नई दिल्ली, 22 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 द्वारा भेजी गई चंद्रमा की कुछ और तस्वीरें इसरो ने साझा की हैं। इसरो ने मंगलवार को तस्वीरें ट्वीट कर बताया कि देश का महत्वपूर्ण चंद्रमा मिशन एकदम तय समय पर है। सभी सिस्टम की अच्छे से जांच परख की जा रही है। लैंडर विक्रम अपने लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

इसरो ने 19 अगस्त को लगभग 70 किमी की ऊंचाई से लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (एलपीडीसी) द्वारा ली गई चंद्रमा की तस्वीरें मंगलवार को ट्वीट कीं। एलपीडीसी छवियां लैंडर मॉड्यूल को एक साथ मिलान करके उसकी स्थिति (अक्षांश और देशांतर) निर्धारित करने में सहायता करती हैं।

इसरो ने ट्वीट किया, “मिशन तय समय पर है। सिस्टम की नियमित जांच हो रही है। सुचारू रूप से आगे बढ़ना जारी है। मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (मोक्स) ऊर्जा और उत्साह से भरा हुआ है। मोक्स पर लैंडिंग ऑपरेशन का सीधा प्रसारण शाम पांच बजे से शुरू होगा।”

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-विज्ञान पत्रकारिता से जुड़े विजय कुमार शर्मा बता रहे हैं लूना-25 के क्रैश होने के बाद चंद्रयान क्यों है पूरी दुनिया के लिए खास और क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग

कोलकाता, 21 अगस्त (हि.स.)। रूस के चंद्र मिशन लूना-25 के क्रैश होने के बाद अब भारत के चंद्रयान-3 पर पूरी दुनिया की निगाहें टिक गई हैं। महज चंद घंटों बाद चंद्रयान-3 चंदा मामा की दुर्गम सतह के “सॉफ्ट आलिंगन” के उस वादे को पूरा करने के लिए तैयार है जो आज से तीन साल पहले (2019) 125 करोड़ देशवासियों ने चंद्रयान-2 के गुमशुदा हो जाने के बाद चांद से किया था।

आज (सोमवार) लूना-25 को भी चांद के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन रविवार को ही उसका रूसी अंतरिक्ष एजेंसी से संपर्क टूट गया और दावा किया जा रहा है कि चांद की सतह से टकराकर हार्डवेयर डैमेज की वजह से मिशन को अंजाम देने में फेल हो गया है। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने घोषणा कर दी है कि 23 अगस्त (बुधवार) शाम करीब 6:00 बजे चंद्रयान-3 चांद के उस दक्षिणी हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा जहां अरबों साल से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है।

आखिर क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग और चंद्रयान-3 से पूरी दुनिया को क्या उम्मीदें हैं। इसे मशहूर विज्ञान लेखक विजय कुमार शर्मा ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बातचीत में सरल भाषा में समझाने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा, “स्पेस मिशन लॉन्च करना कोई मुश्किल नहीं है। स्पेसशिप का गंतव्य तक पहुंच जाना भी मुश्किल नहीं है। उसका सबसे खतरनाक, चुनौतीपूर्ण और असाध्य हिस्सा सफलतापूर्वक लैंडिंग होता है। कोई चाहे कितना भी एक्सपर्ट हो, यही एक ऐसी चीज है जिसमें विफलता की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। सॉफ्ट लैंडिंग ही एकमात्र उपाय है जो दुनिया भर के स्पेस मिशन के विभिन्न खगोलीय पिंडों पर सुरक्षित लैंडिंग का रास्ता सुनिश्चित करेगा।”

सॉफ्ट लैंडिंग मैकेनिज्म के तकनीकी पहलू को सरल शब्दों में स्पष्ट करते हुए विजय बताते हैं कि स्पेस शिप उतारने के दौरान नीचे की दिशा में रॉकेट फायर किए जाते हैं ताकि न्यूटन के क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया के नियम अनुसार ऊपर की दिशा में धक्का लगे और स्पेसशिप की रफ्तार धीमी हो। रफ्तार धीमी करनी इसलिए जरूरी है कि चांद अपने गुरुत्वाकर्षण की वजह से स्पेसशिप को अपनी सतह की ओर तेज रफ्तार में खींच रहा होता है और अगर रफ्तार धीमी नहीं हुई तो स्पेसक्राफ्ट सतह से टकराकर नष्ट हो जाता है। इससे पूरा मिशन फेल हो जाता है। चंद्रयान-3 में रॉकेट बूस्टर लगे हैं जिनको नीचे की और फायरिंग किया जाएगा। इससे उसकी रफ्तार धीमी होगी और चांद की सतह तक पहुंचने तक ऑन बोर्ड कंप्यूटर से इस तरह से कमांड सेट किए गए हैं कि चांद के ग्रेविटी को कैंसिल करते हुए बिल्कुल शून्य रफ्तार कर इसके सतह को छुएगा। उसके बाद विक्रम चंद्रयान-3 से निकलकर वन लूनर डे यानी चांद के एक दिन जो धरती के 14 दिनों के बराबर है, सतह पर मिट्टी के सैंपल लेकर रिसर्च करेगा।”

चांद की सतह पर उतर रहे चंद्रयान-3 की गति धीमी करने के लिए सतह के करीब पैराशूट का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा सकता है? इस सवाल पर वह कहते हैं कि चांद की धरती पर हवा नहीं है। इसीलिए वहां पैराशूट काम नहीं करेगा। एकमात्र उपाय नीचे की ओर रॉकेट की फायरिंग है ताकि ऊपर की ओर लगे उसके धक्के से चंद्रयान की गति कम हो। विजय इस बात की उम्मीद जताते हैं ति इस बार चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग की उम्मीद पूरी दुनिया को है, क्योंकि चंद्रयान-2 की विफलता से भारत ने सबक सीखा है और इस मिशन में कई बदलाव किए हैं।

चंद्रयान-3 की खूबियों का जिक्र करते हुए विजय ने कहा कि 2019 में भारत ने जब चंद्रयान-2 लॉन्च किया था तब कुछ ही दिनों के अंतराल पर इजरायल ने बेरेशीट, जापान ने हकूटो आर और एक दिन पहले ही रूस ने लूना-25 गंवाया है। इन सभी मिशनों को विफलता हाथ लगी। खास बात यह है कि चांद पर उतरने की कोशिश करने वाले विफलतम देशों में एकमात्र भारत ही है जो महज तीन सालों के अंतराल पर दूसरा प्रयास कर फिर चांद की वायुमंडल में दस्तक दे चुका है। इसीलिए चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक चांद के उस हिस्से में उतरना बेहद अहम है जहां आज तक रोशनी नहीं पहुंची।

वो कहते हैं कि यहां अगर सफल लैंडिंग होती है तो इस हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश भारत होगा। विजय कहते हैं-” आज से 50 वर्ष के भीतर हम इंसानों के भेजे अंतरिक्षयान मिल्की-वे गैलेक्सी के विभिन्न हिस्सों में अपनी आमद दर्ज करा रहे होंगे। उन सुदूर मौजूद ग्रहों तक प्रकाश की गति से भेजे हमारे सिग्नल्स को भी स्पेसशिप तक पहुंचने में घंटों, हफ्तों, महीनों अथवा वर्षों का समय लगेगा। तब एकमात्र यही तरीका बचता है कि हम “सेफ लैंडिंग” की प्रक्रिया पूर्वनियोजित रूप से इंस्टॉल करके स्पेसशिप्स को दूसरे संसारों के सफर पर रवाना करें। जब तक हम अपने बगल में मौजूद चांद पर सेफ लैंडिंग में दक्षता हासिल नहीं कर लेते, तब तक अंतरिक्ष विस्तार की मानवीय महत्वकांक्षाओं पर सवालिया निशान बने रहेंगे। इसलिए चांद पर अगर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग होती है तो यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशन को सबसे सफल दिशा देने वाला होगा।”

साल 2019 में भारत के महत्वकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन की विफलता के बावजूद उससे हुए वैज्ञानिक लाभ का जिक्र करते हुए विजय कहते हैं, “महानतम अभियानों के शुरुआती दौर अक्सर मायूसी भरे होते हैं। 2019 में चंद्रयान-2 से संपर्क टूट जाने के बाद इसरो प्रमुख के शिवन को पड़े थे। पूरे देश में उदासी थी। मायूसी के उस दौर में भी दो दिनों तक सवा सौ करोड़ निगाहें रात के आसमान में टकटकी लगा कर चांद को निहार रही थीं, मानों किसी खो गए अपने को खोज रही हों। इस विफलता से एक संकल्प का जन्म हुआ था। वह था, आज नहीं तो कल, देर-सबेर… हम फिर आएंगे और चांद के सीने पर तिरंगा फहराएंगे। यह 125 करोड़ लोगों का चांद से किया गया वादा था, जिसे निभाने के लिए चंद्रयान-3 बिल्कुल करीब पहुंचकर दस्तक दे चुका है।

विजय शर्मा विज्ञान पत्रकारिता का प्रमुख नाम हैं। ब्रह्मांड के अनंत रहस्यों और विज्ञान के रोमांचकारी प्रयोगों को लेकर सबसे पहले “बेचैन बंदर” और उसके बाद “महामानव” दो किताबें लिखी हैं। इनमें से बेचैन बंदर को 2019 में भारत सरकार का राजभाषा मंत्रालय पुरस्कृत कर चुका है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें इसके लिए सम्मानित कर चुके हैं।

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नई दिल्ली, 21 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 इतिहास रचने के महज कुछ ही घंटों की दूरी पर है। चांद पर लैंडिंग की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। 23 अगस्त शाम 5.45 मिनट पर चंद्रयान-3 चांद पर कदम रखेगा। इस बीच सोमवार को चंद्रयान-2 ने चंद्रयान -3 का औपचारिक स्वागत किया। दोनों के बीच दोतरफा संचार स्थापित हो गया है। इससे पहले इसरो ने यान द्वारा ली गई चंद्रमा की कुछ तस्वीरें भी साझा की।

सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ट्वीट करके कहा कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल का स्वागत किया। दोनों के बीच द्विपक्षीय संपर्क स्थापित किया गया है। उल्लेखनीय है कि साल 2019 में भारत ने अपना मिशन चंद्रयान-2 लॉन्च किया था लेकिन सॉफ्ट लैंडिंग में गड़बड़ी हो गई थी। चंद्रयान-2 क्रैश हुआ लेकिन इसने अपना काम किया था।

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पिछले 4 साल से चांद के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा है और अपना काम कर रहा है। अब चार साल के बाद जब विक्रम लैंडर फिर से चांद के पास पहुंचा है तब चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर एक्टिव हुआ है।

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नई दिल्ली, 17 अगस्त (हि.स.)। भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने अपनी चंद्र अन्वेषण यात्रा में गुरुवार को एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। प्रज्ञान रोवर को लेकर चल रहा अंतरिक्ष यान का ‘विक्रम’ लैंडर सफलतापूर्वक प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हो गया। इससे मिशन एक कदम और आगे बढ़ गया। इसरो ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।

इसरो के ट्वीट में कहा गया – “चंद्रयान-3 मिशन: लैंडर मॉड्यूल (एलएम) ने कहा, ‘सवारी के लिए धन्यवाद, दोस्त!’ एलएम को प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया है। कल लगभग शाम चार बजे पहले से तय गति कम करने के बाद एलएम थोड़ी निचली कक्षा में उतरने के लिए तैयार है।”

चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से भारत दुनिया में ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन इस उपलब्धि को हासिल कर चुके हैं। चन्द्रयान-3 की विशेषता यह है कि यह भारत के प्राकृतिक उपग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। कोई और अन्य देश अभी तक ऐसा नहीं कर सका है। 

 

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नई दिल्ली, 17 अगस्त (हि.स.)। भारत के महत्वाकांक्षी मून मिशन के तहत चंद्रयान-3 बुधवार को चंद्रमा के और करीब आ गया है। अब चंद्रमा की सतह से चंद्रयान-3 की दूरी केवल 150 किलोमीटर रह गई है। इसके साथ ही मिशन की कामयाबी का अंतिम चरण शुरू हो चुका है। जिसपर देशभर के साथ-साथ दुनिया के कई बड़े देशों की नजरें हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्स पर चंद्रयान-3 के सफर को लेकर ताजा जानकारी दी- `चंद्रयान-3 के चंद्रमा तक पहुंचने की सभी प्रक्रिया पूरी कर ली हैं। हमारी आशा के मुताबिक चंद्रमा की 153 किलोमीटर X 163 किलोमीटर की कक्षा में चंद्रयान-3 स्थापित हो गया। चंद्रमा की सीमा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो गई। अब 17 अगस्त को प्रोपल्शन माड्यूल और लैंडर अलग होने को तैयार हैं। 23 अगस्त को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की तैयारी है।’

इसरो ने 14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद से तीन सप्ताह में चंद्रयान-3 को चंद्रमा की पांच से अधिक कक्षाओं में चरणबद्ध तरीके से स्थापित करने में सफलता पाई है। 01 अगस्त को यान को पृथ्वी की कक्षा से चंद्रमा की ओर सफलतापूर्वक भेजा गया।

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नई दिल्ली, 9 अगस्त (हि.स.)। चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-3’ बुधवार (9 अगस्त) को चांद की सतह के एक और कदम नजदीक पहुंच गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) ने बुधवार को ट्वीट करके यह जानकारी दी। चंद्रयान -3 और चंद्रमा की दूरी अब 174 किमी x 1437 किमी रह गई है। कक्षा बदलने की प्रक्रिया अब 14 अगस्त को की जाएगी।

इसरो ने ट्वीट करते हुए कहा कि ‘चंद्रयान-3 चंद्रमा की तीसरी कक्षा में पहुंच गया है। वह चांद के और करीब आ गया है। आज की गई प्रक्रिया के बाद चंद्रयान-3 की कक्षा घटकर 174 किमी x 1437 किमी रह गई है। अगला ऑपरेशन 14 अगस्त को 11.30 -12.30 बजे की जाएगी।

उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण यान मार्क-3 के जरिए लॉन्च किया गया था।

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नई दिल्ली, 27 जुलाई (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार को गगनयान सर्विस मॉड्यूल प्रोपल्शन सिस्टम का तीसरा हॉट सफल परीक्षण किया। इसरो ने ट्वीट करके जानकारी दी कि गगनयान सर्विस मॉड्यूल प्रोपल्शन सिस्टम पर दो और हॉट परीक्षण 26 जुलाई को सफलतापूर्वक किए गए।

इसरो ने कहा कि मिशन के लिए आवश्यक और निरंतर मोड में परीक्षण आयोजित किए गए। डी-बूस्टिंग आवश्यकताओं और ऑफ-नॉमिनल मिशन परिदृश्यों को प्रदर्शित करने के लिए तीन और हॉट परीक्षण निर्धारित हैं।

उल्लेखनीय है कि भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ की लॉन्चिंग के लिए इसरो कई तरह के परीक्षण कर रहा है।

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नई दिल्ली, 25 जुलाई (हि.स.)। चंद्रयान-3 मंगलवार को चंद्रमा की ओर एक कदम और आगे बढ़ गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगलवार को एक बार फिर कक्षा बदलने की प्रक्रिया (अर्थबाउंड-फायरिंग-2) सफलतापूर्वक पूरा कर चंद्रयान-3 को पृथ्वी की पांचवीं कक्षा और आखिरी कक्षा में भेज दिया है। इसरो अब एक अगस्त को मध्यरात्रि 12-01 बजे के बीच चंद्रयान-3 को चंद्रमा की कक्षा में भेजेगा।

मंगलवार को इसरो ने ट्वीट करके कहा कि चंद्रयान-3 पृथ्वी की पांचवीं कक्षा (पृथ्वी-बाउंड पेरिगी फायरिंग) में बेंगलुरु से सफलतापूर्वक निष्पादित की गई है। 25 जुलाई को दोपहर 2 से 3 बजे के बीच चंद्रयान-3 की कक्षा को सफलतापूर्वक बदला गया।

उल्लेखनीय है कि 14 जुलाई को इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के तीसरे संस्करण को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। मिशन का उद्देश्य चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है, जिससे चंद्रमा की दुर्लभ तस्वीरें और जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

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नई दिल्ली, 6 जुलाई (हि.स.)। चंद्रयान-3 अब 14 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा। यह जानकारी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार को ट्वीट के माध्यम से साझा की।

इसरो ने ट्वीट कर बताया कि चंद्रयान-3 मिशन श्रीहरि कोटा से 14 जुलाई को दोपहर 2.30 बजे लॉन्च किया जाएगा। इसरो प्रमुख सोमनाथ के अनुसार चंद्रयान-3 मिशन के तहत इसरो 23 अगस्त या 24 अगस्त को चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास करेगा।

चंद्रयान -3 धरती के नेचुरल उपग्रह चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और कई प्रकार की जांच करेगा। इसमें एक आर्बिटर एक लैंडर और एक रोवर है। इस बार इसरो का पूरा ध्यान इसके चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिगं पर है। इससे पहले लांचिंग की तारीख 5 जुलाई रखी गई थी। मिशन सफल रहा तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले चंद्रयान-2 को चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग के लिए भेजा गया था, जो चंद्रमा की सतह पर उतरने के अपने आखिरी चरण में विफल रहा था। चंद्रयान-2 के लैंडर की चंद्रमा की सतह पर हार्ड लैंडिंग हुई थी, जिसकी वजह से उसका पृथ्वी पर मौजूद नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया था।

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– इसरो के बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग तैयारियां अंतिम चरणों में
– चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर 13 जुलाई को चंद्रमा पर रवाना होने के लिए तैयार

नई दिल्ली, 05 जुलाई (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग को लेकर तैयारियां अंतिम चरणों में हैं। चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर रॉकेट एलवीएम-3 के साथ 13 जुलाई को चंद्रमा पर रवाना होने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। चंद्रयान-3 लैंडर को आज इसरो श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र में हेवी लॉन्च रॉकेट पर असेंबल किया गया। चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को वही नाम देने का फैसला किया है, जो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम थे।

चंद्रयान-2 के बाद इस मिशन को चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग की क्षमता की जांच के लिए भेजा जा रहा है। चंद्रयान-2 मिशन आखिरी चरण में विफल हो गया था। उसका लैंडर पृथ्वी की सतह से झटके के साथ टकराया था, जिसके बाद पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष से उसका संपर्क टूट गया था। चंद्रयान-3 को उसी अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए भेजा जा रहा है। इसमें लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद उसमें से रोवर निकलेगा और सतह पर चक्कर लगाएगा। लैंडर का नाम विक्रम होगा जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है और रोवर का नाम प्रज्ञान होगा। चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के भी यही नाम रखे गए थे।

इसरो अधिकारियों के मुताबिक चंद्रयान-2 मिशन फेल होने के बाद का ही अगला प्रोजेक्ट चंद्रयान-3 है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखेगा, लेकिन चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं, एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। चंद्रयान-2 मिशन जिस वजह से असफल हुआ था, उन पर इस प्रोजेक्ट में फोकस किया गया है। चंद्रयान-3 को लॉन्च करने का ऐलान चंद्रयान-2 के लैंडर-रोवर के दुर्घटनाग्रस्त होने के चार साल बाद हुआ है।

चंद्रयान-3 मिशन के जुलाई में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होने की उम्मीद है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता। चंद्रयान -3 का उद्देश्य चंद्र सतह पर एक सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग क्षमताओं का प्रदर्शन करना है। चंद्रयान-3 को एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रणोदन मॉड्यूल को मिलाकर बनाया गया है, जिसका कुल वजन 3,900 किलोग्राम है। अकेले प्रणोदन मॉड्यूल का वजन 2,148 किलोग्राम है जो लैंडर और रोवर को 100 किलोमीटर की चंद्र कक्षा में ले जाएगा।

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रायबरेली, 05 जून(हि.स.)। अब दृष्टिहीन भी आसानी से न केवल अखबार पढ़ सकेंगे, बल्कि मोबाइल का भी उपयोग करने में उनको बहुत सहूलियत होगी। यही नहीं वह सामने वाले को पहचान भी सकेंगे। यह सब होगा एक विशेष चश्मे से जिसका अविष्कार किया है, रायबरेली के रहने वाले छात्र नैतिक श्रीवास्तव ने। कई राज्यों के विज्ञान प्रदर्शनी के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी उनके इस अविष्कार की मान्यता मिल गई है। अब वह भारत सरकार की इंस्पायर अवार्ड मानक योजना के तहत इस प्रोजेक्ट स्मार्ट ग्लासेस फॉर ब्लाइंड पीपल का प्रदर्शन करने जापान जा रहे हैं।

रायबरेली जिले के महराजगंज क्षेत्र के हसनपुर गांव निवासी नैतिक श्रीवास्तव का दावा है कि इस चश्मे के जरिए दृष्टिहीन चेहरा पहचान सकेंगे, अखबार और किताबें पढ़ सकेंगे। नैतिक के बनाए प्रोजेक्ट की मदद से दृष्टिविहीन लोगों को रोजमर्रा के काम करने में सहूलियत होगी। जैसे अखबार पढ़ना, परिवार व क़रीब के लोगों को चश्में में लगे सेंसर की मदद से पहचान करना। इसके अलावा यह चश्मा मौसम का पूर्वानुमान भी बताएगा। नैतिक श्रीवास्तव के इस प्रोजेक्ट को पेटेंट कराने की तैयारी चल रही है।

महराजगंज क्षेत्र के न्यूस्टैंडर्ड पब्लिक स्कूल के कक्षा 11 के छात्र नैतिक नेत्रहीनों की मदद के लिए सपोर्टिव विज़न आधारित चश्मे के प्रोजेक्ट पर पिछले कई वर्षों से काम कर रहे हैं। इसके लिए इनके प्रोजेक्ट्स को राष्ट्रीय विज्ञान अनुसंधान से मंजूरी मिलने के बाद बाल वैज्ञानिक नैतिक श्रीवास्तव को दिसम्बर 2022 में कंबोडिया जाने का मौका मिला था। यही नहीं बाल वैज्ञानिक नैतिक के प्रोजेक्ट को राष्ट्रपति भवन में आयोजित इंस्पायर मानक अवार्ड योजना में राष्ट्रीय स्तर पर टाप 60 में चयनित किया गया है।

नेत्रहीनों की सहायता के लिए सपोर्टिव लेंस बनाने वाले न्यूस्टैंडर्ड पब्लिक स्कूल सलेथू के छात्र नैतिक श्रीवास्तव सहित प्रदेश भर से नौ छात्रों को छात्र इंस्पायर्ड अवार्ड योजना के अंतर्गत जापान भेजा जाएगा। जापान में सकूरा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सभी छात्रों को अपने प्रोजेक्ट पर अनुभव साझा करेंगे।

उल्लेखनीय है कि गांव के ही एक दृष्टिहीन रामसेवक की परेशानियों ने नैतिक को इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए प्रेरित किया और आज वह सफ़लता के मुकाम पर हैं। नैतिक का कहना है कि उनके इस प्रोजेक्ट से दृष्टिहीनों के जीवन मे आमूल चूल बदलाव होगा, कॉलेज के शिक्षक राजीव सिंह व माता पिता के सहयोग की बदौलत, वह इस अहम प्रोजेक्ट को पूरा कर पाएं हैं।

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खगोल विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए मंगलवार, 23 मई की शाम बेहद रोमांच होने वाली है। दरअसल, इस दिन सूर्य के अस्त होने के बाद शाम को पश्चिमी आकाश में अद्भुत खगोलीय नजारा दिखने जा रहा है, जिसमें हंसियाकार चंद्रमा चमकते शुक्र और लाल ग्रह मंगल के बीच दिखता हुआ मिथुन तारामंडल के तारों के साथ मेल-मुलाकात करता हुआ नजर आएगा। यह जानकारी सोमवार को भोपाल की नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने दी।

उन्होंने बताया कि सूर्यास्त के बाद लालिमा समाप्त होने के साथ ही हंसियाकार चंद्रमा के साथ शुक्र (वीनस) अपनी चमक बिखेर रहा होगा, तो उसके कुछ ऊपर मंगल (मार्स) लालिमा के साथ होगा। उसके पास ही मिथुन तारामंडल के जुड़वां तारे पोलुक्स एवं कैस्टर भी इस मिलन समारोह का हिस्सा बनेंगे। इसके साथ ही बिहाईव स्टार क्लस्टर भी इनके आसपास दिखेगा।

सारिका ने बताया कि मिलन करते इन खगोलीय पिंडों के बीच आपस की दूरी करोड़ों किलोमीटर होगी, लेकिन इनका पृथ्वी से बनने वाला कोण इस प्रकार होगा कि वे एक-दूसरे से मिलते से नजर आएंगे। जुड़वां तारे कहे जाने वाले तारों में से पोलुक्स 33 प्रकाशवर्ष दूर और विकसित लाल विशालकाय तारा है जो कि हमारे सूर्य से दोगुना विशाल है जबकि केस्टर 51 प्रकाशवर्ष दूर नीला तारा है जो हमारे सूर्य से 2.7 गुना अधिक भारी है। रोमन पौराणिक कथाओं के अनुसार पोलक्स और केस्टर जुड़वां भाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सारिका ने बताया कि इस खगोलीय घटना में चंद्रमा लगभग 1000 तारों के समूह, जिसे कि बिहाईव स्टार क्लस्टर कहते हैं, उनके भी समीप दिखेगा। बुधवार (24 मई) शाम के आकाश में भी इस दृश्य को देखा जा सकेगा, लेकिन तब चंद्रमा आगे बढ़कर मंगल के करीब पहुंच चुका होगा। इस तरह ग्रहों, तारों और उपग्रहों का मिलन समारोह का मनमोहन दृश्य दिखने जा रहा है। दोनों ही दिन इसे रात्रि 10 बजे के पहले देखा जा सकेगा।

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