Chhapra: गर्मी और धूप की तपिश की मार झेल रहे छपरा नगर निगम क्षेत्र वासियों को दो दिनों की बारिश ने राहत क्या दी, उल्टे यह लोगों के लिए आफ़त बन गई। कूलर और एसी के सहारे गर्मी को सहने वाले शहरवासियों को अब बारिश में घर से निकलने के दौरान पैर रखने के लिए सड़क खोज रहें हैं। हर साल की तरह इस साल भी कई सड़कों का आलम यह है कि आप नालियों में चलेंगे या सड़क पर इसका पता नही है।
रेड़ी पटरी और ठेला खोमचा वाले जगह की तलाश में है, जहां वह अपनी दुकान लगाकर आज कमाई करें। जिससे की उनके परिवार को भोजन नसीब हो सकें।
छपरा में विगत दो दिनों से बारिश हो रही है। शहर के कई इलाके पूरी तरह जलमग्न है। मौना चौक, साँढा रोड, पंचायत भवन, काशी बाजार, गुदरी बाजार, भगवान बाजार, अस्पताल चौक, मलखाना चौक सहित दर्जनों मुख्य सड़के जलमग्न है। हालात ऐसे है की पैदल चलने के लिए राहगीर सड़क खोज रहे है कि आखिर पैर कहा रखें. वहीं दो पहिया और चारपहिया वाहन चालक भगवान का नाम लेकर ही आगे बढ़ रहे है. सड़क में नाली है या नाली में सड़क इसका पता नही है फिर भी जान हथेली पर लिए किसी तरह शहर वासी जलजमाव में चल रहे है.
सड़कों के जलजमाव ने छपरा नगर निगम के बारिश के पूर्व नालियों के साफ सफाई की पोल खोल कर रख दी है. निगम द्वारा चलाए जा रहा मिशन 40 कितना सफल हुआ यह जलजमाव से पता चलता है। लिहाजा प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हालात जस के तस बन गए हैं।
बारिश में जलजमाव ना हो इसके लिए शहर की नालियों की सफाई हुई। नालों पर बने स्लैब तोड़े गए। अब बारिश से उन सड़कों में फिर से जलजमाव है। जलजमाव से उन सड़कों पर चलना दुभर है।
शहर के एकमात्र जलनिकासी का श्रोत खनूआ नाला जनप्रतिनिधियों के लिए दुधारू गाय और राजनीति का केंद्र बना है। विगत विधानसभा चुनाव में खनूआ नाला के जीर्णोधार की शुरुआत हुई। काम शुरू हुआ लेकिन अब अधर में है। पुनः सरकार ने राशि बढ़ाई है लेकिन अबतक काम पूरा नही हुआ। शहर के लोगों के इन समस्याओं की ना सांसद को चिंता है ना विधायक को, विकास कार्यों की गाथा सुनाने वाले ये जनप्रतिनिधि निर्माण एजेंसियों के सवाल जबाब करने से भी हिचक रहें हैं। जिससे निर्माण कार्य जैसे तैसे चलने से जनता को कोई लाभ होता नहीं दिख रहा है।
बहरहाल बारिश शुरू है जलजमाव होना लाजमी है। शहरवासियों के पास इसी व्यवस्था में जीवन यापन करना मजबूरी है। मुख्य सड़कों पर जलजमाव के बाद गली गलियारों की स्थिति और भी भयावह है। विपरीत परिस्थितियों में शहरवासी जीने के आदी हो चुके है।
जनता के सेवक कहे जाने वाले लोग फिलहाल योजनाओं कि राशियों को गिनने और आकड़ों के खेल में व्यस्त हैं। छपरा को स्वच्छ सुंदर और बेहतर बनाने के लिए रांची से लेकर कोलकाता तक की दौर लगाई जा रही, लेकिन धरातल पर व्यवस्था नदारद है।
नगर निगम क्षेत्र में सेल्फी प्वाइंट बनाए जाने की योजना है, लेकिन शहर में जलनिकासी, सुव्यवस्थित सब्जी बाजार के लिए कोई योजना नहीं है। प्रतिदिन एजेंसी को डेढ़ लाख रुपए देकर सफाई की जाने वाली सड़क पर लोग कचड़ा में पैदल चलने को मजबूर हैं।
जिस शहर में जलजमाव से सड़कों पर नाव चलाने की स्थिति उत्पन्न हो गई हो वहाँ के जनप्रतिनिधि के द्वारा जनता से बदलाव के लिए समर्थन की उम्मीद भी बेमानी होगी।