{रिपोर्ट : अभिनंदन द्विवेदी और कुलदीप तिवारी}
सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ इन दिनों सुर्खियों में है। 5 मई को बड़े पर्दे पर रिलीज होने के बाद से फ़िल्म लगातार विवादों में है। फ़िल्म ने अब तक बॉक्स ऑफिस पर 147 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया है। इसी क्रम में फ़िल्म की स्टार कास्ट भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्विद्यालय पहुँची। जहां फ़िल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन, निर्माता अमृतलाल शाह, लीड एक्ट्रेस अदा शर्मा और साथ में लेखक सूर्यपाल सिंह ने पत्रकारिता के छात्रों से बातचीत किया।
सुदीप्तो सेन ने कहा “यह फ़िल्म देश की फ़िल्म है। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक के लोगों ने इस फिल्म को देश का फ़िल्म बनाया है, दो राज्यों को छोड़ कर”। निर्देशक ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हम विश्विद्यालय के छात्र – छत्राओं का धन्यवाद करना चाहते हैं जिन्होंने इस फ़िल्म को देखा और अपने परिजनों को भी फ़िल्म देखने के लिए प्रेरित किया। आगे उन्होंने कहा कि ब्रिटेन जैसे देश में इस फ़िल्म का रिलीज ना होना एक लोकतांत्रिक प्रणाली वाले देश पर सवालिया निशान है।
निर्माता विपुल अमृतलाल शाह ने कहा कि सुदीप्तो दादा ने जो कुछ भी बताया उसके बाद मेरे लिए कुछ बोलने को बाकी नहीं रहा। फ़िल्म के लेखक सूर्यपाल सिंह ने एक किस्सा साझा करते हुए कहा “एक बेटी फ़िल्म देख अपने घर पहुँच कर माँ से कहती है कि मुझे आज नींद नहीं आएगी, तब माँ कहती है बेटी अब हम पूरी ज़िंदगी चैन की नींद सो सकेंगे”। एक दूसरा किस्सा बताते हुए लेखक कहते हैं “मैं परसो इंदौर में था, जहाँ मैंने देखा कि 20 दृष्टि बाधित छात्राएं सिनेमा हॉल में फ़िल्म को सुनने आयीं थीं। साथ ही छात्राओं ने फ़िल्म को सराहा। मुझे लगता है कि ऐसा होना किसी भी भारतीय सिनेमा के लिए कान फ़िल्म फेस्टिवल में अवार्ड पाने जैसा है।
फ़िल्म की टीम से सवाल करते हुए छात्र ने पूछा : फ़िल्म की कास्टिंग में कितनी दिक्कत आयी ? जवाब में निर्देशक सुदीप्तो सेन ने बताता की फ़िल्म की प्लानिंग 2004 में ही हुई थी। चूंकि यह फ़िल्म केरल पर बननी थी तो पहले इसे मलयालम भाषा में बनना था। बाद में अदा शर्मा को फ़िल्म में कास्ट करने के बाद हमने इसे हिंदी में भी रिलीज करने का फाइनल किया।
आगे एक दूसरे सवाल के जवाब में निर्देशक ने कहा कि अदा शर्मा एक बहादुर अदाकारा हैं। आए दिन इनके सोशल मीडिया पोस्ट पर कई सारे भद्दे कमेंट आते हैं।
फ़िल्म को फिक्शनल और रियलिस्टिक रखने के लिए क्या किया गया ? इसके जवाब में निर्देशक ने कहा “फ़िल्म बनने से पहले कई वर्कशॉप किये गए। कहानी को पूरी तरह से सच्चाई के साथ रखने के लिए हमनें लद्दाख और केरल के जगहों पर गम्भीर परिस्थितियों में फ़िल्म को शूट किया है। हमने ये ध्यान रखा था कि कोई भी किरदार फेक ना लगे जिसके लिए हमने कई टेक्निकल वर्कशॉप आयोजित किये”।
ये जानते हुए की फ़िल्म एक समुदाय विशेष के तरफ इशारा करती है, आपने फ़िल्म को साइन करते वक्त क्या सोचा और क्या इस बात का डर है कि आगे आपको फ़िल्म नहीं मिलेगी ? जवाब में अदा शर्मा ने कहा “किरदार को निभाते हुए मैंने ख़ुद को काफी रियल रखा था। एक्टिंग की बारीकियों को समझते हुए मैंने किरदार को निभाया है। ये कहानी टेररिज़्म के अपोजिट है। इंसानियत एक पक्ष है, मेरे कई मुस्लिम दोस्त भी हैं। कुछ लोग बुरे हैं। टेररिज़्म का कोई मज़हब नहीं होता”।
कुछ लोगों का कहना है कि फ़िल्म एक प्रोपेगैंडा है ? जवाब देते हुए निर्माता ने कहा “सच कड़वा होता है। 3 लड़कियों की कहानी बताना कौन सा प्रोपेगैंडा है। देश की जनता ने जवाब दे दिया है। फ़िल्म का कारोबार इस बात की तरफ इशारा करता है कि जनता ने इसे देश का विषय बना दिया है। टेररिज़्म का कोई धर्म नहीं होता”।
फ़िक्शन और रियल स्टोरी पर लिखना कितना कठिन होता है ? जवाब में फ़िल्म के लेखक सूर्यपाल सिंह ने कहा “सच को सच की तरह ही लिखा जाता है। चुंकि फ़िल्म है तो मनोरंजन का भी ध्यान रखना होता है। कोई भी सिन किसी विशेष समुदाय की भावना को ठेस ना पहुँचाये इसका ध्यान भी हमने रखा था। हमने घूम कर इस विषय से जुड़ी लोगो से साहित्य को समझा। लोगों के मूड के हिसाब से फ़िल्म की कहानी और साहित्य पर काम किया गया। हमने रियलिटी में फिक्शन और फिक्शन में रियलिटी हो इसका विषय ध्यान रखा था”।
आपका अभी तक मसाला फिल्मों से नाता ज्यादा रहा है, अब एक दूसरे फ्लेवर की फ़िल्म कैसे ? जवाब में निर्माता विपुल शाह ने कहा “ये विषय एक ड्यूटी की तरह था। लोग डरते हैं ऐसी कहानी पर काम करने से। मेरी हर पिछली फिल्मों में भी सन्देश छुपा रहता था”।