भारत में त्योहारों और धार्मिक मान्यताओं की समृद्ध परंपरा है और करवा चौथ उनमें से एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे खासतौर से उत्तर और पश्चिमी भारत की महिलाएं मनाती हैं। इस शुभ दिन पर महिलाएं अपने पति या भविष्य के जीवनसाथी की लंबी उम्र, सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।

करवा चौथ 2024 की तारीख और महत्व

करवा चौथ 2024 में यह पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है, जो पूर्णिमा के चौथे दिन होता है। इस दिन को ‘करक चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें ‘करवा’ एक विशेष मिट्टी के बर्तन को कहते हैं जिसका उपयोग चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत समाप्त करती हैं।

करवा चौथ का कठिन व्रत और उसका सांस्कृतिक महत्व

करवा चौथ का व्रत काफी कठोर होता है, जिसमें महिलाएं सूर्योदय से लेकर रात में चंद्रमा दिखने तक पानी और भोजन का त्याग करती हैं। यह व्रत न सिर्फ भक्ति का प्रतीक है बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है, खासकर उन इलाकों में जहां गेहूं की खेती होती है। कई जगहों पर मिट्टी के बर्तनों को ‘करवा’ कहा जाता है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि यह व्रत एक अच्छी फसल की कामना से जुड़ा हो सकता है। खासतौर पर उत्तर-पश्चिमी राज्यों में जहां गेहूं प्रमुख फसल है, वहां यह प्रथा अधिक प्रचलित है।

 

करवा चौथ 2024: पूजा का समय और चंद्रोदय

करवा चौथ के पूजा विधि और समय क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ बदल सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख शहरों के लिए पूजा और चंद्रोदय का समय दिया गया है:

 

दिल्ली एनसीआर:

तारीख: 20 अक्टूबर 2024 (रविवार)

पूजा मुहूर्त: 05:46 PM से 07:02 PM (1 घंटा 16 मिनट)

व्रत समय: 06:25 AM से 07:54 PM (13 घंटे 29 मिनट)

चंद्रोदय: 07:54 PM

 

मुंबई, महाराष्ट्र:

पूजा मुहूर्त: 06:12 PM से 07:26 PM (1 घंटा 14 मिनट)

व्रत समय: 06:34 AM से 08:37 PM (14 घंटे 02 मिनट)

चंद्रोदय: 08:37 PM

 

बेंगलुरु, कर्नाटक:

पूजा मुहूर्त: 05:58 PM से 07:11 PM (1 घंटा 13 मिनट)

व्रत समय: 06:11 AM से 08:31 PM (14 घंटे 21 मिनट)

चंद्रोदय: 08:31 PM

 

इस शुभ पर्व पर महिलाएं दिनभर निर्जल व्रत रखकर चंद्रमा का इंतजार करती हैं, और चंद्र दर्शन के बाद ही अपना व्रत तोड़ती हैं। यह पर्व न सिर्फ प्रेम और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों से भी जुड़ा हुआ है।

 

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा 

ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ 

8080426594/9545290847

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Chhapra: शहर में भगवान बाजार भरत मिलाप आयोजन हुआ बृहस्पतिवार की रात में भाई श्री राम व भरत जब आपस में गले मिले तो सबकी आंखे नम हो गयी। राम और भरत ने एक दूसरे की कुशल पूछी। भरत ने पूछा भैया आप हमें छोड़कर क्यों चले आये। सभी अयोध्यावसी अनाथ हो गए हैं। यह कहकर भारत बिलख-बिलख कर रोने लगे भाई को रोता देख श्री राम भी भाव विहवल हो गये। चरणों से लगा लिया। दोनों की आंखों से प्रेम की आँसूधारा बह चली। आंखों की मूल भाषा ने एक दूसरे के दर्द और भाव को समझा।

इधर श्रद्धालुओं ने भी भातृप्रेम कि इस अनुपम दृश्य देख खुद को रोक नहीं पाये। कहीं तो बोल पड़े भाइयों का यह प्रेम अब तो दुर्लभ है। इधर व्याकुल भारत को समझाते हुए श्री राम ने रुंधे गले से माताओं- पिता का हाल पूछा। सबकी खैर जानी दोनों भाइयों देर तक गले लग रहे। इससे पहले भरत मिलाप को लेकर भब्य शोभायात्रा निकाली गयी। भरत जी, शत्रुघ्न जी के साथ भाई भगवान राम से मिलने के लिए के पूरे लाव लश्कर के साथ निकली। हाथी, घोड़ा बैंड बाजा के साथ भरत जी की शोभायात्रा निकली। रथ पर सवार होकर भरत जी, शत्रुघ्न जी एवं वशिष्ठ मुनि के साथ भाई राम से मिलने गये।

इनके साथ ही भगवान राम की आरती भी की गई इससे पहले मुख्य अतिथि छपरा नगर निगम पूर्व महापौर राखी गुप्ता एवं समाजसेवी ममता सिन्हा ने कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया।

उन्होंने कहा की भाई भरत और मर्यादा पुरुषोत्तम राम का हमारे लिए आज भी आदर्श है। मौके पर वर्तमान उप महापौर रागिनी देवी, भरत मिलाप कमेटी के अध्यक्ष हरेंद्र यादव और अन्य लोग उपस्थित थे।

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मीरजापुर, 05 अक्टूबर (हि.स.)। “या देवी सर्व भूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः“। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन शनिवार को मां विंध्यवासिनी के दर्शन-पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु विंध्याचल धाम पहुंचे। श्रद्धालुओं ने विंध्यवासिनी के चंद्रघंटा रूप का विधि विधान से पूजा अर्चना की।

गंगा घाटों पर स्नान के बाद दर्शनार्थी मां के दर्शन के लिए गर्भगृह के द्वार पर कतारबद्ध हो गए। श्रद्धाभाव से मां विंध्यवासिनी का जयकारा लगाते हुए शीश नवाया। विध्यधाम मां विंध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। आदि शक्ति मां विध्यवासिनी देवी का तीसरे दिन गुड़हल, कमल व गुलाब के पुष्पों से भव्य श्रृंगार व पूजन-अर्चन हुआ। भोर की मंगला आरती के बाद दर्शन पूजन का क्रम आरम्भ हो गया। घंटा घड़ियाल, शंख, नगाड़ा एवं शहनाई की गूंज से समूचा धाम गुंजायमान रहा। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं से विंध्यधाम पटा रहा।

साधक विधि-विधान से मंदिर की छत पर शक्ति पाठ कर रहे हैं। इस दौरान मंदिर की छत पर साधकों की भारी भीड़ है।

वहीं, दूसरी तरफ दर्शनार्थी अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी कर रहे हैं। शहनाई और महिलाओं के गीतों के बीच बच्चों का मुंडन देखते ही बन रहा था।

त्रिकोण परिक्रमा कर पुण्य के भागी बने भक्त

मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन करने के बाद श्रद्धालु त्रिकोण परिक्रमा कर पुण्य के भागी बने। कालीखोह स्थित महाकाली के भव्य स्वरूप का दर्शन कर श्रद्धालु निहाल हो उठे। वहीं पहाड़ पर विराजमान मां अष्टभुजी देवी के दरबार में दर्शन-पूजन का क्रम अनवरत चलता रहा। मंदिर के बाहर कतार में खड़े श्रद्धालु माता का जयकारा लगाते मंदिर की तरफ बढ़े जा रहे थे।

पहाड़ पर घरौंदा बना, मांगी मन्नतें

नवरात्रि में मां विंध्यवासिनी, मां काली और मां अष्टभुजा के दर्शन कर त्रिकोण यात्रा करने की परंपरा है। त्रिकोण यात्रा के दौरान श्रद्धालु कालीखोह से अष्टभुजा जाते समय रास्ते में पत्थरों से घर बनाते हैं। मान्यता है कि त्रिकोण के दौरान पत्थरों से घर बनाने वाले लोगों के स्वयं का घर बनने की इच्छा मां विंध्यवासिनी अवश्य पूर्ण करती है।

आकर्षक ढंग से सजाया गया ओझला पुल

नवरात्र मेला पर ओझला पुल को विद्युत झालरों से आकर्षक ढंग से सजाया गया है। रंग-बिरंगे प्रकाश में पुल की नक्काशी अलग ही छटा बिखेर रही है। यहां से गुजरने वाले लोग इसे देखने के लिए एक पल को अवश्य रूक जा रहे हैं।

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नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना विशेष महत्व रखती है। माता ब्रह्मचारिणी ज्ञान, शांति और संयम की देवी हैं। इनकी उपासना से मन शांत होता है और इच्छाएं पूरी होती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं?
मां ब्रह्मचारिणी माता दुर्गा के दस महाविद्याओं में से एक हैं। वे ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली हैं और इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही शांत और निश्चल होता है। वे ज्ञान और तपस्या की देवी हैं।

माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र
माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए कई मंत्र हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंत्र हैं:

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। इस मंत्र का जप करने से मन शांत होता है और मानसिक संतुलन मिलता है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः। इस मंत्र का जप करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः। इस मंत्र का जप करने से घर में सुख-शांति का वास होता है और इच्छाएं पूरी होती हैं।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कई लाभ होते हैं, जैसे माता ब्रह्मचारिणी ज्ञान की देवी हैं। इनकी पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है और विद्यार्थियों के लिए यह विशेष रूप से लाभदायक है। माता ब्रह्मचारिणी शांति और संयम की देवी हैं। इनकी पूजा करने से मन शांत होता है और संयम में वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता की पूजा करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।

पूजा विधि

स्नान: स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
पूजा स्थल: पूजा स्थल को साफ करें और माता का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
दीपक: दीपक जलाएं।
धूप: धूप जलाएं।
अर्ध्य: जल चढ़ाएं।
फूल: फूल चढ़ाएं।
मंत्र जाप: उपरोक्त मंत्रों का जाप करें।
आरती: आरती करें।

भोग
माता ब्रह्मचारिणी को फल, मिठाई और सात्विक भोजन अर्पित किया जाता है।

कौन करें माता ब्रह्मचारिणी की पूजा
विद्यार्थी, तपस्वी, योगी और सभी भक्तजन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा कर सकते हैं। माता सभी की मनोकामनाएं पूरी करती हैं

नवरात्रि के दूसरे दिन का रंग
नवरात्रि के दूसरे दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। इसलिए इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनकर और पीले रंग के फूल चढ़ाकर माता की पूजा करनी चाहिए।

माता ब्रह्मचारिणी की आराधना से जीवन में शांति, ज्ञान और समृद्धि आती है। नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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– अबतक दो लाख से अधिक भक्तों ने किया दर्शन-पूजन
– मा विंध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा विंध्यधाम

मीरजापुर, 03 अक्टूबर (हि.स.)। आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी के धाम विंध्याचल में शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन गुरुवार की भोर से ही श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। हर कोई मां की झझलक पाने को लालायित दिखा। अबतक दो लाख से अधिक दर्शनार्थियों ने विंध्यवासिनी के शैलपुत्री स्वरूप के दर्शन किए।

मां विंध्यवासिनी के धाम में बुधवार की देर रात से ही भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। भोर की मंगला आरती के बाद घंटा-घड़ियाल के बीच विंध्यधाम मां विध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। हाथ में नारियल, चुनरी, माला-फूल प्रसाद के साथ कतारबद्ध श्रद्धालु मां की भक्ति में लीन दिखे। इस अवसर पर मां विंध्यवासिनी का भव्य श्रृंगार किया गया था। मंदिर को फूलों व रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था, जो अलौकिक छटा बिखेर रहा था। किसी ने झांकी तो किसी ने गर्भगृह से मां का दर्शन-पूजन कर मंगलकामना की। विंध्यवासिनी के दर्शन-पूजन के बाद भक्तों ने मंदिर परिसर पर विराजमान समस्त देवी-देवताओं के चरणों में शीश झुकाया। इसके बाद भक्तों ने मां काली और मां अष्टभुजा का दर्शन कर त्रिकोण परिक्रमा पूर्ण की।

पूजन-अनुष्ठान के लिए भक्तों ने जमाया डेरा

नवरात्र के प्रथम दिन ही विंध्याचल के सभी होटल लगभग भर गए। नौ दिनों तक पूजन-अनुष्ठान करने वाले भक्त पहले ही डेरा जमा चुके हैं। मंदिर की छत पर पूजन-अनुष्ठान का दौर शुरू हो गया, जो नवमी तक चलेगा।

श्रद्धालुओं में दिखी विंध्य कारिडोर देखने को उत्सुकता

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट विंध्य कारिडोर को जीवंत बनाने के लिए जिला प्रशासन ने पूरी ताकत झोंक रखी है। ध्वस्तीकरण के बाद विध्यधाम पूर्ण रूप से संकरी गलियों से मुक्त हो गया है। इससे श्रद्धालुओं को काफी सहूलियत होने लगी है।अब श्रद्धालु विंध्यवासिनी मंदिर से ही गंगा दर्शन भी कर रहे हैं। श्रद्धालु विंध्य कारिडोर देखने को काफी उत्सुक दिखे। कहा कि कारिडोर बनने से निश्चित तौर पर श्रद्धालुओं की आमद बढ़ेगी।

रोप-वे से आसान हुई श्रद्धालुओं की राह

पर्यटन विभाग ने 16 करोड़ की लागत से पीपीपी माडल पर विंध्य पर्वत पर रोप-वे का निर्माण कराया है। यह पूर्वाचल का पहला रोप-वे है। पहले मां अष्टभुजा व मां काली के दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं को सीढ़ी चढ़कर जाना होता था, जो बुजुर्ग श्रद्धालुओं के लिए खासा थकान भरा होता था। अब रोप-वे संचालन शुरू होने से श्रद्धालुओं की राह आसान हो गई है और काफी सहूलियत भी होने लगी है।

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Chhapra: शारदीय नवरात्र के पहले दिन गुरुवार काे माता रानी के ​मंदिरों में सुबह से भक्तों की भीड़ लगी हुई है। शहर में स्थित सभी देवी मंदिरों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। शुभ मुहूर्त में घरों भक्त देवी पूजा के लिए स्थापना कर रहें है।

माता रानी की घरों एवं मंदिरों में सात दिन भक्त पूजा अर्चना करेंगे। शारदीय नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना करने में भक्त लगे हुए है। प्रात: काल से ही लोगों ने विधि विधान से कलश स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू कर दिया है।

जिले के अंबिका भवानी शक्तिपीठ, गढ़ देवी मंदिर समेत तमाम देवी मंदिर पर सुबह से ही भीड़ जुटी है। मां भगवती के दिव्य स्वरूपों का दर्शन कर भक्त माता रानी की विधिक पूजा अर्चना कर रहे हैं।

मंदिर प्रबंधन ने सुरक्षा के मद्देनजर सीसीटीवी कैमरे लगाए हुए हैं। इसके साथ ही भीड़ नियंत्रण के लिए बैरिकेडिंग भी की गई हैं। साथ ही पुलिस बल भी शहर के प्रमुख मंदिरों में तैनात किए गये हैं।

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दुर्गासप्तशी के पाठ का महत्व बहुत ही अपरंपार है। यह हिन्दू धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ में एक है। भगवती के कृपा के इसमें सुन्दर बड़े बड़े गूढ़ साधन के रहस्य भरे है।  दुर्गासप्तशी एक ऐसा प्रसाद है जो प्राणी इसे ग्रहण कर लेता है वह धन्य हो जाता है. इसके पाठ करने से देवी के विभिन्न शक्तियों को ग्रहण करने का साधन है।  कर्म और भक्ति की अलग अलग मन्दाकिनी बहाने वाला ग्रन्थ है।

मार्कण्डेय पुराण में वर्णित देवी के अलग अलग रूप का वर्णन किया हुआ है. इस पाठ को शतचंडी, नवचंडी तथा चंडी पाठ भी कहा जाता है. व्यक्ति के ऊपर मानसिक परेशानी, पारिवारिक कष्ट, असाध्य रोग से परेशान है इस अवस्था में दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही लाभकारी होता है. इस पाठ को करने से परिवार में बनी हुई नकारत्मक शक्ति, उपरी बाधा से परेशान है दुर्गा सप्तसी के पाठ करने से सभी तरह परेशानी दूर होते है। देवी भगवत पुराण में वर्णन है ऐश्वर्यकामी रजा सुरथ अपने अखंड साम्राज्य को प्राप्त किया. इस पाठ को करते समय कई नियम है उस नियम को पालन करना पड़ता है.

(1) दुर्गासप्तशी के पाठ करने वाले व्यक्ति अपना मन एकाग्रचित होकर, प्रतिदिन नियम पालन करना पड़ता है जैसे पाठ करने वाले शुद्ध भोजन करे, लाल वस्त्र धारण करे. ललाट पर भस्म या लाल चन्दन लगाए. एक समय भोजन करे. संभवत हो सके फलहार करे.

(2) दुर्गासप्तशी के पाठ आरम्भ करने के पहले गणेश जी का पूजन करे अपने कुलदेवता का पूजन करे. अगर कलश स्थापना किए है उनका पूजन करे फिर माता को भोग लगाकर फिर पाठ को आरम्भ करे .

(3) दुर्गासप्तशी का पाठ करने वाले को ध्यान देना चाहिए किताब को रखते समय दुर्गासप्तशी को लाल कपड़ा में लपेटकर केले के पते पर रखे. पाठ आरम्भ करने के पहले पुस्तक का पूजन करे फिर पाठ को आरंभ करे.

(4) दुर्गासप्तशी में 13 अध्याय है, कुल 700 श्लोक है. इसके आलावा इसमें कुछ विशेष पाठ है जिसे करने पर व्यक्ति के जीवन में बनी हुई परेशानी दूर होती है और सभी कार्य पूर्ण होते है.

(5) दुर्गासप्तशी का पाठ आप सम्पूर्ण नहीं कर सकते तो चरित्र पाठ का करे। पुरे पाठ को चरित्र में दिया गया है. जिसे पाठ करने वाले को आसानी हो सके. इस पाठ में तीन चरित्र में बाटा गया है प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र, उतर चरित्र, अगर इसमें भी करने में सक्षम नहीं है अध्याय पाठ कर सकते है.

(6) दुर्गा सप्तशती के पाठ करने वाले बात को ध्यान में रखे पाठ का उच्चरण करते समय सावधानी रखे उच्चारण गलत नहीं होना चाहिए.

(7) दुर्गासप्तशती के पाठ आरंभ करने के पहले कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करे. पाठ करते समय अधुरा पाठ छोड़कर नहीं उठे। इससे पाठ का फल प्राप्त नहीं होता है.

(8) पाठ के समाप्त होने बाद सिद्धिकुंजिका का पाठ करे। फिर नवार्ण मंत्र का जाप करे। फिर पूजन का आरती करे और शंख बजाएं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करे.

(9) पाठ करने के दौरान आपके दौरान भूल चुक से कोई गलती हो जाय आरती करने के बाद क्षमा प्रार्थना का पाठ को पढ़े और दोनों हाथ जोड़कर माता से आग्रह करे
मेरे द्वारा किए गए अपराध को क्षमा करे.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Chhapra:  शारदीय नवरात्र की शुरुआत गुरुवार से पदम तथा बुधादित्य योग के साथ ही चित्रा नक्षत्र में होने जा रही है। इसके चलते मंदिराें और घर-घर में कलश स्थापना की जाएगी। नौ दिनों तक माता रानी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाएगी। पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही नौ दिन मां जगदम्बा के अलग-अलग रूपों की आराधना होगी।

माता के श्रंगार के लिए चुनरी, प्रसाद व पूजन सामग्री की दुकानों पर लोगों की एक दिन पूर्व बुधवार को भीड़ नजर आई। वहीं मंदिरों में सजावट सहित अन्य तैयारियां अंतिम दौर में हैं।  प्रातःकाल का समय सर्वश्रेष्ठ बताया है। नवरात्र के पहले दिन चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग का संयोग बनने पर शास्त्रों में अभिजीत मुहूर्त के समय घट स्थापना का प्रावधान है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा ने बताया कि 03 अक्तूबर 2024 दिन गुरूवार सुबह से लेकर 03:17 मिनट दोपहर तक कलश स्थापना किया जायेगा.

प्रतिपदा तिथि का आरम्भ 02 अक्तूबर 2024 दिन बुधवार रात्रि 11:05 से, प्रतिपदा तिथि का समाप्त 04 सितंबर 2024 रात्रि 01:01 मिनट तक

हस्त नक्षत्र 03 अक्तूबर 2024.दोपहर 03 :17 मिनट तक रहेगा. अभिजित मुहूर्त सुबह 11:14 से 12:02 दोपहर तक रहेगा। अमृत काल सुबह 08:45 से 10:33 सुबह तक रहेगा। 

इसे भी पढ़ें: शारदीय नवरात्रि: कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

 

 

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शारदीय नवरात्रि व्रत का आरम्भ पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्लपक्ष के प्रतिपदा तिथि से होता है और. नव दिन तक देवी के अलग अलग रूप की पूजा तथा आराधना की जाती है.

माता के भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नवमी तक बड़े धूम धाम से माता का पूजन करते है. साथ ही कलश स्थापित करते है.

नवरात्रि में अपने शक्ति के अनुसार माता का पूजन करे. दुर्गा सप्तशी का पाठ करें. शारदीय नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना या किसी ब्राह्मण से पाठ को करवाना बहुत पुण्यकारी होता है.

इस वर्ष नवरात्रि का आरंभ 3 अक्तूबर 2024 दिन गुरुवार से हो रहा है। आपको बता दे कि इस वर्ष नवरात्रि में चतुर्थी तिथि का वृद्धि हुआ है और नवमी तिथि का क्षय हो गया है. इसलिए अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन मनाई जाएगी। 

कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त.

3 अक्तूबर 2024 दिन गुरूवार सुबह से लेकर 03:17 मिनट दोपहर तक कलश स्थापना किया जायेगा.

प्रतिपदा तिथि का आरम्भ 02 अक्तूबर 2024 दिन बुधवार रात्रि 11:05 से

प्रतिपदा तिथि का समाप्त 04 सितंबर 2024 रात्रि 01:01 मिनट तक

हस्त नक्षत्र 03 अक्तूबर 2024.दोपहर 03 :17 मिनट तक रहेगा.

अभिजित मुहूर्त
सुबह 11:14 से 12:02 दोपहर तक

अमृत काल
सुबह 08:45 से 10:33 सुबह तक

कैसे करे कलश स्थापना

व्रत करने वाले सुबह में नित्य क्रिया से निर्वित होकर साफ कपड़ा पहने. संभवतः नया वस्त्र लाल रंग का धारण करे. पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल छिडके गंगा जी का थोडा मिटटी लाए या साफ जगह से मिटटी को लेकर उसमे जौ या सप्तधान्य को मिलाए. मिटटी का कलश रखे उस पर स्वस्तिक बनाएं। लाल कपड़ा से कलश को लपेट दे. उसमे आम का पत्ता सुपारी, फुल, पैसा डाले, दूर्वा, अक्षत डाले, उसके ऊपर नारियल में मौली लपेटकर कलश पर रखे. सामने छोटी चौकी रखे पर लाल कपड़ा का आसन बिछाए. माता की प्रतिमा या फोटो रखे. उनको फुल, फल, सिंदूर, चन्दन लगाए अगरबती दिखाए तथा भोग लगाये. फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करे या दुर्गा चालीसा का पाठ करे.

इन चीजों को वर्जित रखे

अगर आप नवरात्रि में माता का पूजन कर रहे है अपने घर पर कलश स्थापना किए है इस अवधि में घर के अंदर मांस, मछली, मदिरा तथा तामसी वस्तु जैसे लहसुन, प्याज नही खाए, काला रंग का वस्त्र नही पहने. नवरात्रि में किसी के साथ लेन देन वर्जित रखे. दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले चमरे की वस्तु जैसे बेल्ट, पर्स, चपल का प्रयोग नहीं करे.

 

 

 

जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है .

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. यह व्रत महिलाएं के लिए बहुत ही कठिन व्रत होता है.व्रत के दिन महिलाएं पुरे दिन निर्जला व्रत रहकर यह व्रत करती है इस व्रत को करने के लिए कठिन नियम का पालन करना पड़ता है इस त्योहार में तिथि का मिलना बहुत महत्वपूर्ण रहता है.

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत करने का विधान है माताएं पुरे दिन उपवास रहकर संध्या काल में जीमूतवाहन महराज की पूजा करती है और अपने पुत्र की लम्बी आयु के लिए कामना करती है.

यह व्रत सप्तमी से आरम्भ होता है और नवमी तिथि तक व्रत चलता है.

इस व्रत को करने का मुख्य कारण होता है संतान की लम्बी उम्र की कामना करने के लिए किया जाता है देश में इस व्रत को अलग -अलग नाम से जाना जाता है इसे जितिया, जीमूतवाहन, जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से जाना जाता है, इस व्रत का आरंभ नहाय खाय से आरंभ होता है.

कब है जीवित्पुत्रिका व्रत

इस वर्ष 24 अक्तूबर 2024 दिन मंगलवार को नहाय खाए होगा.
25 अक्तूबर 2024 दिन बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जायेगा.

26 अक्तूबर दिन गुरुवार को व्रत का पारण सूर्योदय के बाद होगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत का आरम्भ कैसे करे

यह व्रत कथा के अनुसार सप्तमी से रहित और उदय तिथि की अष्टमी को व्रत करे यानि सप्तमी विद्ध अष्टमी जिस दिन हो उस दिन व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी से को व्रत करे और नवमी में पारण करे. अगर इस बात पर ध्यान नहीं देने से व्रत का फल नहीं मिलता है .

व्रत का नियम 

व्रती को स्नान करके शुद्ध वस्त्र धरण करे.सूर्य भगवन को पूजन करे जीमूतवाहन की प्रतिमा को धुप दीप ,अगरबती दिखाकर चावल पुष्प आदि का अर्पित करे. इस व्रत में मिट्टी का या गाय के गोबर से चिल व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है माथे पर लाल सिंदूर का टिका लगाया जाता है.पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुने पारण के बाद ब्राह्मण को दान दे.

पारण का नियम
जीवित्पुत्रिका व्रत का का पारण सूर्योदय के बाद किया जाता है इस दिन प्रातः काल में स्नान करके अपने कुलदेवता का पूजन करे उसके बाद पारण करे मान्यता यह है जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण गाय के दूध से करे .

जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है .

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. मृतक पूर्वजों को समर्पित एक महत्वपूर्ण अवधि है. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बड़ा महत्व माना जाता है. इस दौरान लोग अपने पितरों को प्रसन्न और संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं. माना जाता है कि पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से होती है. इस दिन उन पूर्वजों के सम्मान में श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु महीने की पूर्णिमा के दिन हुई थी.

मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी लोक आती हैं और प्रसाद व प्रार्थनाओं के प्रति सबसे अधिक ग्रहणशील होती हैं. इस दौरान पितरों का श्राद्ध करने से जन्म कुंडली में व्याप्त पितृ दोष से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इस साल पितृ पक्ष का आरंभ कब से हो रहा है 17 या 18 सितंबर इसे लेकर लोगों में दुविधा है.

हिंदू पंचांग के अनुसार तो पितृ पक्ष का आरंभ 17 सितंबर से होने जा रहा है। लेकिन, इस दिन श्राद्ध नहीं किया जायेगा. दरअसल, इस दिन भाद्रपद पूर्णिमा का श्राद्ध है और पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के कार्य प्रतिपदा तिथि से होते हैं इसलिए 17 तारीख को ऋषियों के नाम से तर्पण किया जायेगा. श्राद्ध पक्ष का आरंभ प्रतिपदा तिथि से होता है. ऐसे में 18 सितंबर से पिंडदान, ब्राह्मण भोजन, तर्पण, दान आदि कार्य आरंभ हो जायेगा. पितृ पक्ष का आरंभ देखा जाये तो 18 सितंबर से हो रहा है और 2 अक्टूबर तक यह चलेगा.

शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो पितृ पक्ष में सुबह और शाम के समय देवी देवताओं की पूजा को शुभ बताया गया है. साथ ही पितरों की पूजा के लिए दोपहर का समय होता है. वहीं पितरों की पूजा के लिए सबसे उत्तम समय 11:30 से 12:30 बजे तक बताया जाता है. इसलिए आपको पंचांग में अभिजीत मुहूर्त देखने के बाद श्राद्ध कर्म करें.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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अनंत चतुर्दशी का त्योहार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष के चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. हिदू धर्म में इस त्योहार का बहुत बड़ा महत्व है. इसे अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है.

वैदिक मान्यता यह है कि अनंत भगवान ने सृष्टि के आरम्भ में चौदह लोको यानि तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू ,भुवः, स्वः,जन, तप, सत्य और मह की रचना की थी। इन सभी लोको के पालन और रक्षा करने के लिए वह विष्णु ने स्वयं भी चौदह रूप में प्रगट हुए थे. जिससे लोक में अनंत प्रतित होने लगे इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला यह व्रत होता है.

मान्यता यह है इस दिन भगवन विष्णु के अनंत स्वरूप माता यमुना तथा शेषनाग की पूजा की जाती है। इस पूजा से भक्तो का कल्याण होता है.

कब मनाया जायेगा अनंत पूजा

17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त
सुबह 05: 36 से 11:44 मिनट तक शुभ है

चतुर्दशी तिथि का आरंभ 16 सितम्बर 2024 दोपहर 03:10 बजे से

चतुर्दशी तिथि का समाप्त 17 सितम्बर 2024 सुबह 11:44 सुबह

क्या है मान्यता

मान्यता यह है कि भगवान विष्णु का पूजन करने से परिवार में संपन्नता बनी रहती है तथा अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है. अनंत का व्रत तथा पूजन करने वाले सुबह में नित्य क्रिया से निर्वित होकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करे, भगवन विष्णु का अलग -अलग रूप का पूजन करे साथ 14 गांठ वाली सूत्र कलाई पर बांधे इसका मान्यता है 14 लोक का रक्षा किया था इसलिए सूत्र बंधा जाता है। फिर विष्णु सह्त्रनाम का पाठ करे. आरती करे बिना नमक का भोजन करे. यह दिन शुभ कार्य करने के लिए बहुत शुभ दिन होता है.यात्रा के लिए बहुत ही उत्तम दिन होता है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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