उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित कर सम्पन्न हुआ लोक आस्था का महापर्व छठ

उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित कर सम्पन्न हुआ लोक आस्था का महापर्व छठ

Chhapra: लोक आस्था और सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ आज उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित करने के साथ पूर्ण श्रद्धा और आस्था के माहौल में सम्पन्न हो गया।

सुबह की पहली किरण के साथ ही घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। व्रती महिलाओं और पुरुषों ने जल में खड़े होकर सूर्य देव से परिवार, समाज की सुख-समृद्धि की कामना की।

छठ महापर्व के चौथे दिन यानी उषा अर्घ्य का दृश्य अत्यंत मनमोहक रहा। जिले के गंगा, गंडक, सरयू नदी, तलाबों, पोखरों और घरों की छतों पर बनाए गए कृत्रिम घाटों पर व्रती व श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। हर ओर “जय छठी मइया” के जयघोष से वातावरण गुंजायमान रहा। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में, सिर पर दउरा में ठेकुआ, फल, नारियल, और अन्य प्रसाद लेकर जल में खड़ी रहीं। जैसे ही सूर्य की लालिमा क्षितिज पर उभरी, व्रतियों ने दोनों हाथ जोड़कर अर्घ्य अर्पित किया और छठ मइया से घर-परिवार के कल्याण की प्रार्थना की।

छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से हुई थी। इसके बाद दूसरे दिन खरना में व्रतियों ने गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर पूजा की। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया और चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व का समापन हुआ। यह पर्व पूर्ण शुद्धता, संयम और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जिसमें व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं।

छठ पर्व को लेकर जिला प्रशासन ने सुरक्षा और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की थी। गंडक नदी के विभिन्न घाटों पर एनडीआरएफ, पुलिस बल, और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम तैनात रही। साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और बैरिकेडिंग की उचित व्यवस्था से श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसका पूरा ध्यान रखा गया।

घाटों पर भक्तिमय माहौल के बीच सांस्कृतिक रंग भी नजर आए। पारंपरिक गीतों की गूंज के साथ वातावरण भक्ति में डूबा रहा  “केलवा के पात पर, उगेले सूरज देव…” जैसे गीत घाटों पर गूंजते रहे। व्रतियों के घरों में प्रसाद वितरण के साथ ही खुशियों का माहौल बना रहा।

चार दिनों तक चले इस अनुष्ठान के दौरान पूरे जिले में आस्था और पवित्रता का वातावरण देखने को मिला। लोग दूर-दराज से अपने घर लौटे ताकि इस पावन पर्व में शामिल हो सकें। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक छठ की छटा छाई रही।

उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ ही व्रतियों ने अपने उपवास को तोड़ा और परिवारजनों के बीच प्रसाद का वितरण किया। इसके साथ ही छठ महापर्व का समापन हुआ, लेकिन श्रद्धा, आस्था और भक्ति की यह ऊर्जा अब भी लोगों के हृदय में विद्यमान है, जो इस पर्व को लोक संस्कृति की आत्मा बना देती है।

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