पुण्यतिथि विशेष: महान स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री थी स्वर्णलता देवी
स्वतंत्रता सेनानी स्वर्णलता देवी का जन्म 20 जनवरी 1910 को आधुनिक बांग्लादेश के खुलना में हुआ था. उनके पिता ललित मोहन घोषाल प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे और राष्ट्र गुरू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के परम मित्र थे. देश की परतंत्रता और परिवार के क्रांतिकारी विचारों का उनके कोमल मन पर अमिट प्रभाव पड़ा और उनका बालमन विद्रोह कर उठा. 1920 में जब गाँधीजी बंगाल आए तो उनके स्वागत के लिए वे कुमारतुली में एक विशाल जनसभा में उनका स्वागत करते हुए उन्हें दधीचि की संज्ञा दी. उनकी गतिविधियों को उस समय की पत्र पत्रिकाएं प्रमुखता से छापती थीं. यह समाचार अमृतबाजार पत्रिका में 15 सितंबर 1920 को छपा था.
अपने राजनीतिक दौरे में वे उस समय के सभी दिग्गज नेताओं जिनमें मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, दीनबंधु एन्ड्र्ज, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ भगवान दास, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ सम्पूर्णानन्द, शिवप्रसाद गुप्त, श्री वीवी गिरी, श्रीपाद अमृत डांगे आदि से मिलीं.
वे विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं. अपने पिता के साथ मिदनापुर जिले का दौरा कर सत्याग्रह का प्रचार करती थीं. हिन्दी सीखने वे संयुक्त प्रांत अवध गई थीं. उनकी वाणी में इतना ओज था कि तिलक फंड के लिए चंदा इकट्ठा करने में महिलाओं ने अपने आभूषण उतार कर दें दिए. वे महिलाओं की शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं और पर्दा प्रथा की घोर विरोधी. विधवाओं की समस्याएं उन्हें बहुत मर्माहत करती थीं. 1926 ई. में उन्होंने आसाम के कामाख्या में बालिका विद्यापीठ की स्थापना का प्रस्ताव रखा. इनकी सहानुभूति मजदूरों के साथ भी थी. वे उनके हितों के लिए आवाज उठाती रहती थीं.
1930 में उनकी शादी बनारस के उग्र क्रांतिकारी अमरनाथ चटर्जी के साथ हो गई. 1930 के असहयोग आंदोलन में सम्पूर्णानन्द जी की गिरफ्तारी के बाद उन्हें बनारस का अधिनायक मनोनीत किया गया. अन्य सभी नेताओं के साथ उनपर भी मुकदमा दर्ज किया गया और तीन माह की जेल और 100/ रूपया जुर्माना किया गया.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तारी से बचने के लिए छपरा में आकर छुप गईं और उस समय से यही उनका कर्मक्षेत्र हो गया. 
इस समय तक इनको दो पुत्र और एक पुत्री हो चुकी थी. 
1944 में सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में बहुत शानदार भाषण दिया तथा छपरा आने पर आजाद हिंद फौज के कैप्टन सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज का स्वागत नगरपालिका मैदान में किया. इन्होंने काशी में बालिका विद्यापीठ की स्थापना भी की. स्वतंत्रता मिलने के बाद इन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाने की बात चली तो इन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया. अत्यंत गरीबी में जीवन यापन करने के बाद भी इन्होंने अपनी अंतरात्मा से कोई समझौता नहीं किया.
वे एक महान कवयित्री भी थीं. इनका एक काव्य संग्रह आह्वान के नाम से हेराल्ड प्रिंटिंग प्रेस बहुत बाजार कलकत्ता से हुआ था. 
उनकी मृत्यु 27 अगस्त 1973 को हुई जिसके बाद अमिय नाथ चटर्जी के द्वारा आजतक छपरा में उनकी पुण्यतिथि मनाते आ रहे हैं. 
इस बार नया क्षितिज उनकी 46वीं पुण्यतिथि मना रहा है.
लेखिका कश्मीरा सिंह के इनपुट के साथ.

									
									
									
									
									

									
																																
									
																																
									
																																
									
																																
									
																																
                        
                        
                        
                        