दुर्गासप्तशी के पाठ का महत्व बहुत ही अपरंपार है। यह हिन्दू धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ में एक है। भगवती के कृपा के इसमें सुन्दर बड़े बड़े गूढ़ साधन के रहस्य भरे है।  दुर्गासप्तशी एक ऐसा प्रसाद है जो प्राणी इसे ग्रहण कर लेता है वह धन्य हो जाता है. इसके पाठ करने से देवी के विभिन्न शक्तियों को ग्रहण करने का साधन है।  कर्म और भक्ति की अलग अलग मन्दाकिनी बहाने वाला ग्रन्थ है।

मार्कण्डेय पुराण में वर्णित देवी के अलग अलग रूप का वर्णन किया हुआ है. इस पाठ को शतचंडी, नवचंडी तथा चंडी पाठ भी कहा जाता है. व्यक्ति के ऊपर मानसिक परेशानी, पारिवारिक कष्ट, असाध्य रोग से परेशान है इस अवस्था में दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही लाभकारी होता है. इस पाठ को करने से परिवार में बनी हुई नकारत्मक शक्ति, उपरी बाधा से परेशान है दुर्गा सप्तसी के पाठ करने से सभी तरह परेशानी दूर होते है। देवी भगवत पुराण में वर्णन है ऐश्वर्यकामी रजा सुरथ अपने अखंड साम्राज्य को प्राप्त किया. इस पाठ को करते समय कई नियम है उस नियम को पालन करना पड़ता है.

(1) दुर्गासप्तशी के पाठ करने वाले व्यक्ति अपना मन एकाग्रचित होकर, प्रतिदिन नियम पालन करना पड़ता है जैसे पाठ करने वाले शुद्ध भोजन करे, लाल वस्त्र धारण करे. ललाट पर भस्म या लाल चन्दन लगाए. एक समय भोजन करे. संभवत हो सके फलहार करे.

(2) दुर्गासप्तशी के पाठ आरम्भ करने के पहले गणेश जी का पूजन करे अपने कुलदेवता का पूजन करे. अगर कलश स्थापना किए है उनका पूजन करे फिर माता को भोग लगाकर फिर पाठ को आरम्भ करे .

(3) दुर्गासप्तशी का पाठ करने वाले को ध्यान देना चाहिए किताब को रखते समय दुर्गासप्तशी को लाल कपड़ा में लपेटकर केले के पते पर रखे. पाठ आरम्भ करने के पहले पुस्तक का पूजन करे फिर पाठ को आरंभ करे.

(4) दुर्गासप्तशी में 13 अध्याय है, कुल 700 श्लोक है. इसके आलावा इसमें कुछ विशेष पाठ है जिसे करने पर व्यक्ति के जीवन में बनी हुई परेशानी दूर होती है और सभी कार्य पूर्ण होते है.

(5) दुर्गासप्तशी का पाठ आप सम्पूर्ण नहीं कर सकते तो चरित्र पाठ का करे। पुरे पाठ को चरित्र में दिया गया है. जिसे पाठ करने वाले को आसानी हो सके. इस पाठ में तीन चरित्र में बाटा गया है प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र, उतर चरित्र, अगर इसमें भी करने में सक्षम नहीं है अध्याय पाठ कर सकते है.

(6) दुर्गा सप्तशती के पाठ करने वाले बात को ध्यान में रखे पाठ का उच्चरण करते समय सावधानी रखे उच्चारण गलत नहीं होना चाहिए.

(7) दुर्गासप्तशती के पाठ आरंभ करने के पहले कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करे. पाठ करते समय अधुरा पाठ छोड़कर नहीं उठे। इससे पाठ का फल प्राप्त नहीं होता है.

(8) पाठ के समाप्त होने बाद सिद्धिकुंजिका का पाठ करे। फिर नवार्ण मंत्र का जाप करे। फिर पूजन का आरती करे और शंख बजाएं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करे.

(9) पाठ करने के दौरान आपके दौरान भूल चुक से कोई गलती हो जाय आरती करने के बाद क्षमा प्रार्थना का पाठ को पढ़े और दोनों हाथ जोड़कर माता से आग्रह करे
मेरे द्वारा किए गए अपराध को क्षमा करे.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Chhapra:  शारदीय नवरात्र की शुरुआत गुरुवार से पदम तथा बुधादित्य योग के साथ ही चित्रा नक्षत्र में होने जा रही है। इसके चलते मंदिराें और घर-घर में कलश स्थापना की जाएगी। नौ दिनों तक माता रानी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाएगी। पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही नौ दिन मां जगदम्बा के अलग-अलग रूपों की आराधना होगी।

माता के श्रंगार के लिए चुनरी, प्रसाद व पूजन सामग्री की दुकानों पर लोगों की एक दिन पूर्व बुधवार को भीड़ नजर आई। वहीं मंदिरों में सजावट सहित अन्य तैयारियां अंतिम दौर में हैं।  प्रातःकाल का समय सर्वश्रेष्ठ बताया है। नवरात्र के पहले दिन चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग का संयोग बनने पर शास्त्रों में अभिजीत मुहूर्त के समय घट स्थापना का प्रावधान है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा ने बताया कि 03 अक्तूबर 2024 दिन गुरूवार सुबह से लेकर 03:17 मिनट दोपहर तक कलश स्थापना किया जायेगा.

प्रतिपदा तिथि का आरम्भ 02 अक्तूबर 2024 दिन बुधवार रात्रि 11:05 से, प्रतिपदा तिथि का समाप्त 04 सितंबर 2024 रात्रि 01:01 मिनट तक

हस्त नक्षत्र 03 अक्तूबर 2024.दोपहर 03 :17 मिनट तक रहेगा. अभिजित मुहूर्त सुबह 11:14 से 12:02 दोपहर तक रहेगा। अमृत काल सुबह 08:45 से 10:33 सुबह तक रहेगा। 

इसे भी पढ़ें: शारदीय नवरात्रि: कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

 

 

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शारदीय नवरात्रि व्रत का आरम्भ पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्लपक्ष के प्रतिपदा तिथि से होता है और. नव दिन तक देवी के अलग अलग रूप की पूजा तथा आराधना की जाती है.

माता के भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नवमी तक बड़े धूम धाम से माता का पूजन करते है. साथ ही कलश स्थापित करते है.

नवरात्रि में अपने शक्ति के अनुसार माता का पूजन करे. दुर्गा सप्तशी का पाठ करें. शारदीय नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना या किसी ब्राह्मण से पाठ को करवाना बहुत पुण्यकारी होता है.

इस वर्ष नवरात्रि का आरंभ 3 अक्तूबर 2024 दिन गुरुवार से हो रहा है। आपको बता दे कि इस वर्ष नवरात्रि में चतुर्थी तिथि का वृद्धि हुआ है और नवमी तिथि का क्षय हो गया है. इसलिए अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन मनाई जाएगी। 

कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त.

3 अक्तूबर 2024 दिन गुरूवार सुबह से लेकर 03:17 मिनट दोपहर तक कलश स्थापना किया जायेगा.

प्रतिपदा तिथि का आरम्भ 02 अक्तूबर 2024 दिन बुधवार रात्रि 11:05 से

प्रतिपदा तिथि का समाप्त 04 सितंबर 2024 रात्रि 01:01 मिनट तक

हस्त नक्षत्र 03 अक्तूबर 2024.दोपहर 03 :17 मिनट तक रहेगा.

अभिजित मुहूर्त
सुबह 11:14 से 12:02 दोपहर तक

अमृत काल
सुबह 08:45 से 10:33 सुबह तक

कैसे करे कलश स्थापना

व्रत करने वाले सुबह में नित्य क्रिया से निर्वित होकर साफ कपड़ा पहने. संभवतः नया वस्त्र लाल रंग का धारण करे. पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल छिडके गंगा जी का थोडा मिटटी लाए या साफ जगह से मिटटी को लेकर उसमे जौ या सप्तधान्य को मिलाए. मिटटी का कलश रखे उस पर स्वस्तिक बनाएं। लाल कपड़ा से कलश को लपेट दे. उसमे आम का पत्ता सुपारी, फुल, पैसा डाले, दूर्वा, अक्षत डाले, उसके ऊपर नारियल में मौली लपेटकर कलश पर रखे. सामने छोटी चौकी रखे पर लाल कपड़ा का आसन बिछाए. माता की प्रतिमा या फोटो रखे. उनको फुल, फल, सिंदूर, चन्दन लगाए अगरबती दिखाए तथा भोग लगाये. फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करे या दुर्गा चालीसा का पाठ करे.

इन चीजों को वर्जित रखे

अगर आप नवरात्रि में माता का पूजन कर रहे है अपने घर पर कलश स्थापना किए है इस अवधि में घर के अंदर मांस, मछली, मदिरा तथा तामसी वस्तु जैसे लहसुन, प्याज नही खाए, काला रंग का वस्त्र नही पहने. नवरात्रि में किसी के साथ लेन देन वर्जित रखे. दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले चमरे की वस्तु जैसे बेल्ट, पर्स, चपल का प्रयोग नहीं करे.

 

 

 

जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है .

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. यह व्रत महिलाएं के लिए बहुत ही कठिन व्रत होता है.व्रत के दिन महिलाएं पुरे दिन निर्जला व्रत रहकर यह व्रत करती है इस व्रत को करने के लिए कठिन नियम का पालन करना पड़ता है इस त्योहार में तिथि का मिलना बहुत महत्वपूर्ण रहता है.

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत करने का विधान है माताएं पुरे दिन उपवास रहकर संध्या काल में जीमूतवाहन महराज की पूजा करती है और अपने पुत्र की लम्बी आयु के लिए कामना करती है.

यह व्रत सप्तमी से आरम्भ होता है और नवमी तिथि तक व्रत चलता है.

इस व्रत को करने का मुख्य कारण होता है संतान की लम्बी उम्र की कामना करने के लिए किया जाता है देश में इस व्रत को अलग -अलग नाम से जाना जाता है इसे जितिया, जीमूतवाहन, जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से जाना जाता है, इस व्रत का आरंभ नहाय खाय से आरंभ होता है.

कब है जीवित्पुत्रिका व्रत

इस वर्ष 24 अक्तूबर 2024 दिन मंगलवार को नहाय खाए होगा.
25 अक्तूबर 2024 दिन बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जायेगा.

26 अक्तूबर दिन गुरुवार को व्रत का पारण सूर्योदय के बाद होगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत का आरम्भ कैसे करे

यह व्रत कथा के अनुसार सप्तमी से रहित और उदय तिथि की अष्टमी को व्रत करे यानि सप्तमी विद्ध अष्टमी जिस दिन हो उस दिन व्रत नहीं करके शुद्ध अष्टमी से को व्रत करे और नवमी में पारण करे. अगर इस बात पर ध्यान नहीं देने से व्रत का फल नहीं मिलता है .

व्रत का नियम 

व्रती को स्नान करके शुद्ध वस्त्र धरण करे.सूर्य भगवन को पूजन करे जीमूतवाहन की प्रतिमा को धुप दीप ,अगरबती दिखाकर चावल पुष्प आदि का अर्पित करे. इस व्रत में मिट्टी का या गाय के गोबर से चिल व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है माथे पर लाल सिंदूर का टिका लगाया जाता है.पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुने पारण के बाद ब्राह्मण को दान दे.

पारण का नियम
जीवित्पुत्रिका व्रत का का पारण सूर्योदय के बाद किया जाता है इस दिन प्रातः काल में स्नान करके अपने कुलदेवता का पूजन करे उसके बाद पारण करे मान्यता यह है जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण गाय के दूध से करे .

जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है .

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पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. मृतक पूर्वजों को समर्पित एक महत्वपूर्ण अवधि है. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बड़ा महत्व माना जाता है. इस दौरान लोग अपने पितरों को प्रसन्न और संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं. माना जाता है कि पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से होती है. इस दिन उन पूर्वजों के सम्मान में श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु महीने की पूर्णिमा के दिन हुई थी.

मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी लोक आती हैं और प्रसाद व प्रार्थनाओं के प्रति सबसे अधिक ग्रहणशील होती हैं. इस दौरान पितरों का श्राद्ध करने से जन्म कुंडली में व्याप्त पितृ दोष से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इस साल पितृ पक्ष का आरंभ कब से हो रहा है 17 या 18 सितंबर इसे लेकर लोगों में दुविधा है.

हिंदू पंचांग के अनुसार तो पितृ पक्ष का आरंभ 17 सितंबर से होने जा रहा है। लेकिन, इस दिन श्राद्ध नहीं किया जायेगा. दरअसल, इस दिन भाद्रपद पूर्णिमा का श्राद्ध है और पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के कार्य प्रतिपदा तिथि से होते हैं इसलिए 17 तारीख को ऋषियों के नाम से तर्पण किया जायेगा. श्राद्ध पक्ष का आरंभ प्रतिपदा तिथि से होता है. ऐसे में 18 सितंबर से पिंडदान, ब्राह्मण भोजन, तर्पण, दान आदि कार्य आरंभ हो जायेगा. पितृ पक्ष का आरंभ देखा जाये तो 18 सितंबर से हो रहा है और 2 अक्टूबर तक यह चलेगा.

शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो पितृ पक्ष में सुबह और शाम के समय देवी देवताओं की पूजा को शुभ बताया गया है. साथ ही पितरों की पूजा के लिए दोपहर का समय होता है. वहीं पितरों की पूजा के लिए सबसे उत्तम समय 11:30 से 12:30 बजे तक बताया जाता है. इसलिए आपको पंचांग में अभिजीत मुहूर्त देखने के बाद श्राद्ध कर्म करें.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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अनंत चतुर्दशी का त्योहार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष के चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. हिदू धर्म में इस त्योहार का बहुत बड़ा महत्व है. इसे अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है.

वैदिक मान्यता यह है कि अनंत भगवान ने सृष्टि के आरम्भ में चौदह लोको यानि तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू ,भुवः, स्वः,जन, तप, सत्य और मह की रचना की थी। इन सभी लोको के पालन और रक्षा करने के लिए वह विष्णु ने स्वयं भी चौदह रूप में प्रगट हुए थे. जिससे लोक में अनंत प्रतित होने लगे इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला यह व्रत होता है.

मान्यता यह है इस दिन भगवन विष्णु के अनंत स्वरूप माता यमुना तथा शेषनाग की पूजा की जाती है। इस पूजा से भक्तो का कल्याण होता है.

कब मनाया जायेगा अनंत पूजा

17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त
सुबह 05: 36 से 11:44 मिनट तक शुभ है

चतुर्दशी तिथि का आरंभ 16 सितम्बर 2024 दोपहर 03:10 बजे से

चतुर्दशी तिथि का समाप्त 17 सितम्बर 2024 सुबह 11:44 सुबह

क्या है मान्यता

मान्यता यह है कि भगवान विष्णु का पूजन करने से परिवार में संपन्नता बनी रहती है तथा अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है. अनंत का व्रत तथा पूजन करने वाले सुबह में नित्य क्रिया से निर्वित होकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करे, भगवन विष्णु का अलग -अलग रूप का पूजन करे साथ 14 गांठ वाली सूत्र कलाई पर बांधे इसका मान्यता है 14 लोक का रक्षा किया था इसलिए सूत्र बंधा जाता है। फिर विष्णु सह्त्रनाम का पाठ करे. आरती करे बिना नमक का भोजन करे. यह दिन शुभ कार्य करने के लिए बहुत शुभ दिन होता है.यात्रा के लिए बहुत ही उत्तम दिन होता है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
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हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा जी को निर्माता का सृजन का देवता माना जाता है. यह पूरे संसार के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है. भगवन विश्वकर्मा को देवताओं का वास्तुकार माना जाता है. विश्वकर्मा पूजा विशेषकर कारखाना तथा मशीनरी दुकान, जहां पर मशीनरी कार्य, फिटर, वेल्डर, टर्नर जैसे काम करने वाले लोग अपने भविष्य के सुरक्षा के साथ काम करने तथा कार्य को सफल बनाने के लिए विश्वकर्मा जी का पूजन किया जाता है.

यह त्योहार सूर्य के गोचर के अनुसार किया जाता है. जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते है उसे कन्या संक्रांति कहा जाता है. उस दिन विश्वकर्मा पूजा किया जाता है. आपको बता देता हु अधिकांश त्योहार तिथि पर नहीं मनाया जाता है. कुछ ऐसे त्योहार है जो शुभ दिन चन्द्र दिवस पर निर्भर करता है, जो हर साल बदलता है. ऐसे ही विश्वकर्मा पूजा है, जो हर साल 17 सितम्बर को मनाया जाता है। लेकिन सूर्य के गोचर के में एक या दो दिन का अंतर दिखाई दे तब विश्वकर्मा पूजा के तारीख में बदलाव होता है.

विश्वकर्मा पूजन का शुभ मुहूर्त

17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा.

ऋषिकेश पंचांग तथा महावीर पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा का पूजन सुबह 11:00 के पहले करने पर उत्तम रहेगा.

सूर्य का गोचर 16 सितम्बर 2024 सुबह 11 :09 मिनट पर होगा. इसलिए विश्वकर्मा पूजन 17 सितम्बर को मनाया जायेगा.

विश्वकर्मा पूजन का शुभ मुहूर्त पर निर्णय
17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा.
ऋषिकेश पंचांग तथा महावीर पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा का पूजन सुबह 11:00 के पहले किया जाय बहुत ही कल्याणकारी होगा.

पूजा विधि
पूजनकर्ता सुबह में नित्य क्रिया से निर्वित् होकर। नया या स्वच्छ वस्त्र धारण करे. छोटी चौकी पर पिला रंग का कपड़ा का आसनी बिछाए। उस पर विश्वकर्मा की मूर्ति या फोटो रखे। पूजन के लिए थाली ले उसमे चंदन, सिंदुर, फूल, अक्षत, अगरबती, मिठाई, ऋतु फल रखे। कलश का स्थापित करे, उसमे आम का पत्ता, दुर्वा, सुपारी पान के पता, फूल डाले. कलश पर नारियल में मौली लपेटकर कलश पर रखे. विश्वकर्मा जी को फूल के माला चढ़ाएं,वस्त्र चढ़ाएं. आरती करें, पूजन करने के बाद प्रसाद का वितरण करे।

पूजा सामग्री

चावल, गंगाजल, चंदन, फूल, फूलमाला, सिंदुर पिला कपड़ा, लाल कपड़ा, दही, दूध, केला, ऋतु फल, घी, रूई बाती, पान के पता, सुपारी, नारियल, मौली, पंचमेवा, शहद, इत्यादि।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व

विश्वकर्मा पूजा के विधि विधान से अनुष्ठान तथा पूजन करने से उनके कार्य में उन्नति होता है. वैदिक परंपरा के अनुसार विश्वकर्म पूजन से व्योपार में उन्नति होता है। ऐसा मना जाता है विषेकर इंजीनियरिंग तथा कल कारखाने, एवं इंजीनियरिंग से सम्बन्धित व्योपार करने वाले के लिए विश्वकर्मा पूजा करने से बहुत उन्नति होता है।

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रमेश सर्राफ धमोरा

हर वर्ष 17 सितम्बर को विश्वकर्मा जयंती मनायी जाती है। यह कन्या संक्रांति पर पड़ता है। यह वह दिन है जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। हर साल 17 सितंबर को यह पूजा की जाती है। लेकिन इस बार लोगों के मन में 16 सितंबर को लेकर संशय है। इस बार सूर्य 16 सितंबर की शाम को 7 बजकर 29 मिनट पर कन्‍या राशि में प्रवेश कर रहे हैं।

विश्वकर्मा जयन्ती भारत के जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में मनायी जाती है। नेपाल में भी विश्वकर्मा पूजा को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। विश्वकर्मा के पूजन और उनके बताये वास्तुशास्त्र के नियमों का अनुपालन कर बनवाये गये मकान और दुकान शुभ फल देने वाले माने जाते हैं। इनमें कोई वास्तु दोष नहीं माना जाता।

विश्वकर्मा पूजा ऐसा त्योहार है जहां शिल्पकार, कारीगर, श्रमिक भगवान विश्वकर्मा का त्योहार मनाते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा के पुत्र विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया था। विश्वकर्मा को देवताओं के महलों का वास्तुकार भी कहा जाता है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। विश्वकर्मा दो शब्दों से विश्व (संसार या ब्रह्मांड) और कर्म (निर्माता) से मिलकर बना है। इसलिए विश्वकर्मा शब्द का अर्थ है- दुनिया का निर्माता यानी दुनिया का निर्माण करने वाला। औद्योगिक श्रमिकों द्धारा इस दिन बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए प्रार्थना की जाती हैं। विश्वकर्मा जयन्ती के दिन देश के कई हिस्सों में काम बंद रखा जाता है और खूब पंतगबाजी की जाती है। विभिन्न प्रदेशों की सरकार विश्वकर्मा जयन्ती पर अपने कर्मचारियों को सवैतनिक अवकाश प्रदान करती है।

यह त्योहार मुख्य रूप से दुकानों, कारखानों और उद्योगों द्वारा मनाया जाता है। इस अवसर पर, कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिक अपने औजारों की पूजा करते हैं और भगवान विश्वकर्मा से उनकी आजीविका सुरक्षित रखने के लिए प्रार्थना करते हैं। वे मशीनों के सुचारू संचालन के लिए प्रार्थना करते हैं और विश्वकर्मा पूजा के दिन अपने उपकरणों का उपयोग करने से परहेज करते हैं।

विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं। जिन्होंने विश्व के प्राचीनतम तकनीकी ग्रंथों की रचना की थी। इन ग्रंथों में न केवल भवन वास्तु विद्या, रथ आदि वाहनों के निर्माण बल्कि विभिन्न रत्नों के प्रभाव व उपयोग आदि का भी विवरण है। माना जाता है कि उन्होंने ही देवताओं के विमानों की रचना की थी। भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति ऋग्वेद में हुई है। जिसमें उन्हें ब्रह्मांड (पृथ्वी और स्वर्ग) के निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान विष्णु और शिवलिंगम की नाभि से उत्पन्न भगवान ब्रह्मा की अवधारणाएं विश्वकर्मण सूक्त पर आधारित हैं।

विश्वकर्मा प्रकाश को वास्तु तंत्र का अपूर्व ग्रंथ माना जाता है। इसमें अनुपम वास्तु विद्या को गणितीय सूत्रों के आधार पर प्रमाणित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वाकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं।

विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में सर्वमान्य हैं। इनको गृहस्थ आश्रम के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक भी कहा गया है। अपने विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान के कारण देव शिल्पी विश्वकर्मा मानव समुदाय ही नहीं वरन देवगणों द्वारा भी पूजित हैं। देवता, नर, असुर, यक्ष और गंधर्व सभी में उनके प्रति सम्मान का भाव है। भगवान विश्वकर्मा के पूजन-अर्चन किये बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं माना जाता। इसी कारण विभिन्न कार्यो में प्रयुक्त होने वाले औजारों, कल-कारखानों और विभिन्न उद्योगों में लगी मशीनों का पूजन विश्वकर्मा जयंती पर किया जाता है।

धर्मग्रंथों में विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वंशज माना गया है। ब्रह्माजी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे। जिन्हें शिल्प शास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए विश्वकर्मा भी वास्तुकला के महान आचार्य बने। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ इनके पुत्र हैं। इन पांचों पुत्रों को वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में विशेषज्ञ माना जाता है।

पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक स्वर्गलोक की इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, असुरराज रावण की स्वर्ण नगरी लंका, भगवान श्रीकृष्ण की समुद्र नगरी द्वारिका और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही जाता है। पौराणिक कथाओं में इन उत्कृष्ट नगरियों के निर्माण के रोचक विवरण मिलते हैं। उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर तो विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें शिल्पावतार के रूप में सम्मानित किया था।

महाभारत में पांडव जहां रहते थे उस स्थान को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। इसका निर्माण भी विश्ववकर्मा ने किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलयुग के हस्तिनापुर आदि के रचयिता विश्वकर्मा जी की पूजा अत्यन्त शुभकारी है। सृष्टि के प्रथम सूत्रधार, शिल्पकार और विश्व के पहले तकनीकी ग्रन्थ के रचयिता भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं की रक्षा के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था।

विष्णु को चक्र, शिव को त्रिशूल, इंद्र को वज्र, हनुमान को गदा और कुबेर को पुष्पक विमान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किये थे। सीता स्वयंवर में जिस धनुष को श्रीराम ने तोड़ा था वह भी विश्वकर्मा के हाथों बना था। जिस रथ पर निर्भर रह कर श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन संसार को भस्म करने की शक्ति रखते थे उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। पार्वती के विवाह के लिए जो मण्डप और वेदी बनाई गई थी वह भी विश्वकर्मा ने ही तैयार की थी।

माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। इसके पीछे कहानी है कि शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को कहा तो विश्वकर्मा ने सोने का महल बना दिया। इस महल के पूजन के दौरान भगवान शिव ने राजा रावण को आंमत्रित किया। रावण महल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और जब भगवान शिव ने उससे दक्षिणा में कुछ देने को कहा तथा उसने महल ही मांग लिया। भगवान शिव उसे महल देकर वापस पर्वतों पर चले गए। विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए उड़ने वाले रथों का निर्माण किया था। विश्वकर्मा ने देवताओं के राजा इंद्र का हथियार वज्र का निर्माण किया था। वज्र को ऋषि दधीचि और अज्ञेयस्त्र की हड्डियों से बनाया गया है। भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र उनकी शक्तिशाली रचनाओं में से एक था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कामगारों के लिए बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा जयंती पर देश में एक नई योजना ‘विश्वकर्मा योजना’ को लॉन्च किया जाएगा। इस योजना के तहत देश में फर्नीचर या लकड़ी का काम करने वाले, सैलून चलाने वाले, जूते बनाने वाले और मकान बनाने वाले कामगारों को आर्थिक मदद मुहैया कराई जाएगी। उन्होंने कहा विश्वकर्मा जयंती पर सरकार 13 से 15 हजार करोड़ रुपये की एक योजना को लॉन्च करेंगी। इस तरह उन लोगों की सहायता हो सकेगी जो पारंपरिक तरीके के कौशल से अपनी जीवका चलाते हैं। ये अपना भरणपोषण औजारों और हाथ से काम करके करते हैं। उन्होंने कहा कि इनमें सुनार हों, राजमिस्त्री हों, कपड़े धोने वाले हों या बाल काटने वाले के परिवार हों। ऐसे लोगों को इस योजना से आर्थिक ताकत प्रदान की जा सकेगी।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार, समाचार एजेंसी से संबद्ध हैं।)

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नई दिल्ली, 07 सितंबर (हि.स.)। देशभर में आज से गणेशोत्सव शुरू हो रहा है। गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर सुबह से विघ्नहर्ता और प्रथमपूज्य देवता की पूजा-अर्चना शुरू हो गई है।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी सात सितंबर को मनाई जा रही है। भगवान गणेश हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता और प्रथमपूज्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं। वो अशुभता को दूर कर शुभ फल प्रदान करते हैं। गणेश चतुर्थी से ही 10 दिवसीय गणेशोत्सव का आगाज होता है। देश के लगभग हर हिस्से में सुबह भगवान गणेश की मंदिरों में आरती की गई।

गणपति बप्पा मोरया…के पवित्र घोष के साथ मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में पहली आरती की गई। इस दौरान मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। ऐसा ही दृश्य लालबागचा राजा मंदिर में रहा। नागपुर के टेकड़ी गणेश मंदिर में भक्तों ने पूजा-अर्चना की। गुजरात में अहमदाबाद के वस्त्रपुर ना महागणपति मंदिर में सुबह की आरती की गई।

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हरितालिका यानि तीज का व्रत पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव तथा पार्वती के विधिवत पूजन करने का दिन माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बे उम्र के लिए पुरे दिन उपवास रखकर भगवान शिव का पूजन करती है मान्यता है की इस व्रत को करने से पति के साथ संतान सुख का प्राप्ति होता है। साथ ही मनोरथ पूर्ण होता है इस व्रत को कुंवारी लड़किया सुयोग्य वर प्राप्त करने के लिए कर सकती है, क्योंकि पार्वती जी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिऐ इस व्रत को किया था तब से इस दिन माता पार्वती तथा शिव का विधिवत पूजन की जाती है।

धार्मिक मान्यता है इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख शांति मिलती है। पति पत्नी के बिच प्रेम सम्बन्ध बढ़ता है।इस वर्ष हरितालिका व्रत पर कई शुभ संयोग बन रहा है।जो इस व्रत को और प्रभावशाली बना देगा।ऐसे में भगवान शिव का पूजन से सभी कष्ट दूर होते है।

कब है हरितालिका तीज व्रत

06 सितम्बर 2024 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।

तृतीया तिथि का आरंभ 05 सितम्बर 2024 दिन गुरुवार को सुबह 10:04 मिनट से

तृतीया तिथि का समाप्त 06 सितम्बर 2024 दिन शुक्रवार को दोपहर 12:09 मिनट तक मिल रहा है।

हस्त नक्षत्र 06 सितम्बर 2024 को सुबह 08:09 मिनट तक रहेगा।

तीज में कई शुभ संयोग बन रहा है।

हरितालिका व्रत के दिन रवि योग बन रहा है,दिन शुक्रवार है। इस दिन महालक्ष्मी व्रत भी किया जायेगा जो सौभाग्य प्राप्ति, धन प्राप्ति के लिए बहुत उत्तम दिन होता है।

हरितालिका व्रत के पूजन सामग्री।

केले के खंबे, दूध, सुहाग के लिए बांस का बना पिटारी, गंगाजल, अक्षत, दही, घी, फूल, फूल माला, दीपक, धूप कपूर,
सुपाड़ी, भगवान के लिए वस्त्र, सिंदुर रोली, मिठाई, पान के पत्ता, श्रृंगार के वस्तु चूड़ी, आइना, कंगी, सिंदुर इत्यादि।
मंदार के फूल, बेलपत्र, शमी पत्र,

कैसे करे तीज की पूजा

महिलाएं नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके नया वस्त्र या स्वच्छ वस्त्र धरण करे।मंडप बनाकर छोटी चौकी पर लाल या पिला कपड़ा रखकर भगवान का आसन बनाए।मिटटी से शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित करे। थाली में कुमकुम, चन्दन, दही ,दूध चावल, हार फुल, बेलपत्र, ऋतुफल, घर में बने पकवान भगवन को चढ़ाए।

पार्वती जी के लिए श्रृंगार की वस्तु,आभूषण,वस्त्र,आदि चढ़ाए भगवान को धूप दीप अगरबती दिखाए।फिर कपूर से या गाय के घी का दीपक जलाकर आरती करे। रात्रि में जागरण करे। अगले दिन सुबह स्नान करके भगवान शिव का पूजन करे फिर शिव पार्वती के प्रतिमा का विसर्जन नदी या तालाब में करे। फिर व्रत का पारण करे।

मान्यता
हरितालिका तीज की व्रत से जुडी कई पौराणिक कथाएं है। इन कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवन शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।उनकी इस तपस्या से प्रस्सन होकर भगवन शिव ने उन्हें अपनी पत्नी बनाया था।इसलिए विवाहित महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए और कुंवारी कन्या अच्छे वर के लिए यह व्रत करती है। भगवान शिव पार्वती जी को बताए है इस व्रत को करने से हजार अश्वमेध एवं वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Chhapra: स्थानीय महर्षी दधिचि आश्रम सह उमानाथ मंदिर परिसर में पांच दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

छपरा शहर के सैकड़ो मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया. वहीं हजारों हजार घरों में भी लोगों ने भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप में अपने परिवार के छोटे छोटे बच्चों को सजाकर भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव भजन कीर्तन के माध्यम से मनाया।

मुख्य कार्यक्रम आरपीएफ बैरेक रेलवे, बाबा बटुकेश्वर नाथ पंच मंदिर, दाऊजी का मंदिर, शाह बनवारी लाल पंच मंदिर गुदरी बजार, बाबा मनोकामना नाथ मंदिर कटरा, महर्षी दधिचि आश्रम सह उमानाथ मंदिर दहियावां, काठिया बाबा मठ सोनार पट्टी, अयोध्या साह राम जानकी मंदिर सोनार पट्टी, राम जानकी मंदिर छत्रधारी बाजार वैगरह में मनाया गया।

महर्षी दधिचि आश्रम उमानाथ मंदिर में पांच दिनों से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रतिदिन संध्या 7:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक चलेगा। जिसमें वृंदावन एवं काशी से आए हुए कलाकारों के द्वारा भगवान श्री कृष्ण की नित्य नई लीला प्रस्तुत की जाएगी।

बाबा बटेश्वर नाथ मंदिर काठिया बाबा का मठ, राम जानकी मंदिर सोनार पट्टी, उमानाथ मंदिर में यह कार्यक्रम छठिहार उत्सव तक चलता रहेगा। मटकी फोड़ कार्यक्रम का आयोजन नगर निगम चौक पर मनाया गया।

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जन्माष्टमी, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, यह त्योहार भारत ही नहीं बल्कि दुनियां के कई देशों में भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

यह त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के भक्त बेहद ही धूम धाम से इस त्योहार को मनाते है यह त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत का त्योहार है पृथ्वी पर कंस की अत्याचार बढ़ गया था उसके अत्याचार को समाप्त करने के लिऐ भगवान कृष्णा का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण देवकी के आठवें पुत्र है इनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था।

इस साल जन्माष्टमी कब है?

इस साल, 2024 में, जन्माष्टमी 26 और 27 अगस्त को मनाई जाएगी।
26 अगस्त: उदया तिथि के अनुसार, जन्माष्टमी का व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा।
27 अगस्त: गोकुल और वृंदावन में कृष्ण जन्मोत्सव 27 अगस्त को मनाया जाएगा।

जन्माष्टमी का महत्व

भगवान कृष्ण की पूजा: इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। भाद्रपद कृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाता है इस तिथि को कृष्ण जन्मोत्सव के उपल्क्ष में मंदिरों में जगह जगह कीर्तन तथा झाकियां सजाई जाती है बारह बजे रात्रि तक व्रत रह कर भगवान का प्रसाद लिया जाता है दूसरे दिन प्रातः काल से नंद महोत्सव भी मनाया जाता है।

संपन्नता: मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के लड्डू गोपाल रूप की पूजा करने से घर में संपन्नता बढ़ती है।

मनोकामनाओं की पूर्ति: भगवान कृष्ण की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सातों जन्मों के पापो से छुटकारा मिलता है परिवार में संपन्नता बनी रहती हैं।

जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?

व्रत: भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात को भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। भगवान को हल्दी, दही, घी, तेल गंगाजल आदि से स्नान कराकर चंदन लगाया जाता है। आनंद के साथ पलने में झुलाया जाता है।

मंदिरों में उत्सव: मंदिरों में भव्य सजावट की जाती है और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। श्रीमद्भागवत की पाठ की जाती
है।

मथुरा और वृंदावन: इन स्थानों पर जन्माष्टमी का उत्सव विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।इस दिन प्रायः लोग अपने अपने घरों में “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे” का जाप करते हैं। जन्माष्टमी उत्सव के बाद दही हांडी का आयोजन अगले दिन मनाया जाता है।

शैव और वैष्णव समुदाय में जन्माष्टमी

वैष्णव समुदाय: वैष्णव समुदाय के लोग भगवान कृष्ण को विष्णु का अवतार मानते हैं और उनके जन्मदिन को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।

शैव समुदाय: शैव समुदाय के लोग भी जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं, हालांकि वे इसे उतनी धूमधाम से नहीं मनाते जितना वैष्णव समुदाय मनाता है।

जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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