Chhapra: अपना छपरा प्राचीन शहर है. समय जरूर बदला लेकिन इसकी सूरत नही बदली. सत्ता के गलियारों में छपरा (सारण) ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है. राज्य से लेकर देश की राजनीति में सारण का अहम योगदान रहा. कई नेताओं की बुनियाद को भी छपरा ने ही खड़ा किया लेकिन अफ़सोस दिन प्रतिदिन इस शहर की खुद की बुनियाद धराशायी होती गयी.
शहर की दो मुख्य समस्या सड़क और जलनिकासी. सत्ता के समर्थन से दोनो ही हाशिये पर रही. 50 से 70 के दशक में जिस खनुआ नाला में नाव से यातायात होता था, दक्षिण की नदियों का पानी इसी खनुआ नाला के सहारे उत्तर के चंवर में जाता था जिससे खेती होती था. उसपर धीरे धीरे आंशिक ग्रहण लगना शुरू हुआ अफसोस 1995 में उसी नाले पर पूर्ण ग्रहण लग गया. जलनिकासी के लिए सरकार ने नाले का जीर्णोद्धार तो किया लेकिन उसपर दुकाने बन गयी. जिसके कारण 25 वर्षो से लंबे समय तक इसकी सफाई नही हुई. अलबत्ता शहर जलजमाव से अब डूब रहा है.
बहरहाल शहर में एक उम्मीद की किरण निकली है. जो सम्पूर्ण प्रकाश फैलाकर फिर से एक बार जलजमाव से निजात दिलाने के साथ साथ सुगम यातायात व्यवस्था बनाने की ओर अग्रसर है. रास्ता आसान नही है लेकिन मुश्किल भी नही है.
शहर की इन दोनों समस्याओं के निदान का प्रयास कर रहे जिलाधिकारी सारण डॉ नीलेश रामचंद्र देवड़े ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने दोनों समस्याओं का स्वयं अनुभव किया है. जो एक प्रशासनिक अधिकारी के स्वच्छ मनोभाव को दर्शाता है.
शहर को लेकर उनके विचार भविष्य के छपरा शहर की अलग तस्वीर दिखा रहे है. जनता की समस्याओं का अनुभव और उसका निदान, समीक्षा, निरीक्षण, अनुपालन यह दर्शाता है कि अपना शहर स्वच्छ छपरा, सुंदर छपरा बनकर दिखेगा.
आप भी पढ़ें, सारण डीएम ने खनुआ नाला को लेकर क्या कहा है…
छपरा शहर के जल निकासी के लिए बनाए गए खानुआ नाला का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. राजस्व रिकॉर्ड में यह ‘नहर’ के रूप में दर्ज है, लेकिन 90 के दशक में तत्कालीन नगर परिषद, छपरा ने इस पर दुकानें बना लीं. जिससे इस नाले की सफाई का काम मुश्किल हो गया. नागरिकों की शिकायत है कि पिछले 25 वर्षों में इस नाले की सफाई नहीं हुई है, जिससे बरसात के दिनों में शहर के मुख्य क्षेत्र में गंभीर जलजमाव हो जाता है.
सिटीजन फोरम ने वर्ष 2015 में एनजीटी में इसके जीर्णोद्धार के लिए याचिका दायर की थी. एनजीटी ने वर्ष 2020 में डीएम सारण को इसके उपर बनी दुकानों को हटाते का आदेश दिया था.
पिछले 4 महीनों से इस नाले पर से मुख्य अतिक्रमण को हटा दिया गया है. लेकिन असली चुनौती शहर के मुख्य बाजार क्षेत्र मौना सांढा में नाले पर बनी दुकानों को ध्वस्त करना था. इन दुकानों को गिराना मुश्किल काम था, क्योंकि दुकानदार तोड़-फोड़ का विरोध कर रहे थे. लेकिन उचित संचार, जनभागीदारी और जागरूकता के साथ, हमने शांतिपूर्वक ढंग से ऐसा किया.
अब विश्वकर्मा पूजा दिवस (17 सितंबर) पर, हम इस 12-15 फीट चौड़े खानुआ नाले पर पहली सड़क (कलेक्ट्रेट से बी. सेमिनरी) खोल रहे हैं.
इस नाले के जीर्णोद्धार से न केवल शहर के बीचों-बीच जलजमाव की समस्या का समाधान होगा, बल्कि नाले पर बनी सड़कें शहर के यातायात को सुगम करेंगी. जिससे पैदल, बाइक, साइकिल वालों को वैकल्पिक मार्ग मिलेगा.
यह आसान काम नहीं है, लेकिन प्रतिबद्ध टीम और जनभागीदारी से बदलाव लाया जा सकता है.
(साभार: जिलाधिकारी निलेश रामचंद देवरे के फेसबुक पोस्ट का हिंदी अनुवाद ) https://m.facebook.com/story.php story_fbid=4894327253911976&id=100000042488043





 
									 
									 
									 
									 
									 
									
																																 
									
																																 
									
																																 
									
																																 
									
																																 
									
																																 
									
																																 
									
																																




 
                         
                         
                         
                         
                         
				 
				 
				 
				 
				 
				 
				 
				 
				