Chhapra: 14 सितंबर हिंदी दिवस के अवसर पर हिन्दी विभाग, राजेंद्र कॉलेज, छपरा के तत्वावधान में प्राचार्य डॉ. उदय शंकर पांडेय के मार्गदर्शन में हिंदी सप्ताह का आयोजन आज से आरंभ हुआ।
सप्ताह भर चलने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में प्रश्नोत्तरी, निबंध, काव्य पाठ, श्रुतिलेख, पत्र लेखन आदि प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी जिसमें सभी संकाय के स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर में अध्यनरत छात्र छात्राएँ भाग लेंगे।
उद्घाटन समारोह में कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. उदय शंकर पांडेय ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी की जननी के रूप में संस्कृत को स्वीकार्य किया जाता है। दोनों का संबंध घनिष्ठ है। फ्रेंच के 60 प्रतिशत शब्द संस्कृत के हैं। उन्होंने भारतीय मूल्य संवाहक के रूप में हिन्दी को महत्वपूर्ण निरुपित किया।
अगली कड़ी में सभा को संबोधित करते हुए शिक्षक संघ के सचिव डॉ. प्रशांत कुमार सिंह ने हिंदी के प्रति गौरव भाव रखने और अपने दैनन्दिन जीवन में इसका आधिकारिक उपयोग करते हुए एक अधिक समर्थ भाषा के रूप में स्थापित करने हेतु अपनी भूमिका सुनिश्चित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि जन -जन को मिलाने वाली भाषा ही हिंदी है। इसे 14 सितम्बर 1949 को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। राष्ट्रीय एकता व अखंडता को अक्षुण रखना ही हिंदी दिवस की सार्थकता है।
दर्शन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ देवेश रंजन ने अपने उद्बोधन में कहा कि वैज्ञानिक खोजों एवं अन्य चीजों को अपनी मातृभाषा में लाकर सहजतापूर्ण तरीके से समझना चाहिए। भूगोल विभागाध्यक्ष डॉ अनुपम सिंह ने कहा कि हमें हिंदी के प्रति आत्मविश्वास व गर्व होना चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया की देश की समृद्ध विरासत को सँभालने और आगे बढ़ाने के लिए उन्हें तत्पर रहना चाहिए।
वाणिज्य विभाग की अध्यक्ष डॉ. अर्चना उपाध्याय ने इसे चेतन अचेतन हर अवस्था में अपने अन्तःकरण में अवस्थित रहने वाली स्वाभाविक भाषा के रूप में रेखांकित किया| अगली कड़ी में हिन्दी के सहायक प्राध्यापक डॉ. सुनील कुमार पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में आग्रह किया कि हमे शिक्षा, प्रशासन, न्यायालय आदि क्षेत्रों में अधिकाधिक उपयोग करना चाहिए।
हिन्दी के ही सहायक प्राध्यापक डॉ. बेठियार सिंह साहू ने प्रयोक्ताओं की संख्या और भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से हिन्दी की वैश्विक स्थिति को गौरवपूर्ण बताते हुए अपने ही देश में दृष्टिगत होने वाली कुछ समस्याओं के प्रति सजग रहने और समाधान हेतु प्रयास करने का आग्रह किया| डॉ. रविकांत सिंह ने अपने वक्तव्य में कथनी और करनी में समन्वय का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि हम कार्यक्रमों में बातें बहुत करते हैं किन्तु व्यवहार में पीछे रह जाते हैं यही समस्या की जड़ है। कार्यक्रम के दौरान सफल मंच सञ्चालन हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. रजनीश कुमार यादव ने किया और डॉ. ऋचा मिश्रा द्वारा हिन्दी के विविध विचारणीय पहलुओं पर चर्चा करते हुए धन्यवाद तथा आभार ज्ञापन किया गया।
उल्लेखनीय है कि अपरिहार्य कारणों से अन्यत्र गए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार सिन्हा ने दूरभाष पर अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित कीं और कार्यक्रम की सफलता के लिए मार्गदर्शन किया| इसी तरह डॉ. विशाल कुमार सिंह ने भी दूरभाष पर सतत कार्यक्रम के बारे में अपने मूल्यवान सुझाव साथियों को दिए।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापकों में डॉ. तनु गुप्ता, डॉ. गौरव सिंह, डॉ. मृणाल चन्द्र, डॉ. नीलाम्बरी गुप्ता, डॉ. इश्तियाक अहमद, डॉ. निधि कुमारी, डॉ. सुनील प्रसाद डॉ. सुप्रिया कुमारी, डॉ. ओमप्रकाश, डॉ. अंकित विश्वकर्मा, डॉ. गौरव शर्मा, डॉ. विकास कुमार, डॉ. प्रवीण कुमार भास्कर, डॉ. आनंद गुप्ता, प्रशाखा पदाधिकारी श्री हरिहर मोहन, कर्मचारियों में सूरज राम, मनोज दास, रामबाबू आदि की सक्रिय उपस्थिति रही। वहीँ स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों में अमित कुमार, सुरुचि कुमारी, पल्लवी, शालिनी, नेहा, पूजा, रिहा, जुली, खुशबू आदि की उत्साहपूर्ण सक्रिय सहभागिता रही साथ ही सभी संकायों के विद्यार्थियों की भरी संख्या में सुरुचिपूर्ण उपस्थिति रही| कार्यक्रम उल्लासपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ।
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