चैती छठ के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य

चैती छठ के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य

चैती छठ के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य

chhapra: चैत्र मास में मनाया जाने वाला लोक आस्था के महापर्व चैती छठ के तीसरे दिन जिले के गंडक, घाघरा, गंगा  नदी सहित नहर,पोखर आदि में गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया गया। चैती छठ को लेकर बड़ी संख्या में छठव्रती छठ घाट पर जमा हुए और विधि विधान के साथ भगवान भास्कर की पूजा अर्चना कर डूबते सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया।

पंचांग के अनुसार शाम 6 बजकर 40 मिनट तक अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य का समय था, जिसको लेकर छठव्रती दोपहर बाद से ही प्रकृति प्रदत्त फल फूल और बांस के बने सूप और डाला के साथ छठघाट पर पहुंचे। घाट छठ से जुड़े लोक गीतों से गुंजायमान रहा। छठव्रती भी छठ गीतों को गुनगुनाते रहे।

छठ को लेकर पंडित विनोद मिश्रा ने बताया कि किसी भी पर्व त्यौहार में उगते हुए सूर्य देव की ही पूजा अर्चना की जाती है, लेकिन छठ पूजा इसलिए भी खास है, क्योंकि यहां उगते और डूबते सूरज की पूजा की जाती है। मान्यता ऐसी है कि सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने से जीवन में चल रही सभी कठिनाइयां दूर होती है। साथ ही सूर्य देव और छठी मां की कृपा से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।

पौराणिक ग्रंथों में भी छठ का उल्लेख पाया गया है।यह ऐसा पर्व है जो पूरी तरह प्रकृति को समर्पित है और छठव्रती 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखकर कठोर तप करते हुए भगवान भास्कर की पूजा अर्चना करते हैं।उन्होंने बताया कि चैती छठ पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक गर्मी और प्रकाश प्रदान करने के लिए सूर्य को धन्यवाद देने का एक तरीका माना गया है।सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने से कई तरह की बीमारियां दूर होती है।कार्तिक मास के साथ चैत्र मास में भी छठ पर्व को लेकर भक्तों की आस्था बढ़ती जा रही है।

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