में लोहे के सभी औजार, हथियार सहित वाहनों की पूजा की. इस अवसर पर कल कारखानों, मोटर गैराज सहित आईटीआई, पॉलीटेक्निक में भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की गई.

इस पूजा की तैयारियों को लेकर बड़ों के साथ छोटे छोटे बच्चों में भी खासा उत्साह देखा गया. बड़ो को देखकर बच्चों ने भी अपने अपने साइकिल को साफ सुथरा कर फूल माला चढ़ाकर पूजन किया.

वही बड़े बड़े मोटर गैराज, बाइक रिपोयरिंग दुकान में विशेष पूजा की गई.

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अयोध्या: श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के निर्माण समिति की बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गये। ट्रस्ट ने श्रीरामलला के मंदिर में कोई कमी न रह जाए इसके लिये हर बिंदु पर चर्चा कर रहे हैं।

सागौन लकड़ी के बनाए जाएंगे दरवाजे
ट्रस्ट के तय किया कि मंदिर के दरवाजे सागौन लकड़ी होंगे, जिसमें सुंदर और बारीक नक्काशी की जाएगी। मंदिर में कुल 14 भव्य दरवाजे सागौन लकड़ी के बनाए जाएंगे, जिसमें रामलला के गर्भगृह में एक बड़ा दरवाजा होगा।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि मंदिर निर्माण में कुल 14 दरवाजे बनाए जाने हैं। यह दरवाजे खास लकड़ियों से बनाए जाएंगे। जिन पर सुंदर डिजाइन होगी जो भव्यता बढ़ाएंगे। मंदिर के पहले तल में 13 दरवाजे लगेंगे। रामलला के गर्भगृह में एक बड़ा दरवाजा लगेगा। यह दरवाजे किन लकड़ियों के होंगे इनकी डिजाइन क्या होगी इसको लेकर भी ट्रस्ट की बैठक में मंथन किया गया है। तय हुआ कि मंदिर की चौखट व बाजू संगमरमर का होगी। दरवाजे महाराष्ट्र के जंगलों से सागौन की लकड़ियों से मंदिर से बनाए जाएंगे।

निर्माण में करीब 1800 करोड़ खर्च होंगे
ट्रस्ट महामंत्री राय ने बताया कि मंदिर निर्माण की भव्यता को देखते हुए खर्च बढ़ गया है। अनुमान के मुताबिक मंदिर निर्माण में करीब 1800 करोड़ खर्च होंगे। एक अनुमान के मुताबिक मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में अब तक 400 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि मन्दिर निर्माण में पैसे की कोई दिक्कत नहीं है। राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर के भक्तों ने अब तक करीब 5500 करोड़ रुपए का दान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को किया जा चुका है। पहले हमने अनुमान लगाया था कि मंदिर निर्माण में करीब 1000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। पर अब यह अनुमान गलत साबित हो रहा है। मंदिर का 30 प्रतिशत से ज्यादा का काम पूरा हो चुका है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2024 में मकर संक्रांति के बाद गर्भगृह में रामलला विराजेंगे। उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर के गर्भगृह का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा हो जाएगा। उस समय सूर्य दक्षिणायन रहते हैं। इस दौरान शुभ कार्यों का निषेध रहता है। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। मकर संक्रांति के बाद जो भी शुभ तिथि व मुहूर्त होगा, उसी दिन गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसके बाद भक्त गर्भगृह में रामलला का दर्शन कर सकेंगे।

उन्होंने बताया कि अभी तिथि को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। ट्रस्ट और मंदिर निर्माण समिति की दो दिवसीय संयुक्त बैठक के बाद चंपत राय ने कहा कि मंदिर का ग्राउंड फ्लोर दिसंबर 2023 तक बन जाएगा। पहले हमारा अनुमान था कि भूतल का आधा हिस्सा ही तैयार हो पाएगा लेकिन काम की गति व इंजीनियरों से चर्चा के बाद यह बात सामने आई है। उन्होंने अभी तिथि को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है।

उन्होंने बताया कि पूरे मंदिर की परिक्रमा करने के दौरान भक्त थक सकते हैं। इसलिए परकोटे के परिपथ में उनके बैठने से लेकर पेयजल की भी व्यवस्था की जाए इस पर चर्चा हुई है। बताया कि परकोटा छह एकड़ में बनेगा। परकोटे में माता सीता, गणेश सहित रामायण के कई पात्रों के मंदिर बनने हैं। इन मंदिरों की ऊंचाई कितनी हो इसको लेकर मंथन हुआ है, यह मुख्य मंदिर से कम ही रखी जाएगी। मंदिर के ऊपर चढ़ने के लिए रेलिंग कैसी बने, पत्थर की बने या धातुओं की इसको लेकर भी चर्चा हुई। कुछ धातुएं काली हो जाती हैं, कुछ लंबे समय तक चलती हैं। मंदिर की मजबूती के साथ सुंदरता भी कम न हो हमारा ऐसा प्रयास है।

ट्रस्ट सदस्य कामेश्वर चौपाल ने बताया कि कष्ट अपना भाई लात भी तैयार कर चुका है। गठन के समय ट्रस्ट का बाइलॉज नहीं बनाया गया था। बाय बाद में विधि विशेषज्ञों की विशेष राय और उनकी देखरेख में तैयार किया जा रहा है। जन्मभूमि परिसर में कुल 7 मंदिर बनाए जाने पर भी विचार हैं जिसे फाइनल किया गया ।

बैठक में ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरि, सदस्य डॉ. अनिल मिश्र, महंत दिनेंद्र दास, आर्किटेक्ट आशीष सोमपुरा सहित टाटा, एलएंडटी व ट्रस्ट के इंजीनियर शामिल रहे।

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Chhapra: दुर्गा पूजा को लेकर शहर से लेकर गांवों तक पूजा पंडालों और मूर्ति निर्माण का कार्य जोर शोर से जारी है. पूजा समितियों के द्वारा अपने-अपने पंडालों मूर्तियों को बेहतर और आकर्षक बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे है.
पूजा समितियों के द्वारा प्रत्येक वर्ष कुछ नया और अलग तरह के पंडाल निर्माण की कोशिश की जाती रही है. ऐसे में शहर के आदर्श दुर्गा पूजा समिति, बड़ा तेलपा स्टैंड के द्वारा इस वर्ष भी आकर्षक पूजा पंडाल बनाने की तैयारी है.
पूजा समिति से जुड़े अभिषेक कुमार ने बतया कि आदर्श दुर्गा पूजा समिति के द्वारा वर्ष 1995 से अबतक प्रत्येक साल पूजा का आयोजन होता है. जिसमे पंडाल का निर्माण होता है. विगत 2 वर्ष कोरोना के कारण आयोजन भव्य नहीं हो सका था, लेकिन इस बार पुनः इसे वृहद् रूप से करने की कोशिश में पूजा समिति जुटी हुई है.
उन्होंने बताया कि प्रत्येक वर्ष पंडाल को आकर्षक बनाने के लिए अलग अलग वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है. इस बार पंडाल का निर्माण राजस्थान के जैन मंदिर के जैसा किया जा रहा है. खास बात यह है कि इस पंडाल के निर्माण में लगभग 50 हज़ार मिट्टी के दीया का प्रयोग किया जायेगा. पंडाल 70 फिट ऊँचा और 50 फिट चौड़ा बनेगा. इस पूजा समिति के अध्यक्ष सीताराम सिंह और कोषाध्यक्ष मनोज राय हैं.
पूजा समिति के सदस्य दिन रात पंडाल और मूर्ति के निर्माण को ससमय पूर्ण कराने में जुटे है. इस पूजा समिति के पंडाल के आकर्षण को हमेशा से लोग पसंद करते आये हैं. छपरा टुडे डॉट कॉम डेस्क की रिपोर्ट
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– अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड और गंगा तट गुलजार

 

वाराणसी: भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि के बाद से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई। श्राद्ध पूर्णिमा (प्रतिपदा का श्राद्ध) तिथि पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए बड़ी संख्या में लोग गंगा तट और अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध कर्म के लिए उमड़ पड़े। पहले दिन लोगों ने त्रिपिंडी श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण और विधि विधान से श्राद्ध कर्म किया। जिनके पूर्वजों की अकाल मृत्यु हुई थी उन्होंने श्रद्धापूर्वक कर्मकांडी ब्राम्हणों से त्रिपिंडी श्राद्ध कराया।

श्राद्धकर्म के लिए दूर-दराज के प्रांतों से श्रद्धालु शुक्रवार शाम को ही शहर में आ गये थे। अलसुबह से ही गंगा तट और पिशाचमोचन कुंड गुलजार हो गया। गया जाने के पूर्व पिशाचमोचन कुंड पर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने के लिए लोग श्राद्ध कर्म सुबह से करते रहे। माना जाता है कि तर्पण और श्राद्ध कर्म से पितृदोष से मुक्ति के साथ पितरों की आत्मा भी तृप्त होती है। तर्पण न करने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा भी मृत्यु लोक में भटकती है। ऐसे में पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पिशाचमोचन कुंड स्थित शेरवाली कोठी के पंडा पं. श्रीकांत मिश्र और प्रदीप पांडेय ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व.पितृ तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके जीवन में सभी कार्य सिद्ध होते हैं और घर, परिवार, वंश बेल की वृद्धि होती है।

प्रदीप पांडेय ने बताया कि पितृदोष के शमन के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। सनातन धर्म में ये श्राद्ध कर्म सबके लिए है। पूर्वजों की आत्मा की प्रसन्नता के लिए कम से कम तीन बार त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य वंशजों को करना चाहिए। इससे अधिक बार भी कर सकते है। विमल तीर्थ पर श्राद्ध कर्म का इतिहास हजारों साल पुराना है। इस कुंड पर श्राद्ध कर्म का उल्लेख स्कंद महापुराण में भी है। गरुड़ पुराण में भी लिखा हैं। प्रदीप पांडेय बताते है कि पिशाचमोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। ये श्राद्ध कर्म काशी के अलावा कहीं और नहीं होता। पितृ पक्ष में पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। इससे प्रसन्न होकर पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। प्रदीप पांडेय बताते हैं कि पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं। प्रथम मृत्यु तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। काशी को प्रथम पिंड कहते हैं। सबसे पहले लोग काशी में पिशाचमोचन कुंड पर आकर पिंड दान करते हैं। उसके बाद गया और फिर अंत में केदारनाथ जाते हैं। मान्यता यह भी है कि पिशाचमोचन कुंड में स्नान करने से तमाम तरीके की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

शेरवाली कोठी के वयोवृद्ध कर्मकांडी पं. श्रीकांत मिश्र बताते हैं कि त्रिपिंडी श्राद्ध सिर्फ पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए नहीं किया जाता। अत्यधिक बीमार व्यक्ति के लिए भी किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है तो असाध्य बीमारी को भी ठीक करता है। त्रिपिंडी श्राद्ध में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र; शिव की पूजा की जाती है। पं श्रीकांत बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र, पौत्रादि हमें पिंडदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि सनातन धर्म में प्रत्येक गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

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पटना/बेगूसराय: दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा समर्पण और उनके मोक्ष की कामना के लिए पितृपक्ष शनिवार को अगस्तमुनि को जल देने के साथ ही शुरू हो गया। अब अगले 15 दिनों तक लोग अपने पूर्वजों को प्रत्येक दिन प्रातः बेला में जल देने के साथ मृत्यु तिथि के अनुसार विशेष पिंडदान करेंगे।

पितृ पक्ष को लेकर कुछ लोग जहां पिंडदान करने दुनिया के चर्चित मोक्ष स्थली गया गए हैं। वहीं, अधिकतर लोग अपने-अपने घर पर ही पुरोहित के माध्यम से पूर्वजों को जल अर्पण कर रहे हैं। इसकी शुरुआत को लेकर पितृपक्ष महालया के अवसर पर शनिवार को गंगा किनारे लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना को लेकर गंगा स्नान किया तथा गंगाजल लेकर घर गए हैं, इसी जल से प्रत्येक दिन तर्पण करेंगे।

पुरोहितों के अनुसार पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है। सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार श्राद्धपक्ष के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी माह तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है, इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं।

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मां भगवती दुर्गा की भक्ति कर शक्ति पाने का महाव्रत शारदीय नवरात्र की तैयारी शुरू हो गई है। दुर्गा पूजा को लेकर मंदिरों में प्रतिमा निर्माण शुरू हो गया है।

दुर्गा पूजा को लेकर मूर्तिकार जहां  प्रतिमा निर्माण में जुटे हुए हैं, वहीं तमाम जगहों पर आकर्षक पंडाल बनाए जाने की तैयारी की जा रही है। हर पंडाल को अलग तरीके से सजाने का प्रयास पूजा समितियां कर रहीं हैं । प्रशासन ने भी शांति पूर्वक दुर्गा पूजा मनाया जाने को लेकर तैयारी शुरू कर दी है।

सबसे सुखद संयोग है कि इस साल मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान दोनों हाथी (गज) पर होगा, जिसका फलाफल अत्यंत शुभ है। हाथी पर आगमन के फलाफल में जल वृद्धि और बाढ़ की संभावना है तो प्रस्थान में वर्षा अधिक होगी। शारदीय नवरात्र की शुरुआत 26 सितम्बर को आश्विन माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को होगी। उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में कलश स्थापन के साथ मां भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा से होगी।

पुरोहितों के अनुसार इस वर्ष शुभ फलाफल लेकर मां भगवती दुर्गा का आगमन हो रहा है। प्रथम दिन कलश स्थापन और माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना के साथ शारदीय नवरात्र शुरू होगा। 27 सितम्बर को हस्त नक्षत्र में भगवती के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा, 28 सितम्बर को चित्रा नक्षत्र में माता के तृतीय स्वरूप चन्द्रघंटा की पूजा, 29 सितम्बर को स्वाति नक्षत्र में चौथे स्वरूप कूष्माण्डा की पूजा एवं 30 सितम्बर को विशाखा नक्षत्र में पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की पूजा होगी।

एक अक्टूबर को जेष्ठा नक्षत्र में षष्ठ स्वरूप कात्यायनी की पूजा एवं बिल्व आमंत्रण होगा। दो अक्टूबर को मूल नक्षत्र में सप्तम स्वरूप कालरात्री की पूजा एवं दिन में पत्रिका प्रवेश तथा रात में निशा पूजा और जागरण होगा। तीन अक्टूबर को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा एवं महाअष्टमी व्रत होगा। चार अक्टूबर को उत्तराषाढ़ नक्षत्र में महानवमी व्रत के दिन नवम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा, हवन, बलिदान एवं महाअष्टमी व्रत का पारण होगा। इसके बाद पांच अक्टूबर को विजयादशमी होगा, इस दिन कलश विसर्जन के बाद जयंती धारण अवश्य करना चाहिए तथा किसी भी कार्य के लिए अभिजीत मुहूर्त होता है।

फिलहाल शारदीय नवरात्र शुरू होने में अभी भले ही 20 दिन शेष है, लेकिन वातावरण दुर्गा पूजामय हो गया है, मंदिरों में जहां प्रतिमाएं बन रही है वहीं बाजार भी सजने लगे हैं।

 

फाइल फोटो 

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भादो मास के छठ पर्व पर अस्ताचलगामी भगवान को अर्घ्य देगे व्रती

Chhapra: भादो माह में चार दिवसीय अनुष्ठान छठ महापर्व के तीसरे दिन यानी शुक्रवार को छठ व्रती आज भगवान अस्ताचलगामी को अर्घ्य देगे.

शुक्रवार को छठ व्रती डुबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे तथा शनिवार को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दे अपने एवं परिवार जनों के मंगल कामनाओं का आशीर्वाद मांगेगे.

शहर सहित जिले के सभी प्रखंड क्षेत्रों में भदया छठ महापर्व, चार दिवसीय अनुष्ठान को लेकर ग्रामीण बाजार सजा हुआ है, बाजारों में रौनक है वही इस पर्व को लेकर खरीददारी भी की जा रही है.

छठ पर्व पूजा के लिए बाजारों में फल ईख, नारियल, आदि अन्य सामानों की बिक्री देखी जा रही है.

बताते चलें कि चार दिवसीय छठ पर्व व्रतियों ने बुधवार को नहाय-खाय के साथ छठ व्रत शुरू हुआ. गुरुवार को खरना किया गया वही शुक्रवार को डुबते सूर्य को पहला तथा शनिवार को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर चार दिवसीय अनुष्ठान छठ पर्व का समापन होगा.

भादो मास के इस छठ व्रत को ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है. जहां मन्नतों के पूरा होने पर किया जाता है. महापर्व छठ वर्ष में तीन बार चैत्र, भादो और कार्तिक मास में किया जाता है.

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शुक्रवार का राशिफल – 02 सितम्बर 2022 

शुक्रवार का राशिफल 

युगाब्ध-5124, विक्रम संवत 2079, राष्ट्रीय शक संवत-1944

सूर्योदय 05.56, सूर्यास्त 06.24, ऋतु – वर्षा

भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी, शुक्रवार, 02 सितम्बर 2022 का दिन आपके लिए कैसा रहेगा। आज आपके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन हो सकता है, आज आपके सितारे क्या कहते हैं, यह जानने के लिए पढ़ें आज का भविष्यफल।

मेष राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा। कारोबार में आकस्मिक धनलाभ और नौकरी में तरक्की के योग रहेंगे। सभी कार्यों में सफलता मिलेगी और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। कार्यक्षेत्र में नए योजनाओं पर काम कर सकते हैं, जिससे अधिकारी आपकी प्रशंसा करेंगे। पैसों के लेन-देने में सावधानी बरतें। परिजनों और मित्रों का भरपूर सहयोग मिलेगा। स्टूडेंट्स के लिए समय अच्छा है। वाहन चलाते समय सावधानी रखें। परिवार का माहौल आपके अनुकूल रहेगा। सेहत भी अच्छी रहेगी।

वृषभ राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा। कारोबार अच्छा चलेगा। कार्यभार की अधिकता से परिश्रम अधिक करना पड़ेगा और भागदौड़ भी रहेगी, लेकिन कार्यों में सफलता मिलने से मन प्रसन्न रहेगा। नए लोगों से मुलाकात होगी, जो लाभदायक रहेगी। जमीन-जायदाद और कोर्ट-कचहरी के कामों में सावधानी बरतें और लेन-देन से बचें। सामाजिक कार्यों में भाग लेंगे, जिससे समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी। परिवार और कामकाज के बीज उलझन महसूस करेंगे। परिजनों से कलह हो सकती है। सेहत का ध्यान रखें।

मिथुन राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा। कार्यक्षेत्र में स्थितियां चुनौतीपूर्ण रह सकती हैं। नौकरी-व्यवस्था में उन्नति या वेतन वृद्धि का मामला टल सकता है। काम के प्रति सक्रिय रहें और सावधानी बरतें, क्योंकि अचानक असुविधाजनक स्थिति बन सकती है। परिवार का माहौल आपके अनुकूल रहेगा। दाम्पत्य जीवन भी खुशहाल रहेगा। परिजनों का भरपूर सहयोग मिलेगा। खर्च पर नियंत्रण रखें। प्रॉपर्टी और शेयर बाजार में निवेश फायदेमंद हो सकता है। सेहत अच्छी रहेगी। यात्रा को टालें।

कर्क राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा। व्यापार-धंधे में धन लाभ और नौकरी में तरक्की के योग रहेंगे। सहकर्मियों का अच्छा सहयोग मिलेगा और सभी कार्य सफल रहेंगे। व्यावहारिक मामले आसानी से निपट जाएंगे। कार्यभार की अधिकता से तनाव में रह सकते हैं और थकान का अनुभव करेंगे। बिना सोचे-समझे निवेश करने से बचें। करियर को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। परिवार में सुख-शांति रहेगी। वाणी पर संयम बरतें। समाज के कार्यों में भाग लेंगे। सेहत का ध्यान रखें।

सिंह राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा। कारोबार अच्छा चलेगा, लेकिन जिम्मेदारियां काम में रुकावट बन सकती हैं। काम की अधिकता से दिनभर भागदौड़ रहेगी। उधार लेन-देन से बचें। प्रॉपर्टी और शेयर बाजार में निवेश फायदेमंद होगा। शारीरिक और मानसिक रूप से थकान का अनुभव कर सकते हैं। पुराने मित्रों से मुलाकात हो सकती है, जो लाभदायक रहेगी। परिवार का माहौल आपके अनुकूल रहेगा। दाम्पत्य जीवन भी खुशहाल रहेगा। अध्यात्म से जुडऩे का मौका मिलेगा।

कन्या राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा। कार्यक्षेत्र में कठिन परिश्रम रहेगा, जिससे कार्यों में सफलता मिलेगी। व्यापार-धंधे में लाभ रहेगा, जिससे आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। नये लोगों से संबंध बनेंगे, जिनसे लाभ होने की संभावना है। अनावश्यक खर्च पर नियंत्रण रखना होगा। क्रोध करने से बचें, अन्यथा विवाद में फंस सकते हैं। सेहत के मामले में सावधानी बरतनी होगी। परिवार का माहौल अच्छा रहेगा। पार्टी या पिकनिक का प्रोग्राम बन सकता है। खान-पान का ध्यान रखें।

तुला राशि :- आज का दिन शुभ फलदायी रहेगी। कारोबार में धनलाभ के योग रहेंगे। नौकरीपेशा लोगों को स्थान परिवर्तन के साथ पदोन्नति का लाभ मिल सकता है, जिससे आय में वृद्धि होगी। कारोबार विस्तार की नई योजनाएं बना सकते हैं। कार्यक्षेत्र में काम की अधिकता रहेगी, लेकिन आर्थिक स्थिति में सुधार होने से सुख-समृद्धि में इजाफा होगा। परिवार का माहौल ठीक रहेगा और परिजनों का भरपूर सहयोग मिलेगा। घर की सजावट पर भारी संख्या पर खर्च हो सकता है।

वृश्चिक राशि :- आज का दिन आपके जीवन में खुशियां लेकर आएगा। कारोबार में अच्छे लाभ की संभावना है। परिश्रम की अधिकता रहेगी, लेकिन कार्य आसानी से निपटेंगे। सरकारी कार्यों में भी सफलता मिलेगी। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढकऱ भाग लेंगे, जिससे समाज में सम्मान बढ़ेगा। निवेश के मामले में सावधानी बरतें। विद्यार्थियों को प्रतियोगिताओं में सफलता मिलेगी। अध्ययन और कला से जुड़े लोग सम्मानित होंगे। आर्थिक मामलों में जोखिम लेने से बचें। वाणी पर संयम रखें। सेहत का ध्यान रखें।

धनु राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा। कारोबार अच्छा चलेगा और आर्थिक लाभ की स्थिति रहेगी। सहकर्मियों के साथ-साथ दोस्तों-परिजनों का भी भरपूर सहयोग मिलेगा। धैर्य और सूझबूझ से निर्णय लेने से सभी कार्य सफल होंगे। काम की अधिकता रहेगी। क्रोध पर नियंत्रण एवं वाणी पर संयम रखें, अन्यथा विवाद में फंस सकते हैं। परिवार का माहौल आपके अनुकूल रहेगा, ध्यान रखें कि आपकी बातों से किसी को ठेस न पहुंचे। राजनीति में नए रिश्ते लाभकारी होंगे। सेहत अच्छी रहेगी।

मकर राशि :- आज का दिन शुभ फलदायी रहेगा। कारोबार अच्छा चलेगा। आकस्मिक धनलाभ की संभावना है। नौकरी में स्थान परिवर्तन के योग बन रहे हैं। मित्रों और परिजनों का भरपूर सहयोग मिलेगा। मानसिक शांति रहेगी और परिवार में सुख की प्राप्ति होगी। व्यावसायिक यात्रा फायदेमंद रहेगी। जीवन में सार्थकता की तलाश में योग, अध्यात्म और धार्मिक गतिविधियों को समय दे सकते हैं। परिवार में कोई धार्मिक या मांगलिक आयोजन हो सकता है। खान-पान का ध्यान रखें।

कुम्भ राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा। व्यापार में लाभ मिलेगा और आय में वृद्धि के योग रहेंगे। रुका हुआ धन भी मिल सकता है। नए कार्यों में शीघ्रता से बचें। अनावश्यक खर्च बढऩे की संभावना रहेगी। कारोबार और परिवार में सामंजस्य स्थापित होगा। बाहर जाने की योजना टल सकती है। मनोरंजन पर जरूरत से ज्यादा खर्च करने से बचें। पारिवारिक जीवन में सुख-संतोष की भावना अनुभव करेंगे। पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी से निभाएंगे। सेहत का ध्यान रखना होगा।

मीन राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा। कार्यक्षेत्र में छोटी-छोटी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, काम की अधिकता रहेगी, लेकिन कठिन परिश्रम से कार्यों में सफलता प्राप्त करेंगे। थकान के कारण स्फूर्ति का अभाव रहेगा। क्रोध पर नियंत्रण एवं वाणी पर संयम रखें, अन्यथा बेवजह विवाद हो सकता है। विदेश यात्रा के अवसर मिलेंगे। कार्यों में सफलता से धनलाभ की स्थिति रहेगी। परिवार का माहौल अच्छा रहेगा। सेहत भी अच्छी रहेगी।

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गणेश चतुर्थी पर देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि भगवान श्रीगणेश की कृपा हम पर सदैव बनी रहे। देशभर में गणेश चतुर्थी की धूम है। लोग अपने घरों में गणपति बप्पा की स्थापनाकर पूजा-अर्चना शुरू करेंगे। देशभर के विभिन्न मंदिरो में सुबह से ही बप्पा की पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी है। बप्पा के पंडाल बनाए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

गणेश चतुर्थी के अवसर पर मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में पहली आरती की गई। सिद्धिविनायक के अलावा मुंबई के लालबागचा राजा पंडाल से गणेश चतुर्थी के समारोह में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी।

रायपुर में मूर्तिकारों ने विशेष वस्तुओं का उपयोग कर गणेशजी की मूर्ति बनाई है। यह मूर्ति लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। कोच्चि में आज से 10 दिवसीय ओणम उत्सव की शुरुआत हुई है। नागपुर के टेकड़ी में स्थित गणेश मंदिर में गणेश भगवान की पूजा की गई है। गणेशोत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी को होगा।

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अखंड सुहाग की कामना के लिए रखा जाने वाला व्रत तीज एवं चंद्रमा की पूजा का पर्व चौठ चंद्र सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया।

मंगलवार को तीज व्रती निर्जला रहकर बुधवार को पारण करेगी, जबकि चौठ चंद्र करने वाले व्रती मंगलवार की शाम में चंद्रमा का उदय होने के बाद पूजा अर्चना कर व्रत का समापन करेंगी।

आचार्य अविनाश शास्त्री ने बताया कि भारतीय सभ्यता संस्कृति में विवाह सबसे उत्तम एवं पवित्र संस्कार माना गया है। महिलाओं के लिए सौभाग्यवती होना पूर्व जन्म के अर्जित पुण्य का प्रभाव माना जाता है, इसलिए महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार का व्रत करती हैं।

मंगलवार को प्रातः वेला में सूर्योदय से दोपहर 2:40 बजे तक शुभ मुहूर्त है। तीज व्रत उदय कालिक तृतीया तिथि में किया जाता है एवं चतुर्थी चंद्र पूजन चंद्रमा के उदयकाल में किया जाता है। प्रातः दिलासे अपने पति के दीर्घायु होने की कामना के लिए महिलाओं द्वारा पूजा पाठ शुरू कर दिया जाएगा। जबकि दोपहर में 2:40 के बाद चतुर्थी तिथि का प्रवेश हो जाएगा। इसलिए शाम में 6:20 सूर्यास्त होने के बाद जब चंद्रमा का उदय होगा तो उस समय चंद्र पूजन किया जाएगा।

तीज के संबंध में कथा है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरिजा अर्थात पार्वती ने सबसे पहले तीज व्रत किया था। कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री जब विवाह के योग्य हुई तो पर्वतराज चिंतित हो गए तथा योग्य वर की तलाश में जुट गए। ऐसे में ही एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के विवाह प्रस्ताव लेकर पर्वतराज हिमालय के पास पहुंचे तो हिमालय तुरंत तैयार हो गए। लेकिन उनकी पुत्री गिरिजा उर्फ पार्वती शिव से विवाह करना चाहते थे। जिसमें पिता के राजी नहीं होने पर गिरिजा वन चली गई तथा अपने आत्मीय वर शिव की बालू एवं मिट्टी से प्रतिमा बनाकर पूजन करते हुए निर्जला रहकर नदी तट पर पूरी रात जगी रही।

गिरिजा द्वारा किए जा रहे आराधना से शिव का आसन डोला और उन्होंने आकर पूछा कि देवी तुम क्या चाहती हो, बताओ वह पूरा होगा। शिव के काफी पूछे जाने पर गिरिजा ने कहा कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो अपनी पत्नी होने का वरदान चाहिए और मजबूर होकर वरदान देते हुए शिव अंतर्ध्यान हो गए। इधर, पर्वतराज हिमालय अपनी पुत्री को खोजते हुए नदी किनारे पहुंचे तो पुत्री को शिव की उपासना करते पुत्री को देखकर पूरी जानकारी ली तथा पुत्री की इच्छा को ही सर्वमान्य बताया।

कहा जाता है कि जिस दिन पार्वती ने घर छोड़कर नदी किनारे बालू एवं मिट्टी से शिव की प्रतिमा बनाकर निराहार रह पूजन किया, वह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में हस्त नक्षत्र था। यह मुहूर्त अखंड सौभाग्य को देने वाला योग है, जो सौभाग्यवती स्त्री यह व्रत करती है वह आजीवन अखंड सौभाग्यवती रहती है। उसी दिन से तीज व्रत और पूजन की परंपरा चली आ रही है। इस व्रत से धन, धान्य, सुख, समृद्धि और चिरंजीवी पति एवं पुत्र मिलते हैं।

 

इनपुट एजेंसी

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Isuapur: प्रखंड क्षेत्र के मुख्य बाजार में दो वर्षो बाद शुक्रवार को महावीरी झंडा मेला का आयोजन किया जाएगा. मेला के आयोजन को लेकर अब तैयारियां अंतिम चरण में है.

महावीरी झंडा मेला को लेकर छपरा मशरक मुख्य मार्ग पर डटरा से लेकर चहपुरा तक सड़क के दोनो ओर महावीर के झंडे लहरा रहे है. ग्रामीण रोड पर भी लोगों द्वारा इस बार झंडा लगाया गया है. जो आने जाने वाले लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.

महावीरी झंडा मेला को लेकर मुख्य मंदिर इसुआपुर के साथ साथ पुरसौली, आतानगर, अचितपूर, सहवा, मुड़वा, सढ़वारा में तैयारिया जोरों पर है. उधर मुख्य बाजार में इन गांव के स्टेज भी बन चुके है साथ ही उसे सजाने की तैयारिया भी अंतिम चरण में है.

मेला के अवसर पर मुख्य बाजार क्षेत्र में झूले भी लगे है जहां बच्चें आकर अपने मनपसंद झूले के आनंद ले सकेगे.

इस अवसर पर जलेबी और सौंदर्य की दुकानें भी सजने लगी है. दो वर्षो बाद लगने वाले इस मेले को लेकर युवाओं में उत्साह देखा जा रहा है. हर तरफ जय श्री राम के झंडे लगे हुए है.

महावीरी झंडा मेला को लेकर प्रखंड क्षेत्र के लगभग सभी पंचायतों में स्थित हनुमान मंदिर पर रामचरित मानस का पाठ प्रारंभ है.जिससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है.

बताते चले कि इसुआपुर में प्रत्येक वर्ष भादो मास में महावीरी झंडा मेला का आयोजन किया जाता है. विगत दो वर्षो से कोरोना के कारण यह मेला नही लग पाया था. मेले में प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न पंचायत एवं गांव द्वारा ऑर्केस्ट्रा का स्टेज बनता है जिसपर पूरी रात नृत्य संगीत का प्रोग्राम होता है. इसके पूर्व संध्या समय में सभी गांव से महावीरी झंडा मुख्य बाजार पहुंचता है.

हाथी, घोड़ा और डीजे के गाजे बाजे के साथ आखाड़ा और खिलाड़ी अपने करतब को दिखाते हुए पहुंचते है. लोगों द्वारा भी उनके करतब को देखने के बाद पूरी रात मेले का आनंद लिया जाता है. मेले को देखने के लिए आसपास के प्रखंडों के साथ साथ जिला मुख्यालय से भी हजारों लोग इस मेले का आनंद उठाने के लिए आते है.

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