अमनौर: गंडक नदी के जल स्तर बढ़ने से सारण तटबंध के दियारा क्षेत्र परशुरामपुर में रिंग बांध टूट गया है जिससे परशुरामपुर, कुआरी, साहपुर में दर्जनों घर बाढ़ के चपेट में आ गए है. सभी बाढ़ पीड़ित किसी प्रकार घर से अपना सामान निकालकर छत पर रखे हुए हैं.

कुछ लोग सारण तटबंध पर आकर रहने को मजबूर हैं. बाढ़ आने की बात सुन सूर्योदय के समय ही प्रखंड विकास पदाधिकारी वैभव कुमार, स्वास्थ्य टीम के साथ प्रभारी बी के चौधरी, प्रबंधक शिवकुमार पासवान, पीयूष कुमार, प्रमुख विश्वामित्र शर्मा, पूर्व प्रमुख सुनील राय, उप प्रमुख विक्की राय ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया. स्वास्थ्यकर्मीयों द्वारा बाढ़ पीड़ितों को दवाइयां, ब्लीचिंग पाउडर उपलब्ध कराई गईं. इसके साथ ही दो ए एन एम् को सारण तटबंध पर नियुक्त किया गया है.

बी डी ओ वैभव कुमार ने बाढ़ पीड़ितों से मिलकर उनका हाल चाल जाना और हर सुविधा मुहैया कराने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि सारण तटबंध से पानी अभी नीचे है, तटबंध अभी पूर्ण रूप से सुरक्षित है. दियारा क्षेत्र के जो गांव है वही बाढ़ के चपेट में हैं. आस पास के ग्रामीणों को भयभीत होने की जरुरत नही है.

 

छपरा/सोनपुर: सोनपुर अंचल के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का मंगलवार को जिलाधिकारी दीपक आनंद और पुलिस अधीक्षक पंकज कुमार राज ने जायजा लिया. इस दौरान उन्होंने बाढ़ प्रभावित सोनपुर प्रखंड के विभिन्न राहत शिविरों का निरीक्षण किया.

डीएम ने राम सुन्दर दास काॅलेज, डीआरएम कार्यालय एवं छोवा गोदाम स्थित राहत कैम्प का निरीक्षण किया. उन्होंने बाढ़ पीड़ितों के साथ मुलाकात कर, उनकी समस्याओं की जानकारी प्राप्त की. वही राहत शिविर में जिलाधिकारी और आरक्षी अधीक्षक ने बाढ़ पीड़ितों के साथ बैठकर भोजन भी किया.

इसके बाद जिलाधिकारी ने मीरदाहा विद्यालय, पहलेजा घाट, रामलखन दास आश्रम, नयागांव स्टेशन, शोभेपुर, हासिलपुर तथा दुधैला मोर पर राहत कैम्प नियमित रूप से चलाने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि रामसुन्दर दास काॅलेज स्थित राहत कैम्प में 550, डीआरएम काॅलेज स्थित राहत शिविर में 600, छोवा गोदाम स्थित कैम्प में 750, मीरदाहा विद्यालय स्थित राहत कैम्प में 450, पहलेजा घाट स्थित राहत कैम्प में 750, रामलखन दास आश्रम स्थित राहत कैम्प में 250, नयां गांव स्टेशन राहत कैम्प में 500, शोभेपुर स्थित राहत कैम्प में 500, हासिलपुर स्थित राहत कैम्प में 300 तथा दुधैला स्थित राहत कैम्प में 300 बाढ़ पीड़ितों कों भात, दाल, सब्जी सहित भोजन स्टील के बरतन में दिया जा रहा है.

(संतोष कुमार ‘बंटी’) दोपहर का समय था. उपर आसमान से चिलचिलाती धूप और नीचे पानी. पसीने से लथपथ सभी के चेहरे बस एक टक अपने आशियाने को निहार रहे थे. दूर तक फैली सफेद चादरों के बीच उम्मीद की लौ के बीच इनका आशियाना आत्मबल को बढ़ा रहा था, मानों कह रहा हो, मैं अभी तुम्हारे लिये जीवित हूँ. कभी साफ और कभी गंदगी का अंबार लिये नदी की लहरें आँखमिचौली करते हुए पास आती और चली जाती. बच्चों को तो एक खेलने का खिलौना मिल गया हो जब जी चाहा पानी में हंसी ठिठोली कर खेलने लगे.

DSCN9967
अपने मवेशियों के साथ पुल पर शरण लिए बाढ़ पीड़ित

अर्जुन राय का पूरा परिवार सड़क पर लगें पानी के बीच चौकी पर दिन गुजारने की जुगत में है. लेकिन इसी बीच पानी में खेल रहे मोहन ने अचानक पास आकर कहा “माई खाए के दे भूख लागल बा” अपने बेटे की भूख देखकर माँ ने तुरंत रोटिया दे दी. बिना सब्जी और आचार के मोहन ने रोटी खाकर अपनी पेट की आग को ठंडा किया और फ़िर अपने दोस्तों में मग्न हो गया. दोपहर का समय था तो धीरे धीरे फिर सभी लोगों ने रोटिया खाई. 

शहर से महज 100 मीटर की दूरी पर स्थित निचला ईलाका कहने के लिए तो शहर का भाग हो सकता है लेकिन सरकारी दस्तावेजों में यह रिविलगंज प्रखंड क्षेत्र में होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र की श्रेणी में है. पंचायत दिलीया रहीमपुर के सैकड़ो परिवार बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहे है. घर पानी में जलमग्न हो गया है. जितना हो सका लोगों ने अपने घरों से सामानों को बाहर किया और उसी के सहारें जीवन का निर्वाह हो रहा है. कुछ लोगों के घर पूरी तरह से पानी से तबाह हो चुकें है जिसके कारण वह बेघर हो चुके हैं. वही कुछ के मकान इन पीड़ितों की तरह आपना हौसला बुलंद कर पानी में भी डटे हुए है.DSCN0043 (1) 

अर्जुन राय का परिवार भी इन्हीं पीड़ितों में से एक है. घर पानी में और जरुरत के सामानों के साथ परिवार सड़क पर. पुरे दिन खुलें आसमान में दिन तो गुजर रहा है लेकिन रात की विभीषिका आंखों की नींद चुरा लेती है. जिंदगी के आख़िरी कदम पर अर्जुन की माँ घर के नजदीक सड़क के पानी में अपने चौकी पर पोते पोतियों के साथ रहने को विवश है. किसी जुगत से परिवार के पुरे दिन में एक बार ही भोजन बन रहा है. लेकिन आर्थिक तंगी से वह भी अब आस की मोहताज बनने वाली है. पुरे दिन जिन्दगीं के लिए एक दुसरें की जद्दोजहद देखकर दिन तो कट जा रहा है. लेकिन जिन्दगीं की असल जंग तो रात के साथ शुरू होती है. बच्चें अपनी थकान के साथ नींद की आगोश में चले जाते है लेकिन पानी की तेज डरावनी आवाज से बड़ों की नींद उड़ जाती है. ऊपर से सांप और बिच्छू का डर उनकी पलकों को झपकने तक नही देता है. विगत चार दिनों से बाढ़ की इस विभीषिका का दंश झेल रहे हजारों लोगों के जुबान पर बस यही शब्द है….

“दुनिया में आये है तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा”