हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ ना कुछ शौक रखता है. कुछ लोग शौक को मात्र मनोरंजन तक ही सीमित रखते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो शौक को जीवन के प्रमुख कार्यों में सम्मिलित कर समाज को एक सन्देश देने का प्रयास करते हैं.

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डॉ. विजय कुमार सिन्हा

छपरा के प्रमुख शिक्षाविद् और जयप्रकाश विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार सिन्हा ने भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय डाक टिकटों का एक अनोखा संग्रह कर शौक की एक नयी परिभाषा प्रस्तुत की है. 

छपरा टुडे से हुई बातचीत में प्रो. सिन्हा ने बताया कि जब वह 10वीं कक्षा के छात्र थे तभी से टिकट संग्रह करने का शौक उनके मन में जगा. उस समय 4 आना से लेकर 8 आना (तत्कालीन पैसा) तक के डाक टिकट मिलते थे. प्रो. सिन्हा ने छात्र-जीवन में पत्र के माध्यम से देश-विदेश में कई मित्र (पेन-फ्रेंड) बनाए थे. जब भी उनके मित्रों के पत्र का जवाब आता तो लिफाफे पर काफी आकर्षक और नए-नए प्रकार के डाक-टिकट भी लगे रहते थे.

प्रो. सिन्हा ने यादगार के तौर पर उन टिकटों को संजोकर रखना शुरू किया और यहीं से उनका ये शौक जूनन में बदल गया. तब से लेकर आज तक प्रो. सिन्हा ने भारत समेत अन्य कई देशों के दुर्लभ डाक टिकटों का संग्रह किया है.

प्रो. सिन्हा ने बताया कि उनके पास ब्रिटिशकाल से लेकर भारतीय राजनीति, विज्ञान, पशु-पक्षियों, साहित्यकार, हरित क्रांति, प्रमुख इवेंट्स, इंडियन आर्मी, प्रमुख समाजसेवी, वैज्ञानिक, भारतीय धरोहर, भारतीय संस्कृति, प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, अंतरराष्ट्रीय समाज सुधारक, कलाकार, खेल और खिलाड़ी एवं ऋषि-मुनियों के 1500 से भी ज्यादा टिकटों का संग्रह है. 

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डॉ. सिन्हा द्वारा संग्रहित डाक टिकटें 

प्रो. विजय कुमार सिन्हा ने डाक टिकटों एक एल्बम बनाया है जिसमें विषयवार सभी टिकटों को सजाया गया है. भारत के राष्ट्रपति पर जारी लगभग सभी डाक टिकटों का संग्रह उनके पास मौजूद है. चित्तौड़गढ़ के विजय-स्तम्भ को दर्शाती एक आने की दुर्लभ डाक टिकट, छपरा के स्वतंत्रत सेनानी मजहरूल हक़, महाराजा रणजीत सिंह, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अब्राहम लिंकन, मैडम क्यूरी, मुंशी प्रेमचंद और माखनलाल चतुर्वेदी पर जारी डाक टिकट उनके कुछ खास संग्रह हैं. इसके अलावा प्रो. सिन्हा के पास फर्स्ट डे कैंसिलेशन एवं स्पेशल ब्रोशर मोहर की डाक टिकटें भी मौजूद हैं.

प्रो. सिन्हा कुछ स्तरीय डाक टिकट प्रदर्शनियों में भी सम्मिलित हो चुके है. जहां उन्हें इस टिकट संग्रह के लिए सम्मानित भी किया जा चूका है. 

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प्रो. सिन्हा के अनुसार “डाक टिकट भारत के अलावा अन्य देशों की सभ्यता और संस्कृति को जानने और समझने का एक महत्वपूर्ण जरिया है. युवा पीढ़ी को आज के इंटरनेट की रफ़्तार के बीच डाक टिकटों के महत्व को भी समझना चाहिए”. 

छपरा टुडे के हिमांशु से बातचीत करते डॉ. सिन्हा
छपरा टुडे के हिमांशु से बातचीत करते डॉ. सिन्हा

 

आज के दौर में डाक टिकटों का प्रचलन जरूर कम हो गया है पर पुराने समय में एक दूसरे के सन्देश को पत्र के माध्यम से पहुँचाने का एक मात्र जरिया डाक सेवा और डाक टिकटों की याद आज भी कई लोगों के दिलों में ताजा है.

 

 

 

प्रभात किरण हिमांशु के साथ छपरा टुडे ब्यूरो, Photo: कबीर अहमद   

धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी/सुरभित दत्त सिन्हा 

किसी भी देश में समय-समय पर प्रचलित मुद्राओं में वहां के इतिहास की झलक मिलती है. जब किसी एक ही स्थान पर विभिन्न देशों की प्राचीन मुद्राओं का संग्रह हो तो यह अपने आप में अद्भुत है. छपरा शहर के शत्रुघ्न प्रसाद उर्फ नन्हे ने विभिन्न देशों के प्राचीन सिक्कों तथा नोटों का अनूठा संग्रह कर रखा है. उनके पास मुगलकालीन एवं ईस्ट इंडिया कंपनी तथा ब्रिटिश क्राउन की याद दिलाने वाले प्राचीन सिक्कों के साथ ही एशिया और यूरोप के विभिन्न देशों के पुराने नोटों का बेहतरीन खजाना है.

शहर के मुख्य चौराहे नगरपालिका चौक पर चाय की दूकान लगाने वाले शत्रुधन प्रसाद उर्फ नन्हे को 8 साल की उम्र (1980) से ही सिक्कों को संग्रह करने का शौक लग गया. समय गुजरने के साथ ही उनका यह शौक जुनून में बदल गया. उन्हें पता चले कि किसी के पास कोई प्राचीन सिक्का है तो वे उससे संपर्क कर उसे अपने संग्रह में शामिल करते. 

अपनी दूकान पर चाय बेचते शत्रुघ्न
अपनी दूकान पर चाय बेचते शत्रुघ्न

इस समय उनके पास करीब 175 देशों के विभिन्न प्राचीन सिक्के और करेंसी नोटों का संग्रह हैं. इनमें 16वीं सदी में मुगलकालीन कुछ सिक्के तो ऐसे हैं जिन पर चांद, सितारा के साथ ही अरबी भाषा में लिखा है. ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी अनेक सिक्के उन्होंने सहेज कर रखे हैं. ब्रिटिश शासन के लंबे दौर में भारत में प्रचलित रहे किंग जार्ज पंचम व षष्टम तथा रानी विक्टोरिया की तस्वीर वाले तमाम सिक्के अपने इतिहास को समेटे हैं. 4

आज की पीढ़ी को आश्चर्य हो सकता है कि इस देश में कभी एक पैसे का तांबे का सिक्का भी चलन में था. इस संग्रह में एक पैसे के सैकड़ों सिक्के आज भी चमचमा रहे हैं. शत्रुघ्न के पास सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि नेपाल, बंग्लादेश, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, जर्मनी, यूरोपियन देशों समेत 175 देशों के पुराने नोट व सिक्के एकत्र हैं. 2

शत्रुघ्न को अपने जीवन में काफी संघर्ष भी करना पड़ा. चाय की दूकान से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है. वह कहते हैं कि “सिक्कों, नोटों के संग्रह में उन्हें अपने पिता स्व. सुखनंदन प्रसाद तथा भाई मोहन जी का पूरा सहयोग मिलता रहा है”. प्राचीन सिक्कों, नोटों के संग्रह का उद्देश्य पूछे जाने पर वह कहते हैं कि “सिर्फ शौक है. मेरे इस शौक को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में जगह मिले”. 3

मुद्राओं के संकलन का शौक रखने वाले शत्रुघ्न के पास अपना घर नही है. जन्म से लेकर वर्तमान तक किराये के मकान में रहते चले आ रहे है. शत्रुघ्न की पत्नी ने बताया कि विदेशी मुद्राओ का संकलन के शौक में वह अपने पति का सहयोग करती है. हालाँकि इतनी विदेशी मुद्राओं को एकत्र करने वाले के बच्चे पैसे के आभाव में सरकारी स्कूलो में पढाई कर पाते है.