बनियापुर थाने में कार्यरत महिला पुलिसकर्मी ने खुद को मारी गोली

छपरा: जिले के जिले के बनियापुर थाना में कार्यरत एक महिला पुलिस कांस्टेबल को गोली लगी है. गोली लगने की घटना के बाद वहां उपस्थित पुलिसकर्मियों द्वारा इलाज के लिए आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया. जहां उसका इलाज चल रहा है.

घायल महिला पुलिसकर्मी का नाम मोनाम कुमारी बताया जा रहा है. उधर इस घटना के बाद पुलिस अधीक्षक ने सदर अस्पताल पहुंच इस पूरे मामले की जानकारी प्राप्त की.

गोली क्यों और कैसे लगी इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है.

वहीं सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि महिला कॉन्स्टेबल मोनम कुमारी ने खुद को ही गोली मारी है, हालांकि इस पूरे मामले पर पुलिस जांच कर रही है.

Chhapra: विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र #Sonpur मेला छह नवंबर से शुरू होकर सात दिसंबर तक चलेगा. छह नवंबर को इसका उद्घाटन होना है.

मेले के उद्घाटन के पहले यहाँ पर तमाम तरह के स्टॉल लगाए जा रहे है. जिनमे सरकारी और कुछ प्राइवेट स्टॉल भी लगाए जा रहे है.

मेले में शामिल होने के लिए दुकानदार दूर दूर से पहुँच चुके है. वैसे तो ये मेला पशु मेले के नाम से विश्व में विख्यात है लेकिन पशुओं के बिक्री पर लगे रोक के बाद कही ना कही अब मेले का स्वरूप बदला है. मेले में तमाम तरह के चीजे बिकती है. इसके साथ ही मनोरंजन के लिए झूले लगाए गए है.

इस बार थियेटर भी लगे हैं. साथ ही कला और कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए हैंडक्राफ्ट की प्रदर्शनी लगाई गई है. जहाँ पर कलाकारों के कला का प्रदर्शन होगा और आप तमाम सामानों की खरीदारी यहाँ कर सकेंगे.

पर्यटन विभाग के द्वारा आयोजित इस मेले का उद्घाटन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव करेंगे. जबकि विज्ञान प्रद्योगिकी सह सारण जिला के प्रभारी मंत्री सुमित कुमार सिंह अध्यक्षता करेंगे. इसके साथ ही राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह अति विशिष्ट अतिथि होंगे. मेले के उद्घाटन में राजस्व एवं भूमि विभाग के मंत्री आलोक कुमार मेहता कला एवं संस्कृति युवा विभाग के मंत्री जितेंद्र कुमार राय और श्रम संसाधन मंत्री सुरेंद्र राम विशिष्ट अतिथि होंगे. इसके साथ ही जिले के सभी सांसद और विधायक शामिल होंगे.

सोनपुर मेला अध्यात्म के साथ सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र बिंदु है. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले इस मेले की छटा अलौकिक होती है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखों लोग दूर-दूर से गंगा और गंडक नदी के संगम स्थल पवित्र स्नान के लिए पहुँचते हैं. सोनपुर मेला में इस बार महाआरती, नौका दौर, कुश्ती, दंगल रसाकशी, वाटर स्पोर्ट्स, सांस्कृतिक कार्यक्रम मुख्य आकर्षण होंगे. सांस्कृतिक कार्यक्रम में सबीर कुमार, सलमान अली, मैथिली ठाकुर, पूर्णिमा श्रेष्ठ समेत स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुति होगी.

आपसी विवाद में पति ने कर दी चाकू गोदकर पत्नी की हत्या

Bihar: बिहार के किशनगंज जिला स्थित बहादुरगंज प्रखंड के गांगी गांव की महिला को उसके पति ने चाकू गोदकर हत्या कर दी. मृतक महिला निसरत जहां बताई जाती है जिसको उसके पति रब्बानी आलम ने चाकू से गोद कर हत्या कर दी है.

मृतक महिला निसरत जहां का शव बुधवार की सुबह किशनगंज प्रखंड केसिंघिया कुलामनी गांव में एक ईंट भट्टा के पास संदिग्ध स्थिति में मिला.

मृतका महिला बहादुरगंज के गांगी की रहने वाली थी. उसका मायका किशनगंज प्रखंड की हालामाला पंचायत के हालामाला गांव में बताया जाता है. इधर मामले के आरोपी रब्बानी आलम ने किशनगंज प्रखंड के हालामाला गांव निवासी रब्बानी आलम ने किशनगंज थाना में सरेंडर कर दिया.

मृतक महिला का शव ईट भट्ठे के समीप से गुजर रहे लोगों ने शव को देखा उसके बाद पुलिस को इस घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही किशनगंज सदर थानाध्यक्ष सुमन कुमार सिंह के नेतृत्व में सदर थाना की पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और आसपास के लोगों के सहयोग से शव की शिनाख्त की गई. शव को पुलिस अभिरक्षा में पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल ले जाया गया.

घटना की सूचना मिलते ही मृतका की मां अंजुमा व अन्य परिजन किशनगंज सदर अस्पताल पहुंचे. बेटी के शव को देखते ही मृतका की मां दहाड़ मार कर रोने लगी. मृतका की मां अंजुमा ने बताया कि दो वर्ष पूर्व ही बेटी की शादी की थी. उन्होंने बताया कि रब्बानी अपनी पत्नी को मेला घुमाने के बहाने ले गया था. इसके बाद बुधवार की सुबह महिला का गला रेता हुआ शव मिला.

एसडीपीओ अनवर जावेद अंसारी ने बताया कि प्रथम दृष्टया जांच में सामने आया है कि मृतका के पति रब्बानी आलम ने अपनी पत्नी निसरत जहां की हत्या चाकू से गोदकर की है. पति-पत्नी के बीच पिछले कई दिनों से अनबन चल रही थी. मृतका के पति रब्बानी आलम से पूछताछ की जा रही है.

डेंगू का बढ़ा प्रकोप, डॉ सुधांशु शेखर से जानें लक्षण, ईलाज और बचाव के उपाय
  






 

डेंगू में कीवी, नारियल पानी, पपीता लीफ और गिलोय की बढ़ी डिमांड

Chhapra: जिले में इन दिनों डेंगू का कहर जारी है. शहर से लेकर गांव तक इसकी चपेट में आने से हाल के दिनों में मरीजों की संख्या बढ़ी है. शहर के कई इलाकों में अधिसंख्य लोग डेंगू से ग्रसित है. वही ग्रामीण इलाको में भी इसका प्रभाव बढ़ा है. डेंगू से बचाव और रोकथाम को लेकर सरकार और प्रशासन भी सजग है लेकिन इसके बावजूद मरीजों की तादाद बढ़ रही है.

डेंगू को लेकर सदर अस्पताल में भी जांच और डेंगू वार्ड बनाए गए है. इसके साथ साथ कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी डेंगू वार्ड संचालित है. जिसमे मरीजों को निर्धारित सुविधा दी जा रही है.

मरीजों की अधिकाधिक संख्या डेंगू के इलाज को लेकर निजी क्लीनिक पर पहुंच रहे है. लगभग सभी चिकित्सकों के यहां हाल के दस दिनों में डेंगू से ग्रसित मरीजों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है. वही चिकित्सकों द्वारा जांच के उपरांत निर्धारित सलाह के साथ दवा और आवश्यक निर्देश दिए जा रहे है.

डेंगू से ग्रसित मरीजों के लिए इन दिनों नारियल पानी जिसे हम दाब के नाम से जानते है उन्हे पीने की सलाह दी जा रही है. इसके साथ साथ गिलोय, पपीता के पत्ते का जूस, कीवी फल और बकरी के दूध का सेवन करने की सलाह दी जा रही है. जिससे की उन्हें शरीर में हो रही कमजोरी के साथ साथ प्लेटलेट्स को बढ़ाने में सहायता मिल रही है.

चिकित्सकों की सलाह के बाद बाजारों में इसकी डिमांड बढ़ गई है. नारियल पानी और कीवी फल शहर के साथ साथ गांव के भी बाजारों में उपलब्ध है जहां से आसानी से लोग इसे खरीद रहे है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में पपीता के पत्ते और बकरी का दूध आसानी से मिल जा रहा है जिससे नारियल पानी और कीवी की खरीददारी ग्रामीण क्षेत्रों में कम है. वही गिलोय के पौधें भी आसानी से मिल रहे है.

डेंगू बीमारी से ग्रसित मरीजों को दवाइयों के साथ साथ इन चीजों को देने से मरीज तुरंत ठीक हो रहे है. जिससे इसकी डिमांड और दाम दोनो में वृद्धि हुई है.

साहेबगंज के घर घर में डेंगू मरीज़, ना फॉगिंग ना डीडीटी का छिड़काव

Chhapra: शहर के मुख्य बाजार साहेबगंज में इन दिनों डेंगू कहर बरपा रहा है. विगत एक सप्ताह से इस मुहल्ले के कुछेक घर को छोड़ लगभग सभी घरों में डेंगू से पीड़ित मरीज है. जो चिकित्सकों के यहां इलाज करवा रहे है. लगभग सभी घरों में डेंगू से पीड़ित मरीज है लेकिन प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं है. स्थानीय लोगों के अनुसार इस इलाकों में साफ सफाई, फॉगिंग और डीडीटी छिड़काव ना के बराबर है.

सड़कों के बगल की नालियां खुली रहने से मच्छरों का जमघट है. ऐसे में सावधानियां बरतने के बाद भी लोग डेंगू से ग्रसित हो जा रहे है.

साहेबगंज में बढ़ते डेंगू के प्रकोप को लेकर आर्य समाज पथ में रहने वाले लोगों का कहना है कि दीपावली से अबतक इस मुहल्ले में रहने वाले लगभग सभी घरों में डेंगू ने अपना पांव जमा रखा है. कुछेक घर को छोड़ दें तो लगभग सभी घरों में एक के बाद एक लोग डेंगू से ग्रसित है. बुखार के लक्षण आने के बाद जांच में यह तय हो जा रहा है की मरीज डेंगू से ग्रसित है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि डेंगू ने इस मुहल्ले में अपना पांव जमा लिया है. लेकिन नगर निगम प्रशासन द्वारा ना ही इस मुहल्ले में लगातार फॉगिंग कराई जा रही है और ना ही डीडीटी का छिड़काव या साफ सफाई का छिड़काव किया जा रहा है. स्थानीय लोग बुखार आने के बाद निजी क्लिनिक या चिकित्सकों से अपना इलाज करा रहे है.

लोगों का कहना है कि आर्य समाज पथ के लगभग सभी घरों में डेंगू के मरीज़ है. कई इलाज के बाद ठीक हो चुके है तो कई इलाजरत है. सदर अस्पताल के सिविल सर्जन भी इसी मुहल्ले से तालुकात रखते है. लेकिन उनके द्वारा भी कोई ठोस पहल नहीं की गई. लिहाज़ा स्थानीय लोग और मरीज खुद ही चिकत्सकों की सलाह का पालन करते हुए उनकी दवा और निर्देश पर इलाजरत है.

बहरहाल विगत एक सप्ताह से अधिक समय से इन मुहल्लों के साथ साथ ऐसे कई मुहल्ले है जहां डेंगू ने अपना पांव जमा रखा है लेकिन प्रशासन द्वारा ना साफ सफाई, डीडीटी का छिड़काव किया जा रहा है ना फॉगिंग ही कराई जा रही है. ऐसे में लोगों को स्वयं सचेत होकर साफ सफाई और मच्छरदानी का प्रयोग करना और बुखार आने पर चिकित्सक से संपर्क कर उनके निर्देशों का पालन करना ही सूझबूझ है.

पटना:  बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश के करीब 30 करोड़ की आबादी के श्रद्धा और स्वच्छता के महापर्व छठ का सोमवार सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समापन हो गया ।

बिहार में गंगा घाट सहित कोसी गंडक बागमती और छोटी नदियों पर आज सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज मुख्यमंत्री आवास में अपने परिवार के निकटतम सदस्यों के साथ उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया तथा राज्यवासियों की सुख, शांति एवं समृद्धि के लिये ईश्वर से प्रार्थना की।

पटना के दीघा घाट के आसपास रहने वाली महिला व्रती पैदल ही परिवार के अन्य सदस्यों के साथ नदी के तट पर पहुंची। इस दौरान वे छठी माई की गीत गा रही थीं। गंगा तट पर पहुंचने पर सबसे पहले व्रतियों ने आम की दातुन से मुंह धोया। उसके बाद नदी के पानी में स्नान करने का सिलसिला शुरू हुआ। स्नान करने के बाद व्रतियों ने भगवान भास्कर को जल अर्पित किया।

बेगूसराय: गांव की गलियों में गूंजते छठ के गीत और परदेसियों की बढ़ती संख्या ने लोगों को पर्व के समरसता भाव का एहसास कराना शुरू कर दिया है। छठ मतलब एक ऐसा पर्व जिसमें सभी सामाजिक भेदभाव समाप्त हो जाते हैं, हर घर से एक समान खुशबू और गीतों की आवाज आनी शुरू हो जाती है।

लोक आस्था का बिहारी पर्व छठ ग्लोबल हो चुका है, हर ओर छठ की धूम मच रही है। ऐसे में छठ जब ग्लोबल हुआ तो पूजा के प्रसाद भी बदलते चले गए। अब अमेरिका में लोग हल्दी का पत्ता कहां से लाएंगे, ऑस्ट्रेलिया में सुथनी कैसे मिलेगा, ब्रिटेन में लोग गन्ना कहां से लाएंगे, बोस्टन में बांस का सूप मिलना तो मुश्किल ही है। जिसके कारण विदेशों में रह रहे भारतीय वहां उपलब्ध फल और धातु से बने सूप में सूर्यदेव को अर्घ्य देने की तैयारी कर चुके हैं लेकिन बिहार का कोई सुदूरवर्ती गांव हो या वॉशिंगटन का जैसा आधुनिक विदेशी शहर, तमाम जगहों पर एक प्रसाद आज भी कॉमन है, जिसके बिना छठ पूजा संपन्न नहीं मानी जाती है, वह प्रसाद है गेहूं के आटे से तैयार किया जाने वाला ठेकुआ। लेकिन, कई ऐसी बातें हैं, चीजें हैं जिनका छठ पर्व के साथ चोली दामन का साथ बन गया है। बिहार का सुप्रसिद्ध व्यंजन छठ के बहाने दुनिया में छा गया है। छठ की पूजा संपन्न हो गई और प्रसाद में यदि आपने ठेकुआ नहीं दिया तो लोग जरूर सवाल उठाएंगे की ठेकुआ के बगैर प्रसाद अधूरा है

ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य को भी ठेकुआ बहुत प्यारा है, इसीलिए इस दौरान बना ठेकुआ सबसे स्वादिष्ट बनाया जाता है। शुद्ध घी का बना ठेकुआ स्वाद अनोखा हो जाता है। लोकगीत के मधुर धुनों पर झूमती महिलाएं जब ठेकुआ बनाती हैं तो इसमें ना सिर्फ चीनी और गुड़, बल्कि महिलाओं के सुमधुर गीत की मिठास भी घुल जाती है। ठेकुआ बनाने के लिए गेहूं सुखाने जब तमाम छतों पर महिलाएं जुटी तो लोकगीतों के लय ने अमीर-गरीब और ऊंच-नीच के तमाम भेदभाव मिट जाते हैं।

ठेकुआ के डिजाइन भले ही अलग-अलग होने लगे हैं, लेकिन इसका स्वाद आज भी वही है जो दशकों पूर्व था। अंतर बस इतना है कि पहले यह ठेकुआ प्रातः कालीन पूजा के बाद गांव-गाव में रिश्तेदारों तक पहुंचाए जाते थे और अब देश के कोने-कोने ही नहीं, विदेश तक भेजे जा रहे हैं। जिनके भी परिजन विदेश में रह रहे हैं, वहां कुरियर से यह भेजा जा रहा है। जबकि विदेश में छठ करने वाले परिवार कम ही सही लेकिन ठेकुआ जरूर चढ़ाते हैं। बिहार से बाहर किसी अन्य राज्य या विदेश में जाना हो अथवा भेजना हो ठेकुआ ज्यों-का-त्यों रहेगा, जबकि दूसरे प्रसाद खराब हो सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि बिहार में स्वादिष्ट व्यंजन निर्माण की समृद्ध परंपरा है। हमारे बुजुर्गों का मानना था कि बरसात आने से पहले घर में पर्याप्त चीजें बनाकर रख कर ली जानी चाहिए, जिससे बरसात के फीके मौसम में भी खाने का स्वाद बना रहे। पहले इतने होटल, परिवहन के साधन और खाने को लेकर अन्य तमाम विकल्प नहीं मौजूद होते थे। यदि कोई कहीं जा रहा है, तो ठेकुआ लेकर निकल गया, उस समय के सप्ताह भर की यात्रा हो अथवा आज के जमाने में कहा जाने वाला टूर, ठेकुआ भूख मिटाने का सबसे बेहतर साधन होता था और आज भी गांव वासियों के लिए सर्वोत्तम है। कहीं जाना होता मां ठेकुआ की पोटली बांध कर दे देते थे।

रास्ते भर खाने के लिए नहीं सोचना पड़ता, उसी तरह जब लौटना होता तो उधर से भी ठेकुआ ही दिया जाता। ठेकुआ खाने के लिए कहीं रुकना नहीं पड़ता है, खाते-खाते भी दो-चार किलोमीटर तय कर लेते थे। इसे कहीं रख दीजिए खराब नहीं होगा, स्वाद और अंदाज वही होगा। इसलिए इसकी बादशाहत आज भी कायम है। फिलहाल हर ओर छठ की धूम मची हुई है और घर-घर में ठेकुआ पकवान बनाने की तैयारी हो गई है। गेहूं सूख गया, चीनी और सुखा मेवा के साथ ही घी एवं रिफाइन भी आज आ गया है, चार दिवसीय महापर्व के उमंग में चप्पा-चप्पा डूब गया है।

छठ पर्व को पूरी तरह प्रकृति संरक्षण की पूजा माने तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस पर्व में लोग प्रकृति के करीब तो पहुंचते ही हैं उसमे देवत्व स्थापित करते हुए उसे सुरक्षित रखने की कोशिश भी करते हैं। वैसे देखा जाए तो भारतीय संस्कृति में कोई भी ऐसा पर्व नही है जिसका प्रकृति से सरोकार न हो।

दीपावली के छठे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल को षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला छठ महापर्व में पर्यावरण को विशेष महत्व दिया गया है। मुख्यतः यह त्योहार सूर्य पूजा, उषा पूजा, जल पूजा को जीवन में विशेष स्थान देते हुए पर्यावरण की रक्षा का संदेश भी देता है। इस पर्व में सभी लोग प्रकृति के सामने नतमस्तक होते हैं। अपनी अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे होते हैं।

यह पर्व इस संसार में अपनी तरह का अकेला ऐसा महापर्व है जिसमे धार्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक, आर्थिक और सामाजिक आयाम की सबसे ज्यादा प्रबलता है। सूर्य इस त्योहार का केंद्र है। भारतीय समाज में भगवान भास्कर का स्थान अप्रतिम है। समस्त वेद, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों में भगवान सूर्य की महिमा का विस्तार से वर्णन है। सूर्य जीव जगत के आधार है। सूर्य के बिना कोई भी भोग – उपभोग संभव नही है। अतः सूर्य के प्रति आभार प्रदर्शन के लिए छठ व्रत मनाया जाता है। ऐसा लोगो का मानना है कि सूर्य उन क्षेत्रों के सबसे उपयोगी देव हैं जहां पानी की उपलब्धता ज्यादा है। जब सूर्य समाधि में व्यक्ति स्वयं निर्जल होकर भास्कर को जल समर्पित करता है तो प्रकृति और व्यक्ति के अतुल्य समर्पण के दर्शन होते हैं। व्यक्ति के प्रकृति को स्वयं से उपर रखने के दर्शन होते हैं।

हमारी सूर्य केंद्रित संस्कृति कहती है कि वही उगेगा जो डूबेगा। जैसे सूर्य अस्त होता है वैसे ही फिर उदय होता है। अगर एक सभ्यता समाप्त होती है तो दुसरी जन्म लेती है। जो मरता है वह फिर जन्म लेता है। जो डूबता है वह फिर उबरता है। जो ढलता है वह फिर खिलता भी है। यही चक्र छठ है। यही प्राकृतिक सिद्धांत छठ का मूल मंत्र है। अतः छठ में पहले डूबते और फिर अगले दिन उगते सूर्य की पूजा स्वाभाविक है। व्रत करने वाला आभार जताने घर से निकल कर किसी तालाब, नदी, पोखरा पर जाता है और अरग्य देता है। इसका अर्थ होता है हे सूर्य आपने जल दिया है उसके लिए आभार लेकिन आप अपने ताप का आशीर्वाद भी हम पर बना कर रखें।

प्रकृति से प्रेम, सूर्य और जल की महत्ता का प्रतिक छठ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। पूजा स्थल को गाय के गोबर से लीपा पोती किया जाता है । वैज्ञानिकों के अनुसार, गाय के गोबर में प्रचुर मात्रा में विटामिन बी-12 पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। घर द्वार से लेकर हर मार्ग और नदी, पोखरा, तालाब, कुआं तक की सफाई से जल, वायु और मिट्टी शुद्ध होता है जो पर्यावरण को संरक्षित करता है। इस पर्व पर प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाला केला, दीया, सुथनी, आंवला, बांस का सूप, डलिया किसी न किसी रूप में हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। यह पर्व पूरी तरह से वैज्ञानिक महत्व एवं प्रदूषणमुक्त हैं।

प्रकृति का हनन रोकना भी छठ है। गंदगी, काम, क्रोध, लोभ को त्यागना छठ है। सुख सुविधा को त्याग कर कष्ट को पहचानने का नाम छठ है। शारीरिक और मानसिक संघर्ष का नाम छठ है। छठ सिर्फ प्रकृति की पूजा नही है। वह व्यक्ति की भी पूजा है। व्यक्ति प्रकृति की ही तो अंग है। छठ प्रकृति के हर उस अंग की उपासना है जिसमे कुछ गुजरने की, कभी निराश न होने की, कभी हार न मानने की, डूबकर फिर खिलने की, गिरकर फिर उठने की हठ है। यह हठ नदियों में, बहते जल में, और किसान की खेती में है। इसलिए छठ नदियों, सूर्य एवं परंपराओं की पूजा है। छठ पर्व से सबक लेते हुए हमें अपनी संस्कृति, प्रकृति के प्रति जागरुक होना चाहिए। अपनी संस्कृति एवं प्रकृति की मर्यादाओं, श्रेष्ठताओं को कभी नही भूलना चाहिए।

(लेखक प्रशांत सिन्हा पर्यावरण मामलों के जानकार एवं समाज सेवी हैं।)

Chhapra/ Garkha: आस्था के महापर्व छठ पर जिले के दो सूर्य मंदिरों में भक्तों की भीड़ जुटती है. जिले के गरखा प्रखण्ड के मिठेपुर स्थित इस सूर्य मंदिर में लोगों द्वारा मांगी मन्नत पूरी होती है. घोड़ों पर सवार भगवान सूर्य की आलौकिक विशालकाय प्रतिमा भक्तों को अपने आप अपनी ओर आकर्षित करता है.

आस्था के महापर्व छठ पर यहाँ भक्तो की भाड़ी भीड़ जुटती है. सूर्य उपासना के इस महापर्व पर श्रद्धालु यहाँ रहकर चार दिवसीय अनुष्ठान को पूरा करते है. ऐसी मान्यता है कि इस स्थान से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

भगवान सूर्य का यह मंदिर गरखा प्रखंड के मिठेपुर मुख्य मार्ग पर स्थित है.

Chhapra: छठ महापर्व को लेकर छठ घाट के साफ-सफाई और वहां व्यवस्था को लेकर पूजा समिति और जिला प्रशासन आपसी तालमेल से कार्य कर रहे हैं. छपरा शहर के अलीयर स्टैंड पर नगर निगम के द्वारा साफ सफाई कराई गई है. इसके साथ ही शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित नदी घाटों पर अलग-अलग पूजा समितियों के द्वारा घाटों का निर्माण कराया गया है. जहां आना-जाना सुलभ हो इसके लिए पूरी व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही प्रकाश और सुरक्षा की व्यापक इंतजाम किए गए हैं. कई पूजा समितियों के द्वारा गोताखोर और नाव की व्यवस्था भी की गई है. ताकि पर्व के दौरान होने वाली भीड़ में किसी की डूबने की संभावनाओं को टाला जा सके.

इसके साथ ही आने जाने वाले मार्ग, वाहन पार्किंग पर पूजा समितियां विशेष ध्यान दे रही हैं. ताकि व्रत को लेकर घाटों पर पहुंचने वाले लोगों के वाहन को भी सही ढंग से लगाया जा सके और जाम की समस्या उत्पन्न ना हो. पूजा समितियों के द्वारा पूरी कोशिश की जा रही है कि व्रतियों को कोई परेशानी ना हो. आम लोग भी जगह-जगह साफ सफाई में जुटे हैं. हर मोहल्ले में लोग जन सहयोग से साफ सफाई में जुटे हैं. पूरा जिला छठ में हो गया है.

बाजारों में भी जबरदस्त रौनक देखने को मिल रही है. जगह-जगह छोटी-बड़ी दुकानें सज गई है. जहां छठ पूजा से संबंधित फल और अन्य सामान बिक रहे हैं. कुल मिलाकर कोरोना के 2 सालों के काल के बाद इस बार सब लोग खुलकर त्यौहार मना रहे हैं. व्यापारियों में भी त्यौहार पर बाजार में आई रौनक से खुशी है.

Patna: बिहार के जाने माने रंगकर्मी, भिखारी ठाकुर के मंडली के सदस्य और लौंडा नाच को एक नई पहचान देने वाले पद्मश्री रामचंद्र मांझी का बुधवार को निधन हो गया. उन्होंने पटना में अंतिम सांस ली जहाँ वे कुछ दिनों पहले अस्पताल में ईलाज के लिए भर्ती कराये गए थे.

पद्मश्री रामचंद्र मांझी के निधन से कला जगत में शोक की लहर दौर गयी है. सभी उन्हें नमन कर रहें हैं.

सारण जिले के मढ़ौरा अनुमंडल के तुजारपुर ग्राम निवासी रामचंद्र मांझी ने लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की मंडली में कार्य किया था. वे भिखारी ठाकुर की मंडली के अंतिम सदस्य थें. उनके निधन से एक युग का अंत हुआ है.

साल 2021 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसके पूर्व उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिला  था. बिहार सरकार के कला संस्कृति विभाग के द्वारा भी उन्हें लाइफ टाइम अचेव्मेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था.

उनके करीबी रंगकर्मी जैनेन्द्र दोस्त ने फेसबुक के माध्यम से यह जानकारी साझा करते हुए लिखा “उस्ताद का साया सर से उठ गया, जिंदगी की जंग हार गए पद्मश्री रामचंद्र मांझी जी”