छपरा: देवी दुर्गा की उपासना का पर्व नवरात्रि का समापन आज नवमी पूजन के साथ होगा. नवमी के अवसर पर देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा रही है. नवमी रविवार रात 10.31 से शुरू हुई है जो सोमवार को रात 10.52 बजे तक रहेगी.

नवमी के अवसर पर कन्या पूजन और कन्या भोज का आयोजन किया जाता है. शहर के कोट देवी, धर्मनाथ मंदिर, बुढिया माता आदि मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए भक्तों की कतार देखी जा रही है. इस अवसर पर बलि प्रदान किया जाता है. हवन पूजन के साथ नवरात्रि का समापन होगा.  

रविवार को परंपरानुसार अष्टमी पूजन किया गया.

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छपरा: शहर के काली बाड़ी में बंगाली समुदाय के द्वारा स्थापित माँ दुर्गा का पट शुक्रवार को खुल गया. ढ़ोल, नगाड़े और शंख की ध्वनि के साथ पारंपरिक बंगाली रीति-रिवाज के अनुसार माँ का पट खुला. 

बंगाल से आये कारीगरों द्वारा माता की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया गया है. बंगाल से आये पुरोहितों के द्वारा ही यहाँ पूजा-पाठ की जाती है.

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छपरा में रह रहे बंगाली समुदाय के लोगों के द्वारा लगभग सौ सालों से इस पूजा का आयोजन किया जाता है. यहाँ स्थापित मूर्ति अपने भव्यता से आकर्षण का केंद्र होती है. दूर-दूर लोग यहाँ स्थापित प्रतिमा को देखने के लिए पहुंचते है. सप्तमी से लेकर नवमी तक यहाँ विशेष आयोजन किये जाते है.

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छपरा: शहर के पश्चिमी छोर पर गुरुद्वारा में माता की प्रतिमा स्थापित की जाएगी. दुर्गा पूजा के मौके पर पूजा समिति के सदस्यों द्वारा रात दिन एक कर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा हैं.

समिति के अध्यक्ष शैलेंद्र राय ने बताया कि इस बार माता की प्रतिमा पंजाब के गुरुद्वारा में स्थापित की जा रही हैं. पंडाल का निर्माण कोलकाता के कारीगरों द्वारा एक माह पूर्व से किया जा रहा हैं. उन्होंने बताया कि लाखों रुपए की लागत से यह पंडाल बनाया जा रहा हैं.

पूजा समिति द्वारा प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी कुवांरी भोज का आयोजन किया जा रहा है. सप्तमी को हलवा, अष्टमी को खीर, नवमी को विशाल भंडारा तथा दशमी को खिचड़ी भोज किया जाएगा.

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छपरा: प्रत्येक वर्ष साहेबगंज में होने वाले भरत मिलाप समारोह की तैयारियां शुरू हो चुकी है. इस बार भरत मिलाप समारोह का 15 अक्टूबर को आयोजन किया जायेगा.

गुरुवार को स्थानीय साहेबगंज स्थित कठिया बाबा मंदिर में आयोजन समिति की बैठक आयोजित की गयी. बैठक में सर्वसम्मति से 15 अक्टूबर को भरत मिलाप समारोह मनाया जायेगा. बैठक में रंजित कुमार सिंह, रवि गुप्ता, धनञ्जय कुमार, रमण जयसवाल, संतोष कुमार, अमित कुमार शामिल थे.

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छपरा: शहर में दुर्गा पूजा के अवसर पर सभी पूजा समिति अपने अपने तरीके से बेहतर पूजा पंडाल और प्रतिमा बनाने में जुटी हैं. ग्रामीण इलाकों में भी पूजा को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा हैं. शहर से सटे नैनी गांव की आदर्श पंचायत बजरंग बली पूजा समिति द्वारा इस वर्ष 14 फीट का शिवलिंग बनाया जा रहा हैं. जो आकर्षण का केंद्र बनेगा.

पूजा समिति के अध्यक्ष सुनील कुमार ने बताया कि इस बार दशहरा में भक्त भगवान शिव के 14 फीट के शिवलिंग का दर्शन करगें. उन्होंने बताया कि मांझी प्रखंड के कारीगरों द्वारा बनाया जा रहा हैं. सैकड़ो बांस की मदद से यह बनाया जा रहा हैं. शिवलिंग पर जल भी अर्पण किया जायेगा.

सुनील कुमार ने बताया कि दशहरा के अवसर पर प्रतिदिन रामलीला का भी आयोजन किया जा रहा हैं. जिसे दरभंगा की बजरंगी झा पार्टी द्वारा किया जा रहा हैं.

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छपरा: विजयादशमी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष होने वाले रावण दहन को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गयी है. इस बार लोगों को रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के आकर्षक पुतलों को देखने का मौका मिलेगा. जिसके निर्माण में कारीगर जुटे हुए है. 

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रावण के पुतले के निर्माण में जुटे कारीगर                       Photo: Chhapra Today

समारोह की तैयारियों को लेकर बुधवार को राजेंद्र स्टेडियम में आयोजन समिति ने प्रेस वार्ता की. आयोजकों ने बताया कि इस बार रावण का 60 फिट ऊँचा पुतला का निर्माण हो रहा है. जबकि मेघनाथ और कुम्भकर्ण के 55-55 फिट ऊँचे पुतले देखने को मिलेंगे. 

समारोह राजेंद्र स्टेडियम में होगा. इस अवसर पर आयोजन समिति के सदस्य अरुण सिंह, श्याम बिहारी अग्रवाल, सत्यप्रकाश यादव आदि उपस्थित थे. 

आपको बता दें कि रावण दहन देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ राजेंद्र स्टेडियम में प्रत्येक वर्ष जुटती है. रावण दहन को देखने के लिए लोग दूर दूर से यहाँ पहुंचते है. इस अवसर पर होने वाली आतिशबाजी देखने लायक होती है.

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छपरा: नवरात्र में हर जगह पंडालों का निर्माण हो रहा है. पूजा समितियां जोर शोर से पंडालों को पूरा करने में दिन रात लगी हुई है. कई पूजा समितियों द्वारा अपने पंडाल को अलग रूप दिया जा रहा है.

शहर के टक्कर मोड़ पर गुफा में बाबा बर्फानी को स्थापित करने का कार्य चल रहा है. समिति के सदस्य शशि कुमार ने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी पूजा समिति के द्वारा वर्फ से बने बाबा बर्फानी की स्थापना की जा रही है. साथ ही गुफा बनाया जा रहा है. गुफा बनाने के लिए चट्टी और बांस का उपयोग किया जा रहा है. जबकि गुफा के अंदर वर्फ से बने शिव लिंग को स्थापित किया जायेगा. जो देखने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा.

वही दौलतगंज में हर बार की तरह इस बार भी सुरसा के मुहं से निकलते वीर हनुमान की झांकी देखने को मिलेगी. पूजा समिति द्वारा यहाँ भी चट्टी और बांस की सहायता से गुफा का निर्माण कराया जा रहा है. शहरवासियों को ऐसा ही कुछ नजारा दहियावां में भी देखने को मिलेगा जहाँ नारायण चौक से राम राज्य चौक जाने वाली सड़क पर गुफा का निर्माण किया जा रहा है.

मूर्तियों को दिया जा रहा अंतिम रूप

रतनपूरा स्थित सवलिया मंदिर में मूर्ति को अंतिम रूप देता कारीगर

पंडाल के साथ साथ मूर्तियों का निर्माण भी अब अंतिम चरण में पहुँच चूका है. कुछ पूजा पंडालों में मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जा चूका है. जबकि कई पूजा पंडालों में अभी काम बाकी है. जिसे जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश की जा रही है.  

दुर्गा पूजा में इन सभी पंडालों को देखने के लिए छपरावासियों उत्सुक है.

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नवरात्र शुरू हो चुका है, ऐसे में लोग व्रत रखकर लोग भगवान की आराधना लीन है. भगवान में अपनी भक्ति के लिए लोग व्रत तो रखते है पर ये जरुरी है कि इस दौरान अपनी सेहत का भी ध्यान रखा जाये.

प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार मानव शरीर के विभिन्न तत्वों के समुचित संतुलन एवं बेहतर कार्यवाही के लिए उपवास पर विशेष बल दिया गया है. बावजूद इसके अधिक समय तक बिना कुछ खाए-पिए रहने से शरीर जरुरी खनिज पदार्थो की कमी हो जाती है. इस वजह से शरीर को थकान महसूस होती है. इस दौरान सबसे अधिक परेशानी लो ब्लड प्रेसर और लो शुगर की बीमारी से ग्रसित लोगों को हो सकती है.

इसके लिए जरुरी है कि भगवान पर अपनी आस्था को व्रत के माध्यम से जाहिर करने के साथ-साथ अपनी सेहत पर भी पूरा ख्याल रखा जाये.

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शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की पूजा-उपासना का अनुष्ठान शारदीय नवरात्र आज शुरू हो गया. नवरात्र इस बार दस दिनों का होगा. इस महापर्व पूरा शहर भक्तिमय हो जाता है.

नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र अनुष्ठान में मां दुर्गा के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है.

हालांकि तिथि घटने पर कभी-कभी यह अनुष्ठान आठ दिनों का हो जाता है. परंतु इस बार एक दिन बढ़ ही जा रहा है. एक से लेकर 10 अक्टूबर तक इसे मनाया जाएगा. इसके बाद 11वें दिन विजयादशमी मनाई जाएगी.

एक अक्टूबर शनिवार को कलश स्थापन के बाद मां के प्रथम रूप शैलपुत्री की पूजा होगी.

इस बार माता का आगमन घोड़ा पर है. वहीं गमन मुर्गा पर हो रहा है. इस कारण से आना व जाना दोनों शुभ नहीं है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार घोड़ा पर आगमन का मतलब काफी भयावह होता है. युद्ध, मार काट सहित देश के किसी बड़े नेता का दुर्घटना इसका फल होता है. वहीं मुर्गा पर जाना भी हर मामले में शुभ नहीं है. गमन मुर्गा पर होने से आपसी कलह का कलह होता है.

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चैनपुर: श्री महेन्द्रनाथ पंचांग के विक्रम सम्वत 2074 के व्रत निर्णय को लेकर सारण प्रमण्डल के आचार्यों के सानिध्य में एक धर्मसभा का आयोजन महेंद्र नाथ मन्दिर, चैनपुर के प्रांगण में बुधवार को पंचांग के सम्पादक पं0 त्रिलोकी नाथ पाण्डेय की अध्यक्षता में किया गया.

धर्मसभा में श्री महेंद्र नाथ पंचांग के तृतीय अंक में आने वाले व्रत त्योहार आदि के ऊपर एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया. साथ ही यह निर्णय किया गया कि एकमत से किये गये व्रत निर्णय सम्पूर्ण सारण प्रमण्डल में मान्य होगा. सभी उपस्थित आचार्यों ने एकमत से इसका समर्थन किया और संकल्प लिया की पंचांग में उल्लेखित व्रत एवम् त्योहार सभी जनमानस के लिए मान्य होगा. क्योंकि सारे निर्णय ग्रह गोचर के अनुसार एवम् शास्त्र सम्मत है. विभिन्न आचार्य एवं ऋषियों के दिए गए निर्णय एवं वेदादि मत से सम्पृक्त है.

धर्मसभा में पंचांग के प्रकाशक अविनाश चन्द्र उपाध्याय, आचार्य डा0 केशव जी, सुशील पाण्डेय, सुरेन्द्र ओझा, रामानुज तिवारी, गौतम तिवारी, अवाधकिशोर पाण्डेय, घनश्याम तिवारी,  नागेन्द्र पाण्डेय , नन्हे बाबा, सन्तोष पाण्डेय, डा0 राकेश कुमार तिवारी, सुमंत तिवारी, राकेश चौबे, नितेश मिश्र, कृष्ण कुमार तिवारी, सोनू तिवारी, चाणक्य कुमार, शैलेन्द्र जी, प्रकाश कुमार, नर्वदेश्वे पाण्डेय, पवन तिवारी सहित सैकडों की संख्या में आचार्य, बुद्धिजीवी व कार्यकर्ता मौजूद रहे.

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छपरा: छपरावासी इस बार शहर के पूर्वी छोर तेलपा बस स्टैंड में चम्मच और पाइप से बने देवी पंडाल को देखेंगे. आदर्श पूजा समिति के द्वारा बनाये जा रहे पंडाल का काम शुरू हो चूका है. हालांकि प्रतियोगिता के मानक के देखते हुए कारीगरों द्वारा इस बात को गुप्त रखा गया है कि पंडाल की शक्ल किस मंदिर के रूप में दिखेगी. माता के पंडाल निर्माण को लेकर कोलकाता से आये एक दर्जन कारीगरों द्वारा जीवन दा के नेतृत्व में दिन रात कम किया जा रहा है. कारीगरों का दावा है की यह पंडाल अपने आप में कला का बेहतर नमूना शाबित होगा. advertisement 1

पंडाल निर्माण को लेकर पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि आदर्श पूजा समिति तेलपा स्टैंड विगत 19 वर्षो से माता की प्रतिमा स्थापित कर पूजा कर रही है. पूजा समिति प्रत्येक वर्ष पंडाल को नया प्रारूप देती है. इस बार प्लास्टिक के चम्मच और पाइप से पंडाल का निर्माण कराया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पंडाल में 5000 पैकेट्स चम्मच और पाइप लगेगें इसके साथ साथ प्लाई वुड और फेविकोल के सहारे इनको चिपकाया जायेगा. कोलकाता के कारीगर विगत एक सप्ताह से पंडाल का निर्माण कर रहे है.

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छपरा: अनंत पूजा को लेकर तैयारिया शुरू हो चुकी है. गुरूवार को यह त्योहार मनाया जायेगा. अनंत पूजन को लेकर बाजारों में अनन्त सूत्र की बिक्री जोरों पर है. विशेष रूप से यह त्योहार महिलाओं और बच्चों द्वारा उपवास रखकर किया जाता है. इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है कहा जाता है कि जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी. धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया. अनन्त चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए.

विधि
व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात: स्नान करके व्रत का संकल्प करें. शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है. तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजा गृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें. कलश पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को रखें. उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्त सूत्र (डोरा) रखें. इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंत सूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करें पूजनोपरांत अनन्त सूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें.

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
अनंत सूत्र बांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें. पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें. कथा का सार-संक्षेप यह है- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे. उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी. सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया. कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे. तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं. शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्त सूत्र बांध लिया. इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया.

कथा
एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है ? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है. परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया. इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया. उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई. दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया. वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए. उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्त देव का पता पूछते जाते थे. बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए. तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया.

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है. यह सब उसी का फल है. इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो. इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे. कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया. भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मो का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है. मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है. अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है. कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया.

साभार:- विकिपीडिया

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