Chhapra: जिले के मढ़ौरा निवासी जैनेन्द्र दोस्त को राजधानी दिल्ली में “भिखारी ठाकुर अंतरराष्ट्रीय सम्मान 2018” से सम्मानित किया गया है. यह सम्मान उन्हें अखिल भोजपुरी लेखक संघ, डिफेंडर ऑफ फ्रीडम एवं जन मीडिया की तरफ से मिला है. मढ़ौरा प्रखंड के रामचक गांव निवासी चन्द्रिका दोस्त के छोटे पुत्र जैनेन्द्र ने बीते कई वर्षों से भिखारी ठाकुर की रचनाओं पर रिसर्च कर रहे हैं. साथ ही उनकी कृतियों को देश और विदेश में भी जीवंत किया है.  कई वर्षों से फ़िल्म, रंगमंच, शोध और अध्यापन के जरिए भिखारी ठाकुर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने का कार्य किया है. जिसके फलस्वरूप उन्हें इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है.

पाकिस्तान में भी सम्मानित किये जा चुके है:

इनके द्वारा निर्देशित नाटक ‘गर्भनाद’ पाकिस्तान के लाहौर एवं कराची में प्रस्तुत एवं सम्मानित किया जा चुका है. इन्होने श्रीलंका एवं भूटान के रंगमहोत्सव में भी अपना सफल प्रदर्शन किया है. हाल ही में इनका नाटक ‘BhikhariNaama’ काठमांडू (नेपाल) में मंचित हुआ एवं खूब सराहा गया.

ये हैं उपलब्धियां:

जैनेन्द्र दोस्त जेएनयू (दिल्ली) के आर्ट एंड एस्थैटिक्स विभाग में पीएचडी शोधार्थी हैं. अब तक 20 से अधिक नाटकों में अभिनय तथा 15 से अधिक नाटकों का सफल निर्देशन एवं मंचन किया है. जैनेन्द्र दोस्त बिहार के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के रंगमंच को पुनर्जीवित एवं संस्थानीकृत करने के अथक प्रयास में सक्रिय हैं. वर्तमान में जैनेन्द्र दोस्त भिखारी ठाकुर रंगमंडल के निर्देशक है.

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ऐसे हुई थी शुरुआत:

भिखारी ठाकुर को लेकर इन्होंने 2010 से कार्य करना शुरू किया. इससे पहले उन्होने रंगमंच की शुरुआत अपने गांव स्कूल से ही किया. बड़े भाई धर्मेन्द्र दोस्त, रत्नेन्द्र दोस्त एवं समरेंद्र दोस्त के निर्देशन में गंवई रंगमंच से आगे बढ़े एवं मढ़ौरा इप्टा से होते हुए 2006 में दिल्ली के राष्ट्रीय रंगमंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराया. कई वर्षों से फ़िल्म, रंगमंच, शोध और अध्यापन के जरिए भिखारी ठाकुर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने का कार्य किया है. जिसके फलस्वरूप उन्हें इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है.

अपने बीस वर्षीय रंगमंचीय कैरियर में इप्टा (Marhowrah) , ब्रेख्तियन मिरर (दिल्ली) जैसे रंग संस्थाओं में काम करते हुए उन्होने 20 से ज्यादा नाटकों में अभिनय तथा 15 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन किया है. इन्होने भिखारी ठाकुर पर ‘नाच भिखारी नाच’ नाम से फिल्म भी बनाया है.

छपरा में संगीत नाट्य विद्यालय खोलने का है सपना:

इस उपलब्धि पर जैनेन्द्र दोस्त ने कहा कि आज का दिन बेहद खास है,”धन्यवाद भिखारी बाबा. आपने सही कहा था कि आपके साथ ईमानदारी से काम करने वाले का देश-दुनिया में खूब नाम होता है”. जैनेन्द्र बताते हैं कि छपरा में भिखारी ठाकुर के नाम से संगीत, नृत्य एवं नाट्य विद्यालय खोलने का उनका सपना है. वो इसपर तेजी से कार्य कर रहे हैं.

 

इन्हें भी मिला भिखारी ठाकुर सम्मान:

शिल्पी गुलाटी को गैर भोजपुरिया होते हुए भी भोजपुरी में भिखारी ठाकुर पर फ़िल्म निर्माण के लिए-“भिखारी ठाकुर अंतरसंस्कृति सम्मान – 2018” मिला.

डॉ विनय कुमार, उपप्रबंधक, राजभाषा, एमएमटीटी को भिखारी ठाकुर के साहित्य के प्रसारित करने के लिए-
“भिखारी ठाकुर साहित्य सेवी सम्मान – 2018”

संजय ऋतुराज को भोजपुरी सिनेमा तथा रंगमंच में एक सशक्त निर्देशन के लिए- “भिखारी ठाकुर बिदेसिया सम्मान – 2018” से सम्मानित किया गया है.

 

 

NewDelhi:भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि पर राजधानी दिल्ली के इंडियन हैबिटेट सेंटर कृति फ़िल्म क्लब द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस मौके पर ‘नाच भिखारी नाच’ फिल्म की स्क्रीनिंग भी हुई. जिसमें भिखारी ठाकुर एवं उनके रंगमंचीय, सामाजिक, सांस्कृतिक योगदान से दिल्ली के शहरी एवं  एलीट दर्शक अवगत हुए.

इस फिल्म के माध्यम से भिखारी ठाकुर अब अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग वर्ग के दर्शकों के बीच पहुंच रहे हैं. फ़िल्म की भाषा भोजपुरी को इंग्लिश सबटाइटल्स के साथ दिखाया गया. जिससे गैर भोजपुरी भाषी दर्शकों को भिखारी ठाकुर के गीत एवं नाटक असानी से समझ आ सके.

फ़िल्म समाप्ति के बाद निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त एवं शिल्पी गुलाटी से चर्चा के दौरान दर्शकों ने आमने सामने सवाल जवाब किया. जिसमें भिखारी ठाकुर एवं नाच से जुडी लोगों की कई सारी भ्रांतियों को निर्देशक ने दूर की.भिखारी ठाकुर ने अपने जीवनी गीत में लिखा है;

अबही नाम भइल बा थोरा
                    जब तन ई छूट जाई मोरा

                   तेकरा बाद बीस दस तीसा

                  तेकरा बाद नाम होई जइहन

                 कवि पंडित सज्जन जस गईहन

गीत की उक्त पंक्ति को चरितार्थ कर रहे जैनेन्द्र दोस्त न सिर्फ फ़िल्म बल्कि अपने नाटक ‘भिखारीनामा ‘ के माध्‍यम से देश दुनिया एवं गैर भोजपुरिया समाज को भिखारी ठाकुर से अवगत करा रहे हैं.  हाल ही में जैनेन्द्र दोस्त ने भिखारीनामा नाटक का मंचन काठमांडू नेपाल में किया था. इसके पहले भी श्री दोस्त श्रीलंका पाकिस्तान एवं भूटान में भी भिखारी ठाकुर के गीतों एवं नटकों का मंचन कर चुके हैं.

 

पिछले दिनों हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रदर्शनकारी कला विभाग द्वारा महाराष्ट्र के ग़ालिब सभागार में भिखारी ठाकुर रंगमंडल की नाट्य प्रस्तुति ‘भिखारीनामा’ का आयोजन किया गया. जिसमें महान लोक नाट्य प्रयोक्ता भिखारी ठाकुर के जीवन एवं रंगमंच पर आधारित एक संगीतमय प्रस्तुति दी गयी. इस नाटक का लेखन, निर्देशन एवं अभिनय रंगकर्मी जैनेन्द्र दोस्त ने किया.

इस भिखारिनामा में भिखारी ठाकुर के नाच, संगीत, नृत्य, वस्त्र, मेकअप, वाद्य यंत्र एवं उनके नाटकों के अंश को एक मनोरंजन क्रम में दिखाया गया. जिसमें भिखारी ठाकुर के जन्म से लेकर उनके नाच पार्टी बनाने तक एवं बिदेसिया नाटक रचने तक की कहानी को इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया.

नाटक में जोकर बन कर अभिनेता ने दहेज पर जीएसटी लगने की बात कह कर दर्शकों को खूब गुदगुदाया. नाटक में जाति व्यवस्था पर भी करारा प्रहार किया गया. इतना ही नहीं विस्थापन की समस्या को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया.
नाटक के समापन पर प्रदर्शनकारी कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश भारती ने निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त को सम्मानित करते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता आज भी बरक़रार है. आज भिखारी ठाकुर जीवित होते तो देश में हो रहे अनेक घटनाओं पर अवश्य ही नाटक लिखते एवं करते.

नाट्य के निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त बताया कि भिखारीनामा कई सालों के शोध कार्यों के बाद बना है. शोध कार्य न सिर्फ़ स्क्रिप्ट के स्तर पर हुआ है बल्कि एक नई रंगभाषा के सृजन का भी प्रयास इस नाटक में दिखा है. कई बार नाटक गाथा गायन की शैली में अभिनय की प्रचुरता की तरफ़ बढ़ता है तो कई बार एकल अभिनय के पुराने मानदंडों से अलग अभिनेता गीत-संगीत-नृत्य के साथ दर्शकों को अपने साथ कुछ दूर ले जा कर छोड़ देता है. अभिनेता मंच पर ही जब वस्त्र एवं वेश बदल कर विभिन्न भूमिकाओं में आता है तो वस्त्र और रूप बदलने की प्रक्रिया भी बृहद स्तर पर दर्शकों को नाटक से जोड़ती है. इस नाटक में पूर्वी, निर्गुण, दोहा, चौबोला सहित विभिन्न लोकगीतों को नाटकीय क्रम में शामिल किया गया है.

नाटक में संगीत संयोजन सरिता साज़ ने किया था. वहीं संगतकार के रूप में गौरीशंकर, सुनील राव, बृजनाथ, अश्विनी रोकड़े एवं जीवन मौजूद थे, फ़ोटो डॉक्यूमेंटेशन नरेश गौतम ने किया था. दर्शकों में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, छात्र, शोधार्थी कर्मचारी के अलावा विश्वविद्यालय के बाहर से भी लोग आए थे.

Chhapra(Surabhit Dutt): भिखारी ठाकुर रंगमंच शताब्दी समारोह के अवसर पर शहर के राजेन्द्र स्टेडियम में भारतीय संस्कृति के कई रंग देखने को मिले. ग्रामीण परिवेश में संस्कृति के कई ऐसे आयाम है जो आज के आधुनिक युग में पीछे छूटते जा रहे है. अपनी संस्कृति से रूबरू कराने के लिए किए जा रहे इस आयोजन को भिखारी ठाकुर से जोड़ा गया है जो स्वयं ग्रामीण संस्कृति और विधाओं को नाटक के जरिये विश्व पटल से अवगत कराने के लिए जाने जाते है.

इस आयोजन के पहले दिन खासियत यह रही कि लोगों को खास कर नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से अवगत होने का मौका मिला. कार्यक्रम की शुरुआत रस्म चौकी से हुई. जिसके बाद मधुबनी से पहुंचे कलाकारों ने रघुवीर यादव के नेतृत्व में सलेस अनुष्ठानिक का मंचन किया. ग्रामीण क्षेत्रों के इन रस्म रिवाजों से लोग अवगत नही हो रहे जिसको यहां दर्शाया गया. इस तीन दिवसीय आयोजन के अगले दो दिन स्थानीय लोगों को कला संस्कृति से रूबरू होने का अवसर मिलेगा.

सुमन कुमार, उपसचिव, संगीत नाटक अकादमी

संगीत नाटक अकादमी के उप सचिव सुमन कुमार ने बताया कि भिखारी ठाकुर अपनी कृतियों से आज के इस दौर में भी प्रासंगिक है. संगीत नाटक अकादमी ने भिखारी ठाकुर को कलाकार होने का सम्मान दिया है. इससे रंगमंच को एक दिशा मिल रही है. अकादमी ने रंगमंडल में प्रशिक्षण की व्यवस्था करने की कोशिश हो रही है. अगले तीन दिनों तक भिखारी के नाटक, गीत, अनुष्ठानिक देखने को मिलेंगे. इसके माध्यम से दशा और दिशा ठीक करने की कोशिश होगी.

आयोजक जैनेन्द्र दोस्त ने बताया कि भिखारी ठाकुर रंग-शतक को लेकर लोग पूछते है कि शतक कैसे हुआ. ऐसे में उनकी एक उक्त प्रासंगिक है जिसमे उन्होंने कहा है कि 

तीस बरिस के उमीर भइल, बेधलस खुब कलिकाल के मइल।

नाच मंडली के धरी साथ, लेक्चर दिहिं कही जय रघुनाथ।।

जैनेन्द्र दोस्त, आयोजक

भिखारी ठाकुर बीसवीं शताब्दी के बड़े नाटककार कलाकारों में से एक रहे है. अपने नाच-नाटक दल की स्थापना कर उन्होंने नाटकों के माध्यम से तत्कालीन समाज की समस्याओं और कुरूतियों को सहज तरीके से नाच शैली में मंच पर प्रस्तुत करने का काम किया. उनके नाच दल भिखारी ठाकुर रंगमंडल ने अपनी 100 वर्ष की रंगमंचीय यात्रा को इस वर्ष पूरा किया है.

इस आयोजन में अगले तीन दिनों तक लोगों को सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देखने को मिलेगी. हालांकि आयोजकों के द्वारा बेहतर प्रचार प्रसार ना करने से लोगो को कार्यक्रम की जानकारी कम हुई और पहले दिन भीड़ कम ही दिखी.