हरतालिका तीज व्रत आज

हरतालिका तीज व्रत आज

अखंड सुहाग की कामना के लिए रखा जाने वाला व्रत तीज एवं चंद्रमा की पूजा का पर्व चौठ चंद्र सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया।

मंगलवार को तीज व्रती निर्जला रहकर बुधवार को पारण करेगी, जबकि चौठ चंद्र करने वाले व्रती मंगलवार की शाम में चंद्रमा का उदय होने के बाद पूजा अर्चना कर व्रत का समापन करेंगी।

आचार्य अविनाश शास्त्री ने बताया कि भारतीय सभ्यता संस्कृति में विवाह सबसे उत्तम एवं पवित्र संस्कार माना गया है। महिलाओं के लिए सौभाग्यवती होना पूर्व जन्म के अर्जित पुण्य का प्रभाव माना जाता है, इसलिए महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार का व्रत करती हैं।

मंगलवार को प्रातः वेला में सूर्योदय से दोपहर 2:40 बजे तक शुभ मुहूर्त है। तीज व्रत उदय कालिक तृतीया तिथि में किया जाता है एवं चतुर्थी चंद्र पूजन चंद्रमा के उदयकाल में किया जाता है। प्रातः दिलासे अपने पति के दीर्घायु होने की कामना के लिए महिलाओं द्वारा पूजा पाठ शुरू कर दिया जाएगा। जबकि दोपहर में 2:40 के बाद चतुर्थी तिथि का प्रवेश हो जाएगा। इसलिए शाम में 6:20 सूर्यास्त होने के बाद जब चंद्रमा का उदय होगा तो उस समय चंद्र पूजन किया जाएगा।

तीज के संबंध में कथा है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री गिरिजा अर्थात पार्वती ने सबसे पहले तीज व्रत किया था। कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री जब विवाह के योग्य हुई तो पर्वतराज चिंतित हो गए तथा योग्य वर की तलाश में जुट गए। ऐसे में ही एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के विवाह प्रस्ताव लेकर पर्वतराज हिमालय के पास पहुंचे तो हिमालय तुरंत तैयार हो गए। लेकिन उनकी पुत्री गिरिजा उर्फ पार्वती शिव से विवाह करना चाहते थे। जिसमें पिता के राजी नहीं होने पर गिरिजा वन चली गई तथा अपने आत्मीय वर शिव की बालू एवं मिट्टी से प्रतिमा बनाकर पूजन करते हुए निर्जला रहकर नदी तट पर पूरी रात जगी रही।

गिरिजा द्वारा किए जा रहे आराधना से शिव का आसन डोला और उन्होंने आकर पूछा कि देवी तुम क्या चाहती हो, बताओ वह पूरा होगा। शिव के काफी पूछे जाने पर गिरिजा ने कहा कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो अपनी पत्नी होने का वरदान चाहिए और मजबूर होकर वरदान देते हुए शिव अंतर्ध्यान हो गए। इधर, पर्वतराज हिमालय अपनी पुत्री को खोजते हुए नदी किनारे पहुंचे तो पुत्री को शिव की उपासना करते पुत्री को देखकर पूरी जानकारी ली तथा पुत्री की इच्छा को ही सर्वमान्य बताया।

कहा जाता है कि जिस दिन पार्वती ने घर छोड़कर नदी किनारे बालू एवं मिट्टी से शिव की प्रतिमा बनाकर निराहार रह पूजन किया, वह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में हस्त नक्षत्र था। यह मुहूर्त अखंड सौभाग्य को देने वाला योग है, जो सौभाग्यवती स्त्री यह व्रत करती है वह आजीवन अखंड सौभाग्यवती रहती है। उसी दिन से तीज व्रत और पूजन की परंपरा चली आ रही है। इस व्रत से धन, धान्य, सुख, समृद्धि और चिरंजीवी पति एवं पुत्र मिलते हैं।

 

इनपुट एजेंसी

0Shares

छपरा टुडे डॉट कॉम की खबरों को Facebook पर पढ़ने कर लिए @ChhapraToday पर Like करे. हमें ट्विटर पर @ChhapraToday पर Follow करें. Video न्यूज़ के लिए हमारे YouTube चैनल को @ChhapraToday पर Subscribe करें