भिखारीनामा नाटक में जीवंत हुए भिखारी ठाकुर

भिखारीनामा नाटक में जीवंत हुए भिखारी ठाकुर

पिछले दिनों हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रदर्शनकारी कला विभाग द्वारा महाराष्ट्र के ग़ालिब सभागार में भिखारी ठाकुर रंगमंडल की नाट्य प्रस्तुति ‘भिखारीनामा’ का आयोजन किया गया. जिसमें महान लोक नाट्य प्रयोक्ता भिखारी ठाकुर के जीवन एवं रंगमंच पर आधारित एक संगीतमय प्रस्तुति दी गयी. इस नाटक का लेखन, निर्देशन एवं अभिनय रंगकर्मी जैनेन्द्र दोस्त ने किया.

इस भिखारिनामा में भिखारी ठाकुर के नाच, संगीत, नृत्य, वस्त्र, मेकअप, वाद्य यंत्र एवं उनके नाटकों के अंश को एक मनोरंजन क्रम में दिखाया गया. जिसमें भिखारी ठाकुर के जन्म से लेकर उनके नाच पार्टी बनाने तक एवं बिदेसिया नाटक रचने तक की कहानी को इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया.

नाटक में जोकर बन कर अभिनेता ने दहेज पर जीएसटी लगने की बात कह कर दर्शकों को खूब गुदगुदाया. नाटक में जाति व्यवस्था पर भी करारा प्रहार किया गया. इतना ही नहीं विस्थापन की समस्या को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया.
नाटक के समापन पर प्रदर्शनकारी कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश भारती ने निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त को सम्मानित करते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता आज भी बरक़रार है. आज भिखारी ठाकुर जीवित होते तो देश में हो रहे अनेक घटनाओं पर अवश्य ही नाटक लिखते एवं करते.

नाट्य के निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त बताया कि भिखारीनामा कई सालों के शोध कार्यों के बाद बना है. शोध कार्य न सिर्फ़ स्क्रिप्ट के स्तर पर हुआ है बल्कि एक नई रंगभाषा के सृजन का भी प्रयास इस नाटक में दिखा है. कई बार नाटक गाथा गायन की शैली में अभिनय की प्रचुरता की तरफ़ बढ़ता है तो कई बार एकल अभिनय के पुराने मानदंडों से अलग अभिनेता गीत-संगीत-नृत्य के साथ दर्शकों को अपने साथ कुछ दूर ले जा कर छोड़ देता है. अभिनेता मंच पर ही जब वस्त्र एवं वेश बदल कर विभिन्न भूमिकाओं में आता है तो वस्त्र और रूप बदलने की प्रक्रिया भी बृहद स्तर पर दर्शकों को नाटक से जोड़ती है. इस नाटक में पूर्वी, निर्गुण, दोहा, चौबोला सहित विभिन्न लोकगीतों को नाटकीय क्रम में शामिल किया गया है.

नाटक में संगीत संयोजन सरिता साज़ ने किया था. वहीं संगतकार के रूप में गौरीशंकर, सुनील राव, बृजनाथ, अश्विनी रोकड़े एवं जीवन मौजूद थे, फ़ोटो डॉक्यूमेंटेशन नरेश गौतम ने किया था. दर्शकों में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, छात्र, शोधार्थी कर्मचारी के अलावा विश्वविद्यालय के बाहर से भी लोग आए थे.

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