नाग पंचमी: शास्त्र की दिव्यता और लोक की आस्था का संगम
Nag Panchami: हमारी संस्कृति परम्पराओं और विविधताओं से भरी पड़ी है। जहां शास्त्र और लोक मिलकर एक समृद्ध और जीवंत संस्कृति की बुनावट करते हैं। एक ओर जहां शास्त्र अपने वैदिक मंत्रों और विधियों का समावेश करते हैं, वहीं दूसरी ओर लोक की अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं। ऐसी ही एक अद्भुत परंपरा है नाग पंचमी, जो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व नागों की पूजा का पर्व है। इस पर्व में हमें प्रकृति, जीवन और आध्यात्मिक चेतना के गहरे संबंध की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।
शास्त्रीय आधार
शास्त्रों में नागों को अत्यंत शक्तिशाली, दिव्य और रहस्यमयी जीव माना गया है। महाभारत, रामायण, पुराणों आदि ग्रंथों में शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कालिया जैसे नागों का उल्लेख मिलता है। विष्णु भगवान स्वयं शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन रहते हैं। नागों को पृथ्वी के नीचे पाताल लोक का संरक्षक माना गया है, जो भूतल की उर्वरता और स्थिरता को नियंत्रित करते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने से शत्रु बाधा, भय और विष का नाश होता है तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है। विशेषकर महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं, दीवारों पर नाग की आकृति बनाकर दूध, मिठाई इत्यादि से पूजन करती हैं। यह न केवल धार्मिक कर्म है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का भी प्रतीक है।
लोक परंपरा
जहाँ शास्त्रों में नागों को दिव्यता का प्रतीक माना गया है, वहीं लोक परंपरा में वे साक्षात नाग देव हैं। विशेषकर पूर्वांचल में इस दिन महिलाएँ गोबर, पियराही सरसों और बालू को मिलाकर घर की दीवारों को चौगेंठती हैं और साथ ही नाग देव से परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं।
सदियों से चली आ रही एक परंपरा यह भी है कि इस सरसों और बालू के मिश्रण को गाँव के बुजुर्ग जिन्होंने सर्पों का मंत्र सिद्ध किया होता है, मंत्रोच्चारण के साथ सुध बनाते हैं। उसके बाद महिलाएँ इस सुध सरसों और बालू के मिश्रण को गोबर में मिलाकर दीवारों पर साँप और चौका की आकृति बनाती हैं।
साथ ही कई जगहों पर नाग देव को सुबह या शाम के समय दूध और जौ का लावा मिट्टी के पात्र में घर के चारदीवारी के बाहर चढ़ाया जाता है और लोग अपने घरों में भी जौ का लावा छिटते हैं। लोगों का मानना है कि नाग देव स्वयं आते हैं और दूध- लावा का सेवन करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। लोगों का यह भी विश्वास है कि इससे अकाल मृत्यु और सर्पदंश दोष टल जाते हैं। यह लोक और लोक के लोगों की वह मान्यता है, जो न जाने कितनी शताब्दियों से चली आ रही है।