Chhapra: कोरोना वायरस को लेकर सरकार द्वारा 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा की गई है. एक एक दिन करके इस लॉक डाउन अवधि के 6 दिन पूरे भी हो गए. लेकिन यह लॉक डाउन उनके लिए एक गंभीर समस्या है जो रोज कमाकर अपने और परिवार का भरण पोषण करते है. आय के सभी श्रोत बंद है और सरकारी योजनाओं से भी उन्हें लाभ नही मिल रहा है.

शनिवार को ऐसे ही परिवारों के बीच खाद्यान्न सामग्री का वितरण किया गया. नगर निगम के वार्ड संख्या 33 के वार्ड पार्षद कृष्णा शर्मा के नेतृत्व में करीब 400 से अधिक परिवारों के बीच खाद्य सामग्री, बिस्किट, आलू के पैकेट का वितरण किया गया.

वार्ड पार्षद ने बताया कि वार्ड के वैसे घरों को चिन्हित किया गया जो बेहद गरीब है. प्रतिदिन काम करके अपने परिवार के सदस्यों का भरण पोषण करते है, जिनके पास राशन कार्ड नही है. इनको चिन्हित कर उनके बीच खाद्य सामग्री वितरण की योजना बनी. कुछ दोस्त ने मिलकर आर्थिक मदद की, कुछ दोस्तों ने समान का सहयोग किया. सभी के सहयोग से वार्ड के करीब 400 से अधिक परिवार के लिए आलू, बिस्किट, आटा, चावल का पैकेट बनाकर वितरण किया गया.

वार्ड पार्षद ने इस नेक कार्य मे सहयोग करने वाले शैलेन्द्र सेंगर, रितेश गुप्ता, मनोज कुमार, तरण जीत सिंह चावला, राजेश्वर प्रसाद, बंटी कुमार, हरि प्रसाद, संतोष कुमार, विकास कुमार का आभार व्यक्त किया है जिन्होंने इस आपदा की घड़ी में साथ देकर उन परिवारों किस सहायता की है.

(प्रभात किरण हिमांशु)

जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष है. पर संघर्ष जब अपनी पराकाष्ठा पर हो तो वेदना का रूप ले लेता है. संघर्ष कभी सफल होने के लिए होता है तो कभी जीवन यापन के लिए. हर संघर्ष की अपनी ही एक कहानी है.

छपरा के कटहरीबाग की 14 वर्षीया ‘लक्ष्मी’ भी जीवन में कठिन संघर्ष के दौर से गुजर रही है. लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी छपरा टुडे की सिर्फ एक रिपोर्ट ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है.

छपरा टुडे #SpecialStory  में हम लक्ष्मी के संघर्ष को आपतक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं.

लक्ष्मी 14 वर्ष की एक छोटी बच्ची है. इस उम्र में जहां लक्ष्मी जैसी बच्चियां पारिवारिक जिम्मेवारियों से मुक्त बचपन का भरपूर आनंद उठती हैं. वहीं लक्ष्मी अपने परिवार की जिम्मेदारियों का वहन करने के लिए छपरा के नगरपालिका चौक पर ठेले पर पकौड़े बेचती है.

लक्ष्मी के पिता श्यामबाबू गुप्ता को माउथ कैंसर है और उनका इलाज चल रहा है. लक्ष्मी की माँ पति की देख-रेख में लगी रहती है. घर की आर्थिक स्थिति बद्तर है. लक्ष्मी अपने छोटे भाई बहन और पिता के इलाज के लिए रोजाना नगरपालिका चौक पर लोगों को गरमागरम पकौड़े बनाकर खिलाती है. जो आमदनी होती है उसी से किसी तरह घर का गुजारा चलता है. लक्ष्मी की छोटी बहन 10 साल की शिवानी भी काम में उसकी मदद करती है.

कई लोग वहां पकौड़े खाने आते हैं. कुछ लोग लक्ष्मी के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हैं तो कुछ पकौड़े का स्वाद लेकर पैसे देकर चले जाते हैं और लक्ष्मी अपने हाल पर खड़ी अपना दूकान चलाती रहती है. रात को घर जाकर लक्ष्मी पढाई भी करती है और अपने भाई बहनों का ख्याल  भी रखती है. ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी दूकान पर आएं उसके लिए लक्ष्मी ने ठेल पर मदद के गुहार की पोस्टर भी लगा रखी है.

नगरपालिका चौक से प्रतिदिन बड़े-बड़े नेता और आलाधिकारी गुजरते हैं. कमोबेस सबकी नजर ठेले पर जाती है पर विकास के दावों का बड़ा-बड़ा भाषण देने वाले नेता लक्ष्मी की इस विवशता पर मौन है.

लक्ष्मी के संकल्प के आगे सभी सरकारी वादे बौने साबित हो रहे हैं. रोजगार के लिए पकौड़े बेचना गुनाह नहीं है. पर लक्ष्मी जैसी बच्ची जिसे इस उम्र में उन्मुक्त गगन के छांव में मासूम बचपन का पूरा आनंद लेना था वो आज दो वक्त के रोटी की जुगाड़ और पिता के इलाज के लिए पकौड़े बेच रही है.

छपरा टुडे #SpecialStory के माध्यम से आपसे आग्रह करना चाहता है कि आप इस छोटी बच्ची की मदद में आगे आएं. लक्ष्मी को जरूरत है समाज के उन रक्षकों की जो बचपन की मासूमियत और भावनाओं को समझते हैं. वैसे लोग जिन्हें ख्याल है देश के बच्चों का. इतनी छोटी उम्र में लक्ष्मी के इस मजबूत हौसले को हमारा पूरा सपोर्ट है.