सीवान: पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकाण्ड में गिरफ्तार मुख्य आरोपी लड्डन मियां की शुक्रवार को सीवान सीजेएम कोर्ट में पेशी हुई. कोर्ट ने पेशी के दौरान लड्डन से उसके नार्को टेस्ट के बारे में उसकी राय को जाना, जिस पर लड्डन ने अपना नार्को टेस्ट कराने से साफ़ इनकार कर दिया.

आरोपी लड्डन ने अपने नार्को टेस्ट करने से इनकार सम्बन्धी एक लिखित आवेदन भी कोर्ट को समर्पित किया है.

गौरतलब है कि लड्डन मियां को पुलिस ने तीन दिनों की रिमांड पर लिया था. बावजूद इसके उसने हत्या के संबंध में पुलिस को कुछ भी नहीं बताया था. जिसके बाद पुलिस के द्वारा उसके नार्को टेस्ट कराने के लिए कोर्ट से अनुमति हेतु आवेदन दिया है.

छपरा/सीवान: सारण जिला पत्रकार संघ की ओर से मंगलवार को सीवान के दिवंगत पत्रकार राजदेव रंजन के परिजनों को सवा लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई. सारण जिला के पत्रकारों के प्रतिनिधि मंडल ने सीवान स्थित उनके आवास पर पहुंचकर पत्नी आशा रंजन और बेटी साक्षी रंजन को संबंधित राशि की जमा रसीद सौंपी.

संघ द्वारा ये रुपये दिवंगत पत्रकार की सुपुत्री साक्षी के सुकन्या समृद्धि योजना के खाते में जमा किये गये हैं ताकि उसके भविष्य की जरूरत के समय काम आ सके. इस कार्य में जिले के तमाम पत्रकारों के अलावा कुछ सामाजिक संगठनों और विभिन्न वर्ग के लोगों ने भी सहयोग किया है.

प्रतिनिधि मंडल में राकेश कुमार सिंह, विद्याभूषण श्रीवास्तव, सुशील कुमार सिंह, पंकज कुमार, मुकुंद सिंह, देवेन्द्र श्रीवास्तव, जाकिर अली, शकील हैदर, मुकेश कुमार यादव और कबीर अहमद शामिल थे.

पत्रकारों ने बिहार सरकार द्वारा अब तक कोई आर्थिक सहायता नहीं दिये जाने या इस सम्बन्ध में किसी तरह की घोषणा नहीं किये जाने पर आश्चर्य जताया. पत्रकार संघ ने इसे पीड़ित परिवार के प्रति नाइंसाफी बताया. संघ ने सरकार इस पर जल्द विचार कर 25 लाख अनुग्रह राशि देने और पत्नी की शिक्षिका की नौकरी को स्थायी करने की मांग की. संघ ने अपराधियों को जल्द सजा दिलाने की भी मांग की.

प्रभात किरण हिमांशु की रिपोर्ट

आपराधिक गतिविधियों के लिए देश भर में चर्चित बिहार का जिला सीवान एक बार फिर सुर्ख़ियों में है. इस बार चर्चा का केंद्र बना है पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड. सीवान के हिन्दुस्तान अखबार के प्रभारी की बीच बाजार गोली मार कर हत्या कर दी जाती है. हालांकि सीवान के लिए ऐसी घटनाएं कोई नई बात नहीं रही है पर अपनी कलम को ताकत बनाकर मुद्दों को उजागर करने वाले एक साहसिक पत्रकार को जिस प्रकार गोली मारी जाती है वो विरोध के निम्न स्तर का परिचायक है.

पत्रकार जब अपनी लेखनी से सच को उजागर करने का प्रयास करता है तो कई बार उससे प्रभावित लोगों में विरोधाभास झलकता है पर विरोध के रूप में किसी की हत्या कर देना सर्वथा अनुचित है.

13 मई की शाम सीवान में जो हुआ उससेआज पूरा देश सोंचने पर मजबूर है. अपराधियों के लिए भले ही ये हत्याकांड एक पेशेवर अपराध रहा हो पर उस अपराध से पत्रकारिता जगत एवं आम समाज में जो खौफ़नाक दर्द उठा है उसकी कराह सालों तक बरक़रार रहेगी.

दरअसल ये हुआ क्यों! पुलिस बता रही है कि हत्या में पेशेवर अपराधी संलिप्त हो सकते है. राजदेव रंजन मुख्यधारा के पत्रकार थे. 25 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय थे. ऐसे में अपनी बेबाक लेखनी से कई लोगों की नजर की किरकिरी बनना स्वाभाविक है. पूर्व में भी उनपर हमले हुए और कई बार धमकियां मिली पर हत्या करने का दुस्साहस अपराधी कभी जुटा नहीं सके. 13 मई को अपराधियों का दृष्टिकोण एकदम से बदल जाना और राजदेव रंजन की नृशंस हत्या कर देना विरोधाभास का परिणाम है या सोंची समझी साजिश का नतीजा पुलिस इसकी जाँच कर रही है.

सीवान में अपराध की घटना हो और बाहुबली पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन की चर्चा ना हो ऐसा हो नहीं सकता. राजदेव रंजन हत्याकांड के बाद पुलिस सक्रिय हो गई है. शक की सुई मो.शहाबुद्दीन की ओर भी इशारा कर रही है. पर ऐसा क्यों है! हत्याकांड के बाद पुलिस शक के आधार पर पूर्व सांसद के करीबी शार्प शूटर मुंशी मियां को शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर से गिरफ्तार करती है. ये वही मुंशी मियां है जिसपर शहाबुद्दीन के इशारों पर कई हत्याओं में संलिप्त रहने का आरोप लग चूका है. पुलिस का ये मानना है कि हत्या के सूत्र सीवान जेल से जुड़े हो सकते हैं ऐसे में मो. शहाबुद्दीन को एहतियात के तौर पर सीवान जेल से भागलपुर जेल शिफ्ट कर दिया गया है. हालांकि प्रशासनिक कारणों का हवाला देकर सात अन्य कुख्यातों को भी बक्सर एवं मोतिहारी जेल शिफ्ट किया गया है पर अबतक हत्याकांड में संलिप्त लोगों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पायी ऐसे में कैदियों का जेल ट्रान्सफर पुलिस की दोहरी मानसिकता को दर्शाता है. अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस अब भी मशक्कत कर रही है.

पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड का अपना एक राजनैतिक नजरिया भी है. विपक्ष इसे सरकार की नाकामी बताने में जुटा है. सरकार को कठघड़े में खड़ा करने की हर मुमकिन कोशिश की जा रही है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकार के परिवार के लिए ना तो कोई खास मुआवजे का ऐलान किया है ना ही उनके परिवार से मिलने तक की जहमत उठाई है. साथ ही छोटे बड़े किसी भी मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखने वाले लालू प्रसाद यादव भी इस घटना क्रम से अबतक अपनी दूरी बनाये हुए हैं.

चुकि मो.शहाबुद्दीन राजद के नेता हैं और लालू यादव के खासमखास भी ऐसे में अगर शाहबुद्दीन जांच के घेरे में आते हैं तो नीतीश कुमार को इस मामले में डिफेंड करना मुश्किल हो सकता है. शायद यही कारण है कि सुशासन बाबू अब तक चुप्पी साधे हुए हैं. बीते दिनों पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी इस मुद्दे का जिक्र कर चुके हैं.

इन सब के बीच दिवंगत राजदेव रंजन का परिवार न्याय के लिए इन्तजार में है. राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन की आँखे रो-रो कर सूख चुकी हैं. उनके बेटे और बेटियों को हौसले की जरूरत है. तमाम पत्रकार संगठन एवं उससे जुड़े लोग अपनी तरफ से पूरी कोशिश में जुटे है कि स्व.राजदेव के परिवार को आर्थिक सहायता और इन्साफ मिल सके. आज पूरे देश में चर्चा का केंद्र बना राजदेव हत्याकांड वक्त के साथ कई सवाल खड़े कर चूका है. देखने वाली बात होगी कि जीत कलम की होती है या हमेशा की तरह गोलियों की आवाज से सच को दबाने का इरादा कामयाब होगा.