Chhapra: जिले के सभी प्रखंडों में बनाये गए Quarantine center पर अप्रवासी के लिए खाना बनाने वाले रसोइया के मिलने वाली राशि अब स्पष्ट हो गयी है. खाना बनाने के एवज में मिलने वाली राशि को लेकर बनी संशय भी अब समाप्त हो गयी है. जिसके बाद रसोइया ने राहत की सांस ली है.

प्रशासन द्वारा खाना बनाने के एवज में क्या मिलेगा, मिलेगा या नही मिलेगा इसको लेकर रसोइया के बीच संशय बना था. लेकिन जिला प्रशासन द्वारा निर्गत पत्र के बाद राहत मिली है.

जिला प्रशासन ने विगत दिनों रसोइया के पारिश्रमिक निर्माण गठन समिति की बैठक हुई जिसमें जिला पदाधिकारी, अपर समाहर्त्ता (विभागीय जांच), जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (MDM) शामिल हुए. जिसमे सरकार के पत्र के आलोक में 1500 रुपये निर्धारित है.

उसी परिपेक्ष्य में रसोइया को एक समय खाना बनाने के लिए 1500 रुपये देय है. ऐसे में सेंटर पर 2 बार खाना बनाने के लिए 3000 रुपया दिया जाएगा. समिति ने सभी प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं अंचल पदाधिकारी से प्राप्त कार्य दिवस प्रतिवेंदन के आधार पर पारिश्रमिक भुगतान रसोइया के बैंक खाते में करने का निर्देश दिया गया है.

Chhapra: सारण के सांसद सह भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी के अनुशंसा पर मुख्यमंत्री चिकित्सा कोष से रूपगंज निवासी राम प्रवेश पांडेय को कैंसर रोग के इलाज के लिए 60000 रुपया की सहायता राशि स्वीकृति हुई.

स्वीकृति पत्र भाजपा नेता धर्मेन्द्र सिंह चौहान के नेतृत्व में उनके परिजन को सौपा गया. इस दौरान कार्यसमिति सदस्य मदन कु सिंह भी उपस्थित थे.

इस भी पढ़ें: देश में 15 दिन में एक लाख से दो लाख हो गए केस, एक लाख रिकवर और एक लाख एक्टिव

पीड़ित राम प्रवेश पांडेय के परिवार में पत्नी के अलावा 3 छोटी बच्ची एवं एक छोटा बेटा है. पीड़ित परिवार अत्यंत गरीब है. पीड़ित की पत्नी ने कहा कि सांसद से हम इसके पहले भी मदद मिला है. सांसद कंट्रोल रूम से भी मदद मिलता रहता है. पीड़ित के पत्नी को जैसे ही स्वीकृति पत्र दिया गया वह रोने लगी. पीड़ित का इलाज इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान पटना में चल रहा है.

A valid URL was not provided.

देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 2 लाख के पार पहुंच गया है. हैरानी की बात है कि महज 15 दिन में मरीजों की संख्या एक लाख से 2 लाख हो गई, जबकि एक लाख केस होने में 108 दिन लगे थे. कोरोना मरीजों के बढ़ते आंकड़े के बीच राहत की खबर यह है कि इस बीमारी से ठीक होने वालों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है.

19 मई को सुबह स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 1 लाख 1 हजार 139 था, जिसमें 3163 लोगों की मौत हो गई थी. 15 दिन बाद यानी आज देश में कुल कोरोना मरीजों का आंकड़ा 2 लाख को पार कर गया है. यानी अब देश में कोरोना केस के डबल होने की रेट 15 दिन है.

चक्रवाती तूफान निसर्ग ने रफ्तार पकड़ ली है. दोपहर में यह माहाराष्ट्र के पालघर और मुंबई में समुद्र तट से टकरा सकता है. मौसम विभाग के मुताबिक चक्रवाती तूफान के हवा की रफ्तार 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच चुकी है. समुद्र तट से टकराने के दौरान हवा की रफ्तार 120 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है. मौसम विभाग ने मुंबई में हाई टाइड के आने की संभावना जताई है. विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक आज रात 9:48 बजे मुंबई में हाई टाइड की चेतावनी दी गई है. निसर्ग तूफान के दौरान 100 से 120 किलोमीटर प्रति घंटे की तूफानी हवाएं और समंदर में उठने वाली 6 फीट ऊंची लहरें मुंबई को फिर से पानी-पानी कर सकती हैं. इधर, तूफान से पहले गुजरात और महाराष्ट्र के कई जिलों में बारिश शुरू हो गई है.

मुंबई से सिर्फ 190 किलोमीटर दूर चक्रवात

मुंबई मौसम विभाग (IMD) के मुताबिक चक्रवाती तूफान अलीबाग से 140 किलोमीटर और मुंबई से 190 किलोमीटर दूर है. IMD के मुताबिक यह दोपहर 1 बजे से 3 बजे के बीच 120 किलोमीटर की रफ्तार से समुद्र तट से टकरा सकता है. तूफान के समय 6 फीट ऊंची लहरें उठ सकती हैं. हालांकि मुंबई निसर्ग की मुसीबत से निपटने के लिए तैयार है. 80 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.

महाराष्ट्र में NDRF की 20 टीमें तैनात

चक्रवात से निपटने के लिए एनडीआरएफ की 20 टीमें तैनात की गई हैं. इसमें मुंबई में 8 टीमें, रायगढ़ में 5 टीमें, पालघर में 2 टीमें, थाने में 2 टीमें, रत्नागिरी में 2 टीमें और सिंधूदुर्ग में 1 टीम की तैनाती है. दो हफ्ते में देश को दूसरे समुद्री तूफान का सामना करना पड़ रहा है. पहले अम्फान ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में तबाही मचाई थी. इसके दोपहर तक अलीबाग में तट से टकराने की उम्मीद है.

कानून एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को यह घोषणा की कि भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश बन गया है.

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारत में अब तक 300 मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स सेट अप हो चुकी हैं. भारत में 330 मिलियन मोबाइल हैंडसेट्स बनाए जा चुके हैं. 2014 से अगर इसकी तुलना की जाए तो उस वक्त देश में 60 मिलियन स्मार्टफोन बनाए गए थे और सिर्फ दो मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट भारत में थे. 2014 में भारत में बने मोबाइल फोन की वैल्यू 3 बिलियन डॉलर थी. वहीं 2019 में यह वैल्यू 30 बिलियन डॉलर हो गई है.

Patna: बिहार में कोरोना संक्रमण की स्थिति पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बैठक की.

समीक्षा बैठक में लिए गये निर्णयों की जानकारी देते हुए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव अनुपम कुमार ने बताया कि शहरी क्षेत्र में जो जरूरतमंद लोग हैं, रिक्शा चालक हैं, ठेला वेंडर हैं इन लोगों के बीच भी मास्क का वितरण किया जाएगा. वही राशनकार्ड विहीन परिवारों को शीघ्र राशनकार्ड देने का निर्णय हुआ.

यहां देखें Video

Saran: सारण पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली है. गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने डोरीगंज से तीन अंतरराज्यीय लुटेरों को गिरफ्तार कर लिया है. यह लुटेरे सारण के पड़ोसी जिले वैशाली से सारण में ट्रक लूटपाट के इरादे से पहुंचे थे. पुलिस को इनकी भनक लगी थी, जिसके बाद गुप्त सूचना के आधार पर डोरीगंज थाना क्षेत्र से तीनों लुटेरों को पकड़ लिया गया. हालांकि अंधेरे का फायदा उठा कर दो अपराधी भागने में कामयाब रहे. Sha

सारण पुलिस की ओर से जानकारी दी गयी कि सारण में बड़ी लूटपाट के इरादे से वैशाली से कुछ अपराधी पहुंचे थे. लेकिन पुलिस को इसकी गुप्त सूचना मिल गई थी. जिसके बाद डोरीगंज थाना द्वारा इन्हें छापेमारी कर पकड़ लिया गया.

गिरफ्तार तीनों अपराधियों में वैशाली जिले के गंगावृज थाना क्षेत्र के कर्णपुरा गांव निवासी आलोक कुमार, वैशाली जिले के गंगा वृज थाना क्षेत्र के नवादा खुर्द गांव निवासी राजकुमार एवं दरियापुर थाना क्षेत्र के दरियापुर निवासी पंकज कुमार सिंह बताये जाते हैं.

Chhapra: युवा क्रांति रोटी बैंक के सदस्यों ने बैठक कर लॉक डाउन में किये गए कार्यो का अलोकन किया.
बैठक की अध्यक्षता रितेश सिंह ने की. इस बैठक का मुख्य उद्देश्य सदस्यों के द्वारा इस गंभीर महामारी बीमारी कोरोना के प्रति सच्चे लगन भाव से निःस्वार्थ सेवा कर छपरा में एक मदद करने का प्रयास किया गया.

युवा क्रांति रोटी बैंक के संस्थापक विजय राज ने कहा कि हम सभी सदस्यों के भरपूर सहयोग से हमने इस विकट परिस्थितियों में अपने छपरा में कुछ अलग करने का प्रयास किया है. हमने लगातार इस लॉकडाउन में जिला प्रशासन और रेल प्रशासन के सहयोग के साथ हर जरूरतमंद प्रवासी लोगों को भोजन पानी उपलब्ध कराया. हम सब ने इस लॉक डाउन में लगभग 42 हज़ार लोगों को भोजन खिलाया. जिसमे हमारे सदस्यों और छपरा वाशियो का भरपूर सहयोग मिला. हम सब ने इस गंभीर बीमारी में हर मोहल्ले के अपने सदस्यों के द्वारा सेनेटराइज कराया और आगे भी जारी रखी है हम सब सदस्यों से जितना होगा छपरा को स्वस्थ स्वछ सुंदर रखने का प्रयास करेंगे.

युवा क्रांति रोटी बैंक के सदस्य मनीष कुमार मनी ने कहा कि हम सब ने जिला प्रशासन और स्वास्थ विभाग के नियमो का पालन करते हुए हम सब ने छपरा के हर वार्ड के विभिन्न मोहल्ले में गाँव मे चिह्नित परिवार को सुखा अनाज समाग्री मास्क सेनेटराइज का वितरण किया. हम सब ने इस महामारी से बचने के लिए स्वास्थ विभाग के द्वारा दिये गए निर्देशो को लोगो के बीच रखा और इस बीमारी के प्रति सचेत रहने के लिए लोगो से आग्रह किया गया और कहा कि आगे भी हम सब अपने छपरा के लिए कुछ अच्छा करने का प्रयास करेंगे बस आप सब का साथ और आशीर्वाद हम सभी सदस्यों होनी चाहिए.

बैठक में युवा क्रांति रोटी बैंक सदस्य सुजीत गुप्ता, सन्नी खान , सुधाकर प्रसाद ,विनीत सिंह, विवेक चौहान, रजत सिंह, निशांत सिंह, विश्व विभूति, अमरेश सिंह आदि उपस्थित थे.

(प्रशांत सिन्हा)
करोना महामारी के कारण बिहार के श्रमिकों को बेहद परेशानी से गुज़रना पड़ा है। जिस तरह श्रमिकों को समस्या हुई है वह शायद ही इतिहास में हुआ होगा। वैसे महामारी और पलायन में रिश्ता है। जब भी महामारी फैली है पलायन हुआ है।

करोना महामारी ने हमें सीख दी है कि जो काम आप किसी छोटी जगह में रह कर कर सकते हैं उसके लिए महानगरों में भीड़ बढ़ाने की क्या ज़रूरत है। जो दिल्ली, मुंबई, पंजाब, गुजरात आदि कभी नरम फुलों की तरह भाती थी मगर अब वह बबूल की काँटों की तरह चुभ रही है। जब तक उनसे काम लेना था ख़ूब लिया गया ।यथाशक्ति शोषित भी किया गया और महासंकट की उस बेला में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया। ये श्रमिक या तो वापस नहीं जाएँगे या अगर उन्हें अपनी जगह पर फिर अवसर नहीं मिलता है कुछ महीने रुक कर जाएँगे। उनके कटु अनुभव उनके पाँव को जकड़ लेगा। वे अपने रोज़ी रोटी का विकल्प अपने गाँव और आस पास के जिलों के शहरों में ढूँढने की कोशिश करेंगे।

बिहार सरकार की भी चाहिए कि उनके लिए वहीं रोज़गार की व्यवस्था करे। ताकि दूसरे राज्य में जा कर अपनी तौहीन नहीं कराना पड़े। कोविंद-19 ने हमें बहुत कुछ सीखाया ही नहीं बल्कि हमारी जीवन शैली को बदल दिया है। यह सदी का सबसे कठोर शिक्षक साबित हुआ है। बिहार सरकार एवं स्वयंसेवी संगठन इस बात को समझे और वहीं पर उद्योग धंधे खोलकर उन्हें बेहतर ज़िंदगी देने की कोशिश करे। अगर फिर से रोज़ी रोटी के लिए अन्य प्रदेशों का रूख करना पड़े तो राज्य का साधुवाद छीन जाएगा।

मिसाल के तौर पर तमिलनाडु राज्य है। जब बाल ठाकरे ने तमिलीयन को मुंबई में तंग करना शुरू किया था तो तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य में ही उनके रोज़गार की व्यवस्था की जिससे तमिलनाडु राज्य आज आत्मनिर्भर और सम्पन्न राज्य की सूची में आता है।

बिहार में लौट रहे श्रमिकों की हूनर से बदला जा सकता है बिहार के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन। सरकार को संवेदनशील बनना पड़ेगा।बिहार सरकार को इस बीमारी से सबक़ लेकर श्रमिकों के लिए बेहतर रोज़गार एवं व्यवस्था बनाने की पहल करना पड़ेगा।यह समय बिहार सरकार के लिए असाधारण कार्य करने का है। क्या बिहार के नवनिर्माण का मार्ग 89 लाख श्रमिकों के श्रम व कौशल के लगाए बिना सम्भव है ? कहीं यह समय नए बिहार के निर्माण तथा बिहारियों की सम्मान की रक्षा का आमंत्रण तो नहीं दे रहा है ? करोना महामारी और लॉकडाउन ने इतिहास के सामने सच्चाई उजागर कर दिया कि कभी बहारों का क्षेत्र कहे जाने वाला बिहार कितना बेबस और मजबूर है। जहाँ के पचास लाख से भी ज़्यादा लोग पेट पालने के लिए बिहार से दूसरे  में अपमान झेलते हुए अपने श्रम बेचने पर मजबूर हैं। जबकि बिहार में ही विकास किया जा सकता था।

बिहार में बृहत् कृषि क्षेत्र है। गंगा तथा सैकड़ों नदियों के कारण जल संसाधन की कमी नहीं है। दक्ष श्रमिकों की भी कमी नहीं है। सब कुछ के उपलब्धता के बावजूद बिहार में औद्योगिकरण क्यों नहीं हुआ ? रोज़गार का सृजन क्यों नहीं हुआ ? आज़ादी के बाद बिहार दो भागों में बँटा था उत्तरी बिहार एवं दक्षिणी बिहार। चुकि दक्षिणी बिहार खनिज सम्पदा से भरा हुआ था इसलिए सारे उद्योग वहीं लगे जो बाद में झारखण्ड के नाम से अलग राज्य बना।लेकिन उत्तरी बिहार (आज का बिहार ) में पतन का दौर आज़ादी के बाद से ही रहा ।लेकिन सबसे बुरा दौर 1990-2005 का रहा। यह दौर वैश्वीकरण का दौर था। सारे राज्यों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ का प्रसार हो रहा था। राज्यों में उन्हें बुलाने के लिए प्रतिस्पर्धा थी। छोटे, मँझले, बड़े उद्योग लग रहे थे। उन राज्यों में ख़ूब निवेश किए गए। उसी दौर में सॉफ़्टवेयर की क्षेत्र में क्रांति आयी हुई थी। लेकिन इन सबसे अलग लालू-राबरी राज ने बिहार में जंगल राज बनाया हुआ था। चोरी, डकैती, लूट-पाट अपनी चरम सीमा पर थी। जातिवाद के नाम पर अगड़े-पिछड़े जाति कहते हुए लोगों को एक दूसरे से लड़ाया जा रहा था। भला ऐसी परिस्थिति में कैसे औद्योगिकरण या निवेश होता। एक भी उद्योग नहीं लगा। जो फ़ैक्टरी लगी भी थीं बंद हो गए। व्यापारी अपना व्यापार बंद कर दूसरे राज्य चले गए। जूट उद्योग, चीनी उद्योग, पेपर उद्योग, साइकल फ़ैक्टरी आदि बंद होते चले गए। यहाँ तक कि छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने दूसरे राज्य चले गए।

दूसरा पंद्रह साल नीतीश सरकार का रहा जिन्होंने पंद्रह साल में क़ानून का राज तो स्थापित कर दिया लेकिन रोज़गार का अवसर पैदा करने में विफल रहे। अगर इन दोनो ने बिहार में औद्योगिकरण, तरक़्क़ी एवं रोज़गार की सृजन के बारे में सोचा होता तो आज जो स्थिति श्रमिकों की हुई ऐसी स्थिति कभी नहीं होती। करोना एक वरदान के रूप में आया जिसने बिहार के नेताओं की पोल खोल दिया। सभी सरकार केवल बिहार के गौरवशाली इतिहास पर इठलाती रही।

पिछले कुछ वर्षों से राजस्व सम्बंधी समझदारी आधारिक संरचना ( Infrasrtucure ) पर लक्ष्य आधारित ख़र्च और विकास की मिसाल बन कर बिहार ज़रूर उभरा है लेकिन ग़रीबी कम करने और पलायन रोकने के लिए सरकार को औद्योगिकरण और कृषि उत्पादकता में सुधार की ज़रूरत है। कुछ अरसे तक राज्य में उद्योग के नाम पर एकमात्र क्षेत्र निर्माण क्षेत्र ही रहा है। उद्योग धंधों को विकसित करने के लिए राज्य को लम्बा सफ़र तय करना होगा। राज्य में कृषि उपकरणों में और छोटे मशीन निर्माण, पर्यटन, सूचना, प्रौद्योगिकी ( IT ) खाद्य प्रसंस्करण और रेडीमेड वस्त्र निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी। तत्काल इस क्षेत्र में निवेश की ज़रूरत है। जूट पूर्वोत्तर बिहार का एक प्रमुख कृषि उत्पाद होता था। जूट उत्पादन से सीमांचल में विकास व स्वरोज़गार के उद्देश्य से पूर्णिया में जूट पार्क लगाया गया था। कुछ दिनों से वह भी श्रम शोषण के कारण ठप्प पड़ा है उसे फिर से विकसित करने की ज़रूरत है। बिहार सरकार जूट एवं चीनी उद्योग को उबारने पर ध्यान दे जो बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन को प्रभावित करता है। तकनीक के दौर में आवश्यक है कि राज्य की आईटी आई विश्वस्तरीय बने। हमारे श्रमिक हूनर के साथ गाँव लौटे हैं। अनेक तरह से शहरी हूनर से लैस ये श्रमिक गाँव, जिले की तस्वीर बदल सकते हैं। ये युवा पीढ़ी दूसरे राज्य से लौट कर जाति और धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठकर सामाजिक तानाबाना भी बनेंगे। घरेलू महिलायें भी दक्ष हो गयी होंगी। स्वरोज़गार के हूनर भी सामने आएँगे। ज़रूरत है कि सरकारी ख़ज़ाने से या बैंक से उन्हें सहायता दी जाए।बिहार सरकार को दूरदर्शितापूर्ण योजना बनाकर अमल करना चाहिए।

इससे गाँव और जिलों कि अर्थ व्यवस्था वापस लौटेगी। चुना, ईंट, सिमेंट, लोहा, वेल्डिंग, लकड़ी आदि तरह तरह के रोज़गार एवं छोटे, बड़े व्यापार फलेंगे फूलेंगे। बिहार की जनता के प्रति केंद्र सरकार का भी दायित्व बनता है। क्योंकि दूसरे राज्य अमीर होते गए और बिहार ग़रीब होते गया। बदलाव का यह समय हस्तकौशल परम्पराओं का पुनरुद्वार कर ख़ाली होने जा रहे हाँथों का कूदतरत और माटी से दोबारा जोड़ने का है ताकि ख़ाली दिमाग़ कुछ सुंदर नया रचे। समय की माँग है कि बिहार में उद्दमशीलता की प्रक्रिया वास्तविक रूप से आसान बनाया जाए। नेता और जनता जातिवाद से ऊपर उठकर बिहार में औद्योगिक क्रांति में अपना योगदान दें।इन्स्पेक्टर राज से पूरी तरह मुक्ति पानी होगी। ज़मीन ख़रीदने और बेचने की प्रक्रिया को आसान बनाने की ज़रूरत है। कलेयर लैंड टाइटल से उद्दमशीलता को बढ़ावा मिलेगा।

रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिए निवेश लाने के लिए प्रयास करना होगा। सरकार को बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में निवेश के लिए अपने ख़ज़ाने का मुँह खोलना होगा। केंद्र सरकार द्वारा अच्छी फ़ंडिंग के कारण बिहार सरकार के पास पैसे की कमी नहीं होनी चाहिए। अगर नहीं भी है निवेश करने के लिए अपने ख़ज़ाने का मुँह खोलना होगा। यह इसलिए ज़रूरी है ताकि इस निवेश असर तुरंत महसूस हो और तात्कालिक संकट पर क़ाबू पाया जा सके। अगर सरकार श्रमिकों को अपने गाँव एवं जिले में रोज़गार देने में सफल होती है तो जनता का  आधुनिक बिहाार  का सपना पूरा होगा और श्रमिक अपने दर्द को भूल पाएँगे। बिहार की जनता को आज सोचने की ज़रूरत है कि बिहार से लोग दूसरे राज्य में जाते हैं लेकिन दूसरे राज्य से लोग बिहार नहीं आते। क्यों ? कौन थे और कौन हैं इसके ज़िम्मेवार ? इसके ज़िम्मेवार नेता के साथ जनता भी रही। जनता जातिवाद में बँटी रही और नेता इसका फ़ायदा उठाते रहे। सोशल इंजनीरिंग के नाम पर लड़ाते रहे। अब परिवर्तन की ज़रूरत है। अब शासक से सवाल पूछने का समय है। शांतिपूर्ण आंदोलन की ज़रूरत है। बिहार की जनता को इस बार उम्मीद है कि बिहार में उद्योग लगेंगे । इसके लिए लेना होगा दृढ़ संकल्प । हम एक नया बिहार ज़रूर बनाएँगे।

लेखक प्रशांत सिन्हा के अन्य Blog को http://prashantpiusha.blogspot.com पर पढ़ें.

Chhapra: नगर निगम क्षेत्रान्तर्गत वार्ड संख्या 43 आयुर्वेद महाविद्यालय स्थित कोरेंटाइन कैम्प में आवासित एक व्यक्ति के कोरोना वाइरस से संक्रमित होने की सूचना पर जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने आयुर्वेद महाविद्यालय स्थित कोरेंटाइन कैम्प के उत्तर में रेलवे लाइन, पश्चिम में सड़क, दक्षिण में भिखारी ठाकुर चौक और पूरब में बड़ा तेलपा तक के क्षेत्र को कंटेन्मेंट जोन घोषित किया है.

इसे भी पढ़ें: Special Story: ग्रामीण इलाकों के बच्चों की पढ़ाई भगवान भरोसे
इसे भी पढ़ें: अफवाहों से बचें: कोरोना कोई देवी या माता नहीं, बल्कि खतरनाक संक्रमण है
इसे भी पढ़ें: Covid19: छपरा शहर के हॉस्पिटल चौक के आस-पास का क्षेत्र कंटेन्मेंट जोन घोषित

कंटेन्मेंट जोन में किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र से न तो बाहर जाने की इजाजत दी जाएगी और न ही किसी व्यक्ति को बाहर से अंदर आने की इजाजत दी जाएगी.

जिलाधिकारी के द्वारा प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं अंचलाधिकारी, छपरा सदर को निदेषित किया गया है कि समस्त आवागमन मार्गां को वार्ड सदस्य के सहयोग से पूर्णतः लॉक करते हुए आवागमन अवरुद्ध कर देगें. यदि किसी व्यक्ति द्वारा कंटेन्मेंट जोन से बाहर पलायन किया जाता है अथवा बाहर से अंदर प्रवेश किया जाता है तो उनके विरुद्ध नियमानुसार कानूनी कार्रवाई की जाय.

जिलाधिकारी के द्वारा इस पूरे क्षेत्र को सेनेटाइज करने का निदेश दिया गया है. इसका दायित्व संजय कुमार उपाध्याय, नगर आयुक्त, छपरा नगर निगम को दिया गया है. जबकी सेनेटाइज गतिविधियों का अनुश्रवण डॉ0 दिलीप कुमार सिंह, जिला वैक्टर बॉर्न रोग नियंत्रण पदाधिकारी मो0 7717781085 को दिया गया है.

Chhapra: छपरा नगर निगम क्षेत्रान्तर्गत हॉस्पिटल चौक के पास एक व्यक्ति के कोरोना वाइरस से संक्रमित होने की सूचना पर जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन के निदेश पर संक्रमित व्यक्ति के निवास स्थान हॉस्पिटल चौक के पूरब नई बाजार, पश्चिम में राणा प्रताप नगर, दक्षिण में बहुरिया कोठी और उत्तर में पीर बाबा की मजार के पास तक के क्षेत्र को कंटेन्मेंट जोन घोषित किया गया है.

इसे भी पढ़ें: छपरा शहर के दो मुहल्लों के दो लोगों में कोरोना वायरस की पुष्टि, सारण में 76 पहुंचा आंकड़ा

कंटेन्मेंट जोन में किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र से न तो बाहर जाने की इजाजत दी जाएगी और न ही किसी व्यक्ति को बाहर से अंदर आने की इजाजत दी जाएगी.

जिलाधिकारी के द्वारा प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं अंचलाधिकारी, छपरा सदर को निदेशित किया गया है कि समस्त आवागमन मार्गां को वार्ड सदस्य के सहयोग से पूर्णतः लॉक करते हुए आवागमन अवरुद्ध कर देगें. यदि किसी व्यक्ति द्वारा कंटेन्मेंट जोन से बाहर पलायन किया जाता है अथवा बाहर से अंदर प्रवेष किया जाता है तो उनके विरुद्ध नियमानुसार कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

जिलाधिकारी के द्वारा इस पूरे क्षेत्र को सेनेटाइज करने का निर्देश दिया गया है. इसका दायित्व संजय कुमार उपाध्याय, नगर आयुक्त, छपरा नगर निगम को दिया गया है. जबकी सेनेटाइज गतिविधियों का अनुश्रवण डॉ० दिलीप कुमार सिंह, जिला वैक्टर बॉर्न रोग नियंत्रण पदाधिकारी मो0 7717781085 को दिया गया है.

Chhapra: कोरोना वायरस को लेकर Lockdown के बाद अब अनलॉक 1 शुरू है. केंद्र और राज्य सरकार के निर्देशों के बाद दुकानें तो खुली लेकिन बच्चों की पढ़ाई पर अब भी संशय बरकरार है. हालांकि राज्य सरकार ने बच्चों की पढ़ाई को लेकर राज्य सरकार भी चिंतित है जिसके बाद टीवी एवं कई डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पढ़ाई शुरू हो चुकी है. लेकिन इन सब के बाद भी जिले की बड़ी आबादी इनसब से अछूता है.

शहर को छोड़ अगर हम गांव के उन बच्चों की बात करें जो सरकारी विद्यालयों में पढ़ते है उनके पास इस व्यवस्था में पढ़ाई का कोई साधन नज़र नही आता. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी और देश मे जारी Lockdown के बाद पिछले शैक्षणिक सत्र में उनकी पढ़ाई जहां अधूरी छूट गयी वही इस सत्र में 2 माह बीतने के बाद तीसरा महीना चल रहा है जब उन्हें ना नई किताबो से मुलाकात हुई और ना ही सिलेबस से. ऐसे में कुछेक ने अगर किताबें हासिल भी कर ली है तो उन्हें कुछ समझ मे नही आ रहा.

राज्य सरकार ने इस महामारी में डिजिटल प्लेटफॉर्म और दूरदर्शन तथा अन्य माध्यमो से बच्चों की पढ़ाई आगे बढ़ाने का प्रयास किया. लेकिन यह व्यवस्था सिर्फ शहर और उसके आसपास के इलाकों तक सीमित है.

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के पास टीवी और मोबाइल जरूर है. लेकिन बच्चों को ना टीवी पर पढ़ाई समझ मे आ रही है और ना ही मोबाइल उनको ऑपरेट करने आ रहा है. रही सही कसर मोबाइल का नेटवर्क और बिजली की समस्या पूरी कर दे रही है. ऐसे में इन बच्चों के पास कोई रास्ता नही बचा.

भविष्य को लेकर कुछ बच्चें परेशान है तो कुछ बच्चों की इन दिनों मौज है. अभिभावक इस lockdown में रोजीरोजगार की जुगाड़ में है. देश और परदेश से आने के बाद बड़ी समस्या उन्हें जीवकोपार्जन की है.

ऐसे में इन बच्चों की सुधि लेने वाला कोई नही है. गांव के बच्चों के लिए शिक्षा का मंदिर कब खुलेगा यह किसी को पता नही.

A valid URL was not provided.