Chhapra: धनतेरस के शुभ अवसर पर बाजारों में जबरदस्त रौनक देखने को मिल रही है। शहर के प्रमुख बाजारों में ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है। सोना-चांदी, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक सामान और सजावटी वस्तुओं की दुकानों पर लोग कहरीदारी करेंगे। लोग शुभ मुहूर्त में खरीदारी करने के लिए उत्साहित हैं।

धनतेरस पर लोग सोने, चांदी के सिक्के, चांदी के बर्तनों और नए गैजेट्स समेत तांबे-पीतल के बर्तन और दीपक खरीदते हैं।

शहर के सर्राफा बाजार, मॉल और थोक दुकानों को दीपावली थीम से सजाया गया है। दुकानदारों ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विशेष छूट और ऑफर भी दिए हैं।

आज शाम भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा होगी। इसी समय लोग धनतेरस पूजन के साथ दीपदान करेंगे और सुख-समृद्धि की कामना करेंगे।

पुलिस-प्रशासन की ओर से भीड़भाड़ वाले इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं ताकि त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाया जा सके।

लोगों में दिवाली को लेकर भी जबरदस्त उत्साह है। घरों की सजावट, मिठाइयों की खरीदारी और उपहारों की पैकिंग ने माहौल को पूरी तरह त्योहारमय बना दिया है।

हालांकि बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमा गहमी भी है।

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Dhanteras 2025 Shubh Muhurat: धनतेरस हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं। यह दिन दिवाली उत्सव की शुरुआत का संकेत देता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का उदय हुआ था। इसलिए इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। हालांकि, दिवाली के दो दिन बाद अमावस्या को लक्ष्मी पूजा ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है।

धनतेरस 2025 में कब है खरीददारी का शुभ मुहूर्त

– इस साल धनतेरस 18 अक्टूबर 2025, शनिवार को है।

– कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे से शुरू होगी।

– यह तिथि 19 अक्टूबर रविवार को 1:51 बजे तक रहेगी।

– शुभ मुहूर्त: 18 अक्टूबर 12:18 बजे से 19 अक्टूबर 1 बजे तक।

धनतेरस पर क्या खरीदें और क्या नहीं?
धनतेरस पर कुछ खास खरीदारी करने और कुछ चीजें न खरीदने की परंपरा मानी जाती है।

धनतेरस पर क्या खरीदें (Things To Buy)

– सोना और चांदी

– सोने और चांदी के आभूषण या सिक्के खरीदना शुभ माना जाता है।

– ऐसा करने से घर में संपत्ति और समृद्धि आती है।

– बर्तन

– नए तांबे या पीतल के बर्तन खरीदना शुभ होता है।

– यह रसोई में संपन्नता और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

– इलेक्ट्रॉनिक उपकरण

– नए घरेलू उपकरण या गैजेट्स में निवेश करना अच्छी चीज मानी जाती है। इससे जीवनस्तर में सुधार और सुख-समृद्धि आती है।

– झाड़ू: बजट सीमित होने पर झाड़ू खरीदना भी शुभ माना जाता है। यह आर्थिक परेशानियों से मुक्ति का प्रतीक है।

धनतेरस पर क्या न खरीदें (Things To Avoid)

– तेल

– तेल खरीदना अशुभ माना जाता है।

– प्लास्टिक की चीजें

– प्लास्टिक की खरीदारी से अशुभता आती है।

– काले कपड़े

– काला रंग अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन इसे न खरीदें।

– जूते

– जूते शनि ग्रह से जुड़े होते हैं। इसलिए इसे खरीदना शुभ नहीं माना जाता।

– कांच की वस्तुएं

– कांच का सामान राहु ग्रह से जुड़ा माना जाता है, इसलिए इसे न खरीदें।

धनतेरस पर सही खरीदारी और पूजा घर में समृद्धि और खुशहाली लाती है। साथ ही, अशुभ वस्तुओं से बचना भी उतना ही जरूरी है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष , वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ 8080426594/9545290847

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देहरादून, 08 अक्टूबर (हि.स.)। बारिश और बर्फबारी के बावजूद यात्रियों में भारी उत्साह बना हुआ है। केदारनाथ यात्रा बुधवार को यहां श्रद्धालुओं की संख्या 16 लाख 52 हजार के पार पहुंच गई, जबकि अभी धाम कपाट बंद होने में 14 दिन का समय बचा है। वर्ष 2024 में पूरे यात्राकाल में 16 लाख 52 हजार 76 यात्री केदार दर्शन के लिए पहुंचे थे।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम यात्रा से जुड़े सभी जिलाधिकारियों से कहा है कि श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी यात्रा मार्गों पर आवश्यक यात्री सुविधाओं और सुरक्षा से जुड़ी सभी व्यवस्थाओं का पूरा ध्यान रखा जाए। सभी जिम्मेदार अधिकारियों को अलर्ट मोड पर रखा जाए। आपातकालीन स्थिति में बिना किसी देरी के राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया जाए।

बुधवार को केदारनाथ धाम में 5614 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। केदार धाम के कपाट आगामी 23 अक्टूबर को भैयादूज के अवसर पर बंद होंगे। अभी यात्रा 15 दिन और चलेगी। इस प्रकार यहां यात्रियों की संख्या ने नया रिकॉर्ड बनाया है। बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में भी अब यात्रियों की संख्या बढ़ी है।

प्रदेश सरकार की ओर से श्रद्धालुओं के उत्साह को देखते हुए सुरक्षित यात्रा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। यात्रा मार्ग में सुरक्षा जवानों की तैनाती की गई है। यात्रा मार्ग पर यातायात सुचारू बना रहे, इसके लिए भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों पर मलबे की सफाई के लिए जेसीबी की व्यवस्था की गई है।

बता दें कि इस वर्ष 30 अप्रैल को गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा का आगाज हो गया था। इसके बाद दो मई को केदारनाथ और चार मई को बदरीनाथ धाम के कपाट आम श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए थे। मानसून सीजन में अतिवृष्टि, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं के चलते चारधाम यात्रा बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्रकृति की विनाशलीला में गंगोत्री धाम का महत्वपूर्ण पड़ाव धराली बुरी तरह तबाह हो गया। मार्ग बुरी तरह तहस-नहस हो जाने से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा को रोकना पड़ा था।

बारिश थमने पर भी यहां यात्रा को बहाल करना बड़ी चुनौती था, लेकिन शासन-प्रशासन की टीमों ने युद्धस्तर पर कार्य कर आम जनजीवन की बहाली के साथ ही यात्रा मार्गों को सुचारू किया। दोनों धामों की यात्रा भी सुरक्षा इंतजामों के साथ शुरू हो गई। प्रशासन की ओर से यात्रियों को अभी भी एहतियात बरतने की सलाह दी गई है। यात्रियों को बार-बार आगाह किया गया है कि मौसम खराब होने पर यात्रा करने से बचें। यदि यात्रा मार्ग में हैं, तो सुरक्षित स्थान पर शरण लें।

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Sharad Purnima 2025: हिंदू धर्म में साल की सभी पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा को खास माना जाता है। इसे आश्विन पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक होता है और उसकी पूरी चांदनी को साल की सबसे सुंदर पूर्णिमा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन लक्ष्मी जी का जन्म हुआ और चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की वर्षा करते हैं।

शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में खीर रखना एक पुरानी परंपरा है। ज्योतिषा के अनुसार, जब खीर चांदनी में सही समय पर रखी जाती है, तो वह अमृत और औषधि जैसी हो जाती है। ऐसा खाने से शरीर की सेहत बेहतर रहती है और रोगों से राहत मिलती है।

शरद पूर्णिमा 2025 की तारीख और समय

इस साल शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर, सोमवार को है।

पंचांग के अनुसार-

आश्विन पूर्णिमा तिथि: 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे से शुरू होकर 7 अक्टूबर सुबह 9:16 बजे तक रहेगी।

चंद्रोदय: 6 अक्टूबर, शाम 05:27 बजे

चंद्रास्त: 7 अक्टूबर, सुबह 06:14 बजे

खीर रखने का शुभ समय (लाभ-उन्नति मुहूर्त)

इस साल खीर रखने का सबसे अच्छा समय रात 10:37 बजे से 12:09 बजे तक है। इस दौरान खीर को चांदनी में रखने से स्वास्थ्य लाभ के साथ जीवन में उन्नति भी प्राप्त होती है।

विशेष योग और नक्षत्र

वृद्धि योग: प्रात:काल से दोपहर 01:14 बजे तक

उत्तर भाद्रपद नक्षत्र: प्रात:काल से 7 अक्टूबर तड़के 04:01 बजे तक

इस दिन चंद्रमा की अमृत वर्षा और शुभ मुहूर्त के अनुसार खीर रखने की परंपरा से शरद पूर्णिमा का महत्व और बढ़ जाता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Badrinath, 2 अक्टूबर (हि.स.)। बदरीनाथ धाम के कपाट इस वर्ष के लिए 25 नवंबर (मंगलवार ) काे 2 बजकर 56 मिनट पर बंद होंगे, जबकि केदारनाथ धाम के 23 अक्टूबर को शीतकाल के लिए बंद होंगे। द्वितीय केदार, मद्महेश्वर के कपाट 18 नवंबर ब्रह्म मुहूर्त और तृतीय केदार तुंगनाथ के कपाट 6 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे।

बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तिथि विजयदशमी के अवसर पर आज बदरीनाथ मंदिर परिसर में दोपहर बाद एक धार्मिक समारोह में धर्माधिकारी, वेदपाठी पंचांग गणना के पश्चात बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तिथि तय की गई।

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New Delhi, 2 अक्टूबर (हि.स.)। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयादशमी के पर्व को लेकर देशभर में उत्साह और उत्सव का माहौल है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा उत्सव का आज दसवां और अंतिम दिन है। इस पवन दिन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को बधाई दी है।

यह त्योहार धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक है: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने एक्स पोस्ट में लिखा कि यह त्योहार धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक है और हमें सत्य व न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उन्होंने रावण दहन और दुर्गा पूजा जैसे उत्सवों को राष्ट्रीय मूल्यों का प्रतीक बताया, जो हमें क्रोध और अहंकार जैसे नकारात्मक गुणों को त्यागकर साहस और दृढ़ता अपनाने का संदेश देते हैं।

प्रधानमंत्री ने दी विजयादशमी की शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्स पर लिखा, “विजयादशमी बुराई और असत्य पर अच्छाई और सत्य की विजय का प्रतीक है। मेरी कामना है कि इस पावन अवसर पर हर किसी को साहस, बुद्धि और भक्ति के मार्ग पर निरंतर अग्रसर रहने की प्रेरणा मिले। देशभर के मेरे परिवारजनों को विजयादशमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।”

भाजपा ने देशवासियों को विजयादशमी की शुभकामनाएं दी हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक्स पर लिखा- “धर्मो जयति नाधर्मः सत्यं जयति नानृतम्“

असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय के महापर्व विजयादशमी की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। इस पावन पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात कर जीवन को सार्थक बनाएं।”

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मीरजापुर, 23 सितंबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन मंगलवार विंध्यधाम भक्ति और आस्था की उमंग में सराबोर रहा। मां विंध्यवासिनी मंदिर परिसर सहित नगर के अन्य देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता सुबह से ही लगना शुरू हो गया। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। भक्तों ने व्रत रखकर मां की उपासना की और विधि-विधान से आराधना कर सुख, समृद्धि एवं मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगा।

विंध्यधाम में अलसुबह से ही घंटा-घड़ियाल की गूंज और जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया। मां ब्रह्मचारिणी के दरबार को आकर्षक रूप से सजाया गया है। देवी प्रतिमाओं के चारों ओर फूलों की झालरें और रंग-बिरंगी रोशनी भक्तों के मन को भक्ति भाव से भर दे रही हैं। श्रद्धालु दर्शन-पूजन के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों में भी भाग ले रहे हैं।

विंध्यधाम में दूसरे दिन की भीड़ ने प्रशासन की परीक्षा भी ली। जिला प्रशासन व पुलिस ने सुरक्षा और व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए हैं। मंदिर परिसर से लेकर घाट और मुख्य मार्गों तक पुलिस बल तैनात है। महिला पुलिसकर्मी भीड़ को नियंत्रित करने में सक्रिय दिखीं। वहीं, स्वास्थ्य विभाग ने भी एंबुलेंस और मेडिकल टीम की व्यवस्था की है ताकि किसी आपात स्थिति से निपटा जा सके।

स्थानीय बाजार में भी रौनक देखने को मिली। प्रसाद, चुनरी, नारियल और श्रृंगार सामग्री की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ उमड़ी। बाहर से आए श्रद्धालु मां के दरबार में दर्शन कर खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं।

श्रद्धालुओं का मानना है कि मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक को तप, त्याग और संयम की शक्ति प्राप्त होती है। नवरात्र का यह दिन अध्यात्म और साधना के मार्ग पर चलने का प्रेरणा स्रोत माना जाता है।

सुबह से ही विंध्यधाम भक्ति के रंग में रंगा रहा और भक्तों की भीड़ से माता का दरबार कृपा और श्रद्धा का अनोखा संगम प्रस्तुत करता रहा।

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Chhapra: शारदीय नवरात्र का पावन पर्व आज से आरंभ हो गया है। सुबह से ही पूरे देश में घरों, मंदिरों और पूजा पंडालों में भक्तों ने कलश स्थापना कर मां दुर्गा की आराधना शुरू की। श्रद्धालु व्रत रखकर, मंत्र-जाप और भजन-कीर्तन के साथ भक्ति में लीन नजर आए। वातावरण मां दुर्गा के जयकारों और घंटा-घड़ियाल की ध्वनि से गूंज उठा।

मां शैलपुत्री की आराधना

नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विशेष महत्व होता है। इन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री कहा गया है, इसी कारण नाम पड़ा “शैलपुत्री”। माता वृषभ पर सवार होकर एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल पुष्प धारण किए अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की उपासना से साधक को दृढ़ता, शांति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर भक्तजन उपवास रखते हैं और दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ विशेष अनुष्ठान कर मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की साधना

नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। इन नौ रूपों की साधना कर भक्त अपने जीवन से नकारात्मकता को दूर कर दिव्यता और शक्ति की प्राप्ति करते हैं।

मंदिरों और पंडालों में रौनक

नवरात्र को लेकर मंदिरों और पूजा पंडालों में विशेष सजावट की गई है। जगह-जगह भव्य पंडाल बनाए गए हैं, जिनमें मां दुर्गा की मनमोहक प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। रोशनी, सजावट और भक्ति गीतों से पूरा माहौल आध्यात्मिक रंग में रंग गया है। श्रद्धालु परिवार सहित पंडालों में पहुंचकर मां के दर्शन कर रहे हैं और भजन-कीर्तन में शामिल हो रहे हैं।

प्रशासन की तैयारियां

त्योहार को लेकर प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क है। भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों और बड़े पंडालों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। सफाई और बिजली आपूर्ति पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कई जगहों पर महिला सुरक्षा बल और स्वयंसेवक भी तैनात किए गए हैं ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

शारदीय नवरात्र न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। मान्यता है कि इसी काल में मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म और सत्य की स्थापना की थी। इसलिए नवरात्र को शक्ति की उपासना का पर्व कहा जाता है। यह पर्व भक्ति, तप और आत्मशुद्धि का अवसर भी है।

आस्था और विश्वास का पर्व

नवरात्र के दिनों में भक्त मां दुर्गा से सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि मां की सच्चे मन से की गई उपासना से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पंडालों और मंदिरों में उमड़ी भीड़ यह दर्शाती है कि मां की भक्ति लोगों के हृदय में गहराई तक रची-बसी है।

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Sharadiya Navratri 2025: हिंदू धर्म में नवरात्रि का खास स्थान है। साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है, दो बार गुप्त नवरात्रि और दो बार मुख्य नवरात्रि, जिन्हें चैत्र और शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इनमें से शारदीय नवरात्रि को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। यह पर्व अश्विन मास में आता है, जो कि शरद ऋतु का समय होता है। इसी वजह से इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा के लिए समर्पित होते हैं। हर दिन देवी के एक विशेष स्वरूप की साधना की जाती है और दसवें दिन दशहरा या विजयादशमी के रूप में इस महापर्व का समापन होता है।

शारदीय नवरात्रि 2025 कब से कब तक?
इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर 2025, सोमवार से हो रही है। इस दिन कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है, जिसे बेहद शुभ और विशेष माना जाता है।

नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर से होगी।

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त

नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है। 2025 में घटस्थापना 22 सितंबर को की जाएगी।

शुभ समय: सुबह 5:38 से 7:32 बजे तक (1 घंटा 54 मिनट)

अभिजीत मुहूर्त: 11:18 से 12:06 बजे तक

चौघडिया

शुभ: सुबह 08: 40 से 10: 11सुबह

लाभ :दोपहर 02:44 से 04:15 संध्या

अमृत: संध्या 04:15 से 05:46 संध्या

इस बार माता का आगमन किस वाहन पर होगा?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर साल नवरात्रि पर मां दुर्गा अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आती हैं। वर्ष 2025 में माता रानी हाथी पर सवार होकर पधारेंगी। हाथी पर आगमन को बेहद शुभ माना जाता है। यह समृद्धि, शांति और उन्नति का प्रतीक है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
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Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत इस बार 22 सितंबर से हो रही है और यह पर्व 1 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना के साथ अखंड ज्योति प्रज्वलित करने का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि यह दिव्य ज्योति न केवल देवी की कृपा को आमंत्रित करती है, बल्कि घर से नकारात्मक शक्तियों का नाश कर सुख, शांति और समृद्धि भी लाती है।

क्यों जलाते हैं अखंड दीप?

नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ अखंड दीप जलाने की परंपरा है। यह दीप नौ दिनों तक लगातार प्रज्वलित रहता है और मां दुर्गा की आशीष का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि दीपक की लौ वातावरण को शुद्ध करती है और पूजा-पाठ, मंत्र-जप तथा स्तोत्रों की शक्ति को स्थिर करती है।

किस दिशा में रखें दीपक?

वास्तु शास्त्र के अनुसार दीपक को पूर्व दिशा या ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में रखना सबसे अधिक शुभ माना गया है। यह दिशा ज्ञान, प्रगति और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी होती है। ध्यान रखें कि दीपक को दक्षिण दिशा में न रखें, इसे अशुभ और बाधा उत्पन्न करने वाला माना जाता है।

किससे जलाएं दीपक?

अखंड दीप के लिए गौघृत (शुद्ध घी) का प्रयोग श्रेष्ठ है। घी उपलब्ध न हो तो तिल का तेल या सरसों का तेल भी प्रयोग किया जा सकता है। दीपक को यदि चावल, गेहूं या उड़द की दाल की ढेरी पर रखा जाए तो इसका प्रभाव और अधिक शुभ होता है।

दीपक को सुरक्षित रखने के उपाय

अखंड दीप की लौ लगातार जलती रहे, इसके लिए इसे धातु या कांच के पारदर्शी आवरण से ढकना अच्छा माना जाता है।

दीपक को ऐसी जगह रखें जहां हवा या अनजाने में स्पर्श होने से यह बुझ न सके।

नियमित रूप से घी या तेल डालते रहें और बाती को ठीक करते रहें, ताकि ज्योति निरंतर जलती रहे।

नवरात्रि में अखंड दीप केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि सकारात्मकता और ऊर्जा का प्रतीक भी है। इसे सही दिशा और विधि से प्रज्वलित करने पर मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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Chhapara: सोमवार से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हो रहा है। मां दुर्गा की आराधना के इन नौ दिनों को लेकर पूरे क्षेत्र में भक्ति और आस्था का गहरा माहौल है। शहर से लेकर गांव तक श्रद्धालु आज से ही देवी मां की भक्ति में लीन दिखाई दे रहे हैं।

बाजारों में चढ़ा नवरात्र का रंग

नवरात्र के अवसर पर बाजारों में रौनक चरम पर है। पूजा सामग्री, चुनरी, माता की तस्वीरें, मूर्तियां और सजावटी सामान की मांग बढ़ गई है। गुदरी, हथुआ मार्केट और नगरपालिका चौक सहित प्रमुख बाजार देवी मां की भक्ति से सराबोर दिख रहे हैं। दुकानों पर फूल-मालाओं और श्रृंगार सामग्री की सजावट श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही है।

महिलाओं की बड़ी भागीदारी

बाजारों में खरीदारी के लिए खासतौर पर महिलाओं की भीड़ नजर आ रही है। घर-घर में घट स्थापना को लेकर पूजा की तैयारियां जोरों पर हैं। महिलाएं विशेषत: माता की चुनरी और श्रृंगार सामग्री खरीदते हुए दिखाई दे रहीं हैं।

फल-फूल के दामों में बढ़ोतरी

नवरात्र शुरू होते ही फल और फूलों की कीमतों में इजाफा दर्ज किया गया है। हालांकि, श्रद्धालु इसे लेकर सकारात्मक नजर आ रहे हैं। एक भक्त ने कहा कि मां का ही दिया सब कुछ है, महंगा भी चलेगा।

भक्ति का उल्लास हर ओर

पूरे शहर में इन दिनों भक्ति और उल्लास का संगम देखने को मिल रहा है। मंदिरों में सजावट के साथ विशेष पूजन की तैयारियां की जा रही हैं। नौ दिनों तक मां दुर्गा के जयकारों से वातावरण गुंजायमान रहेगा।

नवरात्रि कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त घोषित

22 सितंबर को शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। इस दिन मां दुर्गा के आह्वान के लिए कलश स्थापना की जाएगी।
शास्त्रों के अनुसार, कलश स्थापना का प्रमुख शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगा। यह अवधि लगभग 1 घंटा 56 मिनट की है और इसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

इसके अलावा, कलश स्थापना का दूसरा शुभ समय अभिजीत मुहूर्त में रहेगा, जो सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक होगा।

मान्यता है कि इस बार देवी मां गजवाहन (हाथी) पर विराजमान होकर अपने भक्तों के बीच पधारेंगी। हाथी की सवारी को सुख, समृद्धि और शुभता का द्योतक माना गया है। वहीं, विदाई के समय मां दुर्गा नरवाहन अर्थात भक्तों के कंधों पर सवार होकर प्रस्थान करेंगी, जो एक विशेष संदेश समेटे हुए है।

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वाराणसी, 21 सितम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी)में शारदीय नवरात्र की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। पितृ पक्ष की समाप्ति के साथ ही देवी उपासना का महापर्व सोमवार से आरंभ हो रहा है। देवी मंदिरों में रंग-रोगन, साफ-सफाई और सुरक्षा की दृष्टि से बैरिकेडिंग का कार्य पूर्ण हो गया है। बाजारों में रविवार को पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जिससे नवरात्र की आहट स्पष्ट महसूस की जा रही है। इस बार शारदीय नवरात्र पूरे दस दिनों तक मनाया जाएगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित रविंद्र तिवारी के अनुसार, पंचांग की गणना के आधार पर इस बार कोई भी तिथि क्षय नहीं हो रही है, इसलिए पर्व की अवधि दस दिन की होगी। इस बार नवरात्र के दिनों में अंतर का मुख्य कारण हिंदू पंचांग पर आधारित है। पंचांग में तिथि की गणना सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर की जाती है। कभी-कभी एक ही दिन में दो तिथियां पड़ जाती हैं या कोई तिथि पूरे दिन नहीं रहती।

खास बात यह है कि इस बार नवरात्र की शुरुआत सोमवार को हो रही है, जिससे देवी का आगमन गज (हाथी) पर हो रहा है। देवी पुराण के अनुसार, “शशि सूर्य गजरूढ़ा शनिभौमै तुरंगमे” — यानी यदि नवरात्र रविवार या सोमवार को शुरू हो तो देवी गजराज पर सवार होकर पधारती हैं। यह योग देश और समाज के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि गज पर आगमन से वर्षा समुचित होती है, कृषि समृद्ध होती है और समाज में स्थिरता आती है।

काशी में मां शैलपुत्री का दरबार सजेगा पहले दिन

नवरात्र के पहले दिन देवी के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। वाराणसी के अलईपुर स्थित वरुणा नदी के तट पर स्थित मां शैलपुत्री मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटेगी। यहां मान्यता है कि केवल दर्शन मात्र से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। मां शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है। वे अध्यात्मिक ऊर्जा और साधना के आरंभ की प्रतीक मानी जाती हैं। मंदिर की एक विशेष बात यह है कि यह देश का एकमात्र ऐसा देवी मंदिर है, जहां शिवलिंग के ऊपर देवी मां विराजमान हैं। मंदिर का रंग गहरा लाल है, जो देवी का प्रिय रंग माना जाता है।

काशी में क्यों विराजती हैं मां शैलपुत्री?

लोक मान्यता के अनुसार, एक बार माता पार्वती महादेव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर काशी आ गई थीं और वरुणा नदी के तट पर तपस्या करने लगीं। भोलेनाथ उन्हें मनाने आए, लेकिन मां को काशी इतनी प्रिय लगी कि उन्होंने कैलाश वापस जाने से इनकार कर दिया। तब महादेव अकेले ही लौट गए और माता यहीं स्थायी रूप से विराजमान हो गईं।

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