Chhapra: सारण जिले के सोनपुर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर बुधवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। गंगा और गंडक नदी के संगम तट पर श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान कर पूजा-अर्चना की।

मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रात से ही घाटों पर श्रद्धालुओं जमे रहे। महिलाएं, पुरुष और बुजुर्ग आस्था के साथ स्नान कर भगवान की आराधना की।

प्रशासन की ओर से सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए थे। एनडीआरएफ, गोताखोर दल और पुलिस बल को घाटों पर तैनात किया गया था ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।

सोनपुर मेला क्षेत्र में भी इस अवसर पर विशेष चहल-पहल रही। स्थानीय दुकानों और अस्थायी बाजारों में खरीदारी करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ ही पारंपरिक रूप से सोनपुर मेला अपने चरम पर पहुंच गया है।

जिलाधिकारी अमन समीर तथा वरीय पुलिस अधीक्षक डॉ० कुमार आशीष द्वारा संयुक्त रूप से सोनपुर अनुमंडल अंतर्गत बाबा हरिहरनाथ मंदिर तथा काली घाट का स्थलीय निरीक्षण कर विधि व्यवस्था संधारण का जायजा लिया गया।

साथ ही सभी क्षेत्रांतर्गत सभी महत्वपूर्ण स्थलों पर लगे सीसीटीवी कैमरे तथा हरिहरनाथ मंदिर में लगे सभी कैमरों के मॉनिटर के माध्यम से हर पल पर रखी जा रही निगरानी का निरीक्षण किया गया तथा सम्बन्धित पदाधिकारियों एवं पुलिस पदाधिकारियों को आवश्यक निदेश दिया गया।

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Chhapra: लोक आस्था और सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ आज उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित करने के साथ पूर्ण श्रद्धा और आस्था के माहौल में सम्पन्न हो गया।

सुबह की पहली किरण के साथ ही घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। व्रती महिलाओं और पुरुषों ने जल में खड़े होकर सूर्य देव से परिवार, समाज की सुख-समृद्धि की कामना की।

छठ महापर्व के चौथे दिन यानी उषा अर्घ्य का दृश्य अत्यंत मनमोहक रहा। जिले के गंगा, गंडक, सरयू नदी, तलाबों, पोखरों और घरों की छतों पर बनाए गए कृत्रिम घाटों पर व्रती व श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। हर ओर “जय छठी मइया” के जयघोष से वातावरण गुंजायमान रहा। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में, सिर पर दउरा में ठेकुआ, फल, नारियल, और अन्य प्रसाद लेकर जल में खड़ी रहीं। जैसे ही सूर्य की लालिमा क्षितिज पर उभरी, व्रतियों ने दोनों हाथ जोड़कर अर्घ्य अर्पित किया और छठ मइया से घर-परिवार के कल्याण की प्रार्थना की।

छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से हुई थी। इसके बाद दूसरे दिन खरना में व्रतियों ने गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर पूजा की। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया और चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व का समापन हुआ। यह पर्व पूर्ण शुद्धता, संयम और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जिसमें व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं।

छठ पर्व को लेकर जिला प्रशासन ने सुरक्षा और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की थी। गंडक नदी के विभिन्न घाटों पर एनडीआरएफ, पुलिस बल, और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम तैनात रही। साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और बैरिकेडिंग की उचित व्यवस्था से श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसका पूरा ध्यान रखा गया।

घाटों पर भक्तिमय माहौल के बीच सांस्कृतिक रंग भी नजर आए। पारंपरिक गीतों की गूंज के साथ वातावरण भक्ति में डूबा रहा  “केलवा के पात पर, उगेले सूरज देव…” जैसे गीत घाटों पर गूंजते रहे। व्रतियों के घरों में प्रसाद वितरण के साथ ही खुशियों का माहौल बना रहा।

चार दिनों तक चले इस अनुष्ठान के दौरान पूरे जिले में आस्था और पवित्रता का वातावरण देखने को मिला। लोग दूर-दराज से अपने घर लौटे ताकि इस पावन पर्व में शामिल हो सकें। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक छठ की छटा छाई रही।

उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ ही व्रतियों ने अपने उपवास को तोड़ा और परिवारजनों के बीच प्रसाद का वितरण किया। इसके साथ ही छठ महापर्व का समापन हुआ, लेकिन श्रद्धा, आस्था और भक्ति की यह ऊर्जा अब भी लोगों के हृदय में विद्यमान है, जो इस पर्व को लोक संस्कृति की आत्मा बना देती है।

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लोक आस्था के महापर्व छठ का दूसरा दिन ‘खरना’ आज पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। छठ व्रत के चार दिवसीय अनुष्ठान में खरना का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। नहाय-खाय के बाद यह दूसरा दिन व्रतियों के लिए अत्यंत कठिन तपस्या का प्रतीक होता है, क्योंकि इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद पूजा-अर्चना कर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

सुबह से ही व्रती महिलाएं घरों की साफ-सफाई कर पूजा की तैयारी में जुटी रहीं। शाम के समय सूर्यास्त के बाद विधि-विधान से खरना पूजा की जाती है। व्रतियों द्वारा गुड़, दूध और चावल से बनी खीर, गेहूं की रोटी और केले का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद को मिट्टी या कांसे के बर्तनों में रखकर सूर्य देव और छठी मइया को अर्पित किया जाता है। पूजा के उपरांत व्रती प्रसाद ग्रहण कर उपवास तोड़ते हैं और फिर यही प्रसाद परिवारजनों तथा आस-पड़ोस के लोगों के बीच वितरित किया जाता है।

खरना के साथ ही छठ महापर्व का मुख्य अनुष्ठान आरंभ हो जाता है, जो अगले दो दिनों तक चलता है। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के अवसर पर श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, जबकि चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह महापर्व सम्पन्न होता है। यह पर्व न केवल सूर्य उपासना का प्रतीक है, बल्कि शुद्धता, संयम और सामाजिक एकता का भी संदेश देता है।

वातावरण पूरी तरह छठमय हो उठा है। घरों और घाटों पर छठ गीतों की मधुर गूंज सुनाई दे रही है। व्रती महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पूजा की तैयारी कर रही हैं, वहीं घाटों पर सफाई और सजावट का कार्य भी अंतिम चरण में है। लोग अपने परिजनों के साथ घाटों की ओर प्रस्थान करने की तैयारी में जुटे हैं।

छठ पर्व की विशेषता इसका अनुशासन, स्वच्छता और सामूहिकता है। व्रती महिलाएं पूरे परिवार और समाज के कल्याण की कामना करते हुए सूर्य देव और छठी मइया की आराधना करती हैं। खरना के इस पवित्र दिन के साथ ही वातावरण में भक्ति, आस्था और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।

 

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Chhapra: लोक आस्था के महापर्व छठ का आगमन होते ही बिहार सहित पूरे उत्तर भारत का वातावरण छठमय हो गया है। गली-गली में छठी मइया के गीतों की गूंज, घाटों की सजावट और बाजारों में उमड़ी भीड़ इस बात का प्रमाण है कि सूर्य उपासना का यह पर्व जनमानस के हृदय में कितनी गहराई से रचा-बसा है। श्रद्धा, भक्ति और स्वच्छता का यह पर्व सामाजिक एकता और लोक संस्कृति की जीवंत मिसाल प्रस्तुत करता है।

चार दिवसीय इस महापर्व की शुरुआत आज 25 अक्टूबर को नहाय-खाए के साथ हो रही है। इस दिन व्रती स्नान कर घरों की सफाई करते हैं और सात्विक भोजन करते हैं। पारंपरिक रूप से कद्दू-भात और चने की दाल का भोजन किया जाता है। यह दिन व्रत की पवित्र शुरुआत मानी जाती है और इसी के साथ छठ की तैयारियां पूरे उत्साह के साथ आरंभ हो जाती हैं।

26 अक्टूबर को खरना का आयोजन होगा। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़, दूध और चावल से बनी खीर तथा रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना का यह प्रसाद श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक होता है, जिसे परिवार और आसपास के लोगों में बांटा जाता है। खरना के साथ ही 36 घंटे का कठोर उपवास आरंभ होता है, जिसमें व्रती जल तक ग्रहण नहीं करते।

इसके बाद 27 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य का आयोजन होगा। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए श्रद्धालु परिवारों सहित घाटों पर पहुंचेंगे। इस अवसर पर घाटों को आकर्षक ढंग से सजाया जा रहा है। दीपों की रौशनी, लोकगीतों की मधुर धुन और भक्तों की भीड़ से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाएगा। महिलाएं पारंपरिक वस्त्रों में सजकर बांस के सूप में प्रसाद सजाएंगी और छठी मइया से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करेंगी।

28 अक्टूबर की सुबह उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने के साथ छठ महापर्व का समापन होगा। व्रती और श्रद्धालु सुबह-सुबह घाटों पर पहुंचकर उदय होते सूर्य को अर्घ्य देंगे। इसी के साथ चार दिनों का यह कठिन और पवित्र व्रत संपन्न होगा।

छठ पर्व को लेकर बाजारों में जबरदस्त रौनक देखने को मिल रही है। फल, ईख, नारियल, सूप, टोकरी, दीये और पूजा सामग्री की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगी हुई है। महिलाएं घरों में ठेकुआ जैसे पारंपरिक प्रसाद बनाने में व्यस्त हैं। कपड़ा, बर्तन और सजावटी सामान की दुकानों पर भी लोगों की आवाजाही बढ़ गई है।

प्रशासन ने पर्व के मद्देनजर विशेष तैयारियां की हैं। सभी प्रमुख घाटों की सफाई, प्रकाश व्यवस्था, पेयजल और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। जिला प्रशासन और नगर निगम की टीमें लगातार निगरानी कर रही हैं ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। एनडीआरएफ और पुलिस बल की तैनाती से सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत की गई है।

छठ न केवल सूर्य उपासना का पर्व है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, पारिवारिक एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। इस पर्व में लोक संस्कृति, आस्था और अनुशासन का संगम देखने को मिलता है। सचमुच, छठ महापर्व के आगमन ने पूरे बिहार को भक्ति, उल्लास और आस्था के रंग में रंग दिया है।

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-सुबह 8.30 बजे पारंपरिक रीति-रिवाज से कपाट बंद-मुख्य पुजारी ने स्वयंभू लिंग काे दिया समाधि रूप-सीएम पुष्कर धामी ने किए बाबा केदार के दर्शन

रुद्रप्रयाग, 23 अक्टूबर (हि.स.)। पाैराणिक रीति-रिवाजाें और धार्मिक परंपराओं के निर्वहन के साथ भैयादूज के पावन पर्व पर सुबह 08:30 बजे सेना के बैंड की भक्ति धुन और जयकाराें के बीच भगवान आशुताेष के द्वादश ज्याेर्तिलिंगाें में एक केदारनाथ धाम से बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डाेली ने शीतकाल के लिए अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

इस माैके पर 10 हजार से अधिक शिवभक्ताें ने अपने आराध्य के दर्शन किए। डाेली रात्रि प्रवास के लिए अपने पहले पड़ाव रामपुर पहुंचेगी। बाबा केदार की डाेली शीतकालीन पूजा-अर्चना के लिए 25 अक्तूबर काे पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में विराजमान हाे जाएगी। इसके बाद अगले छह माह तक शिवभक्त अपने आराध्य की पूजा-अर्चना और दर्शन यहीं पर कर सकेंगे।

गुरुवार काे केदारनाथ धाम में सुबह 4 बजे से मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद करने की प्रक्रिया शुरू हाे गई थी। मुख्य पुजारी बागेश लिंग ने भगवान केदारनाथ की समाधि पूजा-अर्चना करते हुए अन्य परंपराओं का निर्वहन किया। इस माैके पर बाबा केदार के स्वयंभू लिंग का पुष्प-अक्षत और भस्म से श्रृंगार कर समाधि रूप दिया गया। साथ ही भाेग लगाया गया। मुख्य पुजारी ने अन्य परंपराओं काे निभाते हुए बाबा केदार की पूजा की।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के विजन‌ के अनुरूप भव्य केदार पुरी का निर्माण हुआ और चारधाम यात्रा में इस वर्ष रिकार्ड 50 लाख श्रद्धालु पहुंचे। उन्होंने कहा कि धामों के कपाट बंद के बाद शीतकालीन यात्रा को प्रोत्साहित किया जायेगा।

बीकेटीसी के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने कहा कि केदारनाथ धाम में कपाट बंद हाेने तक 17,68795 तीर्थयात्रियों ने भगवान केदारनाथ के दर्शन किये। शीतकालीन यात्रा के लिए भी यात्रियाें काे प्रोत्साहित किया जायेगा और शीतकाल में केदारनाथ धाम में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे।

बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि केदारनाथ धाम के कपाट बंद हाेने के बाद बाबा केदार की पंचमुखी देव डोली अपने धाम से प्रस्थान करते हुए रात्रि प्रवास के लिए प्रथम पड़ाव रामपुर पहुंच गई है। शुक्रवार काे डाेली रामपुर से रात्रि विश्राम के लिए विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी पहुंचेगी और शनिवार 25 अक्टूबर को भगवान केदारनाथ जी की पंच मुखी डोली गुप्तकाशी से शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में छह माह की शीतकालीन पूजा-अर्चना के लिए विराजमान हाे जाएगी।

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Chhapra: धनतेरस के शुभ अवसर पर बाजारों में जबरदस्त रौनक देखने को मिल रही है। शहर के प्रमुख बाजारों में ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है। सोना-चांदी, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक सामान और सजावटी वस्तुओं की दुकानों पर लोग कहरीदारी करेंगे। लोग शुभ मुहूर्त में खरीदारी करने के लिए उत्साहित हैं।

धनतेरस पर लोग सोने, चांदी के सिक्के, चांदी के बर्तनों और नए गैजेट्स समेत तांबे-पीतल के बर्तन और दीपक खरीदते हैं।

शहर के सर्राफा बाजार, मॉल और थोक दुकानों को दीपावली थीम से सजाया गया है। दुकानदारों ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विशेष छूट और ऑफर भी दिए हैं।

आज शाम भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा होगी। इसी समय लोग धनतेरस पूजन के साथ दीपदान करेंगे और सुख-समृद्धि की कामना करेंगे।

पुलिस-प्रशासन की ओर से भीड़भाड़ वाले इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं ताकि त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाया जा सके।

लोगों में दिवाली को लेकर भी जबरदस्त उत्साह है। घरों की सजावट, मिठाइयों की खरीदारी और उपहारों की पैकिंग ने माहौल को पूरी तरह त्योहारमय बना दिया है।

हालांकि बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमा गहमी भी है।

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Dhanteras 2025 Shubh Muhurat: धनतेरस हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं। यह दिन दिवाली उत्सव की शुरुआत का संकेत देता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का उदय हुआ था। इसलिए इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। हालांकि, दिवाली के दो दिन बाद अमावस्या को लक्ष्मी पूजा ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है।

धनतेरस 2025 में कब है खरीददारी का शुभ मुहूर्त

– इस साल धनतेरस 18 अक्टूबर 2025, शनिवार को है।

– कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे से शुरू होगी।

– यह तिथि 19 अक्टूबर रविवार को 1:51 बजे तक रहेगी।

– शुभ मुहूर्त: 18 अक्टूबर 12:18 बजे से 19 अक्टूबर 1 बजे तक।

धनतेरस पर क्या खरीदें और क्या नहीं?
धनतेरस पर कुछ खास खरीदारी करने और कुछ चीजें न खरीदने की परंपरा मानी जाती है।

धनतेरस पर क्या खरीदें (Things To Buy)

– सोना और चांदी

– सोने और चांदी के आभूषण या सिक्के खरीदना शुभ माना जाता है।

– ऐसा करने से घर में संपत्ति और समृद्धि आती है।

– बर्तन

– नए तांबे या पीतल के बर्तन खरीदना शुभ होता है।

– यह रसोई में संपन्नता और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

– इलेक्ट्रॉनिक उपकरण

– नए घरेलू उपकरण या गैजेट्स में निवेश करना अच्छी चीज मानी जाती है। इससे जीवनस्तर में सुधार और सुख-समृद्धि आती है।

– झाड़ू: बजट सीमित होने पर झाड़ू खरीदना भी शुभ माना जाता है। यह आर्थिक परेशानियों से मुक्ति का प्रतीक है।

धनतेरस पर क्या न खरीदें (Things To Avoid)

– तेल

– तेल खरीदना अशुभ माना जाता है।

– प्लास्टिक की चीजें

– प्लास्टिक की खरीदारी से अशुभता आती है।

– काले कपड़े

– काला रंग अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन इसे न खरीदें।

– जूते

– जूते शनि ग्रह से जुड़े होते हैं। इसलिए इसे खरीदना शुभ नहीं माना जाता।

– कांच की वस्तुएं

– कांच का सामान राहु ग्रह से जुड़ा माना जाता है, इसलिए इसे न खरीदें।

धनतेरस पर सही खरीदारी और पूजा घर में समृद्धि और खुशहाली लाती है। साथ ही, अशुभ वस्तुओं से बचना भी उतना ही जरूरी है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष , वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ 8080426594/9545290847

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देहरादून, 08 अक्टूबर (हि.स.)। बारिश और बर्फबारी के बावजूद यात्रियों में भारी उत्साह बना हुआ है। केदारनाथ यात्रा बुधवार को यहां श्रद्धालुओं की संख्या 16 लाख 52 हजार के पार पहुंच गई, जबकि अभी धाम कपाट बंद होने में 14 दिन का समय बचा है। वर्ष 2024 में पूरे यात्राकाल में 16 लाख 52 हजार 76 यात्री केदार दर्शन के लिए पहुंचे थे।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम यात्रा से जुड़े सभी जिलाधिकारियों से कहा है कि श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी यात्रा मार्गों पर आवश्यक यात्री सुविधाओं और सुरक्षा से जुड़ी सभी व्यवस्थाओं का पूरा ध्यान रखा जाए। सभी जिम्मेदार अधिकारियों को अलर्ट मोड पर रखा जाए। आपातकालीन स्थिति में बिना किसी देरी के राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया जाए।

बुधवार को केदारनाथ धाम में 5614 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। केदार धाम के कपाट आगामी 23 अक्टूबर को भैयादूज के अवसर पर बंद होंगे। अभी यात्रा 15 दिन और चलेगी। इस प्रकार यहां यात्रियों की संख्या ने नया रिकॉर्ड बनाया है। बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में भी अब यात्रियों की संख्या बढ़ी है।

प्रदेश सरकार की ओर से श्रद्धालुओं के उत्साह को देखते हुए सुरक्षित यात्रा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। यात्रा मार्ग में सुरक्षा जवानों की तैनाती की गई है। यात्रा मार्ग पर यातायात सुचारू बना रहे, इसके लिए भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों पर मलबे की सफाई के लिए जेसीबी की व्यवस्था की गई है।

बता दें कि इस वर्ष 30 अप्रैल को गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा का आगाज हो गया था। इसके बाद दो मई को केदारनाथ और चार मई को बदरीनाथ धाम के कपाट आम श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए थे। मानसून सीजन में अतिवृष्टि, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं के चलते चारधाम यात्रा बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्रकृति की विनाशलीला में गंगोत्री धाम का महत्वपूर्ण पड़ाव धराली बुरी तरह तबाह हो गया। मार्ग बुरी तरह तहस-नहस हो जाने से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा को रोकना पड़ा था।

बारिश थमने पर भी यहां यात्रा को बहाल करना बड़ी चुनौती था, लेकिन शासन-प्रशासन की टीमों ने युद्धस्तर पर कार्य कर आम जनजीवन की बहाली के साथ ही यात्रा मार्गों को सुचारू किया। दोनों धामों की यात्रा भी सुरक्षा इंतजामों के साथ शुरू हो गई। प्रशासन की ओर से यात्रियों को अभी भी एहतियात बरतने की सलाह दी गई है। यात्रियों को बार-बार आगाह किया गया है कि मौसम खराब होने पर यात्रा करने से बचें। यदि यात्रा मार्ग में हैं, तो सुरक्षित स्थान पर शरण लें।

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Sharad Purnima 2025: हिंदू धर्म में साल की सभी पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा को खास माना जाता है। इसे आश्विन पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक होता है और उसकी पूरी चांदनी को साल की सबसे सुंदर पूर्णिमा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन लक्ष्मी जी का जन्म हुआ और चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की वर्षा करते हैं।

शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में खीर रखना एक पुरानी परंपरा है। ज्योतिषा के अनुसार, जब खीर चांदनी में सही समय पर रखी जाती है, तो वह अमृत और औषधि जैसी हो जाती है। ऐसा खाने से शरीर की सेहत बेहतर रहती है और रोगों से राहत मिलती है।

शरद पूर्णिमा 2025 की तारीख और समय

इस साल शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर, सोमवार को है।

पंचांग के अनुसार-

आश्विन पूर्णिमा तिथि: 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे से शुरू होकर 7 अक्टूबर सुबह 9:16 बजे तक रहेगी।

चंद्रोदय: 6 अक्टूबर, शाम 05:27 बजे

चंद्रास्त: 7 अक्टूबर, सुबह 06:14 बजे

खीर रखने का शुभ समय (लाभ-उन्नति मुहूर्त)

इस साल खीर रखने का सबसे अच्छा समय रात 10:37 बजे से 12:09 बजे तक है। इस दौरान खीर को चांदनी में रखने से स्वास्थ्य लाभ के साथ जीवन में उन्नति भी प्राप्त होती है।

विशेष योग और नक्षत्र

वृद्धि योग: प्रात:काल से दोपहर 01:14 बजे तक

उत्तर भाद्रपद नक्षत्र: प्रात:काल से 7 अक्टूबर तड़के 04:01 बजे तक

इस दिन चंद्रमा की अमृत वर्षा और शुभ मुहूर्त के अनुसार खीर रखने की परंपरा से शरद पूर्णिमा का महत्व और बढ़ जाता है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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Badrinath, 2 अक्टूबर (हि.स.)। बदरीनाथ धाम के कपाट इस वर्ष के लिए 25 नवंबर (मंगलवार ) काे 2 बजकर 56 मिनट पर बंद होंगे, जबकि केदारनाथ धाम के 23 अक्टूबर को शीतकाल के लिए बंद होंगे। द्वितीय केदार, मद्महेश्वर के कपाट 18 नवंबर ब्रह्म मुहूर्त और तृतीय केदार तुंगनाथ के कपाट 6 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे।

बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तिथि विजयदशमी के अवसर पर आज बदरीनाथ मंदिर परिसर में दोपहर बाद एक धार्मिक समारोह में धर्माधिकारी, वेदपाठी पंचांग गणना के पश्चात बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तिथि तय की गई।

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New Delhi, 2 अक्टूबर (हि.स.)। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयादशमी के पर्व को लेकर देशभर में उत्साह और उत्सव का माहौल है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा उत्सव का आज दसवां और अंतिम दिन है। इस पवन दिन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को बधाई दी है।

यह त्योहार धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक है: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने एक्स पोस्ट में लिखा कि यह त्योहार धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक है और हमें सत्य व न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उन्होंने रावण दहन और दुर्गा पूजा जैसे उत्सवों को राष्ट्रीय मूल्यों का प्रतीक बताया, जो हमें क्रोध और अहंकार जैसे नकारात्मक गुणों को त्यागकर साहस और दृढ़ता अपनाने का संदेश देते हैं।

प्रधानमंत्री ने दी विजयादशमी की शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्स पर लिखा, “विजयादशमी बुराई और असत्य पर अच्छाई और सत्य की विजय का प्रतीक है। मेरी कामना है कि इस पावन अवसर पर हर किसी को साहस, बुद्धि और भक्ति के मार्ग पर निरंतर अग्रसर रहने की प्रेरणा मिले। देशभर के मेरे परिवारजनों को विजयादशमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।”

भाजपा ने देशवासियों को विजयादशमी की शुभकामनाएं दी हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक्स पर लिखा- “धर्मो जयति नाधर्मः सत्यं जयति नानृतम्“

असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय के महापर्व विजयादशमी की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। इस पावन पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात कर जीवन को सार्थक बनाएं।”

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मीरजापुर, 23 सितंबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन मंगलवार विंध्यधाम भक्ति और आस्था की उमंग में सराबोर रहा। मां विंध्यवासिनी मंदिर परिसर सहित नगर के अन्य देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता सुबह से ही लगना शुरू हो गया। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। भक्तों ने व्रत रखकर मां की उपासना की और विधि-विधान से आराधना कर सुख, समृद्धि एवं मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगा।

विंध्यधाम में अलसुबह से ही घंटा-घड़ियाल की गूंज और जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया। मां ब्रह्मचारिणी के दरबार को आकर्षक रूप से सजाया गया है। देवी प्रतिमाओं के चारों ओर फूलों की झालरें और रंग-बिरंगी रोशनी भक्तों के मन को भक्ति भाव से भर दे रही हैं। श्रद्धालु दर्शन-पूजन के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों में भी भाग ले रहे हैं।

विंध्यधाम में दूसरे दिन की भीड़ ने प्रशासन की परीक्षा भी ली। जिला प्रशासन व पुलिस ने सुरक्षा और व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए हैं। मंदिर परिसर से लेकर घाट और मुख्य मार्गों तक पुलिस बल तैनात है। महिला पुलिसकर्मी भीड़ को नियंत्रित करने में सक्रिय दिखीं। वहीं, स्वास्थ्य विभाग ने भी एंबुलेंस और मेडिकल टीम की व्यवस्था की है ताकि किसी आपात स्थिति से निपटा जा सके।

स्थानीय बाजार में भी रौनक देखने को मिली। प्रसाद, चुनरी, नारियल और श्रृंगार सामग्री की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ उमड़ी। बाहर से आए श्रद्धालु मां के दरबार में दर्शन कर खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं।

श्रद्धालुओं का मानना है कि मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक को तप, त्याग और संयम की शक्ति प्राप्त होती है। नवरात्र का यह दिन अध्यात्म और साधना के मार्ग पर चलने का प्रेरणा स्रोत माना जाता है।

सुबह से ही विंध्यधाम भक्ति के रंग में रंगा रहा और भक्तों की भीड़ से माता का दरबार कृपा और श्रद्धा का अनोखा संगम प्रस्तुत करता रहा।

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