अयोध्या, 25 नवंबर (हि.स.)। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के “प्रतिष्ठा द्वादशी” के नाम से जाना जाएगा और पहली वर्षगांठ पौष शुक्ल द्वादशी 11 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा। यह उत्सव तीन दिन का होगा। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक सोमवार को मणिराम दास छावनी में सम्पन्न हुई।

बैठक चार ट्रस्टी उपस्थित नहीं हो पाए और भारत सरकार में विशेष सचिव आईएएस प्रकाश लोखंडे ऑनलाइन सम्मिलित हुए। बैठक में ही प्राण प्रतिष्ठा की वर्षगांठ के सिलसिले में यह तय हुआ है कि इसे प्रतिष्ठा द्वादशी के नाम से जाना जाएगा और पहली वर्षगांठ द्वादशी 11 जनवरी को है।

बैठक को अध्यक्षता ट्रस्ट अध्यक्ष एवं मणिराम छावनी मंहत नृत्य गोपाल दास महाराज ने किया। बैठक के बाद में ट्रस्ट के महामंत्री चम्पत राय ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि भक्तों द्वारा समर्पित 940 किलो चांदी सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिन्टिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया को मेल्ट करने के लिए सौंपी गई। जिसकी गुणवत्ता उच्चतम क्वालिटी की थी, 71 नमूनों में से 64 की गुणवत्ता 90 से 98 फ़ीसदी पाई गई।

उन्होंने बताया कि अर्चक प्रशिक्षण 6 माह तक कराने के बाद उनका प्रमाण पत्र दिया गया था। उन अर्चकों की नियुक्ति नियमावली बैठक में स्वीकारी गई। जिन्हें नियमावली स्वीकार होगी। उन्हें सेवा में लिया जाएगा। समस्त आर्चकों को 18 मंदिरों में चक्रीय क्रम से जाना होगा।

अशौच की दशा में अर्चक स्वविवेक से कार्य से विरत रहेंगे। जिस प्रकार जन्माष्टमी पर्व हिंदी तिथि एवं पंचांग के अनुसार मनाया जाता है। उसी तरह पौष शुक्ल (कुर्म द्वादशी) को संतों का विचार है कि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाया जाए। वर्ष 2025 में यह तिथि 11 जनवरी को होगी। इसके अलावा दूरदर्शन 18 मंदिरों की आरती के उत्तम प्रसारण की व्यवस्था स्थायी रूप से कर रहा है।

परिसर में यात्री सेवा केंद्र के निकट 3000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली द्वारा हेल्थ केयर सिस्टम विकसित किया जाएगा, जिसमें अल्ट्रासाउंड आदि सुविधाएं भी रहेंगी। उन्होंने बताया कि परिसर के दक्षिणी कोने में 500 लोगों के बैठने के लिए प्रेक्षागृह अतिथि समागृह तथा ट्रस्ट का कार्यालय निर्माण के लिए महंत नृत्य गोपाल दास जी ने पत्थर का अनावरण कर शुभारंभ किया।गर्मी और वर्षा से यात्रियों को बचाने हेतु मंदिर तक अस्थायी जर्मन हैंगर लगाए गए थे।

यहां 9 मीटर चौड़े और लगभग 600 मीटर लंबे स्थाई शेड का निर्माण होगा। जिसका कुछ हिस्सा राजकीय निर्माण निगम उत्तर प्रदेश तथा कुछ हिस्सा एलएनटी को दिया गया है। महामंत्री चंपत राय ने बताया कि निर्माण प्रगति में क्रमशः सप्त मंडल मंदिर मार्च तक शेषावतार मंदिर अगस्त तक और परकोटा अक्टूबर तक बनकर पूर्ण होगा।

उन्होंने रामानंदी परंपरा के श्रेष्ठतम संत नृत्य गोपाल दास जी के स्वास्थ्य के विषय में सोच समझ कर लिखने व बोलने की सलाह दी। पत्रकार वार्ता में ट्रस्टी डॉ अनिल मिश्र तथा मंदिर की व्यवस्था देख रहे गोपाल राव भी उपस्थित रहे।

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Chhapra: कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने गंगा, सोन, घाघरा और गंडक नदियों समेत विभिन स्थलों पर पवित्र स्नान किया. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर नदियों में स्नान को लेकर लोग रात भर घाटों पर जमे रहे. सोनपुर, रिविलगंज, मांझी, डोरीगंज आदि घाटों पर स्नान के लिए विशेष व्यवस्था की गयी थी. 

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Chhapra: छठ महापर्व की लोकप्रियता आज देश-विदेश तक देखने को मिलती है। छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में एक होता है, इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है।  और व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। छठ पूजा में नहाय खाय, खरना,अस्ताचलगामी अर्घ्य और उदयगामी अर्घ्य का विशेष महत्व होता है। आस्था के महापर्व छठ की आज से शुरूआत हो रही है।  

छठ पर्व का विवरण

1) पहला दिन- नहाय खाय, 05 नवंबर 2024 मंगलवार

2) दूसरा दिन- खरना, 06 नवंबर 2024, बुधवार

3) तीसरा दिन- अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य, 07 नवंबर 2024, गुरुवार, संध्या अर्घ्य- 05.27 मिनट से पहले

4) आखिरी दिन व चौथे दिन उदयगामी सूर्य को अर्घ्य, 08 अक्टूबर 2024, शुक्रवार, प्रातः अर्घ्य 06.34 मिनट पर

कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को स्नानादि से निवृत होने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। इसे नहाय खाय भी कहा जाता है। इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है।

कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन संध्या में खरना होता है। खरना में खीर और बिना नमक की पूरी आदि को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। खरना के बाद निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।

कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती उपवास रहती है और शाम नें किसी नदी, तालाब, पोखर में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह अर्घ्य एक बांस के सूप, कोनिया में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल आदि को रखकर दिया जाता है।

कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सवेरे को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती व्रत का पारण करती हैं।

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-मंदिर की भव्य सजावट, सैन्य बैंड की भक्तिमय धुनों के बीच बाबा केदार के जयघोष से गूंजा धाम

-बाबा की डोली पहले पड़ाव को प्रस्थान, छह माह शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन

देहरादून, 03 नवम्बर (हि. स.)। विश्व प्रसिद्ध और ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग केदारनाथ धाम के कपाट भैयादूज के पावन पर्व पर रविवार प्रात: साढ़े आठ बजे विधि-विधान और धार्मिक परंपरा के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए। इस दौरान सेना के भक्तिमय धुनों के साथ श्रद्धालुओं के ‘जय बाबा केदार’ के उद्घोष से पूरा धाम गूंज उठा। 15 हजार से अधिक श्रद्धालु कपाट बंद होने के साक्षी बने। अब आने वाले छह महीने तक भक्तगण बाबा केदार के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन कर सकेंगे।

रविवार प्रातः पांच बजे से बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय की उपस्थिति में कपाट बंद किए जाने की प्रक्रिया शुरू हुई। बीकेटीसी के आचार्य, वेदपाठियों, पुजारीगणों ने भगवान केदारनाथ के स्वयंभू शिवलिंग की समाधि पूजा की। स्वयंभू शिवलिंग को भस्म, स्थानीय पुष्पों, बेलपत्र आदि से समाधि रूप दिया गया। प्रातः 08:30 बजे बाबा केदार की पंचमुखी उत्सव डोली को मंदिर से बाहर लाया गया और केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। इस विशेष अवसर के लिए दीपावली के दिन से ही फूलों से मंदिर की साज-सज्जा की जा रही थी।

कपाट बंद होने के साथ ही बाबा केदार की पंचमुखी उत्सव डोली अपने पहले पड़ाव रामपुर के लिए प्रस्थान कर गई। हजारों श्रद्धालु बाबा की पंचमुखी डोली के साथ पैदल रवाना हुए। श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह भंडारे आयोजित किये गये थे। आज केदारनाथ में मौसम साफ रहा। आसपास बर्फ होने से सर्द हवा भी चलती रही लेकिन श्रद्धालुओं में भारी उत्साह रहा।

यात्राकाल में रिकार्ड साढ़े 16 लाख से अधिक तीर्थ यात्री पहुंचे

कपाट बंद होने के अवसर पर बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि इस यात्राकाल में रिकार्ड साढ़े 16 लाख से अधिक तीर्थयात्री केदारनाथ धाम पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन से आज भव्य व दिव्य केदारपुरी का पुनर्निर्माण हो रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिह धामी के मार्गदर्शन में केदारनाथ धाम यात्रा का सफल संचालन हुआ। उन्होंने सफल यात्रा संचालन के लिए बीकेटीसी के कर्मचारियों, पुलिस-प्रशासन, यात्रा व्यवस्था से जुड़े विभिन्न विभाग, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी आदि का आभार जताया।

5 नवंबर ऊखीमठ पहुंचेगी पंचमुखी डोली

बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि बाबा केदार की पंचमुखी डोली आज रामपुर में रात्रि प्रवास करेगी। 04 नवंबर सोमवार को विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी रात्रि प्रवास कर 05 नवंबर मंगलवार को शीतकालीन गद्दीस्थल ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचेगी। शीतकाल में बाबा केदार की पूजा ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में ही होगी।

कपाट बंद होने के अवसर पर स्वामी संबिदानंद महाराज, रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी डॉ. सौरव गहरवार, पुलिस अधीक्षक अक्षय प्रह्लाद कोंडे, केदारनाथ विकास प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिंह, मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल, सदस्य श्रीनिवास पोस्ती, भास्कर डिमरी, प्रभारी अधिकारी यदुवीर पुष्पवान, मुख्य पुजारी शिवशंकर लिंग, धर्माचार्य ओंकार शुक्ला, तीर्थ पुरोहितों की संस्था केदार सभा के अध्यक्ष राजकुमार तिवारी, पूर्व अध्यक्ष विनोद शुक्ला, वेदपाठी स्वयंबर सेमवाल, डोली प्रभारी प्रदीप सेमवाल, ललित त्रिवेदी, देवानंद गैरोला, अरविंद शुक्ला, कुलदीप धर्म्वाण, उमेश पोस्ती, प्रकाश जमलोकी, रविंद्र भट्ट आदि मौजूद रहे।

चारधाम यात्रा समापन की ओर

इस यात्रा वर्ष की उत्तराखंड चारधाम यात्रा समापन की ओर है। धामों में मौसम सर्द हो गया है। बदरीनाथ धाम के कपाट 17 नवंबर को बंद हो रहे हैं। गंगोत्री धाम के कपाट बीते शनिवार 02 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद हो गये हैं। केदारनाथ धाम के कपाट आज भैयादूज 03 नवंबर को प्रात: बंद हुए और यमुनोत्री धाम के कपाट आज भैयादूज के अवसर पर दोपहर को बंद हो जाएंगे। जबकि गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब और लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट बीते 10 अक्टूबर को बंद हो गए। द्वितीय केदार मद्महेश्वर जी के कपाट 20 नवंबर को बंद हो रहे हैं और तृतीय केदार तुंगनाथ के कपाट सोमवार को बंद होंगे। चतुर्थ केदार रूद्रनाथ के कपाट 17 अक्टूबर को बंद हुए।

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भौम प्रदोष के साथ धनतेरस बड़े धूम धाम से मनाया जायेगा। धनतेरस कार्तिक माह के कृष्णपक्ष के त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस त्योहार को कई नाम से जाना जाता है। 
धनतेरस को धनवंतरी दिवस, धन्वन्तरी जयंती तथा धनतेरस के नाम से से जाना जाता है। इस वर्ष यह त्योहार 29 अक्तूबर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा

इस दिन का मान्यता यह है इस दिन भगवान धनवंतरी समुन्द्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, जब समुंद्र का मंथन हुआ था उसमे बहुत सारे रत्न, आभूषण निकले थे उसी से माता लक्ष्मी तथा भगवान धनवंतरी हाथ में अमृत कलश लिए प्रगट हुए थे। वही अमृत लोगो को कल्याण हेतु आर्युवेद में उपयोग किया गया जिसे लोग निरोग हुए। भगवान धनवंतरी प्रगट के समय पीतल का कलश हाथ में लेकर अवतरित हुए इसलिए इस दिन लोग अपने कल्याण के लिए बर्तन की खरीदारी करते है। 

मान्यता यह भी है दिवाली की शुरूआत धनतेरस के दिन से आरंभ होता है और यह पांच दिन तक मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल के दौरान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है। धनतेरस के दिन स्थिर लगन में धनतेरस के पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है भगवान धनवंतरी का पृथ्वी पर लोगो को निरोग तथा दीर्घायु एवं कल्याण के लिए अवतरित हुए थे।

धनतेरस मनाने का शास्त्रोक्त नियम

धनतेरस कार्तिक माह के कृष्णपक्ष के उदया व्यापिनी त्रयोदशी को मनाया जाता है। (उदयाव्यापनी) का मतलब यह होता है सूर्य का उदय त्रयोदशी में हो उसी दिन यह त्योहार मनाया जाता है। 29 अक्तूबर 2024 मंगलवार को त्रयोदशी मिल रहा है। 

धनतेरस का पूजा का शुभ मुहूर्त 

त्रयोदशी तिथि का आरंभ 28 अक्तूबर 2024 दिन सोमवार सुबह 09:10 मिनट से
त्रयोदशी तिथि का समाप्त 29 अक्तूबर 2024 दिन मंगलवार सुबह 10:49 मिनट तक

महालक्ष्मी पूजन मुहूर्त
स्थिर लगन वृष संध्या 06 :11 मिनट से 08 :15 मिनट तक रहेगा 

चौघडिया मुहूर्त
लाभ : सुबह 10:09 से 11:33 सुबह
अमृत : सुबह 11:33 से 12:57 दोपहर
शुभ : दोपहर 02 :22 से 03 :46 दोपहर

धनतेरस के दिन क्या खरीदे

इस दिन पीतल धातु से बने वस्तु की खरीदारी किया जाता है।  मान्यता यह है भगवन धनवंतरी जब प्रगट हुए थे उनके हाथ में पीतल का अमृत भरे कलश था इसलिए पीतल की खरीदारी करते है। पीतल के धातु में खाना खाने तथा पानी पीने से शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाता है वयोक्ति स्वस्थ्य रहता है। 

धनतेरस के दिन क्या नहीं खरीदे

धनतेरस के दिन लोहा, टीना, स्टील, अलमुनियम का खरीदारी नहीं करे, भूलकर भी सीसा के वस्तु का खरीदारी नहीं करे।  यह राहु के कारक होता है, सीसा खरीदने से परिवार में परेशानी बढ़ जाती है। 

धनतेरस पर करे यह उपाय

धनतेरस के दिन गाय की पूजा करने से स्वस्थ्य ठीक रहता है.गाय को हिन्दू धर्म में माता का प्रतिक माना जाता है, धनतेरस के दिन गाय को रोटी खिलाएं. शमी के पेड़ का पूजन करे.इस दिन कोई पड़ोसी में बीमार हो उसको दावा खरीदकर देने से आपका तथा आपके परिवार के रोग नाश होगा.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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धनतेरस इस साल 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इसी दिन से दीपावली महोत्सव की शुरुआत होती है। यह धन और स्वास्थ्य का पर्व है। इस खास दिन पर भक्त भगवान कुबेर, जो धन के देवता हैं और भगवान धन्वंतरी, जो स्वास्थ्य के देवता हैं, की पूजा करते हैं।

धनतेरस को धन त्रयोदशी भी कहते हैं और इसे हिंदू धर्म में धन्वंतरी जी की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस दिन कुछ खास चीजें खरीदना शुभ माना जाता है, जो समृद्धि और भाग्य लाने में मदद करती हैं। जानिए धनतेरस 2024 पर कौन-सी चीजें खरीदने से सौभाग्य बढ़ता है।

सोना और चांदी का आभूषण
धनतेरस पर सोने या चांदी के आभूषण खरीदना एक पारंपरिक रिवाज है। इसे समृद्धि और भाग्य लाने वाला माना जाता है। आप सोने की चूड़ियां, हार या सिक्के खरीद सकते हैं।

बर्तन
नए बर्तन खरीदना, खासकर चांदी के, शुभ माना जाता है। चांदी के कटोरे, प्लेट्स या पारंपरिक कुकिंग पॉट्स खरीदना अच्छा विकल्प हो सकता है।

लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां
धनतेरस पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां खरीदना भी शुभ माना जाता है। ये समृद्धि, वैभव और बाधाओं को दूर करने का प्रतीक हैं।

कीमती धातुएं
सोने और चांदी के अलावा, आप प्लेटिनम या हाई क्वालिटी वाले सिक्के में भी निवेश कर सकते हैं, जो लंबे समय में लाभदायक हो सकते हैं।

घर के सामान
नए घरेलू उपकरण खरीदना भी शुभ माना जाता है। जैसे कि रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन या एयर कंडीशनर ये सभी उपयोगी और लाभकारी हो सकते हैं।

नई गाड़ी
अगर आप बड़े खरीदारी की योजना बना रहे हैं, तो धनतेरस पर नई गाड़ी (कार, बाइक आदि) खरीदना भाग्य और आशीर्वाद लाने वाला माना जाता है।

निवेश
स्टॉक्स, बांड्स या म्यूचुअल फंड्स में निवेश पर भी विचार कर सकते हैं। धनतेरस आपके निवेश पोर्टफोलियो को शुरू करने या बढ़ाने का सही समय है।

हेल्थ रिलेटेड प्रोडक्ट
चूंकि धनतेरस स्वास्थ्य से जुड़ा है, आप आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स, हर्बल सप्लीमेंट्स या स्वास्थ्य संबंधी वस्तुएं खरीदने पर विचार कर सकते हैं।

सजावटी सामान
जैसे सजावटी दीपक (दीये), वॉल हैंगिंग्स या पारंपरिक आर्ट आपके घर में त्योहार की रौनक बढ़ा सकते हैं।

पूजा सामग्री
धनतेरस के दिन पूजा के लिए आवश्यक सामान खरीद सकते हैं जैसे अगरबत्ती, मोमबत्तियां या सजावटी पूजा की थालियां।

धनतेरस मनाने के टिप्स
सफाई और सजावट: धनतेरस से पहले अपने घर को अच्छे से साफ करें। फूलों, रोशनी, और रंगोली से सजाएं ताकि समृद्धि का स्वागत हो सके।

पूजा: देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरी से आशीर्वाद लेने के लिए पूजा करें।

दान: जरूरतमंदों को दान देने पर विचार करें, क्योंकि अपनी संपत्ति को साझा करना भी अधिक समृद्धि का आमंत्रण है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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भारत में त्योहारों और धार्मिक मान्यताओं की समृद्ध परंपरा है और करवा चौथ उनमें से एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे खासतौर से उत्तर और पश्चिमी भारत की महिलाएं मनाती हैं। इस शुभ दिन पर महिलाएं अपने पति या भविष्य के जीवनसाथी की लंबी उम्र, सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।

करवा चौथ 2024 की तारीख और महत्व

करवा चौथ 2024 में यह पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है, जो पूर्णिमा के चौथे दिन होता है। इस दिन को ‘करक चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें ‘करवा’ एक विशेष मिट्टी के बर्तन को कहते हैं जिसका उपयोग चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत समाप्त करती हैं।

करवा चौथ का कठिन व्रत और उसका सांस्कृतिक महत्व

करवा चौथ का व्रत काफी कठोर होता है, जिसमें महिलाएं सूर्योदय से लेकर रात में चंद्रमा दिखने तक पानी और भोजन का त्याग करती हैं। यह व्रत न सिर्फ भक्ति का प्रतीक है बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है, खासकर उन इलाकों में जहां गेहूं की खेती होती है। कई जगहों पर मिट्टी के बर्तनों को ‘करवा’ कहा जाता है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि यह व्रत एक अच्छी फसल की कामना से जुड़ा हो सकता है। खासतौर पर उत्तर-पश्चिमी राज्यों में जहां गेहूं प्रमुख फसल है, वहां यह प्रथा अधिक प्रचलित है।

 

करवा चौथ 2024: पूजा का समय और चंद्रोदय

करवा चौथ के पूजा विधि और समय क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ बदल सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख शहरों के लिए पूजा और चंद्रोदय का समय दिया गया है:

 

दिल्ली एनसीआर:

तारीख: 20 अक्टूबर 2024 (रविवार)

पूजा मुहूर्त: 05:46 PM से 07:02 PM (1 घंटा 16 मिनट)

व्रत समय: 06:25 AM से 07:54 PM (13 घंटे 29 मिनट)

चंद्रोदय: 07:54 PM

 

मुंबई, महाराष्ट्र:

पूजा मुहूर्त: 06:12 PM से 07:26 PM (1 घंटा 14 मिनट)

व्रत समय: 06:34 AM से 08:37 PM (14 घंटे 02 मिनट)

चंद्रोदय: 08:37 PM

 

बेंगलुरु, कर्नाटक:

पूजा मुहूर्त: 05:58 PM से 07:11 PM (1 घंटा 13 मिनट)

व्रत समय: 06:11 AM से 08:31 PM (14 घंटे 21 मिनट)

चंद्रोदय: 08:31 PM

 

इस शुभ पर्व पर महिलाएं दिनभर निर्जल व्रत रखकर चंद्रमा का इंतजार करती हैं, और चंद्र दर्शन के बाद ही अपना व्रत तोड़ती हैं। यह पर्व न सिर्फ प्रेम और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों से भी जुड़ा हुआ है।

 

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा 

ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ 

8080426594/9545290847

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Chhapra: शहर में भगवान बाजार भरत मिलाप आयोजन हुआ बृहस्पतिवार की रात में भाई श्री राम व भरत जब आपस में गले मिले तो सबकी आंखे नम हो गयी। राम और भरत ने एक दूसरे की कुशल पूछी। भरत ने पूछा भैया आप हमें छोड़कर क्यों चले आये। सभी अयोध्यावसी अनाथ हो गए हैं। यह कहकर भारत बिलख-बिलख कर रोने लगे भाई को रोता देख श्री राम भी भाव विहवल हो गये। चरणों से लगा लिया। दोनों की आंखों से प्रेम की आँसूधारा बह चली। आंखों की मूल भाषा ने एक दूसरे के दर्द और भाव को समझा।

इधर श्रद्धालुओं ने भी भातृप्रेम कि इस अनुपम दृश्य देख खुद को रोक नहीं पाये। कहीं तो बोल पड़े भाइयों का यह प्रेम अब तो दुर्लभ है। इधर व्याकुल भारत को समझाते हुए श्री राम ने रुंधे गले से माताओं- पिता का हाल पूछा। सबकी खैर जानी दोनों भाइयों देर तक गले लग रहे। इससे पहले भरत मिलाप को लेकर भब्य शोभायात्रा निकाली गयी। भरत जी, शत्रुघ्न जी के साथ भाई भगवान राम से मिलने के लिए के पूरे लाव लश्कर के साथ निकली। हाथी, घोड़ा बैंड बाजा के साथ भरत जी की शोभायात्रा निकली। रथ पर सवार होकर भरत जी, शत्रुघ्न जी एवं वशिष्ठ मुनि के साथ भाई राम से मिलने गये।

इनके साथ ही भगवान राम की आरती भी की गई इससे पहले मुख्य अतिथि छपरा नगर निगम पूर्व महापौर राखी गुप्ता एवं समाजसेवी ममता सिन्हा ने कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया।

उन्होंने कहा की भाई भरत और मर्यादा पुरुषोत्तम राम का हमारे लिए आज भी आदर्श है। मौके पर वर्तमान उप महापौर रागिनी देवी, भरत मिलाप कमेटी के अध्यक्ष हरेंद्र यादव और अन्य लोग उपस्थित थे।

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मीरजापुर, 05 अक्टूबर (हि.स.)। “या देवी सर्व भूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः“। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन शनिवार को मां विंध्यवासिनी के दर्शन-पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु विंध्याचल धाम पहुंचे। श्रद्धालुओं ने विंध्यवासिनी के चंद्रघंटा रूप का विधि विधान से पूजा अर्चना की।

गंगा घाटों पर स्नान के बाद दर्शनार्थी मां के दर्शन के लिए गर्भगृह के द्वार पर कतारबद्ध हो गए। श्रद्धाभाव से मां विंध्यवासिनी का जयकारा लगाते हुए शीश नवाया। विध्यधाम मां विंध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। आदि शक्ति मां विध्यवासिनी देवी का तीसरे दिन गुड़हल, कमल व गुलाब के पुष्पों से भव्य श्रृंगार व पूजन-अर्चन हुआ। भोर की मंगला आरती के बाद दर्शन पूजन का क्रम आरम्भ हो गया। घंटा घड़ियाल, शंख, नगाड़ा एवं शहनाई की गूंज से समूचा धाम गुंजायमान रहा। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं से विंध्यधाम पटा रहा।

साधक विधि-विधान से मंदिर की छत पर शक्ति पाठ कर रहे हैं। इस दौरान मंदिर की छत पर साधकों की भारी भीड़ है।

वहीं, दूसरी तरफ दर्शनार्थी अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी कर रहे हैं। शहनाई और महिलाओं के गीतों के बीच बच्चों का मुंडन देखते ही बन रहा था।

त्रिकोण परिक्रमा कर पुण्य के भागी बने भक्त

मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन करने के बाद श्रद्धालु त्रिकोण परिक्रमा कर पुण्य के भागी बने। कालीखोह स्थित महाकाली के भव्य स्वरूप का दर्शन कर श्रद्धालु निहाल हो उठे। वहीं पहाड़ पर विराजमान मां अष्टभुजी देवी के दरबार में दर्शन-पूजन का क्रम अनवरत चलता रहा। मंदिर के बाहर कतार में खड़े श्रद्धालु माता का जयकारा लगाते मंदिर की तरफ बढ़े जा रहे थे।

पहाड़ पर घरौंदा बना, मांगी मन्नतें

नवरात्रि में मां विंध्यवासिनी, मां काली और मां अष्टभुजा के दर्शन कर त्रिकोण यात्रा करने की परंपरा है। त्रिकोण यात्रा के दौरान श्रद्धालु कालीखोह से अष्टभुजा जाते समय रास्ते में पत्थरों से घर बनाते हैं। मान्यता है कि त्रिकोण के दौरान पत्थरों से घर बनाने वाले लोगों के स्वयं का घर बनने की इच्छा मां विंध्यवासिनी अवश्य पूर्ण करती है।

आकर्षक ढंग से सजाया गया ओझला पुल

नवरात्र मेला पर ओझला पुल को विद्युत झालरों से आकर्षक ढंग से सजाया गया है। रंग-बिरंगे प्रकाश में पुल की नक्काशी अलग ही छटा बिखेर रही है। यहां से गुजरने वाले लोग इसे देखने के लिए एक पल को अवश्य रूक जा रहे हैं।

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नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना विशेष महत्व रखती है। माता ब्रह्मचारिणी ज्ञान, शांति और संयम की देवी हैं। इनकी उपासना से मन शांत होता है और इच्छाएं पूरी होती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं?
मां ब्रह्मचारिणी माता दुर्गा के दस महाविद्याओं में से एक हैं। वे ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली हैं और इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही शांत और निश्चल होता है। वे ज्ञान और तपस्या की देवी हैं।

माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र
माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए कई मंत्र हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंत्र हैं:

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। इस मंत्र का जप करने से मन शांत होता है और मानसिक संतुलन मिलता है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः। इस मंत्र का जप करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः। इस मंत्र का जप करने से घर में सुख-शांति का वास होता है और इच्छाएं पूरी होती हैं।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कई लाभ होते हैं, जैसे माता ब्रह्मचारिणी ज्ञान की देवी हैं। इनकी पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है और विद्यार्थियों के लिए यह विशेष रूप से लाभदायक है। माता ब्रह्मचारिणी शांति और संयम की देवी हैं। इनकी पूजा करने से मन शांत होता है और संयम में वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता की पूजा करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।

पूजा विधि

स्नान: स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
पूजा स्थल: पूजा स्थल को साफ करें और माता का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
दीपक: दीपक जलाएं।
धूप: धूप जलाएं।
अर्ध्य: जल चढ़ाएं।
फूल: फूल चढ़ाएं।
मंत्र जाप: उपरोक्त मंत्रों का जाप करें।
आरती: आरती करें।

भोग
माता ब्रह्मचारिणी को फल, मिठाई और सात्विक भोजन अर्पित किया जाता है।

कौन करें माता ब्रह्मचारिणी की पूजा
विद्यार्थी, तपस्वी, योगी और सभी भक्तजन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा कर सकते हैं। माता सभी की मनोकामनाएं पूरी करती हैं

नवरात्रि के दूसरे दिन का रंग
नवरात्रि के दूसरे दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। इसलिए इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनकर और पीले रंग के फूल चढ़ाकर माता की पूजा करनी चाहिए।

माता ब्रह्मचारिणी की आराधना से जीवन में शांति, ज्ञान और समृद्धि आती है। नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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– अबतक दो लाख से अधिक भक्तों ने किया दर्शन-पूजन
– मा विंध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा विंध्यधाम

मीरजापुर, 03 अक्टूबर (हि.स.)। आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी के धाम विंध्याचल में शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन गुरुवार की भोर से ही श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। हर कोई मां की झझलक पाने को लालायित दिखा। अबतक दो लाख से अधिक दर्शनार्थियों ने विंध्यवासिनी के शैलपुत्री स्वरूप के दर्शन किए।

मां विंध्यवासिनी के धाम में बुधवार की देर रात से ही भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। भोर की मंगला आरती के बाद घंटा-घड़ियाल के बीच विंध्यधाम मां विध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। हाथ में नारियल, चुनरी, माला-फूल प्रसाद के साथ कतारबद्ध श्रद्धालु मां की भक्ति में लीन दिखे। इस अवसर पर मां विंध्यवासिनी का भव्य श्रृंगार किया गया था। मंदिर को फूलों व रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था, जो अलौकिक छटा बिखेर रहा था। किसी ने झांकी तो किसी ने गर्भगृह से मां का दर्शन-पूजन कर मंगलकामना की। विंध्यवासिनी के दर्शन-पूजन के बाद भक्तों ने मंदिर परिसर पर विराजमान समस्त देवी-देवताओं के चरणों में शीश झुकाया। इसके बाद भक्तों ने मां काली और मां अष्टभुजा का दर्शन कर त्रिकोण परिक्रमा पूर्ण की।

पूजन-अनुष्ठान के लिए भक्तों ने जमाया डेरा

नवरात्र के प्रथम दिन ही विंध्याचल के सभी होटल लगभग भर गए। नौ दिनों तक पूजन-अनुष्ठान करने वाले भक्त पहले ही डेरा जमा चुके हैं। मंदिर की छत पर पूजन-अनुष्ठान का दौर शुरू हो गया, जो नवमी तक चलेगा।

श्रद्धालुओं में दिखी विंध्य कारिडोर देखने को उत्सुकता

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट विंध्य कारिडोर को जीवंत बनाने के लिए जिला प्रशासन ने पूरी ताकत झोंक रखी है। ध्वस्तीकरण के बाद विध्यधाम पूर्ण रूप से संकरी गलियों से मुक्त हो गया है। इससे श्रद्धालुओं को काफी सहूलियत होने लगी है।अब श्रद्धालु विंध्यवासिनी मंदिर से ही गंगा दर्शन भी कर रहे हैं। श्रद्धालु विंध्य कारिडोर देखने को काफी उत्सुक दिखे। कहा कि कारिडोर बनने से निश्चित तौर पर श्रद्धालुओं की आमद बढ़ेगी।

रोप-वे से आसान हुई श्रद्धालुओं की राह

पर्यटन विभाग ने 16 करोड़ की लागत से पीपीपी माडल पर विंध्य पर्वत पर रोप-वे का निर्माण कराया है। यह पूर्वाचल का पहला रोप-वे है। पहले मां अष्टभुजा व मां काली के दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं को सीढ़ी चढ़कर जाना होता था, जो बुजुर्ग श्रद्धालुओं के लिए खासा थकान भरा होता था। अब रोप-वे संचालन शुरू होने से श्रद्धालुओं की राह आसान हो गई है और काफी सहूलियत भी होने लगी है।

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Chhapra: शारदीय नवरात्र के पहले दिन गुरुवार काे माता रानी के ​मंदिरों में सुबह से भक्तों की भीड़ लगी हुई है। शहर में स्थित सभी देवी मंदिरों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। शुभ मुहूर्त में घरों भक्त देवी पूजा के लिए स्थापना कर रहें है।

माता रानी की घरों एवं मंदिरों में सात दिन भक्त पूजा अर्चना करेंगे। शारदीय नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना करने में भक्त लगे हुए है। प्रात: काल से ही लोगों ने विधि विधान से कलश स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू कर दिया है।

जिले के अंबिका भवानी शक्तिपीठ, गढ़ देवी मंदिर समेत तमाम देवी मंदिर पर सुबह से ही भीड़ जुटी है। मां भगवती के दिव्य स्वरूपों का दर्शन कर भक्त माता रानी की विधिक पूजा अर्चना कर रहे हैं।

मंदिर प्रबंधन ने सुरक्षा के मद्देनजर सीसीटीवी कैमरे लगाए हुए हैं। इसके साथ ही भीड़ नियंत्रण के लिए बैरिकेडिंग भी की गई हैं। साथ ही पुलिस बल भी शहर के प्रमुख मंदिरों में तैनात किए गये हैं।

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