– दोनों फाइटर जेट को उड़ान भरते हुए देखने के लिए देशी-विदेशी दर्शकों में भी होड़

बेंगलुरु, 10 फरवरी (हि.स.)। एशिया की सबसे बड़ी हथियारों की प्रदर्शनी ‘एयरो इंडिया’ में इस बार रूसी सुखोई-57 जेट और अमेरिकी एफ-35 की धूम है। एयर फोर्स स्टेशन येलहंका में दोनों फाइटर जेट की गड़गड़ाहट के साथ उड़ान भरते हुए देखने के लिए देशी-विदेशी दर्शकों में भी होड़ मची है। मित्र देशों से आए दर्शक दो दिनों तक रूसी और अमेरिकी फाइटर प्लेन का मुकाबला देखेंगे। प्रदर्शनी के शुरुआती दो व्यावसायिक दिन ख़त्म होने के बाद प्रदर्शनी आम दर्शकों के लिए खुल जाएगी।

यूक्रेन के साथ युद्ध में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किये गए एकमात्र पांचवीं पीढ़ी के दो स्टील्थ रूसी सुखोई-57 जेट इस समय बेंगलुरु के आसमान की शोभा बढ़ा रहे हैं। यह फाइटर जेट अपनी लुभावनी एयरोबेटिक्स के लिए जाना जाता है, जिसने यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान के दौरान हवाई और जमीनी लक्ष्यों को भेदने में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है, जिसमें लंबी दूरी से सटीक हमले भी शामिल हैं। स्टेल्थ क्षमताओं वाला यह विमान उन्नत एईएसए राडार प्रणाली से लैस है और इसमें क्रूज मिसाइलों को लॉन्च करने की क्षमता है। सुखोई-57 को एएल-51एफ1 इंजन मिलने की उम्मीद है, जिससे इसकी लड़ाकू क्षमता और बढ़ जाएगी।

अमेरिकी वायु सेना ने पहले एयरो इंडिया-2025 में एफ-35 और अपग्रेड किए गए एफ-16 की प्रदर्शन उड़ानें रद्द कर दी थीं, लेकिन अब यह दोनों फाइटर जेट बेंगलुरु पहुंच कर अपने आसमानी करतब दिखा रहे हैं। पिछले यानी 2023 के एयरो इंडिया में पहली बार पेश किए गए एफ-35 के इस साल भी प्रमुख आकर्षण होने की उम्मीद थी, लेकिन इस बार रूसी सुखोई-57 भी अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर रहा है। दोनों फाइटर प्लेन का मुकाबला दर्शकों के बीच कड़ी टक्कर दे रहा है।

सुखोई-57 रूस का प्रमुख स्टेल्थ मल्टीरोल फाइटर बेहतरीन हवाई श्रेष्ठता और स्ट्राइक क्षमताओं के लिए डिज़ाइन किया गया है। उन्नत एवियोनिक्स, सुपरक्रूज़ क्षमता और स्टेल्थ तकनीक से लैस यह विमान एयरो इंडिया 2025 में पहली बार अपने आसमानी करतब दिखा रहा है। प्रदर्शनी में आने वाले दर्शक उच्च हवाई युद्धाभ्यास, फाइटर की चपलता, स्टेल्थ और मारक क्षमता और सामरिक प्रदर्शन देखकर मंत्रमुग्ध है।लॉकहीड मार्टिन एफ-35 लाइटनिंग II पांचवीं पीढ़ी का फाइटर है, जो उन्नत स्टेल्थ और नेटवर्क लड़ाकू क्षमताओं को एकीकृत करता है। एयरो इंडिया 2025 में अमेरिकी लड़ाकू की उपस्थिति आगंतुकों को अमेरिकी वायु सेना के प्रमुख विमान को देखने में सक्षम बना रही है।

रूसी सुखोई-57 और अमेरिकी एफ-35 अंतरराष्ट्रीय रक्षा और एयरोस्पेस सहयोग के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को उजागर करता है। एयरो इंडिया 2025 पूर्वी और पश्चिमी पांचवीं पीढ़ी की लड़ाकू प्रौद्योगिकी का एक दुर्लभ तुलनात्मक प्रदर्शन प्रदान कर रहा है, जिससे रक्षा विश्लेषकों, सैन्य कर्मियों और विमानन उत्साही लोगों को उनकी संबंधित क्षमताओं के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलेगी।

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– रूस ने लड़ाकू जेट सुखोई-57 का प्लांट भारत में खोलकर संयुक्त उत्पादन की पेशकश रखी

नई दिल्ली, 07 फरवरी (हि.स.)। बेंगलुरु के एयर फोर्स स्टेशन येलहंका में एशिया की सबसे बड़ी हथियारों की प्रदर्शनी ‘एयरो इंडिया’ में इस बार रूसी सुखोई-57 जेट धूम मचाएगा। यूक्रेन के साथ युद्ध में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किये गए एकमात्र पांचवीं पीढ़ी के दो स्टील्थ रूसी लड़ाकू विमान कर्नाटक की धरती पर उतर चुके हैं और 10 फरवरी को उद्घाटन के बाद बेंगलुरु के आसमान की शोभा बढ़ाएंगे। रूस ने आधिकारिक तौर पर भारत को अपने पांचवीं पीढ़ी के सुखोई-57 लड़ाकू विमानों की पेशकश की है, जिसमें भारत में प्लांट लगाकर संयुक्त उत्पादन करके स्वदेशी संस्करण विकसित करने का भी प्रस्ताव है।

भारत में रूसी दूतावास ने सुखोई-57 जेट के बेंगलुरु में आने और एयरो इंडिया में उड़ान भरकर एयर शो में शामिल होने के लिए पुष्टि की है। यह फाइटर जेट अपनी लुभावनी एयरोबेटिक्स के लिए जाना जाता है, जिसने जनवरी, 2010 में पहली उड़ान भरी थी। सुखोई-57 जेट अब अपनी उड़ान के 15 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। इस बीच विमान में जरूरत के लिहाज से कई तरह के सुधार किये गए हैं और यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान के दौरान लड़ाकू विमानों ने हवाई और जमीनी लक्ष्यों को भेदने में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है, जिसमें लंबी दूरी से सटीक हमले भी शामिल हैं। इनका इस्तेमाल चौबीस घंटे किसी भी मौसम की स्थिति में और जटिल वातावरण में किया जाता है।

रूसी कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के मुताबिक स्टेल्थ क्षमताओं वाला यह विमान उन्नत एईएसए राडार प्रणाली से लैस है और इसमें क्रूज मिसाइलों को लॉन्च करने की क्षमता है। सुखोई-57 को एक नया एएल-51एफ1 इंजन मिलने की उम्मीद है, जिसे आफ्टरबर्नर के बिना निरंतर सुपरसोनिक उड़ान के लिए डिजाइन किया गया है, इससे इसकी लड़ाकू क्षमता और बढ़ जाएगी। इस बीच अमेरिकी वायु सेना ने एयरो इंडिया-2025 में एफ-35 और अपग्रेड किए गए एफ-16 की प्रदर्शन उड़ानें रद्द कर दी हैं। 2023 के एयरो इंडिया में पहली बार पेश किए गए एफ-35 के इस साल प्रमुख आकर्षण होने की उम्मीद थी, लेकिन इसकी अनुपस्थिति सुखोई-57 की ओर ध्यान आकर्षित कर सकती है।

रूसी कंपनी एकमात्र 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की तकनीक भारत को ​हस्तांतरित करने के लिए तैयार है। रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के सीईओ अलेक्जेंडर मिखेव ने कहा कि हम भारत को सिर्फ़ सुखोई-57ई की डिलीवरी ही नहीं, बल्कि संयुक्त उत्पादन और भारतीय 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के विकास में मदद भी दे रहे हैं। रूस के सुखोई-57 ने यूक्रेन में आधुनिक पश्चिमी वायु रक्षा प्रणालियों के खिलाफ अपनी लड़ाकू प्रभावशीलता साबित की है। यह लंबी दूरी सहित सभी दूरी पर खतरों से निपट सकता है, जो एफ-35 विमान में क्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत-रूस सहयोग न केवल घरेलू उपयोग के लिए लड़ाकू विमान के उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि इसके निर्यात का भी रास्ता खुलेगा।

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रेलवे ने निरस्त गाड़ियों का बहाल किया परिचालन, यहां देखें सूची

Chhapra: रेलवे प्रशासन द्वारा 05 फरवरी, 2025 को निरस्त की गई निम्नलिखित गाड़ियों का संचलन बहाल कर दिया गया है। ये गाड़ियाँ अपने पूर्व निर्धारित समय एवं ठहराव के साथ चलाई जायेंगी।

बहाल गाड़ियाँ

– 15130 वाराणसी सिटी-गोरखपुर कैंट एक्सप्रेस 05 फरवरी, 2025 को वाराणसी सिटी से अपने पूर्व निर्धारित समय एवं ठहराव के साथ चलाई जायेगी।

– 15129 गोरखपुर कैंट-वाराणसी सिटी एक्सप्रेस 05 फरवरी, 2025 को गोरखपुर कैंट से अपने पूर्व निर्धारित समय एवं ठहराव के साथ चलाई जायेगी।

– 15104 बनारस-गोरखपुर एक्सप्रेस 05 फरवरी, 2025 को बनारस से अपने पूर्व निर्धारित समय एवं ठहराव के साथ चलाई जायेगी।

– 15103 गोरखपुर-बनारस एक्सप्रेस 05 फरवरी, 2025 को गोरखपुर से अपने पूर्व निर्धारित समय एवं ठहराव के साथ चलाई जायेगी।

प्रशासन द्वारा पूर्व में फाफा मऊ में शार्ट टर्मिनेट – गाजीपुर सिटी से 05 फरवरी, 2025 को चलने वाली 65117 गाजीपुर सिटी-प्रयागराज संगम मेमू गाड़ी प्रयाग स्टेशन में 09.35 बजे यात्रा समाप्त करेगी।

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श्रीहरिकोटा, 29 जनवरी (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का ऐतिहासिक 100वां प्रक्षेपण सफल रहा। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में आज सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर एनवीएस-02 को ले जाने वाले जीएसएलवी-एफ15 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। इसरो ने इस कामयाबी को लेकर कहा कि भारत अंतरिक्ष नेविगेशन में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया।

एनवीएस-02 उपग्रह को इसरो वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। यह स्वदेशी नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है। इसका वजन 2,250 किलोग्राम है। यह नई पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रहों में से दूसरा है। इसरो के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने वाले वी. नारायणन के लिए यह पहला प्रक्षेपण है। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इस प्रक्षेपण की निगरानी की। यह उपग्रह प्रक्षेपण भौगोलिक, हवाई और समुद्री नेविगेशन सेवाओं के लिए उपयोगी होगा। कृषि में प्रौद्योगिकी, विमान प्रबंधन, मोबाइल उपकरणों में स्थान-आधारित सेवाएं उपलब्ध करवाने सहयोग देगा।

चेयरमैन नारायणन ने इस सफलता के लिए इसरो वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस साल किया गया पहला प्रयोग सफल रहा। एनवीएस-02 उपग्रह दस साल तक सेवा में रहेगा विक्रम साराभाई के समय से ही इसरो नए कीर्तिमान बना रहा है। नारायण ने कहा कि अब तक हमने लॉन्च वाहनों की छह पीढ़ियां विकसित की हैं। पहला प्रक्षेपण यान 1979 में डॉ. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में लॉन्च किया गया था। श्रीहरिकोटा में अब तक 100 प्रयोग किए जा चुके हैं। हमने 100 प्रक्षेपण में 548 उपग्रह प्रक्षेपित किए। नारायणन ने कहा कि इसरो ने 3 चंद्रयान, मास ऑर्बिटर, आदित्य और एसआरई मिशन शुरू किए हैं।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए बधाई है। सिंह ने एक्स हैंडल पर लिखा,” 100वां प्रक्षेपण: श्रीहरिकोटा से 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने के लिए इसरो को बधाई। इस रिकॉर्ड उपलब्धि के ऐतिहासिक क्षण में अंतरिक्ष विभाग से जुड़ना सौभाग्य की बात है। टीम इसरो आपने एक बार फिर जीएसएलवी-एफ15 / एनवीएस-02 मिशन के सफल प्रक्षेपण से भारत को गौरवान्वित किया है।”

उन्होंने लिखा, ” विक्रम साराभाई, सतीश धवन और कुछ अन्य लोगों द्वारा एक छोटी सी शुरुआत से, यह एक अद्भुत यात्रा रही है और पीएम मोदी द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र को ”अनलॉक” करने और यह विश्वास जगाने के बाद कि ”आकाश की कोई सीमा नहीं है” यह एक बड़ी छलांग है।”

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नई दिल्ली, 8 जनवरी (हि.स.)। केंद्र सरकर ने वी नारायणन को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नया अध्यक्ष बनाया है। वे 14 जनवरी को एस. सोमनाथ की जगह लेंगे। नारायणन की नियुक्ति 14 जनवरी से दो साल की अवधि के लिए रहेगी। यह जानकारी आधिकारिक अधिसूचना में दी गई।

इसरो के नये अध्यक्ष डॉ. वी. नारायणन अभी लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (एलपीएससी) के निदेशक हैं। नारायणन ने लगभग चार दशक तक अंतरिक्ष संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। रॉकेट और अंतरिक्ष यान प्रणोदन उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र है। वह जीएसएलवी एमके इल वाहन के सी25 क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के परियोजना निदेशक भी थे। 1984 में नारायणन इसरो में शामिल हुए और केंद्र के निदेशक बनने से पहले विभिन्न पदों पर कार्य किया।

शुरुआत में करीब साढ़े चार साल तक उन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में साउंडिंग रॉकेट्स और एएसएलवी और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के ठोस प्रणोदन क्षेत्र में काम किया। 1989 में उन्होंने आईआईटी-खड़गपुर में प्रथम रैंक के साथ क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एम.टेक पूरा किया और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (एलपीएससी) में क्रायोजेनिक प्रोपल्शन क्षेत्र में शामिल हुए। लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर, वलियामाला के निदेशक के रूप में जीएसएलवी एमके III के लिए सीई20 क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उनके कार्यकाल में एलपीएससी ने इसरो के विभिन्न मिशनों के लिए 183 लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम और कंट्रोल पावर प्लांट बनाए हैं।

डॉ. नारायणन को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। उन्हें आईआईटी खड़गपुर से रजत पदक मिला है। एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) ने उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया है। एनडीआरएफ से उन्हें राष्ट्रीय डिजाइन पुरस्कार भी मिला है।

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भोपाल, 04 जनवरी (हि.स.)। खगोल विज्ञान में रुचि रखने वाले लोगों के लिए आज शनिवार का दिन बेहद खास होने जा रहा है। शाम को आसमान में दो खगोलीय घटनाएं होंगी। पहली घटना में अंडाकार पथ में परिक्रमा करते हुये पृथ्‍वी इस साल के लिए सूर्य के सबसे नजदीक पहुंच रही होगी।

दूसरी घटना में शनि, चंद्रमा और शुक्र आसमान में एक लाइन बनाते हुए नजर आएंगे।

नेशनल अवार्ड प्राप्‍त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि ठंड के इस मौसम में लगता है कि गर्मी देने वाला सूर्य शायद हमसे दूर हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने बताया कि पृथ्‍वी सूर्य की परिक्रमा करते हुये साल में एक दिन सूर्य के सबसे पास आती है और एक दिन सबसे दूर होती है।

आज शाम 6 बजकर 58 मिनिट पर पृथ्‍वी सूर्य के सबसे पास के बिंदु पर पहुंच रही है और यह दूरी घटकर 14 करोड 71 लाख तीन हजार 686 किलोमीटर रह जाएगी। इसे पेरिहेलियन बिंदु पर आना कहते हैं।सारिका ने बताया कि जुलाई में हम सूर्य के सबसे दूर होंगे।

इस खगोलीय घटना को अफेलियन कहते हैं। आज हम अफेलियन की तुलना में लगभग 50 लाख किलोमीटर सूर्य से नजदीक रहेंगे। सूर्य के पृथ्वी के नजदीक आने के बाद भी हमें इस समय ठंड का अहसास इसलिये हो रहा है, क्‍योंकि हमारे भूभाग पर सूर्य की किरणें इस समय तिर‍छी पड़ रही हैं।

उन्होंने बताया कि आज शाम आसमान में एक दूसरी खगोलीय घटना भी देखने को मिलेगी। इसमें शनि, चंद्रमा और शुक्र को एक लाइन में रहकर चमकते हुए देखा जा सकेगा। सेटर्न (शनि), क्रिसेंट मून (चंद्रमा) और वीनस (शुक्र) के लाइन अप होने की इस घटना को सूर्यास्‍त के बाद से लगभग दो घंटे तक देखा जा सकेगा।

उन्होंने कहा कि ऐसे अवसर बार-बार नहीं आते, इसलिए आए सूरज का सर्दी के मौसम में शीतलता का अहसास और शाम के आकाश में तीन चमकते खगोलीय पिंडों की कतार में देखने का मौका न गंवाएं।

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श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश), 30 दिसंबर (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को अपना महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग (स्पेडेक्स) मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निर्धारित समय सोमवार रात दस बजे इसे लॉन्च कर दिया गया। इसरो ने कहा कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस मिशन के जरिए भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक वाला दुनिया का चौथा देश बनने की ओर अग्रसर है।

इसरो के मुताबिक, स्‍पाडेक्‍स मिशन के तहत दो छोटे अंतरिक्ष यान (प्रत्येक का वजन लगभग 220 किग्रा) पीएसएलवी-सी60 द्वारा स्वतंत्र रूप से और एक साथ, 55 डिग्री झुकाव पर 470 किमी वृत्ताकार कक्षा में प्रक्षेपित किये जाएंगे, जिसका स्थानीय समय चक्र लगभग 66 दिन का होगा।

इसरो ने इस साल की शुरुआत अंतरिक्ष में एक्सरे किरणों का अध्ययन करने वाले मिशन एक्सपोसेट की लॉन्चिंग के साथ की थी। इसके कुछ ही दिन बाद अपने पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य’ में कामयाबी हासिल की। अब वर्ष का अंत भी भारत ऐसे मिशन की लॉन्चिंग के साथ कर रहा है, जो अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को अपने बलबूते हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है। इन लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना, और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) का निर्माण शामिल है।

स्पेडेक्स मिशन के साथ ही भारत डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने का चौथा देश बनेगा। इस समय दुनिया में सिर्फ तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में डाक करने में सक्षम हैं।

बतादें कि अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डाकिंग और अंतरिक्ष में जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडाकिंग कहते हैं।

मिशन के तहत श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सोमवार रात 10 बजे पीएसएलवी-सी60 रॉकेट ने दो छोटे अंतरिक्षयानों के साथ उड़ान भरी। हालांकि पहले लॉन्चिंग रात 9.58 बजे निर्धारित थी। लेकिन बाद में उसे दो मिनट देरी से लॉन्च किया गया। इसरो ने इसको लेकर अपडेट में कहा था, ‘प्रक्षेपण का दिन आ गया है। रात ठीक 10 बजे स्पेडेक्स पीएसएलवी-सी60 प्रक्षेपण के लिए तैयार है। रविवार रात नौ बजे शुरू हुई 25 घंटे की उलटी गिनती जारी है।’

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नई दिल्ली में 15 मार्च काे जुटेंगे कई देशाें के विशेषज्ञ, अंतरिक्ष यात्री और शोधकर्ता

नई दिल्ली/गुवाहाटी, 22 दिसंबर (हि.स.)। स्वामी विवेकानंद और निकोला टेस्ला इंटरनेशनल फाउंडेशन (एसवीएनटीआईएफ) अगले 15 मार्च को नई दिल्ली में यूएफओ और एलियंस पर सार्वभौमिक सम्मेलन आयोजित करेगा। इस सम्मेलन में अभूतपूर्व आयोजन वैदिक विज्ञान, ब्रह्मांडीय ऊर्जा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के साथ यूएफओ और एलियन घटनाओं के प्रतिच्छेदन पर गहन चर्चा होगी। जिससे प्राचीन ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के बीच एक अद्वितीय संवाद को बढ़ावा मिलेगा।

उक्त जानकारी एसवीएनटीआईएफ के अध्यक्ष मानस डेका ने दी है। उन्हाेंने बताया कि यूएफओ और एलियंस पर सार्वभौमिक सम्मेलन 15 मार्च, 2025 को नई दिल्ली में होगा। इस सम्मेलन में इसरो, नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए), जापानी, इतालवी और रूसी अंतरिक्ष एजेंसियां, अंतरिक्ष निर्माण सलाहकार परिषद, अंतरराष्ट्रीय यूएफओ कांग्रेस, यूरोपीय यूएफओ कांग्रेस, स्पेसएक्स, आईआईटी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (आईएयू) जैसे प्रमुख संगठनों को आमंत्रित किया जाएगा। सम्मेलन में दुनियाभर के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ, अंतरिक्ष यात्री और शोधकर्ता भी शामिल होंगे।

उन्हाेंने बताया कि प्राचीन ऐतिहासिक आख्यानों और आधुनिक यूएफओ तथा एलियन के देखे जाने के बीच संभावित संबंधों की जांच पर संवाद हाेंगे। जिनका उद्देश्य बहुविषयक दृष्टिकोण के माध्यम से अस्पष्टीकृत हवाई घटनाओं की हमारी समझ को गहरा करना है। यह ब्रह्मांडीय रहस्यों और प्राचीन ज्ञान से उनके गहरे संबंधों को उजागर करने का एक अनूठा अवसर हाेगा।

उल्लेखनीय है कि स्वामी विवेकानंद और निकोला टेस्ला इंटरनेशनल फाउंडेशन (एसवीएनटीआईएफ) विज्ञान और आध्यात्मिकता को एक साथ लाने के लिए कार्य कर रहा है।

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उज्जैन, 20 दिसंबर (हि.स.)। शनिवार को वर्ष का सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात होगी। उज्जैन में दिन 10 घण्टे 41 मिनिट का होगा ओर रात 13 घण्टे 19 मिनिट की होगी। इसे सायन उत्तरायण भी कहा जाता है।

जीवाजी वेधशाला,उज्जैन के प्रभारी डॉ.आर.पी.गुप्त के अनुसार, शनिवार, 21 दिसम्बर को उज्जैन में सूर्योदय 7 बजकर 4 मिनट तथा सूर्यास्त 5 बजकर 45 मिनट पर होगा। अत: शनिवार को उज्जैन में दिन की अवधि 10 घन्टे 41 मिनट तथा रात की अवधि 13 घन्टे 19 मिनट की होगी। 21 दिसम्बर को सूर्य सायन मकर राशि में प्रवेश करेगा। रविवार से सूर्य की गति उत्तर की ओर दृष्टिगोचर होना प्रारम्भ हो जाएगी, जिसे सायन उत्तरायन का प्रारम्भ कहते हैं।

डॉ.गुप्त ने बताया कि सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण 21 दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत होता है। ऐसा होने से शनिवार को सूर्य की क्रान्ति 23 अंश 26 कला 16 विकला दक्षिण होगी। जिससे भारत सहित उत्तरी गोलाद्र्ध में स्थित देशों में सबसे छोटा दिन तथा सबसे बड़ी रात होगी। सूर्य की उत्तर की ओर गति होने के कारण उत्तरी गोलाद्र्ध में दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगेंगे तथा रात छोटी होने लगेगी। 20 मार्च,2025 को सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत होगा। तब दिन और रात बराबर होंगे। इस घटना को जीवाजी वेधशाला के शंकु यन्त्र के माध्यम से प्रत्यक्ष देखा जा सकेगा। इस दिन शंकु की छाया सबसे लम्बी होकर पूरे दिवस मकर रेखा पर गमन करती हुई दृष्टिगोचर होगी। इस घटना को धूप होने पर ही देख सकेंगे।

उन्होने बताया कि 21 दिसम्बर को वेधशाला द्वारा स्कूल शिक्षा के 5 विद्यालयों से 50 विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को वेधशाला आमंत्रित किया गया है। इन विद्यार्थियों को खगोलीय अवलोकन करवाकर खगोलीय ज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र एवं प्रथम तीन स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे।

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– दोनों मिसाइलों की रेंज विस्तारित दूरी की ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल से भी अधिक होगी

नई दिल्ली, 18 नवम्बर (हि.स.)। भारत ने एक सप्ताह के भीतर लंबी दूरी की दो मिसाइलों का कामयाबी के साथ परीक्षण करके एयरोस्पेस की दुनिया में अपनी बढ़ती ताकत का एहसास करा दिया है। भारतीय सशस्त्र बलों के इस्तेमाल में आने वाली यह दोनों सबसे लंबी दूरी की पारंपरिक मिसाइलें होंगी, जिनकी रेंज विस्तारित रेंज वाली ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल से भी अधिक होगी। भारत को अब एक शक्तिशाली रॉकेट फोर्स की जरूरत है, जिसके लिए गाइडेड पिनाका रॉकेट सभी 12 परीक्षण पूरे होने के बाद अब 44 सेकंड में 60 किमी. दूर तक सात टन तक विस्फोटक से हमला करने में सक्षम हो गया है।

भारत ने इसी माह लंबी दूरी की हाइपरसोनिक और सबसोनिक नौसेना मिसाइलों के पहले परीक्षण किये हैं। सबसोनिक लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल (एलआरएलएसीएम) और हाइपरसोनिक लंबी दूरी की एंटी-शिप मिसाइल (एलआरएएसएचएम) दोनों ही सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल की पूरक होंगी, जो वर्तमान में भारतीय नौसेना का प्राथमिक स्ट्राइक हथियार है। भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने 12 नवंबर को ओडिशा के चांदीपुर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) से मोबाइल आर्टिकुलेटेड लॉन्चर से लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल (एलआरएलएसीएम) का पहला उड़ान परीक्षण किया।

इस दौरान सभी उप-प्रणालियों ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन करके प्राथमिक मिशन उद्देश्यों को पूरा किया। आईटीआर के विभिन्न स्थानों पर तैनात राडार, इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम और टेलीमेट्री जैसे कई रेंज सेंसर के जरिए मिसाइल के प्रदर्शन की निगरानी की गई। ओडिशा तट पर परीक्षण को डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के साथ-साथ तीनों सेनाओं के प्रतिनिधियों, सिस्टम के उपयोगकर्ताओं ने देखा। एलआरएलएसीएम को मोबाइल आर्टिकुलेटेड लॉन्चर का उपयोग करके जमीन से लॉन्च करने के लिए कॉन्फ़िगर किया गया है। इसे यूनिवर्सल वर्टिकल लॉन्च मॉड्यूल सिस्टम का उपयोग करके फ्रंटलाइन जहाजों से भी लॉन्च किया जा सकता है।

डीआरडीओ के मुताबिक़ मिसाइल ने वे पॉइंट नेविगेशन का उपयोग करके विभिन्न ऊंचाइयों और गति पर उड़ान भरते हुए विभिन्न युद्धाभ्यास करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। मिसाइल बेहतर और विश्वसनीय प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिए उन्नत एवियोनिक्स और सॉफ्टवेयर से भी लैस है। एलआरएलएसीएम को बेंगलुरु के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट ने डीआरडीओ की अन्य प्रयोगशालाओं और भारतीय उद्योगों के योगदान के साथ विकसित किया है। हैदराबाद का भारत डायनामिक्स लिमिटेड और बेंगलुरु का भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड इस मिसाइल प्रणाली के विकास और उत्पादन में भागीदार हैं। दोनों संस्थान मिसाइल के विकास और एकीकरण में लगे हुए हैं।

इसके बाद डीआरडीओ ने 16 नवंबर की देर रात ओडिशा के तट पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से भारत की पहली लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल की उड़ान का सफल परीक्षण किया। उड़ान परीक्षण के दौरान मिसाइल ने सफल टर्मिनल युद्धाभ्यास किया और उच्च स्तर की सटीकता के साथ हमला किया। रक्षा मंत्रालय के अनुसार इस मिसाइल को सशस्त्र बलों के लिए 1,500 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक विभिन्न विस्फोटक सामग्री ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है। इस मिसाइल को कई डोमेन में तैनात विभिन्न रेंज प्रणालियों द्वारा ट्रैक किया गया। इस मिसाइल को हैदराबाद स्थित डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स की प्रयोगशालाओं तथा डीआरडीओ की विभिन्न प्रयोगशालाओं और उद्योग भागीदारों ने देश में ही विकसित किया है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दोनों मिसाइलों के सफल उड़ान परीक्षण को भारत के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल के परीक्षण पर उन्होंने कहा कि इससे भविष्य में स्वदेशी क्रूज मिसाइल विकास कार्यक्रमों का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण पर डीआरडीओ, सशस्त्र बलों और उद्योग को बधाई देते हुए कहा कि इससे भारत ऐसे चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास ऐसी महत्वपूर्ण और उन्नत सैन्य तकनीक हैं।

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लेह, 1 नवंबर (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को देश के पहले एनालॉग अंतरिक्ष मिशन के लॉन्च की घोषणा की जो लद्दाख के लेह में शुरू हुआ। इस मिशन का नेतृत्व इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र ने किया है जिसे एएकेए स्पेस स्टूडियो, लद्दाख विश्वविद्यालय, आईआईटी बॉम्बे के साथ साझेदारी में विकसित किया गया है और लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद द्वारा समर्थित है। मिशन का उद्देश्य एक अंतरग्रहीय आवास में जीवन का अनुकरण करना और पृथ्वी से परे एक बेस स्टेशन स्थापित करने की चुनौतियों का पता लगाना है।

इसरो के मुताबिक भारत का पहला एनालॉग अंतरिक्ष मिशन लेह में शुरू हुआ। मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र, इसरो द्वारा एएकेए स्पेस स्टूडियो, लद्दाख विश्वविद्यालय, आईआई बॉम्बे और लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद द्वारा समर्थित एक संयुक्त प्रयास में यह मिशन पृथ्वी से परे एक बेस स्टेशन की चुनौतियों से निपटने के लिए एक अंतरग्रहीय आवास में जीवन का अनुकरण करेगा। लद्दाख का अत्यधिक अलगाव, कठोर जलवायु और अद्वितीय भौगोलिक विशेषताएं इसे इन खगोलीय पिंडों पर अंतरिक्ष यात्रियों के सामने आने वाली चुनौतियों का अनुकरण करने के लिए एक आदर्श स्थान बनाती हैं। यह मिशन भारत के गगनयान कार्यक्रम और भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण का समर्थन करने के लिए मूल्यवान डेटा का योगदान देगा। लद्दाख की शुष्क जलवायु, उच्च ऊंचाई, बंजर भूभाग मंगल और चंद्र स्थितियों से काफी मिलते-जुलते हैं, जो इसे एनालॉग शोध के लिए आदर्श बनाते हैं। भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक डॉ. आलोक कुमार ने शुरू में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए लद्दाख का उपयोग करने का विचार प्रस्तावित किया था।

एनालॉग मिशन पृथ्वी के वातावरण में क्षेत्र परीक्षण हैं जो चरम अंतरिक्ष स्थितियों की नकल करते हैं। एनालॉग मिशन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को यह समझने में मदद करते हैं कि अंतरिक्ष जैसी परिस्थितियों में मनुष्य, रोबोट और तकनीक किस तरह से प्रतिक्रिया दे सकते हैं। नासा के इंजीनियर और वैज्ञानिक अंतरिक्ष में इस्तेमाल किए जाने से पहले कठोर वातावरण में परीक्षण के लिए आवश्यकताओं को इकट्ठा करने के लिए सरकारी एजेंसियों, शिक्षाविदों और उद्योग के साथ काम करते हैं। परीक्षणों में नई तकनीकें, रोबोट उपकरण, वाहन, आवास, संचार, बिजली उत्पादन, गतिशीलता, बुनियादी ढांचा और भंडारण शामिल हैं।

ये मिशन अलगाव, टीम की गतिशीलता और कारावास जैसे व्यवहार संबंधी प्रभावों का भी निरीक्षण करते हैं, जो क्षुद्रग्रहों या मंगल जैसे गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए तैयारियों में सहायता करते हैं। इन मिशनों के लिए परीक्षण स्थलों में महासागर, रेगिस्तान और ज्वालामुखीय परिदृश्य जैसे विविध स्थान शामिल हैं जो अंतरिक्ष अन्वेषण की चुनौतियों को दोहराते हैं।

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भोपाल, 17 अक्टूबर (हि.स.)। देश वासियों ने शरदोत्‍सव बुधवार की रात्रि में खीर खाकर मना लिया हो, लेकिन वैज्ञानिक रूप से शरद पूर्णिमा गुरुवार की रात मनाई गई। इस दौरान चांद अपनी अधिकतम चकम के साथ चमकता हुआ नजर आया। खासकर खगोल विज्ञान में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यह पल इसलिए भी खास बन गया, क्योंकि चंद्रमा इस दौरान साल की सबसे तेज चमक के साथ आकाश में चमक रहा है। यह रात भर इसी तेज चमक के साथ अपनी चांदनी बिखेरेगा।

नेशनल अवार्ड प्राप्‍त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने शरद पूर्णिमा के चांद की चमक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि चंद्रमा आज गुरुवार की शाम इस साल के लिये पृथ्‍वी के सबसे नजदीक आकर मात्र तीन लाख 57 हजार 364 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद था। खगोल विज्ञान में सुपरमून कही जाने वाले इस घटना में नजदीकियों के कारण यह माईक्रोमून की तुलना में लगभग 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत ज्‍यादा चमक के साथ आकाश में अपनी चांदनी बिखेर रहा है। शाम को उदित होता चंद्रमा विशाल लाल गोले के रूप में था, तो कुछ देर बाद यह चांदी की तरह चमकने लगा। इसकी चमक माईनस 12. 76 मैग्‍नीटयूड है।

क्‍या होता है सुपरमून

विज्ञान प्रसारक सारिका ने बताया कि पृथ्‍वी के चारों ओर परिक्रमा करता चंद्रमा गोलाकार पथ में नहीं घूमता, बल्कि अंडाकार पथ में चक्‍कर लगाता है। इस कारण उसकी पृथ्‍वी से दूरी बढ़कर कभी 406,700 किमी हो जाती है तो कभी यह 356,500 किमी तक पास भी आ जाता है। जब चंद्रमा पृथ्‍वी के पास आया हो और उस समय पूर्णिमा आती है तो चंद्रमा लगभग 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई देता है। इसे ही सुपरमून कहा जाता है। आज हमें शरद पूर्णिमा पर साल का सबसे नजदीकी सुपरमून देखने का अवसर मिला है। उन्होंने क‍हा कि अब अगले निकटतम सुपरमून के लिए 05 नवम्‍बर 2025 का इंतजार करना होगा।

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