राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को ‘पुअर लेडी’ कहने पर गुस्से में भाजपा, कहा- सोनिया माफी मांगें

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को ‘पुअर लेडी’ कहने पर गुस्से में भाजपा, कहा- सोनिया माफी मांगें

नई दिल्ली, 31 जनवरी (हि.स.)। संसद के बजट सत्र के पहले दिन कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के अभिभाषण पर अपनी प्रतिक्रिया में उन्हें “पुअर लेडी” कह दिया। सोनिया गांधी की इस टिप्पणी की निंदा करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सोनिया गांधी इस टिप्पणी के लिए आदिवासी समुदायों से माफी मांगें। उन्होंने एक्स पर अपने संदेश में कहा कि भाजपा का हर एक कार्यकर्ता राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के लिए सोनिया गांधी द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द “बेचारी” (पुअर) की कड़ी निंदा करता है। ऐसे शब्दों का जानबूझकर इस्तेमाल कांग्रेस पार्टी की अभिजात्य मानसिकता, गरीब विरोधी और आदिवासी विरोधी सोच को दर्शाता है। कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रपति और देश के आदिवासी समुदायों से बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए।

जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया पर दिए गए अपने बयान में कहा कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा राष्ट्रपति को संदर्भित करने के लिए पुअर लेडी वाक्यांश का उपयोग बेहद अपमानजनक है और सर्वोच्च संवैधानिक कार्यालय की गरिमा के लिए विपक्ष की निरंतर उपेक्षा को रेखांकित करता है। दुर्भाग्य से, यह कोई अकेली घटना नहीं है। जब राष्ट्रपति सरकार की उपलब्धियों पर प्रकाश डाल रही थीं, तो अपनी सामंती मानसिकता से प्रेरित विपक्ष ने पिछड़े वर्गों और महिलाओं के सशक्तिकरण का मजाक उड़ाने का फैसला किया, जो कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लाया गया परिवर्तन था।

नड्डा ने कहा कि राष्ट्रपति के संबोधन में बढ़ती अस्थिर दुनिया में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता के स्तंभ के रूप में भारत का उदय, महिलाओं के नेतृत्व में विकास, आयुष्मान भारत योजना के तहत 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के छह करोड़ वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा, प्रधानमंत्री आवास योजना का विस्तार, पीएम स्वनिधि योजना के माध्यम से सात दशकों में पहली बार रेहड़ी-पटरी वालों और छोटे दुकानदारों को बैंकिंग प्रणाली में शामिल करना शामिल था। आज सभी का ध्यान भारत की उल्लेखनीय प्रगति का जश्न मनाने पर होना चाहिए था लेकिन राजनीतिक लाभ लेने के लिए बार-बार, विपक्ष ने संवैधानिक मानदंडों की घोर उपेक्षा की है। बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति अनादर की अपनी विरासत को अशोभनीय सहजता से आगे बढ़ाया है। शायद अब समय आ गया है कि विपक्ष देश के सर्वोच्च पद का बार-बार अपमान करने के बजाय लोकतंत्र के मंदिर में सार्थक चर्चा पर ध्यान केंद्रित करे।

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