अपराधी का इंटरव्यू इस शीर्षक से आप भी सोचेंगे कि अपराधी का इंटरव्यू छापने, बताने की क्या जरूरत पड़ी. सिस्टम, समाज और मजबूरी इंसान को अपराध और अपराध के रास्ते पर कब ला खड़ा करती है पता नही चलता.

पढ़िए कबीर अहमद से सुपारी किलर की बातचीत के अंश….

भूख, गरीबी, बेरोजगारी और लाचारी इन्सान को ज़िन्दगी किस मोड़ पर ला खड़ा करेगा वो इन्सान को भी मालूम नही पड़ता. महज 20 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रख देश के विभिन्न राज्यों में अपने खौफ का लोहा मनवाने वाला 28 की उम्र में ज़िन्दगी के उस मोड़ पर पहुँच गया जहाँ अपनों के साथ जन्म देने वाली माँ से भी नज़रे मिलाने की हिम्मत नही रही.

10 फ़रवरी को पुलिस की कस्टडी में आये मोस्ट वांटेड कुख्यात राजू पटेल उर्फ़ राजू सिंह ने बताया कि कोई अपनी ज़िन्दगी पुलिस की खौफ और जंगल-झाड़ियों में क्यों गुजारना चाहेगा. कौन नही चाहता ज़िन्दगी अपने माँ-बाप और परिवार के साथ बीते. घर की गरीबी और समाज में दबंगों के दबदबे ने मुझे अपराध की दुनिया आने को मजबूर कर किया. जब इस दुनिया में मैंने कदम रखा तो पीछे मुड़कर नही देखा. यहाँ से निकलने की कोशिश की लेकिन देर हो चुकी थी और मैं 20 लोगों की हत्या कर चूका था.

उत्तर प्रदेश बलिया जिले के दुबहर थाना क्षेत्र के कछुरामपुर गाँव का रहने वाला राजू पटेल ने आपबीती सुनाते हुए कहा कि मैंने गरीबों को नही सताया है. एक बार सुपारी लेकर मर्डर करने गया था लेकिन उसकी गरीबी देख अपने परिवार की याद आई और मै बैरंग वापस लौट आया. मेरी लड़ाई सरकार और सामंतवाद से है. अन्तः उसने बताया कि मै इस अपराध की दुनिया को छोड़ समाज की मूल धारा से जुड़कर जीना चाहता हूँ.

राजू पटेल की बातें किसी फिल्म की स्क्रिप्ट की जैसी लगती है. उसकी बातों में कितनी सच्चाई है यह तो वह ही जाने पर अपराध की दुनिया का यह सुपारी किलर आज अपने कर्मों की सजा काट रहा है. पश्चाताप करने के आलावे उसके पास कोई चारा नही है.

बताते चलें कि सारण पुलिस द्वारा 9 फ़रवरी को बनियापुर थाना क्षेत्र के पिरौटा स्थित बजरंग बली के मंदिर के पास से इस कुख्यात अपराधी को गिरफ्तार किया गया. पुलिस कप्तान हर किशोर राय ने बताया कि देश के कई राज्यों में दर्जनों लूट-हत्या के कई मामले दर्ज है.

नोट: इस इंटरव्यू के माध्यम से अपराधी को महिमा मंडित करना हमारा उद्देश्य नही.

(प्रभात किरण हिमांशु)

जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष है. पर संघर्ष जब अपनी पराकाष्ठा पर हो तो वेदना का रूप ले लेता है. संघर्ष कभी सफल होने के लिए होता है तो कभी जीवन यापन के लिए. हर संघर्ष की अपनी ही एक कहानी है.

छपरा के कटहरीबाग की 14 वर्षीया ‘लक्ष्मी’ भी जीवन में कठिन संघर्ष के दौर से गुजर रही है. लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी छपरा टुडे की सिर्फ एक रिपोर्ट ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है.

छपरा टुडे #SpecialStory  में हम लक्ष्मी के संघर्ष को आपतक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं.

लक्ष्मी 14 वर्ष की एक छोटी बच्ची है. इस उम्र में जहां लक्ष्मी जैसी बच्चियां पारिवारिक जिम्मेवारियों से मुक्त बचपन का भरपूर आनंद उठती हैं. वहीं लक्ष्मी अपने परिवार की जिम्मेदारियों का वहन करने के लिए छपरा के नगरपालिका चौक पर ठेले पर पकौड़े बेचती है.

लक्ष्मी के पिता श्यामबाबू गुप्ता को माउथ कैंसर है और उनका इलाज चल रहा है. लक्ष्मी की माँ पति की देख-रेख में लगी रहती है. घर की आर्थिक स्थिति बद्तर है. लक्ष्मी अपने छोटे भाई बहन और पिता के इलाज के लिए रोजाना नगरपालिका चौक पर लोगों को गरमागरम पकौड़े बनाकर खिलाती है. जो आमदनी होती है उसी से किसी तरह घर का गुजारा चलता है. लक्ष्मी की छोटी बहन 10 साल की शिवानी भी काम में उसकी मदद करती है.

कई लोग वहां पकौड़े खाने आते हैं. कुछ लोग लक्ष्मी के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हैं तो कुछ पकौड़े का स्वाद लेकर पैसे देकर चले जाते हैं और लक्ष्मी अपने हाल पर खड़ी अपना दूकान चलाती रहती है. रात को घर जाकर लक्ष्मी पढाई भी करती है और अपने भाई बहनों का ख्याल  भी रखती है. ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी दूकान पर आएं उसके लिए लक्ष्मी ने ठेल पर मदद के गुहार की पोस्टर भी लगा रखी है.

नगरपालिका चौक से प्रतिदिन बड़े-बड़े नेता और आलाधिकारी गुजरते हैं. कमोबेस सबकी नजर ठेले पर जाती है पर विकास के दावों का बड़ा-बड़ा भाषण देने वाले नेता लक्ष्मी की इस विवशता पर मौन है.

लक्ष्मी के संकल्प के आगे सभी सरकारी वादे बौने साबित हो रहे हैं. रोजगार के लिए पकौड़े बेचना गुनाह नहीं है. पर लक्ष्मी जैसी बच्ची जिसे इस उम्र में उन्मुक्त गगन के छांव में मासूम बचपन का पूरा आनंद लेना था वो आज दो वक्त के रोटी की जुगाड़ और पिता के इलाज के लिए पकौड़े बेच रही है.

छपरा टुडे #SpecialStory के माध्यम से आपसे आग्रह करना चाहता है कि आप इस छोटी बच्ची की मदद में आगे आएं. लक्ष्मी को जरूरत है समाज के उन रक्षकों की जो बचपन की मासूमियत और भावनाओं को समझते हैं. वैसे लोग जिन्हें ख्याल है देश के बच्चों का. इतनी छोटी उम्र में लक्ष्मी के इस मजबूत हौसले को हमारा पूरा सपोर्ट है.