Chhapra: विद्या, कला, संगीत और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा बसंत पंचमी के दिन धूमधाम से मनाई जाती है। माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी कहा जाता है। मंदिरों, स्कूलों, कॉलेजों, और घरों में बसंत पंचमी पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सरस्वती पूजा को लेकर छात्रों में उत्साह होता है। कई दिन पूर्व से पूजा की तैयारी की जाती है।

सरस्वती पूजा के लिए युवा विशेष रूप से मूर्ति की खरीदारी करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण परंपरा है, क्योंकि पूजा के लिए देवी की मूर्ति खरीदने से पूजा का माहौल और भी खास बन जाता है।

स्थानीय कारीगरों या कलाकारों से मूर्तियां खरीदकर पूजा पंडालों में स्थापित की जाती है। इससे स्थानीय कारीगरों को भी प्रोत्साहन मिलता है और मूर्तियों में स्थानीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।

हाल के वर्षों में इको-फ्रेंडली मूर्तियों की लोकप्रियता बढ़ी है। इन मूर्तियों को पारंपरिक मिट्टी या बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बनाया जाता है, ताकि पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। युवा अब इन मूर्तियों को खरीदने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं, ताकि वे पर्यावरण की रक्षा कर सकें।

छपरा के श्यामचक में बड़ी संख्या में मूर्तिकार आकर्षक मूर्तियों का निर्माण करते हैं जिसे खरीदने के लिए लोग दूर दूर से यहाँ पहुंचते हैं।

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बसंत पंचमी पर विशेष

– योगेश कुमार गोयल

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी ‘बसंत पंचमी’ के रूप में देशभर में धूमधाम से मनाई जाती रही है, जो इस वर्ष 2 फरवरी को मनाई जा रही है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर आरंभ होगी और 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, इसलिए बसंत पंचमी का पर्व इस साल 2 फरवरी को मनाया जा रहा है। 2 फरवरी को बसंत पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। सरस्वती पूजा का मुहूर्त प्रातः 7 बजकर 8 मिनट से प्रारंभ होगा और दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। बसंत पंचमी मध्याह्न का क्षण दोपहर 12ः34 बजे होगा। इस वर्ष बसंत पंचमी पर भद्रा का साया रहने वाला है। भद्रा सुबह 7 बजकर 8 मिनट पर आरंभ होगी और सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए शुभ नहीं माना गया है।

माना जाता है कि बसंत पंचमी का दिन बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। शरद ऋतु की विदाई और बसंत के आगमन के साथ समस्त प्राणीजगत में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। वातावरण में चहुं ओर मादकता का संचार होने लगता है। प्रकृति के सौंदर्य में निखार आने लगता है। शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं, लेकिन बसंत की शुरुआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नयी कोंपलें फूटने लगती हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं, वातावरण महकने लगता है। बसंत पंचमी के ही दिन होली का उत्सव भी आरंभ हो जाता है और इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।

साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए बसंत पंचमी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पवित्र पर्व माना गया है। बच्चों को इस दिन से बोलना या लिखना सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुईं थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने बसंत पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि अब से प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होगी और इस दिन को मां सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा।

प्राचीन काल में बसंत पंचमी को प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में ‘वसंतोत्सव’, ‘मदनोत्सव’, ‘कामोत्सव’ अथवा ‘कामदेव पर्व’ के रूप में मनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। इस संबंध में मान्यता है कि इसी दिन कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम की भावना का संचार कर उन्हें चेतना प्रदान की थी, ताकि वे सौन्दर्य और प्रेम की भावनाओं को गहराई से समझ सकें। इस दिन रति पूजा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि कामदेव ने बसंत ऋतु में ही पुष्प बाण चलाकर समाधिस्थ भगवान शिव का तप भंग करने का अपराध किया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना और विलाप से द्रवित होकर भगवान शिव ने रति को आशीर्वाद दिया कि उसे श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अपना पति पुनः प्राप्त होगा।

‘बसंत पंचमी’ को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से बसंत पंचमी के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है। बसंत पंचमी को ‘श्रीपंचमी’ भी कहा गया है। कहा जाता है कि इस दिन का स्वास्थ्य वर्षभर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अतः इस पर्व को स्वास्थ्यवर्धक एवं पापनाशक भी माना गया है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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बसंत पंचमी का त्यौहार हिन्दू धर्म के त्योहार में एक है इसे अलग अलग राज्यों में अलग अलग नाम से जाना जाता है. बसंत पंचमी के दिन ज्ञान के देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है. गुप्त नवरात्रि के पांचवा दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है इन्हे सरस्वती पूजा के नाम से जाना जाता है यह त्योहार बसंत ऋतू के आगमन का प्रतिक है इस दिन से होली का आरंभ हो जाता है सरस्वती पूजा विशेषकर सरस्वती देवी विधा और संगीत की देवी मानी जाती है. विशेषकर विधार्थी, शिक्षक, पठन -पाठन तथा गीत -संगीत से जुडे लोग को विशेष दिन होता है बसंत पंचमी का त्योहार माघ माह के शुक्लपक्ष पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का त्योहार मनाया जाता है। 

बसंत पंचमी
यह त्योहार ऋतु के राजा बसंतराज यानि बसंत ऋतू का आरंभ होता है। खेत फसल से लहलहाते है इस दिन गेहूं तथा जौ की बलिया को भगवन को अर्पित की जाती है।  भगवन को अबीर गुलाल चढ़ाया जाता है. ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस और अज्ञानता के छुटकारा पाने के लिए बसंत पंचमी को मां सरस्वती को विशेषतौर पर पूजन किया जाता है। 

विद्या तथा नया कार्य आरंभ करने का सबसे शुभ दिन

बसंत पंचमी के दिन नया कार्य आरंभ करने का तथा विधा आरंभ करने का सबसे शुभ दिन माना जाता है। माता पिता अपने शिशु को माता सरस्वती को आशीर्वाद प्राप्त करके विधा का आरंभ करते है. नया मकान का आरंभ करना, व्यापार का आरंभ, वाहन के खरीदारी, नए मकान की खरीदारी के लिए शुभ दिन मन जाता है, इसलिए बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त के नाम से जाना जाता है. मां सरस्वती का पूजन प्रायः सभी घर तथा स्कूल में किया जाता है.

कब है सरस्वती पूजन

03 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी का उत्सव मनाया जायेगा.
पंचमी तिथि का आरंभ 02 फरवरी 2025 को सुबह 11:53 से आरंभ होगा.
पंचमी तिथि का समाप्ति 03 फरवरी 2025 को दोपहर 09:36 मिनट को समाप्त होगा .

बसंत पंचमी यानि मां सरस्वती का पूजन किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन पंचमी तिथि और सुबह के समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस दिन मां सरस्वती को सफेद वस्त्र,सफेद फूल, दूध से बनी वस्तुओं को प्रसाद के रूप में भोग लगाए.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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प्रात: 08 बजे तक 2.78 करोड़ श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

महाकुम्भनगर, 29 जनवरी (हि.स.)। मौनी अमावस्या पर्व पर अमृत स्नान की इच्छा से बड़ी संख्या में आये श्रद्धालुओं से प्रयागराज महाकुम्भ पट चुका है। पूरा मेला क्षेत्र श्रद्धालुओं के जयकारे से गूंज रहा है। संगम की रेती पर आस्था का सागर हिलोरें मार रहा है। श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने के बाद दान पुण्य कर रहे हैं। श्रद्धालु शांतिपूर्ण तरीके से स्नान कर रहे हैं। मेला प्रशासन के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन सुबह 08 बजे तक 2.78 करोड़ श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगायी है। जिसमें कल्वास की संख्या 10 लाख शामिल है।

त्रिवेणी की ओर जाने वाले सभी मार्गों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के जत्थे जा रहे हैं। वहीं स्नान कर श्रद्धालु अपने गंतव्य की ओर रवाना भी हो रहे हैं। श्रद्धालुओं की सेवा में स्थान-स्थान पर लंगर भी लगाये गये हैं। भीड़ को देखते हुए पुलिस ने शहर की सड़कों पर बाइन न चलाने की अपील की है। शहरी क्षेत्र की सभी पार्किंग पहले ही फुल हो चुकी हैं। बाहर से चार पहिया लेकर आने वाले श्रद्धालुओं को शहर से बाहर ही रोका जा रहा है।

महाकुम्भ नगर पहुंचे श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपील की है कि श्रद्धालुगण मां गंगा के जिस भी घाट के समीप हैं, वहीं स्नान करें, संगम नोज की ओर जाने का प्रयास न करें। उन्होंने सभी से मेला प्रशासन के निर्देशों का पालन करने की अपील की है।

जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने अपील की है कि भारी भीड़ के कारण हमें जहाँ भी स्थान मिले अमृत स्नान करें। आज अमृत स्नान की शोभा यात्रा स्थगित की है। परमेश्वर सभी का कल्याण करें। स्वामी रामभद्राचार्य ने महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की कि वे सभी संगम में स्नान का आग्रह छोड़ दें और निकटतम घाट पर स्नान करें। लोग अपने शिविर से बाहर न निकलें। अपनी और एक दूसरे की सुरक्षा करें।

बाबा रामदेव ने कहा है कि करोड़ों श्रद्धालुओं के इस हुजूम को देखते हुए सभी से आग्रह किया कि हम भक्ति के अतिरेक में न बहें और आत्म अनुशासन का पालन करते हुए सावधानी पूर्वक स्नान करें। जूना अखाड़े के संरक्षक स्वामी हरि​गिरि महाराज ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वह प्रयागराज के किसी भी घाट पर डुबकी लगायें उन्हें संगम स्नान का ही पुण्य मिलेगा।

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महाकुम्भ नगर, 23 जनवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुम्भ में पतित पावनी मां गंगा एवं यमुना के पावन संगम में गुरूवार सुबह आठ बजे तक कल्पवासी सहित कुल 16.98 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यावस्था को लेकर पुखता इंतजाम किया गया है।

अपर मेला अधिकारी महाकुम्भ विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि पावन संगम घाट समेत सभी घाटों पर गुरूवार भोर से श्रद्धालुओं का स्नान जारी है। मेला क्षेत्र में दस लाख से अधिक कल्पवासी और 6.98 लाख दूर दराज से आने वाले तीर्थयात्रियों ने संगम में डुबकी लगाई और श्रद्धालुओं का आगमन जारी है।

श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर महाकुम्भ क्षेत्र के सभी घाटों पर जल पुलिस के साथ अन्य पुलिस बल के जवान श्रद्धालुओं की समस्याओं का निदान करते हुए स्नान घाट तक पहुंचा रहें है और वापस जाने के मार्ग में मेला क्षेत्र के बाहर, स्टेशन और बस अड्डे पहुंचने का रास्ता बता रहे हैं।

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Prayagraj/Chhapra: प्रयागराज में महाकुंभ जारी है। हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ संगम तट पर पवित्र स्नान करने के लिए उमड़ रही है. एक अनुमान के अनुसार अब तक साढ़े सात करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान कर लिया है.

महाकुंभ में अखाड़ों में संत, साधु, महात्माओं के साथ साथ विदेशों से पहुंचे सैलानियों के दल भी स्नान कर रहे हैं।

इसके साथ ही इस बार महाकुंभ में स्नान करने युवा भी बड़ी संख्या में प्रयागराज पहुँच रहे है। अपनी संस्कृति, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत को जानने और इसको आत्मसात करने में युवा भी पीछे नहीं हैं। युवाओं की टोली प्रतिदिन स्नान करने के लिए अलग अलग प्रांतों से पहुँच रही है।

छपरा से महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे युवा मनीष कुमार मणि बताते हैं कि वैसे तो प्रयागराज में महाकुंभ 12 वर्षों में एक बार लगता है, लेकिन हम सब सौभाग्यशाली हैं कि इस बार 144 वर्षों के बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बना है जो महाकुंभ के मुहूर्त से भी ज्यादा शुभ माना जा रहा है और हम सभी युवा इसके साक्षी बन रहे हैं। भारत की सनातन परंपरा पर हम सभी को गर्व है।

 

वहीं गोविंद सोनी ने बताया कि कड़ाके की ठंड और कोहरे के बावजूद श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है. संगम में डुबकी लगाकर लोग पुण्य कमा रहे हैं और साधु-संतों के दर्शन कर रहे हैं. यह आस्था का अद्भुत संगम है। मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद हम सभी पूरे भक्ति भाव से महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को आने वाली पीढ़ियों को भी बताना है। इसी उद्देश्य से मित्रों के साथ महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं। युवा बड़ी संख्या में कुंभ में पहुँच रहे हैं। 

 

कुंवर जयसवाल ने बताया कि कुंभ मेला की व्यवस्था बहुत अच्छी है। खासकर सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया है। कुंभ मेला में बड़ी संख्या में युवा पहुँच रहे हैं और अपनी संस्कृति जो जान और समझ रहे हैं। युगों से चली आ रही इस परंपरा को हुमने भी आत्मसात किया और अपनी भावी पीढ़ी को भी इसके महात्म से अवगत कराएंगे।  

 

 

अमित ओझा ने बताया कि प्रयागराज तीर्थों का राजा है। यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम है। इस क्षेत्र को त्रिवेणी कहा जाता है।
यहाँ पहुँच कर सभी पुण्य के भागी बनते हैं। युवाओं को यहाँ आकार अपनी संस्कृति से परिचित होना चाहिए, इसी उद्देश्य से हम सब भी तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं। 

बात दें कि मौनी अमावस्या पर 10 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे. 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ से ज़्यादा ने डुबकी लगाई थी।

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Chhapra/Prayagraj:  दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुंभ 2025 में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं का त्रिवेणी संगम पर पहुंचना जारी है. प्रयागराज में महाकुंभ में स्नान करने के लिए करोड़ों लोग पहुँच रहे हैं।

ऐसे में श्रद्धालुओं के आवास और भोजन के लिए मेला क्षेत्र में शिविर बनाए गए हैं। इन शिविरों कुछ शिविर समजसेवियों के द्वारा भी लगाए गए हैं। जिनमें आवास और भोजन की व्यवस्था की गई है।

सारण के समाजसेवी राणा यशवंत प्रताप सिंह के द्वारा भी कुंभ मेला क्षेत्र में शिविर लगाया गया है। जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पहुँच रहे हैं। शिविर में रुकने के बाद संगम में स्नान कर पुण्य कमा रहे हैं।

समाजसेवी राणा यशवंत प्रताप सिंह ने बताया कि क्षेत्र के लोगों के साथ साथ सम्पूर्ण बिहार और अन्य जगहों से भी श्रद्धालु शिविर में पहुँच रहे हैं। सभी श्रद्धालुओं के लिए राम जन्म सिंह सेवा समिति परिसर तैयार है। आवास और भोजन के प्रबंध उनके द्वारा की गई है।

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कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और परंपराओं का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है। कुंभ मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि खगोलीय घटनाओं से जुड़ी एक विशेष परंपरा है।

2025 में महाकुंभ प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा, जो कुल 45 दिनों का आयोजन होगा। अक्सर लोग कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ के बीच अंतर को लेकर भ्रमित रहते हैं।

इन आयोजनों का समय, धार्मिक महत्व और खगोलीय स्थितियों पर आधारित अंतर इन्हें खास बनाता है। इनके बीच के अतंर को जानिए।

1. कुंभ मेला (हर 12 साल में) इसके लिए स्थान भी फिक्स रहता है।
स्थान: चारों पवित्र स्थल (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक)।

खगोलीय स्थिति: जब सूर्य, चंद्रमा और गुरु (बृहस्पति) विशेष खगोलीय स्थिति में होते
हैं।
महत्व: इस समय इन स्थानों की नदियों (गंगा, क्षिप्रा, गोदावरी और संगम) का जल बेहद पवित्र माना जाता है।

2. अर्धकुंभ मेला (हर 6 साल में)

स्थान: केवल हरिद्वार और प्रयागराज।

अर्थ: ‘अर्ध’ का मतलब है आधा। यह कुंभ और पूर्णकुंभ के बीच की अवधि में आयोजित होता है।

विशेषता: इसे कुंभ चक्र का मध्य चरण माना जाता है।

3. पूर्णकुंभ मेला (हर 12 साल में, केवल प्रयागराज में)
     स्थान: केवल प्रयागराज।
      महत्व: इसे कुंभ मेले का उच्चतम धार्मिक स्तर माना जाता है।

2025 में आयोजन: इस साल प्रयागराज में पूर्णकुंभ का आयोजन होगा।

4. महाकुंभ मेला (हर 144 साल में)

5. स्थान: सिर्फ प्रयागराज।

महत्व: 12 पूर्णकुंभों के बाद आयोजित यह मेला एक ऐतिहासिक और दुर्लभ धार्मिक आयोजन है।

विशेषता:

इसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं, और इसे सबसे भव्य धार्मिक पर्व माना जाता है।

महाकुंभ का स्थान कैसे तय होता है?

महाकुंभ के आयोजन स्थल का निर्धारण ग्रहों की स्थितियों के आधार पर होता है, खासतौर पर गुरु (बृहस्पति) और सूर्य की स्थिति पर।

हरिद्वार: जब गुरु कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं।

उज्जैन: जब सूर्य मेष राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं।

नासिक: जब गुरु और सूर्य दोनों सिंह राशि में होते हैं।

प्रयागराज: जब गुरु वृषभ राशि में और शनि मकर राशि में होते हैं।

महाकुंभ 2025 क्यों खास है?

2025 का महाकुंभ प्रयागराज में 12 साल बाद आयोजित हो रहा है। यह सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि लाखों लोगों के लिए आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और खगोलीय महत्व रखता है। इस आयोजन में शामिल होकर भक्त न केवल अपने पापों का क्षय मानते हैं, बल्कि मोक्ष की ओर अग्रसर होने का अनुभव भी करते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Prayagraj: विश्व का सबसे बड़ा सास्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन ‘महाकुम्भ 2025’ आज से शुरू हो गया है।  आस्था व आध्यात्मिकता का अविस्मणीय अनुभव करने श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे। यह आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक चलेगा।

गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम प्रयागराज में महाकुंभ पर करोड़ों श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं।

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Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति, भारत का एक प्रमुख हिंदू पर्व है।  यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। भारत में हर पर्व त्योहार  संस्कृति से जुड़े हुए हैं। इन पर्व को लेकर लोगों में काफी आस्था और उमंग देखने को मिलता है।

इस वर्ष मकर संक्रांति मंगलवार, 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन स्नान दान करने को शुभ माना जाता है।

मकर संक्रांति 2025: तारीख और समय

मकर संक्रांति: मंगलवार, 14 जनवरी 2025
मकर संक्रांति पुण्य काल: 09:03 बजे से 17:46 बजे तक
मकर संक्रांति महा पुण्य काल: 09:03 बजे से 10:48 बजे तक
मकर संक्रांति का क्षण: 09:03 बजे
इन मुहूर्तों को पुण्य काल और महा पुण्य काल कहा जाता है, जिनके दौरान धार्मिक कार्य और दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति का पर्व फसल कटाई और सूर्य देव की पूजा का पर्व है। यह दिन सूर्य के उत्तरायण होने का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति में सकारात्मक बदलाव और समृद्धि का संकेत माना जाता है। यह दिन अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है, और इसके साथ ही यह समय नई शुरुआत करने, आध्यात्मिक प्रैक्टिस और अच्छे कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।

भारत में मकर संक्रांति के विविध रूप
मकर संक्रांति भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाई जाती है:

तमिलनाडु में इसे पोंगल कहते हैं, जिसमें सूर्य देवता को धन्यवाद देते हुए विशेष मीठा व्यंजन तैयार किया जाता है।
गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण कहा जाता है, और इस दिन लोग गुब्बारे उड़ाते हैं, जो उत्साह और खुशी का प्रतीक होते हैं।
पंजाब और हरियाणा में इसे माघी के नाम से मनाते हैं, जहां लोग नदी में स्नान करते हैं और खास व्यंजन जैसे खीर और तिल गुड़ खाते हैं।

मकर संक्रांति के दिन कई महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक कार्य होते हैं। जैसे पवित्र स्नान: गंगा, यमुनाजी या गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना, जो आत्मा को शुद्ध करता है। नैवेद्य अर्पित करना: सूर्य देवता को खाने की सामग्री अर्पित करना और उनका आभार व्यक्त करना। दान और पुण्य कार्य: इस दिन विशेष रूप से गरीबों को कपड़े, खाना और पैसे दान करना पुण्य का कार्य माना जाता है। श्रद्धा कर्म: अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान और अन्य श्रद्धा कर्म करना। व्रत का पारण: कई लोग व्रत रखते हैं और पुण्य काल के दौरान उसका पारण करते हैं।

मकर संक्रांति की क्षेत्रीय विविधताएं

मकर संक्रांति हर राज्य और क्षेत्र में अपने अनोखे तरीके से मनाई जाती है।

कुछ प्रमुख क्षेत्रीय परंपराएं:

महाराष्ट्र में तिल गुड़ बांटना, जो प्रेम और एकता का प्रतीक होता है।
बंगाल में गंगा सागर मेला जैसे बड़े आयोजन होते हैं, जिसमें लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।
दक्षिण भारत में पोंगल के दौरान रंग-बिरंगे कोलम (रंगोली) बनाए जाते हैं और सामूहिक भोज होता है।
गुजरात में उत्तरी दिशा की ओर उड़ते रंग-बिरंगे पतंगों के साथ उत्तरायण की खुशी मनाई जाती है।
मकर संक्रांति न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामूहिकता, प्रेम और आस्था का पर्व भी है। यह पर्व हमें एकजुट होने, अच्छे कार्यों को करने और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा देता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594,9545290847

 

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Chhapra: अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की प्रथम वर्षगाँठ पर रामभक्तों ने दीपोत्सव मनाया। छपरा शहर के कचहरी स्टेशन परिसर में स्थित दुर्गा मंदिर में विश्व हिंदु परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एकत्र होकर हनुमान चालीसा का सामूहिक गान किया।

इस अवसर पर रामभक्तों ने कहा कि श्री राम का जीवन मानवता और नैतिकता का अनुपम उदाहरण है। 500 वर्षों की प्रतीक्षा को समाप्त करते हुए, गत वर्ष अयोध्या में प्रभु श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कर पूरे देश में आध्यात्मिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ था। यह भव्य मंदिर सदियों तक देशवासियों की आस्था और आकांक्षा का प्रतीक बना रहेगा। 

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– पहली बार एक ही दिन में 7.43 लाख श्रद्धालुओं ने किया दर्शन-पूजन, बेहतरीन भीड़ प्रबंधन से मंदिर में धक्कामुक्की की नहीं आई नौबत

वाराणसी, 02 जनवरी (हि.स.)। आंग्ल नववर्ष के पहले दिन काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के स्वर्णिम दरबार में शिवभक्तों के आने का नया रिकॉर्ड बना है। मंदिर में भोर मंगला आरती से लेकर रात 11 बजे शयन आरती तक कुल सात लाख 43 हजार 699 श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया। यह एक दिन में दर्शनार्थियों के आने का नया रिकॉर्ड है।

श्री काशी विश्वनाथ धाम के नव्य भव्य विस्तारित स्वरूप के बाद दरबार में दर्शन पूजन के नित नए कीर्तिमान बन रहे हैं। मंदिर न्यास के अनुसार वर्ष 2024 में पहली जनवरी को कुल सात लाख 35 हजार, 1 जनवरी 2023 को 5.50 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया था।

मंदिर न्यास की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार नववर्ष के पहले दिन सुबह 06 बजे तक एक लाख 10 हजार 824, आठ बजे तक एक लाख 65 हजार 946, पूर्वाह्न 10 बजे तक 2 लाख 35 हजार 450, दोपहर 12 बजे तक दो लाख 80 हजार 971, अपराह्न दो बजे तक तीन लाख 59 हजार 832 और शाम चार बजे चार लाख 21 हजार 489 श्रद्धालुओं ने हाजिरी लगाई। यह आंकड़ा शाम 06 बजे तक 5 लाख 9 हजार 770 हो गया। रात आठ बजे 6 लाख 06 हजार 130, रात 10 बजे सात लाख 14 हजार 387 और रात 11 बजे 7 लाख 43 हजार 699 का रिकॉर्ड आंकड़ा दर्ज हुआ।

मंदिर न्यास ने भी वर्ष के पहले दिन सात से आठ लाख भक्तों के आने की संभावना जताई थी। मंदिर प्रबंधन और प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन पर खासा ​ध्यान दिया जिसके चलते धाम में धक्कामुक्की की नौबत नही आई। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सावन और महाशिवरात्रि जैसे प्रोटोकॉल लागू किए गए।

सेवादारों और पुलिसकर्मियों ने भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा का जिम्मा संभाला था। 02 जनवरी को भी स्पर्श दर्शन, सुगम दर्शन, रुद्राभिषेक टिकट बुकिंग बंद रही।

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