वजूद तलाश रही कुम्हार की चाक, नही कमा रहा मुनाफा, संस्कृति को जीवंत रखने का कर रहा प्रयास

वजूद तलाश रही कुम्हार की चाक, नही कमा रहा मुनाफा, संस्कृति को जीवंत रखने का कर रहा प्रयास

(कबीर)

कुम्हार मुनाफा नही कमा रहे, संस्कृति को जीवंत रखने का प्रयास कर रहे है…

प्रकाश का पर्व दीपावली पर दूसरों के घरों में ज्ञान का दीपक और समृद्धि का प्रकाश फैलाने वाले कुम्हारों के घर में अंधेरा सदियों से कायम है. लोग दीपावली पर अपने घर लक्ष्मी आगमन की कामना करते हैं. इस मौके पर दीपों की रोशनी में मां लक्ष्मी और गणेश का पूजन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. लेकिन दीपावली पर जलने वाले दीयों को लेकर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों को बनाने वाले कुम्हारों के यहां लक्ष्मी का आशीर्वाद नहीं मिल पाता है. उनके घर पर सदियों से अंधेरा ही कायम रहा है.

21वीं सदी में कुम्हार की चाक मिट्टी आज भी अपना वजूद तलाश रही है. कड़ी मेहनत से मिट्टी के दीए, खिलौने, बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को दिवाली का बेसब्री से इंतजार रहा करता था. मिट्टी के दीपको की मांग थी. दीपक को खरीदने के लिए भारी भीड़ देखी जाती थी. पहले की तुलना अब कुम्हार भी बहुत कम रह गए हैं. कुम्हारों के दीपक से दमकती दीपावली पर चाइनीज सस्ती झालर ने कब्जा कर लिया है.

कुम्हार मुनाफा नहीं कमा रहा, बल्कि अपनी संस्कृति, को जीवंत रखने का प्रयास कर रहा है
दीपावली के दो-तीन महीना पहले से ही कुम्हारों को फुर्सत नहीं मिलती थी. कोविड के बाद और गिरती अर्थव्यवस्था से बढ़े तेल के दाम ने कुम्हारों की चिंता बढ़ा दी है. कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी और अन्य सामानों के मूल्य में इजाफा होने के कारण ग्राहको के द्वारा अपने परिश्रम का उचित लाभ भी नहीं मिल पाता है. आधुनिकता के दौर में लोग कुम्हार द्वारा बनाए गए मिट्टी के सामान को खरीदने को प्राथमिकता नहीं देते. आलीशान बंगलों पर सजी चाइनीस लड़ियां बेशक लोगों के मन को लुभाती है लेकिन महंगी मिट्टी खरीदकर दिए बनाकर कुम्हार मुनाफा नहीं कमा रहा, बल्कि अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज को जीवंत रखने का प्रयास कर रहा है.

असली दीपावली तो मिट्टी के दीए से ही मनाई जाती है
आज के दौर में दिवाली में पारंपरिक तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के दिए अब सिमटकर शगुन के तौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं लगातार बढ़ती महंगाई और लोग की बदलती रुचि से अब तस्वीर बदल गई है. आधुनिक लड़ियों ने भले ही जगह ले ली हो लेकिन असली दीपावली तो मिट्टी के दीए से ही मनाई जाती है. दीपक हमें अंधकार दूर कर समाज में प्रकाश फैलाने का सीख देता है दीपक की लौ केवल रोशनी की प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता से अंधेरे को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने की प्रेरणा देता है. यह विडंबना ही है कि को कुम्हार घरों में ज्ञान का दीपक और समृद्धि का प्रकाश लाता है, उनके ही घर में अज्ञानता और विपन्नता का अंधकार कायम है.

मिट्टी के दीए जलाने से वातावरण भी रहता है शुद्ध
बारिश के बाद वातावरण में तमाम तरह के कीड़े पतंगे उड़ते हैं, जिनकी वजह से तमाम तरह की बीमारियां फैलती है. दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने से हानिकारक कीड़े जल जाते हैं. इनके अलावा तेल से मिट्टी के दीए जलाने से वातावरण भी शुद्ध रहता है. आधुनिकता के इस दौर में जहां दीपावली का पर्व के मौके पर विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक से बने खिलौने और दिए दुकान में बिकने को तैयार है. वहीं सड़कों के किनारे फुटपाथ पर मिट्टी के बने खिलौने को बेचने की जुगत में बैठे कुम्हारों की तरफ कुछ लोग देखना भी कोई गवारा नहीं समझते है.

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