राजकीय समारोह के रुप में मनायी गयी मौलाना मजहरुल हक की 156 वीं जयंती

राजकीय समारोह के रुप में मनायी गयी मौलाना मजहरुल हक की 156 वीं जयंती

राजकीय समारोह के रुप में मनायी गयी मौलाना मजहरुल हक की 156 वीं जयंती

Chhapra: मौलाना मजहरुल हक के 156 वीं जन्म दिवस के अवसर पर छपरा स्थित मौलाना मजहरुल हक चौक पर स्थापित उनकी प्रतिमा पर जिलाधिकारी राजेश मीणा, पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार एवं जिला स्तरीय पदाधिकारीगण सहित शहर के बुद्धिजीवी एवं गणमान्य लोगों के द्वारा मौलाना मजहरुल हक साहब की मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्वा सुमन अर्पित किया गया.

जिलाधिकारी राजेश मीणा के द्वारा इस अवसर पर कहा गया कि बहुआयामी प्रतिभा के धनी हक साहब का जन्म 22 दिसम्बर 1866 को पटना जिला के बहपुरा गांव में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा अपने गॉव तथा आगे की शिक्षा पटना कॉलेजिएट एवं पटना कॉलेज से प्राप्त की. पढ़ाई में ललक के कारण आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ में कैनिंग कॉलेज में दाखिला लिया तथा बाद में कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गये. हक साहब ने खिलाफत एवं असहयोग आन्दोलन का आम जनता तक पहुॅचाने के लिए पूरे बिहार का दौरा किया साथ ही सरकारी संस्थाओं एवं इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल की उम्मीदवारी का भी त्याग कर सदाकत आश्रम तथा विद्यापीठ कॉलेज की स्थापना में अपना योगदान दिया.

आगे जाकर हक साहब बिहार नेशनल कांग्रेस और बिहार विद्यापीठ के चांसलर भी बनाये गये. मौलाना हक साहब के इन्हीं कार्यो के फलस्वरुप उन्हें देष भूषण फकीर के खिताब से नवाजा गया.

महात्मा गांधी के आदर्शों का अनुसरण करने वाले मौलाना मजहरुल हक साहब हिन्दू-मुस्लिम एकता के परिचायक थे. उन्होंने अपने जीवन काल में न्यायिक सेवा के महत्वपूर्ण पद को त्याग करते हुए समाज सेवा को प्राथमिकता दी. 1897 में तत्कालीन सारण जिला में भीषण अकाल के दौरान उन्होंने राहत कार्यों में जमकर भाग लिया जिसके कारण रिलिफ कमिटि का जनरल सेक्रेटरी बना दिये गये. उनके सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी के कारण ही बाद में उन्हें नगरपालिका का उपाध्यक्ष भी बना दिया गया.

राजनीति समाज सेवा के साथ-साथ मौलाना मजहरुल हक साहब ने ना सिर्फ हिन्दु-मुस्लिम एकता बल्कि महिलाओं के अधिकार के लिए भी आवाज उठाई. उन्हानें ने स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं को शामिल किये जाने के गांधी जी के विचारों का स्वागत किया तथा सभी महिलाओं को सामाजिक कार्यों से जुड़ने की अपील भी की.

मौलाना मजहरुल हक साहब का मानना था कि  ” हम हिन्दु हो या मुसलमान, हम एक ही नाव पर सवार हैं, हम उठेगे तो साथ और डूबेंगे भी साथ ’’

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