महाकुम्भ : आस्ट्रेलिया की आबादी से सत्रह गुणा ज्यादा श्रद्धालु संगम में लगा चुके आस्था की डुबकी

45 करोड़ श्रद्धालुओं के महाकुम्भ में शामिल होने का था अनुमान- एक महीने में 46 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु संगम में लगा चुके आस्था की डुबकी- अभी दो हफ्ते बाकी है मेला, 26 फरवरी को शिवरात्रि स्नान पर होगा समापन

महाकुम्भ नगर:  मानवता की अमूर्त धरोहर कुम्भ का साक्षी बनने के लिए पूरी दुनिया संगमनगरी में उमड़ पड़ी। विश्व के सबसे बड़े मेले महाकुम्भ को शुरू हुए बुधवार माघ पूर्णिमा को एक महीना पूरा हो गया। इस एक महीने में तीन पवित्र नदियों के संगम में आस्ट्रेलिया की आबादी से 17 गुणा ज्यादा संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। आबादी के लिहाज से देखें तो फ्रांस की आबादी से सात गुणा, इंग्लैण्ड की आबादी से छह गुणा, रशिया और जापान की आबादी से तीन गुणा ज्यादा संख्या में श्रद्धालु अब तक पवित्र स्नान कर चुके हैं। 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुम्भ मेले में अभी तक करीब पावन डुबकी लगाने वालों की संख्या 46 करोड़ को पार कर चुकी है।बुधवार 12 फरवरी शाम-4 बजे तक 1.94 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया है। मेला समापन में अभी दो हफ्ते का समय बाकी है।

आबादी के लिहाज से महाकुम्भ नगर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश विश्व की आठ अरब से ज्यादा की आबादी में 1.45 अरब आबादी के साथ भारत अव्वल है। 1.41 अरब आबादी के साथ पड़ोसी देश चीन दूसरे और 34.5 करोड़ आबादी के साथ अमेरिका तीसरे स्थान पर हैं। महाकुम्भ में अब तक आए श्रद्धालुओं के हिसाब से उत्तर प्रदेश 76वां जिला महाकुम्भ नगर आबादी के लिहाज से दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को पछाड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। विश्व में दस करोड़ से कम आबादी वाले लगभग 139 देश हैं।

आस्ट्रेलिया की आबादी से 17 गुणा ज्यादा कर चुके स्नान

वर्ल्डोमीटर डॉट इनफो वेबसाइट के अनुसार, आस्ट्रेलिया की आबादी 2.67 करोड़ है। उस हिसाब से महाकुम्भ में आस्ट्रेलिया की पूरी आबादी 17 बार से ज्यादा बार स्नान कर चुकी है। फ्रांस की आबादी 6.65 करोड़ और इंग्लैण्ड की 6.91 करोड़ है। महाकुम्भ में स्नान करने वालों की संख्या के हिसाब से फ्रांस की पूरी आबादी सात और इंग्लैण्ड छह बार स्नान कर चुकी है।

रशिया और जापान की पूरी आबादी तीन बार कर चुकी स्नान वर्ल्डोमीटर डॉट इनफो वेबसाइट के अनुसार, रशिया की आबादी 14.48 करोड़ और जापान की आबादी 12.3 करोड़ है। इस लिहाज से इन दोनों देशों की पूरी आबादी तीन बार महाकुम्भ में स्नान कर चुकी है।

महाकुम्भ में 40-45 करोड़ श्रद्धालु आने का था अनुमान

उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुमान लगाया था कि 45 दिन के दुनिया के इस सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन में 45 करोड़ के करीब श्रद्धालु आएंगे। एक महीने में यह संख्या 46 करोड़ को पार कर चुकी है। अभी मेले दो हफ्ते का समय शेष है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के पवित्र स्नान के साथ मेले का समापन होगा। माना जा रहा है कि महाकुंभ में स्नानार्थियों की संख्या 50 करोड़ से पार हो जाएगी।

2019 में 24 करोड़ ने लगायी थी आस्था की डुबकी

2019 में प्रयागराज में 48 दिन तक चले कुम्भ मेले में 24 करोड़ 10 लाख श्रद्धालु गंगा, यमुना और अंतःसलिला सरस्वती में पुण्य की डुबकी लगाकर धन्य हुए थे। इस कुम्भ में जितने लोगों ने स्नान किया, उतनी भीड़ अब तक किसी मेले में नहीं लगी। यहां तक कि प्रदेश सरकार और मेला प्रशासन की ओर से भी 12 से 15 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान का अनुमान लगाया जा रहा था। 2013 के कुम्भ में 12 करोड़ श्रद्धालु शामिल हुए थे।

संतों और श्रद्धालुओं ने योगी सरकार की तारीफ की

दिव्य, भव्य और नव्य महाकुम्भ के आयोजन और व्यवस्था के लिये संत समाज और श्रद्धालुओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश सरकार की तारीफ की है। युवा श्रद्धालुओं ने महाकुंभ स्नान को अमिट स्मृति बताते हुए इसे सफल बनाने के लिए सीएम योगी का तहेदिल से आभार जताया। चंडीगढ़ से आये युवा श्रद्धालु कृतिका का कहना है कि, घाटों पर भारी भीड़ में भी सब कुछ अच्छे से मैनेज है, चेंजिंग रूम भी प्रॉपर हैं। विशाल भीड़ को मैनेज करना बहुत बड़ा टास्क है और सीएम योगी और मेला प्रशासन इस पर पूरी तरह खरे उतरे हैं।

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सामाजिक समरसता के महानायक संत रविदास की जयंती मनी

भागलपुर: सैनिक स्कूल गणपत राय सलारपुरिया सरस्वती विद्या मंदिर भागलपुर में बुधवार को संत रविदास की जयंती मनाई गई। प्रधानाचार्य अमरेश कुमार, जयंती प्रमुख उत्तम कुमार मिश्रा, चंदन पांडे एवं छात्रों ने संयुक्त रूप से उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर जयंती का शुभारंभ किया।

मौके पर जयंती प्रमुख उत्तम कुमार मिश्र ने कहा कि भारत संत और महात्माओं का देश है। इन्होंने अपने ज्ञान एवं विवेक से भारत के मन को बढ़ाने का प्रयत्न किया है। संत शिरोमणि रविदास ने मानवता के लिए संदेश दिया कि जीवन में कर्म ही महान होता है। सफलता के लिए आदर्श दिनचर्या और कठिन परिश्रम आवश्यक होता है। महान समाज सुधारक, श्रेष्ठ विचारक एवं संत रविदास का संदेश हम मानव जाति के लिए अनुकरण के योग्य है।

विद्यालय के प्रधानाचार्य अमरेश कुमार ने कहा कि संत रविदास का जीवन, चरित्र एवं कर्म अनुशासन पर ही निर्भर था। छात्रों के सफलता के लिए भी कठिन परिश्रम एवं अनुशासन आवश्यक होता है। जात-पात उच्च नीच के साथ अनेक सामाजिक कुरीतियों को दूर कर सामाजिक समरसता का भाव विकसित करने वाले कर्म की प्रधानता देने वाले समानता एवं एकता का भाव का विकास करने वाले संत रविदास का जीवन हम सभी के लिए अनुकरण के योग्य है। इस अवसर पर राज सिंघानिया, खुशी प्रिया, आराध्या के अतिरिक्त अनेक छात्रों ने अपना भाव व्यक्त किया। पवन पंजियार के द्वारा तुम चंदन हम पानी गीत भी प्रस्तुत किया गया। मौके पर मीडिया प्रभारी दीपक कुमार झा, पुष्कर झा एवं सभी आचार्य बंधु उपस्थित थे।

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महामंडलेश्वर सदा शिवेंद्र सरस्वती ने महाकुम्भ में योगी सरकार की व्यवस्थाओं को सराहा

प्रयागराज से वापस लौटे संतों ने महाकुंभ में योगी सरकार की व्यवस्थाओं को सराहा

सीतापुर:  प्रयागराज महाकुंभ से महामंडलेश्वर की पदवी पाकर नैमिषारण्य वापस लौटे संतों ने महाकुंभ की व्यवस्थाओं को लेकर योगी सरकार की सराहना की है, तो वहीं महाकुंभ में व्यवस्था के दुष्प्रचार के नाम पर हो रही सियासत पर भी गहरी नाराजगी प्रकट की है। जानकारी हो कि महाकुंभ में पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी से जुड़े नैमिषारण्य के दो संतों को महामंडलेश्वर की पदवी मिली है। नैमिषारण्य वापसी पर प्रयागराज महाकुम्भ की व्यवस्थाओं पर हो रही राजनीति पर उनकी प्रतिक्रिया जानी।

स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि महाकुंभ की व्यवस्थाएं अच्छी थीं। योगी सरकार ने साधु-संतों एवं श्रद्धालुओं के लिए कोई कसर नहीं बाकी रखी। उन्होंने कहा कि भगदड़ की घटना अत्यंत दुखद थी, परंतु इसकी आड़ में व्यवस्थाओं को कोसा नहीं जा सकता। सरकार की पूरी ईमानदारी से कोशिश रही कि साधु-संतों एवं स्नान के लिए आने वाले लोगों लिए अच्छा प्रबंध हो। योगी सरकार इस मामले में खरी उतरी है ।

महामंडलेश्वर विद्यानंद सरस्वती ने उदाहरण देते हुए कहा कि 10 लोगों की क्षमता के एक कमरे में अगर 100 लोग आ जाएं तो थोड़ी बहुत अव्यवस्था होना स्वाभाविक बात है, परंतु बाद में उसे ठीक करने की कोशिश होती है, लेकिन जिस प्रकार से अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए कुछ लोग प्रयागराज में हुई भगदड़ की घटना की आड़ में पूरे महाकुंभ को बदनाम कर रहे हैं , वह अत्यंत दुःखद व निन्दनीय है।

वही महामंडलेश्वर सदा शिवेंद्र सरस्वती ने महाकुम्भ में योगी सरकार की व्यवस्थाओं को सराहनीय बताते हुए कहा कि आलोचना राजनीतिक रोटियां सेकने जैसी है।सभी साधु -संतों एवं श्रद्धालुओं के लिए योगी सरकार की व्यवस्था अच्छी थी। उत्तर प्रदेश में राजसत्ता की कमान एक संत के हाथ में है। संत के रूप में योगी जी पूरी ईमानदारीपूर्वक महाकुंभ के प्रति अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की धरोहर को योगी जी ने अच्छे तरीके से आगे बढ़ाया है।

प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में सीतापुर को धार्मिक दृष्टिकोण से मिली उपलब्धि ऋषियों की तपस्थली नैमिषारण्य को गौरवान्वित करने वाली है। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के शिविर में नैमिषारण्य से संबंध रखने वाले इन दोनों संतों , सदा शिवेंद्र सरस्वती व स्वामी विद्यानंद सरस्वती को महाकुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई है। वहां परंपराओं का निर्वहन करते हुए इन दोनों संतों का पट्टाभिषेक किया गया है।

नैमिषारण्य वैसे भी धर्म क्षेत्र में सुविख्यात है। यहां कभी 88 हजार ऋषियों ने तपस्या की थी। वेदों, पुराणों की रचना स्थली, मनु शतरूपा की तपस्थली के रूप में इसे पूरे विश्व में मान्याता प्राप्त है। इन सबके बीच संतों का पट्टाभिषेक कर उनको महामंडलेश्वर घोषित कर देना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।

नैमिषारण्य के स्वामी सदा शिवेंद्र सरस्वती व स्वामी विद्यानंद सरस्वती को प्रयागराज महाकुंभ के दौरान पट्टाभिषेक करके महामंडलेश्वर की पदवी से सम्मानित किया गया है। मात्र 19 वर्ष की आयु में 1990 में संत जीवन में प्रवेश करने वाले विद्यानंद सरस्वती पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी से जुड़े हैं वहीं सदा शिवेंद्र सरस्वती 11 वर्ष की आयु से नैमिषारण्य में हरिहरानंद सरस्वती ब्रह्म विज्ञान पीठ संस्थानम से पढ़ाई करते हुए आश्रम से संत के रूप में निकले।

इन दोनों संतों को महा निर्वाणी अखाड़ा के अध्यक्ष श्री रविंद्रपुरी महाराज महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानन्द भारती, आचार्य राजगुरु की मौजूदगी में महाकुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि मिली। दोनों संतों को वैदिक परंपरा के अनुसार अखाड़े के महामंडलेश्वरों ने पट्टाभिषेक (चादरविधि) करके महामंडलेश्वर की पदवी से सम्मानित किया गया।

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-श्री लक्ष्मी नारायण का ध्यान करने से जिंदगी की सारी परेशानियों होती हैं दूर : जीयर स्वामी-मानव को तीनों ऋण से मुक्त होना चाहिए- जीयर स्वामी

महाकुम्भ नगर, 06 फरवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुम्भ की रसधार बह रही है। श्री त्रिदण्डी स्वामी के श्री जियर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जिंदगी में कितनी भी परेशानियां हो श्री लक्ष्मी नारायण भगवान का ध्यान करने से सब समाप्त हो जाता है। जिसका सौभाग्य होगा वो प्रयागराज में लक्ष्मी नारायण यज्ञ में हिस्सा लेगा। पुराणों में बताया गया है कि प्रयागराज में प्रवेश मात्र से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और संगम के त्रिवेणी में अगर स्नान जो कर लिया उसका जीवन धन्य हो गया।

उन्होंने कहा कि मनुष्य को चिंता नहीं चिंतन करनी चाहिए। चिंता से विनाश होता है, जबकि चिंतन से विकास होता है। चिंता ह्रास का कारण बनता है और कोई परिणाम नहीं दे पाता है। श्री जीयर स्वामी ने सुखदेव जी की जन्मोपरांत तप के लिए वन गमन प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि संन्यासी चार प्रकार के होते हैं, कुटीचक, बहुदक, हंस और परमहंस। कुटीचक संयासी गृहस्थ जीवन के अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन के बाद घर में रहते हुए निर्लिप्त रहते हैं। बहुदक भी कुटीचक के समान होते हैं। हंस संन्यासी दुनिया को नश्वर मान दुनिया में रहते हैं। जैसे-कमल, पानी में रहते हुए भी जल के प्रभाव से मुक्त रहता है। परमहंस सन्यासी दुनिया के किसी विषय वस्तु से सरोकार नहीं रखता। बल्कि स्थित प्रज्ञ की स्थिति में रहता है।

उन्होंने कहा कि हर काल में समाज संचालन के नियम-कायदे विभिन्न ऋषियों एवं शासकों द्वारा निर्धारित किए जाते रहे हैं। जैसे मुगलकाल, अंग्रेजी शासन और स्वतंत्रोत्तर भारत के कानून आदि। इसी तरह ऋषियों द्वारा भी त्रेता, सत्युग, द्वापर और कलयुग में नीति निर्धारण किये गये हैं। जिन्हें स्मृति कहते हैं। कलियुग में पराशर स्मृति मान्य है। पराशर स्मृति के अनुसार सभी वर्ण के लोग अपने अनुकूलता के अनुसार जीविकोपार्जन करने के लिए स्वतंत्र हैं।

स्वामीजी ने कहा कि मनुष्य जन्म के साथ ही तीन ऋणों मातृ-पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण से युक्त होता है। मातृ-पितृ ऋण से उऋण (ऋणमुक्त) होने के लिए माता-पिता की जीवनपर्यन्त सम्यक प्रकार से सेवा और मृत्योपरांत श्राद्ध एवं पिंडदान से मुक्ति मिलती है। यज्ञ, पूजा एवं भंडारा से देव ऋण से मुक्ति मिलती है। जबकि सद्ग्रंथों के नियमित अध्ययन से ऋषि ऋण से व्यक्ति उऋण होता है। तीनों ऋणों से उऋण होने वाला ही पुत्र कहलाने का हकदार है। उन्होंने कहा कि तीनों ऋण से मुक्ति पाने वाला परम धाम को सहज ही प्राप्त कर लेता है।

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महाकुम्भ नगर, 03 फरवरी (हि.स.)। पंचाक्षरी मंत्र की अनुगूंज, मधुर भजन स्वर लहरी, हर-हर गंगे के जयघोष के मध्य कुम्भ के तीसरे अमृत (शाही) स्नान बंसत पंचमी पर्व पर सोमवार को अखाड़ों और नागा संन्यासियों की अवधूती शान से संगम पर सनातनी आस्था का वैभव मुखर हो उठा। उमंग-उत्साह के बीच बैरागी अखाड़ों के वैराग्य का रंग और नागा संन्यासियों का आकर्षण अलग अलौकिक आध्यात्म की अनुभूति करा रहा था।

महाकुम्भ के अंतिम एवं तीसरे अमृत स्नान के मौके पर प्रयागराज में करोड़ों श्रद्धालुओं ने पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाई। देश के कोने-कोने से यहां पहुंचे अलग-अलग वेशभूषा, बोलचाल, रंग-ढंग के लोगों ने भावनात्मक एकता का शानदार परिचय दिया। बसंत पंचमी के दौरान प्रयागराज की सर्दी श्रद्धालुओं की आस्था के आड़े न आ सकी। आधी रात से संगम में श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगाने के लिए जुटने लगे थे। ये सिलसिला भाेर से लेकर दिनभर चला और अभी भी जारी है। मेला प्रशासन ने बताया कि 02 फरवरी की रात्रि से बसंत पंचमी के स्नान मुहूर्त आरंभ हो गया। इस दौरान 40 घाटों पर शाम 06 बजे तक 2.33 करोड़ श्रद्धालु संगम में डुबकी लगा चुके थे। अभी रात्रि तक स्नान जारी रहेगा। श्रद्धालु लगातार स्नान कर रहे हैं।

तीसरे अमृत स्नान पर अखाड़ों के साधु-संत निर्धारित क्रम एवं समय के अुनसार गाजे-बाजे के साथ संगम तट की ओर प्रातः 4 बजे बढ़े। साधु-संतों और नागा साधुओं की झलक देखने के लिए लाखों श्रद्धालु मार्ग में खड़े थे। साधु-संतों और नागाओं को देखते ही श्रद्धालुओं की भीड़ हर-हर महादेव का जयकारा जोर से लगाती रही। हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ अखाड़ों ने अंतिम और तीसरा शाही स्नान किया।

इस अखाड़े ने किया पहला स्नानवर्षों से चली आ रही परम्परा को इस बार भी दोहराया गया। महानिर्वाणी एवं शम्भू पंचायती अटल अखाड़ा को स्नान का पहला अवसर मिला। ऐसे में आज सुबह 5 बजे पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने अमृत स्नान किया। इसके पीछे अब निरंजनी अखाड़ा, आनन्द अखाड़ा, जूना अखाड़ा, दशनाम आवाहन अखाड़ा और पंचाग्नि अखाड़ा, पंच निर्मोही, पंच दिगंबर, पंच निर्वाणी, अनी अखाड़ा, नया उदासीन अखाड़ा बड़ा उदासीन व अन्य अखाड़े अमृत स्नान कर रहे हैं।

हेलिकाप्टर से पुष्पवर्षा, अभिभूत हुए संत, संन्यासी व श्रद्धालु महाकुम्भ के अंतिम अमृत स्नान में संगम तट पर डुबकी लगाने पहुंचे करोड़ों श्रद्धालुओं पर योगी सरकार ने हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कराई। हेलीकॉप्टर से सभी घाटों और अखाड़ों पर स्नान के दौरान श्रद्धालुओं पर फूलों की बारिश की गई। पुष्प वर्षा की शुरुआत सुबह 6.30 बजे से ही हो गई और सायं तक चलती रही, जब तक अखाड़ों का अमृत स्नान जारी रहा। गुलाब की पंखुड़ियों की आसमान से हो बारिश देख संगम तट पर मौजूद नागा संन्यासी, संत समाज और श्रद्धालु अभिभूत हो गए। हर तरफ जय श्री राम और हर हर महादेव का उद्घोष आरम्भ हो गया। महाकुम्भ के सभी तीनों अमृत स्नान पर अखाड़ों के संतों, श्रद्धालुओं और कल्पवासियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गई है।

मुख्यमंत्री योगी ने दी बधाईमहाकुम्भ में पवित्र त्रिवेणी संगम में अमृत स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करने वाले पूज्य साधु-संतों, धर्माचार्यों, सभी अखाड़ों, कल्पवासियों एवं श्रद्धालुओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बधाई दी। मुख्यमंत्री ने इस महाकुम्भ को भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिक मूल्यों को प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर बताया और इसके द्वारा समाज में शांति, समृद्धि और सद्भाव की भावना को साझा करने की शुभकामनाएं दीं।

ठंड पर भारी पड़ा आस्था का सैलाबगंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर लोगों ने शुभ-मुहूर्त के शुभारम्भ से ही डुबकी लगानी शुरु कर दी थी। हल्के कोहरे तथा ठण्ड पर भी लोगों की आस्था का सैलाब भारी रहा। संगम क्षेत्र में रात्रि से ही आस्था और श्रद्धा का जनसैलाब उमड़ने लगा। मौनी अमावस्या के दौरान हुए हादसे के बाद बसंत पंचमी पर हर श्रद्धालु में जबरदस्त जोश और उत्साह देखने को मिला। स्नान के बाद श्रद्धालुओं, स्नानार्थियों के दान-पुण्य का कार्यक्रम जारी रहा। आस्था के जनसैलाब को दृष्टिगत रखते हुए मेला प्रशासन ने बड़ी ही चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था बनाए रखी। श्रृंग्वेरपुर से लेकर किला घाट तक गंगा, यमुना और संगम तट के दोनों तरफ 8 किमी में बनाए गये 40 सुगम घाटों पर खुले क्षेत्रों में लोगों ने स्नान किया। सुव्यवस्थित वेंडिंग जोन तथा सुगम यातायात व्यवस्था के प्रभाव से स्नानार्थियों का अवागमन व्यवस्थित एवं सुगम रहा। कहीं भी जाम की स्थिति उत्पन्न नहीं होने पाई। कम से कम पैदल दूरी पर चलकर श्रद्धालुओं ने स्नान किया। मेला क्षेत्र से किसी अप्रिय घटना की जानकारी नहीं मिली। मेला प्रशासन पूरी तैयारी के साथ चप्पे-चप्पे पर नज़र रख रहा है। श्रद्धालुओं को विनम्रता के साथ मार्गदर्शन करते हुए सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाया जा रहा है।

सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध मौनी अमावस्या के स्नान के दौरान मची भगदड़ में 30 श्रद्धालुओं की मौत के बाद तीसरे अमृत स्नान में मेला प्रशासन सर्तकता बरत रहा है। मेला प्रशासन ने तीसरे अमृत स्नान के लिए स्पेशल प्लान बनाया है। इसमें सभी श्रद्धालुओं के लिए वनवे रूट की व्यवस्था की गयी। त्रिवेणी के घाटों पर अत्यधिक दबाव रोकने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल और बैरिकेड तैनात किए गए हैं। इसके साथ ही सुरक्षा व्यवस्था और अधिक कड़ी कर दी गई है। श्रद्धालुओं को संगम या अन्य घाटों तक पहुंचने में दिक्कत ना हो, इसके प्रबंध किए गए हैं। प्रभावी पेट्रोलिंग के लिए 15 मोटर साइकिल दस्ते तैनात किए गए हैं। प्रमुख चौराहों और डायवर्जन प्वाइंट्स के बैरियर पर सीएपीएफ और पीएसी का इंतजाम किया गया है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिहाज से वन वे रूट तैयार किया गया है। इसके अलावा पांटून पुलों पर मेले में आने वाले लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत न आने पाए, इसके भी विशेष इंतजाम किए गए हैं।

अब तक 37 करोड़ लगा चुके आस्था की डुबकी13 जनवरी को शुरू हुए महाकुम्भ मेले में सोमवार तक 37 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। सोमवार सांय 6 बजे तक 2.33 करोड़ श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।

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Chhapra: विद्या, कला, संगीत और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा बसंत पंचमी के दिन धूमधाम से मनाई जाती है। माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी कहा जाता है। मंदिरों, स्कूलों, कॉलेजों, और घरों में बसंत पंचमी पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सरस्वती पूजा को लेकर छात्रों में उत्साह होता है। कई दिन पूर्व से पूजा की तैयारी की जाती है।

सरस्वती पूजा के लिए युवा विशेष रूप से मूर्ति की खरीदारी करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण परंपरा है, क्योंकि पूजा के लिए देवी की मूर्ति खरीदने से पूजा का माहौल और भी खास बन जाता है।

स्थानीय कारीगरों या कलाकारों से मूर्तियां खरीदकर पूजा पंडालों में स्थापित की जाती है। इससे स्थानीय कारीगरों को भी प्रोत्साहन मिलता है और मूर्तियों में स्थानीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।

हाल के वर्षों में इको-फ्रेंडली मूर्तियों की लोकप्रियता बढ़ी है। इन मूर्तियों को पारंपरिक मिट्टी या बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बनाया जाता है, ताकि पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। युवा अब इन मूर्तियों को खरीदने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं, ताकि वे पर्यावरण की रक्षा कर सकें।

छपरा के श्यामचक में बड़ी संख्या में मूर्तिकार आकर्षक मूर्तियों का निर्माण करते हैं जिसे खरीदने के लिए लोग दूर दूर से यहाँ पहुंचते हैं।

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बसंत पंचमी पर विशेष

– योगेश कुमार गोयल

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी ‘बसंत पंचमी’ के रूप में देशभर में धूमधाम से मनाई जाती रही है, जो इस वर्ष 2 फरवरी को मनाई जा रही है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर आरंभ होगी और 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, इसलिए बसंत पंचमी का पर्व इस साल 2 फरवरी को मनाया जा रहा है। 2 फरवरी को बसंत पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। सरस्वती पूजा का मुहूर्त प्रातः 7 बजकर 8 मिनट से प्रारंभ होगा और दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। बसंत पंचमी मध्याह्न का क्षण दोपहर 12ः34 बजे होगा। इस वर्ष बसंत पंचमी पर भद्रा का साया रहने वाला है। भद्रा सुबह 7 बजकर 8 मिनट पर आरंभ होगी और सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए शुभ नहीं माना गया है।

माना जाता है कि बसंत पंचमी का दिन बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। शरद ऋतु की विदाई और बसंत के आगमन के साथ समस्त प्राणीजगत में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। वातावरण में चहुं ओर मादकता का संचार होने लगता है। प्रकृति के सौंदर्य में निखार आने लगता है। शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं, लेकिन बसंत की शुरुआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नयी कोंपलें फूटने लगती हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं, वातावरण महकने लगता है। बसंत पंचमी के ही दिन होली का उत्सव भी आरंभ हो जाता है और इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।

साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए बसंत पंचमी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पवित्र पर्व माना गया है। बच्चों को इस दिन से बोलना या लिखना सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुईं थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने बसंत पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि अब से प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होगी और इस दिन को मां सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा।

प्राचीन काल में बसंत पंचमी को प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में ‘वसंतोत्सव’, ‘मदनोत्सव’, ‘कामोत्सव’ अथवा ‘कामदेव पर्व’ के रूप में मनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। इस संबंध में मान्यता है कि इसी दिन कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम की भावना का संचार कर उन्हें चेतना प्रदान की थी, ताकि वे सौन्दर्य और प्रेम की भावनाओं को गहराई से समझ सकें। इस दिन रति पूजा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि कामदेव ने बसंत ऋतु में ही पुष्प बाण चलाकर समाधिस्थ भगवान शिव का तप भंग करने का अपराध किया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना और विलाप से द्रवित होकर भगवान शिव ने रति को आशीर्वाद दिया कि उसे श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अपना पति पुनः प्राप्त होगा।

‘बसंत पंचमी’ को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से बसंत पंचमी के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है। बसंत पंचमी को ‘श्रीपंचमी’ भी कहा गया है। कहा जाता है कि इस दिन का स्वास्थ्य वर्षभर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अतः इस पर्व को स्वास्थ्यवर्धक एवं पापनाशक भी माना गया है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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बसंत पंचमी का त्यौहार हिन्दू धर्म के त्योहार में एक है इसे अलग अलग राज्यों में अलग अलग नाम से जाना जाता है. बसंत पंचमी के दिन ज्ञान के देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है. गुप्त नवरात्रि के पांचवा दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है इन्हे सरस्वती पूजा के नाम से जाना जाता है यह त्योहार बसंत ऋतू के आगमन का प्रतिक है इस दिन से होली का आरंभ हो जाता है सरस्वती पूजा विशेषकर सरस्वती देवी विधा और संगीत की देवी मानी जाती है. विशेषकर विधार्थी, शिक्षक, पठन -पाठन तथा गीत -संगीत से जुडे लोग को विशेष दिन होता है बसंत पंचमी का त्योहार माघ माह के शुक्लपक्ष पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का त्योहार मनाया जाता है। 

बसंत पंचमी
यह त्योहार ऋतु के राजा बसंतराज यानि बसंत ऋतू का आरंभ होता है। खेत फसल से लहलहाते है इस दिन गेहूं तथा जौ की बलिया को भगवन को अर्पित की जाती है।  भगवन को अबीर गुलाल चढ़ाया जाता है. ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस और अज्ञानता के छुटकारा पाने के लिए बसंत पंचमी को मां सरस्वती को विशेषतौर पर पूजन किया जाता है। 

विद्या तथा नया कार्य आरंभ करने का सबसे शुभ दिन

बसंत पंचमी के दिन नया कार्य आरंभ करने का तथा विधा आरंभ करने का सबसे शुभ दिन माना जाता है। माता पिता अपने शिशु को माता सरस्वती को आशीर्वाद प्राप्त करके विधा का आरंभ करते है. नया मकान का आरंभ करना, व्यापार का आरंभ, वाहन के खरीदारी, नए मकान की खरीदारी के लिए शुभ दिन मन जाता है, इसलिए बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त के नाम से जाना जाता है. मां सरस्वती का पूजन प्रायः सभी घर तथा स्कूल में किया जाता है.

कब है सरस्वती पूजन

03 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी का उत्सव मनाया जायेगा.
पंचमी तिथि का आरंभ 02 फरवरी 2025 को सुबह 11:53 से आरंभ होगा.
पंचमी तिथि का समाप्ति 03 फरवरी 2025 को दोपहर 09:36 मिनट को समाप्त होगा .

बसंत पंचमी यानि मां सरस्वती का पूजन किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन पंचमी तिथि और सुबह के समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस दिन मां सरस्वती को सफेद वस्त्र,सफेद फूल, दूध से बनी वस्तुओं को प्रसाद के रूप में भोग लगाए.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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प्रात: 08 बजे तक 2.78 करोड़ श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

महाकुम्भनगर, 29 जनवरी (हि.स.)। मौनी अमावस्या पर्व पर अमृत स्नान की इच्छा से बड़ी संख्या में आये श्रद्धालुओं से प्रयागराज महाकुम्भ पट चुका है। पूरा मेला क्षेत्र श्रद्धालुओं के जयकारे से गूंज रहा है। संगम की रेती पर आस्था का सागर हिलोरें मार रहा है। श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने के बाद दान पुण्य कर रहे हैं। श्रद्धालु शांतिपूर्ण तरीके से स्नान कर रहे हैं। मेला प्रशासन के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन सुबह 08 बजे तक 2.78 करोड़ श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगायी है। जिसमें कल्वास की संख्या 10 लाख शामिल है।

त्रिवेणी की ओर जाने वाले सभी मार्गों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के जत्थे जा रहे हैं। वहीं स्नान कर श्रद्धालु अपने गंतव्य की ओर रवाना भी हो रहे हैं। श्रद्धालुओं की सेवा में स्थान-स्थान पर लंगर भी लगाये गये हैं। भीड़ को देखते हुए पुलिस ने शहर की सड़कों पर बाइन न चलाने की अपील की है। शहरी क्षेत्र की सभी पार्किंग पहले ही फुल हो चुकी हैं। बाहर से चार पहिया लेकर आने वाले श्रद्धालुओं को शहर से बाहर ही रोका जा रहा है।

महाकुम्भ नगर पहुंचे श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपील की है कि श्रद्धालुगण मां गंगा के जिस भी घाट के समीप हैं, वहीं स्नान करें, संगम नोज की ओर जाने का प्रयास न करें। उन्होंने सभी से मेला प्रशासन के निर्देशों का पालन करने की अपील की है।

जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने अपील की है कि भारी भीड़ के कारण हमें जहाँ भी स्थान मिले अमृत स्नान करें। आज अमृत स्नान की शोभा यात्रा स्थगित की है। परमेश्वर सभी का कल्याण करें। स्वामी रामभद्राचार्य ने महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की कि वे सभी संगम में स्नान का आग्रह छोड़ दें और निकटतम घाट पर स्नान करें। लोग अपने शिविर से बाहर न निकलें। अपनी और एक दूसरे की सुरक्षा करें।

बाबा रामदेव ने कहा है कि करोड़ों श्रद्धालुओं के इस हुजूम को देखते हुए सभी से आग्रह किया कि हम भक्ति के अतिरेक में न बहें और आत्म अनुशासन का पालन करते हुए सावधानी पूर्वक स्नान करें। जूना अखाड़े के संरक्षक स्वामी हरि​गिरि महाराज ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वह प्रयागराज के किसी भी घाट पर डुबकी लगायें उन्हें संगम स्नान का ही पुण्य मिलेगा।

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महाकुम्भ नगर, 23 जनवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुम्भ में पतित पावनी मां गंगा एवं यमुना के पावन संगम में गुरूवार सुबह आठ बजे तक कल्पवासी सहित कुल 16.98 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यावस्था को लेकर पुखता इंतजाम किया गया है।

अपर मेला अधिकारी महाकुम्भ विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि पावन संगम घाट समेत सभी घाटों पर गुरूवार भोर से श्रद्धालुओं का स्नान जारी है। मेला क्षेत्र में दस लाख से अधिक कल्पवासी और 6.98 लाख दूर दराज से आने वाले तीर्थयात्रियों ने संगम में डुबकी लगाई और श्रद्धालुओं का आगमन जारी है।

श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर महाकुम्भ क्षेत्र के सभी घाटों पर जल पुलिस के साथ अन्य पुलिस बल के जवान श्रद्धालुओं की समस्याओं का निदान करते हुए स्नान घाट तक पहुंचा रहें है और वापस जाने के मार्ग में मेला क्षेत्र के बाहर, स्टेशन और बस अड्डे पहुंचने का रास्ता बता रहे हैं।

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Prayagraj/Chhapra: प्रयागराज में महाकुंभ जारी है। हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ संगम तट पर पवित्र स्नान करने के लिए उमड़ रही है. एक अनुमान के अनुसार अब तक साढ़े सात करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान कर लिया है.

महाकुंभ में अखाड़ों में संत, साधु, महात्माओं के साथ साथ विदेशों से पहुंचे सैलानियों के दल भी स्नान कर रहे हैं।

इसके साथ ही इस बार महाकुंभ में स्नान करने युवा भी बड़ी संख्या में प्रयागराज पहुँच रहे है। अपनी संस्कृति, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत को जानने और इसको आत्मसात करने में युवा भी पीछे नहीं हैं। युवाओं की टोली प्रतिदिन स्नान करने के लिए अलग अलग प्रांतों से पहुँच रही है।

छपरा से महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे युवा मनीष कुमार मणि बताते हैं कि वैसे तो प्रयागराज में महाकुंभ 12 वर्षों में एक बार लगता है, लेकिन हम सब सौभाग्यशाली हैं कि इस बार 144 वर्षों के बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बना है जो महाकुंभ के मुहूर्त से भी ज्यादा शुभ माना जा रहा है और हम सभी युवा इसके साक्षी बन रहे हैं। भारत की सनातन परंपरा पर हम सभी को गर्व है।

 

वहीं गोविंद सोनी ने बताया कि कड़ाके की ठंड और कोहरे के बावजूद श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है. संगम में डुबकी लगाकर लोग पुण्य कमा रहे हैं और साधु-संतों के दर्शन कर रहे हैं. यह आस्था का अद्भुत संगम है। मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद हम सभी पूरे भक्ति भाव से महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को आने वाली पीढ़ियों को भी बताना है। इसी उद्देश्य से मित्रों के साथ महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं। युवा बड़ी संख्या में कुंभ में पहुँच रहे हैं। 

 

कुंवर जयसवाल ने बताया कि कुंभ मेला की व्यवस्था बहुत अच्छी है। खासकर सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया है। कुंभ मेला में बड़ी संख्या में युवा पहुँच रहे हैं और अपनी संस्कृति जो जान और समझ रहे हैं। युगों से चली आ रही इस परंपरा को हुमने भी आत्मसात किया और अपनी भावी पीढ़ी को भी इसके महात्म से अवगत कराएंगे।  

 

 

अमित ओझा ने बताया कि प्रयागराज तीर्थों का राजा है। यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम है। इस क्षेत्र को त्रिवेणी कहा जाता है।
यहाँ पहुँच कर सभी पुण्य के भागी बनते हैं। युवाओं को यहाँ आकार अपनी संस्कृति से परिचित होना चाहिए, इसी उद्देश्य से हम सब भी तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं। 

बात दें कि मौनी अमावस्या पर 10 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे. 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ से ज़्यादा ने डुबकी लगाई थी।

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Chhapra/Prayagraj:  दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुंभ 2025 में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं का त्रिवेणी संगम पर पहुंचना जारी है. प्रयागराज में महाकुंभ में स्नान करने के लिए करोड़ों लोग पहुँच रहे हैं।

ऐसे में श्रद्धालुओं के आवास और भोजन के लिए मेला क्षेत्र में शिविर बनाए गए हैं। इन शिविरों कुछ शिविर समजसेवियों के द्वारा भी लगाए गए हैं। जिनमें आवास और भोजन की व्यवस्था की गई है।

सारण के समाजसेवी राणा यशवंत प्रताप सिंह के द्वारा भी कुंभ मेला क्षेत्र में शिविर लगाया गया है। जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पहुँच रहे हैं। शिविर में रुकने के बाद संगम में स्नान कर पुण्य कमा रहे हैं।

समाजसेवी राणा यशवंत प्रताप सिंह ने बताया कि क्षेत्र के लोगों के साथ साथ सम्पूर्ण बिहार और अन्य जगहों से भी श्रद्धालु शिविर में पहुँच रहे हैं। सभी श्रद्धालुओं के लिए राम जन्म सिंह सेवा समिति परिसर तैयार है। आवास और भोजन के प्रबंध उनके द्वारा की गई है।

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